- एक दिन पहले अमित शाह ने कहा था- सम्राट चौधरी को बड़ा आदमी बना देंगे पीएम मोदी
- बिहार की सियासत में ‘अकेला’ सम्राट, बीजेपी की रणनीति से जदयू कैडर फिर सतर्क
पटना | हमारे संवाददाता
बिहार विधानसभा चुनाव की सरगर्मियां चरम पर हैं, और आज एनडीए ने अपना साझा घोषणा पत्र (संकल्प पत्र) जारी किया। लेकिन यह समारोह साझेदारी की बजाय एकाकीपन की कहानी बन गया। मंच पर फोटो खिंचवाते समय तो भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, चिराग पासवान, उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी जैसे दिग्गज नजर आए। लेकिन जब प्रेस कॉन्फ्रेंस का समय आया, तो माइक थामे केवल एक चेहरा दिखा – उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी।
पटना में NDA ने अपना घोषणापत्र जारी किया, इस दौरान मंच पर सभी बड़े नेता मौजूद रहे पर सम्राट चौधरी ने ही मीडियो को संबोधित किया।
एक हाथ में माइक, दूसरे में घोषणा पत्र पकड़े वे अकेले ही वादों का पाठ चला गए। बाकी नेता? या तो मंच से खिसक लिए, या खिसका दिए गए। यह दृश्य न सिर्फ सियासी पर्यवेक्षकों को चौंका गया, बल्कि एनडीए के भीतर उबाल पैदा कर दिया। क्या यह महज संयोग था, या बिहार की सत्ता की कुर्सी पर नजर टिकाने वाली रणनीति का हिस्सा?
एनडीए का यह घोषणा पत्र बिहार के विकास, रोजगार, शिक्षा और बुनियादी ढांचे पर केंद्रित है। इसमें 2025-30 के लिए 1 करोड़ नौकरियां देने, ग्रामीण सड़कों का विस्तार और महिला सशक्तिकरण जैसे वादे हैं। साझा होने के बावजूद, प्रेस कॉन्फ्रेंस में साझेदारी का नामोनिशान न होना सवालों का पुलिंदा खोल गया।
नीतीश कुमार, जो अब तक एनडीए के चेहरे के रूप में उभरे हैं, क्यों गायब हो गए? क्या भाजपा उन्हें ‘साइडलाइन’ करने की कोशिश कर रही है? राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह घटना बिहार की जटिल गठबंधन राजनीति का आईना है। नीतीश की जेडीयू और भाजपा के बीच 2020 से चले आ रहे गठबंधन में संतुलन बना हुआ था, लेकिन 2025 चुनाव से पहले यह संकेत दे रहा है कि भाजपा अपनी पकड़ मजबूत करना चाहती है।
सम्राट चौधरी, जो बिहार भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं, अब उपमुख्यमंत्री के रूप में उभर रही हैं। उनकी अकेली प्रेस कॉन्फ्रेंस को देखें तो लगता है जैसे भाजपा एक नया चेहरा प्रोजेक्ट कर रही हो – एक ऐसा चेहरा जो युवा, आक्रामक और पार्टी-केंद्रित हो।
इस घटना को समझने के लिए दो दिन पहले अमित शाह के बयान को जोड़कर देखना जरूरी है। चुनाव प्रचार के दौरान शाह ने कहा, “आप सब सम्राट चौधरी को जिताइए, मोदी जी इनका प्रोमोशन कर देंगे।” यह बयान सतही तौर पर हल्का-फुल्का लग सकता है, लेकिन गहराई में यह सत्ता के हस्तांतरण का संकेत देता है। उपमुख्यमंत्री को ‘प्रमोशन’ देकर प्रधानमंत्री तो नहीं बनाया जा सकता, लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी पर तो बिठाया ही जा सकता है। क्या आज की प्रेस कॉन्फ्रेंस इसी रणनीति का अघोषित हिस्सा है?
भाजपा की राष्ट्रीय रणनीति को देखें तो यह पैटर्न नया नहीं। 2019 लोकसभा चुनाव से पहले भी नीतीश को चेहरा बनाया गया, लेकिन अब जब बिहार में भाजपा का वोट शेयर 25% के ऊपर पहुंच चुका है, तो पार्टी अकेले दम पर दावा ठोंकने को तैयार लग रही है। सम्राट चौधरी का उदय इसी का प्रतीक है, जिसके माध्यम से भाजपा के हिंदुत्व एजेंडे को मजबूती से पेश कर सकती हैं।
नीतीश कुमार के समर्थक कैडर इस मामले को लेकर बेहद सतर्क और संवेदनशील हैं। जेडीयू के ग्रासरूट कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह ‘धोखा’ का संकेत है। एक वरिष्ठ जेडीयू नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “नीतीश जी ने एनडीए को बिहार में मजबूत किया, लेकिन अब भाजपा हमें ‘यूज एंड थ्रो’ समझ रही है। अगर सम्राट को CM का चेहरा बनाया गया, तो हमारा वोट शिफ्ट हो जाएगा।
कुल मिलाकर, यह घटना बिहार चुनाव को और रोचक बना रही है। एनडीए की एकजुटता पर सवाल उठे हैं, और भाजपा की ‘वन लीडर’ रणनीति स्पष्ट हो रही है। अगर सम्राट चौधरी को आगे बढ़ाया गया, तो नीतीश का लंबा राजनीतिक सफर खतरे में पड़ सकता है। लेकिन बिहार की जनता, जो जाति और विकास के आधार पर वोट देती है, अंतिम फैसला करेगी। क्या यह संकेत NDA के विघटन का है, या महज प्रचार की चाल? आने वाले दिनों में साफ होगा। फिलहाल, सम्राट चौधरी का अकेलापन सियासत की नई कहानी लिख रहा है – एक ऐसी कहानी जहां साझेदारी शब्द मात्र रह गई है।

