Connect with us

जनहित में जारी

मुंद्रा पोर्ट : एक छोटे गांव से कैसे बना वैश्विक बंदरगाह   

Published

on

मुंद्रा बंदरगाह

 

बोलते पन्ने | नई दिल्ली

मुंद्रा, गुजरात के कच्छ ज़िले का एक शांत तटीय गांव था, जहाँ स्थानीय मछुआरों और किसानों की जीविका समुद्र और ज़मीन से जुड़ी थी। 1998 में जब अदाणी ग्रुप ने यहां पोर्ट विकसित करने की घोषणा की तो इसे ‘नए भारत’ के इंफ्रास्ट्रक्चर विकास की शुरुआत के रूप में देखा गया। आज यह 155 मिलियन मेट्रिक टन कार्गो और 33% कंटेनर ट्रैफिक के साथ भारत का सबसे बड़ा वाणिज्यिक बंदरगाह है, इसकी शुरुआत 2021 में हुई थी। आइए देखते है कि कैसे यह गाँव भारत के सबसे व्यस्त व बड़े वाणिज्यिक बंदरगाह में बदल गया। यह बंदरगाह हाल के इतिहास में तब चर्चा में आया, जब  2021 में यहां से 21,000 करोड़ रुपये की हेरोइन जब्ती हुई। इस साल मई में इस बंदरगाह ने फिर चर्चा पकड़ी जब अमेरिकी अख़बार ने दावा किया कि अदाणी ने इस पोर्ट के ज़रिए ईरान से कथित तौर पर प्रतिबंधित एलपीजी को भारत पहुंचाया।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: 17वीं सदी में बन गया था व्यापारिक केंद्र

कच्छ के राजा भोजराजजी प्रथम का बनवाया मुंद्रा किला

 

1640 के दशक में स्थापित मुंद्रा पोर्ट को राव भोजराजजी प्रथम ने स्थापित किया, तब यह एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र था। मुंद्रा 19वीं सदी में कपास व्यापार का केंद्र बना। यह ज़ांज़ीबार, फारस, अफ्रीका और कतर जैसे क्षेत्रों के साथ व्यापारिक मार्गों को जोड़ता था।  अडानी समूह ने अपनी वेबसाइट पर मुंद्रा पोर्ट के ऐतिहासिक महत्व का उल्लेख किया है, जिसमें इसके प्राचीन व्यापारिक केंद्र के रूप में भूमिका और कच्छ के शासकों द्वारा इसके विकास की जानकारी शामिल है।

कांग्रेस ने कौड़ियों के भाव बेची मुंद्रा गांव की ज़मीन

मुंद्रा पोर्ट के लिए सबसे पहली बार जमीन सन 1993 में गुजरात सरकार द्वारा गौतम अडानी को आवंटित की गई थी। उस समय गुजरात में कांग्रेस पार्टी की सरकार थी और चिमनभाई पटेल मुख्यमंत्री थे। यह जमीन अदाणी समूह को 10 पैसे प्रति वर्ग मीटर की दर पर दी गई थी, जिसे लेकर बाद में काफी विवाद हुआ। केंद्र में उस समय कांग्रेस पार्टी की सरकार थी, जिसके प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिम्हा राव थे। यह एक महत्वपूर्ण कदम था जिसने अदाणी समूह को इस क्षेत्र में प्रवेश करने का मौका दिया। हालांकि बाद की सरकारों ने भी अदाणी को कौड़ियों के भाव जमीन बेची।

मुंद्रा की ज़मीन, साभार इंटरनेट

मुंद्रा की ज़मीन, साभार इंटरनेट

  • अदाणी का दावा – बंजर थी जमीन : गौतम अडानी की कंपनी गुजरात अडानी पोर्ट लिमिटेड को 1995 में मुंद्रा पोर्ट के संचालन का अनुबंध मिला और इसके लिए 1,840 हेक्टेयर जमीन आवंटित की गई थी। गौतम अडानी ने दावा किया कि यह जमीन बंजर और दलदली थी  जो उच्च ज्वार (हाई टाइड) के दौरान पानी में डूब जाती थी और इसे उपयोगी बनाने के लिए बड़े पैमाने पर रिक्लेमेशन कार्य किया गया। 

भाजपा सरकारों ने सस्ते दामों पर आवंटन जारी रखा  

  • 1998-2000: अडानी समूह को पोर्ट के विस्तार और SEZ के लिए अतिरिक्त जमीन आवंटित की गई। नवभारत टाइम्स के अनुसार, गौतम अडानी ने दावा किया कि यह जमीन 1 रुपये प्रति वर्ग फुट (लगभग 10.76 रुपये प्रति वर्ग मीटर) की दर पर दी गई, जो बाजार मूल्य से कम थी। तब गुजरात में केशुभाई पटेल के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार का शासन था। इस दौरान मुंद्रा पोर्ट का विकास शुरू हुआ, जिसमें रेलवे लाइन, सड़कें, और हवाई अड्डे का निर्माण शामिल था। अडानी ने इसे गुजरात की उद्योग-अनुकूल नीतियों का परिणाम बताया।

