आज के अखबार
अखबार बोले- बुलडोजर को अन्याय तो माना पर हर्जाने पर अदालत क्यों चुप

आज के अखबार (14 नवंबर, 2024) | नई दिल्ली
मनमाने तरीके से घरों को बुलडोजर चलाकर तोड़ देने और इसे त्वरित न्याय बताने के राजनीतिक तरीके पर सुप्रीम कोर्ट ने 13 नवंबर को रोक लगा दी है। 14 नवंबर के अखबारों ने इसे सबसे प्रमुख खबर बनाया है, सुप्रीम कोर्ट के इस बेहद महत्वपूर्ण फैसले के बाद दैनिक जागरण सरीखे उन अखबारों को भी फैसले की सराहना करनी पड़ी है जिन्होंने अपनी कवरेज के जरिए बुलडोजर वाली कार्रवाइयों को बुलडोजर न्याय (जस्टिस) की संज्ञा दी थी।
फैसले पर बात करने से पहले यह जान लेना जरूरी है कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला बड़ी देरी से आया है क्योंकि अबतक ऐसी कार्रवाइयों से डेढ़ लाख घरों को ढहाया जा चुका है। फ्रंटलाइन के मुताबिक, 2017 से जारी ऐसी कार्रवाइयों का शिकार देशभर के डेढ़ लाख परिवारों के सबा सात लाख लोग हो चुके हैं। यानी ये वे लोग हैं जिनकी खून पसीने की कमाई के बने घरों को तोड़ दिए जाने के बाद वे बेघर होकर विस्थापित जीवन जी रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के बुधवार को आए फैसले ने पीड़ित लोगों में न्याय की आस तो जगाई है पर ये फैसला पुरानी घटनाओं पर लागू न किए जाने से संबंधित मामलों के लिए प्रशासन व अफसरों को जिम्मेदार ठहराने या पीड़ित परिवारों को मुआवजा दिलाने का मामला धुंधला ही है।
सिर्फ आरोपी या अपराधी होने के आधार पर घर गिराना अवैध
अब बात कवरेज की करें तो सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की पीठ ने फैसला सुनाया कि – अफसर जज नहीं बन सकते, किसी मामले के आरोपी या अपराधी को भी उसकी संपत्ति ढहाकर सजा नहीं दी जा सकती। घर ढहाकर सजा देने के इस तरीके से अफसर उस व्यक्ति के अलावा उस मकान में रहने वाले परिवार या परिवारों को भी सामूहिक रूप से सजा दे रहे हैं। आगे से प्रॉपर्टी तोड़ने से पहले 15 दिन का नोटिस दिया जाना अनिवार्य है। साथ ही, वीडियोग्राफी भी करानी होगी। जहां भी संपत्ति ढहानी है, उसकी सूचना जिलाधिकारी को देना भी जरूरी है। सर्वोच्च न्यायालय की ओर से इस तरह की 15 गाइडलाइन जारी की गई हैं। जिसमें यह भी स्पष्ट कहा गया है कि अगर कोई अफसर गाइडलाइन का उल्लंघन करता है तो वो अपने खर्चे पर दोबारा प्रॉपर्टी का निर्माण कराएगा और मुआवजा भी देगा। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश की शुरूआत कवि प्रदीप की एक कविता से की-
‘अपना घर हो,
अपना आंगन हो,
इस ख्वाब में हर कोई जीता है।
इंसान के दिल की ये चाहत है
कि एक घर का सपना कभी न छूटे।’
एक्सप्रेस व द हिन्दू ने उठाया मुआवजा न मिलने का मुद्दा
द इंडियन एक्सप्रेस ने पहले पन्ने पर ही लिखा है कि जिनके घर उजाड़ दिए गए उन्हें उम्मीद के अलावा कुछ और नहीं मिला। अखबार ने यूपी, उत्तराखंड, राजस्थान, मध्य प्रदेश में बुलडोजर की कार्रवाइयों के पीड़ितों से बात की, इन सभी ने कहा है कि फैसले के उन्हें राहत तो मिली है पर इसमें किसी तरह के मुआवजे का जिक्र नहीं होने से वे निराश हैं। द हिन्दू ने भी विस्तृत कवरेज में बताया है कि इस मामले के प्रमुख पैरोकार जमीयत-ए-हिन्द ने इस फैसले को भविष्य के लिए नजीर बताते हुए अदालत का शुक्रिया अदा किया है। पर इस मामले के अन्य याचिकाकार्ताओं ने निराशा जताते हुए हर्जाने की मांग की है। कुछ याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि इस मामले पर वे आगे लड़ाई जारी रखेंगे।
