आज के अखबार
वक्फ़ मामले में सरकार की लाइन पर हिन्दी अखबार
अरबी का लफ्ज़ ‘वक्फ’ इन दिनों इंटरनेट पर कीवर्ड बन चुका है। कारण ..ये कि बीते एक सप्ताह के भीतर वक्फ बोर्ड की शक्तियां घटाने की सरकारी कोशिशों पर खूब खबरें छपीं। 8 अगस्त को मोदी नेतृत्व वाली एनडीए सरकार इस पर संसद में संशोधन विधेयक भी ले आई। पर विपक्ष के विरोध व गठबंधन दलों की शंकाओं के बाद इस संशोधन विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति के पास भेज दिया गया है। यानी अब इस मामले में कोई भी बदलाव तभी हो पाएगा, जब विपक्षी दल भी उन बदलावों से सहमत होंगे। इस मामले पर विपक्ष का कहना है कि केंद्र सरकार मुस्लिम समुदाय की धार्मिक स्वतंत्रता को खत्म करना चाहती है, जिसके क्रम में वक्फ बोर्ड के कानून में संशोधन लाया जा रहा है।
इस मामले पर अखबारों की कवरेज इसलिए देखी जानी चाहिए ताकि बतौर पाठक आप तक पहुंचाई जा रही सूचनाओं की सच्चाई से आप अवगत हो सकें। आगे बढ़ने से पहले जान लेते हैं कि आखिर यह वक्फ है क्या, और ये खबर पैदा कैसे हुई क्योंकि सरकार ने बिल लाने से पहले संसद को कोई पूर्व सूचना नहीं दी थी।
वक्फ का मतलब दान देना – किसी चल-अचल संपत्ति को इस्लाम को मानने वाले लोग धार्मिक, गरीबों की मदद (चैरिटेबल) कार्यों के लिए दान दे दें तो इस नेक काम को वक्फ कहा जाता है।
वक्फ बोर्ड के अधिकार – मुस्लिम समाज के बुजुर्गों ने अब तक जो संपत्तियां दान की हैं, उनका मैनेजमेंट हर राज्य का वक्फ बोर्ड करता है और इन संपत्तियों का मालिकाना हक अल्लाह को माना जाता है। वक्फ बोर्ड को प्रबंधन की शक्तियां साल 1950 मेेें लागू हुए वक्फ अधिनियम से मिलती है। इसके जरिए बोर्ड, वक्फ के रूप में दान में दी गईं व अधिसूचित संपत्तियों को नियंत्रित करता है। 2013 में वक्फ बोर्ड में संशोधन किए गए थे, अब की केंद्र सरकार का कहना है कि 2013 में हुए संशोधनों ने वक्फ को किसी भी संपत्ति को अपना बताने का अनावश्यक अधिकार दे दिया, जिसके चलते ये जब चाहे संपत्तियों पर हक जमा लेते हैं और इसी के चलते सरकार इस एक्ट में बदलाव लाना चाहती है।
अखबारी कवरेज – सोर्स को क्रेडिट दिए बिना ही लिखीं खबरें
पहले यह जान लीजिए कि वक्फ बोर्ड में बदलाव की ये खबर आखिर आई कैसे? दरअसल, समाचार एजेंसी आईएनएस ने सूत्रों के हवाले से चार अगस्त को खबर ब्रेक की कि वक्फ बोर्ड में संशोधन का विधेयक इसी संसद सत्र में आ सकता है। इसी के आधार पर सभी अखबारों ने पांच अगस्त के एडिशन में इस खबर को कवर किया है। ये बात अलग है कि आपको खबर पढ़ते हुए इस बात का अंदाजा लगाना मुश्किल होगा कि हिन्दी के प्रमुख अखबार (जागरण, अमर उजाला, हिन्दुस्तान) किस आधार पर यह खबर छाप रहे हैं।
दैनिक जागरण ने वक्फ बोर्ड एक्ट में संभावित बदलावों को पहली खबर बनाया है। इसी मामले पर अंदर फुल पेज कवरेज है और संपादकीय लिखकर भी दैनिक जागरण ने एनडीए सरकार के इस संभावित कदम को सराहा है। इस संपादकीय की हेडिंग है- ‘सुधार की नई पहल’ । इसी खबर को अमर उजाला ने भी पहले पन्ने पर प्रमुखता दी है, हेडिंग है — ‘किसी संपत्ति को अपना घोषित नहीं कर पाएंगे वक्फ बोर्ड’। दैनिक हिन्दुस्तान ने भी आसार जताते हुए पहले पन्ने पर स्टोरी लगाई है, जिसकी हेडिंग सधी हुई है – ‘वक्फ संशोधन विधेयक संसद में पेश करने की तैयारी’।
जागरण ने अपनी खबर में लिखा है कि केंद्र सरकार इस कानून को इसलिए ला रही है क्योंकि आम मुस्लिम व मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने इस कानून में सुधार की मांग उठाई थी। हालांकि अखबार अपनी बात को आधार देने के लिए एक भी मुस्लिम बुद्धिजीवी को कोट नहीं कर पाया है।