    साभार इंटरनेट

    साभार इंटरनेट

  • 2001-2014: बड़े पैमाने पर विस्तार के लिए ज़मीन आवंटन हुआ। इस अवधि में मुंद्रा पोर्ट और SEZ के लिए बड़े पैमाने पर जमीन आवंटित की गई। सटीक साल-दर-साल आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन 2005-2010 के बीच SEZ के लिए हजारों हेक्टेयर जमीन दी गई। 2010 में पर्यावरण मंत्रालय ने 29,610 करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट को उल्लंघन के लिए नोटिस जारी किया, जिसमें अतिरिक्त जमीन आवंटन भी शामिल था। इस दौरान नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार थी। इस दौरान मुंद्रा पोर्ट भारत का सबसे बड़ा निजी बंदरगाह बना। अडानी समूह ने 35,000 एकड़ में मल्टीमॉडल हब विकसित किया, जिसमें पावर प्लांट्स (टाटा और अडानी पावर) और औद्योगिक इकाइयां शामिल थीं।
  • 2014-2025: इस अवधि में भी SEZ और संबंधित प्रोजेक्ट्स के लिए जमीन आवंटन जारी रहा। 2023 तक मुंद्रा पोर्ट ने 155 मिलियन मेट्रिक टन कार्गो हैंडल किया, जो अतिरिक्त बुनियादी ढांचे के लिए जमीन की आवश्यकता को दर्शाता है। सटीक रेट्स की जानकारी सार्वजनिक रूप से सीमित है, लेकिन कई मीडिया रिपोटर्स में दावा किया कि जमीन बाजार मूल्य से कम दर पर मिली। इस दौरान विजय रूपाणी (2016-2021) और भूपेंद्र पटेल (2021-वर्तमान) के नेतृत्व में भाजपा सरकार शासन में रही। इस दौरान कच्छ कॉपर रिफाइनरी जैसे प्रोजेक्ट्स शुरू हुए। गुजरात सरकार ने बंजर जमीन को लीज पर देने की नीति को बढ़ावा दिया, जिसमें मुंद्रा क्षेत्र की जमीनें शामिल थीं।
मुंद्रा पोर्ट, साभार इंटरनेट

मुंद्रा पोर्ट, साभार इंटरनेट

गाँव के मछुआरों ने आजीविका छिनने से अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा किया

गुजरात के कच्छ जिले के मुंद्रा के पास नवीनल गांव और आसपास के मछुआरे और किसानों ने अपनी आजीविका नष्ट होने के ख़िलाफ़ अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में केस दायर किया। दरअसल मुंद्रा के पास भारत की बढ़ती ऊर्जा मांग को पूरा करने और औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने के लिए टाटा मुंद्रा अल्ट्रा मेगा पावर प्रोजेक्ट (UMPP) बनाया गया था। जो 2012 में चालू हुआ लेकिन इसके पर्यावरणीय प्रभाव ने स्थानीय मछुआरों की आजीविका पर इसने इतना असर डाला कि पीड़ित मछुआरे प्रोजेक्ट के ख़िलाफ़ अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचे

अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट

अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट

 इस कोयला आधारित संयंत्र को मुंद्रा पोर्ट व उस  ने गर्म पानी के उत्सर्जन, कोयले की राख और वायु प्रदूषण के चलते मछली पकड़ने और खेती को प्रभावित किया, जिससे मछुआरों की आजीविका नष्ट हुई। इससे पीड़ित मछुआरे बुद्धा इस्माइल जाम के नेतृत्व में ग्रामीणों ने 2015 में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा दायर किया। 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि IFC को पूर्ण कानूनी छूट नहीं है, और मामला निचली अदालत में भेजा गया। यह पर्यावरणीय और सामाजिक जवाबदेही के लिए ऐतिहासिक कदम है। बता दें कि  इस कोयला आधारित संयंत्र को IFC ने 2008 में 450 मिलियन डॉलर का ऋण दिया था।
आजीविका के लिए पीड़ित एक मछुआरा https://www.flickr.com/photos/132447887@N06/17138323000

आजीविका के साधन नष्ट होने से पीड़ित एक मछुआरा, साभार इंटरनेट

चरागाह की ज़मीन अदाणी को दिए जाने के ख़िलाफ़ कोर्ट गए ग्रामीण 
मुंद्रा पोर्ट के विस्तार से जुड़े एक ज़मीन आवंटन के ख़िलाफ़ नवीनल गाँव के ग्रामीणों ने गुजरात हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, यह गाँव मुंद्रा गाँव के पड़ोस में ही स्थित है। साल 2005 में गुजरात सरकार ने अडानी पोर्ट्स एंड स्पेशल इकोनॉमिक जोन (APSEZ) को नवीनल गांव में 231 एकड़ (लगभग 108 हेक्टेयर) चरागाह भूमि का आवंटन किया। इस ज़मीन आवंटन की जानकारी इस गाँव के लोगों को पाँच साल बाद 2010 में तब लगी जब APSEZ ने जमीन की फेंसिंग शुरू कर दी। ग्रामीणों ने दावा किया कि उनकी ज़मीन ले लिए जाने के बाद अब गाँव में केवल 45 एकड़ चरागाह ज़मीन बची है जो पशुओं के लिए अपर्याप्त है। साथ ही ग्रामीणों ने सरकार की ओर से किए गए इस आवंटन को अवैध बताया क्योंकि यह सामुदायिक संसाधन था। 2011 में नवीनल गांव के निवासियों ने गुजरात हाई कोर्ट में जनहित याचिका (PIL) दायर की। लंबी पैरवी के बाद 5 जुलाई 2024 को गुजरात सरकार ने कोर्ट को सूचित किया कि वह 108 हेक्टेयर जमीन को अदाणी से वापस लेगी और 129 हेक्टेयर (108 हेक्टेयर अडानी से + 21 हेक्टेयर सरकारी) ज़मीन को चरागाह के रूप में गांव को लौटाएगी। पर इस आदेश के ख़िलाफ़ अदाणी सुप्रीम कोर्ट चले गए और 10 जुलाई 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने अदाणी की अपील पर हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी है, इसमें कहा गया है कि अदाणी को सुनवाई का उचित अवसर नहीं मिला।
मुंद्रा बंदरगाह

