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वक्फ़ मामले में सरकार की लाइन पर हिन्दी अखबार

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अरबी का लफ्ज़ ‘वक्फ’ इन दिनों इंटरनेट पर कीवर्ड बन चुका है। कारण ..ये कि बीते एक सप्ताह के भीतर वक्फ बोर्ड की शक्तियां घटाने की सरकारी कोशिशों पर खूब खबरें छपीं। 8 अगस्त को मोदी नेतृत्व वाली एनडीए सरकार इस पर संसद में संशोधन विधेयक भी ले आई। पर विपक्ष के विरोध व गठबंधन दलों की शंकाओं के बाद इस संशोधन विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति के पास भेज दिया गया है। यानी अब इस मामले में कोई भी बदलाव तभी हो पाएगा, जब विपक्षी दल भी उन बदलावों से सहमत होंगे। इस मामले पर विपक्ष का कहना है कि केंद्र सरकार मुस्लिम समुदाय की धार्मिक स्वतंत्रता को खत्म करना चाहती है, जिसके क्रम में वक्फ बोर्ड के कानून में संशोधन लाया जा रहा है।

इस मामले पर अखबारों की कवरेज इसलिए देखी जानी चाहिए ताकि बतौर पाठक आप तक पहुंचाई जा रही सूचनाओं की सच्चाई से आप अवगत हो सकें। आगे बढ़ने से पहले जान लेते हैं कि आखिर यह वक्फ है क्या, और ये खबर पैदा कैसे हुई क्योंकि सरकार ने बिल लाने से पहले संसद को कोई पूर्व सूचना नहीं दी थी।

वक्फ का मतलब दान देना –  किसी चल-अचल संपत्ति को इस्लाम को मानने वाले लोग धार्मिक, गरीबों की मदद (चैरिटेबल) कार्यों के लिए दान दे दें तो इस नेक काम को वक्फ कहा जाता है।

वक्फ बोर्ड के अधिकार – मुस्लिम समाज के बुजुर्गों ने अब तक जो संपत्तियां दान की हैं, उनका मैनेजमेंट हर राज्य का वक्फ बोर्ड करता है और इन संपत्तियों का मालिकाना हक अल्लाह को माना जाता है। वक्फ बोर्ड को प्रबंधन की शक्तियां साल 1950 मेेें लागू हुए वक्फ अधिनियम से मिलती है। इसके जरिए बोर्ड, वक्फ के रूप में दान में दी गईं व अधिसूचित संपत्तियों को नियंत्रित करता है। 2013 में वक्फ बोर्ड में संशोधन किए गए थे, अब की केंद्र सरकार का कहना है कि 2013 में हुए संशोधनों ने वक्फ को किसी भी संपत्ति को अपना बताने का अनावश्यक अधिकार दे दिया, जिसके चलते ये जब चाहे संपत्तियों पर हक जमा लेते हैं और इसी के चलते सरकार इस एक्ट में बदलाव लाना चाहती है।

अखबारी कवरेज –  सोर्स को क्रेडिट दिए बिना ही लिखीं खबरें 

पहले यह जान लीजिए कि वक्फ बोर्ड में बदलाव की ये खबर आखिर आई कैसे? दरअसल, समाचार एजेंसी आईएनएस ने सूत्रों के हवाले से चार अगस्त को खबर ब्रेक की कि वक्फ बोर्ड में संशोधन का विधेयक इसी संसद सत्र में आ सकता है। इसी के आधार पर सभी अखबारों ने पांच अगस्त के एडिशन में इस खबर को कवर किया है। ये बात अलग है कि आपको खबर पढ़ते हुए इस बात का अंदाजा लगाना मुश्किल होगा कि हिन्दी के प्रमुख अखबार (जागरण, अमर उजाला, हिन्दुस्तान) किस आधार पर यह खबर छाप रहे हैं।