बेघर होने पर रिश्तेदारों ने भी डर से शरण नहीं दी
जितना अहम फैसले की विस्तृत कवरेज है, उससे ज्यादा अहम इस पर आई प्रतिक्रियाओं को पढ़ना है। एक्सप्रेस को इन पीड़ितों ने एक और पीड़ा यह बताई कि घर ढहा दिए जाने के बाद उन्हेें उनके रिश्तेदारों ने इस डर से शरण नहीं दी कि कहीं सरकार के बुलडोजर की नजर उन पर भी न पड़ जाए। एक्सप्रेस ने अपनी खबर में स्पष्ट बताया है कि इन कार्रवाइयों का असर या तो अल्पसंख्यक समुदाय पर पड़ा या फिर समाज के कमजोर तबके वाले लोगों पर। एक्सप्रेस ने अपने संपादकीय में कहा है कि प्रशासन की ऐसी कार्रवाइयों से पीड़ित कमजोर तबके वाले सुप्रीम कोर्ट नहीं जा पाते, ऐसे में यह फैसला तब प्रभावशाली होगा जब स्थानीय थाना और निकाय परिषद पर बैठे सरकारी अफसरों तक सुप्रीम कोर्ट का यह सख्त संदेश पहुंचे।
फैसले में लगी देरी पर TOI ने सवाल उठाए, लिखा- क्या अफसर अदालत की सुनेंगे ?
द टाइम्स ऑफ इंडिया ने पहले पन्ने पर कई घटनाओं के हवाले से लिखा है कि बहुत पीड़ितों के लिए अदालत का यह फैसला बहुत देरी से आई राहत है। संपादकीय की हेडिंग सवाल उठाती हुई है – bulldozed no more ? अखबार ने लिखा है कि यूं तो दबाना कमजोर सरकार की निशानी है पर हाल की राजनीति को देखें तो यह रणनीति का हिस्सा है। जैसे हरियाणा के नूंह की हिंसा के बाद सरकार ने 800 मकानों को ढहा दिया जिसमें अधिकांश मुसलमानों के थे। अखबार ने लिखा है कि यह फैसला तो बहुत अच्छा है पर अफसर अदालत से ज्यादा डरेंगे या नेताओं से ? इस मामले पर द हिन्दुस्तान टाइम्स की कवरेज बेहद औसत और पहले पन्ने तक सीमित है।
दैनिक जागरण की कवरेज में बुलडोजर पर सफाई
दैनिक जागरण ने पहले पन्ने की अपनी इस खबर की हेडिंग लगाई है – ‘मनमाने तरीके से नहीं चलेगा बुलडोजर’। इस कवरेज में जागरण ने इस बार पर विशेष जोर दिया है कि सुप्रीम कोर्ट ने नई गाइडलाइनों को सार्वजनिक स्थानों पर होने वाले अतिक्रमण से अलग रखा है। जागरण ने अपने संपादकीय में कहा है कि अच्छा होता अगर सुप्रीम कोर्ट यह देख पाता कि बुलडोजर कार्रवाई न्याय में देरी की उपज है। अपनी कवरेज में जागरण ने यूपी सरकार की प्रतिक्रिया लिखी है, जिसमें कहा गया है कि फैसले से माफिया, संगठित व पेशेवर अपराधियों पर अंकुश लगेगा। हालांकि अखबार ने यह सवाल नहीं उठाया कि जो योगी सरकार अपने दो बार के कार्यकाल मेें बुलडोजर न्याय को अपराध पर अंकुश लगाने वाला बताती रही है, वह इसपर लगी रोक के फैसले को भी किस तरीके से अपराध पर अंकुश लगाने वाला कह रही है। गौरतलब यह भी है कि दैनिक जागरण ने इस मामले पर आईं विपक्षी दलों की प्रतिक्रियाओं को छापा ही नहीं जिसमें सीधे तौर पर योगी व अन्य भाजपा शासित राज्यों को निशाना बनाया गया था।
