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जनहित में जारी

स्टडी : भारतीय शहरों समेत पूरी दुनिया में गर्म दिन 25% बढ़े

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भारत में गर्म दोपहरी का एक दृश्य (सांकेतिक फोटो, साभार इंटरनेट)
  • इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर एनवायरनमेंट एंड डेवलपमेंट के अध्ययन के परिणाम जारी
  • 35 साल पहले के मुकाबले अब 25% ज्यादा ऐसे दिनों का सामना करना पड़ रहा जो अत्याधिक गर्म
नई दिल्ली |
बीते 35 वर्षों में हर साल सबसे ज्यादा गर्म रहने वाले दिनों की संख्या भारत समेत पूरी दुनिया में 25% बढ़ गई है। यह जलवायु संकट के शहरी प्रभाव को उजागर करती है।
इस स्थिति का पता 30 सितंबर को जारी हुई एक स्टडी से हुआ है, जिसमें दिल्ली समेत 43 देशों की राजधानियों के सबसे गर्म दिनों का अध्ययन किया गया।  अध्ययन में दिल्ली का उल्लेख प्रमुख राजधानियों के रूप में है, जहां गर्म दिनों की संख्या में वैश्विक औसत से अधिक वृद्धि हुई।
रोम और बीजिंग में यह संख्या दोगुनी, मनीला में तिगुनी हो गई।
इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर एनवायरनमेंट एंड डेवलपमेंट (IIED) के विश्लेषण से पता चला है कि 43 राजधानियों में 35°C से ऊपर के दिनों की संख्या 1994-2003 में औसतन 1,062 प्रति वर्ष से बढ़कर 2015-2024 में 1,335 हो गई।
“ग्लोबल तापमान सरकारों की उम्मीद से तेज बढ़ा। अनुकूलन विफल रहा तो करोड़ों असहज और खतरनाक स्थितियों में जीने को मजबूर होंगे।” – अन्ना वाल्निकी, IIED शोधकर्ता  
भारत के शहरों में गर्मी का बढ़ता अस
IIED के विश्लेषण में 43 राजधानियों का अध्ययन किया गया, जिसमें दिल्ली शामिल है। 1994-2003 में औसतन 1,062 दिनों में 35°C से ऊपर तापमान था, जो 2015-2024 में 1,335 दिनों तक पहुंच गया—25% की वृद्धि। भारत के संदर्भ में:
  • दिल्ली:  2024 में दिल्ली ने 50+ दिन 40°C+ रिकॉर्ड किया, जो 1990 के दशक के मुकाबले दोगुना है।
  • अन्य भारतीय शहर: मुंबई, चेन्नई, कोलकाता और बैंगलोर जैसे शहरों में भी 20-30% वृद्धि देखी गई।
  • मुंबई में 35°C+ दिनों की संख्या 15 से बढ़कर 25 हो गई, जबकि चेन्नई में हीटवेव से 2024 में 1,000+ मौतें हुईं।
भारत पर असर –  गरीबों और स्लम निवासियों पर सबसे ज्यादा असर, जहां निम्न गुणवत्ता वाली हाउसिंग से खतरा बढ़ता है। IIED शोधकर्ता अन्ना वाल्निकी ने कहा, “ग्लोबल साउथ के निम्न आय वाले समुदायों में प्रभाव बदतर होगा, जहां हाउसिंग खराब है।”
जीवाश्म ईंधन से दुनिया गर्म हुई
अध्ययन से पता लगा कि जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन से वैश्विक तापमान बढ़ा है। जो पेरिस समझौते के 1.5°C लक्ष्य से 45% कमी की जरूरत के बावजूद बढ़ रहा है। शहरों में “हीट आइलैंड” प्रभाव से तापमान 2-5°C अधिक बढ़ा।

बोलते पन्ने.. एक कोशिश है क्लिष्ट सूचनाओं से जनहित की जानकारियां निकालकर हिन्दी के दर्शकों की आवाज बनने का। सरकारी कागजों के गुलाबी मौसम से लेकर जमीन की काली हकीकत की बात भी होगी ग्राउंड रिपोर्टिंग के जरिए। साथ ही, बोलते पन्ने जरिए बनेगा .. आपकी उन भावनाओं को आवाज देने का, जो अक्सर डायरी के पन्नों में दबी रह जाती हैं।

