चुनावी डायरी
बिहार : NDA से सीट बंटवारा अटक रहा, महागठबंधन में सीएम फेस पर सहमति नहीं
पटना | हमारे संवाददाता
बिहार में विधानसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है। लेकिन सबकी नजर NDA और महागठबंधन की सीट शेयरिंग पर है। दोनों गठबंधन में बैठकों का दौर जारी है। सूत्रों की माने तो महागठबंधन में सीट शेयरिंग लगभग फाइनल हो चुकी है। CM फेस पर मामला फंस रहा है। राजद नेता तेजस्वी यादव के आवास पर आज भी महागठवंधन सहयोगी दलों की बैठक है।
दूसरी ओर, NDA में चिराग पासवान और जीतनराम माझी के दलों ने सीट बढ़वाने की डिमांड कर दी है, जिससे सीट बंटवारे पर ही बात अटकी हुई है। नीतीश कुमार ने जदयू नेताओं के साथ बैठक की। खबर है कि टिकट और उम्मीदवार को लेकर पार्टी के बड़े नेताओं के साथ सीएम ने 45 मिनट चर्चा की है। जदयू अपने कोटे की सीटों और उम्मीदवारों पर मंथन जारी है। मुख्यमंत्री आवास पहुंचे जदयू के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष और सांसद संजय झा ने कहा, ‘एनडीए पूरी मजबूती से खड़ा है और जल्द सीट शेयरिंग हो जाएगी।
इधर, सोमवार रात बिहार बीजेपी के चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान दिल्ली गए हैं। वहां चिराग पासवान के साथ मीटिंग होनी है।

5 अक्तूबर को जीतनराम मांझी के साथ बैठक करने पहुंचे बीजेपी के चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान, तावड़े, सम्राट चौधरी।
चिराग- 30, मांझी- 15 सीट पर अड़े
बिहार बीजेपी के प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान लगातार सहयोगी दलों से सीट बंटवारे को लेकर बातचीत कर रहे हैं। इस बीच चिराग की पार्टी की ने एनडीए की मुसीबत बढ़ा दी है। सूत्रों के अनुसार, चिराग 25-30 सीटों पर अड़े हुए हैं। इधर, मांझी ने भी 15 सीटों की डिमांड कर गठबंधन में टेंशन बढ़ा दी है। दिल्ली में आज चिराग पासवान की धर्मेंद्र प्रधान के साथ मीटिंग है। जहां सीट बंटवारे पर बात होगी।
माना जा रहा है कि एनडीए अगले एक दो दिन में सीट बंटवारे का ऐलान कर सकता है।
सीटों पर फंस रहा पेंच
सूत्रों के मुताबिक एनडीए में सीटों के बंटवारे में दो मुद्दे हैं। पहला- सभी पार्टियों को मिलने वाली सीटों की संख्या तय करना। दूसरा- किसके खाते में कौन सी सीट जाएगी। चर्चा है कि एनडीए में सीटों की संख्या को लेकर काफी हद तक सहमति बन गई है, लेकिन किस पार्टी को कौन सी सीट मिलेगी इसको लेकर पेंच फंस रहा है।
कुछ सीटों पर लोजपा-रामविलास का दावा
चिराग की पार्टी के बिहार प्रदेश अध्यक्ष राजू तिवारी ने एक टीवी चैनल से बातचीत में जमुई लोकसभा सीट के तहत आने वाली चकाई और सिकंदरा विधानसभा सीट पर दावा किया था। चकाई से फिलहाल सुमित सिंह निर्दलीय विधायक हैं, जो नीतीश सरकार में मंत्री भी हैं। जबकि सिकंदरा विधानसभा सीट से फिलहाल हम पार्टी के विधायक हैं। ऐसे में एक ही सीटों पर कई दलों के दावे से मामला फंस रहा है।
महागठबंधन में सीट शेयरिंग फाइनल, CM चेहरे पर पेंच
