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जलवायु परिवर्तन से निपटने के सम्मेलन में क्या सब पटरी पर है ?

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सांकेतिक तस्वीर

आज के अखबार (16 नवंबर) | नई दिल्ली

29वें जलवायु सम्मेलन (COP29) के समापन में अभी एक सप्ताह से ज्यादा समय बचा हुआ है पर अभी से कई देशों के बीच के मतभेद सामने आ रहे हैं। अर्जेंटीना ने इस सम्मेलन से खुद को अलग कर लिया और संभावना जताई जा रही है कि वह पेरिस संधि से भी खुद को अलग कर सकता है। गौरतलब है कि यहां के प्रमुख इस सप्ताह ट्रंप से मिलने जा रहे हैं। दूसरी ओर, फ्रांस के मंत्री ने भी अपना दौरा स्थगित कर दिया क्योंकि वह सम्मेलन के आयोजक देश अजरबाइजान से नाराज है।

इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए विकसित देशों की ओर से मिलने वाले अनुदान को बढ़ाने की विकासशील देशों की मांग पर सहमति नहीं बन पाई है और ट्रंप की जीत के बीच इसपर आम सहमति न बन पाने की आशंका और गहरा गई है। अब विकसित व विकासशील दोनों के बीच तनाव की एक नई वजह यूरोपीय संघ की नई व्यापार नीति बन गई है, जिसमेें कार्बन उत्सर्जन के आधार पर आयातित वस्तुओं पर अतिरिक्त कर लिया जा रहा है।

द इंडियन एक्सप्रेस, 15 नवंबर

द इंडियन एक्सप्रेस, 15 नवंबर

विकासशील देशोें को मिलने वाले नए जलवायु वित्त पर सबकी नजर 

इस साल हो रहे जलवायु सम्मेलन कॉप-29 को इसलिए अहम माना जा रहा है क्योंकि इसमें सभी पक्षकारों के बीच ‘न्यू कलेक्टिव क्वांटिफाइड गोल’ (एनसीक्यूजी) नाम के एक नए जलवायु वित्त से जुड़े समझौते पर सहमति बनने की उम्मीद है।

कॉप-29

कॉप-29

यह समझौता 2009 में विकसित देशों द्वारा किए उस वादे की जगह लेगा जिसमें जलवायु परिवर्तन के खिलाफ जंग में विकासशील देशों की मदद करने के लिए सालाना 10,000 करोड़ डॉलर दिए जाने पर प्रतिबद्धता जताई गई थी। हालांकि यह वादा महज एक बार 2022 में पूरा किया गया है और वह भी डेडलाइन पूरी होने के दो साल बाद। विशेषज्ञों का अनुमान है कि अब विकासशील देशों के लिए जलवायु परिवर्तन संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए खरबों डॉलर वित्तीय मदद की जरूरत होगी। इस मामले में विकसित देशों ने नई मांग उठानी शुरू कर दी है कि वित्तीय मदद करने वाले देशों के समूह में अब अमीर देश जैसे चीन, कतर, सऊदी को भी जोड़ा जाए। इस बात का विकासशील देश सख्ती से विरोध कर रहे हैं। अध्ययनों से पता चला है कि वैश्विक जीडीपी के महज एक फीसदी हिस्से से विकासशील देशों की जलवायु संबंधी मौजूदा आवश्यकताओं को पूरा किया जा सकता है।

भारत ने 1.3 ट्रिलियन डॉलर सालाना जलवायु वित्त की मांग रखी 

बाकू में चल रहे सम्मेलन के दौरान ‘न्यू कलेक्टिव क्वांटिफाइड गोल’ का निर्धारित किया जाएगा जो कि 2025 से लागू होगा। इसके लिए सम्मेलन के पहले दिन रखे गए मसौदे को जी-77 और चीन ब्लॉक (134 विकासशील देशों का समूह) ने ठोस न मानते हुए खारिज कर दिया था। फिर दोबारा आए मसौदे 1.3 ट्रिलियन डॉलर सालाना जलवायु वित्त की मांग की। यह मांग समान विचारधारा वाले विकासशील देशों की तरफ से भारत ने रखी। गौरतलब है कि सम्मेलन में अब तक सुलभता, पारदर्शिता और मानवाधिकार जैसे मुद्दों पर प्रगति हुई लेकिन वित्त की कुल राशि, स्रोत और योगदानकर्ताओं के चयन जैसे मुख्य विषयों पर वार्ता लंबित है।

