रिसर्च इंजन
तमिलनाडु : करूर भगदड़ में 41 मौतों के बाद विजय पर FIR क्यों नहीं?

- मद्रास हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को SIT की जांच IG से कराने का आदेश दिया।
- TVK के नेताओं को भगदड़ के बाद मदद की जगह भाग जाने के लिए लताड़ा।
- 27 सितंबर तमिल सिनेमा के सुपरस्टार विजय ने अपनी पार्टी TVK की रैली बुलाई थी।
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, मद्रास हाई कोर्ट में एक याचिकाकर्ता ने शिकायत की कि विजय का नाम FIR में न होना राजनीतिक कारणों से है। याचिकाकर्ता का कहना है कि “तमिलनाडु सरकार (DMK) विजय को शील्ड कर रही है, क्योंकि उनकी बढ़ती लोकप्रियता राजनीतिक संतुलन को प्रभावित कर सकती है।” याचिकाकर्ता का कहना है कि DMK विजय पर कार्रवाई से बच रही है, ताकि उनकी पार्टी को 2026 में गठबंधन का विकल्प खुला रखा जा सके।
सरकार का पक्ष : पहले जांच रिपोर्ट आने दो
मुख्यमंत्री एमके स्टालिन की डीएमके सरकार ने भगदड़ के लिए TVK पर लापरवाही का आरोप लगाया और वीडियो सबूत पेश किए। पर करुर पुलिस का कहना है कि सबूतों के अभाव में विजय की व्यक्तिगत जिम्मेदारी साबित नहीं हुई। हालांकि TVK नेताओं के खिलाफ उन्होंने कार्रवाई की है।
साथ ही, सरकार का कहना है कि उन्होंने भगदड़ के कारणों को समझने के लिए जांच दल बना दिया है, इसकी रिपोर्ट आने के बाद ही कार्रवाई होगी।
तमिलनाडु की राजनीति में विजय की भूमिका
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2 Oct: गांधी जयंती और RSS के 100 साल, हत्या की 5 कोशिशों की पड़ताल

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गांधी जयंती के दिन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का शताब्दी वर्ष पूरा करने के संयोग पर ऐतिहासिक घटनाओं का विश्लेषण
नई दिल्ली |
यह रोचक संयोग है कि आज गांधी जयंती का दिन है, जब हम महात्मा गांधी के योगदान को याद करते हैं, और उसी दिन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) अपनी स्थापना के 100 वर्ष (1925-2025) मना रहा है। गांधी जी ने एक बार कहा था कि कोई उन्हें कितना भी मारने की कोशिश कर ले, वे 125 साल जीने की आशा रखते हैं। हालांकि, उनकी हत्या 30 जनवरी 1948 को 78 साल की उम्र में हो गई।

महात्मा गांधी की हत्या में संलिप्तता के आरोपियों के ट्रायल के दौरान अदालत का दृश्य । सामने की पंक्ति (बाए से दाएं): नाथूराम विनायक गोडसे, नारायण दत्तात्रेय आप्टे और विष्णु रामकृष्ण करकरे। पीछे बैठे (बाएं से दाएं): दिगंबर रामचंद्र बॅज, शंकर , विनायक दामोदर सावरकर, गोपाल विनायक गोडसे और दत्तात्रेय सदाशिव परचुरे। (तस्वीर क्रेडिट – Flickr)
गांधी की हत्या के बाद RSS पर गंभीर आरोप लगे, जिसके चलते भारत सरकार ने 4 फरवरी 1948 को इसे प्रतिबंधित कर दिया, क्योंकि हत्यारे नाथूराम गोडसे का RSS से संदेहास्पद जुड़ाव था—हालांकि यह बाद में साबित नहीं हुआ। 11 जुलाई 1949 को RSS ने हिंसा से परहेज और संविधान के प्रति वफादारी का वचन देकर प्रतिबंध हटवाया।
शताब्दी वर्ष पर पीएम मोदी ने किया प्रतिबंध का जिक्र, कांग्रेस का पलटवार