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नेपाल भूस्खलन से रौद्र हुई कोसी, बिहार के 4 जिलों में बाढ़, लोग घर छोड़ने को मजबूर

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बिहार में कोसी नदी के चलते कई जिलों में बाढ़
  • नेपाल में सप्तकोशी नदी का जलस्तर बढ़ने से बिहार के सुपौल बैैराज के सभी 56 फाटक खोले गए।
  • सीमावर्ती जिले अररिया के निचले इलाकों में पानी भरा; सहरसा और शिवहर में भी बाढ़ के हालात।

 

सुपौल/अररिया/सहरसा/शिवहर |

नेपाल में तीन दिन से जारी भारी बारिश के चलते लैंडस्लाइड (भूस्खलन) हो गया, जिसके बाद वहां से भारत की ओर बहने वाली ‘सप्तकोशी नदी’ ने रौद्र रूप ले लिया। जिससे बिहार के नेपाली सीमा वाले 4 जिलों में बाढ़ आ गई है। भारत में प्रवेश के बाद यह नदी ‘कोसी’ के रूप में जानी जाती है, जिसने इस बार फिर बिहार के सीमावर्ती जिलों में ‘शोक’ ला दिया है।

सुपौल जिले में कोसी बैराज के सभी 56 फाटक खोल दिए गए, जिससे निचले इलाके डूब गए हैं। अररिया, सहरसा और शिवहर जिले में भी कई ब्लॉक में बाढ़ आ गई है। जिससे निचले इलाकों में रहने वाले लोगों को वहां से हटाया जा रहा है। किसानों की फसलें तबाह हो गई हैं। कई जगहों पर कच्चे मकान टूटने, सड़कें और बिजली के पोल बहने तक की खबरें हैं, जिससे प्रशासन हाई-अलर्ट पर है और राहत में जुटा है।


सुपौल : 5 लाख क्यूसेक पानी छोड़ा, जिला डूबा 

राजीव रंजन |  सुपौल में कोसी नदी के उफान ने एक बार फिर तटबंध के भीतरी इलाकों में तबाही मचानी शुरू कर दी है। नदी का जलस्तर 4 अक्तूबर से बढ़ना शुरु हुआ और अगले दिन रविवार को कोसी बैराज के सभी 56 फाटक खोल दिए गए और 5,10,960 क्यूसेक पानी छोड़ा गया।

भारी तादाद में पानी छोड़े जाने के तटबंध के भीतर बसे छह प्रखंडों- बसंतपुर, निर्मली, मरौना, सरायगढ़-भपटियाही, किशनपुर और सुपौल सदर के कई गांवों में बाढ़ का पानी तेजी से फैलने लगा है।

करीब 500 से अधिक घरों में पानी घुस चुका है, जिससे लोग अपने घरों को छोड़ ऊंचे स्थानों की ओर शरण ले रहे हैं। माइक पर सतर्क रहने की जानकारी लगातार दी जा रही है और लोगों को अफवाह से दूर रहने को कहा जा रहा है।

स्थिति की गंभीरता को देखते हुए जिलाधिकारी सावन कुमार ने पूरे प्रशासनिक तंत्र को अलर्ट पर रखा है।


 

अररिया : बकरा व नूना नदी उफनाईं, सिकटी में बाढ़

 हमारे संवाददाता | पड़ोसी नेपाल के जल ग्रहण क्षेत्र में हो रही तेज बारिश के चलते सीमा से सटे अररिया के सिकटी ब्लॉक के निचले इलाके डूब गए हैं। जिले की बकरा व नूना नदी उफनाने लगी हैं, जिससे कई गांवों में बाढ़ आ गई है।  साथ ही जिले में लगातार हो रही बारिश से स्थिति और गंभीर बन गई है।

अररिया में तेज बारिश से NH की एक लेन पर बीस फीट गहरा गड्डा हो गया।

अररिया में बारिश से NH की एक लेन पर बीस फीट गहरा गड्डा हो जाने से 18 टायर ट्रक पलट गया। (फोटो- टीम बोलते पन्ने)

