Connect with us

रिसर्च इंजन

AC Sleeper बसें: कई देशों में बैन, भारत कब उठाएगा कदम?

Published

on

  • जर्मनी, चीन व इंग्लैंड ने डबल डेकर स्लीपर बसें पूरी तरह बैन कर दीं।
  • खतरनाक डिजायन, ऊंचाई के चलते पलटने का खतरा अहम वजह।
  • भारत में बीती 14, 17 व 25 अक्तूबर को तीन बड़े हादसों में 50 लोग मरे।

 

नई दिल्ली  |

देश में बीते दो सप्ताह के भीतर तीन बड़े बस एक्सीडेंट हुए जिसमें 50 यात्रियों की जलकर जान चली गई, इसमें अधिकांश यात्री तो नींद में ही मर गए। जिन AC स्लीपर बसों को कुछ बड़े देश कई साल पहले ‘चलती-फिरती कब्र’ बताकर बैन कर चुके हैं, वे बसें भारत में ‘लग्जरी सफर’ की पहचान बन गई हैं। ट्रेनों की लेटलतीफी और टिकट की मारामारी ने लॉन्ग रूट पर स्लीपर बसों को लोकप्रिय बनाया पर इनके खतरे लगातार सामने आ रहे हैं। आइए जानते हैं किस देश ने कब इसे बैन कर दिया।

  • जर्मनी में डबल डेकर स्लीपर बसें 2006 में पूरी तरह बैन हो गईं। इससे पहले इन बसोें को 1931 में रेलवे के संरक्षण के लिए बंद किया गया था पर 2000 के दशक में ये लोकप्रिय हो गईं। पर इन बसों से कई हादसे होने के बाद बैन लगा। इन बसों की ऊंची बनावट के चलते पलटने का खतरा ज्यादा था, सोते समय यात्रियों के बेल्ट न बांधने से एक्सीडेंट होने पर वे उछलकर गिरने से मर जाते थे।

 

  • चीन ने 2012 से नए रजिस्ट्रेशन बंद कर दिए और 2018 में सभी पुरानी स्लीपर बसें हटा दीं। 1990 के दशक में स्लीपर बसों की यहां शुरूआत हुई क्योंकि रेल नेटवर्क की कमी थी। पर 2009 से 2012 के बीच 13 हादसों में 252 मौतें हुईं, जिसपर गाइडलाइन सख्त की गईं पर लाभ नहीं मिला। डिजायन की कमी, ओवरलोडिंग, लंबे सफर में ड्राइवर को आराम न मिलने और सीटों के बीच कम स्पेस के चलते इसे बैन किया गया।

 

  • इंग्लैंड (यूके) ने 2017 में स्लीपर बसें पूरी तरह बंद कर दी गईं। इन बसों को कर्मिशियल बस सर्विस में असफल पाया गया क्योंकि इनमें ज्यादा लागत और ज्यादा खतरा था। इंग्लैंड में 1920 से 50 के दशक में स्लीपर कोच प्रचलन में थे। शॉर्ट सर्किट की आशंका, सुरक्षा की कमी के चलते इसे बंद कर दिया गया। लंबी दूरी के लिए स्लीपर ट्रेन ज्यादा सेफ मानी गईं।

 

 


 

भारत में हुए स्लीपर बस हादस इन कारणों से हुए 

  • बिजली शॉर्ट सर्किट: एसी यूनिट की खराब वायरिंग, ओवरलोडिंग या पुरानी मॉडिफिकेशन से स्पार्क। जैसलमेर और वेल्लोर मामलों में यही हुआ।
  • ईंधन रिसाव और टक्कर: डीजल टैंक फटने से आग, जैसा कुर्नूल में। नींद की कमी वाले ड्राइवर (जो 40% रोड एक्सिडेंट्स के लिए जिम्मेदार, जैसा केरल ट्रांसपोर्ट ऑफिशियल्स का कहना है) हाई स्पीड पर कंट्रोल खो देते हैं।
  • डिजाइन की कमियां: स्लीपर बर्थ की संकरी गलियां, ब्लॉक इमरजेंसी एग्जिट, ज्वलनशील इंटीरियर और सील्ड एसी सिस्टम धुएं को फैलने नहीं देते।
  • रखरखाव की कमी: प्राइवेट ऑपरेटर्स सेफ्टी चेक स्किप करते हैं; कई बसें पुरानी या अवैध मॉडिफाइड।

 