RSS की 100वीं वर्षगांठ पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समारोह में कहा कि “संघ की सौ वर्ष की यात्रा के दौरान झूठे मामले और प्रतिबंध लगने के बावजूद कभी कटुता नहीं दिखाई”।

1939 में महाराष्ट्र में राष्ट्रीय स्वयं संघ की बैठक के दौरान की तस्वीर (क्रेडिट – इंटरनेट)
इस पर कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश ने प्रतिक्रिया देते हुए दावा किया कि गांधी ने RSS को “सांप्रदायिक निकाय” कहा था, और कुछ इतिहासकारों ने इसे “अधिनायकवादी दृष्टिकोण” से जोड़ा।
इन राजनीतिक बयानों के बीच, गांधी की हत्या से पहले की घटनाओं पर नजर डालना जरूरी है, ताकि उस दौर में RSS और अन्य हिंदूवादी समूहों की भूमिका को संदेह के साथ समझा जा सके।
महात्मा गांधी की हत्या की पांच नाकाम कोशिशें
महात्मा गांधी की हत्या से पहले उनकी हत्या की पांच नाकाम साजिशें रची गईं। इनकी जानकारी गांधी शांति प्रतिष्ठान की पत्रिका ‘गांधी मार्ग’ (मई-जून 2019) के विशेषांक से ली गई है, जो गांधी जयंती के 150वें वर्ष पर प्रकाशित हुआ था।

सावरमती आश्रम में बच्चे को दुलारते बापू (तस्वीर – Flickr)
- 1934: पुणे में बम हमला
साल 1934 में पुणे, जो तब हिंदुत्व का गढ़ माना जाता था, में गांधी के सम्मान समारोह के दौरान उनकी गाड़ी पर बम फेंका गया। गांधी उस गाड़ी में नहीं थे, बल्कि पीछे वाली गाड़ी में थे, जिससे वे बच गए। कई लोग जिसमें नगर पालिका अधिकारी और पुलिस जवान भी घायल हुए। यह मामला दबा दिया गया, और दोषियों की पहचान स्पष्ट नहीं हुई। - 1944: पंचगनी में छुरे से हमला
1944 में गांधी की लंबी कैद और कस्तूरबा/महादेव देसाई की मृत्यु के बाद, वे पंचगनी में आराम कर रहे थे। गांधी मार्ग के अनुसार, 22 जुलाई को नाथूराम गोडसे ने छुरे से हमला किया, लेकिन स्वतंत्रता सेनानी भिलारे गुरुजी ने उन्हें रोक लिया। गांधी ने युवक को माफ कर दिया।

महात्मा गांधी की हत्या में संलिप्तता के आरोपियों का ट्रायल दिल्ली के लाल किले में विशेष अदालत में आयोजित हुआ । ट्रायल 27 मई 1948 से शुरू हुआ। (तस्वीर – flickr)
- 1944: वर्धा में छुरा बरामद
उसी साल, वर्धा आश्रम में गांधी जिन्ना से मिलने की योजना बना रहे थे, जिसका सावरकर समर्थकों ने विरोध किया। पुलिस ने एक उपद्रवी टोली को गिरफ्तार किया, और एक सदस्य के पास छुरा मिला। गांधी मार्ग का दावा है कि यह RSS के नेता गोलवलकर से जुड़ा था, लेकिन इसकी पुष्टि अन्य स्रोतों से आवश्यक है। - 1946: मुंबई-पुणे रेल पलटने की कोशिश
30 जून 1946 को कर्जत के पास गांधी की ट्रेन की पटरियों पर पत्थर रखे गए, लेकिन ड्राइवर ने इमरजेंसी ब्रेक लगाकर गाड़ी रोकी। गांधी ने प्रार्थना सभा में मजाकिया लहजे में कहा, “मैं सात बार ऐसे प्रयासों से बच गया हूँ और 125 साल जीने की आशा रखता हूँ।” तब ‘हिंदू राष्ट्र’ के संपादक नाथूराम गोडसे ने जवाब में लिखा, “आपको इतने साल कौन जीने देगा?” - 1948: बिरला भवन में बम हमला