कार्बन टैक्स पर यूरोपीय संघ व भारत-चीन में ठनी 

कॉप29 में विवाद का एक अन्य प्रमुख मुद्दा यूरोपीय संघ का कार्बन टैक्स बन गया है। भारत व चीन ने जलवायु सम्मेलन के दौरान इस मुद्दे पर वार्ता की मांग रखी जिससे यूरोपीय संघ ने यह कहकर इनकार कर दिया कि यह मंच व्यापार पर बात करने का नहीं है। इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, इस पर चीन-भारत की ओर से बीते शुक्रवार को कहा गया कि विश्व व्यापार संघ के मंच पर भी यूरोपीय संघ ने इस पर बात नहीं की थी, फिर आखिर वह इस पर कहां बात करना चाहता है?

द इंडियन एक्सप्रेस, 16 नवंबर

द इंडियन एक्सप्रेस, 16 नवंबर

दरअसल, यूरोपीय संघ ने पिछले साल एक नीति बनाई है जिसका नाम ‘कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज़्म’ (CBAM) है। इसके तहत 2026 से यूरोपीय संघ में आयात होने वाले उन उत्पादों पर कार्बन टैक्स लगाएगा, जिसके निर्माण में ज्यादा ऊर्जा खर्च होती है। यह टैक्स उन उत्पादों के उत्पादन के दौरान हुए कार्बन उत्सर्जन पर आधारित होता है।

मेजबान देश के प्रमुख की हो रही आलोचना

अजरबाइजान की राजधानी बाकू में हो रहे जलवायु सम्मेलन में इस देश के राष्ट्रपति इल्हाम अलीयेव की ओर से दिए गए भाषणों की खासी आलोचना हो रही है। अमेरिकी समाचार वेबसाइट सीएनएन ने कॉप29 के ‘बेपटरी’ होने पर एक खबर लिखी है, जिसकी हेडिंग इस ओर इशारा करती है। हेडिंग है – ‘जलवायु नेता चिंता में थे कि ट्रंप वार्ता को पटरी से उतार देंगे पर उन्हें नहीं पता था कि उनका मेजबान ही विध्वंसकारी साबित होगा।’  दरअसल सम्मेलन में दिए भाषण के दौरान राष्ट्रपति अलीयेव ने फ्रांस और नीदरलैंड्स पर आरोप मानवाधिकार हनन के आरोप लगाए, जिसके बाद फ्रांस ने सम्मेलन में आने का दौरा रद्द कर दिया हालांकि नीदरलैंड्स इसमें शामिल हुआ है।

इल्हाम अलीयेव, राष्ट्रपति, अजरबाइजान

इल्हाम अलीयेव, राष्ट्रपति, अजरबाइजान

अपने पहले दिन के भाषण के लिए भी अलीयेव की आलोचना हुई थी जिसमें उन्होंने पश्चिमी देशों, एनजीओ व अंतरराष्ट्रीय मीडिया को पाखंडी बताया था। साथ ही, भाषण में उन्होंने अपने देश के तेल व गैस के भंडार को ‘भगवान का उपहार’ बताते हुए अपने उस रूख का बचाव किया था जिसमें वे जीवाश्म ईंधन के बचाव व प्रसार का समर्थन करते हैं। अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण संगठन ‘350 डॉट ओआरजी’ के विश्लेषण के अनुसार, अलीयेव ने अपने तीन-चौथाई से अधिक भाषणों में जीवाश्म ईंधन का बचाव या प्रचार किया।

 

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चुनाव धांधली : राहुल गांधी के दावों पर इंडियन एक्सप्रेस की जाँच

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राहुल गांधी, साभार - इंटरनेट