बात अन्य दैनिक हिन्दी अखबारों की करें तो अमर उजाला ने पहले पन्ने पर इसे पहली खबर तो बनाया है पर न तो इस पर संपादकीय लिखा और न ही अंदर के पेज पर विस्तृत कवरेज की। दूसरी ओर, दैनिक हिन्दुस्तान ने इसे पहले पन्ने पर मुख्य खबर के रूप में लिया और अंदर के पेज पर सभी राजनीतिक दलों की प्रतिक्रियाएं लगाई हैं।
आज के अखबार
आज के अख़बार : वक्फ के बदलावों पर एक सप्ताह की रोक

‘सुप्रीम संकेत’ के बीच वक्फ के बदलावों पर रोक
मुस्लिम समुदाय के लोगों की धार्मिक कार्यों के लिए दान की गई जमीनों के रखरखाव के नए वक्फ क़ानून को एक सप्ताह के लिए रोक दिया गया है। तमाम विपक्षी राजनीतिक दलों व मुस्लिम समुदाय के विरोध के बावजूद केंद्र सरकार ने नए क़ानून को संसद में तो पास करा लिया था पर सुप्रीम कोर्ट में एक दिन की सुनवाई के बाद ही उसे पीछे हटना पड़ा है। इस मामले में पहली सुनवाई बुधवार को हुई, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दे दिए थे कि वे इस क़ानून के कुछ प्रमुख प्रावधानों पर अंतरिम रोक लगा सकते हैं, सामान्यता: वे ऐसा नहीं करते हैं पर इस मामले में उन्हें ऐसा करना होगा। कोर्ट ने बुधवार को याचिकाओं पर केंद्र सरकार को गुरुवार तक अपना जवाब दाखिल करने को कहा था। पर सरकार ने गुरुवार को जवाब दाखिल करने के लिए अदालत से एक सप्ताह का समय मांगा। साथ ही सुप्रीम कोर्ट को आश्वासन दिया कि अगले एक सप्ताह तक इस मामले में यथास्थिति बनाई रखी जाएगी। यानी केंद्रीय वक्फ काउंसिल, बोर्ड व वक्फ की जमीनों की प्रकृति में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के आश्वासन को रिकॉर्ड पर लेकर एक सप्ताह की रोक का आदेश पारित किया है। इस मामले की अगली सुनवाई पाँच मई को होगी।
ख़ुद को सुपर संसद न समझे सुप्रीम कोर्ट : उपराष्ट्रपति धनखड़
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट की उस सलाह पर ऐतराज़ जताया, जिसमें राष्ट्रपति और राज्यपालों को विधेयकों को मंजूरी देने की समय सीमा तय करने की बात कही गई थी। उपराष्ट्रपति धनखड़ ने स्पष्ट किया कि अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकतीं। उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद-142 के तहत अदालत को जो विशेष अधिकार मिला है, वो अब लोकतांत्रिक संस्थाओं के खिलाफ 24×7 तैयार रहने वाली न्यूक्लियर मिसाइल की तरह बन गया है। उन्होंने आरोप लगाया कि जज अब ‘सुपर पार्लियामेंट’ की तरह व्यवहार कर रहे हैं। इस बयान को आज सभी अखबारों ने प्राथमिकता से पहले पन्ने पर लिया गया है।
पश्चिम बंगाल 25 हज़ार बर्खास्त शिक्षकों को सुप्रीम कोर्ट की राहत
पश्चिम बंगाल शिक्षक भर्ती घोटाले मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को 25 हज़ार से अधिक बर्खास्त शिक्षकों को यह करते हुए राहत दी है कि भर्ती घोटाले में जिन शिक्षकों का नाम न आया हो, वे नई चयन प्रक्रिया पूरी होने तक पढ़ाना जारी रख सकते हैं। कोर्ट ने कहा- हम नहीं चाहते कि बच्चों की पढ़ाई कोर्ट के फैसले से बाधित हो। चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि बंगाल स्कूल सर्विस कमीशन (SSC) को 31 मई तक भर्ती प्रक्रिया का नोटिफिकेशन जारी करना होगा। 31 दिसंबर तक चयन प्रक्रिया पूरी हो जानी चाहिए। बंगाल सरकार और SSC को 31 मई तक भर्ती का विज्ञापन जारी कर उसका पूरा शेड्यूल कोर्ट को सौंपना होगा। अगर तय समय में प्रक्रिया पूरी नहीं हुई तो कोर्ट उचित कार्रवाई और जुर्माना लगाएगा। इस फैसले पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने खुशी जतायी है। इस ख़बर को आज हिन्दी व अंग्रेजी के अखबारों ने पहले पन्ने पर लगाया है।