20 जनवरी 1948 को दिल्ली के बिरला भवन में गांधी की प्रार्थना सभा के दौरान मदनलाल पाहवा ने बम फेंका, लेकिन दूरी का गलत अंदाजा होने से गांधी बच गए। पाहवा, एक शरणार्थी, पकड़ा गया, लेकिन षड्यंत्र के बड़े नाम बचे रहे।

गांधी जी के पार्थिव शरीर के पास शोक में बैठे लोग। (तस्वीर wikimedia.org)
30 जनवरी 1948: सफल हत्या
दस दिन बाद, 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे ने बिरला भवन में गांधी पर तीन गोलियाँ चलाईं, और ‘हे राम’ कहते हुए गांधी का निधन हो गया।
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स्रोत
गांधी जी के इन क्षणों की जानकारी गांधी शांति प्रतिष्ठान की ‘गांधी मार्ग‘ (मई–जून 2019) से ली गई है।
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नेपाल : बच्चियों को ‘जीवित देवी’ बनाने की प्रथा का जेंडर एंगल समझिए

- काठमांडू में 2 वर्ष की आर्यतारा शाक्या को ‘नई कुमारी’ चुना गया, ‘कौमार्य’ हासिल करने तक ये जीवित देवी मानी जाएंगी।
नई दिल्ली |
नेपाल में नवमी में मौके पर दो साल की बच्ची को जीवित देवी चुना गया है। बच्ची का परिवार भावुक होकर उसे कुमारी सिंहासन पर बैठाने के लिए ले जाने का फोटो मीडिया में वायरल है।
यह बच्ची मासिक धर्म शुरू होने तक यानी कौमार्य हासिल कर लेने तक नेपाल की जीवित देवी मानी जाएगी।
‘कुमारी प्रथा’ नेपाल की सांस्कृतिक धरोहर है, लेकिन जेंडर समानता के युग में यह सवाल उठाती है: क्या ‘देवी‘ बनना लड़कियों के लिए वरदान है या अभिशाप?
आइए इसे जेंडर दृष्टिकोण से समझें।
तुलसी भवानी का अवतार मानने की प्रथा
नेपाल की प्राचीन परंपरा ‘कुमारी’ में एक छोटी लड़की को देवी तुलसी भवानी का अवतार मानकर पूजा जाता है। यह रिवाज न्यूारी बौद्ध और हिंदू समुदायों में सदियों पुराना है।
लेकिन इसका जेंडर आयाम जटिल है। एक ओर यह स्त्री शक्ति को सम्मान देता है, वहीं दूसरी ओर बालिकाओं की शिक्षा, सामाजिक विकास और स्वतंत्रता पर गंभीर प्रतिबंध लगाता है।
हाल ही में काठमांडू में 2 वर्ष 8 माह की आर्यतारा शाक्या को नई कुमारी चुना गया, जो त्रिश्ना शाक्या की जगह लेंगी।
इससे पहले 2017 में 3 वर्षीय त्रिश्ना शाक्या को यह पद मिला था, जो अब किशोरावस्था में पहुँचने पर पद छोड़ रही हैं।
चयन प्रक्रिया: शुद्धता और सौंदर्य के जेंडर मानदंड
कुमारी का चयन शाक्या कबीले की 2-4 वर्षीय लड़कियों में से होता है, जिसमें 32 शारीरिक और मानसिक ‘पूर्णताएँ’ (perfections) जाँची जाती हैं। इसमें बेदाग त्वचा, दाँत, आँखें, बाल, और मासूमियत शामिल हैं।
लड़की को अंधेरे कमरे में भैंस के सिर और डरावने मुखौटों के सामने डर न लगने की परीक्षा भी देनी पड़ती है।
यह प्रक्रिया स्त्री शरीर को ‘शुद्ध’ और ‘दिव्य’ बनाने पर जोर देती है, जो नेपाली समाज के जेंडर मानदंडों को प्रतिबिंबित करती है।
आलोचक कहते हैं कि यह लड़कियों पर सौंदर्य और पवित्रता के दबाव को बढ़ावा देता है, जो व्यापक स्तर पर महिलाओं पर लगाए जाने वाले सौंदर्य आदर्शों (beauty standards) का विस्तार है।
पुरुषों के लिए कोई समान रिवाज नहीं है, जो जेंडर असमानता को उजागर करता है—लड़कियाँ ‘देवी’ बनने के लिए ‘पूर्ण’ होनी चाहिए, लेकिन लड़कों का बचपन सामान्य रहता है।