17 अक्तूबर (तमिलनाडु) :  ब्रेक फेल होने से टक्कर, एसी वायरिंग के आग तेजी से फैली

चेन्नई-बेंगलुरु नेशनल हाईवे पर कलाथुर जंक्शन के पास एक तमिलनाडु स्टेट ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन (टीएनएसटीसी) की एसी बस एक कार से टकराई। टक्कर के बाद दोनों वाहनों में आग लग गई, जिसमें बस का ड्राइवर और कार के दो यात्री जिंदा जल गए।
पुलिस के अनुसार, बस की ब्रेक फेलियर और हाई स्पीड मुख्य कारण थे। आग तेजी से फैली क्योंकि एसी सिस्टम के वायरिंग में शॉर्ट सर्किट हो गया, जो ईंधन टैंक तक पहुंच गया। इस हादसे में कुल पांच लोगों की मौत हुई, जबकि 12 यात्री घायल हो गए।
राज्य के परिवहन मंत्री एसएस सूर्या ने जांच के आदेश दिए हैं, लेकिन विपक्ष ने पुरानी बसों के रखरखाव की कमी को जिम्मेदार ठहराया।
14 अक्टूबर (राजस्थान) : एसी यूनिट में शॉर्ट सर्किट, खिड़कियां तोड़ने पर आग भड़की
राजस्थान के जैसलमेर के पास 14 अक्टूबर को एक प्राइवेट एसी स्लीपर बस जोधपुर जा रही थी, जब अचानक आग लग गई। थियात गांव के पास यह बस, जिसमें 57 यात्री सवार थे (जिनमें परिवार और बच्चे शामिल थे), सिर्फ पांच दिन पहले एसी फिटिंग करायी गई थी।
फॉरेंसिक रिपोर्ट के मुताबिक, एसी यूनिट की खराब वायरिंग में शॉर्ट सर्किट से आग भड़की, जो इंजन से जुड़ी होने के कारण तेजी से फैली। कार्बन मोनोऑक्साइड गैस से कई यात्री बेहोश हो गए, और जब उन्होंने खिड़कियां तोड़ने की कोशिश की तो बाहर की हवा ने आग को और भड़का दिया।
बस का मुख्य दरवाजा जाम हो गया, इमरजेंसी एग्जिट ब्लॉक था, और कोई फायर एक्सटिंग्विशर या ब्रेकेबल विंडो हैमर नहीं था। नतीजतन 26 मौतें हुईं जिनमें तीन बच्चे शामिल थे, और 16 घायल।
राजस्थान के मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा ने घटनास्थल का दौरा किया और पीड़ित परिवारों को 10 लाख रुपये की सहायता की घोषणा की। बस मालिक, ड्राइवर और वर्कशॉप ओनर को गिरफ्तार किया गया है।
25 अक्तूबर (आंध्र प्रदेश)  : बाइक के फ्यूल टैंक से बस में आग, बस के गेट जाम हो गए
कुर्नूल की घटना सबसे भयानक रही, जहां 24 अक्टूबर को हैदराबाद से बेंगलुरु जा रही एक लग्जरी एसी वोल्वो स्लीपर बस (कावेरी ट्रेवल्स) मोटरसाइकिल से टकराई।
चिन्नाटेकुर गांव के पास रात 3:30 बजे हुई इस टक्कर में मोटरसाइकिल का फ्यूल टैंक फट गया, और स्पार्क से बस का डीजल टैंक आग पकड़ लिया। एसी सिस्टम के सील्ड डिजाइन ने धुएं को अंदर कैद कर दिया, जबकि इंटीरियर की सिंथेटिक सामग्री (फोम, प्लास्टिक, रेक्सिन) और एसी गैस (आर-32 या आर-410A जैसी ज्वलनशील) ने आग को बेकाबू बना दिया।
बस के दरवाजे पिघलकर जाम हो गए, और इमरजेंसी विंडोज नहीं खुलीं। 40 यात्रियों में से 20 जिंदा जल मरे, जिनमें दो तमिलनाडु के निवासी भी थे। ड्राइवरों ने भागने की कोशिश की।  स्थानीय लोग और फायर ब्रिगेड ने एक घंटे तक आग बुझाई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मृतकों के परिवारों को 2 लाख रुपये की अनुग्रह राशि घोषित की, जबकि आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू ने हाई-लेवल जांच के आदेश दिए।

