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मोदी के दावे की पड़ताल: क्या वाकई बिहार, बंगाल, असम की पहचान को खतरा है ?

नई दिल्ली | शिवांगी
हाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के पूर्वी और पूर्वोत्तर राज्यों में दौरे किए, जिसमें 13-15 सितंबर 2025 के बीच मणिपुर, मिजोरम, असम, पश्चिम बंगाल और बिहार शामिल हैं। इन अलग-अलग दौरों में उनके भाषणों में एकसमान पैटर्न नजर आता है, जहां उन्होंने अवैध घुसपैठ, डेमोग्राफी बदलाव और स्थानीय पहचान को खतरे की बात उठाई। विशेषकर बिहार में इन दावों को भाजपा की चुनावी रणनीति, खासकर 2025 के विधानसभा चुनावों के मद्देनजर, देखा जा रहा है। प्रधानमंत्री के हालिया भाषणों के आधार पर जनसांख्यिकी और स्थानीय पहचान बदलने के दावों की आइए पड़ताल करते हैं…

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (साभार – इंटरनेट)

‘डेमोग्राफी मिशन’ के इर्द-गिर्द हो रहे भाषण
पीएम मोदी के हालिया बयानों का संदर्भ देखें तो इसी साल स्वतंत्रता दिवस के भाषण में उन्होंने ‘डेमोग्राफी मिशन’ की घोषणा की थी। 15 अगस्त 2025 को लाल किले से देश को संबोधित करते हुए पीएम ने कहा था- “घुसपैठिए मेरे देश की बहनों-बेटियों को निशाना बना रहे हैं, ये घुसपैठिए भोले-भाले आदिवासियों को गुमराह करके उनकी जमीन हड़प लेते हैं, देश इसे बर्दाश्त नहीं करेगा। जब सीमावर्ती इलाकों में जनसांख्यिकी परिवर्तन होता है तो यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करता है। इन सबको देखते हुए हमने एक ‘हाईपावर डेमोग्राफी मिशन’ शुरू करने का फैसला किया है।”

1. पश्चिम बंगाल दौरा : ‘वेलफेयर फंड का इस्तेमाल घुसपैठ में हो रहा’
15 अगस्त 2025 के बाद 22 अगस्त 2025 को पीएम मोदी ने कोलकाता में एक रैली की। यहां उन्होंने सत्ताधारी पार्टी तृणमूल कांग्रेस पर आरोप लगाया कि वह राज्य में अवैध घुसपैठ करवा रही है और इसके लिए सरकार के कल्याणकारी योजनाओं पर लगने वाले फंड का गलत इस्तेमाल कर रही है। इसके चलते राज्य की डेमोग्राफी चेंज हो रही है।
“सीमा क्षेत्रों में डेमोग्राफी बदली जा रही है… अवैध घुसपैठ के माध्यम से बंगाल की पहचान और स्थानीय लोगों के अधिकारों को खतरा है। टीएमसी वेलफेयर फंड्स को कैडर पर खर्च कर डेमोग्राफी चेंज कर रही है।” – पीएम मोदी
क्या बोला विपक्ष: टीएमसी ने प्रेसनोट जारी करके कहा- ”पीएम का बयान चुनावी डर फैलाने का हथकंडा है, जो स्वतंत्रता दिवस भाषण से प्रेरित है, जहां उन्होंने घुसपैठियों को नया दुश्मन बताया। यह सिर्फ एक और जुमला है, जो बंगाल की एकता को तोड़ने की कोशिश है।”

पश्चिम बंगाल में उपले बनाने ले जाती महिला (साभार इंटरनेट)

फैक्ट जानें-
  • 2011 की जनगणना के अनुसार, पश्चिम बंगाल में मुस्लिम आबादी 27% है, जो 2001 के 25% से मामूली वृद्धि दर्शाती है।
  • बांग्लादेश से घुसपैठ के दावे पुराने हैं, 1950 से 1970 के दशक में घुसपैठ चरम पर थी, बंग्लादेश बनने के बाद स्थिति नियंत्रित हुई।
  • हालिया डेटा (UDISE और NCRB) में कोई बड़े पैमाने पर घुसपैठ का प्रमाण नहीं मिलता।
  • फैक्ट-चेक रिपोर्ट्स (जैसे द फेडरल, 2025) के मुताबिक, 1971 से 2011 के बीच आबादी वृद्धि 2.06 गुना रही है, जो राष्ट्रीय औसत 2.2 गुना से कम है। साथ ही, अधिकांश वृद्धि प्राकृतिक है, न कि घुसपैठ से।