बोलते पन्ने | नई दिल्ली 

द इंडियन एक्सप्रेस अख़बार के सात जून के संस्करण में राहुल गांधी के लिखे एक लेख के बाद भारतीय राजनीति में चुनावी पारदर्शिता की बहस छिड़ गई है। राहुल गांधी ने पिछले साल हुए महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों को मैच फिक्सिंग बताया और चेताया कि ऐसा बिहार में भी हो सकता है।  अख़बार ने ठीक अगले दिन राहुल के दावों को अपनी जाँच के आधार पर ख़ारिज किया है। साथ ही, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस का भी एक विस्तृत लेख छापा है जो इस मामले में भाजपा का पक्ष रखता है। यह पूरा मामला इंडियन एक्सप्रेस की पत्रकारिता के लिए भी उदाहरण पेश करता है, जिसमें न सिर्फ राहुल गांधी को अपने दावे रखने का पूरा स्थान दिया गया, बल्कि अगले दिन अख़बार ने स्वतंत्र रूप से इसे जांचा और आरोपी पक्षों (भाजपा/चुनाव आयोग) को भी यथावत स्थान दिया। 

राहुल गांधी का लेख, इंडियन एक्सप्रेस, 7 जून संस्करण

राहुल गांधी का लेख, इंडियन एक्सप्रेस, 7 जून संस्करण

महाराष्ट्र चुनाव में धांधली को लेकर राहुल का लेख – ‘Match-fixing Maharashtra’  

राहुल गांधी ने इस लेख के जरिए एलओपी ने साल 2024 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में कथित धांधली को लेकर एक गंभीर आरोप है। लेख में पांच-चरणीय रणनीति के जरिए BJP पर मतदाता सूची में हेरफेर, मतदान प्रतिशत बढ़ाने और लक्षित बूथों पर फर्जी मतदान का आरोप लगाया गया है। 

  1. चुनाव आयोग की नियुक्ति प्रक्रिया में हेरफेर (Rig the panel for appointing the Election Commission):
    • गांधी ने 2023 के Election Commissioners Appointment Act पर सवाल उठाया, जिसमें चुनाव आयुक्तों की समिति से भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) को हटा दिया गया। 
  2. मतदाता सूची में फर्जी मतदाताओं को जोड़ना(Add fake voters to the roll):
    • गांधी ने दावा किया कि 2019 के विधानसभा चुनावों में महाराष्ट्र में पंजीकृत मतदाताओं की संख्या 8.98 करोड़ थी, जो मई 2024 के लोकसभा चुनावों तक 9.29 करोड़ हो गई। लेकिन नवंबर 2024 के विधानसभा चुनावों तक यह संख्या 9.70 करोड़ तक पहुंच गई, जो सरकार के अपने अनुमानों (9.54 करोड़ वयस्क आबादी) से भी अधिक थी। 
  3. मतदान प्रतिशत में हेरफेर(Inflate voter turnout):
    • गांधी ने ECI के डेटा का हवाला देते हुए कहा कि मतदान के दिन 5:30 बजे तक की अनंतिम मतदान संख्या और अंतिम मतदान संख्या में 7.83 प्रतिशत अंकों (लगभग 76 लाख मतदाताओं) का अंतर था। यह अंतर 2009 के बाद से किसी भी चुनाव की तुलना में असामान्य रूप से अधिक था।
  4. लक्षित बूथों पर फर्जी मतदान (Target the bogus voting exactly where BJP needs to win):
    • गांधी ने आरोप लगाया कि महाराष्ट्र के लगभग 1 लाख मतदान केंद्रों में से 12,000 बूथों पर, जो 85 निर्वाचन क्षेत्रों में थे जहां BJP ने लोकसभा चुनावों में खराब प्रदर्शन किया था, असामान्य रूप से अधिक मतदाता जोड़े गए। इन बूथों पर औसतन 600 अतिरिक्त मतदाता थे, जो 5 बजे के बाद मतदान में शामिल हुए। गांधी ने सवाल उठाया कि एक मतदाता को वोट डालने में एक मिनट लगने पर भी इतने वोटों के लिए 10 घंटे का समय चाहिए, जो संभव नहीं था।
  5. सबूतों को छिपाना (Hide the evidence):
  • गांधी ने ECI पर मतदाता सूची और मतदान डेटा में पारदर्शिता की कमी का आरोप लगाया। उन्होंने मांग की कि ECI 2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों की केंद्रीकृत व अंतिम मतदाता सूची सार्वजनिक करे। उन्होंने यह भी कहा कि विपक्षी दल इस मुद्दे को लेकर अदालत का रुख करेंगे।

 