सूत्रों की माने तो महागठबंधन में सीट शेयरिंग लगभग फाइनल है। रविवार की देर शाम मुकेश सहनी ने तेजस्वी यादव के आवास पर हुई मैराथन मीटिंग के बाद दावा किया था कि सब कुछ फाइनल हो गया है।
आज तेजस्वी आवास पर फिर से महागठबंधन नेताओं की मीटिंग बुलाई गई है। इसमें झारखंड मुक्ति मोर्चा और लेफ्ट की पार्टियों से बात होगी। साथ ही पशुपति पारस की पार्टी को कितनी सीटें दी जाए, इस पर चर्चा है। बताया जा रहा है कि महागठबंधन में CM फेस पर पेंच फंसा है।
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दो सीटें जीतने के बाद भी NDA सरकार में सीमांचल को सीमित प्रतिनिधित्व, अररिया की जनता नाराज
- अररिया जिले को NDA सरकार के मंत्रीमंडल में कोई मंत्री नहीं मिला जबकि पहले हर सरकार यहां से मंत्री बनाती आई है।
फारबिसगंज(अररिया) | मुबारक हुसैन
नई सरकार के गठन के साथ एनडीए समर्थकों में जहां उत्साह का माहौल है, वहीं अररिया जिले में निराशा गहराती दिख रही है। इसका कारण है कि जिले से किसी भी विधायक को मंत्रिमंडल में स्थान नहीं मिला, जबकि हर सरकार में अररिया से कैबिनेट मंत्री बनते आए हैं। इस बार पूर्णिया से विधायक लेशी सिंह को जरूर मंत्री बनाया गया है पर NDA मंत्रीमंडल में घटे सीमांचल के प्रतिनिधित्व से आम लोग नाराज हैं।
बीजेपी ने दो सीट जीतीं फिर भी उपेक्षित
अररिया जिले की कुल छह विधानसभा सीटों में से नरपतगंज और सिकटी में भाजपा ने जीत दर्ज की। खासकर सिकटी से लगातार हैट्रिक के साथ छठी बार विधानसभा पहुंचे वरिष्ठ भाजपा नेता विजय मंडल के मंत्री बनने की अटकलें तेज थीं। पिछली सरकार में उन्होंने बिहार के आपदा प्रबंधन मंत्री के रूप में कार्य किया था और सीमांचल सहित कोसी अंचल के मुद्दों को मजबूती से उठाया था। ऐसे में माना जा रहा था कि अनुभव और लगातार जीत के आधार पर उन्हें फिर से मंत्रिमंडल में जगह मिलेगी। लेकिन इस बार उन्हें भी बाहर रखा गया, जिससे जिले में मायूसी और राजनीतिक बहस तेज हो गई है।
एनडीए का कमजोर प्रदर्शन भी बनी वजह?
पिछले दो चुनावों की तुलना में इस बार जिले में एनडीए का प्रदर्शन कमजोर रहा है। फारबिसगंज और रानीगंज जैसी परंपरागत सीटों पर एनडीए को हार का सामना करना पड़ा। दो दशक से अधिक समय तक इन दोनों सीटों पर एनडीए का कब्जा रहा था। रानीगंज में जहां जदयू विजयी होती रही, वहीं फारबिसगंज भाजपा की सुरक्षित मानी जाने वाली सीट रही है। विश्लेषकों का कहना है कि छह में से सिर्फ दो सीटें जीत पाने की स्थिति एनडीए के लिए अनुकूल नहीं रही, जिसका असर मंत्री पद के चयन में दिखा है।
अररिया को मिलता रहा है प्रतिनिधित्व
स्थानीय राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि चाहे राज्य में महागठबंधन सरकार रही हो या एनडीए की, अररिया को हमेशा मंत्री पद के स्तर पर प्रतिनिधित्व मिलता रहा है। जिले के दिग्गज नेताओं जैसे सरयू मिश्रा, मोइदुर रहमान, अजीमुद्दीन, तस्लीमुद्दीन, सरफराज आलम, शाहनवाज आलम, शांति देवी और रामजी दास ऋषिदेव आदि ने पूर्व में मंत्री पद संभालकर जिले का प्रतिनिधित्व किया है। इसी क्रम को पिछले कार्यकाल में विजय कुमार मंडल ने आगे बढ़ाया पर इस बार उन्हें मंत्री नहीं बनाया गया।
