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दुनिया के कई देशों में मानहानि अपराध नहीं, क्या भारत में भी बदलाव होगा?

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  • सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद देश में मानहानि को अपराध मानने पर बहस शुरू
नई दिल्ली |
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में मानहानि (defamation) को अपराध की श्रेणी से हटाने की जरूरत पर सख्त टिप्पणी की है, जिससे इस कानून पर बहस तेज हो गई है। भारत में वर्तमान में भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 356 के तहत मानहानि को अपराध माना जाता है, जिसके लिए अधिकतम दो साल की सजा या जुर्माना हो सकता है। लेकिन क्या भारत को उन देशों की तरह इसे सिविल मामला बनाना चाहिए जहां मानहानि अपराध नहीं है? आइए, इसकी पड़ताल करते हैं।
सुप्रीम कोर्ट (साभार इंटरनेट)

सुप्रीम कोर्ट (साभार इंटरनेट)

सुप्रीम कोर्ट ने कहा- इसे बदलने का समय आ गया..
सुप्रीम कोर्ट ने बीते सोमवार को जेएनयू की पूर्व प्रोफेसर अमिता सिंह द्वारा द वायर न्यूज पोर्टल के खिलाफ दायर मानहानि मामले की सुनवाई के दौरान मानहानि को लेकर टिप्पणी की।  यह मामला 2016 के एक आर्टिकल से जुड़ा था, जिसमें अमिता सिंह पर JNU को “सेक्स रैकेट का अड्डा” बताने वाले डोजियर तैयार करने का आरोप लगाया गया था। कोर्ट ने इसकी सुनवाई करते हुए कहा, “I think time has come to decriminalise this”। इस पर द वायर न्यूज पोर्टल की ओर से खड़े हुए वकील कपिल सिब्बल ने सहमति जतायी। साथ ही, कोर्ट ने द वायर को समन पर रोक लगा दी और मामले को राहुल गांधी की समान याचिका से जोड़ दिया। 
”मुझे लगता है कि अब इसे अपराध की श्रेणी से हटाने का समय आ गया है, इस मामले को कितने दिनों तक खींचा जा सकता है? – जस्टिस एमएम सुंदरेश, सुप्रीम कोर्ट में मौखिक टिप्पणी

नौ साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने इसे वैध ठहराया था  

सुब्रमण्यम स्वामी बनाम भारत सरकार ( Subramanian Swamy v. Union of India- 2016) केस में सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक मानहानि कानून के समर्थन में आदेश जारी किया था। भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने IPC की धाराओं 499 और 500 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी थी, उन्होंने दावा किया कि ये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Article 19(1)(a)) का उल्लंघन करती है। सुप्रीम कोर्ट ने कानून को वैध ठहराया, लेकिन कहा कि यह “सार्वजनिक हित” में इस्तेमाल हो।
“अपराधिक मानहानि कानून संवैधानिक है। व्यक्ति की प्रतिष्ठा भी अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का हिस्सा है।” – सुप्रीम कोर्ट, 2016 का फैसला
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए कई देशों ने कानून बदला
विश्व भर में 86% देशों में मानहानि को अपराध माना जाता है, लेकिन कई लोकतांत्रिक देशों ने इसे सिविल मामला (जैसे हर्जाना) बना दिया है, ताकि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनी रहे। ये देश मानते हैं कि आपराधिक मानहानि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाती है और मीडिया-नागरिकों पर अनावश्यक दबाव डालती है।
  • यूनाइटेड किंगडम: 2009 में मानहानि को अपराध से हटाकर सिविल मामला बनाया गया। अब यह हर्जाना (damages) के जरिए निपटाया जाता है।
  • कनाडा: 2019 में आपराधिक मानहानि को समाप्त कर दिया गया, हालांकि सिविल मानहानि बनी रही।
  • अमेरिका: संविधान के प्रथम संशोधन के तहत मानहानि को अपराध नहीं माना जाता; यह सिविल केस के रूप में हल होता है, और साबित करना मुश्किल है।
  • ऑस्ट्रेलिया: 1990 के दशक से मानहानि को आपराधिक श्रेणी से हटाया गया, अब यह सिविल नुकसान के आधार पर।
  • न्यूजीलैंड: 1993 में आपराधिक मानहानि समाप्त, सिविल मुआवजा प्रणाली लागू।
एशिया देशों ने भी मानहानि को सिविल बनाया 