बोलते पन्ने.. एक कोशिश है क्लिष्ट सूचनाओं से जनहित की जानकारियां निकालकर हिन्दी के दर्शकों की आवाज बनने का। सरकारी कागजों के गुलाबी मौसम से लेकर जमीन की काली हकीकत की बात भी होगी ग्राउंड रिपोर्टिंग के जरिए। साथ ही, बोलते पन्ने जरिए बनेगा .. आपकी उन भावनाओं को आवाज देने का, जो अक्सर डायरी के पन्नों में दबी रह जाती हैं।

Continue Reading
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

चुनावी डायरी

बिहार में किसके वोट कहां शिफ्ट हुए? महिला, मुस्लिम, SC–EBC के वोटिंग पैटर्न ने कैसे बदल दिया नतीजा?

Published

on

नीतीश कुमार 9 बार सीएम बन चुके हैं और इस बार भी उनके ही चेहरे पर चुनाव लड़ा गया और अप्रत्याशित जीत मिली।
नीतीश कुमार 9 बार सीएम बन चुके हैं और इस बार भी उनके ही चेहरे पर चुनाव लड़ा गया और अप्रत्याशित जीत मिली।
  • महागठबंधन का वोट शेयर प्रभावित नहीं हुआ पर अति पिछड़ा, महिला व युवा वोटर उन पर विश्वास नहीं दिखा सके।

नई दिल्ली| महक अरोड़ा

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों ने साफ कर दिया है कि इस बार की लड़ाई सिर्फ सीटों की नहीं थी—बल्कि वोटिंग पैटर्न, नए सामाजिक समीकरण, और वोट के सूक्ष्म बदलावों की थी।

कई इलाकों में वोट शेयर में बड़ा बदलाव नहीं दिखा, लेकिन सीटें बहुत ज्यादा पलट गईं। यही वजह रही कि महागठबंधन (MGB) का वोट शेयर सिर्फ 1.5% गिरा, लेकिन उसकी सीटें 110 से घटकर 35 पर आ गईं।

दूसरी ओर, NDA की रणनीति ने महिलाओं, SC-EBC और Seemanchal के वोट पैटर्न में बड़ा सेंध लगाई, जो इस प्रचंड बहुमत (massive mandate) की असली वजह माना जा रहा है।

 

महिला वोटर बनीं Kingmaker, NDA का वोट शेयर बढ़ाया

बिहार में इस बार महिलाओं ने 8.8% ज्यादा रिकॉर्ड मतदान किया:

  • महिला वोटिंग: 71.78%
  • पुरुष वोटिंग: 62.98%

(स्रोत- चुनाव आयोग)

महिला वोटर वर्ग के बढ़े हुए मतदान का सीधा फायदा NDA विशेषकर जदयू को हुआ, जिसने पिछली बार 43 सीटें जीती और इस बार 85 सीटों से दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी।


 

वोट शेयर का गणित — MGB का वोट कम नहीं हुआ, पर सीटें ढह गईं

  • NDA Vote share: 46.5%
    MGB Vote share: 37.6%

2020 की तुलना में: 9.26% ज्यादा वोट NDA को पड़ा

  •  NDA के वोट share में बड़ी बढ़त – 37.26%
  •  MGB का वोट share सिर्फ 1.5% गिरा – 38.75%
  •  पर महागठबंधन की सीटें 110 → 35 हो गईं

(स्रोत- चुनाव आयोग)

यानी इस चुनाव में महागठबंधन का वोट प्रतिशत लगभग बराबर रहा पर वे वोट शेयर को सीटों में नहीं बदल सके।

यह चुनाव vote consolidation + social engineering + seat-level micro strategy का चुनाव था।


 

SC वोटर ने NDA का रुख किया — 40 SC/ST सीटों में 34 NDA के खाते में

बिहार की 40 आरक्षित सीटों (38 SC + 2 ST) में NDA ने लगभग क्लीन स्वीप किया:

  •  NDA: 34 सीट
  •  MGB: 4 सीट (2020 में NDA = 21 सीट)

(स्रोत- द इंडियन एक्सप्रेस)

सबसे मजबूत प्रदर्शन JDU ने किया—16 में से 13 SC सीटें जीतीं। BJP ने 12 में से सभी 12 सीटें जीत लीं।

वहीं महागठबंधन के लिए यह सबसे खराब प्रदर्शन रहा — RJD 20 SC सीटों पर लड़कर भी सिर्फ 4 ला सकी।

