बोलते पन्ने | नई दिल्ली
मुंद्रा, गुजरात के कच्छ ज़िले का एक शांत तटीय गांव था, जहाँ स्थानीय मछुआरों और किसानों की जीविका समुद्र और ज़मीन से जुड़ी थी। 1998 में जब अदाणी ग्रुप ने यहां पोर्ट विकसित करने की घोषणा की तो इसे ‘नए भारत’ के इंफ्रास्ट्रक्चर विकास की शुरुआत के रूप में देखा गया। आज यह 155 मिलियन मेट्रिक टन कार्गो और 33% कंटेनर ट्रैफिक के साथ भारत का सबसे बड़ा वाणिज्यिक बंदरगाह है, इसकी शुरुआत 2021 में हुई थी। आइए देखते है कि कैसे यह गाँव भारत के सबसे व्यस्त व बड़े वाणिज्यिक बंदरगाह में बदल गया। यह बंदरगाह हाल के इतिहास में तब चर्चा में आया, जब 2021 में यहां से 21,000 करोड़ रुपये की हेरोइन जब्ती हुई। इस साल मई में इस बंदरगाह ने फिर चर्चा पकड़ी जब अमेरिकी अख़बार ने दावा किया कि अदाणी ने इस पोर्ट के ज़रिए ईरान से कथित तौर पर प्रतिबंधित एलपीजी को भारत पहुंचाया।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: 17वीं सदी में बन गया था व्यापारिक केंद्र
कांग्रेस ने कौड़ियों के भाव बेची मुंद्रा गांव की ज़मीन
मुंद्रा पोर्ट के लिए सबसे पहली बार जमीन सन 1993 में गुजरात सरकार द्वारा गौतम अडानी को आवंटित की गई थी। उस समय गुजरात में कांग्रेस पार्टी की सरकार थी और चिमनभाई पटेल मुख्यमंत्री थे। यह जमीन अदाणी समूह को 10 पैसे प्रति वर्ग मीटर की दर पर दी गई थी, जिसे लेकर बाद में काफी विवाद हुआ। केंद्र में उस समय कांग्रेस पार्टी की सरकार थी, जिसके प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिम्हा राव थे। यह एक महत्वपूर्ण कदम था जिसने अदाणी समूह को इस क्षेत्र में प्रवेश करने का मौका दिया। हालांकि बाद की सरकारों ने भी अदाणी को कौड़ियों के भाव जमीन बेची।
- अदाणी का दावा – बंजर थी जमीन : गौतम अडानी की कंपनी गुजरात अडानी पोर्ट लिमिटेड को 1995 में मुंद्रा पोर्ट के संचालन का अनुबंध मिला और इसके लिए 1,840 हेक्टेयर जमीन आवंटित की गई थी। गौतम अडानी ने दावा किया कि यह जमीन बंजर और दलदली थी जो उच्च ज्वार (हाई टाइड) के दौरान पानी में डूब जाती थी और इसे उपयोगी बनाने के लिए बड़े पैमाने पर रिक्लेमेशन कार्य किया गया।
भाजपा सरकारों ने सस्ते दामों पर आवंटन जारी रखा
- 1998-2000: अडानी समूह को पोर्ट के विस्तार और SEZ के लिए अतिरिक्त जमीन आवंटित की गई। नवभारत टाइम्स के अनुसार, गौतम अडानी ने दावा किया कि यह जमीन 1 रुपये प्रति वर्ग फुट (लगभग 10.76 रुपये प्रति वर्ग मीटर) की दर पर दी गई, जो बाजार मूल्य से कम थी। तब गुजरात में केशुभाई पटेल के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार का शासन था। इस दौरान मुंद्रा पोर्ट का विकास शुरू हुआ, जिसमें रेलवे लाइन, सड़कें, और हवाई अड्डे का निर्माण शामिल था। अडानी ने इसे गुजरात की उद्योग-अनुकूल नीतियों का परिणाम बताया।