सीमांचल की आवाज़ कमजोर होने की आशंका
स्थानीय लोगों का कहना है कि सीमांचल क्षेत्र पहले से ही विकास के मामले में पिछड़ा माना जाता है। ऐसे में मंत्री पद जैसा प्रतिनिधित्व जिले की समस्याओं को सरकार तक अधिक प्रभावी ढंग से पहुंचाने का साधन रहा है। इस बार किसी भी नेता को मंत्रिमंडल में शामिल न किए जाने से आम लोगों में चिंता है कि जिले की आवाज राजधानी में कमजोर पड़ सकती है।
क्या कहते हैं पार्टी कार्यकर्ता
अररिया को कैबिनेट में प्रतिनिधित्व न मिलने को लेकर NDA के घटक दलों के कार्यकर्ताओं का मानना है कि इससे राजनीतिक रूप से गलत संदेश जा सकता है। हालांकि कार्यकर्ता यह भी कह रहे हैं कि अगर 5 साल के कार्यकाल में NDA अपना कैबिनेट विस्तार करती है तो जरूर अररिया को मंत्री मिलेगा।
NDA सरकार के जिलावार कैबिनेट मंत्रियों की सूची
1. सहयोगी कोटा – संतोष सुमन – HAM – (गया)
2. सहयोगी कोटा – संजय पासवान – LJPR- (बेगूसराय)
3. सहयोगी कोटा – संजय सिंह – LJPR – ( वैशाली)
4. सहयोगी कोटा – दीपक प्रकाश – RLM – ( वैशाली )
5. भाजपा कोटा – रामकपाल यादव – BJP ( पटना)
6. भाजपा कोटा – संजय सिंह टाइगर – BJP ( आरा )
7. भाजपा कोटा – अरुण शंकर प्रसाद – BJP ( मधुबनी)
8. भाजपा कोटा – सुरेन्द्र मेहता – BJP, ( बेगूसराय)
9. भाजपा कोटा – नारायण प्रसाद – BJP ( पश्चिम चंपारण)
10. भाजपा कोटा – सम्राट चौधरी – डिप्टी सीएम ( मुंगेर )
11. भाजपा कोटा – विजय सिन्हा – डिप्टी सीएम – ( लखीसराय)
12. भाजपा कोटा – दिलीप जायसवाल – BJP ( किशनगंज )
13. भाजपा कोटा – मंगल पांडेय – BJP ( सीवान)
14. भाजपा कोटा – नितिन नवीन – BJP ( पटना)
15. भाजपा कोटा – रमा निपद – BJP ( मुजफ्फरपुर)
16. भाजपा कोटा – लखेंद्र पासवान – BJP ( वैशाली)
17. भाजपा कोटा – श्रेयसी सिंह – BJP ( जमुई )
18. भाजपा कोटा – प्रमोद कुमार चंद्रवंशी – BJP ( जहानाबाद)
19. JDU कोटा – नीतीश कुमार – मुख्यमंत्री ( नालंदा)
20. JDU कोटा – विजय कुमार चौधरी – JDU ( समस्तीपुर)
21. JDU कोटा – अशोक चौधरी – JDU (शेखपुरा)
22. JDU कोटा – विजेन्द्र यादव – JDU ( सुपौल)
23. JDU कोटा – श्रवण कुमार – JDU ( नालंदा)
24. JDU कोटा – जमा खान – JDU ( कैमूर)
25. JDU कोटा – लेशी सिंह – JDU ( पूर्णिया)
26. JDU कोटा – मदन सहनी – JDU ( दरभंगा)
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बिहार : नई सरकार की शपथ के दिन मौन व्रत पर बैठे प्रशांत किशोर
- 20 नवंबर सुबह 11:14 मिनट से मौन व्रत शुरू हुआ तो 21 नवंबर को सुबह 11:15 बजे तक चलेगा।
बेतिया (पश्चिमी चंपारण) |
बिहार में गुरुवार को नीतीश कुमार ने 10वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, इसी दिन को प्रशांत किशोर ने जनसुराज की चुनावी रणनीति की गड़बड़ियों से जुड़े प्रायश्चित के लिए चुना।