एशिया के अन्य प्रमुख देश जैसे जापान, दक्षिण कोरिया, और ताइवान में भी मानहानि मुख्य रूप से सिविल मामला है, हालांकि कुछ मामलों में आपराधिक प्रावधान बने हुए हैं।

  • श्रीलंका: 2002 में आपराधिक मानहानि को समाप्त कर सिविल बनाया गया। अब केवल सिविल कोर्ट में हर्जाना का प्रावधान।
  • मालदीव: 2018 में आपराधिक मानहानि को हटा दिया, सिविल मुआवजा प्रणाली लागू।
  • मंगोलिया: 2019 में आपराधिक मानहानि को डिक्रिमिनलाइज किया, सिविल कानून के तहत निपटारा।

श्रीलंका और मालदीव जैसे देशों ने अंतरराष्ट्रीय दबाव (जैसे UN और OAS) के बाद बदलाव किया, जहां आपराधिक मानहानि को “अनुपातहीन प्रतिबंध” माना जाता है।

भारत में दवाब डालने व आपसी रंजिश में इस कानून का गलत इस्तेमाल हो रहा (सांकेतिक तस्वीर)

भारत में दवाब डालने व आपसी रंजिश में इस कानून का गलत इस्तेमाल हो रहा (सांकेतिक तस्वीर)

भारत में कानून का होता रहा है गलत इस्तेमाल   
भारत में मानहानि कानून का इस्तेमाल अक्सर व्यक्तिगत रंजिश या सत्ता के दुरुपयोग के लिए होता देखा गया है। 2023 में 1,200 से अधिक मामले दर्ज हुए, जिसमें 60% राजनीतिक हस्तियों से जुड़े थे। X पर #DecriminalizeDefamation ट्रेंड ने इसकी आलोचना की, जिसमें कहा गया कि यह अभिव्यक्ति को कुचलता है। दूसरी ओर, सरकार का तर्क है कि यह व्यक्तियों की प्रतिष्ठा (reputation) की रक्षा करता है।
मानहानि के विरोध में कांग्रेस लायी थी घोषणापत्र 

2019 के लोकसभा चुनावों से पहले कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में वादा किया था कि वह सत्ता में आती है तो आपराधिक मानहानि (sections 499 और 500 IPC) को हटाएगी और मानहानि (defamation) को सिर्फ सिविल अपराध बनाएगी। मानहानि पर अब तक BJP की कोई स्पष्ट नीति सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं है पर बीजेपी नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने नया “Bharatiya Nyaya Sanhita” लागू करके इसमें कुछ सुधार किए।

“मानहानि का आपराधिक कानून अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाता है और राजनीतिक बदले का हथियार बन गया है। इसे डी-क्रिमिनलाइज करके सिविल मामला बनाना चाहिए, ताकि लोकतंत्र मजबूत हो।” – राहुल गांधी, LOP,  (2023 में सुप्रीम कोर्ट में दायर की याचिका में यह टिप्पणी शामिल की)
BNS : कानून में कुछ सुधार हुए पर अब भी अपराध   
पिछले साल केंद्र सरकार भारतीय न्याय संहिता लेकर आई जिसमें BNS की धारा 356 के तहत मानहानि को रखा गया है, इसके तहत कुछ सुधार किए गए हैं जैसे कम्युनिटी सर्विस आदि। पर अभी देश में ऐसा कोई कानून नहीं है जिससे मानहानि को अपराध की श्रेणी से हटाया जा सके, वर्तमान कानून के मुताबिक मानहानि साबित होने पर अधिकतम दो साल की सजा या जुर्माना हो सकता है।
चर्चित मानहानि मामले : 

भारत में मानहानि के बड़े विवादित मामले ज़्यादातर राजनीतिक नेताओं और पत्रकारों/मीडिया संस्थानों के बीच रहे हैं, जहाँ आलोचना और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम व्यक्ति/संस्था की प्रतिष्ठा का टकराव सामने आया।

