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जनहित में जारी

सरकारी कागजों में तो ‘VIP’ और ‘VVIP’ की कोई औक़ात नहीं !

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ये कुर्सियां कुछ कहती हैं...
  • यूपी के बरेली कॉलेज के पूर्व लॉ विभागाध्यक्ष और आरटीआई कार्यकर्ता डॉ. प्रदीप कुमार ने लगाई आरटीआई।
  • गृह मंत्रालय से पूछा कि वीआईपी और वीवीआईपी दर्जे के लिए कौन पात्र, सरकार का जवाब चौंकाने वाला।

नई दिल्ली  | शिवांगी  

भारत में “वीआईपी” और “वीवीआईपी” शब्द रोज़मर्रा की ज़ुबान का हिस्सा बन चुके हैं। ट्रैफिक रास्तों का बदलना, मंदिरों में विशेष दर्शन, या हवाई अड्डों पर प्राथमिकता, इन शब्दों से जुड़ी सुविधाएं आम हैं। लेकिन हैरानी की बात है कि इनका कोई औपचारिक कानूनी आधार नहीं है। हाल में दाखिल एक आरटीआई और गृह मंत्रालय के जवाब ने इस अनौपचारिक व्यवस्था को फिर से चर्चा में ला दिया है।
जब सरकार इन श्रेणियों को आधिकारिक तौर पर मानती ही नहीं, और न ही कोई लिखित नियम है कि वीआईपी या वीवीआईपी के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए, तो यह विशेष दर्जा आता कहां से है? क्या यह सिर्फ़ एक अनौपचारिक रिवाज है, या इसके पीछे कोई गहरी व्यवस्था काम करती है? आइए, इस लेख में वीआईपी और वीवीआईपी की हकीकत, उनके पीछे की सुरक्षा व्यवस्था, और इस “संस्कृति” की ऐतिहासिक और सामाजिक जड़ों को खंगालते हैं, ताकि समझ सकें कि यह विशेषाधिकार वास्तव में कितना विशेष है।
वीआईपी दर्जे से जुड़ी डॉ. प्रदीप की आरटीआई पर गृह मंत्रालय का जवाब

वीआईपी दर्जे से जुड़ी डॉ. प्रदीप की आरटीआई पर गृह मंत्रालय का जवाब

डॉ. प्रदीप की आरटीआई: गृह मंत्रालय का जवाब
9 जून 2025 को बरेली कॉलेज के पूर्व लॉ विभागाध्यक्ष और आरटीआई कार्यकर्ता डॉ. प्रदीप कुमार ने गृह मंत्रालय से पूछा कि वीआईपी और वीवीआईपी दर्जे के लिए कौन पात्र है, और इससे संबंधित नियम, अधिसूचनाएं, या सरकारी आदेश उपलब्ध कराए जाएं। 16 जून 2025 को गृह मंत्रालय की वीआईपी सिक्योरिटी यूनिट ने जवाब दिया कि “ऐसा कोई आधिकारिक नामकरण (nomenclature) नहीं है जो किसी व्यक्ति को वीआईपी या वीवीआईपी का दर्जा देता हो।” सुरक्षा का निर्धारण खुफिया एजेंसियों द्वारा खतरे के आकलन (threat perception) के आधार पर होता है। डॉ. प्रदीप ने इस जवाब को असंतोषजनक बताया, उनका कहना है कि यूनिट का नाम ही ‘वीआईपी सिक्योरिटी यूनिट’ है, जो स्वयं विरोधाभासी है।
डॉ. प्रदीप की आरटीआई में VIP/VVIP वैधानिकता पर मांगी गई जानकारी

डॉ. प्रदीप की आरटीआई में VIP/VVIP वैधानिकता पर मांगी गई जानकारी

 

डॉ. प्रदीप कुमार, आरटीआई एक्टिविस्ट व कानूनविद

डॉ. प्रदीप कुमार, आरटीआई एक्टिविस्ट व कानूनविद (साभार – फ़ेसबुक)

