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दुनिया के कई देशों में मानहानि अपराध नहीं, क्या भारत में भी बदलाव होगा?

नई दिल्ली |
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में मानहानि (defamation) को अपराध की श्रेणी से हटाने की जरूरत पर सख्त टिप्पणी की है, जिससे इस कानून पर बहस तेज हो गई है। भारत में वर्तमान में भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 356 के तहत मानहानि को अपराध माना जाता है, जिसके लिए अधिकतम दो साल की सजा या जुर्माना हो सकता है। लेकिन क्या भारत को उन देशों की तरह इसे सिविल मामला बनाना चाहिए जहां मानहानि अपराध नहीं है? आइए, इसकी पड़ताल करते हैं।

सुप्रीम कोर्ट (साभार इंटरनेट)

सुप्रीम कोर्ट ने कहा- इसे बदलने का समय आ गया..
सुप्रीम कोर्ट ने बीते सोमवार को जेएनयू की पूर्व प्रोफेसर अमिता सिंह द्वारा द वायर न्यूज पोर्टल के खिलाफ दायर मानहानि मामले की सुनवाई के दौरान मानहानि को लेकर टिप्पणी की।  यह मामला 2016 के एक आर्टिकल से जुड़ा था, जिसमें अमिता सिंह पर JNU को “सेक्स रैकेट का अड्डा” बताने वाले डोजियर तैयार करने का आरोप लगाया गया था। कोर्ट ने इसकी सुनवाई करते हुए कहा, “I think time has come to decriminalise this”। इस पर द वायर न्यूज पोर्टल की ओर से खड़े हुए वकील कपिल सिब्बल ने सहमति जतायी। साथ ही, कोर्ट ने द वायर को समन पर रोक लगा दी और मामले को राहुल गांधी की समान याचिका से जोड़ दिया। 
”मुझे लगता है कि अब इसे अपराध की श्रेणी से हटाने का समय आ गया है, इस मामले को कितने दिनों तक खींचा जा सकता है? – जस्टिस एमएम सुंदरेश, सुप्रीम कोर्ट में मौखिक टिप्पणी

नौ साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने इसे वैध ठहराया था  

सुब्रमण्यम स्वामी बनाम भारत सरकार ( Subramanian Swamy v. Union of India- 2016) केस में सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक मानहानि कानून के समर्थन में आदेश जारी किया था। भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने IPC की धाराओं 499 और 500 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी थी, उन्होंने दावा किया कि ये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Article 19(1)(a)) का उल्लंघन करती है। सुप्रीम कोर्ट ने कानून को वैध ठहराया, लेकिन कहा कि यह “सार्वजनिक हित” में इस्तेमाल हो।
“अपराधिक मानहानि कानून संवैधानिक है। व्यक्ति की प्रतिष्ठा भी अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का हिस्सा है।” – सुप्रीम कोर्ट, 2016 का फैसला
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए कई देशों ने कानून बदला
विश्व भर में 86% देशों में मानहानि को अपराध माना जाता है, लेकिन कई लोकतांत्रिक देशों ने इसे सिविल मामला (जैसे हर्जाना) बना दिया है, ताकि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनी रहे। ये देश मानते हैं कि आपराधिक मानहानि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाती है और मीडिया-नागरिकों पर अनावश्यक दबाव डालती है।
  • यूनाइटेड किंगडम: 2009 में मानहानि को अपराध से हटाकर सिविल मामला बनाया गया। अब यह हर्जाना (damages) के जरिए निपटाया जाता है।
  • कनाडा: 2019 में आपराधिक मानहानि को समाप्त कर दिया गया, हालांकि सिविल मानहानि बनी रही।
  • अमेरिका: संविधान के प्रथम संशोधन के तहत मानहानि को अपराध नहीं माना जाता; यह सिविल केस के रूप में हल होता है, और साबित करना मुश्किल है।
  • ऑस्ट्रेलिया: 1990 के दशक से मानहानि को आपराधिक श्रेणी से हटाया गया, अब यह सिविल नुकसान के आधार पर।
  • न्यूजीलैंड: 1993 में आपराधिक मानहानि समाप्त, सिविल मुआवजा प्रणाली लागू।
एशिया देशों ने भी मानहानि को सिविल बनाया 

एशिया के अन्य प्रमुख देश जैसे जापान, दक्षिण कोरिया, और ताइवान में भी मानहानि मुख्य रूप से सिविल मामला है, हालांकि कुछ मामलों में आपराधिक प्रावधान बने हुए हैं।