दैनिक जागरण ने वक्फ बोर्ड एक्ट में संभावित बदलावों को पहली खबर बनाया है। इसी मामले पर अंदर फुल पेज कवरेज है और संपादकीय लिखकर भी दैनिक जागरण ने एनडीए सरकार के इस संभावित कदम को सराहा है। इस संपादकीय की हेडिंग है- ‘सुधार की नई पहल’ । इसी खबर को अमर उजाला ने भी पहले पन्ने पर प्रमुखता दी है, हेडिंग है — ‘किसी संपत्ति को अपना घोषित नहीं कर पाएंगे वक्फ बोर्ड’। दैनिक हिन्दुस्तान ने भी आसार जताते हुए पहले पन्ने पर स्टोरी लगाई है, जिसकी हेडिंग सधी हुई है – ‘वक्फ संशोधन विधेयक संसद में पेश करने की तैयारी’।

जागरण ने अपनी खबर में लिखा है कि केंद्र सरकार इस कानून को इसलिए ला रही है क्योंकि आम मुस्लिम व मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने इस कानून में सुधार की मांग उठाई थी। हालांकि अखबार अपनी बात को आधार देने के लिए एक भी मुस्लिम बुद्धिजीवी को कोट नहीं कर पाया है।

दैनिक जागरण, पांच अगस्त

दैनिक जागरण, पांच अगस्त

 

वक्फ बोर्ड से जुड़े आंकड़ों में फेर और अमर उजाला की भाषा

दैनिक जागरण ने लिखा है कि पूरे देश में 30 वक्फ बोर्ड से हर साल करीब दो सौ करोड़ राजस्व मिलने का अनुमान है। मूल रूप से वक्फ की 52 हजार संपत्तियां थीं जिसकी संख्या बढ़कर 8,72,292 हो गई है। अब अमर उजाला के आंकड़े और भाषा देखिए… लिखा है कि देश में तीस वक्फ बोर्ड हैं, इनका देश की 9.4 लाख एकड़ जमीन पर कब्जा है। अमर उजाला जमीन के स्वामित्व को कब्जा लिख रहा है, इस शब्द के इस्तेमाल के ही पता लगता है कि वक्फ की संपत्तियों को अखबार कब्जाई संपत्तियां बता रहा है। खबर में यह भी बताया है कि सबसे अमीर बोर्ड यूपी, दिल्ली और बिहार का है। कब्जा और अमीर जैसे शब्दों के भाव बता रहे हैं, अमर उजाला इस मामले में वक्फ को लेकर क्या राय रखता है, जबकि खबर में बतौर मीडिया संस्थान अपने विचार नहीं रखे जा सकते, इसके लिए संपादकीय का पन्ना आरक्षित होता है।

अमर उजाला, 5 अगस्त (पहले पन्ने की खबर के इनबॉक्स का स्क्रीनशॉट)

अमर उजाला, 5 अगस्त (पहले पन्ने की खबर के इनबॉक्स का स्क्रीनशॉट)

अंग्रेजी अखबारों ने वक्फ के विरोध को दी प्राथमिकता

इसी मामले पर अंग्रेजी अखबार The Indian Express की कवरेज में अहम बात ये है कि उन्होंने भले समाचार एजेंसी का नाम नहीं लिया (इन वायर एजेंसियों की सेवाएं खरीदी जाती हैं ) लेकिन अपनी खबर की शुरूआत इसी बात से की कि मीडिया रिपोर्टों के आधार पर वक्फ बोर्ड में बदलाव की संभावना है। साथ ही, इस अखबार ने यह भी स्पष्ट किया कि इन खबरों को उन्होंने सरकार से जुड़े अपने सूत्रों से भी वेरिफाई किया है कि संशोधन विधेयक इसी सत्र में लाया जाएगा।