RJD का वोट शेयर SC सीटों में सबसे ज्यादा (21.75%) रहा, लेकिन सीटें नहीं मिल सकीं।

वोट share और seat conversion में यह सबसे बड़ा असंतुलन रहा।


 

मुस्लिम वोट MGB और AIMIM के चलते बंटा, NDA को फायदा हुआ

सीमांचल – NDA ने 24 में से 14 सीटें जीत लीं

सीमांचल (Purnia, Araria, Katihar, Kishanganj) की 24 सीटों पर इस बार सबसे दिलचस्प तस्वीर दिखी।

मुस्लिम वोट महागठबंधन और AIMIM में बंट गए, और इसका सीधा फायदा NDA को मिला।

  • NDA: 14 सीट
  • JDU: 5
  • AIMIM: 5
  • INC: 4
  • RJD: सिर्फ 1
  • LJP(RV): 1

 

सबसे कम मुस्लिम विधायक विधानसभा पहुंचेंगे – सूबे में 17.7% मुस्लिम आबादी के बावजूद इस बार सिर्फ 10 मुस्लिम विधायक विधानसभा पहुंचे — 1990 के बाद सबसे कम।

  • यह NDA की सामाजिक इंजीनियरिंग, EBC–Hindu consolidation और मुस्लिम वोटों के बंटवारे का संयुक्त परिणाम है।
  • EBC–अति पिछड़ा वोट NDA के साथ गया — MGB की सबसे बड़ी हार की वजह
  • अतिपिछड़ा वर्ग (EBC) बिहार में सबसे बड़ा वोट बैंक है। इस बार ये पूरा वोट NDA के पक्ष में चला गया।
  • JDU की परंपरागत पकड़ + BJP का Welfare Model मिलकर EBC वर्ग में मजबूत प्रभाव डाल गए।
  • यही वोट EBC बेल्ट (मिथिला, मगध, कोसी) में NDA को करारी बढ़त देने का कारण बना।

 


 

रिकॉर्ड संख्या में निर्दलीय लड़े पर नहीं जीत सके

Independent उम्मीदवारों की रिकॉर्ड संख्या — 925 में से 915 की जमानत जब्त

इस चुनाव में:

  •  कुल उम्मीदवार: 2616
  •  Independent: 925
  •  जमानत ज़ब्त: 915 (98.9%)

ECI ने ज़ब्त हुई जमानतों से 2.12 करोड़ रुपये कमाए

 

क्यों इतने Independent मैदान में उतरे?
1. पार्टियों ने पुराने नेताओं के टिकट काटे
2. कई स्थानीय नेताओं ने बगावत कर दी
3. कई सीटों पर बिखराव की वजह बने

VIP, CPI, AIMIM, RJD, INC – हर पार्टी के बड़ी संख्या में उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई।

Continue Reading

दुनिया गोल

युद्ध के चलते बर्बाद हो चुके गज़ा में हमास किस तरह शवों को सुरक्षित रख रहा?

Published

on

हमास के सशस्त्र समूह के सदस्य दक्षिणी गजा पट्टी के खान यूनिस में बंधकों के शवों की तलाश करते हुए।
हमास के सशस्त्र समूह के सदस्य दक्षिणी गजा पट्टी के खान यूनिस में बंधकों के शवों की तलाश करते हुए।
  • 11 साल बाद हमास ने इज़रायल को लौटाया एक लेफ्टिनेंट का शव।
  • हाल के शांति समझौते के तहत हमास शव व अवशेष लौटा रहा है।

नई दिल्ली | महक अरोड़ा

गज़ा युद्ध (2014) में मारे गए इज़रायली सैनिक लेफ्टिनेंट हदार गोल्डिन का शव 11 साल बाद आखिरकार इज़रायल को सौंप दिया गया। हमास ने यह शरीर दक्षिणी गज़ा में रेड क्रॉस को दिया, जिसके बाद इसे इज़रायल डिफेंस फोर्स (IDF) के हवाले कर दिया गया।

गोल्डिन की मौत 1 अगस्त 2014 को हुई थी—उसी दिन जब हमास ने उनके यूनिट पर हमला कर उन्हें अगवा कर लिया था। बाद में उनकी हत्या कर दी गई। वे 23 वर्ष के थे और ‘ऑपरेशन प्रोटेक्टिव एज’ के दौरान मारे गए 68 इज़रायली सैनिकों में से एक थे।

IDF अबू कबीर फॉरेंसिक इंस्टीट्यूट में DNA परीक्षण के बाद पहचान की औपचारिक पुष्टि करेगा, जिसके बाद उन्हें राष्ट्रीय सम्मान दिया जाएगा।

 

अब सबसे बड़ा सवाल—हमास ने 11 साल तक शव कैसे सुरक्षित रखा?