कुमारी का जीवन: सम्मान के साथ प्रतिबंध
चयन के बाद कुमारी कुमारी घर (मंदिर-महल) में रहती है, जहाँ उसे लाल वस्त्र पहनाए जाते हैं और माथे पर ‘तीसरी आँख’ चिह्नित की जाती है।
वह 13 बार ही बाहर निकलती है—धार्मिक उत्सवों (जैसे इंद्र जात्रा) में रथ पर सवार होकर।
किशोरावस्था (मासिक धर्म) आने पर पद समाप्त हो जाता है, और वह ‘सामान्य’ जीवन में लौटती है।
लेकिन यह ‘दिव्य’ अवधि (3-12 वर्ष) में लड़की को सामाजिक अलगाव, शिक्षा की कमी, और सामान्य खेल-कूद से वंचित रखा जाता है।
जेंडर एंगल से देखें तो यह रिवाज स्त्री शक्ति (शक्ति) को पूजता है, लेकिन व्यावहारिक रूप से लड़कियों को ‘शुद्धता’ और ‘चुप्पी’ का प्रतीक बना देता है।
पूर्व कुमारी की किताब से परंपरा पर सवाल उठे
पूर्व कुमारी रश्मिला शाक्या की किताब From Goddess to Mortal में वर्णित है कि पद समाप्ति के बाद सामान्य जीवन में लौटना कितना कठिन होता है—घरेलू काम सीखना, स्कूल जाना, और सामाजिक अलगाव से उबरना।
2005 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर हुई, जिसमें कहा गया कि यह परंपरा बाल अधिकारों का उल्लंघन करती है, क्योंकि लड़की को ‘कैद’ जैसा जीवन जीना पड़ता है।
मानवाधिकार कार्यकर्ता इसे ‘बाल शोषण’ मानते हैं, क्योंकि यह लड़कियों की शिक्षा, सामाजिक विकास, और स्वतंत्रता को सीमित करता है।
पूर्व कुमारियों को ‘शापित’ मानना
पूर्व कुमारियों को ‘शापित’ माना जाता है—विश्वास है कि उनकी शादी करने वाला पति जल्दी मर जाएगा, जिससे कई अविवाहित रह जाती हैं।
यह जेंडर असमानता को बढ़ावा देता है, क्योंकि लड़कियों को बचपन से ही ‘देवी’ के रूप में अलगाव सिखाया जाता है, जबकि लड़कों का विकास सामान्य रहता है।
हाल के सुधारों से कुछ राहत
2008 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कुमारियों को महल में ही निजी ट्यूटर्स से शिक्षा दी जाती है, टीवी देखने की अनुमति है, और पद समाप्ति पर सरकारी पेंशन मिलती है।
फिर भी आलोचक (जैसे UNICEF, Human Rights Watch) कहते हैं कि यह प्रथा बाल अधिकार संधि (CRC) का उल्लंघन करती है, क्योंकि यह लड़कियों की स्वतंत्रता और विकास को बाधित करती है।
नेपाली समाज में लिंग असमानता (जैसे बाल विवाह, संपत्ति अधिकारों की कमी) के व्यापक संदर्भ में, कुमारी प्रथा एक उदाहरण है कि कैसे सांस्कृतिक सम्मान महिलाओं को ‘दिव्य’ लेकिन ‘दबाया गया’ बनाता है।
यह परंपरा सांस्कृतिक संरक्षण और मानवाधिकारों के बीच संतुलन की मांग करती है।
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बिहार : गरीबों को पक्का मकान देने की योजना चुनावी साल में बनी चुनौती

- पीएम आवास-शहरी योजना के पहले चरण का काम दिसंबर अंत तक पूरा होने की डेडलाइन।
- अभी एक लाख आवासों का निर्माण बाकी और दूसरे चरण की शहरी योजना शुरू हो गई।
- राज्य सरकार ने ग्रामीण इलाके के लिए केंद्र से 13 लाख नए मकान स्वीकृत करा लिए।
- योजना तेजी से लागू कराने का अभियान जारी, रिश्वत मांगने और किश्त लटकाने के मामले मिल रहे।

बिहार की आबादी का लगभग 26.59% बहुआयामी गरीबी है, नीति आयोग(2022-23) की रिपोर्ट के अनुसार। तस्वीर- इंटरनेट