- 2001-2014: बड़े पैमाने पर विस्तार के लिए ज़मीन आवंटन हुआ। इस अवधि में मुंद्रा पोर्ट और SEZ के लिए बड़े पैमाने पर जमीन आवंटित की गई। सटीक साल-दर-साल आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन 2005-2010 के बीच SEZ के लिए हजारों हेक्टेयर जमीन दी गई। 2010 में पर्यावरण मंत्रालय ने 29,610 करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट को उल्लंघन के लिए नोटिस जारी किया, जिसमें अतिरिक्त जमीन आवंटन भी शामिल था। इस दौरान नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार थी। इस दौरान मुंद्रा पोर्ट भारत का सबसे बड़ा निजी बंदरगाह बना। अडानी समूह ने 35,000 एकड़ में मल्टीमॉडल हब विकसित किया, जिसमें पावर प्लांट्स (टाटा और अडानी पावर) और औद्योगिक इकाइयां शामिल थीं।
- 2014-2025: इस अवधि में भी SEZ और संबंधित प्रोजेक्ट्स के लिए जमीन आवंटन जारी रहा। 2023 तक मुंद्रा पोर्ट ने 155 मिलियन मेट्रिक टन कार्गो हैंडल किया, जो अतिरिक्त बुनियादी ढांचे के लिए जमीन की आवश्यकता को दर्शाता है। सटीक रेट्स की जानकारी सार्वजनिक रूप से सीमित है, लेकिन कई मीडिया रिपोटर्स में दावा किया कि जमीन बाजार मूल्य से कम दर पर मिली। इस दौरान विजय रूपाणी (2016-2021) और भूपेंद्र पटेल (2021-वर्तमान) के नेतृत्व में भाजपा सरकार शासन में रही। इस दौरान कच्छ कॉपर रिफाइनरी जैसे प्रोजेक्ट्स शुरू हुए। गुजरात सरकार ने बंजर जमीन को लीज पर देने की नीति को बढ़ावा दिया, जिसमें मुंद्रा क्षेत्र की जमीनें शामिल थीं।
गाँव के मछुआरों ने आजीविका छिनने से अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा किया
गुजरात के कच्छ जिले के मुंद्रा के पास नवीनल गांव और आसपास के मछुआरे और किसानों ने अपनी आजीविका नष्ट होने के ख़िलाफ़ अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में केस दायर किया। दरअसल मुंद्रा के पास भारत की बढ़ती ऊर्जा मांग को पूरा करने और औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने के लिए टाटा मुंद्रा अल्ट्रा मेगा पावर प्रोजेक्ट (UMPP) बनाया गया था। जो 2012 में चालू हुआ लेकिन इसके पर्यावरणीय प्रभाव ने स्थानीय मछुआरों की आजीविका पर इसने इतना असर डाला कि पीड़ित मछुआरे प्रोजेक्ट के ख़िलाफ़ अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचे।
- यह पोर्ट भारत के आर्थिक विकास का प्रतीक बन गया है, जो देश के 25% से अधिक समुद्री कार्गो को संभालता है और वैश्विक व्यापार में भारत की स्थिति को मजबूत करता है।
- यह पोर्ट 155 मिलियन टन से अधिक कार्गो और भारत के 33% कंटेनर ट्रैफिक को संभालता है। यह कोयला, कंटेनर, तरल कार्गो, रोल-ऑन-रोल-ऑफ (Ro-Ro), और प्रोजेक्ट कार्गो जैसे विविध कार्गो को संभालने में सक्षम है।
- इसकी रणनीतिक स्थिति, गहरे ड्राफ्ट और ऑल-वेदर क्षमताओं ने इसे उत्तरी और उत्तर-पश्चिमी भारत के लिए एक प्रमुख व्यापारिक गेटवे बनाया है।
विवादों से नाता : ड्रग तस्करी से लेकर राजनीतिक समर्थन तक
