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क्या मुंबई के धरावी जैसी क़िस्मत पाएंगी दिल्ली की झुग्गियां

दिल्ली की स्लम में बच्चे, साभार - इंटरनेट

दिल्ली की स्लम में बच्चे, साभार - इंटरनेट

बोलते पन्ने | नई दिल्ली
दिल्ली सरकार ने झुग्गी-झोपड़ी और अवैध कॉलोनियों के स्थायी पुनर्वास और पुनर्विकास के लिए मुंबई के धरावी पुनर्विकास मॉडल (Dharavi Redevelopment Project) का अध्ययन करने की योजना बनाई है। यह खबर 21 जून को द हिन्दू ने प्रमुखता से छपी। इसमें कहा गया कि दिल्ली सरकार इस मॉडल को अपनी 675 झुग्गी-झोपड़ी कॉलोनियों और 1,731 अनधिकृत कॉलोनियों के लिए लागू करने की संभावनाएं तलाश रही है। यह खबर ऐसे समय में आई है जब दिल्ली में अनधिकृत झुग्गियों को हटाया जा रहा है, और महाराष्ट्र सरकार ने मई 2025 में धरावी मास्टर प्लान को मंजूरी दी है। ऐसे में दिल्ली के स्लम के भविष्य के लिए धरावी मॉडल और इसके साकार रूप लेने के पीछे 40 साल चली उठापटक को समझना महत्वपूर्ण है।
“दिल्ली एक अनियोजित शहर है, जहां 60% लोग अनधिकृत बस्तियों में रहते हैं। हमें इसे नियोजित और व्यवस्थित करना है, जो एक बड़ी चुनौती है। धरावी मॉडल का अध्ययन कर हम झुग्गीवासियों के लिए सुरक्षित आवास और बेहतर सुविधाएं सुनिश्चित करना चाहते हैं।” – रेखा गुप्ता, सीएम, दिल्ली (द हिन्दू को दिए इंटरव्यू के दौरान)