अररिया | जिले में प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण (PMAY-G) के क्रियान्वयन में व्यापक पैमाने पर धांधली के मामले सामने आ रहे हैं। डीडीसी रोजी कुमारी ने एक ग्रामीण आवास सहायक कुमार गौरव की सेवा 24 सितंबर को समाप्त कर दी जिसने बड़ी संख्या में लाभार्थियों की किश्त दबा ली थी।
मामला रानीगंज प्रखंड के खरहट और नन्दनपुर ग्राम पंचायतों में पीएम आवास योजना की जिम्मेदारी संभाल रहे ग्रामीण आवास सहायक कुमार गौरव से जुड़ा है। रानीगंड बीडीओ की जांच में पता लगा कि आवास सहायक गौरव ने 485 ग्रामीण लाभुकों (beneficiary) को पहली किश्त का भुगतान किया था पर दूसरी किश्त सिर्फ 226 लाभुकों को भेजी गई। इस मामले पर जवाबतलब करने पर आरोपी ने जवाब नहीं दिया। साथ ही 22 सितंबर को DRDA कार्यालय पहुंचकर कथिततौर पर नशे में हंगामा करते हुए कर्मचारियों से भिड़ गए।
SC/ST कोटे के लाभुकों को मकान नहीं दिया – इसी जिले में एक अन्य मामला एससी-एसटी कोटे के लाभुकों को पीएम आवास योजना का लाभ न मिलने को लेकर सामने आया है। DDC को शिकायत मिली कि आवास योजना में अति पिछड़े व आदिवासी समुदाय के लोगों को जानबूझकर योजना से वंचित रखा गया, शिकायत पर डीडीसी ने जांच शुरू करा दी है।
लापरवाही करने पर सैलरी काटी – इससे पहले 27 अगस्त को अररिया में दस आवास सहायकों पर कार्रवाई हो चुकी है। डीडीसी स्तर से उनके मानदेय से दस फीसद कटौती एक साल तक करने का आदेश दिया था ।उससे पहले दो आवास पर्यवेक्षक से भी 25 फीसद कटौती के आदेश हुए थे। लेकिन फील्ड में काम करने वाले स्टाफ के कार्य प्रणाली में सुधार होता नहीं दिख रहा है।
2- पटना : मकान दिलाने के नाम पर वसूली, नौकरी गई
बीते अप्रैल में मसौढ़ी प्रखंड के भैंसवा पंचायत में कार्यरत आवास सहायक रागिनी कुमारी पर लाभुकों से 2-2 हजार रुपये वसूली का आरोप लगा, जांच में दोषी पाए जाने के बाद उनकी सेवा समाप्त कर दी गई।
3- वैशाली : 60 ग्रामीणों से दो-दो हजार वसूले
इस साल जनवरी में ओस्ती हरपुर पंचायत के वार्ड नंबर 11 में पंचायत आवास सहायक रामप्रवेश प्रताप को ग्रामीणों ने अवैध वसूली करते हुए रंगे हाथों पकड़ लिया। स्थानीय लोगों ने आरोप लगाया कि आरोपी आवास सहायक पंचायत में कम से कम 60 लोगों से आवास योजना में मकान दिलवाने के नाम पर दो-ढाई हजार रुपये वसूली कर रहा था। इस पर अधिकारियों ने कहा था कि शिकायत आने पर जांच करेंगे।
4- मुंगेर : जिन्हें ग्रामीण योजना में लाभ मिला, उन्हीं को शहरी में भी मकान दे दिया
यहां की संग्रामपुर नगर पंचायत के तहत जिन्हें पीएम आवास योजना-शहरी के तहत पक्के मकान का लाभ दिया गया है, उन्हें पहले पीएम आवास-ग्रामीण योजना के तहत मकान दिया जा चुका था। ये मामला इसी महीने के पहले सप्ताह में प्रकाश में आया जिसकी जांच की जा रही है। दरअसल, संग्रामपुर नगर पंचायत का गठन लगभग तीन साल पहले कुसमार और झिकुली पंचायत को विघटित करके किया गया था। इसमें कुसमार पंचायत का पूरा हिस्सा व झिकुली पंचायत का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा शामिल था। इन पंचायतों में जिन लोगों को पीएम आवास योजना-ग्रामीण का लाभ मिला था, उन्हीं ने स्थानीय जनप्रतिनिधियों के साथ मिलकर नई योजना में भी मकान हथिया लिए। इस मामले की जांच चल रही है।