 1- मानहानि केस में राहुल गांधी की सांसदी गई – 2016 में राहुल गांधी ने एक भाषण के दौरान कहा था- “सारे मोदी चोर हैं”… इस बयान पर सूरत की अदालत में मानहानि मुकदमा चला। 2023 में अदालत ने राहुल को दोषी ठहराया और 2 साल की सज़ा सुनाई, जिसके चलते लोकसभा सदस्यता भी गई, लेकिन बाद में सुप्रीम कोर्ट ने सज़ा पर रोक लगा दी। राहुल से ही जुड़ा एक अन्य मामला वीर सावरकर के ऊपर टिप्पणी करने का है।
लोकसभा में विपक्षी दलों के नेता राहुल गांधी

लोकसभा में विपक्षी दलों के नेता राहुल गांधी

2- सलमान खान ने मीडिया पर केस किए – अभिनेता सलमान खान ने हिट-एंड-रन केस और शिकार मामले में उनके खिलाफ हुई रिपोर्टिंग को लेकर कई पत्रकारों और सामाजिक संगठनों पर मानहानि केस दर्ज किए थे।
3- जयललिता ने बीजेपी नेता पर किए केस – तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रहीं जयललिता और BJP नेता सुब्रमण्यम स्वामी के बीच कई बार मानहानि मुकदमे चले। स्वामी ने जयललिता पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे जिसके चलते जयललिता ने उन पर मानहानि केस किए।
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बिहार विधानसभा चुनाव में कितना बड़ा फैक्टर होंगे प्रशांत किशोर?

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प्रशांत किशोर, जनसुराज के संस्थापक।
प्रशांत किशोर, जनसुराज के संस्थापक।
  • नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव दोनों की आलोचना करने वाले प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी पर विश्लेषण

पटना | हमारे संवाददाता

प्रशांत किशोर बिहार में नया सियासी प्रयोग हैं। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में प्रशांत किशोर (पीके) की जन सुराज पार्टी (JSP) चर्चा का केंद्र बनी है।

कभी नीतीश कुमार और लालू प्रसाद के रणनीतिकार रहे पीके अब खुद नेता बनकर मैदान में हैं। वे नीतीश और तेजस्वी को चुनौती दे रहे हैं, दावा है कि JSP 48% वोट हासिल करेगी।

हालांकि हालिया पोल उन्हें कम सीटें दिखाते हैं, लेकिन वोट बंटवारे से NDA-RJD को नुकसान संभव। अगर पीके युवा गुस्से को संगठित कर पाए, तो उलटफेर मुमकिन।

क्या वे गेम-चेंजर होंगे या वोट कटवा का तमग़ा मिलेगा ? आइए इस विश्लेषण के जरिए बिहार की सियासत में PK इफेक्ट (प्रभाव) को समझते हैं।

 


प्रशांत किशोर की ताकत: JSP की रणनीति और प्रभाव

प्रशांत किशोर ने एक्स पर इस फोटो को शेयर किया है।

प्रशांत किशोर ने एक्स पर इस फोटो को शेयर किया है।

  • पृष्ठभूमि: पीके ने 2014 में मोदी और 2015 में नीतीश-लालू की जीत में रणनीति बनाई। 2022 में जनसुराज पार्टी (JSP) बनाकर सीधे सियासत में कूदे।
  • मुख्य मुद्दे: शिक्षा, रोजगार, पलायन और भ्रष्टाचार पर फोकस। BPSC आंदोलन में शामिल होकर युवा गुस्से को भुनाया।
  • वोट का दावा: 48% वोट जीतने का दावा करते हैं, जिसमें NDA व महागठबंधन से 10-10% वोट काटने और 28% ऐसा वोट पाने का गणित है, जो 2020 में इन दोनों गठबंधन की पार्टियों की जगह छोटे दलों को चला गया था।
  • उम्मीदवारी: खुद चुनाव लड़ने की घोषणा की है, नौ अक्टूबर को उम्मीदवार सूची जारी करेंगे।
  • 60-40 फॉर्मूला: 40% हिंदू (नॉन-यादव OBC, EBC, अगड़ी जातियां) + 20% मुस्लिम वोट।

