- लखीसराय के जिलाधिकारी ने आदिवासी इलाकों में पहुंचकर वोटर जागरुकता अभियान चलाया।
- कच्ची सड़क के चलते आदिवासी से मिलने पहुंचने के लिए गाड़ी छोड़ DM को पैदल जाना पड़ा।
- डीएम ने आदिवासियों से 6 नवंबर को वोट डालने की अपील की, बूथ दूर होने की समस्या सुनी।
चानन (लखीसराय) | गोपाल प्रसाद आर्य
बिहार के लखीसराय जिले से 25 किलोमीटर दूर चानन प्रखंड के कई आदिवासी गांवों के ग्रामीण 7 अक्तूबर को उत्साह में थे क्योंकि जिलाधिकारी उनसे मिलने आए।
DM मिथिलेश मिश्र ने खुद पारंपरिक ढोल बजाकर आदिवासियों से जुड़ने की कोशिश की और सबसे कहा कि “आगामी 6 नवंबर को वोट डालने जरूर बूथ पर पहुंचें। जिनके कोई भी आदिवासी वोटर अपने वोट के अधिकार से वंचित न रहे।”
आदिवासियों ने अपनी परेशानी जिला अधिकारी के बीच रखी कि वे सभी चुनाव में वोट डालने तो जरूर जाना चाहते हैं पर पक्की सड़क न होने से पोलिंग बूथ तक पहुंचना बेहद मुश्किल है। उन्हें पास के बाजार जाने तक के लिए एक घंटे पैदल का रास्ता पार करना पड़ता है क्योंकि गड्डों के चलते ईरिक्शा पलट जाता है ।
उन्होंने कहा कि पोलिंग बूथ तो दूसरी पंचायत के वरमसिया गांव के पास है, कच्ची सड़क से वे 6 किलोमीटर की दूरी कैसे पार करेंगे?
कच्ची सड़क के चलते खुद भी पैदल पहुंचे डीएम
गौरतलब है कि इस कार्यक्रम में पहुंचने के लिए सरकारी प्रशासन का अमला बड़ी गाड़ियों से आया था पर कच्चे रास्ते में पानी भरा होने से डीएम व अन्य को पैदल ही कच्ची सड़क और झाड़ियों से होकर आयोजन स्थल तक पहुंचना पड़ा।
इसके बावजूद आदिवासियों की पक्की सड़क की मांग का DM के पास कोई जवाब नहीं है क्योंकि ये क्षेत्र वन विभाग के अधिकार में है। जिले के उपविकास आयुक्त सुमित कुमार ने भी यही कारण बता दिया।
वन विभाग बोला- सड़क बनी तो लकड़ी चोरी होगी
वहीं, मौके पर मौैजूद वन विभाग के अधिकारी ने हमारे संवाददाता से कहा कि ‘आचार संहिता लागू हो जाने के बाद सड़क या कोई और निर्माण कराने पर रोक है।’ साथ ही यह भी आशंका जतायी कि ‘अगर सड़क बनी तो लकड़ी कटाई की चोरी बढ़ जाएगी।’
ऐसे में सवाल यह है कि क्या लकड़ी चोरी रोकने के लिए आदिवासी गांवों को सरकार मूलभूत सुविधाओं से दूर रखना चाहती है?
सूर्यगढ़ा विधानसभा के के इन गांवों तक वर्तमान विधायक प्रह्लाद यादव भी नहीं पहुंचे । आदिवासियों का आरोप है कि हमारे विकास के रूपये का बंदरबांट कर लिया जाता है।
पक्की सड़क न होने से पढ़ाना और इलाज कराना मुश्किल
संग्रामपुर ग्राम पंचायत के आदिवासी जनजाति वाले तीन गांवों – कछुआ कोड़ासी, सतघरवा कोड़ासी और बासकुंड कोड़ासी के लोगों ने कहा कि हमारी 5000 की आबादी है, फिर भी सड़क नहीं बनी।
गांव में स्कूल नहीं है और कच्ची सड़क से छोटे बच्चों को पांच किलोमीटर दूर के स्कूल नहीं भेज सकते। किसी की तबीयत ज्यादा खराब हो जाए तो उसे शहर ले जाना बेहद मुश्किल होता है।
छह नवंबर को भले इस क्षेत्र को नया प्रतिनिधि मिल जाए पर क्या इन आदिवासियों को एक अदद सड़क नसीब होगी? ये एक बड़ा सवाल है जो बिहार में विकास की कलई खोलता है।
आदिवासी युवाओं के लिए करायी फुटबॉल प्रतियोगिता
कार्यक्रम से आदिवासी युवाओं को जोड़ने के लिए डीएम ने आदिवासी युवाओं की फुटबॉल प्रतियोगिता आयोजित करायी, जिसमें कुल चार टीम कछुआ, सतघरवा, बासकुंड व गोपालपुर बनाई गईं।
बासकुंड के युवा फुटबॉलरों की टीम विजेता रही, गोपालपुर की टीम उपविजेता बनी। सभी को कप व मेडल दिए गए।