2. असम दौरा : घुसपैठियों को कांग्रेस ने जमीन दे दी
14 सितंबर 2025 को असम के गोलाघाट और दर्रांग में आयोजित रैली के दौरान मोदी ने कांग्रेस पर वोट बैंक के लिए घुसपैठियों को जमीन देने का आरोप लगाया। साथ ही कहा कि इसकी वजह से स्थानीय और आदिवासी पहचान को नुकसान पहुंच रहा है। उन्होंने यहां डेमोग्राफी मिशन का जिक्र दोहराया।
“कांग्रेस ने वोट बैंक की लालच में घुसपैठियों को जमीन देकर असम की डेमोग्राफी बदल दी… यह स्थानीय लोगों और आदिवासियों की पहचान के लिए खतरा है। केंद्र ‘डेमोग्राफी मिशन’ लॉन्च करने जा रहा है ताकि घुसपैठ रोकी जा सके।” – पीएम मोदी
क्या बोला विपक्ष: इसकी प्रतिक्रिया में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा था कि “मोदी जी का घुसपैठ का दावा केवल चुनावी डर फैलाने का हथकंडा है। असम में डेमोग्राफी चेंज का कोई ठोस प्रमाण नहीं है।”

असम में चाय के बागान में काम करती महिला (साभार इंटरनेट)

फैक्ट जानें-
  • असम में 1911-1921 के दौरान अंग्रेजी सरकार की ‘ग्रो मोर फूड’ पॉलिसी के चलते जनसंख्या 20.5% की दर से बढ़ी। इस नीति का उद्देश्य खाद्य उत्पादन बढ़ाना था, जिसके लिए बंगाल (वर्तमान बांग्लादेश क्षेत्र) से किसानों को असम के ब्रह्मपुत्र घाटी में बसाया गया। ये मुख्य रूप से मुस्लिम किसान थे।
  • 1947 के विभाजन और 1950 के बंगाल-पूर्वी पाकिस्तान दंगों के बाद शरणार्थी असम में आए। इनमें हिंदू और मुस्लिम दोनों शामिल थे, लेकिन मुस्लिम शरणार्थियों की संख्या अधिक थी। 1951-1961 में जनसंख्या में 34.9% वृद्धि हुई, जो राजनीतिक अस्थिरता और शरणार्थी संकट से प्रभावित थी, न कि अवैध घुसपैठ से।
  • 1991-2011 में वृद्धि दर 23% से घटकर 17% हो गई, जो घुसपैठ के बड़े पैमाने का संकेत नहीं देती। 2011 जनगणना में मुस्लिम आबादी 34% है, लेकिन NRC (2019) में केवल 1.9 मिलियन संदिग्ध पाए गए, जिनमें अधिकांश बंगाली हिंदू/मुस्लिम थे।
  • फैक्ट-चेक (आउटलुक इंडिया, 2024; द फेडरल, 2025) बताते हैं कि आबादी वृद्धि प्राकृतिक और प्रवासन से है, इसमें ‘कांस्पिरेसी’ का कोई ठोस प्रमाण नहीं।
  • असम सरकार की ‘मिशन बसुंधरा’ (भूमि वितरण योजना) ने सभी पात्र नागरिकों को पट्टे दिए, लेकिन जमीन को घुसपैठियों को बांट देने का दावा अतिरंजित लगता है।

3. बिहार दौरा : घुसपैठियों के समर्थन में विपक्ष ने रैलियां कीं
बिहार के पूर्णिया में 15 सितंबर 2025 को मोदी ने कांग्रेस-आरजेडी पर घुसपैठियों को बचाने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि विपक्ष उन्हें बचाने के लिए रैलियां कर रहा है जो सीमांचल और पूर्वी भारत में डेमोग्राफी संकट पैदा कर रहे हैं। उन्होंने इसे स्थानीय पहचान और महिलाओं की सुरक्षा से भी जोड़ा।
“कांग्रेस-आरजेडी ने बिहार की पहचान और सम्मान को खतरे में डाल दिया… सीमांचल और पूर्वी भारत में घुसपैठियों से डेमोग्राफी संकट पैदा हो गया है, जो बहनों-बेटियों की सुरक्षा के लिए खतरा है। हम घुसपैठियों को हटाने के लिए डेमोग्राफी मिशन चलाएंगे।” – पीएम मोदी
क्या बोला विपक्ष: राजद नेता तेजस्वी यादव ने कहा, “मोदी जी का घुसपैठ का नाटक बिहार की सच्ची समस्याओं से ध्यान भटकाने का है। डेमोग्राफी चेंज का कोई सबूत नहीं; यह मुस्लिम-यादव वोट बैंक को डराने की साजिश है। आरजेडी बिहार की पहचान की रक्षा करेगी।”