पाक सेना प्रमुख बोले- ‘कश्मीर हमारी जीवन रेखा’, भारत ने कहा- अवैध कब्जा हटाओ
पाकिस्तानी सेना प्रमुख असीम मुनीर ने पाकिस्तानी ओवरसीज सिटिज़न के वार्षिक कार्यक्रम में बोलते हुए दो ऐसे बयान दिए जिन्हें सभी अखबारों ने प्राथमिकता से लिया है। मुनीर ने कहा कि हिन्दू व मुस्लिमों की संस्कृति, विचार, आस्था, रीतिरिवाज व महत्वाकांझाएं अलग-अलग हैं और यही हमारे अलग देश बनने का आधार बना। उन्होंने विदेश में रह रहे पाकिस्तानियों से गुज़ारिश की कि पाकिस्तान बनने की इस कहानी (द्विराष्ट्रीय नीति) को वे अपने बच्चों को ज़रूर सुनाएं। साथ ही, कश्मीर पर उन्होंने कहा कि ‘ये हमारी जुगुलर वेन्स (जीवन रेखा) हैं, यह हमारी जीवन रेखा बनी रहेगी और हम इसे कभी नहीं भूलेंगे।’ बता दें कि इंसानी गर्दन में जुगुलर नसें वे वाहिकाएं हैं जो आपके मस्तिष्क से खून को वापस हृदय में पहुंचाती हैं। इंडियन एक्सप्रेस का कहना है कि पाकिस्तानी सेना प्रमुख का यह अब तक का सबसे कड़ा बयान है, जिस पर विदेशी मामलों के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि ‘कोई विदेशी ज़मीन किसी के लिए कैसे जुगुलर वेन हो सकती है? पाकिस्तान का कश्मीर से सिर्फ यह रिश्ता है कि वह इस भारतीय क्षेत्र को (POK) अवैध अतिक्रमण को जल्द से जल्द खाली करे।’
जेएनयू के प्रो. स्वर्ण सिंह को यौन उत्पीड़न के लिए किया बर्खास्त
इंडियन एक्सप्रेस ने पहले पन्ने पर ख़बर दी है कि जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के वरिष्ठ प्रोफेसर स्वर्ण सिंह को जापानी दूतावास की एक अधिकारी से जुड़े यौन उत्पीड़न के आरोपों को लेकर बर्खास्त कर दिया गया है। जेएनयू के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज से एक साल पहले रिटायर हुए प्रो. स्वर्ण सिंह को यूनिवर्सिटी की आंतरिक शिकायत समिति (ICC) की एक साल चली जाँच के आधार पर निष्कासित किया गया है। अख़बार ने लिखा है कि जापानी दूतावास की एक अधिकारी ने आईसीसी को शिकायत दी थी कि जब वे कॉन्फ़्रेंस आयोजन के लिए इस प्रोफेसर के लगातार संपर्क में थीं, तब उनसे यौन उत्पीड़न हुआ था। इस मामले की एक रिकॉर्डिंग भी उन्होंने समिति को सौंपी थी।
आज के अखबार
अवैध प्रवासी अब अमेरिका से जाएंगे कोस्टारिका

आज के अखबार (19 फरवरी, 2025) | नई दिल्ली
अमर उजाला की कुंभ पर की चापलूसी भरी कवरेज
अमर उजाला ने पूरे एक पन्ने पर बड़ी तस्वीरें लगाकर महाकुंभ के क्राउड मैनेजमेंट को लेकर एक स्पेशल स्टोरी की है जिसे इस संस्थान के पत्रकार अनूप ओझा ने लिखा है। इसकी हेडिंग है – ”महाकुंभ … विश्व को दिखाएगा प्रबंधन की राह”। कवरेज की हेडिंग ही सवाल खड़े करने वाली है कि क्या वाकई इस आयोजन का मैनेजमेंट इतना विश्वस्तरीय है कि यह दुनिया को प्रबंधन की राह दिखा पाए?