एक्सप्रेस ने इस मामले में ऑल इंडिया मुस्लिम पसर्नल लॉ बोर्ड के जारी किए गए बयान को विस्तार से छापा है कि वक्फ को कमजोर करने से जुड़ा सरकार का कोई कदम उन्हें स्वीकार नहीं होगा। मुस्लिम पसर्नल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता डॉ. एसक्यूआर इलियास के हवाले से अखबार ने यह भी बताया कि वक्फ एक्ट व वक्फ जमीनों को भारतीय संविधान व शरियत एप्लीकेशन एक्ट – 1937 से संरक्षित है, इसमेेें सरकार कोई ऐसा बदलाव नहीं कर सकती जो इस अधिनियम की प्रकृति और वक्फ संपत्तियों की स्थितियों में बदलाव ला सके। Express की हेडिंग है — Amid talk of Bill to Amend wakf act, Muslim Personal law Board urges BJP allies, Opp leaders to oppose move. ( अनुवाद – वक्फ मेें बदलाव की चर्चा के बीच पर्सनल लॉ बोर्ड की बीजेपी सहयोगी दलों व विपक्षी नेतृत्व से विरोध की अपील )

The Hindu की बात करें तो इस अखबार ने पर्सनल लॉ बोर्ड व एआईएमआईएम के राष्ट्रीय अध्यक्ष नेता असदुद्दीन ओवैसी के बयानों के आधार पर खबर लगाई है। इसकी हेडिंग है— Any change in Wakf Act will not be tolerated, says Muslim Personal Law Board (अनुवाद – वक्फ एक्ट में कोई बदलाव सहन नहीं होगा)।

विपक्षी दलों ने जताया विरोध पर कांग्रेस चुप 

छह अगस्त के एडिशन में हिन्दी के तीनों प्रमुख अखबार व अंग्रेजी में एक्सप्रेस ने इस मुद्दे पर फॉलोअप किया। हिन्दी अखबारों ने लिखा कि सच्चर कमेटी की सिफारिशों व संसद की वक्फ पर आई एक रिपोर्ट के आधार पर केंद्र सरकार अपने कदम का बचाव करेगी। दैनिक हिन्दुस्तान के मुताबिक, इन दोनों में ही वक्फ एक्ट में संशोधन की जरूरत पर बताई गई थी। बाद में यह बात सच भी साबित हुई जब संसद में किरेन रिजिजू ने इन दोनों बातों को सरकार के बचाव के तौर पर रखा। वहीं, इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा कि विपक्षी दल राजद, सपा, शिवसेना (उद्दव गुट) ने इसका विरोध करने से जुड़ा बयान दिया है जबकि अबतक कांग्रेस ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।

जब कोर्ट बोला– तो क्या ताजमहल को वक्फ का घोषित कर दें!

दैनिक जागरण, सात अगस्त

दैनिक जागरण, सात अगस्त

वक्फ पर अखबारी रिपोर्टिंग यहीं नहीं रुकी, सात अगस्त को दैनिक जागरण ने पहले पन्ने पर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की एक टिप्पणी को पहले पन्ने की एंकर स्टोरी बनाया। हेडिंग – क्या ताजमहल और लाल किला भी वक्फ प्रॉपर्टी घोषित कर दें..। मामला मुगल बादशाह की बहू की कब्र समेत तीन ऐतिहासिक इमारतों पर वक्फ के दावे से जुड़ा है जिसमें वक्फ का कहना है कि एएसआई ने उनकी जमीन पर अतिक्रमण कर लिया है। इस सुनवाई के दौरान अदालत ने ये टिप्पणी की है। जाहिर है कि कुछ मामलों में सरकारी जमीनों व वक्फ की जमीनों के बीच विवाद बने हुए हैं।

किरेन रिजिजू बोले- बिल ला रहे, दरगाह प्रतिनिधियों ने समर्थन किया

वक्फ में मामले पर द हिन्दू से अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि गरीब मुस्लिम समूहों की मांग के चलते सरकार वक्फ में बदलाव करने जा रही है। इस खबर में बताया गया है कि वक्फ एक्ट में बदलाव की जानकारी मिलने के बाद सोमवार को ऑल इंडिया सूफी सज्जादानशीन काउंसिल ने रिजिजू से मिलकर इसका समर्थन किया। इनका कहना है कि वक्फ की जमीनों में दरगाहें सबसे बड़ी पक्षकार हैं लेकिन इस एक्ट के चलते इनके साथ भेदभाव हो रहा है। साथ ही, शिया मुस्लिमों के कुछ समूहों ने भी सरकार के कदम का समर्थन किया है।