मुंद्रा बंदरगाह

भारत का प्रमुख व्यापारिक गेट-वे बना मुंद्रा पोर्ट 
  • यह पोर्ट भारत के आर्थिक विकास का प्रतीक बन गया है, जो देश के 25% से अधिक समुद्री कार्गो को संभालता है और वैश्विक व्यापार में भारत की स्थिति को मजबूत करता है।
  • यह पोर्ट 155 मिलियन टन से अधिक कार्गो और भारत के 33% कंटेनर ट्रैफिक को संभालता है। यह कोयला, कंटेनर, तरल कार्गो, रोल-ऑन-रोल-ऑफ (Ro-Ro), और प्रोजेक्ट कार्गो जैसे विविध कार्गो को संभालने में सक्षम है।
  • इसकी रणनीतिक स्थिति, गहरे ड्राफ्ट और ऑल-वेदर क्षमताओं ने इसे उत्तरी और उत्तर-पश्चिमी भारत के लिए एक प्रमुख व्यापारिक गेटवे बनाया है।

विवादों से नाता : ड्रग तस्करी से लेकर राजनीतिक समर्थन तक 

गुजरात के कच्छ जिले में खाड़ी के उत्तरी तट पर स्थित मुंद्रा पोर्ट का संचालन वर्ष 2001 में शुरू हुआ और इसका संचालन Adani Ports and Special Economic Zone (APSEZ) के अधीन है। मुंद्रा पोर्ट के कई राजनीतिक और विवादास्पद मुद्दे जुड़े रहे हैं जो इसे लगातार चर्चा में लाते रहे हैं:  

  • पर्यावरणीय उल्लंघन:
    • 2013 में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की सुनीता नारायण की अध्यक्षता वाली एक समिति ने मुंद्रा वेस्ट पोर्ट के पास जहाज-तोड़ने की सुविधा में पर्यावरणीय नियमों के उल्लंघन, जैसे नालों को अवरुद्ध करना और पर्यावरणीय प्रभावों की अनदेखी के सबूत पाए। इसके लिए अडानी पोर्ट्स को 200 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया।
    • पर्यावरणीय स्थिरता के लिए मैनग्रोव वनीकरण और 17.5 मिलियन पेड़ लगाने जैसे कदम उठाए गए हैं, लेकिन ये विवाद अभी भी चर्चा में हैं।
  • ड्रग्स तस्करी के आरोप:
    • 3 अक्टूबर 2021 को डायरेक्टोरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस (DRI) ने अडानी द्वारा संचालित मुंद्रा पोर्ट पर दो कंटेनरों से 2,988.21 किलोग्राम हेरोइन जब्त की, जिसकी वैश्विक बाजार में कीमत लगभग 21,000 करोड़ रुपये थी। यह कंटेनर खाड़ी देश से आया था और इसमें टेक्सटाइल के साथ हेरोइन छिपाई गई थी। यह भारत के बंदरगाहों पर अब तक की सबसे बड़ी ड्रग्स जब्ती थी।
    • इन आरोपों ने पोर्ट की निगरानी और सुरक्षा प्रक्रियाओं पर सवाल उठाए हैं।

      सांकेतिक तस्वीर

      सांकेतिक तस्वीर

  • संभावित प्रतिबंधों का उल्लंघन:
    • वॉल स्ट्रीट जर्नल की एक हालिया जांच में दावा किया गया कि मुंद्रा पोर्ट और फारस की खाड़ी के बीच चलने वाले एलपीजी टैंकरों ने जहाजों के स्वचालित पहचान प्रणाली (AIS) में हेरफेर कर प्रतिबंधों से बचने की कोशिश की। यह मामला विशेष रूप से रूस और ईरान जैसे देशों से संबंधित है।
    • इन आरोपों ने अडानी समूह की वैश्विक व्यापार प्रथाओं पर सवाल उठाए हैं, और प्रवर्तन निदेशालय (ED) और केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) इसकी जांच कर रहे हैं।
  • राजनीतिक समर्थन और विवाद:
    • अडानी समूह पर केंद्र और गुजरात की बीजेपी सरकारों से नजदीकी संबंधों के आरोप लगते रहे हैं। विपक्ष का दावा है कि नरेंद्र मोदी की सरकार ने अडानी को अनुचित लाभ पहुँचाया, जैसे पोर्ट परियोजनाओं के लिए अनुकूल नीतियाँ और रियायतें।
    • हालांकि, अडानी समूह ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि उनका विकास उनकी रणनीतिक दृष्टि और कठिन परिश्रम का परिणाम है।

वॉल स्ट्रीट जर्नल का हालिया बयान

वॉल स्ट्रीट जर्नल ने हाल ही में एक लेख में दावा किया कि गौतम अडानी फिर से जांच के दायरे में हैं, विशेष रूप से मुंद्रा पोर्ट के माध्यम से संभावित प्रतिबंधों के उल्लंघन के कारण। लेख में कहा गया है कि पोर्ट और फारस की खाड़ी के बीच टैंकरों की गतिविधियाँ संदिग्ध हैं, और जहाजों ने AIS डेटा में हेरफेर कर इराक में रुके होने का गलत संकेत दिया। यह मामला भारत-अमेरिका संबंधों और वैश्विक व्यापार नीतियों के संदर्भ में चर्चा में है।

जनहित में जारी

सरकारी कागजों में तो ‘VIP’ और ‘VVIP’ की कोई औक़ात नहीं !

Published

on

ये कुर्सियां कुछ कहती हैं...