धरावी स्लम

धरावी मॉडल: दस लाख लोगों का पुनर्वास
मुंबई में धरावी 2.4 वर्ग किलोमीटर में फैली एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी बस्ती है, जहां लगभग 10 लाख लोग रहते हैं। यह एक सघन आर्थिक केंद्र भी है, जिसमें चमड़ा, कपड़ा, और 13,000 से अधिक छोटे उद्योग फलते-फूलते हैं, जिनका सालाना कारोबार लगभग 1 बिलियन डॉलर है। धरावी पुनर्विकास परियोजना (DRP) का उद्देश्य इस क्षेत्र को आधुनिक आवास, बुनियादी ढांचे, और व्यावसायिक सुविधाओं के साथ एक एकीकृत शहरी क्षेत्र में बदलना है। परियोजना में पांच औद्योगिक क्लस्टर (कपड़ा, चमड़ा, मिट्टी के बर्तन, खाद्य, और रीसाइक्लिंग) प्रस्तावित हैं, जो स्थानीय अर्थव्यवस्था को बनाए रखेंगे।
₹95,790 करोड़ की परियोजना, मिलेगा अपना घर व शौचालय
  • आवास: 2004 से पहले की झुग्गियों में रहने वाले प्रत्येक पात्र परिवार को 350 वर्ग फुट का मुफ्त घर, जिसमें रसोई और शौचालय शामिल हैं। अपात्र निवासियों को MMR में सब्सिडी दरों पर 300 वर्ग फुट के घर किराया-खरीद योजना के तहत, जिनका भुगतान 12 वर्षों में किया जा सकता है।
  • बुनियादी ढांचा: स्कूल, अस्पताल, सड़कें, जल निकासी, और बिजली जैसी सुविधाएं।
  • आर्थिक पुनर्जनन: धरावी के छोटे उद्योगों के लिए विशेष व्यावसायिक क्षेत्र।
  • निजी-सार्वजनिक भागीदारी (PPP): परियोजना महाराष्ट्र सरकार और अडानी समूह (NMDPL) के बीच साझेदारी पर आधारित है, जिसमें 47.20 हेक्टेयर पुनर्वास और 47.95 हेक्टेयर बिक्री के लिए निर्धारित हैं।
  • लागत: अनुमानित लागत ₹95,790 करोड़, जिसमें ₹25,000 करोड़ पुनर्वास के लिए और ₹14 करोड़ वर्ग फीट बिक्री योग्य इकाइयों के लिए, जो इसे भारत का सबसे बड़ा शहरी पुनर्विकास प्रोजेक्ट बनाती है।
40 साल बाद अब धरावी प्रोजेक्ट शुरू हुआ
  • 1985: तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने “Urban Renewal Scheme” के तहत धरावी के सुधार के लिए ₹100 करोड़ की घोषणा की।
  • 1995: महाराष्ट्र सरकार ने “Slum Redevelopment Scheme” शुरू की, लेकिन घनी आबादी, जटिलता, और संसाधनों की कमी के कारण धरावी शामिल नहीं हुआ।
  • 1997: MHADA ने धरावी को “विशेष पुनर्विकास क्षेत्र” घोषित करने की सिफारिश की।
  • 2003: मुख्यमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने योजना का खाका तैयार कराया। धरावी को 5 सेक्टरों में बांटकर हर सेक्टर के लिए निजी डेवलपर नियुक्त किए जाएं।
  • 2004: राज्य सरकार ने Dharavi Redevelopment Project (DRP) को औपचारिक रूप से लॉन्च किया।
  • 2007: वैश्विक आर्किटेक्ट्स से मास्टर प्लान आमंत्रित किए गए। L&T, Hiranandani, और Dubai-based Emaar ने रुचि दिखाई, लेकिन निविदा शर्तों में बदलाव, स्थानीय विरोध, और राजनीतिक अस्थिरता के चलते योजना रुकी।
  • 2016: सरकार ने पुनः निविदा प्रक्रिया शुरू की, लेकिन कोई डेवलपर नहीं मिला।
  • 2018: फडणवीस सरकार ने एकीकृत पुनर्विकास मॉडल प्रस्तावित किया।
  • 2019: वैश्विक टेंडर में Seclink Technology Corporation ने ₹7,200 करोड़ की बोली लगाई, लेकिन रेलवे की भूमि शामिल न होने से टेंडर रद्द।
  • 2022: अडानी समूह ने ₹5,069 करोड़ की बोली जीती। सरकार ने अडानी को “लीड पार्टनर” बनाया, जिसमें 80% हिस्सेदारी उनकी और 20% महाराष्ट्र सरकार की है।
  • 2025: जनवरी में महिम में 10,000 फ्लैट्स का निर्माण शुरू। मई में ₹95,790 करोड़ के मास्टर प्लान को मंजूरी दी गई। हफीज कॉन्ट्रैक्टर को आर्किटेक्ट नियुक्त किया गया।

सांकेतिक तस्वीर

अडानी को प्रोजेक्ट देने पर उठे सवाल
कांग्रेस, शिवसेना-UBT, और अन्य दलों ने आरोप लगाया कि टेंडर की शर्तें अडानी के पक्ष में बनाई गईं, खासकर न्यूनतम 500 एकड़ के अनुभव की शर्त। 2022 में उद्धव ठाकरे की MVA सरकार के पतन और शिंदे-BJP सरकार के सत्ता में आने के बाद टेंडर प्रक्रिया तेज हुई। सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2025 में Seclink की याचिका खारिज कर अडानी को मंजूरी दी। राहुल गांधी ने धरावी को “इनोवेशन का सेंटर” बताते हुए पुनर्विकास को स्थानीय हितों के खिलाफ बताया। धरावी रिडेवलपमेंट समिति के अध्यक्ष राजेंद्र कोर्डे ने मास्टर प्लान में केवल 72,000 निवासियों के पुनर्वास की योजना पर सवाल उठाए, जबकि 1.5-2 लाख ऊपरी मंजिलों के निवासियों की स्थिति अनिश्चित है।
विवाद व विरोध के बीच शुरू हो गया प्रोजेक्ट
धरावी रिडेवलपमेंट प्रोजेक्ट प्राइवेट लिमिटेड (DRPPL) ने डिजिटल सर्वे शुरू किया, जिसमें ड्रोन और LiDAR तकनीक का उपयोग कर 94,500 निवासियों को यूनीक आईडी दी गई और 70,000 घरों का सर्वे पूरा हुआ। 256 एकड़ सॉल्ट पैन भूमि का उपयोग अपात्र निवासियों के लिए प्रस्तावित है, जिसे पर्यावरणीय कारणों से मानवाधिकार उल्लंघन बताया गया। रेलवे की 47.5 एकड़ जमीन का ट्रांसफर लंबित है। स्थानीय निवासियों और कार्यकर्ताओं ने पुनर्वास की शर्तों, जैसे सायन-कोलीवाड़ा या मुलुंड में स्थानांतरण, और व्यवसायों के संरक्षण पर सवाल उठाए।
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दिल्ली की स्लम बस्ती, साभार इंटरनेट

