आज के अखबार के इस एपिसोड में जानिए कि किस तरह द हिन्दू की इस बेहद अहम खबर के बारे में जिसमें नौकरी के झांसे के चलते कुछ भारतीय रूस पहुंच गए और उनमें से कई अभी रूसी सेना के लिए फ्रंटलाइन पर तैनात हैं। अखबारों की समीक्षा की है..हमारी साथी शिवांगी ने।
नई दिल्ली |
रूस-यूक्रेन युद्ध को पिछले सप्ताह 2४ फरवरी को दो साल पूरे हो गए और इस मौके पर बेहद चौंकाने वाली खबर सामने आई कि नौकरी के झांसे में फंसकर कुछ भारतीयों को रूसी सेना में भर्ती कर दिया गया है और इसमें से एक की पिछले सप्ताह ही फ्रंटलाइन पर मौत भी हो गई। नौकरी के झांसे में आकर युद्ध में फंसे भारतीयों की तादाद सौ तक है।
ये बेहद चौकाने वाली जानकारियां द हिन्दू अखबार ने प्रकाशित की है जिसके बाद विदेश मंत्रालय हरकत में आया है। बीते एक सप्ताह के दौरान द हिन्दू अखबार ने इस पर तीन अहम खबरें की हैं, जिसके बारे में हम आज के अखबार के इस एपिसोड में बात करेंगे।
बीस फरवरी के द हिन्दू में सबसे पहले इस बारे में खबर छपी, जिसकी हेडिंग थी – ‘Indians hired as ‘helpers’ forced to fight in Russia’s war’ । यानी सहायक के तौर पर रखे गए भारतीयों को जबरन रूस के युद्ध में लड़वाया जा रहा है। खबर में बताया गया था कि पीड़ित भारत के यूपी, गुजरात, पंजाब और जम्मू-कश्मीर से हैं और उन्होंने भारत सरकार से मदद मांगी है। विदेशी मामलों पर खबर करने वाली जानी मानी पत्रकार विजेता सिंह और सुहासिनी हैदर की इस बायलाइन खबर में एक पीड़ित के हवाले से बताया गया है कि रूस में फंसे ऐसे कम से कम तीन भारतीयों को फ्रंटलाइन पर लड़ने को तैनात कर दिया गया है। रुस में नौकरी का लालच देकर एक एजेंट ने इन भारतीयों को रुस भेजा और धोखा देकर रुसी सेना के सहायक सिक्योरिटी हेल्पर के तौर पर भर्ती करवा दिया।
द हिन्दू की खबर से यह जानकारी भी सामने आई कि पिछले साल नवंबर से लगभग 18 भारतीय रूस-यूक्रेन सीमा पर कई अलग-अलग इलाकों में फंसे हुए हैं और इसी खबर में पीड़ित के हवाले से एक भारतीय की युद्ध में मौत की भी अपुष्ट जानकारी दी गई। इसके बाद 23 फरवरी को भारतीय विदेश मंत्रालय ने इस बारे में एक बयान जारी किया और इस आधिकारिक प्रतिक्रिया के बाद यह खबर हर मीडिया आउटलेट ने चलाई। जाहिर है कि द हिन्दू ने 24 फरवरी के अखबार में इसे पहले पन्ने पर लगाया। इस खबर में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल का बयान प्रकाशित किया गया जिसमें उन्होंने कहा कि “हमें इस बात की जानकारी मिली है कि कुछ भारतीय नागरिक रूसी सेना में सपोर्ट स्टाफ़ के तौर पर नौकरी कर रहे हैं। उन्हें जल्द वहां से डिस्चार्ज करने के लिए भारतीय दूतावास लगातार रूसी अधिकारियों के साथ संपर्क में है।” उन्होंने कहा कि रूसी सेना की मदद कर रहे भारतीय नागरिकों को जल्द वहां से ‘डिस्चार्ज’ कराने को लेकर भारत ने रूसी अधिकारियों से बात की है। उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय नागरिकों से अपील की कि वो किसी तरह के झांसे में आने से बचें। उन्होंने कहा, “हम सभी भारतीय नागरिकों से अपील करते हैं कि वो सावधानी बरतें और इस संघर्ष से दूर रहें।”
ये मामला यही नहीं रुका। 25 फरवरी को दोबारा द हिन्दू ने एक बड़ी खबर छापी, हेडिंग थी – Indian ‘helper’ dies in Russian war zone । यानी रूसी युद्ध क्षेत्र में भारतीय सहायक की मौत। इस एक्सक्लूसिल खबर को पत्रकार विजेता सिंह ने लिखा, जिसमें बताया गया कि 21 फरवरी को रूसी सीमा पर तैनात एक भारतीय की मौत हो गई जिसे रुसी सेना ने सुरक्षा सहायक के तौर पर सीमा पर तैनात किया था। खबर में बताया गया कि अखबार को यह जानकारी एक अन्य भारतीय ने दी है जो युद्ध से बच निकला है। मरने वाला गुजरात के सूरज जिले का 23 वर्षीय युवक है जो नौकरी की लालच में एक एजेंट के जरिए पिछले साल दिसंबर में रूस गया था। इस खबर में यह भी बताया गया कि मृतक युवक के पिता के हवाले से एक एजेंट ने भारतीय कान्सुलेट को पत्र लिखकर मदद करने की अपील की थी।
द हिन्दू की ईमानदारी देखिए कि उन्होंने इस मामले पर सबसे पहले आवाज उठाने वाले के बारे में भी अपनी खबर में विस्तार से बताया है। 25 फरवरी की खबर के मुताबिक, सबसे पहले असदुद्दीन ओवैसी ने जनवरी में यह मामला उठाकर विदेश मंत्री से ऐक्शन लेने की अपील करते हुए एक ट्वीट किया था। तो साथियों देखिये ये है रिपोर्टिंग की ताकत, द हिन्दू ने एक बेहद महत्वपूर्ण मुद्दे को पब्लिक डोमेन में ला दिया जबकि सरकार इस मामले से अवगत तो थी लेकिन उसने इस बारे में न तो कोई जानकारी सार्वजनिक की और न ही कोई एडबाइजरी ही जारी की, अगर ऐसा किया होता तो शायद कुछ लोग इस झांसे में फंसने से बच जाते। इस मामले में आगे जो भी होगा. उसे आपके सामने जरूर लेकर आएंगे पर फिलहाल इजाजत दें। पढ़ने के लिए शुक्रिया।
(बोलते पन्ने के यूट्यूब चैनल पर 5 मार्च, 2024 को प्रकाशित)