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भाईचारे की मिसाल: सहरसा में कई पीढ़ियों से छठ घाट की जिम्मेदारी उठा रहा मुस्लिम समुदाय

सहरसा बस्ती के पोखर में छठ घाट का इंतजाम 80 साल से स्थानीय मुस्लिम समुदाय के लोग करते आ रहे हैं।

सहरसा बस्ती के पोखर में छठ घाट का इंतजाम 80 साल से स्थानीय मुस्लिम समुदाय के लोग करते आ रहे हैं।

सहरसा | सरफराज आलम

महापर्व छठ बिहार में हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक भी है, यहां के सहरसा जिले में इसका जीवंत उदाहरण देखने को मिला जहां छठ घाट की पूरी जिम्मेदारी मुस्लिम समाज कई दशकों से उठाता आ रहा है।

सहरसा बस्ती की बड़ी पोखर के छठ घाट पर मुस्लिम समुदाय के लोगों ने हर साल की तरह इस बार भी विशेष इंतजाम कराए। तीन घाट बनाए गए, जिसमें नाव भी चली, व्रतियों के पूजा करने के लिए विशेष इंतजाम किए गए।

पोखर की सफाई का काम दिवाली के बाद शुरू हो जाता है, ताकि समय पर घाट तैयार हो सके।

यहां का मुस्लिम समाज न सिर्फ घाट की तैयारी में शामिल रहता है बल्कि पूरे छठ पर्व के दौरान हिंदू व्रतियों की मदद के लिए कैंप लगाकर समिति के सदस्य मौजूद रहते हैं।

जिले के मुस्लिम समुदाय के लोग इस लोकपर्व के लिए दिवाली के बाद से तैयारी शुरु कर देते हैं।

यह पोखर ईदगाह के ठीक बराबर में है, ये पूरा इलाका 52 बीघा जमीन पर बसा हुआ है। जहां एक ओर ईदगाह में ईद व बकरीद की नमाज होती है तो दूसरी ओर पोखर में हर शाम छठ पर सूर्य को अर्ध्य देकर पूजा की जाती है।

नौजवान सहरसा बस्ती कमेटी के मुस्लिम संचालक छठ घाट की पूरी जिम्मेदारी संभालते हैं।

छठ के लिए इंतजाम करने वाली समिति का नेतृत्व स्थानीय पार्षद मो. अकबर करते हैं। उनका कहना है कि कई पीढ़ियों से उनका परिवार ये जिम्मा लेता आया है। मो. अकबर ने बताया कि दिवाली के बाद से वे पोखर की सफाई व सजावट में लग जाते हैं। लाइटिंग व पंडाल लगाने में पांच दिन लगते हैं।

चूंकि छठ में भारी संख्या में लोग जुटते हैं, ऐसे में ये ऑर्गनाइज तरीके से इसका इंतजाम करते हैं। इनकी पांच मुख्य सदस्यों की ‘नौजवान सहरसा बस्ती कमेटी’ है और इस टीम में 25 अन्य युवा शामिल हैं।

इस बार के छठ आयोजन को सफल बनाने में सहरसा बस्ती के मो. सज्जाद, मो. मंसूर, शेर अफगान मिर्जा, मो. शाहनवाज का प्रमुख योगदान रहा।

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