बिहार के खगड़िया जिले का एक दृश्य (साभार इंटरनेट)

 

फैक्ट जानें-

  • बिहार का बांग्लादेश से सीधा भौगोलिक संपर्क नहीं है, और पश्चिम बंगाल के रास्ते होने वाली किसी भी संभावित घुसपैठ का कोई ठोस प्रमाण नहीं मिला है।
  • SIR (स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन) 2025, बिहार के वोटर लिस्ट अपडेशन का हिस्सा, में विवाद हुआ, लेकिन डेटा में डेमोग्राफी चेंज का कोई बड़ा पैटर्न नहीं दिखा। 2011 की जनगणना में मुस्लिम आबादी 17% थी, जो 2001 के 16.5% से मामूली वृद्धि दर्शाती है, जो प्राकृतिक वृद्धि और आंतरिक प्रवास से मेल खाती है।
  • बिहार में जनसंख्या वृद्धि का एक प्रमुख कारण उच्च जन्म दर रही है। 1971 से 2011 के बीच, बिहार की आबादी 3.57 गुना बढ़ी, जो राष्ट्रीय औसत (2.2 गुना) से अधिक है। यह ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी परिवारों की परंपरा, शिक्षा और जागरूकता की कमी, और स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार से जुड़ी है, जिसने मृत्यु दर को कम किया लेकिन जन्म दर को ऊंचा रखा।
  • 2011 की जनगणना के अनुसार, बिहार की प्रजनन दर (TFR – Total Fertility Rate) 3.7 थी, जो राष्ट्रीय औसत (2.4) से कहीं अधिक थी। यह प्राकृतिक वृद्धि का स्पष्ट संकेत है।

मणिपुर-मिजोरम दौरा : जहां सीमाई आवाजाही है, वहां इसे मुद्दा नहीं बनाया

अशांति के बीच मणिपुर की महिलाएं ( सांकेतिक तस्वीर)

मणिपुर और मिजोरम में हाल के वर्षों में पड़ोसी मुल्क म्यांमार की अस्थिरता के चलते शरणार्थी संकट और सीमाई आवाजाही बढ़ी है। इन दोनों राज्यों की म्यांमार से खुली सीमा और सांस्कृतिक समानताएं हैं। मणिपुर सीमा से 16 किमी तक बिना वीजा म्यांमार में आवाजाही की अनुमति भी है (FMR)। इसके अलावा मणिपुर ढाई साल से जातीय हिंसा में फंसा हुआ है, जिससे यहां आंतरिक विस्थापन बहुत अधिक है। 13 सितंबर 2025 को पीएम ने दोनों राज्यों का दौरा किया, लेकिन यहां डेमोग्राफी चेंज व घुसपैठ का मुद्दा नहीं उठाया। विशेषज्ञ मोदी के इस कदम के निम्न कारण बताते हैं –

  • मणिपुर और मिजोरम में जातीय विविधता (मेइती, कुकी, नागा, मिजो आदि) और म्यांमार सीमा से सटे होने के कारण घुसपैठ एक संवेदनशील मुद्दा है। इन राज्यों में डेमोग्राफी चेंज का जिक्र सांप्रदायिक तनाव या गलतफहमी को बढ़ा सकता था, खासकर मणिपुर में मई 2023 से जारी जातीय हिंसा के बाद।
  • मणिपुर में केंद्रीय बल तैनात हैं, लेकिन राष्ट्रपति शासन नहीं है; इससे पहले भाजपा की सरकार स्थानीय पार्टियों (एनपीपी, एनपीएफ) की निर्भरता पर चल रही थी। मिजोरम में जेडीपी (MNF का सहयोगी) सत्ता में है, जो ईसाई बहुल राज्य में भाजपा के लिए सहयोगी है। डेमोग्राफी चेंज का मुद्दा सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ा सकता था, जो इन गठबंधनों को नुकसान पहुंचाता।
  • असम और बंगाल में विपक्षी दलों (कांग्रेस, टीएमसी) को निशाना बनाया गया, लेकिन मणिपुर-मिजोरम में सहयोगी दलों के साथ सामंजस्य बनाए रखना जरूरी था।
  • मणिपुर और मिजोरम में घुसपैठ का मुद्दा असम या बंगाल जितना ऐतिहासिक रूप से प्रचारित नहीं है। म्यांमार से शरणार्थी (ज्यादातर चिन ईसाई) आते हैं, लेकिन यह बांग्लादेशी घुसपैठ से अलग है, जो पीएम के डेमोग्राफी नरेटिव में केंद्र में है।
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आखिर मोदी किसको घुसपैठिया मानते हैं?
पीएम मोदी और भाजपा के बयानों में “घुसपैठिया” (infiltrators) शब्द का उपयोग मुख्य रूप से अवैध प्रवासियों के लिए किया जाता है। कुछ बयानों में उन्होंने ‘कपड़ों से पहचान’, ‘ज्यादा बच्चे पैदा करने वाले’ जैसे वाक्यों के जरिए जो संकेत दिए हैं, उसके चलते आम राय है कि ये मुस्लिम समुदाय (विशेषकर बांग्लादेशी मूल के बंगाली मुसलमानों) को निशाना बनाता रहा है। ईसाई समुदाय पर प्रत्यक्ष हमले कम हैं, लेकिन कुछ बयानों में ईसाई मिशनरियों को “कन्वर्जन” के लिए घुसपैठिया जैसा चित्रित किया गया है। मोदी के ऐसे बयान अक्सर चुनावी संदर्भ में दिए गए, जो सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा देते हैं। 

