नई दिल्ली |
भारत में इस सत्र के लिए जारी किए गए उच्च शिक्षा के बजट में 17 प्रतिशत की कटौती कर दी गई है लेकिन इसपर विरोध के स्वर कम ही उभरे हैं। आपको बहुत कम मीडिया रिपोर्टों में इस कटौती पर आलोचनात्मक लेख मिलेंगे। पर आपको जानकर हैरानी हो सकती है कि दक्षिण अमेरिकी देश अर्जेंटीना में जब ऐसा हुआ तो वहां पांच लाख से ज्यादा विद्यार्थी व शिक्षक सड़कों पर उतर आए। अर्जेंटीना की सरकार ने अप्रैल में बजट जारी किया और उच्च शिक्षा के बजट में वृद्धि करने की जगह यह प्रावधान ला दिया कि जारी बजट से कॉलेज अपनी इमारत निर्माण आदि काम भी करवा सकते हैं यानी सीधे से शिक्षा व अनुसंधान का बजट घट गया। इसके विरोध में वहां देश स्तरीय प्रदर्शन देखा गया। विरोध का असर ये हुआ है कि बीते 15 अगस्त को अर्जेंटीना संसद में इसको लेकर प्रस्ताव पास हो गया है।
आर्थिक इमरजेंसी झेल रहे अर्जेंटीना में भी शिक्षक-विद्यार्थी सड़कों पर
23 अप्रैल, 2024 को राष्ट्रपति भवन के पास प्रदर्शन कर रहे शिक्षक-विद्यार्थियों की भीड़ (साभार – इंटरनेट)
इस मामले पर आगे बढ़ने से पहले अर्जेंटीना के बारे में जान लेते हैं। इस दक्षिण अमेरिकी देश के उत्तर में ब्राजील, पश्चिम में चिली व उत्तर पश्चिम में पराग्वे देश हैं। अर्जेंटीना की अर्थव्यवस्था अभी खस्ताहाल चल रही है और यहां वार्षिक महंगाई दर 288% हो चुकी है। अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की बात कहकर दक्षिणपंथी राष्ट्रपति जेवियर मिलेई ने उच्च शिक्षा के बजट में कटौती कर दी है, जिसको लेकर 23 अप्रैल को एक बड़ा राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन हुआ। प्रदर्शनकारियों के मुताबिक, राष्ट्रपति भवन के पास शिक्षकों व विद्यार्थियों की पांच लाख की भीड़ जुटी, हालांकि पुलिस ने इस संख्या को एक लाख बताया। प्रदर्शनकारियों ने पब्लिक यूनिवर्सिटी के बजट की कटौती के आदेश को वापस लेने की मांग उठाई। हालांकि राष्ट्रपति ने इस प्रदर्शन को विपक्ष की चाल बताकर प्रदर्शनकारियों की मांग खारिज कर दी है। दरअसल राष्ट्रपति का कहना है कि सरकारी खर्च में कटौती करके वे देश को आर्थिक आपातकाल की स्थिति से बाहर ला सकते हैं। दूसरी ओर, शिक्षकों का कहना है कि ये कदम देश को दो सौ साल पीछे ले जाएगा।
बिना बिजली के चल रही कक्षाएं – देश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय ब्यूनस आयर्स के हाल से यहां के उच्च शिक्षा संस्थानों की हालत का अंदाजा लगाया जा सकता है। इस विश्वविद्यालय प्रशासन का कहना है कि उसे सालभर के खर्चे का 8.9% हिस्सा ही प्राप्त हुआ जिससे वह बिजली खर्च नहीं चुका पा रहा है। कई लिफ्ट बंद पड़ी हैं और कई क्लास रूम में एसी व माइक बंद कर दिए गए हैं। इस विश्वविद्यालय ने यह भी कहा था कि अगर ऐसा ही चला तो कुछ महीनों में इसे अपना कैंपस बंद करना पड़ सकता है। गौरतलब है कि इस विश्वविद्यालय से देश के 17 राष्ट्रपति व पांच नोबेल पुरस्कार विजेता पढ़कर निकल चुके हैं।
बजट बढ़ाने का प्रस्ताव निचले सदन में पास – बीते 15 अगस्त को अर्जेंटीना की संसद के निचले सदन में पब्लिक यूनिवर्सिटी के फंड को बढ़ाने का प्रस्ताव वोटिंग के बाद पास हो गया है। जिसके बाद शैक्षिक जगत में उम्मीद जगी है। गौरतलब है कि अर्जेंटीना में हर नागरिक को गुणवत्ता पूर्ण उच्च शिक्षा लेने का मौलिक अधिकार प्राप्त है।
एजुकेशन इंडेक्स में 27वें स्थान पर अर्जेंटीना
अर्जेंटीना के लोगों का शिक्षा के बजट में कटौती को लेकर चिंतित होना ही दर्शाता है कि यहां का समाज शिक्षा के महत्व को लेकर कितना जागरुक है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की ओर से हर साल जारी होने वाले एजुकेशन इंडेक्स के मुताबिक, 2023 में अर्जेंटीना का एजुकेशन इंडेक्स 0.87 रहा और इसके साथ यह देश इस तालिका में 27वें स्थान पर है। इस सूची में 1.01 इंडेक्स के साथ शीर्ष पर ऑस्ट्रेलिया है।
भारत 138वें स्थान पर
189 देशों के एजुकेशन इंडेक्स में भारत 138वें स्थान पर है। भारत के मुकाबले अर्जेंटीना कहीं आगे है और भारतीय उपमहाद्वीप के देशों की ही बात करें तो बांग्लादेश, मालद्वीप, फिलीपींन्स, मलेशिया इस सूचकांक में भारत से कहीं ऊपर हैं।
भारत में इस साल उच्च शिक्षा बजट में 17% की कटौती
भारत में पिछले साल के मुकाबले इस साल उच्च शिक्षा बजट में कुल 17% की कटौती की गई है। पिछले साल (2023-24) के संशोधित बजट से तुलना करने पर पता लगता है कि केंद्र सरकार ने इस साल के उच्च शिक्षा बजट को 17% घटा दिया है। पिछले सत्र में उच्च शिक्षा के लिए 57,244 करोड़ का संशोधित बजट था। जबकि इस साल बजट 47,620 करोड़ कर दिया गया है। इतना ही नहीं, उच्च शिक्षा नियामक यूजीसी के अनुदान (ग्रांट) में 60% की कटौती कर दी। पिछले साल के संशोधित बजट 6,409 करोड़ के मुकाबले इस साल यूजीसी को कुल 2,500 करोड़ का बजट मिला है। इसके अलावा, आईआईटी व आईआईएम के वार्षिक बजट में भी कटौती कर दी गई है।
गौरतलब है कि बजट की इस कटौती को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे समेत अन्य विपक्षी दलों ने संसद के भीतर व बाहर विरोध जताया था हालांकि भारत में इस मामले पर सही सूचनाओं के अभाव में जनता से स्तर पर विरोध देखने को नहीं मिला।