बारिश के चलते नरपतगंज में अररिया-मुजफ्फरपुर NH-27 की एक लेन पर 20 फीट गहरा गड्‍़डा हो जाने से वहां से गुजर रहा 18 चक्का एक ट्रक पलट गया।

बारिश और तूफान से नरपतगंज, फरही, कोशिकापुर, बथनाहा आदि इलाकों में दर्जनों कच्चे घर उजड़ गए। बिजली के खंभे टूट गए।

पुलिस थाने में भी पानी भर गया।

पुलिस थाने में भी पानी भर गया।

सिकटी प्रखंड में नूना नदी दूसरी बार उफना गई है, जिससे  बांसबाडी, सिंघिया, कचना, औलाबाड़ी गांव के दर्जनों घरों में बाढ़ का पानी घुस गया है। कई सड़के कट गईं। साथ ही नूना नदी के तेज बहाव से घोडा चौक के पास ग्रामीणों के बनाए तटबंध को भी खतरे में ला दिया है।

 


 

सहरसा | चार प्रखंडों में बाढ़ का खतरा, आगाह किया जा रहा 

हमारे संवाददाता | कोसी बैराज से लगातार पानी छोड़े जाने के बाद सहरसा के पूर्वी कोसी तटबंध के भीतर चार प्रखंडों में बाढ़ का खतरा है।

नौहट्टा, महिषी, सिमरी बख्तियारपुर और सलखुआ प्रखंड के निचले इलाके में पानी बढ़ने लगा है। माना जा रहा है कि रविवार रात तक बाढ़ की स्थिति बन सकती है।

इसको लेकर प्रखंड विकास पदाधिकारी और अंचलाधिकारी को अलर्ट पर हैं।

पूर्वी कोसी तटबंध के भीतर नौहट्टा प्रखंड के केदली पंचायत में माइकिंग के जरिए लोगों को अलर्ट किया जा रहा है।

निचले इलाके में बसे लोगों को घर खाली करके ऊंची जगहों पर शरण लेने के लिए अपील की जा रही है।


 

शिवहर : बागमती नदी लाल निशान के पार, पुरनहिया प्रखंड की बिजली गुल

हमारे संवाददाता | एक ओर कोसी नदी से बिहार के कई जिलों में बाढ़ आ गई तो दूसरी ओर, नेपाल से बहने वाली एक और नदी बागमती के चलते शिवहर जिले में निचले इलाके डूब गए हैं।

नेपाल व शिवहर के इलाकों में लगातार चार दिनों से हो रही बारिश के चलते इस साल पहली बार नदी का जलस्तर लाल निशान के ऊपर चला गया है।

4 अक्तूबर की देर रात जलस्तर में वृद्धि शुरू हुई और सुबह होते-होते बाढ़ आ गई। जिसके चलते जिले के तरियानी, पिपराही व पुरनहिया प्रखंड के निचले इलाकों में घरों में पानी आ गया।

खेतों में लगी फसलें बाढ़ के पानी में डूब गई हैं। नदी की धाराएं जगह-जगह कटाव कर रही है।

पिपराही पुल के पास जारी कटाव में पांच विद्युत पोल टूट गए जिससे पूरे पुरनहिया प्रखंड की बिजली ठप हो गई है।

पुरनहिया प्रखंड की बराही वार्ड 11 में बाढ़ का पानी घरों में घुसने से प्रशासनिक टीमों ने स्थानीय लोगों को रेसक्यू करना शुरू किया है। इधर, बाढ़ को लेकर जिला प्रशासन और बागमती प्रमंडल की टीमें अलर्ट है।


 

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कफ सीरप से 11 बच्चों की मौत: केंद्र ने बैन लगाया, देरी पर सवाल

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कफ सीरप से मौत के मामले मध्यप्रदेश व राजस्थान में मिले हैं। (फोटो प्रतीकात्मक)
कफ सीरप से मौत के मामले मध्यप्रदेश व राजस्थान में मिले हैं। (फोटो प्रतीकात्मक)
  • स्वास्थ्य मंत्रालय ने शुक्रवार को अधिसूचना जारी कर दो साल से कम उम्र के बच्चों के लिए कफ सीरप पर प्रतिबंध लगा दिया।