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मकान एलॉटमेंट और किश्त में देरी पर लगता है जुर्माना फिर भी देरी
बिहार मेें किश्त जारी करने में देरी व लापरवाही के मामले तब सामने आ रहे हैं जबकि इसको लेकर केंद्र जुर्माना लगाता है। 2022 से केंद्र सरकार किसी आवास की स्वीकृति में एक महीने से ज्यादा की देरी होने पर प्रति आवास 10 रुपये की कटौती करता है। साथ ही, अगर स्वीकृति मेें दो महीने की देरी हुई तो 20 रुपये प्रति आवास की दर से राशि कटौती होती है। इसके अलावा, लाभुकों को पहली किश्त की राशि देने में एक सप्ताह से अधिक की देरी करने पर 10 रुपये प्रति आवास हर सप्ताह की दर से राशि की कटौती की जाएगी।
कैग रिपोर्ट ने बिहार में मकान के बदले रिश्वत की पोल खोली
कैग रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार में लगभग ₹450 करोड़ के फंड के दुरुपयोग के मामले सामने आए, जिसके लिए 2023 में 5 अधिकारियों को नोटिस जारी किया गया, लेकिन कार्रवाई सीमित रही। मुख्य रूप से मकान की स्वीकृति, किश्त जारी करने और निर्माण सामग्री में भ्रष्टाचार का खुलासा हुआ।
- 2023 में जारी कैग रिपोर्ट में बिहार के ग्रामीण इलाकों में PMAY-G योजना के क्रियान्वयन को लेकर गंभीर सवाल उठाए।
- रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि पंचायत स्तर पर अधिकारियों ने निर्माण सामग्री और सब्सिडी राशि जारी करने के लिए रिश्वत ली।
- मुजफ्फरपुर और कटिहार जिलों में पंचायत अधिकारियों ने मकान के लाभार्थियों से रिश्वत वसूली की।
- मुजफ्फरपुर के सरैया ब्लॉक में एक वार्ड सदस्य ने लाभार्थी को धमकाकर भुगतान करवाया।
- मकान के ढांचों की जियो-टैगिंग को जानबूझकर टाला गया और अधिकारियों ने जानकारी न होने का बहाना बनाया।

इस साल के अंत तक शहरी गरीबों को मकान बनाकर देना सीएम नीतीश के लिए चुनौती। (साभार- इंटरनेट)
बिहार सरकार की घोषणा- अविवाहित वयस्क को पीएम आवास
इस साल जुलाई में राज्य सरकार ने घोषणा की कि अविवाहित वयस्क को भी एकल परिवार मानते हुए इस योजना के तहत पक्का मकान मिल सकता है। ग्रामीण विकास विभाग की ओर से जारी किए गए निर्देश के अनुसार, पति-पत्नी और उनके अविवाहित बच्चे परिवार हैं जबकि ऐसे अविवाहित वयस्क जिनके माता-पिता जीवित नहीं हैं, उन्हें भी एकल परिवार माना जाएगा।
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बड़े वोटवैंक को साध सकता है पक्का मकान
- बिहार में आवंटित 84 लाख यूनिट मकानों में से 2025 तक 36.64 लाख मकान बन गए जो करीब दो करोड़ लोगों को प्रभावित करता है।
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ग्रामीण इलाके में बने आवासों से 35% EBC, 20% SC/ST, 25% OBC परिवारों को लाभ मिला जो सरकार के लिए वोट में बदल सकता है।
- शहरी गरीबों के लिए मकान बनाने में देरी से झुग्गियों में रहने वाले मजदूर प्रभावित जो एक बड़ा शहरी वोटर वर्ग हैं।
