नई दिल्ली |
भारत में सबसे ज्यादा बेघर कुत्ते व बिल्लियां हैं जो सड़कों पर घूमते दिख जाते हैं। हाल के दिनों में बेसहारा कुत्तों के प्रति आम लोगों में भय और घृणा काफी बढ़ने के मामले सामने आए हैं। जिसके चलते कुत्तों को भोजन कराने वाले पशु कार्यकर्ताओं को काफी आलोचना व उत्पीड़न झेलना पड़ रहा है। इन घटनाओं का मूल कारण भारत में पालतू पशुओं के प्रति सरकारों व आम लोगों का गैर-जिम्मेदाराना रुख है, ऐसा एक अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट से पता लगता है।
पालतू पशुओं की देखरेख में भारत सबसे नीचे
‘कम्युनिटी एनिमल’ कहे जाने वाले कुत्तों को आखिर आम लोग सड़कों से भी क्यों हटाना चाहते हैं जबकि उन्हें अपने घरों में जगह देने को राजी नहीं है? इस सवाल को समझने के लिए हमें 20 देशों में पालतू पशुओं की स्थिति पर आई एक रिपोर्ट के बारे में जानना होगा। रिपोर्ट में बताया गया कि भारत दुनिया में सबसे ज्यादा लावारिस छोड़ दिए गए जानवरों वाला देश है। 2024 की “स्टेट ऑफ पेट होमलेसनेस इंडेक्स” रिपोर्ट के अनुसार, 20 देशों के अध्ययन में भारत में बेघर बिल्लियों और कुत्तों का प्रतिशत सबसे अधिक है। इस रिपोर्ट को मार्स पेटकेयर ने जारी किया जो कि दुनियाभर में दो हजार अधिक पालतू जानवरों के अस्पतालों और नैदानिक सेवाओं के एक अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क के माध्यम से अग्रणी पशु चिकित्सा स्वास्थ्य प्रदाता का काम करती है।
- पालतू जानवर को मालिकों की ओर से छोड़ दिए जाने की दर बहुत ज्यादा है। 2021 में यह दर 50% थी जबकि वैश्विक औसत 28% था।
- भारत में राष्ट्रीय पालतू पंजीकरण काफी कम है और पशुओं को गोद लेने की नीतियां पुख्ता न होने से अनियंत्रित प्रजनन होता है।
- देश में प्रति व्यक्ति पशु चिकित्सकों की कम संख्या काफी कम है, सस्ती पशु चिकित्सा देखभाल न होने से जानवरों के प्रति सार्वजनिक भय है।
- कचरा निपटान की समस्या के चलते सड़क किनारे ढेर लगा रहता है जो लावारिस जानवरों का भोजन बनता है, जिससे सड़कों पर ये बढ़ जाते हैं।
भारत में 7 करोड़ कुत्ते लाबारिस
हालांकि इस गणना के दौरान ग्रामीण व शहरी सड़कों पर मिले कुत्तों को ही लिया गया, घरों में पल रहे पालतू कुत्ते इसमें शामिल नहीं हैं। साथ ही बिल्लियों को भी इसमें शामिल नहीं किया गया। पशुधन गणना मुख्य रूप से पालतू और उपयोगी पशुओं (जैसे गाय, भैंस, बकरी आदि) पर केंद्रित होती है। ऐसे में अन्य स्वतंत्र संस्थाओं के आंकड़ों से ही भारत में कुत्तों-बिल्ली की संख्या का अंदाजा लगाया जा सकता है।
कुत्तों के खिलाफ गुस्सा और सुप्रीम कोर्ट का आदेश
हाल के दिनों में भारत में पशु प्रेमियों को हेय की नजर से देखा जाने लगा और सुप्रीम कोर्ट के विवादित आदेश के बाद आम लोगों में यह भावना और मजबूत हुई कि सड़कों पर घूमने वाले कुत्तों को आश्रयगृहों में रखा जाना चाहिए। पशु प्रेमियों विशेष कुत्तों को प्रेम करने वाले (dog lovers) पशु कार्यकर्ता व कुत्तों को भोजन कराने वालों (dog feeders) ने देेश में कई प्रदर्शन किए और फिर सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बेंच ने अपने पूर्व आदेश के कुछ ‘कड़े’ हिस्सों को बदलकर पशु कार्यकर्ताओं की बात मान ली।
नसबंदी के बाद सड़कों पर छोड़ा जाए पर सड़कों पर खिलाना मना
मूल आदेश पर व्यापक आलोचना के बाद 22 अगस्त 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने इसे संशोधित किया। अब कुत्तों को नसबंदी, टीकाकरण और कृमिनाशक उपचार के बाद उसी क्षेत्र में छोड़ने की अनुमति दी गई है, सिवाय उन कुत्तों के जो रेबीज से संक्रमित या आक्रामक हों। रेबीज या आक्रामक व्यवहार वाले कुत्तों को अलग आश्रयों में रखा जाएगा। साथ ही, सार्वजनिक स्थानों पर कुत्तों को खिलाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, और प्रत्येक नगर निगम वार्ड में समर्पित खिलाने के स्थान बनाने का आदेश दिया गया है।
संशोधित आदेश के बाद भी आम लोगों में भ्रम
सुप्रीम कोर्ट के संशोधित आदेश में नगर निगमों को कहा गया है कि वे कुत्तों को भोजन खिलाने के लिए कुछ जगहों को चिन्हित करें। हालांकि, इस नीति के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए बुनियादी ढांचे और संसाधनों की कमी एक चुनौती बनी हुई है। हाल में इंडियन एक्सप्रेस ने एक खबर में बताया कि दिल्ली-एनसीआर में कुत्तों को भोजन कराने वाले कार्यकर्ताओं को स्थानीय लोग ऐसा करने से रोक रहे हैं और सुप्रीम कोर्ट के मूल आदेश का हवाला दे रहे हैं, जिससे इन कार्यकर्ताओं को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। यहां अभी तक नगर निगम ने भोजन कराने के स्थान चिन्हिंत नहीं किए हैं।