गुजरात के कच्छ जिले में खाड़ी के उत्तरी तट पर स्थित मुंद्रा पोर्ट का संचालन वर्ष 2001 में शुरू हुआ और इसका संचालन Adani Ports and Special Economic Zone (APSEZ) के अधीन है। मुंद्रा पोर्ट के कई राजनीतिक और विवादास्पद मुद्दे जुड़े रहे हैं जो इसे लगातार चर्चा में लाते रहे हैं:
- पर्यावरणीय उल्लंघन:
- 2013 में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की सुनीता नारायण की अध्यक्षता वाली एक समिति ने मुंद्रा वेस्ट पोर्ट के पास जहाज-तोड़ने की सुविधा में पर्यावरणीय नियमों के उल्लंघन, जैसे नालों को अवरुद्ध करना और पर्यावरणीय प्रभावों की अनदेखी के सबूत पाए। इसके लिए अडानी पोर्ट्स को 200 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया।
- पर्यावरणीय स्थिरता के लिए मैनग्रोव वनीकरण और 17.5 मिलियन पेड़ लगाने जैसे कदम उठाए गए हैं, लेकिन ये विवाद अभी भी चर्चा में हैं।
- ड्रग्स तस्करी के आरोप:
- 3 अक्टूबर 2021 को डायरेक्टोरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस (DRI) ने अडानी द्वारा संचालित मुंद्रा पोर्ट पर दो कंटेनरों से 2,988.21 किलोग्राम हेरोइन जब्त की, जिसकी वैश्विक बाजार में कीमत लगभग 21,000 करोड़ रुपये थी। यह कंटेनर खाड़ी देश से आया था और इसमें टेक्सटाइल के साथ हेरोइन छिपाई गई थी। यह भारत के बंदरगाहों पर अब तक की सबसे बड़ी ड्रग्स जब्ती थी।
- इन आरोपों ने पोर्ट की निगरानी और सुरक्षा प्रक्रियाओं पर सवाल उठाए हैं।
- संभावित प्रतिबंधों का उल्लंघन:
- वॉल स्ट्रीट जर्नल की एक हालिया जांच में दावा किया गया कि मुंद्रा पोर्ट और फारस की खाड़ी के बीच चलने वाले एलपीजी टैंकरों ने जहाजों के स्वचालित पहचान प्रणाली (AIS) में हेरफेर कर प्रतिबंधों से बचने की कोशिश की। यह मामला विशेष रूप से रूस और ईरान जैसे देशों से संबंधित है।
- इन आरोपों ने अडानी समूह की वैश्विक व्यापार प्रथाओं पर सवाल उठाए हैं, और प्रवर्तन निदेशालय (ED) और केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) इसकी जांच कर रहे हैं।
- राजनीतिक समर्थन और विवाद:
- अडानी समूह पर केंद्र और गुजरात की बीजेपी सरकारों से नजदीकी संबंधों के आरोप लगते रहे हैं। विपक्ष का दावा है कि नरेंद्र मोदी की सरकार ने अडानी को अनुचित लाभ पहुँचाया, जैसे पोर्ट परियोजनाओं के लिए अनुकूल नीतियाँ और रियायतें।
- हालांकि, अडानी समूह ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि उनका विकास उनकी रणनीतिक दृष्टि और कठिन परिश्रम का परिणाम है।
वॉल स्ट्रीट जर्नल का हालिया बयान
वॉल स्ट्रीट जर्नल ने हाल ही में एक लेख में दावा किया कि गौतम अडानी फिर से जांच के दायरे में हैं, विशेष रूप से मुंद्रा पोर्ट के माध्यम से संभावित प्रतिबंधों के उल्लंघन के कारण। लेख में कहा गया है कि पोर्ट और फारस की खाड़ी के बीच टैंकरों की गतिविधियाँ संदिग्ध हैं, और जहाजों ने AIS डेटा में हेरफेर कर इराक में रुके होने का गलत संकेत दिया। यह मामला भारत-अमेरिका संबंधों और वैश्विक व्यापार नीतियों के संदर्भ में चर्चा में है।