नीतीश-तेजस्वी दोनों पर हमलावर

  • नीतीश पर निशाना: पीके का दावा है कि ‘JDU को 25 से ज्यादा सीटें नहीं मिलेंगी, वरना राजनीति छोड़ देंगे।’ नीतीश को ‘शारीरिक रूप से थका’ बताया।
  • तेजस्वी पर तंज: पीके का कहना है कि तेजस्वी का ’10 लाख नौकरी’ का वादा खोखला। युवा वोटरों को साधने की कोशिश जो बिहार की 60% आबादी।
  • मुस्लिम रणनीति: RJD को ऑफर— मुस्लिम उम्मीदवारों पर टकराव न हो, जहां वे मुस्लिम उतारें, वहां जनसुराज नहीं उतारेगी। पर ऐसा शर्त के साथ। यह लालू के MY समीकरण को चुनौती।

जनसुराज : चुनौतियां और जोखिम

  • कमजोर संगठन: JSP का ग्राउंड नेटवर्क कमजोर। BJP-JDU-RJD की तुलना में कैडर सीमित।
  • वोट कटवा टैग: कई प्री सर्वे JSP को 2-5 सीटें देते हैं, इससे JDU-RJD को ज्यादा नुकसान संभव।
  • हिन्दू वोट प्रभावित : केंद्र सरकार के वक्फ संशोधन विधेयक के विरोध में रैलियां करने पर उन्हें मुस्लिम समर्थन मिला पर कहा जाता है कि हिन्दू अपरकास्ट वोट छिटका।

प्रेसवार्ता में डिप्टी सीएम के ऊपर गंभीर आरोप लगाते प्रशांत किशोर (फोटो - स्थानीय संवाददाता)

प्रेसवार्ता में डिप्टी सीएम के ऊपर गंभीर आरोप लगाते प्रशांत किशोर (फाइल फोटो)

सर्वे और संभावनाएं

सर्वे/स्रोत

NDA सीटें

महागठबंधन

JSP

अन्य

मैट्रिक्सआईएएनएस

150-160

70-85

2-5

5-10

इंडिया टुडे

145-155

75-90

1-3

5-8

  • वोट प्रभाव: JSP शहरी और युवा वोटरों में लोकप्रिय। ग्रामीण क्षेत्रों में प्रभाव सीमित।
  • गठबंधन की अटकलें: चिराग पासवान (LJP) के साथ गठजोड़ की अफवाह। दोनों 243 सीटों पर लड़ सकते हैं।
  • AAP का प्रवेश: आप की 243 सीटों पर दावेदारी JSP के कैडर को प्रभावित कर सकती है।

बिहार के जातीय समीकरण पर PK की रणनीति 

  • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: 1990 में लालू का MY (मुस्लिम-यादव) समीकरण। 2005 में नीतीश का लव-कुश (EBC, महिलाएं) फॉर्मूला।
  • PK की रणनीति: जाति से ऊपर विकास पर जोर। EBC, मुस्लिम और युवा वोटरों को साधने की कोशिश। MY और लव-कुश समीकरणों को तोड़ने की चुनौती। मुस्लिम वोट बंटवारा RJD के लिए खतरा।

क्या कहते हैं आलोचक?

  • विपक्षी: पीके को ‘राजनीतिक पर्यटक’ कहकर खारिज करते हैं। संगठन की कमी पर सवाल।
  • समर्थक: बिहार के बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के खिलाफ ‘बिहार का बेटा’ की आवाज।
  • BJP की चिंता: दिल्ली की बैठकों में JSP के ‘खौफ’ की चर्चा। त्रिकोणीय मुकाबला संभव।

राजनीतिक विश्लेषकों की राय

अगर पीके 20-30 सीटें जीतते हैं, तो नया समीकरण बनेगा। वरना, वोट बंटवारा NDA या महागठबंधन को फायदा पहुंचाएगा।
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चुनावी डायरी

जीतन राम मांझी : NDA की दलित ताकत, पर सीट शेयर में बड़ी अड़चन

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भाजपा, जदयू के साथ गठबंधन वाले NDA में 'हम' पार्टी की अहमियत पर विश्लेषण। (तस्वीर - @jitanrmanjhi)
जीतनराम मांझी (तस्वीर - @NandiGuptaBJP)
  • बिहार चुनाव में NDA से 15 से 20 सीटें चाहते हैं HAM चीफ माझी