क्या गज़ा में आधुनिक शव संरक्षण की सुविधा है?

नहीं।

गज़ा पट्टी में:

  •  कोई उन्नत कोल्ड-स्टोरेज सुविधा नहीं
  •  कोई दीर्घकालीन पॉस्टमॉर्टम प्रिज़र्वेशन सिस्टम नहीं
  •  लगातार बमबारी से मेडिकल सिस्टम ध्वस्त

यहां तक कि हालिया युद्ध में शव रखने के लिए आइस-क्रिम ट्रक इस्तेमाल किए गए—क्योंकि अस्पतालों की मोर्चरी सिर्फ 8–10 शव ही रख सकती है।

 

तो 11 साल पुरानी बॉडी कैसे बची?

विशेषज्ञों के अनुसार इसके चार संभावित कारण हो सकते हैं:

हमास विशेष “सीलबंद भूमिगत चैंबर” का उपयोग करता है

हमास की सुरंगों में कई बार सीक्रेट स्टोरेज रूम मिले हैं, जिनमें:

  • बेहद कम तापमान
  • गहराई के कारण प्राकृतिक ठंडक
  • हवा बंद वातावरण
  • धातु के एयरटाइट कंटेनर

ऐसी जगहें शव को लंबे समय तक सड़ने नहीं देतीं।

 

1. ‘वैक्यूम पैकिंग’- गज़ा में हथियारों की तरह शव भी पैक किए जाते हैं

कई रिपोर्ट्स में कहा गया है कि हमास:

  • शवों को प्लास्टिक व रबर-सील पैकिंग में बंद करता है
  • अंदर ऑक्सीजन बिल्कुल नहीं पहुंचती
  • ऑक्सीजन न मिलने पर शरीर तेजी से नहीं सड़ता

ये तकनीक हथियारों को स्टोर करने में भी उपयोग होती है।

 

2.शरीर पूरी तरह डिकम्पोज नहीं हुआ—सिर्फ “अस्थियाँ” संरक्षित की गईं

इज़रायल कई मामलों में “रेट्रीवल” के समय सिर्फ:

  • हड्डियाँ
  • कपड़ों के अवशेष
  • डीएनए के अंश पाता है।

संभव है कि गोल्डिन का शव भी वर्षों पहले डिकम्पोज हो चुका था और हमास ने केवल अस्थियाँ संरक्षित रखी हों।

 

3.गहरे भूमिगत “पॉकेट्स” में प्राकृतिक ममीकरण

गज़ा की कुछ सुरंगों में:

  • हवा स्थिर
  • तापमान नियंत्रित
  • नमी बेहद कम

ऐसी जगहों में शव “नेचुरल ममी” जैसा रूप ले लेते हैं और दशक भर टिके रहते हैं।

 

4. गज़ा की सच्चाई—शव रखने के लिए आइस-क्रिम ट्रक!

Reuters की रिपोर्ट में बताया गया:

अस्पताल मोर्चरी सिर्फ 10 शव रख सकती है

  • ट्रकों के अंदर बच्चों की आइस-क्रिम के पोस्टर लगे होते हैं
  • अंदर सफ़ेद कपड़ों में लाशें भरी होती हैं
  • कई जगह 100 शवों की मास ग्रेव तैयार हुई

5. 20–30 शव टेंट में रखे जा रहे हैं

गज़ा के डॉक्टर यासिर अली ने कहा, “अगर युद्ध चलता रहा, तो दफनाने के लिए भी जगह नहीं बचेगी।”

इज़रायल में क्या हुआ? शव मिलने पर भावनात्मक लहर

  • गोल्डिन की तस्वीर 11 साल से नेतन्याहू के दफ़्तर में लगी थी
  • सैन्य कब्रिस्तान में इतना भारी जनसैलाब उमड़ा कि कई इलाकों में जाम लग गया
  • सेना ने इसे “राष्ट्रीय सम्मान का क्षण” बताया
  • अंतिम संस्कार देखने हजारों लोग पहुंचे

 