चुनाव आयोग ने राहुल के आरोपों को बताया – क़ानून के प्रति अपराध 

ECI ने गांधी के आरोपों को निराधार और कानून के प्रति अपमान करार दिया। आयोग ने कहा कि 24 दिसंबर 2024 को कांग्रेस की शिकायतों का जवाब सार्वजनिक रूप से उसकी वेबसाइट पर उपलब्ध है। ECI ने यह भी बताया कि महाराष्ट्र में 6.40 करोड़ मतदाताओं ने सुबह 7 बजे से शाम 6 बजे तक मतदान किया, और कांग्रेस ने 27,099 बूथ-स्तरीय एजेंट नियुक्त किए थे, जिन्होंने उस समय कोई शिकायत नहीं की। ECI ने यह भी तर्क दिया कि नवीनतम जनगणना नहीं हुई है, इसलिए मतदाता संख्या को जनसंख्या अनुमानों से तुलना करना उचित नहीं है।

BJP की प्रतिक्रिया: केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री और BJP अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा कि वे नकली कथानक गढ़ने और संस्थानों को बदनाम करते हैं। नड्डा ने कहा कि गांधी की यह प्रतिक्रिया उनकी “हार की निराशा” और बिहार में संभावित हार के डर का परिणाम है।

 महाराष्ट्र चुनाव परिणाम के बाद राहुल ने लगाया था आरोप

 नवंबर 2024 में हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में BJP-नीत महायुति गठबंधन (BJP, एकनाथ शिंदे की शिवसेना, और अजित पवार की NCP) ने 288 में से 235 सीटें जीतीं, जिसमें BJP ने अकेले 132 सीटें हासिल कीं। इसके विपरीत, महा विकास अघाड़ी (MVA), जिसमें कांग्रेस, उद्धव ठाकरे की शिवसेना (UBT), और शरद पवार की NCP (SP) शामिल थीं, केवल 50 सीटों पर सिमट गई। गांधी ने इस मामले में 3 फरवरी 2025 को संसद में और बाद में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में महाराष्ट्र चुनावों की निष्पक्षता पर सवाल उठाए थे। उन्होंने 8 फरवरी 2025 को NCP (SP) की सुप्रिया सुले और शिवसेना (UBT) के संजय राउत के साथ एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी मतदाता सूची में अनियमितताओं का आरोप लगाया था।

राहुल गांधी के दावों की जाँच, इंडियन एक्सप्रेस 8 जून

राहुल गांधी के दावों की जाँच, इंडियन एक्सप्रेस 8 जून

 इंडियन एक्सप्रेस ने जाँच के आधार पर राहुल के दावों पर सवाल उठाए 

इंडियन एक्सप्रेस ने 8 जून 2025 को अपने लेख “Rahul Gandhi’s attack on EC doesn’t match poll data, officials say bid to ‘defame’” में राहुल गांधी के 7 जून के लेख में उठाए गए पांच-चरणीय धांधली के दावों की जांच की और इन्हें चुनौती दी। इस लेख में अखबार ने ECI के डेटा और तथ्यों का हवाला देकर गांधी के आरोपों को चुनिंदा डेटा पर आधारित और प्रमाणों से परे बताया गया। अखबार ने ECI के अधिकारियों के हवाले से कहा कि गांधी का यह हमला “निर्वाचन आयोग को बदनाम करने की कोशिश” है। ECI ने यह भी तर्क दिया कि मतदाता सूची में वृद्धि सामान्य थी, और 2004-2019 के बीच हर पांच साल में औसतन 63-100 लाख नए मतदाता जोड़े गए थे, इसलिए 2024 में 41 लाख की वृद्धि असामान्य नहीं थी।
राहुल गांधी के दावों की जाँच, इंडियन एक्सप्रेस 8 जून