द हिन्दू, सात अगस्त

द हिन्दू, सात अगस्त

वक्फ बोर्ड में गैर मुस्लिम की एंट्री, डीएम को शक्तियां   

द हिन्दू व इंडियन एक्सप्रेस ने आठ अगस्त को पहले पन्ने पर प्रस्तावित संशोधनों को लेकर खबर दी कि संसद में इस सप्ताह प्रस्तावित हो सकने वाले बिल में यह बदलाव भी प्रस्तावित है कि इसमें दो गैर मुस्लिम सदस्य शामिल होंगे व दो मुस्लिम महिला सदस्य भी होंगी। इसके अलावा, वक्फ जिन जमीनों को अपने होने का दावा करेगा, उनका सत्यापन डीएम करेगा न कि वक्फ ट्रिव्यूनल। इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी खबर में यह भी बताया है कि उपयोग के आधार पर वक्फ के प्रावधान को भी नया संशोधन खत्म कर देगा। इससे कई ऐसी जमीनों को लेकर समस्या आएगी जिनका वक्फनामा नहीं बना हुआ है और उन्हें मौखिक रूप से वक्फ किया गया था और अब वह धार्मिक उपयोग में आ रही है, जैसे- मस्जिद की जमीन। यह भी लिखा गया है कि यह कानून लागू होने के बाद जितने भी ‘विवादित’ मामले हैं, उनका सत्यापन दोबारा कराया जाएगा। यानी विशेषज्ञ मान रहे हैं कि जिन मामलों में वक्फनामा न हुआ हो, नए नियम के बाद उन्हें विवादित मानते हुए डीएम सत्यापित कर सकता है कि वह सरकारी जमीन मानी जाएगी या फिर वक्फ की।

इंडियन एक्सप्रेस, आठ अगस्त

इंडियन एक्सप्रेस, आठ अगस्त

 

बिल JCP को क्यों गया, हिन्दी अखबार चुप्पी साध गए

लोकसभा में आठ अगस्त को पेेश किए जाने के बाद आखिर वक्फ सुधार विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति (जेसीपी) के पास क्यों भेज दिया गया, इस बारे मेें नौ अगस्त के संस्करणों में दैनिक जागरण, अमर उजाला ने कारण स्पष्ट नहीं किया। उल्टा जागरण ने लिखा कि सरकार ने खुद इस विधेयक को जेसीपी के पास भेजकर संदेश दे दिया कि वह इसपर कोई विवाद नहीं चाहती। जागरण ने ठीक यही सराहना अपने संपादकीय पर भी की है। फ्रंट पेज की पहली खबर की हेडिंग काफी हल्की है – ‘वक्फ बोर्ड में सुधार का बिल पेश।’ कह सकते हैं कि इसे हल्का जानबूझकर रखा गया है क्योंकि सरकार समर्थित माना जाने वाला यह अखबार अपने पाठकोें को यह कैसे बताएगा कि जिस बिल को लेकर इतना माहौल बनाया गया था, उसे अब और मंथन के लिए ऐसी समिति के पास भेज दिया गया है जिसमें विपक्षी दल भी शामिल होंगे। पूरी खबर में अखबार ने कहीं नहीं लिखा कि एनडीए के सहयोगी दलों ने बिल को सशर्त समर्थन दिया है। अमर उजाला ने भी इसे पहले पन्ने की लीड बनाया जिसकी हेडिंग है – वक्फ संशोधन विधेयक लोकसभा में पेश, विचार के लिए जेसीपी भेजा।