वीआईपी और वीवीआईपी की परिभाषा
  • वीआईपी (Very Important Person): सामाजिक, राजनीतिक, या आर्थिक रूप से प्रभावशाली व्यक्ति, जैसे राजनेता, सेलिब्रिटी, उद्योगपति, वरिष्ठ अधिकारी, या धार्मिक नेता।
  • वीवीआईपी (Very Very Important Person): उच्चतर श्रेणी, जैसे प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, या शीर्ष न्यायाधीश। 
साभार इंटरनेट

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वीआईपी संस्कृति लोकतांत्रिक नैतिकता के ख़िलाफ़ : सुप्रीम कोर्ट  

2013 में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से इन शब्दों की उत्पत्ति और लोकतांत्रिक भारत में इनके उपयोग की प्रासंगिकता पर सवाल उठाया। कोर्ट ने इसे “लोकतांत्रिक नैतिकता” के खिलाफ माना और सुरक्षा संसाधनों के दुरुपयोग पर चिंता जताई। 2012 और 2013 में सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई और गृह मंत्रालय के जवाबों के अनुसार, इन शब्दों की कोई कानूनी परिभाषा नहीं है। “वॉरंट ऑफ प्रेसिडेंस” केवल औपचारिक समारोहों के लिए प्राथमिकता तय करता है, लेकिन दैनिक सुविधाएं अनौपचारिक और खतरे के आकलन पर आधारित हैं।

सुरक्षा श्रेणियों को जानिए:

भारत में सुरक्षा छह स्तरों में बांटी गई है: SPG, Z+, Z, Y+, Y, और X।

  • SPG (Special Protection Group): यह केवल प्रधानमंत्री और उनके परिवार (तथा पूर्व प्रधानमंत्रियों और उनके परिवारों को 10 साल तक) के लिए है। SPG एक कुलीन बल है, जिसके विवरण गोपनीय हैं। 1988 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद SPG अधिनियम लागू हुआ।
  • Z+: उच्चतम गैर-SPG सुरक्षा, जिसमें 55 कर्मी (10+ NSG कमांडो, दिल्ली पुलिस/CRPF/ITBP) शामिल हैं। उदाहरण: राजनाथ सिंह, योगी आदित्यनाथ, मायावती, राहुल गांधी, अमित शाह। मार्च 2021 में लगभग 40 व्यक्तियों को Z+ सुरक्षा थी।
  • Z: 22 कर्मी (4-6 NSG कमांडो, एक एस्कॉर्ट कार)। इसमें मंत्रियों, जजों, और अन्य प्रमुख व्यक्तियों को शामिल किया जाता है।
  • Y+: 11 कर्मी (2-4 कमांडो, पुलिस)।
  • Y: 2 व्यक्तिगत सुरक्षा अधिकारी (PSO)।
  • X: 1 PSO, सामान्यतः सशस्त्र राज्य पुलिस द्वारा।
ये कुर्सियां कुछ कहती हैं...

ये कुर्सियां कुछ कहती हैं…

फायदे : विशेष छूट, सुरक्षा से लेकर सुविधाओं में प्राथमिकता

  • प्राथमिकता पहुंच: हवाई अड्डों पर विशेष सुरक्षा जांच, होटल चेक-इन, और रेस्तरां में आरक्षण।
  • विशेष स्थान: समारोहों में वीआईपी/वीवीआईपी के लिए अलग सीटें, लाउंज, और निजी स्थान।
  • सुरक्षा व्यवस्था: सशस्त्र गार्ड, लाल बत्ती (हालांकि 2017 में हटाई गई), और काफिले।
  • अन्य सुविधाएं: मंदिरों में विशेष दर्शन (जैसे तिरुपति, लालबागचा राजा), टोल छूट, और प्राथमिक चिकित्सा सेवाएं।

खुफिया एजेंसियों के इनपुट पर तय होता है सुरक्षा का स्तर 

  • गृह मंत्रालय, इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB), और अन्य खुफिया एजेंसियों की समिति खतरे के आधार पर सुरक्षा स्तर तय करती है। “ब्लू बुक” में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, और प्रधानमंत्री के लिए दिशानिर्देश हैं, जबकि “येलो बुक” में अन्य वीआईपी/वीवीआईपी के लिए नियम हैं।
  • राज्य सरकारें भी अपने स्तर पर सुरक्षा प्रदान करती हैं, लेकिन यह अक्सर राजनीतिक प्रभाव से प्रभावित होती है।
साभार इंटरनेट