बोलते पन्ने | नई दिल्ली  

भारत में “वीआईपी” और “वीवीआईपी” शब्द रोज़मर्रा की ज़ुबान का हिस्सा बन चुके हैं। ट्रैफिक रास्तों का बदलना, मंदिरों में विशेष दर्शन, या हवाई अड्डों पर प्राथमिकता, इन शब्दों से जुड़ी सुविधाएं आम हैं। लेकिन हैरानी की बात है कि इनका कोई औपचारिक कानूनी आधार नहीं है। हाल में दाखिल एक आरटीआई और गृह मंत्रालय के जवाब ने इस अनौपचारिक व्यवस्था को फिर से चर्चा में ला दिया है।
जब सरकार इन श्रेणियों को आधिकारिक तौर पर मानती ही नहीं, और न ही कोई लिखित नियम है कि वीआईपी या वीवीआईपी के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए, तो यह विशेष दर्जा आता कहां से है? क्या यह सिर्फ़ एक अनौपचारिक रिवाज है, या इसके पीछे कोई गहरी व्यवस्था काम करती है? आइए, इस लेख में वीआईपी और वीवीआईपी की हकीकत, उनके पीछे की सुरक्षा व्यवस्था, और इस “संस्कृति” की ऐतिहासिक और सामाजिक जड़ों को खंगालते हैं, ताकि समझ सकें कि यह विशेषाधिकार वास्तव में कितना विशेष है।
वीआईपी दर्जे से जुड़ी डॉ. प्रदीप की आरटीआई पर गृह मंत्रालय का जवाब

वीआईपी दर्जे से जुड़ी डॉ. प्रदीप की आरटीआई पर गृह मंत्रालय का जवाब

डॉ. प्रदीप की आरटीआई: गृह मंत्रालय का जवाब
9 जून 2025 को बरेली कॉलेज के पूर्व लॉ विभागाध्यक्ष और आरटीआई कार्यकर्ता डॉ. प्रदीप कुमार ने गृह मंत्रालय से पूछा कि वीआईपी और वीवीआईपी दर्जे के लिए कौन पात्र है, और इससे संबंधित नियम, अधिसूचनाएं, या सरकारी आदेश उपलब्ध कराए जाएं। 16 जून 2025 को गृह मंत्रालय की वीआईपी सिक्योरिटी यूनिट ने जवाब दिया कि “ऐसा कोई आधिकारिक नामकरण (nomenclature) नहीं है जो किसी व्यक्ति को वीआईपी या वीवीआईपी का दर्जा देता हो।” सुरक्षा का निर्धारण खुफिया एजेंसियों द्वारा खतरे के आकलन (threat perception) के आधार पर होता है। डॉ. प्रदीप ने इस जवाब को असंतोषजनक बताया, उनका कहना है कि यूनिट का नाम ही ‘वीआईपी सिक्योरिटी यूनिट’ है, जो स्वयं विरोधाभासी है।
डॉ. प्रदीप की आरटीआई में VIP/VVIP वैधानिकता पर मांगी गई जानकारी

डॉ. प्रदीप की आरटीआई में VIP/VVIP वैधानिकता पर मांगी गई जानकारी

 

डॉ. प्रदीप कुमार, आरटीआई एक्टिविस्ट व कानूनविद

डॉ. प्रदीप कुमार, आरटीआई एक्टिविस्ट व कानूनविद (साभार – फ़ेसबुक)

वीआईपी और वीवीआईपी की परिभाषा
  • वीआईपी (Very Important Person): सामाजिक, राजनीतिक, या आर्थिक रूप से प्रभावशाली व्यक्ति, जैसे राजनेता, सेलिब्रिटी, उद्योगपति, वरिष्ठ अधिकारी, या धार्मिक नेता।
  • वीवीआईपी (Very Very Important Person): उच्चतर श्रेणी, जैसे प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, या शीर्ष न्यायाधीश। 
साभार इंटरनेट

साभार इंटरनेट

वीआईपी संस्कृति लोकतांत्रिक नैतिकता के ख़िलाफ़ : सुप्रीम कोर्ट  

2013 में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से इन शब्दों की उत्पत्ति और लोकतांत्रिक भारत में इनके उपयोग की प्रासंगिकता पर सवाल उठाया। कोर्ट ने इसे “लोकतांत्रिक नैतिकता” के खिलाफ माना और सुरक्षा संसाधनों के दुरुपयोग पर चिंता जताई। 2012 और 2013 में सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई और गृह मंत्रालय के जवाबों के अनुसार, इन शब्दों की कोई कानूनी परिभाषा नहीं है। “वॉरंट ऑफ प्रेसिडेंस” केवल औपचारिक समारोहों के लिए प्राथमिकता तय करता है, लेकिन दैनिक सुविधाएं अनौपचारिक और खतरे के आकलन पर आधारित हैं।

सुरक्षा श्रेणियों को जानिए:

भारत में सुरक्षा छह स्तरों में बांटी गई है: SPG, Z+, Z, Y+, Y, और X।

  • SPG (Special Protection Group): यह केवल प्रधानमंत्री और उनके परिवार (तथा पूर्व प्रधानमंत्रियों और उनके परिवारों को 10 साल तक) के लिए है। SPG एक कुलीन बल है, जिसके विवरण गोपनीय हैं। 1988 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद SPG अधिनियम लागू हुआ।
  • Z+: उच्चतम गैर-SPG सुरक्षा, जिसमें 55 कर्मी (10+ NSG कमांडो, दिल्ली पुलिस/CRPF/ITBP) शामिल हैं। उदाहरण: राजनाथ सिंह, योगी आदित्यनाथ, मायावती, राहुल गांधी, अमित शाह। मार्च 2021 में लगभग 40 व्यक्तियों को Z+ सुरक्षा थी।
  • Z: 22 कर्मी (4-6 NSG कमांडो, एक एस्कॉर्ट कार)। इसमें मंत्रियों, जजों, और अन्य प्रमुख व्यक्तियों को शामिल किया जाता है।
  • Y+: 11 कर्मी (2-4 कमांडो, पुलिस)।
  • Y: 2 व्यक्तिगत सुरक्षा अधिकारी (PSO)।
  • X: 1 PSO, सामान्यतः सशस्त्र राज्य पुलिस द्वारा।
ये कुर्सियां कुछ कहती हैं...

