- बिहार से लखीसराय के एक गांव में लोग एक हाईस्कूल बनवाने के लिए कई वर्षों से संघर्ष कर रहे
- हाईस्कूल न होने के चलते लड़कियां आठवीं के बाद पढ़ाई छोड़ने को विवश, चुनावी साल में आस जगी
रामगढ़ चौक (लखीसराय) | गोपाल प्रसाद आर्य
लखीसराय जिले से मात्र दस किलोमीटर दूर बसे रामगढ़ चौक में एक सन्नाटा पसरा है—सन्नाटा उन सपनों का, जो आठवीं के बाद लड़कियों के लिए अचानक थम जाते हैं। इस छोटे से गांव में माझी और भूमिहार समाज की बेटियां पढ़ाई छोड़ने को मजबूर हैं, क्योंकि आगे की राह में न तो स्कूल है और न ही सुरक्षा का भरोसा। पिछले 15 सालों से ग्रामीण एक हाईस्कूल की आस लगाए बैठे हैं, जमीन दान करने को तैयार हैं, लेकिन बदलाव की किरण अभी भी दूर है। हाल ही में डीएम मिथिलेश कुमार मिश्रा का दौरा और विधानसभा चुनाव 2025 की नजदीकी ने ग्रामीणों में नई उम्मीद जगा दी है, पर क्या यह उम्मीद पूरी होगी?
लखीसराय जिले से मात्र दस किलोमीटर दूर बसे रामगढ़ चौक में एक सन्नाटा पसरा है—सन्नाटा उन सपनों का, जो आठवीं के बाद लड़कियों के लिए अचानक थम जाते हैं। इस छोटे से गांव में माझी और भूमिहार समाज की बेटियां पढ़ाई छोड़ने को मजबूर हैं, क्योंकि आगे की राह में न तो स्कूल है और न ही सुरक्षा का भरोसा। पिछले 15 सालों से ग्रामीण एक हाईस्कूल की आस लगाए बैठे हैं, जमीन दान करने को तैयार हैं, लेकिन बदलाव की किरण अभी भी दूर है। हाल ही में डीएम मिथिलेश कुमार मिश्रा का दौरा और विधानसभा चुनाव 2025 की नजदीकी ने ग्रामीणों में नई उम्मीद जगा दी है, पर क्या यह उम्मीद पूरी होगी?
माझी और भूमिहार की बेटियों का टूटता सपना
लखीसराय जिले में 12,000 बच्चे स्कूल ड्रॉपआउट हैं—ये वे नन्हीं आंखें हैं, जिन्होंने कक्षा एक से आठवीं तक की पढ़ाई के बाद या बीच में ही किताबें बंद कर दीं। रामगढ़ चौक की दस हजार की आबादी में आठवीं के बाद पढ़ाई छोड़ने वाली लड़कियों की तादाद सबसे ज्यादा है। यहां 2,000 माझी परिवार और 1,000 भूमिहार परिवार रहते हैं, जहां लड़कियां सामाजिक और आर्थिक कमजोरी के चलते स्कूल से दूर हो रही हैं। UDISE+ 2023-24 के मुताबिक, बिहार में सेकेंडरी स्तर पर लड़कियों का ड्रॉपआउट रेट 20.86% है, जो राष्ट्रीय औसत 12.5% से दोगुना है। लखीसराय में यह आंकड़ा 25% से अधिक है, खासकर SC/ST (माझी) और पिछड़े वर्गों (भूमिहार) में।
छह किलोमीटर दूर हाईस्कूल, घर बैठ रही लड़कियां
रामगढ़ चौक से सबसे नजदीकी हाईस्कूल पांच से सात किलोमीटर दूर हलसी प्रखंड के कैंदी में है, लेकिन यह सुविधा सिर्फ उन परिवारों के लिए है जिनके पास आने-जाने के पैसे हों। स्थानीय निवासी विपिन कुमार की आवाज में दर्द है, “यहां से तीन-तीन मंत्री निकले—ललन सिंह, विजय कुमार सिन्हा और दोबारा ललन सिंह सरकार में मंत्री बने—पर उनकी एक हाईस्कूल की आस तक पूरी नहीं हो रही। हम 15 साल से हाईस्कूल की मांग कर रहे हैं। माझी और पिछड़े समाज के पास खाने के पैसे नहीं, लड़कियों को बाहर कैसे भेजें? ऊपर से सुरक्षा का क्या भरोसा?”
