नई दिल्ली |
जिनके हाथ मेें लोगों की जिंदगी बचाने की जिम्मेदारी हो, अगर वे भविष्य के डॉक्टर यह सीखते हुए डॉक्टर बनें कि समलैंगिक रिश्ते अप्राकृतिक हैं तो आप सोचिए कि अस्पताल में अपना इलाज कराने आने LGBTQ+ समुदाय के लोगों का वे बिना किसी पूर्वागृह के कैसे इलाज कर पाएंगे। हाल में एमबीबीएस पाठ्यक्रम मेें उन रूढ़िवादी विचारों को दोबारा शामिल कर लिया गया जिसे दो साल पहले कोर्ट के आदेश पर हटा दिया गया था। नए पाठ्यक्रम में मेडिकल विद्यार्थियों को पढ़ाया जाना था कि समलैंगिकता व सोडोमी अप्राकृतिक व यौन अपराध हैं। साथ ही, वर्जिनिटी और हाइमन जैसे विषय भी फिर से पाठ्यक्रम में जुड़ दिए गए जिसे आज के दौर में महिलाओं के खिलाफ रूढ़िवादी विचार माना जाता है।
इस मामले पर अधिकार संगठनों के विरोध के बाद इसे पाठ्यक्रम से दोबारा हटाने का फैसला ले लिया है। गौरतलब है कि साल 2019 में पहली बार एमबीबीएस विद्यार्थियों के लिए योग्यता-आधारित चिकित्सा शिक्षा पाठ्यक्रम (सीबीएमई) को लागू किया गया था, जिसकी ताजा गाइडलाइंन को लेकर विवाद खड़ा हो गया और इसे वापस लेना पड़ा है। 31 अगस्त को जारी नए दिशा-निर्देशों से इस बात की जानकारी सामने आई और समलैंगिक अधिकार कार्यकर्ताओं की ओर से कड़ा विरोध दर्ज करवाया गया। तब जाकर फैसला वापस लिया गया है। इंडियन एक्सप्रेस के 6 सितंबर के संस्करण के मुताबिक, राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) ने नोटिफिकेशन जारी किया है कि इन गाइडलाइनों को रिवाइज करके आगामी कोर्स में लागू किया जाएगा। बता दें कि एमबीबीएस का नया कोर्स अक्तूबर से शुरू होने की संभावना है।