दो दिन पहले जनसुराज के संस्थापक प्रशांत किशोेर ने मीडिया के सामने कहा था कि वे जनता तक अपने संदेश को ठीक ढंग से पहुंचा नहीं पाए, जिसके लिए वे प्रायश्चित स्वरूप एक दिन का मौत व्रत रखेंगे।
इसके तहत प्रशांत किशोर ने आज (20 नवंबर) सुबह सबा 11 बजे पश्चिमी चंपारण के भितिहरवा स्थित गांधी आश्रम में मौन उपवास शुरू किया जो अगले दिन इसी समय तक चलेगा। अपने सहयोगियों के साथ वे गांधी प्रतिमा के पास बैठे मौत उपवास अकेले कर रहे हैं।
जनसुराज पार्टी ने एक्स पर प्रशांत किशोर की तस्वीरें साझा करते हुए लिखा ‘गांधी आश्रम , भितिहरवा में एक दिन के मौन उपवास के साथ बिहार में बदलाव की नई शुरुआत।’
बता दें कि बिहार विधानसभा चुनाव में प्रशांत किशोर की पार्टी एक भी सीट नहीं जीत सकी और उन्हें 3.34 प्रतिशत वोट मिला।
गांधी के आंदोलन के खिलाफ रहे हैं PK
गांधी के रास्ते पर चलते हुए मौन व्रत करके आत्मबल और आत्म चिंतन कर रहे प्रशांत किशोर कुछ मामलों में गांधीवादी विचारधारा से उलट राय रखते हैं। प्रशांत किशोर अक्सर अपने भाषणों में कहते रहे हैं कि वे महात्मा गांधी के आंदोलन करने के तरीकों का समर्थन नहीं करते।
वे कहते हैं कि दीर्घकालिक विकास और व्यवस्था में बदलाव के लिए आंदोलन आधारभूत तरीका नहीं है, बल्कि वे ऐसी चुनावी प्रक्रिया के समर्थक हैं जिसमें सही लोग चुनकर नेतृत्व करें।
उनका कहना है कि फ्रांस रेवोल्यूशन को छोड़कर इतिहास में किसी भी आंदोलन या क्रांति ने किसी भी देश में लंबे समय तक टिकने वाले विकास का रास्ता नहीं बनाया है।
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बिहार : बिना चुनाव लड़े ही कैबिनेट मंत्री बने सांसद और केंद्रीय मंत्री के बेटे.. नई NDA सरकार का ‘परिवारवाद’ जानिए
- बिना चुनाव लड़े उपेंद्र कुशवाहा के बेटे दीपक प्रकाश बने मंत्री, इंजीनियरिंग छोड़ राजनीति में रखा कदम।
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नई नीतीश सरकार में सॉफ्टवेयर इंजीनियर से नेता बने दीपक को रालोमो कोटे से मिली जगह।
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कुशवाहा परिवार में डबल खुशी—मां स्नेहलता बनीं विधायक और बेटा दीपक बने मंत्री।
पटना |
बिहार (Bihar) में नई सरकार के गठन के साथ ही एक नाम ने सबका ध्यान खींचा है। NDA के सहयोगी दल राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM) के सुप्रीमो और राज्यसभा सांसद उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) के बेटे दीपक प्रकाश (Deepak Prakash) को नीतीश कैबिनेट में मंत्री बनाया गया है।
हैरान करने वाली बात यह है कि 37 वर्षीय दीपक ने यह विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा था, फिर भी उन्हें रालोमो कोटे से मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है। उधर, NDA ने अपने दूसरी सहयोगी HAM चीफ व केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी के भी बेटे को कैबिनेट मंत्री बनाया है, जबकि पार्टी से पांच विधायक जीतकर आए हैं। विधानपार्षद संतोष सुमन पिछली सरकार में भी मंत्री थे। जानिए NDA सरकार में परिवारवाद का हिस्सा कौन-कौन से चेहरे हैं।