UNICEF 2025 की रिपोर्ट कहती है कि बिहार में लड़कियों के ड्रॉपआउट का 33% घरेलू काम और 25% जल्दी विवाह से जुड़ा है। अपनी लड़कियों को डिग्री कॉलेज की पढ़ाई कराना तो उनके लिए कोसों दूर की बात है। अगर गांव में स्कूल बने, तो कम से कम दसवीं तक की राह आसान हो सकती है।
जिले में शिक्षा सुविधाओं की कमी
लखीसराय जिले में कुल 77 हाईस्कूल (UHS सहित) हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में इनकी कमी बनी हुई है। इंटरमीडिएट कॉलेजों (कक्षा 11-12) की संख्या लगभग 20-25 है (BSEB OFSS 2025 लिस्ट के अनुसार), जबकि डिग्री कॉलेज मात्र 9 हैं। रामगढ़ चौक जैसे दूरदराज इलाकों में यह कमी और गंभीर है, जहां प्राइमरी स्कूल 477 और मिडिल स्कूल 292 हैं, लेकिन हाईस्कूल की अनुपस्थिति लड़कियों को सबसे ज्यादा प्रभावित कर रही है।
डीएम मिथिलेश मिश्रा से मिली उम्मीद की किरण
पिछले सप्ताह (11 सितंबर 2025) जिला अधिकारी मिथिलेश कुमार मिश्रा ने रामगढ़ चौक का दौरा किया, जो ग्रामीणों और पत्रकारों की लगातार शिकायतों के बाद संभव हुआ। इस दौरान उन्होंने स्थानीय लोगों की हाईस्कूल न होने से जुड़ी गहरी परेशानियों को गौर से सुना, जो पिछले 15 सालों से इस मांग को उठा रहे हैं। डीएम ने उत्क्रमित मध्य विद्यालय का भी दौरा किया, जहां आठवीं कक्षा तक की पढ़ाई होती है। ग्रामीणों को संबोधित करते हुए उन्होंने आश्वासन दिया कि उनकी मांग को गंभीरता से लिया जाएगा और जल्द ही इस पर सकारात्मक कदम उठाए जाएंगे।
इस दौरे से ग्रामीणों में उम्मीद की एक नई लहर दौड़ गई है, खासकर तब जब हाल ही में डीएम का एक वायरल वीडियो उनकी संवेदनशीलता को दर्शाता है। वीडियो में मिथिलेश मिश्रा अपने बच्चे को स्कूल छोड़ने के बाद लौट रहे थे, तभी रास्ते में एक स्कूल वैन खराब मिली। बिना देर किए उन्होंने अपनी सरकारी गाड़ी बच्चों को स्कूल तक पहुंचाने के लिए सौंप दी और खुद पैदल लौट आए। यह घटना सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बनी, और ग्रामीण इसे उनके प्रति बच्चों और शिक्षा के प्रति गहरी संवेदना का प्रतीक मान रहे हैं। उनका जीवन, जो गरीबी से निकलकर IAS तक की यात्रा का प्रतीक है, और स्कूली बच्चों के प्रति उनकी सजगता, ग्रामीणों को विश्वास दिलाती है कि यह डीएम उनके वर्षों के संघर्ष को साकार करने का माध्यम बन सकता है।
जिले में 12 हजार बच्चों ने बीच में पढ़ाई छोड़ी
‘सामग्र शिक्षा अभियान’ और ‘बेटी बचाओ- बेटी पढ़ाओ’ के तहत 2025-26 में बिहार में 500 नए हाईस्कूल खोलने की योजना है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में सुविधाओं की कमी बनी हुई है। विशेषज्ञों का कहना है कि स्थायी समाधान के लिए बजट और सुरक्षा व्यवस्था बढ़ानी होगी। अगर रामगढ़ चौक में हाईस्कूल बनता है, तो 2,000 से अधिक लड़कियां लाभान्वित हो सकती हैं, जो जिले के 12,000 ड्रॉपआउट आंकड़े को कम कर सकता है।एक उम्मीद का इंतजार रामगढ़ चौक की गलियों में आज भी बच्चों की हंसी गूंजती है, लेकिन लड़कियों के कदम स्कूल की ओर थम गए हैं। चुनावी हवा में उड़ती इस मांग का क्या होगा, यह तो वक्त बताएगा, लेकिन ग्रामीणों की आंखों में सपनों की चमक बरकरार है। क्या यह चमक हाईस्कूल की इमारत में तब्दील होगी, या फिर एक और वादा अधूरा रह जाएगा?
(स्रोत: Lakhisarai.nic.in, Education Department Data; BSEB Intermediate College List 2025)