दैनिक जागरण, नौ अगस्त

दैनिक जागरण, नौ अगस्त

हालांकि अमर उजाला की हेडिंग में ये बात शामिल है। हेडिंग – ‘वक्फ संशोधन विधेयक लोकसभा में पेश, विचार के लिए भेजा गया।’  दैनिक हिन्दुस्तान नेे इस खबर को विशेष महत्व न देते हुए एक कॉलम पहले पन्ने पर लगाया जिसकी हेडिंग है – वक्फ संशोधन बिल विरोध के बीच पेश। अंदर लिखा है कि इंडिया गठबंधन को इस मामले पर वाईएसआर कांग्रेस का साथ मिल गया जबकि जदयू व टीडीपी सरकार के साथ है। द हिन्दू ने भी अमर उजाला के एंगल पर ही खबर लगाई है लेकिन तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) के सांसद के हवाले से लिखा है कि ‘वे इस विधेयक का समर्थन करते हैं, अगर इसे विचार के लिए संसदीय समिति को भेज दिया जाता है।’ मतलब साफ है कि सहयोगी दल ने सशर्त समर्थन दिया है, इसी एंगल को एक्सप्रेस ने उठाते हुए पहले पन्ने पर ये खबर बनाई है – सहयोगी दलों के भी चिंता जताने के बाद सरकार ने संसदीय पैनल को भेजा वक्फ बिल (हिन्दी अनुवाद) । इसी दिन एक्सप्रेस ने वक्फ व इस अधिनियम के प्रस्तावित बदलावों पर आधे पन्ने का एक्सप्लेनर भी प्रकाशित किया है।

इंडियन एक्सप्रेस, नौ अगस्त

इंडियन एक्सप्रेस, नौ अगस्त

 

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2 Comments

2 Comments

  1. Shivangi

    August 10, 2024 at 5:22 pm

    शुरूआत में भले लगा हो कि नरेंद्र मोदी पुराने तरीके से ही सरकार चलाते रहेंगे लेकिन जैसे-जैसे वे पुराने तरीकों वाले कदम आगे बढ़ा रहे हैं, उनके सहयोगी दलों की नाराजगी के चलते उन्हें कदम पीछे खींचने पड़ रहे हैं। अच्छा है कि अब देश में विपक्ष भी है और सत्ता के सहयोगी दलों की असहमतियां भी ये भूमिका निभा दे रही हैं।

  2. Ricky Singh

    August 10, 2024 at 6:42 pm

    आज का अखबार का कॉन्सेप्ट बढ़िया है। मुद्दे को अच्छे से समझाया गया है। शानदार। बोलते पन्ने टीम को बधाई।

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दो अरब लोग गंदा पानी पीने को मजबूर

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साभार इंटरनेट
बोलते पन्ने | नई दिल्ली
द हिन्दू ने 25 जून के संस्करण में लेख के ज़रिए बताया कि दुनिया में दो अरब लोग सुरक्षित पेयजल से वंचित हैं। यानी जो पानी वे पी रहे हैं, उसमें तमाम तरह के रोग होने की संभावना है। साथ ही, दुनिया के 3.6 अरब लोगों को सुरक्षित स्वच्छता सुविधाएं नहीं मिल रही हैं। अख़बार ने संयुक्त राष्ट्र की हालिया रिपोर्ट के हवाले से यह जानकारी दी है। जिसमें भारत सहित कई देशों में जल संकट की गंभीरता को उजागर किया है।
शहरीकरण से जलसंकट गहराया 
लेख के मुताबिक़, सुरक्षित जल का संकट दुनिया में जनसंख्या वृद्धि, शहरीकरण, और जलवायु परिवर्तन के कारण और गहरा रहा है। भारत में, गंगा और यमुना जैसी नदियों में प्रदूषण और अपर्याप्त सीवेज उपचार इस समस्या को बढ़ा रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के 2022 के आंकड़े बताते हैं कि विश्व भर में 10 लाख लोग दूषित पानी और अपर्याप्त स्वच्छता के कारण होने वाली बीमारियों से मर रहे हैं।
द हिन्दू, 25 जून