नई दिल्ली|

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से ठीक पहले NDA (नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस) में सीट बंटवारे को लेकर चल रही खींचतान में जीतन राम मांझी का नाम सबसे ऊपर है। हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (सेक्युलर) (HAM) के संस्थापक और केंद्रीय मंत्री मांझी ने 15 से 20 सीटों की मांग रखी है, लेकिन BJP-JDU गठबंधन उन्हें 3-7 सीटें देने पर अड़ा है। क्या मांझी NDA के लिए महादलित-दलित वोटों की ‘मजबूत कड़ी’ हैं या उनकी बढ़ती महत्वाकांक्षा के बीच गठबंधन बचाना ‘मजबूरी’ और चुनौती बन गया है? आइए जानते हैं इस विश्लेषण में..


जीतनराम मांझी (तस्वीर - @NandiGuptaBJP)

जीतनराम मांझी (तस्वीर – @NandiGuptaBJP)

NDA में मांझी की ‘मजबूती’: दलित वोटों का मजबूत आधार

 हालिया बैठकों और बयानों से साफ है कि मांझी की मौजूदगी से NDA को जातीय समीकरण में मजबूती मिलती है। पर BJP के बार-बार मनाने पर भी वे अपनी मांग पर अड़े हैं, बीजेपी प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान ने इसे उनकी ‘साफगोई’ कहा है। जातीय गणित की नजर से देखें तो मांझी NDA को कई सीटों पर मजबूती देते दिखते हैं-

  • महादलित-दलित वोट बैंक: बिहार में दलित (16%) और महादलित (मुसहर, डोम आदि) वोटरों पर मांझी की पकड़ मजबूत है। 2020 में HAM ने 7 सीटों पर 60% से ज्यादा स्ट्राइक रेट दिखाया, जो NDA की कुल 125 सीटों में योगदान देता है। चिराग पासवान (LJP) के साथ मिलकर वे पश्चिम चंपारण से गया तक दलित वोटों को एकजुट करते हैं।
  • नीतीश के पूरक: NDA का महादलित फोकस मांझी से मजबूत होता है। लोकसभा 2024 में NDA की 30/40 सीटों में मांझी का रोल सराहा गया।
  • केंद्रीय मंत्री के रूप में: MSME मंत्री के तौर पर वे केंद्र की रोजगार सृजन योजनाओं (जैसे PMEGP) को बिहार में लागू कर NDA की छवि चमकाते हैं।

NDA में मांझी की मजबूती –

 उदाहरण

जातीय समीकरण

महादलित (12%) वोटों पर पकड़; 2020 में 4/7 सीटें जीतीं।

रणनीतिक भूमिका

JDU-BJP के बीच दलित ब्रिज; चिराग के साथ मिलकर विपक्ष (RJD) को चुनौती।

परिवारिक प्रभाव

बेटाबहू के मंत्री/विधायक होने से स्थानीय स्तर पर मजबूती।

विवादास्पद अपील

गरीबी से सत्ता की कहानी दलित युवाओं को प्रेरित करती है।

 


जीतनराम मांझी के साथ बैठक करने पहुंचे बीजेपी के चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान, तावड़े, सम्राट चौधरी।

जीतनराम मांझी के साथ बैठक करने पहुंचे बीजेपी के चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान, तावड़े, सम्राट चौधरी।

NDA के लिए ‘मजबूरी’: बढ़ती मांगें और बगावती तेवर

दूसरी तरफ, मांझी की महत्वाकांक्षा NDA के लिए सिरदर्द बनी हुई है:

  • सीटों की मांग: बिहार विधानसभा चुनाव में 15-20 (कभी 25-40) सीटें मांग रहे हैं, ताकि HAM को ECI मान्यता (6% वोट/6 सीटें) मिले। लेकिन BJP-JDU उन्हें 3-7 सीटें देने को तैयार हैं। धर्मेंद्र प्रधान की 5 अक्टूबर 2025 की मीटिंग में मांझी को ‘3 से ज्यादा पर नहीं’ कहा गया। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, मांझी ने धमकी दी- “अगर 15-20 न मिलीं तो 100 सीटों पर अकेले लड़ेंगे।”
  • नाराजगी का इतिहास: 2015 में BJP ने नीतीश के सामने मांझी को ‘अपमानित’ होने दिया। अब अप्रत्यक्ष अपमान (वोटर लिस्ट न देना) से नाराज हैं। News18 में मांझी ने कहा, “हम रजिस्टर्ड हैं, लेकिन मान्यता नहीं—यह अपमान है।”
  • गठबंधन तनाव: NDA का फॉर्मूला लगभग तय है, मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक- JDU को 102-108, BJP को 101से 107, LJP को 20से 22, HAM को 3से 7, RLM को 3से 5 सीटें देने का फॉर्मूला है। मांझी की मांग से JDU-BJP के बीच ‘100 सीटों की लड़ाई’ तेज हुई है। उपेंद्र कुशवाहा (RLM) ने भी 15 सीटों की मांग कर दी है जिससे NDA पर 35 सीटों को लेकर दवाब बढ़ गया है।
  • बगावत का जोखिम: अगर मांझी बगावत करें, तो दलित वोट बंट सकते हैं, जो महागठबंधन (RJD) को फायदा देगा। लेकिन NDA उन्हें ‘जरूरी बुराई’ मानता है—इग्नोर करने से वोट लॉस, मानने से सीट शेयरिंग बिगड़ेगी।

NDA के लिए मांझी की मजबूरी के पहलू

उदाहरण

सीट मांग का दबाव

20 मांगीं, 3-7 ऑफर; बगावत की धमकी।

पुराना अपमान

2015 में BJP-JDU नेछोड़ दिया‘; अब मान्यता की लड़ाई।

गठबंधन असंतुलन

JDU-BJP 200+ सीटें चाहते; छोटे दलों कोकुर्बानीदेनी पड़ रही।

विवादास्पद छवि

बयान गठबंधन को नुकसान पहुंचाते, लेकिन वोटरों को जोड़ते।

 


केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी

केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी

मजबूती ज्यादा, लेकिन मजबूरी नजरअंदाज नहीं

मांझी NDA के लिएमजबूतीज्यादा हैंउनके बिना दलित वोटों का 20-25% हिस्सा खिसक सकता है। लेकिन सीट बंटवारे की उनकी जिद गठबंधन कोमजबूरीमें डाल रही है, जहां BJP-JDU को छोटे दलों को मनाना पड़ रहा। 5 अक्टूबर की प्रधानमांझी बैठक में सहमति बनी, लेकिन अंतिम फॉर्मूला जूनजुलाई में तय होगा। अगर NDA 225+ सीटें जीतना चाहता है (जैसा मांझी दावा करते हैं), तो मांझी कोसम्मानजनकरखना जरूरी। वरना, बिहार का जातीय समीकरण फिर उलट सकता है। राजनीतिक पंडितों का मानना है: मांझीकरो या मरोके दौर में हैं, और NDA के लिए वेजरूरी सहयोगीसेसंभावित खतराबन सकते हैं।


 

मांझी की राजनीतिक यात्रा: बंधुआ मजदूरी से सत्ता तक 

जीतन राम मांझी बीते छह अक्तूबर को 81 बरस के हो गए। वे मुसहर समुदाय (महादलित) से आते हैं, जो बिहार के सबसे वंचित वर्गों में शुमार है। बचपन में बंधुआ मजदूरी करने वाले मांझी ने शिक्षा के बल पर 1966 में हिस्ट्री में ग्रेजुएशन किया और पोस्टल विभाग में नौकरी पाई।

जीतन राम माझी

जीतन राम माझी

1980 में कांग्रेस से राजनीति में कदम रखा, फिर RJD (लालू प्रसाद) और 2005 में JDU (नीतीश कुमार) से जुड़े। 2014 में लोकसभा चुनाव में JDU की करारी हार के बाद नीतीश ने इस्तीफा दिया और मांझी को मुख्यमंत्री बनाया—मकसद महादलित वोटों को साधना। लेकिन 9 महीने बाद (फरवरी 2015) विवादास्पद बयानों (जैसे डॉक्टरों के हाथ काटने की धमकी, चूहे खाने को जायज ठहराना) और नीतीश पर हमलों से JDU ने उन्हें बर्खास्त कर दिया। इसके बाद 18 विधायकों के साथ HAM बनाई।

2020 में NDA में वापसी हुई, जहां HAM को 7 सीटें मिलीं और 4 जीतीं। लोकसभा 2024 में गयासुर लोकसभा सीट जीतकर मांझी केंद्रीय मंत्री बने। उनके बेटे संतोष कुमार मांझी बिहार सरकार में मंत्री हैं, जबकि बहू दीपा मांझी इमामगंज से विधायक। यह पारिवारिक राजनीति NDA के लिए फायदेमंद रही, लेकिन मांझी के बयान (जैसे ताड़ी को ‘नेचुरल जूस’ कहना) अक्सर विवादों का सबब बने।

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तमिलनाडु : करूर भगदड़ में 41 मौतों के बाद विजय पर FIR क्यों नहीं?