वक्फ बोर्ड से जुड़े आंकड़ों में फेर और अमर उजाला की भाषा
दैनिक जागरण ने लिखा है कि पूरे देश में 30 वक्फ बोर्ड से हर साल करीब दो सौ करोड़ राजस्व मिलने का अनुमान है। मूल रूप से वक्फ की 52 हजार संपत्तियां थीं जिसकी संख्या बढ़कर 8,72,292 हो गई है। अब अमर उजाला के आंकड़े और भाषा देखिए… लिखा है कि देश में तीस वक्फ बोर्ड हैं, इनका देश की 9.4 लाख एकड़ जमीन पर कब्जा है। अमर उजाला जमीन के स्वामित्व को कब्जा लिख रहा है, इस शब्द के इस्तेमाल के ही पता लगता है कि वक्फ की संपत्तियों को अखबार कब्जाई संपत्तियां बता रहा है। खबर में यह भी बताया है कि सबसे अमीर बोर्ड यूपी, दिल्ली और बिहार का है। कब्जा और अमीर जैसे शब्दों के भाव बता रहे हैं, अमर उजाला इस मामले में वक्फ को लेकर क्या राय रखता है, जबकि खबर में बतौर मीडिया संस्थान अपने विचार नहीं रखे जा सकते, इसके लिए संपादकीय का पन्ना आरक्षित होता है।
अंग्रेजी अखबारों ने वक्फ के विरोध को दी प्राथमिकता
इसी मामले पर अंग्रेजी अखबार The Indian Express की कवरेज में अहम बात ये है कि उन्होंने भले समाचार एजेंसी का नाम नहीं लिया (इन वायर एजेंसियों की सेवाएं खरीदी जाती हैं ) लेकिन अपनी खबर की शुरूआत इसी बात से की कि मीडिया रिपोर्टों के आधार पर वक्फ बोर्ड में बदलाव की संभावना है। साथ ही, इस अखबार ने यह भी स्पष्ट किया कि इन खबरों को उन्होंने सरकार से जुड़े अपने सूत्रों से भी वेरिफाई किया है कि संशोधन विधेयक इसी सत्र में लाया जाएगा।
एक्सप्रेस ने इस मामले में ऑल इंडिया मुस्लिम पसर्नल लॉ बोर्ड के जारी किए गए बयान को विस्तार से छापा है कि वक्फ को कमजोर करने से जुड़ा सरकार का कोई कदम उन्हें स्वीकार नहीं होगा। मुस्लिम पसर्नल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता डॉ. एसक्यूआर इलियास के हवाले से अखबार ने यह भी बताया कि वक्फ एक्ट व वक्फ जमीनों को भारतीय संविधान व शरियत एप्लीकेशन एक्ट – 1937 से संरक्षित है, इसमेेें सरकार कोई ऐसा बदलाव नहीं कर सकती जो इस अधिनियम की प्रकृति और वक्फ संपत्तियों की स्थितियों में बदलाव ला सके। Express की हेडिंग है — Amid talk of Bill to Amend wakf act, Muslim Personal law Board urges BJP allies, Opp leaders to oppose move. ( अनुवाद – वक्फ मेें बदलाव की चर्चा के बीच पर्सनल लॉ बोर्ड की बीजेपी सहयोगी दलों व विपक्षी नेतृत्व से विरोध की अपील )
The Hindu की बात करें तो इस अखबार ने पर्सनल लॉ बोर्ड व एआईएमआईएम के राष्ट्रीय अध्यक्ष नेता असदुद्दीन ओवैसी के बयानों के आधार पर खबर लगाई है। इसकी हेडिंग है— Any change in Wakf Act will not be tolerated, says Muslim Personal Law Board (अनुवाद – वक्फ एक्ट में कोई बदलाव सहन नहीं होगा)।
विपक्षी दलों ने जताया विरोध पर कांग्रेस चुप
छह अगस्त के एडिशन में हिन्दी के तीनों प्रमुख अखबार व अंग्रेजी में एक्सप्रेस ने इस मुद्दे पर फॉलोअप किया। हिन्दी अखबारों ने लिखा कि सच्चर कमेटी की सिफारिशों व संसद की वक्फ पर आई एक रिपोर्ट के आधार पर केंद्र सरकार अपने कदम का बचाव करेगी। दैनिक हिन्दुस्तान के मुताबिक, इन दोनों में ही वक्फ एक्ट में संशोधन की जरूरत पर बताई गई थी। बाद में यह बात सच भी साबित हुई जब संसद में किरेन रिजिजू ने इन दोनों बातों को सरकार के बचाव के तौर पर रखा। वहीं, इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा कि विपक्षी दल राजद, सपा, शिवसेना (उद्दव गुट) ने इसका विरोध करने से जुड़ा बयान दिया है जबकि अबतक कांग्रेस ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।
जब कोर्ट बोला– तो क्या ताजमहल को वक्फ का घोषित कर दें!