एक मजार के पास खेलते मुस्लिम बच्चे (सांकेतिक तस्वीर)

 

1- 21 अप्रैल 2024 : जिनके ज्यादा बच्चे हैं…

“आज इनका [कांग्रेस का] घोषणा पत्र आया है। इनका वचन पत्र आया है। इनका मेनिफेस्टो आया है। मैंने देखा है। क्या लिखा है? इनकी बहन-बेटियों को, इनके मां-बहनों को, इनके परिवार को इनकी संपत्ति से वंचित करने का प्लान कर रहे हैं। इनकी नजर आपकी संपत्ति पर है। आपकी संपत्ति का जो हिस्सा है, जो आपकी मां-बहनों को मिलना चाहिए, वो हिस्सा, इनकी नजर उस हिस्से पर है। इनकी नजर उन लोगों पर है जो बाहर से आए हैं, जिनके पास ज्यादा बच्चे हैं, उनको आपकी संपत्ति बांटने का प्लान है।” – पीएम मोदी, राजस्थान के बांसवाड़ा रैली।
2- 11 मई 2024 : घुसपैठियों की जिहादी माइंडसेट है..
“झारखंड में आज हमारा धर्म निभाना मुश्किल हो गया है। हमारे देवताओं के मूर्ति तोड़ी जा रही हैं। घुसपैठियों का जिहादी माइंडसेट है, वे गैंग बनाकर हमला कर रहे हैं, लेकिन झारखंड सरकार दूर से उनका समर्थन कर रही है। इन घुसपैठियों ने हमारी बहनों और बेटियों की सुरक्षा को खतरे में डाल दिया है।” – मोदी, झारखंड के चतरा में रैली। 
3- 19 मई 2024 : टीएमसी घुसपैठियों को गले लगाती..
“टीएमसी की तुष्टिकरण नीति ने बंगाल की जनसांख्यिकी को बिगाड़ दिया है। घुसपैठ ने राज्य की जनसांख्यिकी को प्रभावित किया है। टीएमसी अन्य राज्यों के लोगों को ‘बाहरी’ कहती है। लेकिन वह घुसपैठियों को गले लगाती है।” – मोदी, पश्चिम बंगाल की मेदिनीपुर रैली।

4-  25 मई 2024 : घुसपैठिए अदृश्य दुश्मन …

“अवैध घुसपैठियों ने हमारी बहनों और बेटियों की सुरक्षा को खतरे में डाल दिया है। ये घुसपैठिए अदृश्य दुश्मन की तरह समाज को बांट रहे हैं। कांग्रेस और विपक्ष इनका समर्थन कर रहे हैं, जिससे हमारी एकता खतरे में है।” – मोदी, उत्तर प्रदेश की गाजीपुर रैली।

5- 15 दिसंबर 2019 : कपड़ों से ही पहचाना जा सकता है…

“सीएए से किसी की नागरिकता नहीं  जाएगी, यह सिर्फ उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों (हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी, ईसाई) को नागरिकता देने के लिए है। जो हिंसा फैला रहे हैं,उन्हें उनके कपड़ों से ही पहचान लिया जा सकता है। हमारी सरकार देश की एकता और अखंडता की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।” – मोदी, सीएए के संदर्भ में झारखंड कीदुमका रैली का भाषण। 
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