ये कुर्सियां कुछ कहती हैं…

फायदे : विशेष छूट, सुरक्षा से लेकर सुविधाओं में प्राथमिकता

  • प्राथमिकता पहुंच: हवाई अड्डों पर विशेष सुरक्षा जांच, होटल चेक-इन, और रेस्तरां में आरक्षण।
  • विशेष स्थान: समारोहों में वीआईपी/वीवीआईपी के लिए अलग सीटें, लाउंज, और निजी स्थान।
  • सुरक्षा व्यवस्था: सशस्त्र गार्ड, लाल बत्ती (हालांकि 2017 में हटाई गई), और काफिले।
  • अन्य सुविधाएं: मंदिरों में विशेष दर्शन (जैसे तिरुपति, लालबागचा राजा), टोल छूट, और प्राथमिक चिकित्सा सेवाएं।

खुफिया एजेंसियों के इनपुट पर तय होता है सुरक्षा का स्तर 

  • गृह मंत्रालय, इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB), और अन्य खुफिया एजेंसियों की समिति खतरे के आधार पर सुरक्षा स्तर तय करती है। “ब्लू बुक” में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, और प्रधानमंत्री के लिए दिशानिर्देश हैं, जबकि “येलो बुक” में अन्य वीआईपी/वीवीआईपी के लिए नियम हैं।
  • राज्य सरकारें भी अपने स्तर पर सुरक्षा प्रदान करती हैं, लेकिन यह अक्सर राजनीतिक प्रभाव से प्रभावित होती है।
साभार इंटरनेट

साभार इंटरनेट

इतिहास : दूसरे विश्व युद्ध के बाद प्रचलन में आई ये टर्म  

    • VIP: यह शब्द 1930 के दशक में सामने आया और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद लोकप्रिय हुआ। इसका पहला दर्ज उपयोग 1933 में कॉम्पटन मैकेंज़ी की पुस्तक “Water on the Brain” में मिलता है, जहां इसे “Very Important Personage” कहा गया। कुछ स्रोत इसे रॉयल एयर फोर्स (RAF) से जोड़ते हैं, जो इसे उच्च अधिकारियों के लिए इस्तेमाल करते थे।
    • VVIP: यह शब्द बाद में संभवतः 1940-50 के दशक में उच्चतर महत्व वाले व्यक्तियों को अलग करने के लिए शुरू हुआ। यह विशेष रूप से उन लोगों के लिए है, जिनके पास अत्यधिक सामाजिक-आर्थिक प्रभाव या खर्च करने की क्षमता है।
    • भारत में वीआईपी/वीवीआईपी संस्कृति ब्रिटिश राज से शुरू हुई, जहां औपनिवेशिक शासकों ने विशेष सुविधाएं बनाए रखीं। स्वतंत्रता के बाद, यह “लाल बत्ती संस्कृति” के रूप में विकसित हुई, जिसमें राजनेता, नौकरशाह, और प्रभावशाली लोग शामिल हुए। 

विवादों में घिरा रहा है वीआईपी कल्चर   

  • लाल बत्ती विवाद: 2017 में केंद्र सरकार ने लाल बत्ती के उपयोग पर रोक लगाई, लेकिन वीआईपी संस्कृति बनी रही। सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में लाल बत्ती के दुरुपयोग और सायरन के उपयोग पर आपत्ति जताई थी।
  • राजनीतिक दबाव: वीआईपी/वीवीआईपी सुरक्षा अक्सर राजनीतिक प्रभाव से तय होती है, जिसके कारण गैर-जरूरी व्यक्तियों को भी सुरक्षा दी जाती है। पूर्व गृह मंत्री पी चिदंबरम ने NSG को केवल गंभीर मामलों में उपयोग करने की नीति शुरू की थी। 2017 में बाबा रामदेव को 30 पुलिसकर्मियों की सुरक्षा इसका उदाहरण है।
  • संसाधनों का दुरुपयोग: गृह मंत्रालय ने 2022 में कहा कि 2019 में 19,467 व्यक्तियों को सुरक्षा दी गई थी, जिसमें मंत्री, सांसद, विधायक, जज व नौकरशाह शामिल थे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़, उस वर्ष लखनऊ के एक ग्रामीण थाने में 35 में से केवल 1 से 5 पुलिसकर्मी ही सामान्य जनता के लिए उपलब्ध थे क्योंकि बाकी को वीआईपी सुरक्षा के लिए तैनात किया गया था।
    साभार - इंटरनेट

    साभार – इंटरनेट

RTI का प्रभाव: ट्रेन में वीआईपी कोटे का दुरुपयोग उजागर  
2012 में दिल्ली के RTI कार्यकर्ता वीरेश मलिक ने रेलवे मंत्रालय से आपातकालीन कोटा (EQ) के दुरुपयोग पर जानकारी मांगी थी। उनकी RTI से खुलासा हुआ कि “उच्च अधिकारियों” के पत्र से कोई भी व्यक्ति VIP बनकर ट्रेनों में प्राथमिकता प्राप्त कर सकता था। इससे पता लगा कि आपात स्थिति के लिए रखे गए इस कोटे का दुरुपयोग राजनेताओं, नौकरशाहों और प्रभावशाली लोग कर रहे थे। इस खुलासे ने रेलवे में पारदर्शिता की मांग बढ़ाई और VIP संस्कृति पर सवाल उठाए। 