वक्फ पर अखबारी रिपोर्टिंग यहीं नहीं रुकी, सात अगस्त को दैनिक जागरण ने पहले पन्ने पर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की एक टिप्पणी को पहले पन्ने की एंकर स्टोरी बनाया। हेडिंग – क्या ताजमहल और लाल किला भी वक्फ प्रॉपर्टी घोषित कर दें..। मामला मुगल बादशाह की बहू की कब्र समेत तीन ऐतिहासिक इमारतों पर वक्फ के दावे से जुड़ा है जिसमें वक्फ का कहना है कि एएसआई ने उनकी जमीन पर अतिक्रमण कर लिया है। इस सुनवाई के दौरान अदालत ने ये टिप्पणी की है। जाहिर है कि कुछ मामलों में सरकारी जमीनों व वक्फ की जमीनों के बीच विवाद बने हुए हैं।
किरेन रिजिजू बोले- बिल ला रहे, दरगाह प्रतिनिधियों ने समर्थन किया
वक्फ में मामले पर द हिन्दू से अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि गरीब मुस्लिम समूहों की मांग के चलते सरकार वक्फ में बदलाव करने जा रही है। इस खबर में बताया गया है कि वक्फ एक्ट में बदलाव की जानकारी मिलने के बाद सोमवार को ऑल इंडिया सूफी सज्जादानशीन काउंसिल ने रिजिजू से मिलकर इसका समर्थन किया। इनका कहना है कि वक्फ की जमीनों में दरगाहें सबसे बड़ी पक्षकार हैं लेकिन इस एक्ट के चलते इनके साथ भेदभाव हो रहा है। साथ ही, शिया मुस्लिमों के कुछ समूहों ने भी सरकार के कदम का समर्थन किया है।
वक्फ बोर्ड में गैर मुस्लिम की एंट्री, डीएम को शक्तियां
द हिन्दू व इंडियन एक्सप्रेस ने आठ अगस्त को पहले पन्ने पर प्रस्तावित संशोधनों को लेकर खबर दी कि संसद में इस सप्ताह प्रस्तावित हो सकने वाले बिल में यह बदलाव भी प्रस्तावित है कि इसमें दो गैर मुस्लिम सदस्य शामिल होंगे व दो मुस्लिम महिला सदस्य भी होंगी। इसके अलावा, वक्फ जिन जमीनों को अपने होने का दावा करेगा, उनका सत्यापन डीएम करेगा न कि वक्फ ट्रिव्यूनल। इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी खबर में यह भी बताया है कि उपयोग के आधार पर वक्फ के प्रावधान को भी नया संशोधन खत्म कर देगा। इससे कई ऐसी जमीनों को लेकर समस्या आएगी जिनका वक्फनामा नहीं बना हुआ है और उन्हें मौखिक रूप से वक्फ किया गया था और अब वह धार्मिक उपयोग में आ रही है, जैसे- मस्जिद की जमीन। यह भी लिखा गया है कि यह कानून लागू होने के बाद जितने भी ‘विवादित’ मामले हैं, उनका सत्यापन दोबारा कराया जाएगा। यानी विशेषज्ञ मान रहे हैं कि जिन मामलों में वक्फनामा न हुआ हो, नए नियम के बाद उन्हें विवादित मानते हुए डीएम सत्यापित कर सकता है कि वह सरकारी जमीन मानी जाएगी या फिर वक्फ की।
बिल JCP को क्यों गया, हिन्दी अखबार चुप्पी साध गए
लोकसभा में आठ अगस्त को पेेश किए जाने के बाद आखिर वक्फ सुधार विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति (जेसीपी) के पास क्यों भेज दिया गया, इस बारे मेें नौ अगस्त के संस्करणों में दैनिक जागरण, अमर उजाला ने कारण स्पष्ट नहीं किया। उल्टा जागरण ने लिखा कि सरकार ने खुद इस विधेयक को जेसीपी के पास भेजकर संदेश दे दिया कि वह इसपर कोई विवाद नहीं चाहती। जागरण ने ठीक यही सराहना अपने संपादकीय पर भी की है। फ्रंट पेज की पहली खबर की हेडिंग काफी हल्की है – ‘वक्फ बोर्ड में सुधार का बिल पेश।’ कह सकते हैं कि इसे हल्का जानबूझकर रखा गया है क्योंकि सरकार समर्थित माना जाने वाला यह अखबार अपने पाठकोें को यह कैसे बताएगा कि जिस बिल को लेकर इतना माहौल बनाया गया था, उसे अब और मंथन के लिए ऐसी समिति के पास भेज दिया गया है जिसमें विपक्षी दल भी शामिल होंगे। पूरी खबर में अखबार ने कहीं नहीं लिखा कि एनडीए के सहयोगी दलों ने बिल को सशर्त समर्थन दिया है। अमर उजाला ने भी इसे पहले पन्ने की लीड बनाया जिसकी हेडिंग है – वक्फ संशोधन विधेयक लोकसभा में पेश, विचार के लिए जेसीपी भेजा।
हालांकि अमर उजाला की हेडिंग में ये बात शामिल है। हेडिंग – ‘वक्फ संशोधन विधेयक लोकसभा में पेश, विचार के लिए भेजा गया।’ दैनिक हिन्दुस्तान नेे इस खबर को विशेष महत्व न देते हुए एक कॉलम पहले पन्ने पर लगाया जिसकी हेडिंग है – वक्फ संशोधन बिल विरोध के बीच पेश। अंदर लिखा है कि इंडिया गठबंधन को इस मामले पर वाईएसआर कांग्रेस का साथ मिल गया जबकि जदयू व टीडीपी सरकार के साथ है। द हिन्दू ने भी अमर उजाला के एंगल पर ही खबर लगाई है लेकिन तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) के सांसद के हवाले से लिखा है कि ‘वे इस विधेयक का समर्थन करते हैं, अगर इसे विचार के लिए संसदीय समिति को भेज दिया जाता है।’ मतलब साफ है कि सहयोगी दल ने सशर्त समर्थन दिया है, इसी एंगल को एक्सप्रेस ने उठाते हुए पहले पन्ने पर ये खबर बनाई है – सहयोगी दलों के भी चिंता जताने के बाद सरकार ने संसदीय पैनल को भेजा वक्फ बिल (हिन्दी अनुवाद) । इसी दिन एक्सप्रेस ने वक्फ व इस अधिनियम के प्रस्तावित बदलावों पर आधे पन्ने का एक्सप्लेनर भी प्रकाशित किया है।
आज के अखबार
यूपी के अस्पताल में दस नवजात जलकर मर गए, जागरण-HT ने खबर की हत्या कर दी
आज के अखबार (17 नवंबर 2024) | नई दिल्ली
झांसी के महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज में शुक्रवार की रात पौने 11 बजे दस नवजातों की जलकर मौत होने की खबर को आज सभी अखबारों ने प्रमुखता से लगाया है। दैनिक भास्कर ने पीड़ितों के हवाले से लिखा है कि नवजातों को बचाने के बजाय अस्पताल कर्मी जान बचाकर भाग गए। इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा है कि 18 सीटों वाले एनआईसीयू में 54 बच्चों का इलाज चल रहा था जो कि क्षमता से बहुत अधिक हुआ। इतनी गंभीर घटना की कवरेज पर विस्तार से बात करने से पहले जान लीजिए कि दैनिक जागरण ने पहले पन्ने पर यह खबर ही नहीं लगाई है।
दरअसल, यह मेडिकल कॉलेज पूरे बुंदेलखंड क्षेत्र में सस्ते इलाज का एक प्रमुख केंद्र है जहां यूपी सीमा पर लगते मध्यप्रदेश के क्षेत्रों से भी मरीज इलाज के लिए आते रहते हैं। मीडिया रिपोर्टों के आधार पर बता दें कि आग से झुलसे 16 नवजात अभी भी जिंदगी की लड़ाई लड़ रहे हैं जिनका इलाज अस्पताल में जारी है। मामले के कारणों का पता लगाने के लिए राज्य सरकार ने उच्च स्तरीय कमेटी बना दी है।
भास्कर ने पूछे तीखे सवाल- मातम के बीच डिप्टी सीएम का स्वागत हुआ?