अवैध प्रवासी अगर भारतीय साबित नहीं हुए तो दूसरे देश जाएंगे
दैनिक जागरण में आज दो खबरें नजर खींचने वाली हैं, हालांकि ये अंदर के पन्नों पर लगी हैं।
इसी मामले पर अमर उजाला ने लिखा है कि कोस्टा रिका देश अब अमेरिका से वापस भेजे जा रहे दूसरे देशों के अप्रवासियों को अपने देश में अस्थायी तौर पर रखेगा। फिर यहां से ऐसे लोगों को सत्यापन के बाद उनके देश भेजा जाएगा, जिसमें भारतीय अप्रवासी भी होंगे।
अवैध तरीकों से अमेरिका पहुंचे भारतीयों के अपने देश लौटने के बाद ऐसे ट्रैवल एजेंटों पर केज दर्ज होने शुरू हो गए हैं, जिनके चलते कई भारतीय डंकी का रास्ता लेने को मजबूर हुए थे।
अमेरिका की ओर से ड्यूटी लगने से आधा प्रतिशत जीडीपी गिरेगी
ट्रंप में मोदी की अमेरिकी यात्रा के दौरान ही यह साफ कर दिया था कि भारत को पारस्परिक ड्यूटी/कर (reciprocal tariffs) को लेकर कोई रियायत नहीं मिलेगी। वह अमेरिकी उत्पादों पर जितनी ड्यूटी लगाएगा, उसके उत्पादों पर भी उतनी ही ड्यूटी लगाई जाएगी। इसको लेकर एसबीआई ने एक रिपोर्ट जारी की है, जिसके आधार पर जागरण ने इसे अर्थ व्यवस्था के पन्ने पर लीड लगाया है।
राजस्थान में उर्दू की जगह संस्कृत पढ़ाने पर विवाद
द हिन्दू ने एक खबर दी है कि राजस्थान के उर्दू शिक्षकों ने इस बात पर कड़ा विरोध जताया है कि कुछ सरकारी स्कूलों में उर्दू कक्षाओं को बंद करने का आदेश दिया गया। साथ ही कहा गया है कि तीसरी भाषा के तौर पर संस्कृत को पढ़ाया जाए।
आज के अखबार
सुप्रीम सुनवाई से पहले केंद्र ने मुख्य चुनाव आयुक्त चुना, विपक्ष असहमत

आज के अखबार (18 फरवरी, 2025) | नई दिल्ली
सोमवार को केंद्र सरकार ने चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार को प्रमोट करके हुए मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) बना दिया, इस निर्वाचन पर विपक्षी दलों के नेता (LOP) राहुल गांधी ने अहमति जतायी। ये नियुक्ति ऐसे समय में हुई है, जब नियुक्ति की प्रक्रिया को लेकर सुप्रीम कोर्ट एक याचिका की सुनवाई 19 फरवरी को करने जा रहा है। राहुल गांधी समेत पूरे विपक्ष की मांग थी कि केंद्र सरकार इस मामले में सर्वोच्च अदालत की सुनवाई के बाद ही सीईसी की नियुक्ति करें लेकिन सरकार ने इसे नहीं माना। ऐसे में 18 फरवरी के अखबारों में इस खबर को प्रमुखता से कवर किया गया है। इसके अलावा, दिल्ली में भूकंप के झटकों, कतर के आमिर के भारत दौरे व नई दिल्ली स्टेशन पर हुई भगदड़ की फॉलोअप स्टोरी को अखबारों ने अन्य प्रमुख खबर बनाया है।
सीईसी के चुनाव पर विवाद क्यों
दरअसल 2023 में एक कानून लाकर केंद्र सरकार ने मुख्य चुनाव आयुक्त व चुनाव आयुक्तों के चुनावों की तीन सदस्यीय समिति से मुख्य प्रधान न्यायधीश को हटा दिया था। इस समिति में प्रधानमंत्री, गृहमंत्री व विपक्षी दलों के नेता प्रमुख को रखा गया है। बता दें कि ज्ञानेश कुमार को मुख्य चुनाव आयुक्त, विवेक जोशी को चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त किया गया है जबकि सुखबीर सिंह संधू पहले से चुनाव आयुक्त हैं।
नए सीईसी के कार्यकाल में होगा बिहार-बंगाल का चुनाव
26वें मुख्य निर्वाचन आयुक्त ज्ञानेश कुमार के कार्यकाल में इस साल के अंत में बिहार विधानसभा चुनाव होना है। इसके बाद अगले साल केरल, पुडुचेरी, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव होने हैं जो कई मायनों में अहम चुनाव होंगे।
कवरेज
