नई दिल्ली |
अमेरिका में बीते जून में शुरू हुए No Kings प्रदर्शन ने शनिवार (18 oct) को बड़ा रूप ले लिया और लाखों प्रदर्शनकारी ट्रंप की नीतियों के विरोध में सड़कों पर उतरे। कई रिपोर्ट्स में इनकी संख्या करोड़ों में भी बतायी जा रही है।
यह आंदोलन यूरोप तक फैल गया, जहां बर्लिन और पेरिस में अमेरिकी दूतावासों के बाहर लोगों ने आंदोलन को लेकर एकजुटता दिखाते हुए प्रदर्शन किया।
प्रदर्शनकारियों का कहना है कि वे राष्ट्रपति ट्रंप की तानाशाह नीतियों को और नहीं सह सकते हैं। इससे पहले जून में 50 लाख प्रदर्शनकारियों ने ट्रंप के विरोध में No Kings आंदोलन शुरू किया था।
2500 से ज्यादा बड़ी रैलियां – अमेरिका में 2500 से ज्यादा जगहों पर बड़ी रैलियां आयोजित हुईं जिसमें लाखों की तादाद में लोग जुटे। संगठकों का अनुमान है कि इस बार के प्रदर्शनों में कुल भागीदारी करोड़ों में हो सकती है।
ट्रंप प्रशासन ने ‘आतंकवादी’ कहा – इन प्रदर्शनकारियों को ट्रंप प्रशासन ‘आतंकवादी’ और ‘हमास समर्थक’ कहा है। अमेरिकी मीडिया में आयोजनकर्ताओं के हवाले से कहा जा रहा है कि प्रदर्शनकारियों के खिलाफ आगे चलकर ट्रंप प्रशासन कड़ी निगरानी करा सकता है, फिर भी बड़ी संख्या में लोगों ने जुटने का साहस दिखाया है।
न्यूयॉर्क में एक लाख लोग जुटे – न्यूयॉर्क में 1 लाख, सैन फ्रांसिस्को बे एरिया में हजारों, इंडियनापोलिस में हजारों, फोर्ट वेने में 8,000 और फ्लोरिडा के द विलेजेस में 4,500 से अधिक लोग शामिल हुए।
ओरेगॉन के हर्मिस्टन में 100 से ज्यादा स्थानीय निवासियों ने हाईवे पर प्रदर्शन किया, जहां जाम लग जाने पर वाहन चालकों ने प्रदर्शन के समर्थन में हॉर्न बजाए।
आंदोलन के मुख्य मुद्दे –
- ट्रंप की अप्रवासी छापामारी से नाराजगी।
- राज्यों में नेशनल गार्ड तैनात करके संघीय व्यवस्था पर ‘हमला’।
- प्रेस स्वतंत्रता पर ‘हमलों’ के खिलाफ गुस्सा।
- न्याय विभाग को हथियार के रूप में ‘इस्तेमाल’ करना।