दैनिक भास्कर ने इस मामले में सबसे प्रभावशाली कवरेज की है जिसकी हेडिंग में ही सवाल पूछा गया है कि जब दस नवजातों की मौत पर शोक व्यक्त करने डिप्टी सीएम आए गए तो प्रशासन उनके सत्कार में क्यों लग गया, अस्पताल कर्मी सड़क पर चूना डालते देखे गए। जबकि अपने नवजातों को गंवाने वाले पीड़ित मां-बाप का कहना है कि शुक्रवार को आग लगने के बाद डॉक्टर व नर्स पीछे के रास्ते से जान बचाकर भाग गए, अगर उनके बच्चे एनआईसीयू की जगह उनके पास होते तो वे किसी भी तरह उन्हें जरूर बचा लेते। चूना डाले जाने की तस्वीर दैनिक जागरण ने अपनी कवरेज में भी लगाई है, उसे उसकी हेडिंग चापलूसी भरी है – ‘वीपीआईपी कल्चर पर डिप्टी सीएम नाराज हो गए’। दैनिक हिन्दुस्तान ने भी इस वाकये को डिप्टी सीएम के नाराज होने के एंगल पर ही उठाया है।
कई नवजातों को बचाने वाले एक पिता याकूब की कहानी
20 साल के पिता याकूब मंसूरी की कहानी टाइम्स ऑफ इंडिया ने पहले पन्ने पर लगाई है जो कई बच्चों के जीवनरक्षक साबित हुए। हालांकि अखबार लिखता है कि उनकी अपनी जुड़वा बेटियां ये बात कभी नहीं जान पाएंगी क्योंकि उनके पिता ने एनआईसीयू का शीशा तोड़कर कई नवजातों को बचाया और वे उनके लिए हीरो बन गए हैं। बदकिस्मती से ये दोनों बच्चियां उसी वॉर्ड में जल गईं। अखबार लिखता है कि याकूब एक ढेला चलाते हैं और अपनी पत्नी से साथ अस्पताल में निढाल पड़े यकीन नहीं कर पा रहे हैं कि उन्होंने अपनी दोनों बच्चियों को खो दिया। बहादुरी की यह कहानी आज के माहौल मेें कही जाना इसलिए भी जरूरी हो जाती है क्योंकि देखा गया है कि बीते कुछ समय से हर बड़ी घटना में कसूरवार ठहराने के लिए मुस्लिम एंगल ढूंढा जा रहा है।
मोदी-योगी को बुलाकर HT@100 का जश्न मानने में असल खबर ही मार दी
अपनी स्थापना के सौ साल पूरे कर रहे हिन्दुस्तान टाइम्स में 17 नवंबर का अखबार अपने जश्न पर समर्पित कर दिया जिसमें पीएम मोदी, सीएम योगी व अन्य नेता मौजूद थे। इतना ही नहीं, अखबार ने योगी शासन पर सवाल खड़े करने वाली झांसी की खबर को भी मार दिया। दस नवजात बच्चों के जलकर मरने की खबर की जगह अखबार ने पहले पन्ने में सबसे नीचे कोने पर खबर लिखी है – ‘झांसी के अस्पताल में आग की घटना पर जांच शुरू’। खबर पढ़ने से ऐसा लगता है कि किसी पुराने मामले पर जांच बैठा दी गई हो। जाहिर होता है खबर को फॉलोअप स्टोरी की तरह लिखने की चालाकी के जरिए अखबार ने खुद को अपने ‘मेहमानों’ की नाराजगी से बचा लिया। पहले पन्ने का पौन पेज अखबार ने इवेंट पर ही झोंक दिया है और नीचे के स्पेस में मणिपुर व झांसी जैसी बड़ी खबरों को सिंगल व छोटी दो कॉलम में समेटा है। जबकि ऐसे मौकों के लिए अखबारों में प्रैक्टिस रही है कि अतिरिक्त पेज लगाकर इनहाउस इवेंट की कवरेज छापी जाए जिससे असली खबरों के साथ स्पेस का समझौता न करना पड़े। इसी तर्ज पर इसी कंपनी के हिन्दी अखबार दैनिक हिन्दुस्तान ने भी पहले पन्ने पर बेहद छोटी कवरेज की है।
अमर उजाला व हिन्दुस्तान का दावा – छह शिशु अब भी लापता पर ब्यौरा गायब
अमर उजाला ने पहले पन्ने पर सवाल खड़े करते हुए छह नवजातों का अब तक पता न लग पाने की खबर लगाई है। ठीक इसी तरह दैनिक हिन्दुस्तान की लगाई अंदर के पेज की खबर की हेडिंग भी लगभग यही है। पर इतनी गंभीर जानकारी हेडिंग में देते हुए दोनों अखबारों ने इस दावे का विस्तृत ब्यौरा ही नहीं दिया। जबकि बच्चों के लापता होने की ऐसी कोई जानकारी या दावा अन्य किसी अखबार ने नहीं किया है।
दैनिक जागरण ने पहले पन्ने पर खबर ही नहीं लगाई। दूसरे पन्ने पर की गई कवरेज की हेडिंग है – ‘झांसी मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन कन्सन्ट्रेटर में हुई स्पार्किंग से लगी थी आग’। इसी एंगल पर अखिलेश यादव ने भी सरकार को घेरा है। कुछ अखबारों ने अखिलेश तो कुछ ने राहुल गांधी का बयान कवरेज में शामिल किया है। सभी ने बताया है कि इस मामले में राज्य सरकार पांच-पांच लाख व केंद्र सरकार दो-दो लाख रुपये मृत नवजातों के परिजनों को देगी जबकि घायल नवजातों के परिजनों को 50-50 हजार रुपये की मदद दी जाएगी।
आज के अखबार
जलवायु परिवर्तन से निपटने के सम्मेलन में क्या सब पटरी पर है ?