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इतिहास : दूसरे विश्व युद्ध के बाद प्रचलन में आई ये टर्म  

    • VIP: यह शब्द 1930 के दशक में सामने आया और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद लोकप्रिय हुआ। इसका पहला दर्ज उपयोग 1933 में कॉम्पटन मैकेंज़ी की पुस्तक “Water on the Brain” में मिलता है, जहां इसे “Very Important Personage” कहा गया। कुछ स्रोत इसे रॉयल एयर फोर्स (RAF) से जोड़ते हैं, जो इसे उच्च अधिकारियों के लिए इस्तेमाल करते थे।
    • VVIP: यह शब्द बाद में संभवतः 1940-50 के दशक में उच्चतर महत्व वाले व्यक्तियों को अलग करने के लिए शुरू हुआ। यह विशेष रूप से उन लोगों के लिए है, जिनके पास अत्यधिक सामाजिक-आर्थिक प्रभाव या खर्च करने की क्षमता है।
    • भारत में वीआईपी/वीवीआईपी संस्कृति ब्रिटिश राज से शुरू हुई, जहां औपनिवेशिक शासकों ने विशेष सुविधाएं बनाए रखीं। स्वतंत्रता के बाद, यह “लाल बत्ती संस्कृति” के रूप में विकसित हुई, जिसमें राजनेता, नौकरशाह, और प्रभावशाली लोग शामिल हुए। 

विवादों में घिरा रहा है वीआईपी कल्चर   

  • लाल बत्ती विवाद: 2017 में केंद्र सरकार ने लाल बत्ती के उपयोग पर रोक लगाई, लेकिन वीआईपी संस्कृति बनी रही। सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में लाल बत्ती के दुरुपयोग और सायरन के उपयोग पर आपत्ति जताई थी।
  • राजनीतिक दबाव: वीआईपी/वीवीआईपी सुरक्षा अक्सर राजनीतिक प्रभाव से तय होती है, जिसके कारण गैर-जरूरी व्यक्तियों को भी सुरक्षा दी जाती है। पूर्व गृह मंत्री पी चिदंबरम ने NSG को केवल गंभीर मामलों में उपयोग करने की नीति शुरू की थी। 2017 में बाबा रामदेव को 30 पुलिसकर्मियों की सुरक्षा इसका उदाहरण है।
  • संसाधनों का दुरुपयोग: गृह मंत्रालय ने 2022 में कहा कि 2019 में 19,467 व्यक्तियों को सुरक्षा दी गई थी, जिसमें मंत्री, सांसद, विधायक, जज व नौकरशाह शामिल थे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़, उस वर्ष लखनऊ के एक ग्रामीण थाने में 35 में से केवल 1 से 5 पुलिसकर्मी ही सामान्य जनता के लिए उपलब्ध थे क्योंकि बाकी को वीआईपी सुरक्षा के लिए तैनात किया गया था।
    साभार - इंटरनेट

    साभार – इंटरनेट

RTI का प्रभाव: ट्रेन में वीआईपी कोटे का दुरुपयोग उजागर  
2012 में दिल्ली के RTI कार्यकर्ता वीरेश मलिक ने रेलवे मंत्रालय से आपातकालीन कोटा (EQ) के दुरुपयोग पर जानकारी मांगी थी। उनकी RTI से खुलासा हुआ कि “उच्च अधिकारियों” के पत्र से कोई भी व्यक्ति VIP बनकर ट्रेनों में प्राथमिकता प्राप्त कर सकता था। इससे पता लगा कि आपात स्थिति के लिए रखे गए इस कोटे का दुरुपयोग राजनेताओं, नौकरशाहों और प्रभावशाली लोग कर रहे थे। इस खुलासे ने रेलवे में पारदर्शिता की मांग बढ़ाई और VIP संस्कृति पर सवाल उठाए। 