इंडियन एक्सप्रेस ने पहले पन्ने पर सीईसी की नियुक्ति व एलओपी राहुल गांधी की असहमति की खबर लगाई है। साथ ही, निवर्तमान सीईसी राजीव कुमार ने अपने विदाई भाषण में सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया है कि चुनाव से जुड़ी याचिकाओं की सुनवाई के समय चुनाव की समय-सीमा का ध्यान रखा जाए। साथ ही, अखबार ने बताया है कि नए सीईसी ने महाराष्ट्र व केरल राज्य में अहम प्रशासनिक पदों पर काम किया है। इतना ही नहीं, मोदी सरकार के सबसे गोपनीय विधेयक ‘जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक’ को बनाने में भी उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी और राम मंदिर ट्रस्ट निर्माण में भी उनकी अहम भूमिका थी। अखबार ने लिखा है कि 2024 में आईएएस से रिटायर होने के एक महीने बाद ही सरकार ने इन्हें चुनाव आयुक्त बना दिया और इसके ठीक एक दिन बाद ही लोकसभा चुनावों की घोषणा कर दी गई थी।
दैनिक जागरण ने भी इसे पहले पन्ने पर लगाया है। हालांकि इस मामले में राहुल गांधी की असहमति व सुप्रीम कोर्ट की आगामी सुनवाई को हाइलाइट नहीं किया है। जागरण ने लिखा है कि ज्ञानेश कुमार की नियुक्ति वरिष्ठता के आधार पर हुई है।
द हिन्दू अखबार ने भी इसे पहली स्टोरी बनाया है। अखबार ने कांग्रेस पार्टी से जुड़े सूत्रों के हवाले से लिखा है कि राहुल गांधी इस समिति के सदस्य के तौर पर प्रधानमंत्री के आवास पहुंचे और वहां अपनी लिखित असहमति का पत्र सौंपकर लौट गए। जब सीईसी के लिए ज्ञानेश कुमार के नाम की चर्चा हुई तो वे वहां नहीं थे।
द हिन्दुस्तान टाइम्स ने इस खबर को पहले पन्ने पर जगह तो दी है पर मेन स्टोरी नई दिल्ली स्टेशन पर हुई भगदड़ के फॉलोअप को लगाया है। जिसमें दो डॉक्टरों के हवाले से बताया गया है कि अगर समय से घायलों को ऑक्सीजन दी जाती तो जान बचायी जा सकती थी। अखबार ने पीड़ितों के हवाले से लिखा है कि मौके पर जो एंबुलेंस पहुंची थीं, उसमें भी ऑक्सीजन नहीं थी। अखबार ने दूसरी प्रमुख खबर दिल्ली में 20 फरवरी को होने जा रहे शपथ ग्रहण समारोह को लगाया है जो रामलीला मैदान में होगा।
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पूजा स्थल कानून पर नई याचिका नहीं लेगा सुप्रीम कोर्ट
1991 के पूजा स्थल कानून को लागू करने की मांग वाली याचिकाओं की सुनवाई के दौरान सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले पर लगातार याचिकाएं दाखिल की जा रही हैं, इसकी भी एक सीमा होती है। सभी पर विचार करना संभव नहीं है इसलिए अब वह इस मामले पर और याचिकाएं स्वीकार नहीं करेगा। साथ ही दो जजों के ही मौजूद होने से इसकी सुनवाई टाल दी है। बता दें कि 6 धाराओं की वैधता पर दाखिल याचिकाओं पर चीफ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस पीवी संजय कुमार और जस्टिस मनमोहन की बेंच ने आखिरी बार 12 दिसंबर 2024 को सुनवाई की थी।
क्या है कानून और विवाद क्यों
इस कानून के मुताबिक, 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता। इसमें राम मंदिर को अपवाद माना गया है। इस कानून की छह धाराओं की वैधता को लेकर विवाद की स्थिति है। इस केस की धारा 2, 3, 4 को लेकर कुछ याचिकाओं में चुनौती दी गई है कि ये धाराएं हिन्दू, जैन, बौद्ध व सिखों के पूजा स्थलों पर अधिकार वापस लेने से रोकती है। जबकि कुछ याचिकाएं इस कानून के समर्थन में दाखिल की गई हैं।
सरकार ने अब तक दाखिल नहीं किया जवाब
दैनिक जागरण व इंडियन एक्सप्रेस ने इस मामले को विस्तार से कवर किया है। इस मामले पर पहली याचिका कानून के विपक्ष में दाखिल की गई और उसको लेकर 2021 में केंद्र से जवाब दाखिल करने को कहा गया था जो अभी तक नहीं हुआ है। 2022 में जमीयत-ए-उलमा ने कानून के समर्थन में याचिका दाखिल की थी।
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