  • श्रीलंका: 2002 में आपराधिक मानहानि को समाप्त कर सिविल बनाया गया। अब केवल सिविल कोर्ट में हर्जाना का प्रावधान।
  • मालदीव: 2018 में आपराधिक मानहानि को हटा दिया, सिविल मुआवजा प्रणाली लागू।
  • मंगोलिया: 2019 में आपराधिक मानहानि को डिक्रिमिनलाइज किया, सिविल कानून के तहत निपटारा।

श्रीलंका और मालदीव जैसे देशों ने अंतरराष्ट्रीय दबाव (जैसे UN और OAS) के बाद बदलाव किया, जहां आपराधिक मानहानि को “अनुपातहीन प्रतिबंध” माना जाता है।

भारत में दवाब डालने व आपसी रंजिश में इस कानून का गलत इस्तेमाल हो रहा (सांकेतिक तस्वीर)

भारत में कानून का होता रहा है गलत इस्तेमाल   
भारत में मानहानि कानून का इस्तेमाल अक्सर व्यक्तिगत रंजिश या सत्ता के दुरुपयोग के लिए होता देखा गया है। 2023 में 1,200 से अधिक मामले दर्ज हुए, जिसमें 60% राजनीतिक हस्तियों से जुड़े थे। X पर #DecriminalizeDefamation ट्रेंड ने इसकी आलोचना की, जिसमें कहा गया कि यह अभिव्यक्ति को कुचलता है। दूसरी ओर, सरकार का तर्क है कि यह व्यक्तियों की प्रतिष्ठा (reputation) की रक्षा करता है।
मानहानि के विरोध में कांग्रेस लायी थी घोषणापत्र 

2019 के लोकसभा चुनावों से पहले कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में वादा किया था कि वह सत्ता में आती है तो आपराधिक मानहानि (sections 499 और 500 IPC) को हटाएगी और मानहानि (defamation) को सिर्फ सिविल अपराध बनाएगी। मानहानि पर अब तक BJP की कोई स्पष्ट नीति सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं है पर बीजेपी नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने नया “Bharatiya Nyaya Sanhita” लागू करके इसमें कुछ सुधार किए।

“मानहानि का आपराधिक कानून अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाता है और राजनीतिक बदले का हथियार बन गया है। इसे डी-क्रिमिनलाइज करके सिविल मामला बनाना चाहिए, ताकि लोकतंत्र मजबूत हो।” – राहुल गांधी, LOP,  (2023 में सुप्रीम कोर्ट में दायर की याचिका में यह टिप्पणी शामिल की)
BNS : कानून में कुछ सुधार हुए पर अब भी अपराध   
पिछले साल केंद्र सरकार भारतीय न्याय संहिता लेकर आई जिसमें BNS की धारा 356 के तहत मानहानि को रखा गया है, इसके तहत कुछ सुधार किए गए हैं जैसे कम्युनिटी सर्विस आदि। पर अभी देश में ऐसा कोई कानून नहीं है जिससे मानहानि को अपराध की श्रेणी से हटाया जा सके, वर्तमान कानून के मुताबिक मानहानि साबित होने पर अधिकतम दो साल की सजा या जुर्माना हो सकता है।
चर्चित मानहानि मामले : 

भारत में मानहानि के बड़े विवादित मामले ज़्यादातर राजनीतिक नेताओं और पत्रकारों/मीडिया संस्थानों के बीच रहे हैं, जहाँ आलोचना और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम व्यक्ति/संस्था की प्रतिष्ठा का टकराव सामने आया।

 1- मानहानि केस में राहुल गांधी की सांसदी गई – 2016 में राहुल गांधी ने एक भाषण के दौरान कहा था- “सारे मोदी चोर हैं”… इस बयान पर सूरत की अदालत में मानहानि मुकदमा चला। 2023 में अदालत ने राहुल को दोषी ठहराया और 2 साल की सज़ा सुनाई, जिसके चलते लोकसभा सदस्यता भी गई, लेकिन बाद में सुप्रीम कोर्ट ने सज़ा पर रोक लगा दी। राहुल से ही जुड़ा एक अन्य मामला वीर सावरकर के ऊपर टिप्पणी करने का है।

लोकसभा में विपक्षी दलों के नेता राहुल गांधी

2- सलमान खान ने मीडिया पर केस किए – अभिनेता सलमान खान ने हिट-एंड-रन केस और शिकार मामले में उनके खिलाफ हुई रिपोर्टिंग को लेकर कई पत्रकारों और सामाजिक संगठनों पर मानहानि केस दर्ज किए थे।
3- जयललिता ने बीजेपी नेता पर किए केस – तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रहीं जयललिता और BJP नेता सुब्रमण्यम स्वामी के बीच कई बार मानहानि मुकदमे चले। स्वामी ने जयललिता पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे जिसके चलते जयललिता ने उन पर मानहानि केस किए।
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