सुधार की ओर :

1- वीआईपी सुरक्षा से NSG को हटाया गया

2024 में NSG को वीआईपी/वीवीआईपी सुरक्षा से हटाने की योजना लागू हुई। इसके बाद नौ प्रमुख व्यक्तियों (जैसे- योगी आदित्यनाथ, मायावती, राजनाथ सिंह) की सुरक्षा CRPF को सौंप दी गई। यह NSG को आतंकवाद-रोधी कार्यों के लिए मुक्त करने का कदम है।  

2- मंदिरों में वीआईपी दर्शन के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट (SC) ने 31 जनवरी 2025 को मंदिरों में वीआईपी दर्शन शुल्क के मामले को मनमाना और असमानता को बढ़ावा देने वाला बताया। हालांकि इस पर बैन लगाने की अपील वाली याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया और कहा कि यह नीतिगत मामला है और राज्य सरकारें इस पर कार्रवाई कर सकती हैं।

बोलते पन्ने.. एक कोशिश है क्लिष्ट सूचनाओं से जनहित की जानकारियां निकालकर हिन्दी के दर्शकों की आवाज बनने का। सरकारी कागजों के गुलाबी मौसम से लेकर जमीन की काली हकीकत की बात भी होगी ग्राउंड रिपोर्टिंग के जरिए। साथ ही, बोलते पन्ने जरिए बनेगा .. आपकी उन भावनाओं को आवाज देने का, जो अक्सर डायरी के पन्नों में दबी रह जाती हैं।

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मधेपुरा में मॉब लिंचिंग के अपराधियों की सजा क्यों उम्मीद जगा रही?

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मृतक की पत्नी और अपराधी को जेल ले जाती पुलिस (फोटो - बोलते पन्ने)
  • जनवरी, 2022 में एक व्यक्ति को पड़ोसियों ने पीट-पीटकर मार डाला था।

 

मधेपुरा | राजीव रंजन

पूरे देश में बीते एक दशक में मॉब लिंचिंग (Mob lynching) के मामले तेजी से बढ़े हैं, ऐसे मेें यह जानना जरूरी है कि ऐसे मामलों में आखिर क्या न्याय (justice) हो रहा है। मधेपुरा में तीन साल पहले हुई मॉब लिंचिंग की एक घटना में ट्रायल कोर्ट ने सश्रम आजीवन कारावास की सजा सुनाई है।

अदालत का यह फैसला उम्मीद जगाता है कि ऐसे मामलों में पुलिस जांच सही दिशा में हुई, जिसके आधार पर सत्र न्यायालय (trial court) में मृतक के परिवार को न्याय मिला।

एडीजे-9 रघुवीर प्रसाद की अदालत ने सोमवार (13 oct) को जब अपना आदेश सुनाया तो मॉब लिचिंग में मारे गए लालो भगत के बेटे विशाल कुमार के आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे।

हालांकि मृतक की पत्नी रंजना देवी ने कहा कि उनके पति के हत्यारों को जिंदा रहने का हक नहीं है, उन्हें फांसी मिलनी चाहिए थी।

अदालत ने तीन दोषियों को सश्रम आजीवन कारावास (rigorous imprisonment) की सजा सुनाई है और तीनों के ऊपर 20-20 हजार रुपये का अर्थदंड लगाया। साथ ही आदेश दिया कि अर्थदंड नहीं देने पर छह महीने का अतिरिक्त कारावास भुगतना होगा।

मॉब लिंचिंग में जान गंवाने वाले व्यक्ति मधेपुरा के कुमारखंड थाना क्षेत्र के यदुवापट्टी गांव के लालो भगत थे।

अपराधियों को जेल ले जाती पुलिस।

अपराधियों को जेल ले जाती पुलिस।

कचरा फेंकने से मना करने पर रॉड से पीटकर मार डाला था

अपर लोक अभियोजक जयनारायण पंडित ने बताया कि 22 जनवरी 2022 को यदुवापट्टी निवासी लालो भगत को अपराधियों ने पीट-पीटकर मार डाला था।