नई दिल्ली|

मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में नौ बच्चों और राजस्थान में दो बच्चों की कफ सीरप से मौतों के दो दिन बाद केंद्र सरकार ने इस दवा को छोटे बच्चों के लिए है।

आज स्वास्थ्य मंत्रालय ने दो साल से कम उम्र के बच्चों के लिए कफ सीरप के उपयोग पर तत्काल प्रभाव से बैन लगा दिया है।

इससे पहले 1 अक्टूबर को छिंदवाड़ा में 9 बच्चों की मौत की पुष्टि कफ सीरप के चलते होने की पुष्टि हुई।

यह कदम तब उठाया गया जब जांच में सामने आया कि कुछ सीरप में जहरीले पदार्थ मौजूद थे, जिससे किडनी खराब होने की शिकायत हुई।

हालांकि, इस देरी पर सियासी घमासान शुरू हो गया है।

केंद्र का फैसला : दो साल से छोटे बच्चों को न दें कफ सीरप

स्वास्थ्य मंत्रालय ने 3 अक्टूबर 2025 को अधिसूचना जारी कर दो साल से कम उम्र के बच्चों के लिए कफ सीरप (जैसे क्लोरफेनिरामाइन मेलिएट और फेनाइलीफ्रिन हाइड्रोक्लोराइड) पर प्रतिबंध लगा दिया।

 

छिंदवाड़ा में नौ बच्चों की सीरप से मौत हुई थी

मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में यह घटना परासिया ब्लॉक के इलाकों में हुई, जहां सर्दी, बुखार और जुकाम से पीड़ित छोटे बच्चों की हालत अचानक बिगड़ गई। पिछले एक महीने में कुल 6 से 9 बच्चों की मौत हो चुकी है, जिनकी उम्र 5 साल से कम थी। पहला संदिग्ध मामला 24 अगस्त को सामने आया, जबकि पहली मौत 7 सितंबर को दर्ज की गई। बच्चे पहले सामान्य लग रहे थे, लेकिन कुछ दिनों बाद पेशाब बंद हो गया और किडनी फेलियर हो गया। कई बच्चों को छिंदवाड़ा और नागपुर के अस्पतालों में भर्ती कराया गया, लेकिन इलाज के बावजूद वे बच नहीं सके।

न्यूज़18 के अनुसार, मध्यप्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री ने स्वीकार किया कि सीरप में गड़बड़ी थी, लेकिन कांग्रेस के कमलनाथ ने उन्हें निशाना बनाया और कहा कि ‘अस्पताल यमदूतों का घर बन गया है।’

 

राजस्थान में कफ सीरप से दो बच्चों की मौत
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, राजस्थान में कफ सीरप से जुड़ी घटनाओं में कम से कम 2 बच्चों की मौत हुई, जिसमें भरतपुर और सीकर शामिल हैं।

सीकर में 5 साल के नितिश और भरतपुर में एक 2 साल के बच्चे की मौत 22 सितंबर और 30 सितंबर 2025 के बीच हुई। जांच में पाया गया कि इस्तेमाल किए गए कफ सीरप में संदिग्ध पदार्थ हो सकते हैं।

 

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भारत के कुत्ते-बिल्ली दुनिया में सबसे ज्यादा बेसहारा!

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भारत में बेघर कुत्ते सबसे ज्यादा (साभार- इंटरनेट)

नई दिल्ली |

भारत में सबसे ज्यादा बेघर कुत्ते व बिल्लियां हैं जो सड़कों पर घूमते दिख जाते हैं। हाल के दिनों में बेसहारा कुत्तों के प्रति आम लोगों में भय और घृणा काफी बढ़ने के मामले सामने आए हैं। जिसके चलते कुत्तों को भोजन कराने वाले पशु कार्यकर्ताओं को काफी आलोचना व उत्पीड़न झेलना पड़ रहा है। इन घटनाओं का मूल कारण भारत में पालतू पशुओं के प्रति सरकारों व आम लोगों का गैर-जिम्मेदाराना रुख है, ऐसा एक अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट से पता लगता है।

