- जर्मनी की संस्था ‘Germanwatch’ की क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स 2026 जारी किया।
नई दिल्ली |
कभी मार्च में ही झुलसाने वाली गर्मी, कभी जून-जुलाई में बाढ़ की तबाही – भारत का मौसम अब पहले जैसा नहीं रहा। बारिश, लू, सूखा और तूफान अब “हर साल की कहानी” बन चुके हैं। अब एक नई वैश्विक रिपोर्ट ने साफ कर दिया है कि ये खतरा कितना बड़ा है।
जर्मनी की संस्था ‘Germanwatch’ की क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स 2026 (Climate Risk Index 2026) रिपोर्ट के मुताबिक – भारत पिछले 30 सालों में (1995 से 2024) दुनिया के उन देशों में शामिल है जो चरम मौसम (Extreme Weather) से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए।
रिपोर्ट में भारत को 9वें स्थान (9th Rank) पर रखा गया है – यानी भारत दुनिया के 10 सबसे ज्यादा प्रभावित देशों में से एक है। यह रिपोर्ट इस समय ब्राज़ील के बेलेम (Belem) शहर में चल रहे COP30 जलवायु सम्मेलन में जारी की गई।
climate risk index 2026 (भारत गहरे लाल निशान में दर्शाया गया है जो जलवायु परिवर्तन के सर्वाधिक खतरे को दर्शाता है।)
भारत का स्थान और हालात: हर कुछ महीनों में नई आपदा
रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 30 सालों में भारत में 430 से ज़्यादा चरम मौसम की घटनाएँ हुईं – जिनमें बाढ़, सूखा, लू, भूस्खलन और चक्रवात शामिल हैं।
इन घटनाओं से —
1 अरब से ज़्यादा लोग प्रभावित हुए,
2. 80,000 से ज़्यादा लोगों की जान गई,
3. और करीब 170 अरब डॉलर (14 लाख करोड़ रुपये) का नुकसान हुआ।
यानि हर कुछ महीनों में किसी न किसी हिस्से में मौसम का कहर टूटा — जिससे लोग, फसलें और अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई।
2024: भारत के लिए सबसे कठिन सालों में से एक
रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2024 भारत के लिए बेहद भारी साबित हुआ।
1. गुजरात, महाराष्ट्र और त्रिपुरा में भारी बारिश और बाढ़ से
करीब 80 लाख लोग प्रभावित हुए।
2. पूरे साल में भारत में लगातार बाढ़, चक्रवात और हीटवेव (Heatwave) जैसी घटनाएँ हुईं।
2024 में भारत का रैंक 15वां रहा, लेकिन पिछले 30 वर्षों का कुल औसत देखने पर भारत 9वें स्थान पर आ गया।
इसका मतलब है – भारत पर चरम मौसम का असर “लगातार और दोहराव वाला” है।
‘सतत खतरे’ वाले देशों में भारत शामिल
रिपोर्ट ने भारत को “Continuous Threat Zone” यानी “सतत खतरे में रहने वाला देश” बताया है। इसका मतलब है – भारत हर साल नई आपदाओं से जूझता है,
जिससे देश पूरी तरह संभल भी नहीं पाता कि अगली आपदा आ जाती है।
इस श्रेणी में भारत के साथ फिलीपींस, निकारागुआ और हैती जैसे देश भी हैं। इन जगहों पर बार-बार आने वाली बाढ़, तूफान और गर्मी स्थानीय लोगों के जीवन को अस्थिर कर देती हैं।
दुनिया का हाल: हर कोने में मौसम का कहर
1995 से 2024 के बीच दुनिया में:
1. 9,700 चरम मौसम की घटनाएँ दर्ज हुईं।
2. 8.32 लाख लोगों की मौत हुई।
3. और 4.5 ट्रिलियन डॉलर (₹375 लाख करोड़) का नुकसान हुआ।
सबसे ज्यादा प्रभावित देश रहे:
1. सेंट विन्सेंट एंड द ग्रेनेडाइंस (Caribbean)
2️. ग्रेनेडा
3️. चाड (अफ्रीका)
4. म्यांमार
5️. होंडुरास
भारत की 2024 में स्थिति 15वीं रही, लेकिन 30 साल के औसत में 9वीं रैंक पर रहा।
2024 में क्या हुआ दुनिया में?
रिपोर्ट के मुताबिक, 2024 में बाढ़ सबसे बड़ी आपदा साबित हुई। इससे दुनिया भर में 5 करोड़ लोग प्रभावित हुए।
इसके बाद हीटवेव (Heatwaves) से 3.3 करोड़ लोग, और सूखे (Droughts) से 2.9 करोड़ लोग प्रभावित हुए।
फिलीपींस में आया टाइफून त्रामी (Typhoon Trami) सबसे घातक साबित हुआ —
इसमें 100 से ज़्यादा लोगों की जान गई और लाखों बेघर हुए।
क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स (CRI) क्या है और क्यों ज़रूरी है?
CRI (Climate Risk Index) एक वार्षिक रिपोर्ट है,जो बताती है कि किन देशों को मौसम की चरम घटनाओं से सबसे ज्यादा नुकसान हुआ।
यह रिपोर्ट मापती है —
1. कितने लोग प्रभावित हुए,
2. कितनी मौतें हुईं,
3. और आर्थिक नुकसान कितना हुआ।
इस रिपोर्ट का उद्देश्य यह दिखाना है कि कौन से देश जलवायु संकट (Climate Crisis) से सबसे ज्यादा पीड़ित हैं और किसे अंतरराष्ट्रीय मदद की जरूरत है।
COP30 सम्मेलन में क्या हुआ
ब्राज़ील के बेलेम में चल रहे COP30 (Conference of Parties 30) में इस रिपोर्ट को प्रमुख मुद्दे के रूप में उठाया गया।
Germanwatch की वरिष्ठ विशेषज्ञ वेरा क्यूंज़ेल ने कहा, “भारत, फिलीपींस और हैती जैसे देश बार-बार बाढ़ और गर्मी की लहरों की चपेट में आते हैं। इन्हें राहत से ज्यादा अब दीर्घकालिक मदद और अनुकूलन (Adaptation) की जरूरत है।” वहीं संगठन के क्लाइमेट फाइनेंस सलाहकार डेविड एक्सटीन ने कहा, “अगर वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन नहीं घटाया गया, तो आने वाले सालों में मौतें और आर्थिक नुकसान कई गुना बढ़ जाएंगे।”
भारत के लिए सबसे बड़ा सबक
रिपोर्ट कहती है कि भारत को अब “आपदा से निपटने की तैयारी (Climate Adaptation)” पर ध्यान देना होगा। यानी बाढ़ वाले इलाकों में बेहतर जल निकासी व्यवस्था, लू वाले राज्यों में कूलिंग जोन और छाया केंद्र, सूखे वाले क्षेत्रों में पानी बचाने की योजना। सिर्फ राहत देना काफी नहीं, अब जरूरत है भविष्य की तैयारी की क्योंकि मौसम अब स्थायी खतरा बन चुका है।
written by Mahak Arora (content creator)