राहुल गांधी के दावों की जाँच, इंडियन एक्सप्रेस 8 जून

  •  अखबार ने तर्क दिया कि ECI की नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी कोई नई बात नहीं है। 2007 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली UPA सरकार के तहत प्रशासकीय सुधार आयोग (ARC), जिसके अध्यक्ष एम. वीरप्पा मोइली थे, ने ECI नियुक्तियों के लिए एक कॉलेजियम प्रणाली की सिफारिश की थी, लेकिन इसे लागू नहीं किया गया। इंडियन एक्सप्रेस ने कहा कि सभी सरकारों, जिसमें UPA भी शामिल है, ने इस प्रक्रिया को औपचारिक बनाने का अवसर गंवाया। 2023 का कानून पहली बार ECI नियुक्तियों को औपचारिक बनाता है, जिसमें विपक्ष के नेता को समिति में शामिल किया गया है। 
  • अखबार ने ECI के डेटा के हवाले से मतदाता संख्या बढ़ने के आरोप पर लिखा कि नवंबर 2024 के लिए मतदाता सूची में 9.78 करोड़ मतदाता थे। मतदाता सूची तैयार करने के दौरान 3,901 दावों और आपत्तियों में से केवल 89 अपीलें दर्ज की गईं, और केवल एक मामला मुख्य निर्वाचन अधिकारी तक पहुंचा। यह न्यूनतम विवाद दर्शाता है। इसके अलावा, सभी राजनीतिक दलों जिसमें कांग्रेस भी शामिल थी, को मतदाता सूची तक पहुंच थी और कांग्रेस ने 27,099 बूथ-स्तरीय एजेंट नियुक्त किए थे, जिन्होंने उस समय कोई आपत्ति नहीं उठाई।
  • अखबार ने लिखा कि मतदान के दिन देर रात तक मतदाता कतार में थे, जिसके कारण अंतिम आंकड़े बाद में अपडेट किए गए। ECI ने इसे सामान्य प्रक्रिया बताया। 2009 से 2024 तक के आंकड़ों में मतदान प्रतिशत में अंतर सामान्य रहा है, जैसे 2004 में 5%, 2009 में 4%, 2014 में 3%, और 2019 में 1%। 2024 में 4% का अंतर कोई असामान्य बात नहीं थी।
  • कुछ विशेष बूथों पर बीजेपी को फायदा पहुंचने के आरोपों पर अख़बार ने देवेंद्र फडणवीस के लेख का हवाला देकर लिखा, जिसमें उन्होंने माढा (18% वृद्धि, शरद पवार समूह जीता), वानी (13% वृद्धि, उद्धव ठाकरे समूह जीता), और श्रीरामपुर (12% वृद्धि, कांग्रेस जीता) जैसे उदाहरण दिए। इनसे पता चलता है कि मतदान वृद्धि का लाभ केवल BJP को नहीं, बल्कि MVA को भी मिला।
  • अंतिम आरोप पर अखबार ने ECI के हवाले से कहा कि मतदाता सूची सभी दलों के लिए उपलब्ध थी, और कांग्रेस के बूथ-स्तरीय एजेंट्स ने प्रक्रिया की निगरानी की थी। ECI ने 24 दिसंबर 2024 को कांग्रेस की शिकायतों का जवाब अपनी वेबसाइट पर सार्वजनिक किया था।
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अमेरिकी अख़बार ने क्यों लिखा- ‘जाँच के घेरे में फिर आए गौतम अदाणी’

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सांकेतिक तस्वीर

बोलते पन्ने | नई दिल्ली

अमेरिकी अख़बार ‘द वॉल स्ट्रीट जर्नल’ ने तीन जून, 2025 के अपने संस्करण में एक खबर में दावा किया है कि भारतीय अरबपति गौतम अदाणी एक नई अमेरिकी जाँच में फँस गए हैं। अख़बार का दावा है कि अमेरिकी अभियोजक इस बात की जाँच कर रहे हैं कि उनकी कंपनियां कहीं ईरान से एलपीजी आयात करके अपने मुंद्रा पोर्ट के ज़रिए भारत तो नहीं ला रही थीं?

दरअसल राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मई के पहले सप्ताह में पूरी दुनिया को चेतावनी दी थी कि कोई भी ईरान से तेल या पेट्रोकेमिकल्स नहीं खरीदेगा, ऐसा करने पर उस देश या व्यक्ति के ख़िलाफ़ अमेरिकी प्रतिबंध लगा दिए जाएंगे। यह भी बता दें कि वॉल स्ट्रीट जर्नल की ख़बर का अदाणी की कंपनी ने खंडन किया है। ज्ञात हो कि नवंबर, 2024 में  कारोबारी गौतम अदाणी पर अमेरिका में धोखाधड़ी और रिश्वत का मुक़दमा दायर हुआ था, जिसके बाद अब एक और मामले की जाँच को लेकर अख़बार ने दावा किया है।