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30 सितंबर को TVK प्रमुख विजय ने एक वीडियो संदेश जारी किया। (साभार - @TVKVijayHQ)
30 सितंबर को TVK प्रमुख विजय ने एक वीडियो संदेश जारी किया। (साभार - @TVKVijayHQ)
  • मद्रास हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को SIT की जांच IG से कराने का आदेश दिया।
  • TVK के नेताओं को भगदड़ के बाद मदद की जगह भाग जाने के लिए लताड़ा।
  • 27 सितंबर तमिल सिनेमा के सुपरस्टार विजय ने अपनी पार्टी TVK की रैली बुलाई थी।
नई दिल्ली |
तमिल सिनेमा के सुपरस्टार ऐक्टर विजय राजनीति में आने के बाद 27 सितंबर को पहली बड़ी रैली कर रहे थे, अनुमति सिर्फ दस हजार लोगों की ली और भीड़ पांच गुना बढ़ गई।
ओवर क्राउड हो जाने के बाद भी विजय ने अपने प्रशंसकों को कथित तौर पर सात घंटे इंतजार करवाया, फिर भीड़ विजय की झलक पाने के लिए प्रशंसक उनकी गाड़ी की ओर दौड़े। ..और फिर 41 लोगों की मौत और 100 से अधिक लोग घायल हो गए।
मद्रास हाईकोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि हादसे के बाद TVK के नेता मदद करने के बजाय भाग गए जो नैतिक रूप से गलत है। साथ ही, हाईकोर्ट ने IG के नेतृत्व में एक SIT बनाने का आदेश दिया है। 
इस भगदड़ पर अब तक सधा हुए कदम उठा रही तमिलनाडु की DMK सरकार को अब क्या अभिनेता से नेता बने विजय के खिलाफ FIR दर्ज करनी पड़ेगी?
घटना के छह दिन बीत जाने के बाद भी एक्टर विजय की जिम्मेदारी क्यों तय नहीं की गई, इस मामले का अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से क्या कनेक्शन है, आइए जानते हैं-    
एक्टर विजय की रैली के दौरान लोगों का जमावड़ा (फोटो क्रेडिट- @deepanpolitics)

एक्टर विजय की रैली के दौरान लोगों का जमावड़ा (फोटो क्रेडिट- @deepanpolitics)

करूर भगदड़ : 7 घंटे से हाईवे पर हो रहा था इंतजार  
करुर-इरोड हाईवे पर ‘तमिलागा वेट्री कझगम’ (TVK) नामक राजनीतिक पार्टी के प्रमुख विजय ने रैली बुलाई थी। मद्रास हाईकोर्ट में याचिका डालने वाले का आरोप है कि रैली में दोपहर 12 बजे तक विजय के आने का संदेश फैलाया गया था, पर वे शाम सात बजे गए और कार में ही बैठे रहे। जिससे लोग बेचैन हो गए और उनकी ओर दौड़े, जिससे भगदड़ मच गई।
विजय ने वीडियो संदेश में स्टालिन पर निशाना साधा
बीते 30 सितंबर को एक वीडियो संदेश जारी करके विजय ने कहा कि “भगदड़ के लिए स्टालिन सरकार जिम्मेदार है, साथ ही बोले कि अगर आपको बदला लेना है तो मुझे गिरफ्तार कर सकते हो।” हालांकि अपने खिलाफ लगे आरोपों पर वे वीडियो में कुछ नहीं बोले।
बदा दें कि भगदड़ के बाद विजय ने जान गंवाने वालों को 20-20 लाख रुपये व घायलों को 2-2 लाख रुपये का मुआवजा देने की घोषणा की थी। 
300 से ज्यादा बुद्धिजीवियों ने ऐक्शन की मांग की
दो अक्तूबर को राज्य के 300 बुद्धिजीवियों ने ऐक्शन की मांग की है। राज्य के लेखक, कवि, बुद्धिजीवी, कार्यकर्ता और पत्रकारों ने एक संयुक्त बयान में कहा कि विजय की लापरवाही और सत्ता की चाह ने इस हादसे को जन्म दिया, उनके ऊपर कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए।
TVK के छोटे नेताओं पर FIR, मुखिया को छोड़ा  
पुलिस ने TVK नेताओं पर नियमों की अवहेलना का आरोप लगाकर पार्टी के सेक्रेटरी व डिप्टी सेक्रेटरी के खिलाफ FIR दर्ज की, लेकिन इसमें विजय का नाम शामिल नहीं किया गया। 
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री MK स्टालिन (फाइल फोटो, साभार इंटरनेट)