आज के अखबार (16 नवंबर) | नई दिल्ली
29वें जलवायु सम्मेलन (COP29) के समापन में अभी एक सप्ताह से ज्यादा समय बचा हुआ है पर अभी से कई देशों के बीच के मतभेद सामने आ रहे हैं। अर्जेंटीना ने इस सम्मेलन से खुद को अलग कर लिया और संभावना जताई जा रही है कि वह पेरिस संधि से भी खुद को अलग कर सकता है। गौरतलब है कि यहां के प्रमुख इस सप्ताह ट्रंप से मिलने जा रहे हैं। दूसरी ओर, फ्रांस के मंत्री ने भी अपना दौरा स्थगित कर दिया क्योंकि वह सम्मेलन के आयोजक देश अजरबाइजान से नाराज है।
इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए विकसित देशों की ओर से मिलने वाले अनुदान को बढ़ाने की विकासशील देशों की मांग पर सहमति नहीं बन पाई है और ट्रंप की जीत के बीच इसपर आम सहमति न बन पाने की आशंका और गहरा गई है। अब विकसित व विकासशील दोनों के बीच तनाव की एक नई वजह यूरोपीय संघ की नई व्यापार नीति बन गई है, जिसमेें कार्बन उत्सर्जन के आधार पर आयातित वस्तुओं पर अतिरिक्त कर लिया जा रहा है।
विकासशील देशोें को मिलने वाले नए जलवायु वित्त पर सबकी नजर
इस साल हो रहे जलवायु सम्मेलन कॉप-29 को इसलिए अहम माना जा रहा है क्योंकि इसमें सभी पक्षकारों के बीच ‘न्यू कलेक्टिव क्वांटिफाइड गोल’ (एनसीक्यूजी) नाम के एक नए जलवायु वित्त से जुड़े समझौते पर सहमति बनने की उम्मीद है।
यह समझौता 2009 में विकसित देशों द्वारा किए उस वादे की जगह लेगा जिसमें जलवायु परिवर्तन के खिलाफ जंग में विकासशील देशों की मदद करने के लिए सालाना 10,000 करोड़ डॉलर दिए जाने पर प्रतिबद्धता जताई गई थी। हालांकि यह वादा महज एक बार 2022 में पूरा किया गया है और वह भी डेडलाइन पूरी होने के दो साल बाद। विशेषज्ञों का अनुमान है कि अब विकासशील देशों के लिए जलवायु परिवर्तन संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए खरबों डॉलर वित्तीय मदद की जरूरत होगी। इस मामले में विकसित देशों ने नई मांग उठानी शुरू कर दी है कि वित्तीय मदद करने वाले देशों के समूह में अब अमीर देश जैसे चीन, कतर, सऊदी को भी जोड़ा जाए। इस बात का विकासशील देश सख्ती से विरोध कर रहे हैं। अध्ययनों से पता चला है कि वैश्विक जीडीपी के महज एक फीसदी हिस्से से विकासशील देशों की जलवायु संबंधी मौजूदा आवश्यकताओं को पूरा किया जा सकता है।
भारत ने 1.3 ट्रिलियन डॉलर सालाना जलवायु वित्त की मांग रखी
बाकू में चल रहे सम्मेलन के दौरान ‘न्यू कलेक्टिव क्वांटिफाइड गोल’ का निर्धारित किया जाएगा जो कि 2025 से लागू होगा। इसके लिए सम्मेलन के पहले दिन रखे गए मसौदे को जी-77 और चीन ब्लॉक (134 विकासशील देशों का समूह) ने ठोस न मानते हुए खारिज कर दिया था। फिर दोबारा आए मसौदे 1.3 ट्रिलियन डॉलर सालाना जलवायु वित्त की मांग की। यह मांग समान विचारधारा वाले विकासशील देशों की तरफ से भारत ने रखी। गौरतलब है कि सम्मेलन में अब तक सुलभता, पारदर्शिता और मानवाधिकार जैसे मुद्दों पर प्रगति हुई लेकिन वित्त की कुल राशि, स्रोत और योगदानकर्ताओं के चयन जैसे मुख्य विषयों पर वार्ता लंबित है।
कार्बन टैक्स पर यूरोपीय संघ व भारत-चीन में ठनी
कॉप29 में विवाद का एक अन्य प्रमुख मुद्दा यूरोपीय संघ का कार्बन टैक्स बन गया है। भारत व चीन ने जलवायु सम्मेलन के दौरान इस मुद्दे पर वार्ता की मांग रखी जिससे यूरोपीय संघ ने यह कहकर इनकार कर दिया कि यह मंच व्यापार पर बात करने का नहीं है। इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, इस पर चीन-भारत की ओर से बीते शुक्रवार को कहा गया कि विश्व व्यापार संघ के मंच पर भी यूरोपीय संघ ने इस पर बात नहीं की थी, फिर आखिर वह इस पर कहां बात करना चाहता है?