द हिन्दू, 25 जून

67.8 करोड़ भारतीय गंदगी में जी रहे 
लेख में बताया गया कि भारत में 3.5 करोड़ लोग सुरक्षित पेयजल और 67.8 करोड़ लोग स्वच्छता सुविधाओं से वंचित हैं। जल शक्ति मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 230 जिलों में भूजल में आर्सेनिक और 469 जिलों में फ्लोराइड की मौजूदगी पाई गई है। WHO के मुताबिक़, भारत में 80% स्वास्थ्य समस्याएं जलजनित रोगों से जुड़ी हैं।
भारत में 40% शहरी पानी रिसकर बर्बाद 
भारत सरकार की जल जीवन मिशन जैसी पहल ने ग्रामीण क्षेत्रों में 49% घरों तक नल कनेक्शन पहुंचाया है, लेकिन शहरी क्षेत्रों में 40% पानी रिसाव के कारण बर्बाद हो रहा है। विश्व बैंक और यूनिसेफ जैसी संस्थाएं जल प्रबंधन में सहयोग कर रही हैं। लेख में सुझाव दिया गया कि पानी के उपयोग की दक्षता बढ़ाने, रिसाव कम करने, और स्थानीय जल स्रोतों को पुनर्जनन करने की आवश्यकता है।

आंकड़ों की नज़र से :

  • 2 अरब: विश्व भर में सुरक्षित पेयजल से वंचित लोग।
  • 3.6 अरब: सुरक्षित स्वच्छता सुविधाओं से वंचित लोग।
  • 3.5 करोड़: भारत में सुरक्षित पेयजल से वंचित लोग।
  • 67.8 करोड़: भारत में स्वच्छता सुविधाओं से वंचित लोग।
  • 230 जिले: भारत में भूजल में आर्सेनिक की मौजूदगी।
  • 469 जिले: भारत में भूजल में फ्लोराइड की मौजूदगी।
  • 80 प्रतिशत: भारत में जलजनित रोगों से स्वास्थ्य समस्याएं।
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केरल : ‘भारत माता’ की तस्वीर पर विवाद क्यों

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भारत माता का चित्र, साभार इंटरनेट
बोलते पन्ने | नई दिल्ली
केरल के राजभवन में ‘भारत माता’ की तस्वीर के प्रदर्शन को लेकर राज्यपाल व मुख्यमंत्री के बीच विवाद गहरा गया है। द हिन्दू ने इस विवाद के बहाने भारत माता की अवधारणा पर एक लेख प्रकाशित किया है, जिसमें कहा गया है कि अखंड भारत के मानचित्र के सामने भगवा साड़ी में खड़ी एक स्त्री की इस तस्वीर की कोई संवैधानिक मान्यता नहीं है। लेख में केरल के राज्यपाल व राज्य सरकार के बीच के विवाद को अनावश्यक बताया है।
बता दें कि राजभवन में भारत माता की तस्वीर के सामने फूल अर्पित करके दीप जलाने के साथ सरकारी कार्यक्रमों की शुरूआत किए जाने के विरोध से मामला शुरू हुआ। सत्तारूढ़ लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (LDF) ने इस चित्र को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) से संबंधित मानते हुए ऐसे कार्यक्रमों में न शामिल होने की घोषणा की है।   
द हिन्दू, 26 जून

द हिन्दू, 26 जून

भारत माता के चित्र का कोई संवैधानिक आधार नहीं
द हिन्दू में 26 जून 2025 को प्रकाशित लेख “A Lofty Concept, a Governor and Unwanted Controversy” में इस विवाद को अनावश्यक और भारत माता के चित्र को उच्च अवधारणा बताया गया है। इस लेख को लिखने वाले पी.डी.टी. अचारी लोकसभा के पूर्व महासचिव रहे हैं और वे संवैधानिक व संसदीय मामलों के विशेषज्ञ हैं। अचारी ने लिखा है कि केरल के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेकर ने राजभवन में सरकारी आयोजनों में एक विशेष चित्र—जो भगवा साड़ी में एक महिला, हाथ में भाला, पीछे शेर और अखंड भारत के नक्शे को दर्शाता है—को प्रदर्शित करने और सम्मान करने की प्रथा शुरू की। लेख के अनुसार, भारत माता का यह चित्र संविधान या कानून द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं है, न ही यह राष्ट्रीय ध्वज, राष्ट्र गान या प्रतीक की तरह आधिकारिक है। इसलिए, इसे सरकारी आयोजनों में शामिल करना अनुचित है।
केरल राज्य प्रतीक

