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बांग्लादेश में ‘जनमत संग्रह’ की मांग का आम चुनाव पर क्या असर होगा?

बांग्लादेश में डेढ़ साल से अस्थिरता जारी, आम चुनाव के लिए प्रचार शुरू पर एक नया राजनीतिक संकट आया जो मो. युनूस की अंतरिम सरकार (इनसेट) के लिए चुनौती है।

बांग्लादेश में डेढ़ साल से अस्थिरता जारी, आम चुनाव के लिए प्रचार शुरू पर एक नया राजनीतिक संकट आया जो मो. युनूस की अंतरिम सरकार (इनसेट) के लिए चुनौती है।

  • अगले साल फरवरी में प्रस्तावित हैं आम चुनाव,  2024 में हसीना सरकार का तख्तापलट हुआ था।

नई दिल्ली |

बांग्लादेश इन दिनों फिर से एक बड़े राजनीतिक मोड़ पर खड़ा है। फरवरी 2026 में होने वाले आम चुनाव से पहले देश में जनमत संग्रह (Referendum) की मांग को लेकर माहौल गरम हो गया है।

देश की सबसे बड़ी इस्लामिक पार्टी जमात-ए-इस्लामी (Jamaat-e-Islami) ने मंगलवार को चेतावनी दी है कि जब तक प्रस्तावित राष्ट्रीय चार्टर को जनता की मंजूरी और कानूनी दर्जा नहीं दिया जाता, तब तक चुनाव नहीं होने चाहिए। ये राष्ट्रीय चार्टर (National Charter) देश में राजनीतिक सुधारों का दस्तावेज़ है।

दूसरी तरफ, पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया (Khaleda Zia) की पार्टी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) ने इस मांग को पूरी तरह खारिज कर दिया है। अब यह टकराव बांग्लादेश की सियासत को एक नए संकट की ओर धकेल रहा है।

बीते साल 5 अगस्त को पीएम शेख हसीना सरकार का तख्ता-पलट हो जाने के बाद मो. युनूस की अंतरिम सरकार अभी सत्ता में है। लंबी मांग के बाद यहां आम चुनाव की घोषणा हुई और प्रचार शुरू हो चुका है। पर अब एक नए राजनीतिक मुद्दे से प्रस्तावित आम चुनाव के ऊपर संकट मंडरा रहा है।

 

क्या है ये “राष्ट्रीय चार्टर”?

“जुलाई नेशनल चार्टर (July National Charter)” दरअसल बांग्लादेश के राजनीतिक सुधारों का खाका है। यह चार्टर उस रोडमैप (Roadmap) का हिस्सा है जिसे पिछले साल शेख हसीना सरकार के पतन के बाद बनी अंतरिम सरकार (Interim Government) ने तैयार किया था। यह अंतरिम सरकार नोबेल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर मुहम्मद यूनुस (Muhammad Yunus) की अगुवाई में बनी थी।

इस चार्टर में कई अहम बदलावों का सुझाव दिया गया —

1. प्रधानमंत्री के अधिकारों पर नियंत्रण,
2. सांसदों के कार्यकाल की सीमा तय करना,
3. भ्रष्टाचार और धन के दुरुपयोग पर रोक,
4. और सत्ता में संतुलन लाने के उपाय।

लेकिन अभी तक इस चार्टर को संविधानिक मान्यता (Legal Status) नहीं मिली है।
जमात का कहना है कि जब तक इस चार्टर को जनमत संग्रह (Referendum) के ज़रिए जनता की मंजूरी नहीं मिलती, तब तक इसे लागू करना कानूनी रूप से अधूरा होगा।

 

जमात-ए-इस्लामी का कहना क्या है?

ढाका में मंगलवार को आयोजित विशाल रैली में जमात प्रमुख शफीकुर रहमान (Shafiqur Rahman) ने कहा, “इस देश के स्वतंत्रता-प्रेमी लोगों का एक ही संदेश है — आम चुनाव से पहले राष्ट्रीय जनमत संग्रह कराया जाए। चार्टर को कानूनी आधार दिए बिना चुनाव कराना देश के साथ धोखा होगा।”

जमात ने यह रैली अपनी ताकत दिखाने के लिए आयोजित की थी। रहमान ने कहा कि “राष्ट्रीय सहमति आयोग (National Consensus Commission)” जो मुख्य सलाहकार यूनुस के नेतृत्व में बना था, उसकी मेहनत को जनता की राय से ही वैधता मिल सकती है।

 

बीएनपी का जवाब: संविधान में जनमत संग्रह का प्रावधान नहीं

जमात के इस रुख से सबसे ज्यादा असहमति खालिदा जिया की पार्टी बीएनपी (BNP) ने जताई है बीएनपी महासचिव मिर्जा फखरुल इस्लाम आलमगीर (Mirza Fakhrul Islam Alamgir) ने कहा, “जमात चुनाव से डर रही है क्योंकि उसे पता है कि जनता उसे नकार देगी। संविधान में जनमत संग्रह का कोई उल्लेख नहीं है। इसलिए यह मांग गैरकानूनी और अलोकतांत्रिक है।”

बीएनपी का कहना है कि संसद (Parliament) ही वह मंच है जहां इस चार्टर पर चर्चा और निर्णय होना चाहिए। उनके मुताबिक, अंतरिम सरकार को संविधान की सीमाओं में रहकर ही काम करना होगा।

 

विवाद कहां से शुरू हुआ?