दरअसल, यूरोपीय संघ ने पिछले साल एक नीति बनाई है जिसका नाम ‘कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज़्म’ (CBAM) है। इसके तहत 2026 से यूरोपीय संघ में आयात होने वाले उन उत्पादों पर कार्बन टैक्स लगाएगा, जिसके निर्माण में ज्यादा ऊर्जा खर्च होती है। यह टैक्स उन उत्पादों के उत्पादन के दौरान हुए कार्बन उत्सर्जन पर आधारित होता है।
मेजबान देश के प्रमुख की हो रही आलोचना
अजरबाइजान की राजधानी बाकू में हो रहे जलवायु सम्मेलन में इस देश के राष्ट्रपति इल्हाम अलीयेव की ओर से दिए गए भाषणों की खासी आलोचना हो रही है। अमेरिकी समाचार वेबसाइट सीएनएन ने कॉप29 के ‘बेपटरी’ होने पर एक खबर लिखी है, जिसकी हेडिंग इस ओर इशारा करती है। हेडिंग है – ‘जलवायु नेता चिंता में थे कि ट्रंप वार्ता को पटरी से उतार देंगे पर उन्हें नहीं पता था कि उनका मेजबान ही विध्वंसकारी साबित होगा।’ दरअसल सम्मेलन में दिए भाषण के दौरान राष्ट्रपति अलीयेव ने फ्रांस और नीदरलैंड्स पर आरोप मानवाधिकार हनन के आरोप लगाए, जिसके बाद फ्रांस ने सम्मेलन में आने का दौरा रद्द कर दिया हालांकि नीदरलैंड्स इसमें शामिल हुआ है।
अपने पहले दिन के भाषण के लिए भी अलीयेव की आलोचना हुई थी जिसमें उन्होंने पश्चिमी देशों, एनजीओ व अंतरराष्ट्रीय मीडिया को पाखंडी बताया था। साथ ही, भाषण में उन्होंने अपने देश के तेल व गैस के भंडार को ‘भगवान का उपहार’ बताते हुए अपने उस रूख का बचाव किया था जिसमें वे जीवाश्म ईंधन के बचाव व प्रसार का समर्थन करते हैं। अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण संगठन ‘350 डॉट ओआरजी’ के विश्लेषण के अनुसार, अलीयेव ने अपने तीन-चौथाई से अधिक भाषणों में जीवाश्म ईंधन का बचाव या प्रचार किया।
आज के अखबार
एक्सप्रेस की खोजी रिपोर्ट – ‘यूपी में सरकारी पदों पर नौकरी पाने वाला हर पांचवां बड़े ओहदे वाले का रिश्तेदार’
आज सभी अखबारों ने यूपी में प्रदर्शनकारी विद्यार्थियों की मांग मानते हुए PCS (प्रारंभिक) की परीक्षा को एक ही पारी में करवाए जाने की खबर प्रमुखता से छापा है। पर बात इंडियन एक्सप्रेस की करें तो पहले पन्ने पर खोजी खबर लगाई है कि रिव्यू व असिस्टेंट रिव्यू ऑफिसर (आरओ, एआओ) व जूनियर पदों के लिए 2020-21 में हुईं परीक्षाओं में पास होने वाले हर पांचवें अभ्यार्थी का सीधा कनेक्शन यूपी सरकार में मौजूद बड़े सरकारी अफसर से है। अखबार ने लिखा है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इसे चौंकाने वाला घोटाला कहा है और कहा कि इसकी सीबीआई से जांच होनी चाहिए।
विधानसभा अध्यक्ष के पीआरओ, सचिवालय प्रभारी के रिश्तेदारों को नौकरी मिली : Indian Express
द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, उत्तर प्रदेश विधानसभा व विधान परिषद में 186 प्रशासनिक पदों पर होने वाली नियुक्तियों के लिए 2020-21 में दो राउंड में परीक्षाएं हुई थीं, जिसमें अनुमानित रूप से ढाई लाख अभ्यार्थी शामिल हुए थे। अखबार का दावा है कि इस परीक्षा के जरिए नियुक्ति पाने वाले हर पांच में से एक अभ्यार्थी वीवीआईपी अधिकारी या नेताओं के रिश्तेदार हैं और यह भी दावा है कि इनमें से कई अधिकारियों की निगरानी मेें ही ये परीक्षा आयोजित हुई थी। नौकरी पाने वालों के कनेक्शन कितने ऊंचे ओहदे के अफसरों से हैं, इसे इस उदाहरण से समझा जा सकता है- ”अखबार का दावा है कि नियुक्ति पाने वालों में तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष के पीआरओ व उनके भाई हैं। एक अन्य नियुक्ति विधानसभा परिषद सचिवालय प्रभारी के बेटे, विधानसभा सचिवालय प्रभारी के चार रिश्तेदारों की हुई हैं।”