केरल राज्य प्रतीक

‘राज्यपाल की ज़िद ने तनाव बढ़ाया’
लेखक ने कहा है कि राज्यपाल को राज्य सरकार की सलाह पर ही काम करना चाहिए। संविधान सभा में डॉ. बी.आर. अंबेडकर के बयान का हवाला देते हुए लेखक बताता है कि राज्यपाल को मंत्रिपरिषद की सलाह माननी चाहिए, लेकिन उनकी जिद ने सरकार के साथ तनाव बढ़ाया। इस विवाद ने CPI(M) और BJP कार्यकर्ताओं के बीच सड़कों पर टकराव को जन्म दिया। लेख सुझाव देता है कि संवैधानिक प्रोटोकॉल का पालन कर ऐसे टकरावों से बचा जा सकता है।
भारत माता का चित्र, साभार इंटरनेट

भारत माता का चित्र, साभार इंटरनेट

भारत माता की जयकार और तस्वीर में फर्क
लेख में भारत माता के ऐतिहासिक संदर्भ का उल्लेख है, जो बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय की “आनंदमठ” में बंगा माता के रूप में शुरू हुआ और बाद में राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में “भारत माता की जय” के नारे के रूप में लोकप्रिय हुआ। यह चित्र 19वीं सदी के राष्ट्रवाद को जोड़ता था।  हालांकि, लेख में यह भी कहा गया है कि भारत माता का यह चित्र आधुनिक भारत की विविधता का प्रतिनिधित्व करने में असमर्थ है। 
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अमेरिकी अखबारों ने ट्रंप के दावे पर सवाल उठाए

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सांकेतिक तस्वीर
बोलते पन्ने | नई दिल्ली
22 जून 2025 को ईरान के परमाणु ठिकानों पर अमेरिकी हमलों ने वैश्विक सुर्खियां बटोरीं। न्यूयॉर्क टाइम्स, वॉल स्ट्रीट जर्नल, और वॉशिंगटन पोस्ट जैसे प्रमुख अमेरिकी अखबारों के मुताबिक, इन हमलों से सीमित नुकसान हुआ, जबकि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इन्हें “बेहद सफल” करार दिया। इन अखबारों ने तथ्यों और सरकारी दावों के बीच अंतर को स्पष्ट रूप से उजागर किया, खासकर वॉल स्ट्रीट जर्नल ने प्रारंभिक विश्लेषण के आधार पर ट्रंप के दावों पर सवाल उठाए।
भारतीय हिंदी अखबारों की सरकारी रुख वाली कवरेज के उलट, अमेरिकी पत्रकारिता ने तथ्य-आधारित विश्लेषण को प्राथमिकता दी, भले ही उनका नेतृत्व अप्रत्याशित और दृढ़ स्वभाव का हो। यह कवरेज मध्य पूर्व में बढ़ते तनाव और वैश्विक कूटनीति पर गंभीर प्रभाव को रेखांकित करती है। बता दें कि अमेरिका ने ईरान के तीन प्रमुख परमाणु ठिकानों—फोर्डो, नटांज, और इस्फहान पर हमले किए जिनका उद्देश्य ईरान के परमाणु कार्यक्रम को रोकना था। इसे ‘ऑपरेशन मिडनाइट हैमर” नाम दिया गया था।
B-2 बॉम्बर्स का इस्तेमाल किया : न्यूयॉर्क टाइम्स 
 न्यूयॉर्क टाइम्स ने 23 जून को इस शीर्षक से पहले पन्ने पर ख़बर लगाई – U.S. Claims Severe Damage, Warns Iran Not to Strike Back । खबर में हमले के तरीके के बारे में विस्तार से बताया गया है। लिखा है कि इन हमलों में सात बी-2 स्टेल्थ बॉम्बर्स और एक पनडुब्बी से 75 सटीक हथियारों का उपयोग किया गया, जिनमें 30,000 पाउंड के बंकर-बस्टर बम शामिल थे। साथ ही बताया है कि ईरान ने भी जवाब में इजरायल पर मिसाइलें दागीं, जिसमें 10 लोग घायल हुए।
अखबार ने लिखा कि ट्रंप दावा कर रहे हैं कि ये हमले बेहद सफल रहे और ईरान के परमाणु संवर्धन कार्यक्रम को “गंभीर नुकसान” पहुंचा है। साथ ही ट्रंप ने ईरान को जवाबी हमले न करने की चेतावनी देते हुए कहा कि अगर ईरान ने प्रतिशोध लिया तो और बड़े हमले होंगे। हालांकि ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराघची ने हमलों को “अवैध” बताया और कहा कि ईरान इसके जवाब दे। खबर में यह भी लिखा है कि इससे क्षेत्रीय तनाव बढ़ गया है और अमेरिकी ठिकानों पर जवाबी हमले की आशंका है, जिसके लिए पेंटागन हाई अलर्ट पर है। यह स्थिति मध्य पूर्व में व्यापक संघर्ष की संभावना पैदा करती है।
द न्यूयॉर्क टाइम्स, 23 जून