सुधार की ओर :

1- वीआईपी सुरक्षा से NSG को हटाया गया

2024 में NSG को वीआईपी/वीवीआईपी सुरक्षा से हटाने की योजना लागू हुई। इसके बाद नौ प्रमुख व्यक्तियों (जैसे- योगी आदित्यनाथ, मायावती, राजनाथ सिंह) की सुरक्षा CRPF को सौंप दी गई। यह NSG को आतंकवाद-रोधी कार्यों के लिए मुक्त करने का कदम है।  

2- मंदिरों में वीआईपी दर्शन के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट (SC) ने 31 जनवरी 2025 को मंदिरों में वीआईपी दर्शन शुल्क के मामले को मनमाना और असमानता को बढ़ावा देने वाला बताया। हालांकि इस पर बैन लगाने की अपील वाली याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया और कहा कि यह नीतिगत मामला है और राज्य सरकारें इस पर कार्रवाई कर सकती हैं।

Continue Reading

जनहित में जारी

क्या मुंबई के धरावी जैसी क़िस्मत पाएंगी दिल्ली की झुग्गियां

Published

on

दिल्ली की स्लम में बच्चे, साभार - इंटरनेट
बोलते पन्ने | नई दिल्ली
दिल्ली सरकार ने झुग्गी-झोपड़ी और अवैध कॉलोनियों के स्थायी पुनर्वास और पुनर्विकास के लिए मुंबई के धरावी पुनर्विकास मॉडल (Dharavi Redevelopment Project) का अध्ययन करने की योजना बनाई है। यह खबर 21 जून को द हिन्दू ने प्रमुखता से छपी। इसमें कहा गया कि दिल्ली सरकार इस मॉडल को अपनी 675 झुग्गी-झोपड़ी कॉलोनियों और 1,731 अनधिकृत कॉलोनियों के लिए लागू करने की संभावनाएं तलाश रही है। यह खबर ऐसे समय में आई है जब दिल्ली में अनधिकृत झुग्गियों को हटाया जा रहा है, और महाराष्ट्र सरकार ने मई 2025 में धरावी मास्टर प्लान को मंजूरी दी है। ऐसे में दिल्ली के स्लम के भविष्य के लिए धरावी मॉडल और इसके साकार रूप लेने के पीछे 40 साल चली उठापटक को समझना महत्वपूर्ण है।
“दिल्ली एक अनियोजित शहर है, जहां 60% लोग अनधिकृत बस्तियों में रहते हैं। हमें इसे नियोजित और व्यवस्थित करना है, जो एक बड़ी चुनौती है। धरावी मॉडल का अध्ययन कर हम झुग्गीवासियों के लिए सुरक्षित आवास और बेहतर सुविधाएं सुनिश्चित करना चाहते हैं।” – रेखा गुप्ता, सीएम, दिल्ली (द हिन्दू को दिए इंटरव्यू के दौरान)
धरावी स्लम

धरावी स्लम

धरावी मॉडल: दस लाख लोगों का पुनर्वास
मुंबई में धरावी 2.4 वर्ग किलोमीटर में फैली एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी बस्ती है, जहां लगभग 10 लाख लोग रहते हैं। यह एक सघन आर्थिक केंद्र भी है, जिसमें चमड़ा, कपड़ा, और 13,000 से अधिक छोटे उद्योग फलते-फूलते हैं, जिनका सालाना कारोबार लगभग 1 बिलियन डॉलर है। धरावी पुनर्विकास परियोजना (DRP) का उद्देश्य इस क्षेत्र को आधुनिक आवास, बुनियादी ढांचे, और व्यावसायिक सुविधाओं के साथ एक एकीकृत शहरी क्षेत्र में बदलना है। परियोजना में पांच औद्योगिक क्लस्टर (कपड़ा, चमड़ा, मिट्टी के बर्तन, खाद्य, और रीसाइक्लिंग) प्रस्तावित हैं, जो स्थानीय अर्थव्यवस्था को बनाए रखेंगे।
₹95,790 करोड़ की परियोजना, मिलेगा अपना घर व शौचालय
  • आवास: 2004 से पहले की झुग्गियों में रहने वाले प्रत्येक पात्र परिवार को 350 वर्ग फुट का मुफ्त घर, जिसमें रसोई और शौचालय शामिल हैं। अपात्र निवासियों को MMR में सब्सिडी दरों पर 300 वर्ग फुट के घर किराया-खरीद योजना के तहत, जिनका भुगतान 12 वर्षों में किया जा सकता है।
  • बुनियादी ढांचा: स्कूल, अस्पताल, सड़कें, जल निकासी, और बिजली जैसी सुविधाएं।
  • आर्थिक पुनर्जनन: धरावी के छोटे उद्योगों के लिए विशेष व्यावसायिक क्षेत्र।
  • निजी-सार्वजनिक भागीदारी (PPP): परियोजना महाराष्ट्र सरकार और अडानी समूह (NMDPL) के बीच साझेदारी पर आधारित है, जिसमें 47.20 हेक्टेयर पुनर्वास और 47.95 हेक्टेयर बिक्री के लिए निर्धारित हैं।
  • लागत: अनुमानित लागत ₹95,790 करोड़, जिसमें ₹25,000 करोड़ पुनर्वास के लिए और ₹14 करोड़ वर्ग फीट बिक्री योग्य इकाइयों के लिए, जो इसे भारत का सबसे बड़ा शहरी पुनर्विकास प्रोजेक्ट बनाती है।
40 साल बाद अब धरावी प्रोजेक्ट शुरू हुआ
  • 1985: तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने “Urban Renewal Scheme” के तहत धरावी के सुधार के लिए ₹100 करोड़ की घोषणा की।
  • 1995: महाराष्ट्र सरकार ने “Slum Redevelopment Scheme” शुरू की, लेकिन घनी आबादी, जटिलता, और संसाधनों की कमी के कारण धरावी शामिल नहीं हुआ।
  • 1997: MHADA ने धरावी को “विशेष पुनर्विकास क्षेत्र” घोषित करने की सिफारिश की।
  • 2003: मुख्यमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने योजना का खाका तैयार कराया। धरावी को 5 सेक्टरों में बांटकर हर सेक्टर के लिए निजी डेवलपर नियुक्त किए जाएं।
  • 2004: राज्य सरकार ने Dharavi Redevelopment Project (DRP) को औपचारिक रूप से लॉन्च किया।
  • 2007: वैश्विक आर्किटेक्ट्स से मास्टर प्लान आमंत्रित किए गए। L&T, Hiranandani, और Dubai-based Emaar ने रुचि दिखाई, लेकिन निविदा शर्तों में बदलाव, स्थानीय विरोध, और राजनीतिक अस्थिरता के चलते योजना रुकी।
  • 2016: सरकार ने पुनः निविदा प्रक्रिया शुरू की, लेकिन कोई डेवलपर नहीं मिला।
  • 2018: फडणवीस सरकार ने एकीकृत पुनर्विकास मॉडल प्रस्तावित किया।
  • 2019: वैश्विक टेंडर में Seclink Technology Corporation ने ₹7,200 करोड़ की बोली लगाई, लेकिन रेलवे की भूमि शामिल न होने से टेंडर रद्द।
  • 2022: अडानी समूह ने ₹5,069 करोड़ की बोली जीती। सरकार ने अडानी को “लीड पार्टनर” बनाया, जिसमें 80% हिस्सेदारी उनकी और 20% महाराष्ट्र सरकार की है।
  • 2025: जनवरी में महिम में 10,000 फ्लैट्स का निर्माण शुरू। मई में ₹95,790 करोड़ के मास्टर प्लान को मंजूरी दी गई। हफीज कॉन्ट्रैक्टर को आर्किटेक्ट नियुक्त किया गया।
सांकेतिक तस्वीर