 

द वॉल स्ट्रीट जर्नल, ३ जून

द वॉल स्ट्रीट जर्नल, ३ जून

वॉल स्ट्रीट जर्नल ने इस मामले पर की खोजी रिपोर्ट 

अख़बार ने अपनी खोजी पड़ताल का हवाला देते हुए लिखा है कि उन्होंने मुंद्रा पोर्ट से फ़ारस की खाड़ी की ओर रेग्युलर जाने वाले जहाज़ों की गतिविधियों को जांचा, जिसमें कुछ ऐसी गतिविधियां पायी गईं जो अक्सर उन जहाजों में देखने को मिलती हैं जो प्रतिबंधों से बचने की कोशिश करते हैं। वॉल स्ट्रीट जर्नल की हालिया जांच में दावा किया गया कि मुंद्रा पोर्ट और फारस की खाड़ी के बीच चलने वाले एलपीजी टैंकरों ने जहाजों के स्वचालित पहचान प्रणाली (AIS) में हेरफेर करके प्रतिबंधों से बचने की कोशिश की। अख़बार ने 3 अप्रैल 2024 को एक जहाज़ की तस्वीरों के आधार पर ऐसा दावा किया है, जिसे आप इस आर्टिकल में अटैच अख़बार की कटिंग पर जाकर विस्तार से पढ़ सकते हैं।

द वॉल स्ट्रीट जर्नल, ३ जून

द वॉल स्ट्रीट जर्नल, ३ जून

अदाणी ने वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट को निराधार बताया

अखबार ने इस मामले में अदाणी के बयान को भी प्रमुख ख़बर में छापा है जिसमें कहा गया है कि – अदाणी समूह की कंपनियों और ईरानी एलपीजी के बीच संबंध का आरोप लगाने वाली वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट निराधार और नुकसान पहुंचाने वाली है। अदाणी जानबूझकर किसी भी तरह के प्रतिबंधों से बचने या ईरानी एलपीजी से जुड़े व्यापार में संलिप्तता से साफ़ इनकार करता है। हमें इस विषय पर अमेरिकी अधिकारियों द्वारा किसी भी जांच की जानकारी नहीं है।

अख़बार ने अपनी ख़बर में अदाणी के बारे में यह भी लिखा है कि गौतम अदाणी एशिया के दूसरे सबसे बड़े अमीर व्यक्ति हैं जो भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी सहयोगी हैं। अख़बार ने लिखा है कि भारत की आर्थिक प्रगति का सबसे बड़ा कारण रहे निर्माण क्षेत्र में अदाणी की कई कंपनियों की बड़ी भागीदारी रही है।

द वॉल स्ट्रीट जर्नल, ३ जून

द वॉल स्ट्रीट जर्नल, ३ जून

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पहलगाम आतंकी हमले पर अखबारी कवरेज

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इंडियन एक्सप्रेस
22 अप्रैल की दोपहर को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 26 लोगों की गोलियों से मार डाला गया। इस आतंकी घटना में जान गंवाने वाले 25 पर्यटकों में से एक नेपाली और बाकी भारतीय थे जो कश्मीर में अपनों के साथ घूमने आए थे। इसके अलावा, एक स्थानीय पोनी वाले को भी आतंकियों ने गोलियों से भून डाला क्योंकि वह आतंकियों से अपने दम पर मोर्चा लेने की कोशिश कर रहा था। पुलवामा हमले के बाद यह सबसे बड़ी आतंकी घटना मानी गई है, जिसके बाद आज दिन तक दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर है।

इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा- अमेरिकी दौरे के बीच भारत में आतंकी हमलों का रहा है पैटर्न

