Site icon बोलते पन्ने

अशोक महतो vs अखिलेश सिंह : 35 साल पुरानी रंजिश में पत्नियों के जरिए विधानसभा की जंग

बायीं ओर चार बार की विधायक अरुणा देवी, दायीं ओर RJD प्रत्याशी अनीता।

बायीं ओर चार बार की विधायक अरुणा देवी, दायीं ओर RJD प्रत्याशी अनीता।

 

नवादा | अमन कुमार

नवादा जिले के वारसलीगंज विधानसभा सीट, खूनी जंग वाली राजनीति की जमीन रही है। कई दशक गुजर जाने के बाद भी बाहुबली नेता अखिलेश सिंह और अशोक महतो एक-दूसरे की जानी दुश्मन माने जाते हैं। इस विधानसभा चुनाव में इन दो नेताओं की दुश्मनी, उनकी पत्नियों के जरिए राजनीति के मैदान में फिर से उतर आई है। 11 नवंबर को वारसलीगंज विधानसभा की जनता तय करेगी कि इस जंग में किसकी जीत होगी?

 

खूनी का नया अध्याय है ये चुनाव

साल 1990 में वारसलीगंज की सड़कों पर गोलियों की गूंज थी। एक तरफ कुर्मी बाहुबली अशोक महतो, दूसरी तरफ भूमिहार बाहुबली अखिलेश सिंह। दोनों के बीच वर्चस्व की लड़ाई ने दर्जनों जानें लीं। आज वही दुश्मनी वोट की शक्ल में सामने है। बिहार विधानसभा चुनाव में अशोक की पत्नी अनीता को RJD और अखिलेश की पत्नी अरुणा देवी को BJP ने टिकट दिया है। यह सिर्फ दो महिलाओं का चुनाव नहीं, बल्कि तीन दशक पुरानी खूनी रंजिश का नया अध्याय है।

 

1990 से 2005 तक खून की होली का दौर

यह गैंगवार 1990 में अशोक महतो के भाई की हत्या के साथ शुरू हुआ था और 15 साल तक चला। दोनों पक्षों ने एक-दूसरे के करीबियों को निशाना बनाया। 1995 से 2000 के बीच कुल 27 हत्याएं दर्ज हुईं। अशोक महतो पर ‘नरसंहार’ के आरोप लगे, जबकि अखिलेश सिंह को ‘सामंती दमन’ का जवाब देने वाला बताया गया।  पुलिस रिकॉर्ड में दोनों के नाम दर्जनों आपराधिक मामलों में हैं।

 

25 साल पहले राजनीति में उतरीं अरुणा देवी

साल 2000 में अखिलेश ने राजनीति में कदम रखा। उनकी पत्नी अरुणा देवी ने स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर वारसलीगंज सीट जीती। यह अशोक कैंप के लिए पहला झटका था। 2005 के फरवरी चुनाव में अरुणा ने लोजपा के टिकट पर जीत हासिल की, लेकिन राष्ट्रपति शासन लगने के बाद उसी साल अक्टूबर के हुए विधानसभा चुनाव में  अशोक के समर्थक प्रदीप महतो ने सिर्फ 555 वोटों से उन्हें हरा दिया। यह जीत महतो कैंप की पहली बड़ी कामयाबी थी।

 

2005 से 2020 तक कब्जे की जंग

2010 में प्रदीप महतो ने जेडीयू के टिकट पर फिर जीत हासिल की। लेकिन 2015 में अरुणा देवी ने बीजेपी के टिकट पर वापसी की और लगातार दो चुनाव 2015, 2020 जीते। अरुणा का फॉर्मूला था- सभी समुदायों का वोट। फॉरवर्ड यानी- राजपूत, भूमिहार, ईबीसी। साथ ही कुछ मुस्लिम वोट उनके साथ रहे। साथ ही, इलाके की करीब 1.35 लाख महिला वोटर उनका मजबूत आधार बना।

 

2025: पत्नियों की सीधी टक्कर

इस बार आरजेडी ने अशोक महतो की पत्नी अनीता को मैदान में उतारा। अनीता पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रही हैं। 2024 में उन्होंने मुंगेर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था, लेकिन ललन सिंह के खिलाफ हार गई थी पर तब उन्होंने खासा चर्चा बटोरी थी। अब अशोक महतो बैकवर्ड और अति पिछड़ा समाज को एकजुट करने में जुटे हैं।

 

दोनों उम्मीदवारों का वोट बैंक

1. बीजेपी अरुणा देवी : फॉरवर्ड + ईबीसी + महिला वोटर : चौथी बार जीत का भरोसा।

2. आरजेडी अनीता महतो : कुर्मी + यादव + अति पिछड़ा : बाहुबली की ताकत, साथ में काफिले पर हमले से सहानुभूति भी उपजी।

 

अनीता के काफिले पर हमले से नैरेटिव बदला

पिछले हफ्ते अनीता के काफिले पर हमले हुए। महतो समर्थक इसे सामंती साजिश बता रहे हैं, इससे सहानुभूति का माहौल बना है। युवा बैकवर्ड वोटर करीब 60 हजार अनीता की ओर झुक रहे हैं। दूसरी ओर, 8 नवंबर को जीतन राम मांझी वारसलीगंज पहुंचे और उन्होंने मंच से कहा कि बैकवर्ड वोट को फॉरवर्ड के नाम पर बंटने नहीं देंगे। लेकिन इस इलाके में मांझी का प्रभाव सीमित है। दूसरी तरफ अरुणा कैंप का दावा है कि हमने सभी जातियों का वोट लिया है।

 

दोनों महिला प्रत्याशियों के सामने जाति की चुनौती
वारसलीगंज में कुल 2.7 लाख मतदाता हैं, जिनमें आधी आबादी महिला वोटरों की है। दोनों प्रमुख उम्मीदवार महिलाएं हैं पर इस सीट पर अगड़ी और पिछड़ी जाति की राजनीति रही है। अब देखना होगा कि अरुणा देवी क्या अपना किला बचा पाएंगी या इस क्षेत्र में एक और बाहुबली की पत्नी का राजनीतिक उभार होगा?

Exit mobile version