अखबार ने इन आरोपियों से संपर्क किया जिसमें कई ने मामला सुप्रीम कोर्ट में बताकर प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया जबकि कुछ ने कहा कि उन्होंने अपनी प्रतिभा पर नौकरी पाई। दरअसल इस मामले का खुलासा इस परीक्षा में असफल रहे तीन अभ्यार्थियों के केस दायर करने के बाद हुआ। इसी सुनवाई में उच्च अदालत ने कड़ी टिप्पणी की और सीबीआई से जांच करवाने को कहा। हालांकि विधान परिषद की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच पर रोक लगा दी और मामले की अगली सुनवाई 6 जनवरी, 2025 को होगी। इस मामले में दो निजी फर्मों को भी आरोपी बनाया गया है जिन्हें परीक्षा करवाने का ठेका मिला था।
प्रयागराज विद्यार्थी प्रदर्शन : हिन्दी अखबारों के पहले पन्ने से खबर गायब, अंदर छापी योगी की वाहवाही की
अब बात करें यूपी में हाल में आरओ/एआरओ की परीक्षा को दो पालियों में करवाए जाने के विरोध प्रदर्शन और इस पर सरकार के पीछे हटने पर हिन्दी अखबारोें की कवरेज की। विद्यार्थियों के चार दिन चले प्रदर्शन को स्थानीय पुलिस ने बल प्रयोग से कुचलने की कोशिश की मगर वे नहीं झुके और प्रदर्शन के चौथे दिन की शाम को मुख्यमंत्री योगी को उनकी मांगें माननी पड़ीं। इस बात को अमर उजाला ने डायल्यूट करते हुए लिखा है कि ‘मुख्यमंत्री के हस्तक्षेप पर फैसला लिया गया’। अखबार ने सरकार के मांगों पर झुकने की खबर को पहले पन्ने पर जरा सी भी जगह न देते हुए पेज 14 पर लगाया है। जिसमेें एक अहम जानकारी को बहुत ही छोटा सा छापा है कि गुरुवार की सुबह कुछ प्रदर्शनकारी छात्रों को पुलिस उठा ले गई, जिसका विरोध कर रहीं कई छात्राएं भी घायल हुईं। समझा जा सकता है कि इस तरह प्रदर्शन और भड़क गया और अंतता: सरकार को झुकना पड़ा। दैनिक हिन्दुस्तान ने खबर पहले पन्ने पर तो ली पर सरकार के झुकने की खबर को यूं लिखा है कि सरकार ने ऐतिहासिक फैसला ले लिया हो, खबर की पहली ही पंक्ति कुछ यूं है – ‘मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पहल पर यूपीपीएससी ने प्रदर्शनकारियों की मांगों को ध्यान में रखते हुए बड़ा निर्णय लिया है।’ अमर उजाला की तरह दैनिक जागरण ने भी इस अहम खबर को अपने दो-दो मुख्य पृष्ठों पर लगाने लायक नहीं माना, हालांकि अपेक्षा के विपरीत संतुलित खबर अंदर के पेज 17 पर लगाई है। हेडिंग है – झुका आयोग, एक ही दिन होगी यूपीपीएससी-प्री परीक्षा।
आंदोलन कुचलने के लिए आधी मांग मानी
अंग्रेजी अखबार द हिन्दू ने पहले पन्ने पर खबर लगाई जिसमें फैसले को ज्यादा स्पष्टता से लिखा है कि लोक सेवा आयोग ने पीसीएस – प्रिलिम्स की परीक्षा एक दिन की एक पाली में करवाने को तो राजी हो गई जो कि पुराना पैटर्न है, मगर आरओ/एआरओ की परीक्षा को भी एक ही पाली में करवाने के बजाय टाल दिया और इस मांग की समीक्षा के लिए समिति बनाने की बात कही। यानी प्रदर्शनकारियों की आधी मांग ही मानी गई। प्रदर्शनकारियों के हवाले से अखबार ने लिखा है कि ऐसा करके सरकार ने प्रदर्शन कुचलने की कोशिश की है पर हम अपनी मांगों के पूरा होने तक प्रदर्शन करते रहेंगे। इस मामले में अखिलेश यादव ने कहा है कि उपचुनाव में हार को देखते हुए दवाब में आकर सरकार झुकी है।
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Shivangi
August 10, 2024 at 5:22 pm
शुरूआत में भले लगा हो कि नरेंद्र मोदी पुराने तरीके से ही सरकार चलाते रहेंगे लेकिन जैसे-जैसे वे पुराने तरीकों वाले कदम आगे बढ़ा रहे हैं, उनके सहयोगी दलों की नाराजगी के चलते उन्हें कदम पीछे खींचने पड़ रहे हैं। अच्छा है कि अब देश में विपक्ष भी है और सत्ता के सहयोगी दलों की असहमतियां भी ये भूमिका निभा दे रही हैं।
Ricky Singh
August 10, 2024 at 6:42 pm
आज का अखबार का कॉन्सेप्ट बढ़िया है। मुद्दे को अच्छे से समझाया गया है। शानदार। बोलते पन्ने टीम को बधाई।