सांकेतिक तस्वीर

अडानी को प्रोजेक्ट देने पर उठे सवाल
कांग्रेस, शिवसेना-UBT, और अन्य दलों ने आरोप लगाया कि टेंडर की शर्तें अडानी के पक्ष में बनाई गईं, खासकर न्यूनतम 500 एकड़ के अनुभव की शर्त। 2022 में उद्धव ठाकरे की MVA सरकार के पतन और शिंदे-BJP सरकार के सत्ता में आने के बाद टेंडर प्रक्रिया तेज हुई। सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2025 में Seclink की याचिका खारिज कर अडानी को मंजूरी दी। राहुल गांधी ने धरावी को “इनोवेशन का सेंटर” बताते हुए पुनर्विकास को स्थानीय हितों के खिलाफ बताया। धरावी रिडेवलपमेंट समिति के अध्यक्ष राजेंद्र कोर्डे ने मास्टर प्लान में केवल 72,000 निवासियों के पुनर्वास की योजना पर सवाल उठाए, जबकि 1.5-2 लाख ऊपरी मंजिलों के निवासियों की स्थिति अनिश्चित है।
विवाद व विरोध के बीच शुरू हो गया प्रोजेक्ट
धरावी रिडेवलपमेंट प्रोजेक्ट प्राइवेट लिमिटेड (DRPPL) ने डिजिटल सर्वे शुरू किया, जिसमें ड्रोन और LiDAR तकनीक का उपयोग कर 94,500 निवासियों को यूनीक आईडी दी गई और 70,000 घरों का सर्वे पूरा हुआ। 256 एकड़ सॉल्ट पैन भूमि का उपयोग अपात्र निवासियों के लिए प्रस्तावित है, जिसे पर्यावरणीय कारणों से मानवाधिकार उल्लंघन बताया गया। रेलवे की 47.5 एकड़ जमीन का ट्रांसफर लंबित है। स्थानीय निवासियों और कार्यकर्ताओं ने पुनर्वास की शर्तों, जैसे सायन-कोलीवाड़ा या मुलुंड में स्थानांतरण, और व्यवसायों के संरक्षण पर सवाल उठाए।
ःःःःःःःःःःःःःः
दिल्ली की स्लम बस्ती, साभार इंटरनेट