 

भारतीय नस्ल के कुत्ते। (सांकेतिक तस्वीर)

भारतीय नस्ल के कुत्ते। (सांकेतिक तस्वीर)

 

पालतू पशुओं की देखरेख में भारत सबसे नीचे

‘कम्युनिटी एनिमल’ कहे जाने वाले कुत्तों को आखिर आम लोग सड़कों से भी क्यों हटाना चाहते हैं जबकि उन्हें अपने घरों में जगह देने को राजी नहीं है? इस सवाल को समझने के लिए हमें 20 देशों में पालतू पशुओं की स्थिति पर आई एक रिपोर्ट के बारे में जानना होगा। रिपोर्ट में बताया गया कि भारत दुनिया में सबसे ज्यादा लावारिस छोड़ दिए गए जानवरों वाला देश है। 2024 की “स्टेट ऑफ पेट होमलेसनेस इंडेक्स” रिपोर्ट के अनुसार, 20 देशों के अध्ययन में भारत में बेघर बिल्लियों और कुत्तों का प्रतिशत सबसे अधिक है। इस रिपोर्ट को मार्स पेटकेयर ने जारी किया जो कि दुनियाभर में दो हजार अधिक पालतू जानवरों के अस्पतालों और नैदानिक ​​सेवाओं के एक अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क के माध्यम से अग्रणी पशु चिकित्सा स्वास्थ्य प्रदाता का काम करती है। 

देश के 69% पालतू जानवर बेघर  
भारत में पालतू जानवरों की आबादी का 69.3% बेघर है, जिसमें लगभग 7 करोड़ जानवर सड़कों या आश्रयों में रहते हैं। इससे पहले 2021 में जारी इसी इंडेक्स में बताया गया था कि भारत का स्कोर नौ देशों में सबसे कम था, जो 10 में से 2.4 था, जहाँ 10 का अर्थ है पालतू जानवरों का कोई बेघर न होना।
  • पालतू जानवर को मालिकों की ओर से छोड़ दिए जाने की दर बहुत ज्यादा है। 2021 में यह दर 50% थी जबकि वैश्विक औसत 28% था।
  • भारत में राष्ट्रीय पालतू पंजीकरण काफी कम है और पशुओं को गोद लेने की नीतियां पुख्ता न होने से अनियंत्रित प्रजनन होता है।
  • देश में प्रति व्यक्ति पशु चिकित्सकों की कम संख्या काफी कम है, सस्ती पशु चिकित्सा देखभाल न होने से जानवरों के प्रति सार्वजनिक भय है।
  • कचरा निपटान की समस्या के चलते सड़क किनारे ढेर लगा रहता है जो लावारिस जानवरों का भोजन बनता है, जिससे सड़कों पर ये बढ़ जाते हैं।

भारत में 7 करोड़ कुत्ते लाबारिस 

स्टेट ऑफ पेट होमलेसनेस प्रोजेक्ट (2024) के मुताबिक, भारत में 6.93 करोड़ लावारिस कुत्ते और 6.05 करोड़ लावारिस बिल्लियां हैं। जबकि देश में 3.1 करोड़ कुत्ते घरों में पाले जा रहे हैं और पालतू बिल्लियों की संख्या 24.4 लाख है।
देश में कुत्तों-बिल्ली का कोई स्पष्ट सरकारी आंकड़ा नहीं
भारत में कुल कितने पालतू और कितने लावारिस कुत्ते-बिल्ली हैं, इसका स्पष्ट आंकड़ा मौजूद नहीं है। हर पांच साल में होने वाली पशुधन गणना का नया आंकड़ा इस साल अक्तूबर में जारी होने की उम्मीद है, पशुधन गणना-2019 के मुताबिक, भारत में सड़कों पर घूमने वाले लावारिस कुत्तों की संख्या 1.53 करोड़ है।
भारतीय नस्ल की बिल्ली (सांकेतिक तस्वीर)

भारतीय नस्ल की बिल्ली (सांकेतिक तस्वीर)