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🏠 पीएम आवास योजना (बिहार) : टाइमलाइन व प्रमुख घटनाएँ
📌 2016–2022
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बिहार में 37 लाख मकान स्वीकृत, जिनमें से अधिकांश ग्रामीण क्षेत्र के लिए।
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केंद्र ने देरी पर जुर्माना नियम लागू किया (10–20 रु. प्रति आवास कटौती, किश्त देर पर साप्ताहिक जुर्माना)।
📌 मार्च 2023
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शहरी योजना (PMAY-U 1.0): 2.64 लाख मकान स्वीकृत, पर आधे ही पूरे (1.56 लाख)।
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बैकलॉग → 1.08 लाख मकान अधूरे।
📌 अगस्त 2023
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CAG रिपोर्ट: ₹450 करोड़ फंड दुरुपयोग, रिश्वत व गड़बड़ी उजागर।
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5 अधिकारियों को नोटिस, कार्रवाई सीमित रही।
📌 सितंबर 2023
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अररिया: आवास सहायक पर 259 लाभुकों की किश्त रोकने का आरोप, नौकरी गई।
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इसी महीने SC/ST कोटे में आवास न देने के आरोप में जांच शुरू।
📌 अप्रैल 2024
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पटना (मसौढ़ी): आवास सहायक पर ₹2-2 हजार वसूली का आरोप, सेवा समाप्त।
📌 जनवरी 2024
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वैशाली: आवास सहायक ने 60 ग्रामीणों से अवैध वसूली की, ग्रामीणों ने पकड़ा।
📌 2024 (पहला सप्ताह)
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मुंगेर: जिन परिवारों को PMAY-G में घर मिला था, उन्हें PMAY-U में भी आवास स्वीकृत। जांच शुरू
📌 अगस्त 2024
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RDD: बैकलॉग क्लियर करने के बाद 13.5 लाख नई यूनिट्स की मांग केंद्र से की।
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अब तक 36.64 लाख मकान बनकर तैयार (98.94% बैकलॉग पूरा)।
📌 जुलाई 2025
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बिहार सरकार ने घोषणा की:
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अविवाहित वयस्क को भी एकल परिवार मानकर आवास मिलेगा।
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📌 फरवरी 2025
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केंद्र ने PMAY-U 2.0 को मंज़ूरी दी → पहले चरण में 1 लाख मकान।
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डेडलाइन: दिसंबर 2025 तक पहले चरण का बैकलॉग पूरा करना।
📌 2025 (चुनावी साल)
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RDD ने “Angikaar 2025” और “निगरानी अभियान” शुरू किए।
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लक्ष्य: बैकलॉग खत्म कर ग्रामीण व शहरी दोनों योजनाओं की रफ्तार बढ़ाना।
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