दिल्ली में 675 झुग्गियां, 17% गरीब वोटर
दिल्ली में इस साल BJP सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता के नेतृत्व में धरावी मॉडल का अध्ययन शुरू हुआ। यह 675 झुग्गी कॉलोनियों और 50,000 EWS फ्लैट्स के पुर्ननिर्माण के लिए है, जो पहले AAP सरकार के तहत अप्रयुक्त रहे। 17% गरीब और दलित वोटरों की अनुमानित आबादी को देखते हुए यह मॉडल राजनीतिक रूप से संवेदनशील है। विशेषज्ञों ने दिल्ली के बिखरे हुए झुग्गी क्लस्टर को धरावी मॉडल के लिए अनुपयुक्त बताया।
दिल्ली में झुग्गी-झोपड़ियों का इतिहास  
  • औपनिवेशिक काल (1857 से पहले): दिल्ली में झुग्गियां न्यूनतम थीं। शहरीकरण सीमित था, और अधिकांश आबादी ग्रामीण थी। पुरानी दिल्ली में घनी बस्तियां थीं, लेकिन आधुनिक झुग्गियां नहीं थीं।
  • स्वतंत्रता के बाद (1947-1970): विभाजन के बाद बड़े पैमाने पर प्रवास हुआ। दिल्ली में अनधिकृत बस्तियां, जैसे किंग्सवे कैंप, उभरीं। 1950 के दशक में दिल्ली डेवलपमेंट अथॉरिटी (DDA) ने नियोजित विकास शुरू किया, लेकिन ग्रामीण प्रवासियों के लिए किफायती आवास की कमी रही।
  • 1970-1990: तेज शहरीकरण और औद्योगीकरण से झुग्गियां बढ़ीं। 1976 में तुर्कमान गेट पर बुलडोजर कार्रवाई और पुलिस गोलीबारी ने विवाद खड़ा किया। झुग्गीवासियों को बाहरी इलाकों (जैसे नरेला) में बसाया गया, लेकिन बुनियादी सुविधाएं अपर्याप्त थीं।
  • 1990-2010: 1994 तक दिल्ली में 750 झुग्गी कॉलोनियां थीं, जिनमें 20 लाख लोग रहते थे। कॉमनवेल्थ गेम्स (2010) के लिए कई झुग्गियां हटाई गईं, जिसकी आलोचना हुई।
  • 2010-2025: 675 झुग्गी कॉलोनियां और 1,731 अनधिकृत कॉलोनियां मौजूद। 2019 में 1,797 कॉलोनियों को वैध करने की योजना बनी। G20 शिखर सम्मेलन (2023) के लिए जनता कैंप जैसी झुग्गियों को हटाया गया।

विशेषज्ञों की राय – दोनों स्लम के बीच गहरा अंतर

  • डॉ. रेणु देसाई (शहरी नियोजन विशेषज्ञ, IIM अहमदाबाद): द हिन्दू (22 जून 2025) में उन्होंने कहा कि धारावी मॉडल दिल्ली के लिए अनुपयुक्त है, क्योंकि दिल्ली की झुग्गियां छोटी और बिखरी हैं, और धारावी की तरह आर्थिक केंद्र नहीं हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि दिल्ली को छोटे, स्थान-विशिष्ट पुनर्वास मॉडल अपनाने चाहिए।
  • प्रो. अमिताभ कुंडू (शहरी अर्थशास्त्री, JNU): इंडियन एक्सप्रेस (20 जून 2025) में कुंडू ने बताया कि धारावी की PPP संरचना मुंबई के उच्च भूमि मूल्यों के कारण व्यवहार्य है, लेकिन दिल्ली में भूमि की उपलब्धता और कम आर्थिक रिटर्न इसे लागू करना मुश्किल बनाते हैं।
  • कामाक्षी भट्ट (स्लम रिहैबिलिटेशन विशेषज्ञ): हिंदुस्तान टाइम्स (21 जून 2025) में उन्होंने चेतावनी दी कि धारावी मॉडल की नकल से दिल्ली में सामाजिक तनाव बढ़ सकता है, क्योंकि निवासी बाहरी क्षेत्रों में स्थानांतरण के खिलाफ हैं।
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