दिल्ली की स्लम बस्ती, साभार इंटरनेट

दिल्ली में 675 झुग्गियां, 17% गरीब वोटर
दिल्ली में इस साल BJP सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता के नेतृत्व में धरावी मॉडल का अध्ययन शुरू हुआ। यह 675 झुग्गी कॉलोनियों और 50,000 EWS फ्लैट्स के पुर्ननिर्माण के लिए है, जो पहले AAP सरकार के तहत अप्रयुक्त रहे। 17% गरीब और दलित वोटरों की अनुमानित आबादी को देखते हुए यह मॉडल राजनीतिक रूप से संवेदनशील है। विशेषज्ञों ने दिल्ली के बिखरे हुए झुग्गी क्लस्टर को धरावी मॉडल के लिए अनुपयुक्त बताया।
दिल्ली में झुग्गी-झोपड़ियों का इतिहास  
  • औपनिवेशिक काल (1857 से पहले): दिल्ली में झुग्गियां न्यूनतम थीं। शहरीकरण सीमित था, और अधिकांश आबादी ग्रामीण थी। पुरानी दिल्ली में घनी बस्तियां थीं, लेकिन आधुनिक झुग्गियां नहीं थीं।
  • स्वतंत्रता के बाद (1947-1970): विभाजन के बाद बड़े पैमाने पर प्रवास हुआ। दिल्ली में अनधिकृत बस्तियां, जैसे किंग्सवे कैंप, उभरीं। 1950 के दशक में दिल्ली डेवलपमेंट अथॉरिटी (DDA) ने नियोजित विकास शुरू किया, लेकिन ग्रामीण प्रवासियों के लिए किफायती आवास की कमी रही।
  • 1970-1990: तेज शहरीकरण और औद्योगीकरण से झुग्गियां बढ़ीं। 1976 में तुर्कमान गेट पर बुलडोजर कार्रवाई और पुलिस गोलीबारी ने विवाद खड़ा किया। झुग्गीवासियों को बाहरी इलाकों (जैसे नरेला) में बसाया गया, लेकिन बुनियादी सुविधाएं अपर्याप्त थीं।
  • 1990-2010: 1994 तक दिल्ली में 750 झुग्गी कॉलोनियां थीं, जिनमें 20 लाख लोग रहते थे। कॉमनवेल्थ गेम्स (2010) के लिए कई झुग्गियां हटाई गईं, जिसकी आलोचना हुई।
  • 2010-2025: 675 झुग्गी कॉलोनियां और 1,731 अनधिकृत कॉलोनियां मौजूद। 2019 में 1,797 कॉलोनियों को वैध करने की योजना बनी। G20 शिखर सम्मेलन (2023) के लिए जनता कैंप जैसी झुग्गियों को हटाया गया।

विशेषज्ञों की राय – दोनों स्लम के बीच गहरा अंतर

  • डॉ. रेणु देसाई (शहरी नियोजन विशेषज्ञ, IIM अहमदाबाद): द हिन्दू (22 जून 2025) में उन्होंने कहा कि धारावी मॉडल दिल्ली के लिए अनुपयुक्त है, क्योंकि दिल्ली की झुग्गियां छोटी और बिखरी हैं, और धारावी की तरह आर्थिक केंद्र नहीं हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि दिल्ली को छोटे, स्थान-विशिष्ट पुनर्वास मॉडल अपनाने चाहिए।
  • प्रो. अमिताभ कुंडू (शहरी अर्थशास्त्री, JNU): इंडियन एक्सप्रेस (20 जून 2025) में कुंडू ने बताया कि धारावी की PPP संरचना मुंबई के उच्च भूमि मूल्यों के कारण व्यवहार्य है, लेकिन दिल्ली में भूमि की उपलब्धता और कम आर्थिक रिटर्न इसे लागू करना मुश्किल बनाते हैं।
  • कामाक्षी भट्ट (स्लम रिहैबिलिटेशन विशेषज्ञ): हिंदुस्तान टाइम्स (21 जून 2025) में उन्होंने चेतावनी दी कि धारावी मॉडल की नकल से दिल्ली में सामाजिक तनाव बढ़ सकता है, क्योंकि निवासी बाहरी क्षेत्रों में स्थानांतरण के खिलाफ हैं।
Continue Reading

जनहित में जारी

भड़काऊ पोस्ट को लाइक करने के नाम पर केस नहीं दर्ज करते : हाईकोर्ट

Published

on

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा- आईटी एक्ट की धारा 67 को भड़काऊ कंटेंट पर लागू नहीं किया जा सकता, यह अश्लील कंटेंट के लिए है।

बोलते पन्ने स्टाफ | नई दिल्ली

हाल में देखा गया है कि किसी विवादित मामले पर सोशल मीडिया पोस्ट करने के चलते लोगों के ख़िलाफ़ मुकदमें हुए हैं। ऐसे में सोशल मीडिया पर विवादित मुद्दे से जुड़े पोस्ट को लेकर लोग काफी सतर्कता बरतने लगे हैं पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि किसी पोस्ट को लाइक करने के आधार पर आईटी एक्ट की धारा 67 नहीं लगाई जा सकती। इतना ही नहीं हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि आईटी एक्ट की यह धारा अश्लील कंटेंट को लेकर है, भड़काऊ सामग्री पर यह धारा लागू नहीं हो सकती।

पोस्ट को लाइक करना, शेयर करने जैसा नहीं

दैनिक जागरण के 20 अप्रैल के संस्करण में छपी ख़बर के मुताबिक़, उत्तरप्रदेश की इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि किसी मामले पर पोस्ट करना उसे प्रकाशित करना है, जबकि उसी पोस्ट को शेयर या रीट्वीट करना उसे प्रसारित करना माना जाएगा। लाइक करना इससे अलग है। इस टिप्पणी के साथ अदालत ने आगरा निवासी इमरान खान के ख़िलाफ़ आईटी की धारा 67 के तहत दर्ज केस की कार्रवाई रद्द कर दी है। इमरान ने मुस्लिमों को बिना अनुमति प्रदर्शन करने के लिए इकट्ठा होने की अपील वाले एक पोस्ट को लाइक किया था, जिसके बाद उनके ख़िलाफ़ स्थानीय प्रशासन ने आईटी एक्ट में केस दर्ज कर दिया था।

दैनिक जागरण, 20 अप्रैल

दैनिक जागरण, 20 अप्रैल

आईटी एक्ट की धारा 67 को समझें: 
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 67 के तहत इलेक्ट्रॉनिक रूप से ऐसी सामग्री प्रकाशित या प्रसारित करने को अपराध माना गया है, जो कामुक है या कामुक रुचि को अपील करती है, या अगर उसका प्रभाव ऐसा है जो ऐसे व्यक्तियों को भ्रष्ट करने की प्रवृत्ति रखता है।
  • पहली बार दोषी पाए जाने पर, पांच साल की जेल और/या दस लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। 
  • यह एक गैर-ज़मानती अपराध है
Continue Reading
Advertisement

Categories

Trending