इंडियन एक्सप्रेस ने लीड लगाई है – terrorists kill tourists in Kashmir यानी ‘कश्मीर में आतंकियों ने पर्यटकों को निशाना बनाया’। अखबार ने पहले पन्ने पर लगाई एक खबर में लिखा है कि बीते वर्षों में यह पैटर्न देखा गया है कि जब भी किसी अमेरिकी प्रतिनिधि की भारत यात्रा हुई है, आतंकियों ने उस मौके पर घटनाओं को अंजाम दिया है। अखबार ने साल 2000 में 32 ग्रामीणों को मार डालने व साल 2002 में दस बच्चों समेत 30 लोगों को गोलियों के भून डाला था। अखबार का कहना है कि ऐसे दौरों के बीच घटनाएं करके वे अंतरराष्ट्रीय मीडिया में चर्चा पा जाते हैं। अखबार ने यह भी लिखा है कि यह घटना ऐसे समय हुई है जब पाकिस्तान के सेना अध्यक्ष जनरल असर मुनीर ने कहा कि कश्मीर हमारी जीवन रेखा (जुगुलर वेन्स) है। अखबार ने सूत्र के हवाले से लिखा है कि लोकल हैंडलर की मदद से वे बैसरन घाटी तक पहुंचे और मौजूद पर्यकों पर फायरिंग शुरू कर दी। इनके पास M4 व AK47 रायफल थीं। इसकी जांच जल्द ही एनआईए को दे दी जाएगी।

इंडियन एक्सप्रेस

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द हिन्दी ने लिखा – कश्मीर की डेमोग्राफी ‘बदलने’ को टीआरएफ ने बताया हमले की वजह 

द हिन्दू ने लिखा है कि पहलगाम हमले की जिम्मेदारी लेने वाले समूह ‘द रेजिस्टेंट ग्रुप’ (TRF) ने अपने बयान में दावा किया कि ”जम्मू-कश्मीर में 85 हज़ार ग़ैर स्थानीय लोगों को मूल निवास प्रमाणपत्र जारी किए गए जो कि वहां की डेमोग्राफी बदलने के तहत हुआ। हम ऐसे लोगों के ख़िलाफ़ हिंसा करेंगे जो वहां अवैध रुप से बसने की कोशिश करेंगे।” अख़बार ने बताया है कि टीआरएफ एक आतंकी समूह है जो कि पाकिस्तान से संचालित हो रहे लश्कर-ए-तैएबा आतंकी संगठन का ही हिस्सा है।

द हिन्दू

द हिन्दू

 

आतंकी हमले की टाइम लाइन – HT

हिन्दुस्तान टाइम्स के मुताबिक़, जंगलों से निकलकर आए चार आतंकियों ने 22 अप्रैल की दोपहर 1:50 बजे पर्यटकों पर खुली फायरिंग शुरू कर दी, जिससे बचने के लिए कई लोग फेन्स की ओर भागे। स्थानीय पोनी वाले और गाइडों ने सबसे पहले पर्यटकों को सुरक्षित निकालना शुरू किया, इसके बाद पुलिस व सेना पहुंची।

हिन्दुस्तान टाइम्स

हिन्दुस्तान टाइम्स

 

देश में दंगा कराने के मकसद से हुई धर्म देखकर हत्या – TOI

टाइम्स ऑफ इंडिया ने पहले पन्ने की ख़बर में लिखा है कि आतंकवादियों का यह कृत्य जिसमें उन्होंने धार्मिक मान्यता के आधार पर लोगों को चुनकर मारा, यह संभवता देश में धार्मिक दंगे कराने की नीयत से किया गया था। अख़बार लिखता है कि इससे पहले तक पर्यटकों पर आतंकवादी गोलीबारी करने से बचते थे क्योंकि उनके ज़रिए ही इस केंद्रशासित प्रदेश में रूपया पहुंचता है।

मौत की संख्या अलग- पहलगाम नरसंहार को लेकर शुरूआती जानकारियां स्पष्ट नहीं थीं, मौत का आंकड़ा आधिकारिक तौर पर जारी नहीं किया गया था, ऐसे में पहले दिन छपी ख़बर में मौत की संख्या में अंतर दिखता है। टाइम्स ऑफ इंडिया ने लिखा कि पहलगाम नरसंहार में 28 की हत्या हुई जिसमें दो विदेशी मूल के पर्यटक थे। साथ ही, मौके पर बच गए लोगों के हवाले से लिखा है कि आतंकियों की संख्या छह तक थी। हालांकि अब हम जानते हैं कि कुल 26 की हत्या हुई जिसमें एक स्थानीय पोनीवाला कश्मीरी और बाकी 25 पर्यटक थे। इन पयर्टकों में एक नेपाली मूल के जबकि अन्य भारतीय थे।

टाइम्स ऑफ इंडिया

टाइम्स ऑफ इंडिया

 

 

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