सॉफ्टवेयर इंजीनियर से राजनेता तक का सफर
दीपक प्रकाश का जन्म 22 अक्तूबर 1989 को हुआ था। उनकी शुरुआती पढ़ाई पटना में हुई। इसके बाद उन्होंने मणिपाल से कंप्यूटर साइंस में बीटेक (B.Tech) किया। तकनीकी क्षेत्र से ताल्लुक रखने वाले दीपक ने 2011 से 2013 तक बतौर सॉफ्टवेयर इंजीनियर काम किया और बाद में अपना बिजनेस शुरू किया। राजनीति में उनकी सक्रियता 2019-20 के आसपास शुरू हुई, जब उन्होंने अपने पिता के संगठनात्मक कार्यों में हाथ बंटाना शुरू किया।
मां पहली बार बनीं विधायक, बेटा मंत्री बन गया
NDA में उपेंद्र कुशवाहा की अहमियत को इस बात से आंका जा सकता है कि पिछले साल लोकसभा चुनाव हार जाने के बाद उन्हें सीधे राज्यसभा भेज दिया गया। उनकी पार्टी RLM को NDA ने इस विधानसभा चुनाव में 6 सीटें दी थीं, जिनमें से पार्टी ने 4 पर जीत दर्ज कर ली। सासाराम सीट पर उपेंद्र कुशवाहा ने अपनी पत्नी स्नेहलता को चुनाव लड़ाया जो जीतकर पहली बार विधायक बनी हैं। अब उनके बेटे को बिना चुनाव लड़े ही कैबिनेट में जगह मिल गई है। नियम के मुताबिक, उन्हें 6 महीने के भीतर किसी सदन का सदस्य बनना होगा, ऐसे में संभव है कि उन्हें MLC बना दिया जाए।
मांझी ने बेटे को मंत्री बनवाया, बहू-समधन विधायक बने
सिर्फ कुशवाहा ही नहीं, एनडीए के दूसरे सहयोगी दल ‘हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा-सेक्युलर’ (HAM) के प्रमुख और केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी (Jitan Ram Manjhi) के परिवार की भी पार्टी में बड़ी हिस्सेदारी है। मांझी की पार्टी को NDA ने 6 सीटें दीं, जिसमें दो सीट पर उन्होंने अपनी बहू और समधन को टिकट दिया। उनकी पार्टी ने कुल 5 सीटें जीत लीं। फिर भी मांझी ने अपने कोटे से NDA सरकार में मंत्री अपने पांचों विधायक को नहीं बनाया बल्कि अपने बेटे MLC संतोष सुमन को बनवाया है।

शपथ के बाद हस्ताक्षर करते कैबिनेट मंत्री संतोष कुमार सुमन जो मांझी के बेटे हैं। (Facebook/santosh kumar suman)
1. बहू और समधन जीतीं: गया के इमामगंज सीट से मांझी की बहू और पार्टी अध्यक्ष संतोष सुमन (Santosh Suman) की पत्नी दीपा मांझी (Deepa Manjhi) विधायक बनी हैं। वहीं, बाराचट्टी सीट से उनकी समधन ज्योति देवी (Jyoti Devi) ने जीत दर्ज की है।
2. बाहरी को बनाया नेता: हालांकि, परिवारवाद के आरोपों के बीच एक दिलचस्प फैसला लेते हुए, HAM ने अपने परिवार से बाहर के व्यक्ति, सिकंदरा विधायक प्रफुल्ल कुमार मांझी (Prafull Kumar Manjhi) को विधायक दल का नेता चुना है।
चिराग ने भी परिवार पर ही जताया भरोसा
एनडीए के एक और घटक दल लोक जनशक्ति पार्टी-रामविलास (LJP-Ram Vilas) के प्रमुख चिराग पासवान (Chirag Paswan) ने भी इस चुनाव में अपने परिवार पर भरोसा जताया था और अपने भांजे को टिकट दिया था। कुल मिलाकर, बिहार की नई सरकार में सहयोगी दलों के परिवारों का वर्चस्व साफ दिखाई दे रहा है।
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