लालो भगत ने अपने घर के पास बन रही एक लाइब्रेरी में कब्जा करके दुकान चला रहे लोगों को उनके घर के सामने कचरा न फेंकने को कहा था।

इसको लेकर लंकेश कुमार, हलेश्वर साह, रामचंद्र साह समेत चार-पांच लोगों ने मिलकर उन पर हमला कर दिया।

लोहे की रॉड और लाठी से की गई पिटाई में लालो भगत गंभीर रूप से घायल हो गए। परिजन उन्हें पहले कुमारखंड पीएचसी और बाद में सिलीगुड़ी ले गए, जहां इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई।

मामले की जानकारी देते अपर लोक अभियोजक

मामले की जानकारी देते अपर लोक अभियोजक

सात गवाहों ने दिलाया न्याय 

अदालत में कुल सात गवाहों की गवाही करवाई गई। सभी साक्ष्य और गवाही के आधार पर अदालत ने तीन अभियुक्तों को दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई।

 “अदालत का यह निर्णय समाज में अपराध के खिलाफ एक सख्त संदेश देगा और भविष्य में ऐसे अपराधों पर रोक लगाने में सहायक सिद्ध होगा।” – अपर लोक अभियोजक

 

 

 

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रोहतास : 300 से ज्यादा आधार कार्ड नहर में पड़े मिले…हंगामे के बाद निलंबन

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नहर से मिले आधारकार्ड को दिखाया स्थानीय युवक
  • रोहतास जिले के दावथ प्रखंड में करीब 300 आधारकार्ड नहर में पड़े मिले।
  • ग्रामीणों ने गीले हो चुके आधारकार्डों को चेक किया तो कई उनके ही निकले।
  • पोस्ट ऑफिस सुपरिटेंडेंट बोले- बहुआरा डाकघर के अफसर को निलंबित किया।

 

रोहतास, बिहार | अविनाश श्रीवास्तव

आधार कार्ड की अहमियत के बारे में किसी को बताने की जरूरत नहीं है, फिर भी इस अहम आईडी कार्ड का रखरखाव इतने लापरवाह तरीके से हुआ है जो हैरान कर देने वाला है।

बिहार के रोहतास जिले के बहुआरा गांव में 11 अक्तूबर को लोगों ने नहर के पास करीब 300 आधार कार्ड पड़े देखे।

सभी आधार कार्ड गीले हो चुके थे। गांव वालों ने इन दस्तावेजों को उठाकर एक जगह रखा और नाम देखना शुरु किया तो वे हैरानी और गुस्से से भर गए। इनमें अधिकांश आधार कार्ड उन्हीं ग्रामीणों के थे।

बहुआरा गांव में पड़े मिले आधार कार्डों को लोगों ने ढेले पर सुखाकर जांचा।

बहुआरा गांव में पड़े मिले आधार कार्डों को लोगों ने ढेले पर सुखाकर जांचा।

साथ ही बहुआरा डाकघर डाकघर ब्रांच के अंदर आने वाले दूसरे गांंवों के लोगों के भी आधार कार्ड उसमें थे।

जानकारी पर पहुंची मीडिया के सामने गांव वालों ने बताया कि उन्होंने आधार बनवाने के लिए आवेदन दिया था और वे डाक से अपने आधार कार्ड के आने का इंतजार कर रहे थे, अब देख रहे हैं कि इसे डाकघर वालों ने नहर में फेंक दिया है।

नहर से मिले आधारकार्ड को दिखाया स्थानीय युवक

नहर से मिले आधारकार्ड को दिखाया स्थानीय युवक

इस मामले पर जब हमारे संवाददाता ने 13 अक्तूबर को रोहतास डिवीजन के पोस्ट ऑफिस के सुपरिटेंडेंट मारूत नंदन से फोन पर जानकारी ली तो उन्होंने बताया कि संबंधित डाकघर के अफसर को निलंबित कर दिया गया है।