बीएनपी और जमात दोनों ने पिछले महीने एक बड़े समारोह में 84 प्रस्तावों वाला राजनीतिक चार्टर साइन किया था। उस समय दोनों दल एकमत थे, लेकिन अब चार्टर को लागू करने के तरीकों को लेकर विवाद गहराता जा रहा है।जमात चाहती है कि चार्टर पर पहले जनता की मुहर लगे (जनमत संग्रह के ज़रिए), फिर चुनाव कराए जाएं।
बीएनपी का रुख है कि ऐसा करना संविधान के खिलाफ है और इससे चुनाव टल जाएंगे।

BNP ने शुरू में जनमत संग्रह के विचार का समर्थन किया था, लेकिन बाद में कहा कि यदि जनमत संग्रह कराना ही है, तो उसे चुनाव के दिन ही साथ में कराया जाए, अलग से नहीं।

 

यूनुस सरकार पर बढ़ता दबाव

शेख हसीना के सत्ता से हटने के बाद बनी अंतरिम सरकार (Interim Government) का नेतृत्व प्रोफेसर मुहम्मद यूनुस कर रहे हैं। उनका उद्देश्य एक ऐसा राजनीतिक ढांचा बनाना है जो भविष्य में “तानाशाही शासन” के दोहराव को रोक सके।

अब जमात और बीएनपी के बीच बढ़ती खींच-तान यूनुस सरकार की विश्वसनीयता पर सवाल उठा रही है।

स्थानीय मीडिया में ऐसी भी खबरें हैं कि सरकार अब इस पर विचार कर रही है कि चार्टर को जनमत संग्रह के बिना ही आंशिक रूप से लागू किया जाए। हालांकि इससे विवाद और गहरा सकता है।

 

क्या टल सकते हैं आम चुनाव?

राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, अगर जनमत संग्रह पर सहमति नहीं बनी तो फरवरी-2026 के आम चुनाव टल सकते हैं क्योंकि विपक्ष और इस्लामिक दल “पहले जनमत संग्रह, बाद में चुनाव” की ज़िद पर अड़े हैं।

देश में पहले से ही राजनीतिक अस्थिरता, मानवाधिकार उल्लंघन और विपक्ष पर दमन के आरोप लग चुके हैं। अगर यह टकराव बढ़ा,तो बांग्लादेश को एक और बड़े संकट का सामना करना पड़ सकता है।

 

भारत पर क्या असर पड़ सकता है?

बांग्लादेश की यह स्थिति सिर्फ उसके अंदरूनी हालात तक सीमित नहीं है, इसका सीधा असर भारत पर भी हो सकता है।

1. सीमा पर दबाव: अगर बांग्लादेश में हिंसा या अस्थिरता बढ़ती है, तो भारत की पूर्वी सीमाओं (असम, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा) पर शरणार्थियों का दबाव बढ़ सकता है।

2. कट्टरपंथी संगठनों का खतरा: जमात-ए-इस्लामी जैसे दलों की बढ़ती ताकत, भारत के पूर्वोत्तर इलाकों में कट्टरपंथी विचारधारा और चरमपंथी गतिविधियों को बढ़ावा दे सकती है।

3. व्यापार और ट्रांजिट पर असर: भारत का पूर्वोत्तर हिस्सा चटगांव और मोंगला बंदरगाहों के ज़रिए व्यापार करता है। राजनीतिक अस्थिरता से ये मार्ग प्रभावित हो सकते हैं।

4. सुरक्षा सहयोग पर असर: बीते एक दशक में भारत-बांग्लादेश के बीच आतंकवाद और सीमा सुरक्षा पर मजबूत सहयोग रहा है, जो अब अंतरिम सरकार के विवादों के बीच धीमा पड़ सकता है।

 

लोकतंत्र की नई परीक्षा
बांग्लादेश की राजनीति पर नजर रखने वाले विशेषज्ञों का कहना है कि बांग्लादेश अब एक अहम मोड़ पर खड़ा है, वह या तो संविधान की सीमाओं में रहकर सुधार लागू करेगा, या जनमत संग्रह की ‘जिद’ में फंसकर फिर से अस्थिरता में घिर जाएगा।

आने वाला चुनाव सिर्फ सत्ता परिवर्तन का नहीं, बल्कि बांग्लादेश के लोकतंत्र की अग्निपरीक्षा साबित हो सकता है।भारत के लिए भी यह पड़ोसी देश की स्थिति सुरक्षा, सीमाई शांति और कूटनीतिक संबंधों पर सीधा असर डाल सकती है।


written by Mahak Arora (content writer)

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