हालांकि इस गणना के दौरान ग्रामीण व शहरी सड़कों पर मिले कुत्तों को ही लिया गया, घरों में पल रहे पालतू कुत्ते इसमें शामिल नहीं हैं। साथ ही बिल्लियों को भी इसमें शामिल नहीं किया गया। पशुधन गणना मुख्य रूप से पालतू और उपयोगी पशुओं (जैसे गाय, भैंस, बकरी आदि) पर केंद्रित होती है। ऐसे में अन्य स्वतंत्र संस्थाओं के आंकड़ों से ही भारत में कुत्तों-बिल्ली की संख्या का अंदाजा लगाया जा सकता है।

कुत्तों के खिलाफ गुस्सा और सुप्रीम कोर्ट का आदेश

हाल के दिनों में भारत में पशु प्रेमियों को हेय की नजर से देखा जाने लगा और सुप्रीम कोर्ट के विवादित आदेश के बाद आम लोगों में यह भावना और मजबूत हुई कि सड़कों पर घूमने वाले कुत्तों को आश्रयगृहों में रखा जाना चाहिए। पशु प्रेमियों विशेष कुत्तों को प्रेम करने वाले (dog lovers) पशु कार्यकर्ता व कुत्तों को भोजन कराने वालों (dog feeders) ने देेश में कई प्रदर्शन किए और फिर सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बेंच ने अपने पूर्व आदेश के कुछ ‘कड़े’ हिस्सों को बदलकर पशु कार्यकर्ताओं की बात मान ली।

आवारा कुत्तों को सड़कों से हटाने का हुआ था ‘सुप्रीम’ आदेश
भारत में पालतू जानवरों को लेकर सुप्रीम कोर्ट का नवीनतम आदेश मुख्य रूप से आवारा कुत्तों से संबंधित है। मूल आदेश (11 अगस्त 2025) को दिया गया जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर में सभी आवारा कुत्तों को आश्रय गृहों में स्थानांतरित करने का निर्देश दिया था, जिसमें छह से आठ सप्ताह के भीतर 5,000 कुत्तों के लिए आश्रय बनाना और उन्हें सड़कों पर वापस न छोड़ना शामिल था। यह निर्णय कुत्तों के काटने और रेबीज के बढ़ते मामलों को देखते हुए लिया गया था।
सुप्रीम कोर्ट (साभार- इंटरनेट)

सुप्रीम कोर्ट (साभार- इंटरनेट)

नसबंदी के बाद सड़कों पर छोड़ा जाए पर सड़कों पर खिलाना मना 

मूल आदेश पर व्यापक आलोचना के बाद 22 अगस्त 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने इसे संशोधित किया। अब कुत्तों को नसबंदी, टीकाकरण और कृमिनाशक उपचार के बाद उसी क्षेत्र में छोड़ने की अनुमति दी गई है, सिवाय उन कुत्तों के जो रेबीज से संक्रमित या आक्रामक हों। रेबीज या आक्रामक व्यवहार वाले कुत्तों को अलग आश्रयों में रखा जाएगा। साथ ही, सार्वजनिक स्थानों पर कुत्तों को खिलाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, और प्रत्येक नगर निगम वार्ड में समर्पित खिलाने के स्थान बनाने का आदेश दिया गया है। 

संशोधित आदेश के बाद भी आम लोगों में भ्रम 

सुप्रीम कोर्ट के संशोधित आदेश में नगर निगमों को कहा गया है कि वे कुत्तों को भोजन खिलाने के लिए कुछ जगहों को चिन्हित करें। हालांकि, इस नीति के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए बुनियादी ढांचे और संसाधनों की कमी एक चुनौती बनी हुई है। हाल में इंडियन एक्सप्रेस ने एक खबर में बताया कि दिल्ली-एनसीआर में कुत्तों को भोजन कराने वाले कार्यकर्ताओं को स्थानीय लोग ऐसा करने से रोक रहे हैं और सुप्रीम कोर्ट के मूल आदेश का हवाला दे रहे हैं, जिससे इन कार्यकर्ताओं को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। यहां अभी तक नगर निगम ने भोजन कराने के स्थान चिन्हिंत नहीं किए हैं। 

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