द न्यूयॉर्क टाइम्स, 23 जून

ईरान को व्यापक नुक़सान नहीं हुआ : वॉल स्ट्रीट जर्नल
वॉल स्ट्रीट जर्नल ने पहले पन्ने पर लिखा कि ईरान के तीन परमाणु ठिकानों हमले करने के बाद हमलों के नुक़सान का आकलन अमेरिका कर रहा है। इस ख़बर का शीर्षक भी यही है – U.S. Weighs Strikes’ Damage in Iran. । अख़बार ने लिखा है कि अमेरिकी हमले जिसका नाम “ऑपरेशन मिडनाइट हैमर” है, का उद्देश्य ईरान के परमाणु कार्यक्रम को रोकना था। ट्रंप प्रशासन ने दावा किया कि हमले “अत्यंत सफल” रहे और सुविधाओं को “पूरी तरह नष्ट” कर दिया गया, लेकिन प्रारंभिक विश्लेषण से संकेत मिलता है कि नुकसान उतना व्यापक नहीं हो सकता। IAEA के प्रमुख ने कहा कि फोर्डो में “बहुत महत्वपूर्ण नुकसान” हुआ, लेकिन सुविधा पूरी तरह नष्ट नहीं हुई।
वॉल स्ट्रीट जर्नल, 23 जून

वॉल स्ट्रीट जर्नल, 23 जून

हमले के नुक़सान का आकलन कर रही सरकार : द वॉशिंगटन पोस्ट
वॉल स्ट्रीट जर्नल की तरह ही वॉशिंगटन पोस्ट ने भी लिखा है कि इस हमले के नुक़सान का आकलन करने में सरकारी अधिकारी लगे हुए हैं। सरकार के मुताबिक़, इस हमले का लक्ष्य ईरान के परमाणु कार्यक्रम को रोकना था। ऐसे में रक्षा अधिकारियों को अभी यह स्पष्ट नहीं है कि क्या इन हमलों ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को पूरी तरह समाप्त किया या केवल उसे कुछ समय के लिए पीछे धकेला। खबर में वैश्विक नेताओं के मिश्रित प्रतिक्रियाओं का भी जिक्र है, जहां कुछ ने संयम बरतने की अपील की, तो कुछ ने हमलों का समर्थन किया।
वॉशिंटन पोस्ट, 23 जून

वॉशिंटन पोस्ट, 23 जून

 

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