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री MK स्टालिन (फाइल फोटो, साभार इंटरनेट)

मद्रास हाईकोर्ट में याचिका : ‘विजय को स्टालिन बचा रहे’

द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, मद्रास हाई कोर्ट में एक याचिकाकर्ता ने शिकायत की कि विजय का नाम FIR में न होना राजनीतिक कारणों से है। याचिकाकर्ता का कहना है कि “तमिलनाडु सरकार (DMK) विजय को शील्ड कर रही है, क्योंकि उनकी बढ़ती लोकप्रियता राजनीतिक संतुलन को प्रभावित कर सकती है।” याचिकाकर्ता का कहना है कि DMK विजय पर कार्रवाई से बच रही है, ताकि उनकी पार्टी को 2026 में गठबंधन का विकल्प खुला रखा जा सके।

सरकार का पक्ष : पहले जांच रिपोर्ट आने दो

मुख्यमंत्री एमके स्टालिन की डीएमके सरकार ने भगदड़ के लिए TVK पर लापरवाही का आरोप लगाया और वीडियो सबूत पेश किए। पर करुर पुलिस का कहना है कि सबूतों के अभाव में विजय की व्यक्तिगत जिम्मेदारी साबित नहीं हुई। हालांकि TVK नेताओं के खिलाफ उन्होंने कार्रवाई की है।

साथ ही, सरकार का कहना है कि उन्होंने भगदड़ के कारणों को समझने के लिए जांच दल बना दिया है, इसकी रिपोर्ट आने के बाद ही कार्रवाई होगी।

विजय की पार्टी TVK का झंडा

विजय की पार्टी TVK का झंडा

तमिलनाडु की राजनीति में विजय की भूमिका

विजय लंबे समय से तमिल सिनेमा के सुपरस्टार रहे हैं, उन्होंने फरवरी- 2024 में अपनी राजनीतिक पार्टी TVK लॉन्च की थी। उनका उद्देश्य 2026 के विधानसभा चुनावों में मजबूत चुनौती पेश करना है। करुर हादसा उनकी पहली बड़ी रैली थी, जिसमें इतने अधिक लोगों का आ जाना उनकी लोकप्रियता को दर्शाता है। हालांकि, इस घटना ने उनकी छवि को धक्का पहुँचाया है। लेकिन उनकी फैन फॉलोइंग और युवा वोटरों का समर्थन उन्हें राजनीति में प्रभावशाली बनाता है। कई संगठन इसे देखने हुए आगामी चुनाव में उनके साथ गठबंधन करने का विकल्प खुला रखना चाहते हैं। 
बीजेपी व AIDMK की सधी हुई प्रतिक्रिया
बीजेपी की प्रतिक्रिया भी इस घटना पर सधी हुई रही है, दरअसल यह पार्टी भी तमिलनाडु में गठबंधन की तलाश में है। बीजेपी ने इसे राज्य की कानून-व्यवस्था पर सवाल उठाने का मौका बनाया है। जानकार मानते हैं कि विजय की बढ़ती लोकप्रियता आगामी चुनाव में AIADMK और DMK दोनों को चुनौती दे सकती है। ऐसे में बीजेपी भी गठबंधन का विकल्प खुला रखना चाहती है। दूसरी ओर, मुख्य विपक्षी दल AIADMK भी इस हादसे के लिए DMK पर ही ज्यादा हमलावर रही है। 
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