साथ ही कहा कि इस मामले मेेें विस्तृत जानकारी वे शाम तक उपलब्ध करवाएंगे। हालांकि फिर वे दफ्तर से चले गए। हमारे संवाददाता ने दफ्तर जाकर देखा तो ताला लगा था और न ही अफसर ने दोबारा फोन उठाया।

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न बिजली पहुंची न नल-जल का लाभ, CM नीतीश कुमार के गृहजिला में अतिपिछड़ों का हाल

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महादलित टोला के लोगों ने अपनी समस्याएं बताईं
महादलित टोला के लोगों ने अपनी समस्याएं बताईं
  • खुद ग्रामीण विकास मंत्री श्रवन कुमार बीस साल से नालंदा विधानसभा के विधायक, फिर भी विकास से कोसों दूर।

 

सिलाव (नालंदा) | संजीव राज

नीतीश की 125 यूनिट तक मुफ्त बिजली दिए जाने की योजना लागू हुए तीन महीने हो चुके हैं, पर इस सुविधा से उस क्षेत्र के महादलित समुदाय के लोग ही महरूम रह गए, जिस नालंदा जिले में नीतीश कुमार का जन्म हुआ था।

नालन्दा विधान सभा क्षेत्र में सिलाव प्रखंड के नीरपुर पंचायत के अंतर्गत आने वाले सभी महादलित टोलों के हालात एक से हैं। इन टोलों में मांझी समाज के लोग बसते हैं जो बिहार में सामाजिक रूप से सबसे पिछड़ी हुई जाति है।

महादलित टोले का हाल

महादलित टोले का हाल

इन टोलों में अब तक बिजली की लाइन तक नहीं पहुंची है। आज भी लोग डिबरी और लालटेन के सहारे जी रहे हैं। ऐसे में नीतीश कुमार कह वह दावा खारिज हो जाता है जिसमें वह कहते आए हैं कि उनके बीस साल के शासन में ‘लालटेन युग’ समाप्त हो गया।

दिरापर महादलित टोला का हाल

दिरापर महादलित टोला के लिए पक्की सड़क नहीं। 

सबसे बड़ी विडंबना यह है कि नालंदा विधानसभा में जो विधायक लगातार 20 साल से जीत रहे हैं, वे वर्तमान सरकार में ग्रामीण विकास मंत्री श्रबन कुमार हैं। इसके बावजूद नालंदा के इस गांव में विकास छूकर भी नहीं गुजरा।

वार्ड 1- गोबिंदपुर का एक महादलित टोला दिरापर का है, यहां मांझी समाज के 30 से अधिक परिवार रह रहे हैं। इस टोला के गरीबन मांझी, निरमा देवी, रुविया देवी, टुनटुन मांझी, गोपाल व ववन मांझी ने बताया कि वे लोग 15 साल पहले टोले में बसे। पर आज तक यहां न तो बिजली है और न ही पक्का रास्ता जो टोले को गांव की मुख्य सड़क से जोड़ दे। इन अति पिछड़े समुदाय के बच्चों-बुजुर्गों को कीचड़ भरे रास्ते से गुजरना पड़ता है। बच्चे आज भी ढिबरी के सहारे पढ़ने को विवश हैं।

नलजल योजना अब तक इस टोले में नहीं पहुंची

नलजल योजना अब तक इस टोले में नहीं पहुंची

इलाके में अब तक ‘नल-जल योजना’ नहीं पहुंची है जबकि पूरे राज्य में इसे लागू हुए 9 साल हो चुके हैं। इस योजना के तहत पाइप लाइन डालकर ग्रामीण इलाकों में शुद्ध पानी पहुंचाने का प्रावधान है।

यह भी ध्यान देने योग्य है कि महादलितों को मुख्य धारा में लाने की एक दर्जन से ज्यादा योजनाएं पूरे राज्य में लागू हैं पर टोले के लोगों का कहना है कि उनके इलाके में आज तक कोई इन योजनाओं के बारे में बताने नहीं आया।

 

स्थानीय निवासी रंजन पटेल का आरोप है कि इस टोला में बुनियादी सुविधाओं को लेकर स्थानीय विधायक व ग्रामीण विकास मंत्री श्रवन कुमार से भी कई बार कहा गया, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है।

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