नेतन्याहू ने सैनिक से शव वापसी को बनाया था राजनीतिक मुद्दा 

इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा, “राज्य की स्थापना से हमारी परंपरा है—युद्ध में शहीद हुए सैनिकों को हर हाल में घर लाया जाता है। हदार गोल्डिन की स्मृति सदैव हमारे बीच रहेगी।”

उन्होंने बताया कि 255 बंधकों में से अब तक 250 वापस लाए जा चुके हैं। गोल्डिन उन आखिरी पाँच शवों में से एक थे, जो गज़ा में फंसे थे।

 

परिवार का 11 साल लंबा इंतजार

गोल्डिन के परिवार ने वर्षों तक अभियान चलाया था। उनका कहना था कि, “हमारे बेटे को वापस लाना, इज़रायल की सैनिक परंपरा का मूल हिस्सा है।” इज़रायली सेना प्रमुख ने भी परिवार को “तीव्र प्रयास” का भरोसा दिया था।

 

Continue Reading

रिसर्च इंजन

SIR के खिलाफ एकजुट हो रहे दक्षिण के राज्य, क्या असर होगा?

Published

on

  • 11 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट में SIR के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई होगी।
नई दिल्ली|
पूरे देश में वोटर लिस्ट की गहन जांच कराने की प्रक्रिया (SIR) शुरू हो चुकी है। तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश ने इसका खुला विरोध किया है। आंध्र प्रदेश की सरकार SIR के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच गई है। SIR से जुड़ी राज्य समेत अन्य याचिकाओं पर आगामी 11 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करने जा रहा है। ऐसे में यह समझना महत्वपूर्ण हो जाता है कि दक्षिण के राज्यों के SIR के खिलाफ एकजुट होने का असर भारतीय राजनीति पर कैसा पड़ सकता है। 
तमिलनाडु : 11 नवंबर को पूरे राज्य में विरोध प्रदर्शन निकालेगी सरकार
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने शनिवार को एक वर्चुअल मीटिंग में अपनी पार्टी DMK (द्रविड़ मुनेत्र कड़गम) के मंडल सचिवों से कहा कि 11 नवंबर को सभी जिलों में SIR के विरोध में प्रदर्शन निकाले। उन्होंने 9 नवंबर को ट्वीट किया-
“SIR तमिलनाडु के 7 करोड़ वोटरों के अधिकारों को खतरे में डाल रहा है। यह भाजपा की साजिश है, जो वोट बैंक को प्रभावित करने के लिए डिजाइन की गई है।” 
बता दें कि तमिलनाडु में SIR का पहला चरण 9 दिसंबर को ड्राफ्ट रोल प्रकाशित कर शुरू होगा। इसके खिलाफ DMK ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। तमिलनाडु में DMK का वोट शेयर 40% है, और SIR विरोध इसे और बढ़ा सकता है। लेकिन, BJP ने तमिल सरकार के स्टैंड को ‘प्रचार स्टंट’ बताया है। 
केरल : निकाय चुनाव पर असर डालेगी, विरोध में तमिल का साथ दिया
मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने बीते 5 नवंबर को ऑल-पार्टी मीटिंग में SIR को ‘अवैज्ञानिक’ और ‘दुर्भावनापूर्ण’ बताते हुए कानूनी चुनौती की घोषणा की। साथ ही, इस मुद्दे पर तमिलनाडु के साथ एकजुटता जताई। केरल सरकार का कहना है कि इसकी टाइमिंग, अगले साल होने वाले स्थानीय निकाय चुनाव में बाधा डालेगी क्योंकि BLO का निकाय चुनाव से जुड़ा काम शुरू हो गया है। केरल सरकार भी इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी में है।
कर्नाटक : SIR के खिलाफ संगठित हुए संगठन
यहां एक महीने पहले ही करीब सिविल सोसायटी, राजनीतिक दल, महिला समूह, युवा समूहों को मिलाकर करीब सौ ग्रुपों ने SIR के खिलाफ अभियान शुरू कर दिया था। इनका कहना है कि यह NRC यहां की कांग्रेस सरकार पहले ही SIR पर अपना विरोधी रुख स्पष्ट कर चुकी है।
आंध्र प्रदेश : विपक्षी पार्टी ने इसे आदिवासी वोटरों के खिलाफ साजिश बताया
यहां YSR congress party ने इसे ‘आदिवासी वोटरों को हटाने की साजिश’ बताया है। हालांकि तेलुगु देशम पार्टी यहां सत्ता में है जिसने केंद्र में मोदी के नेतृत्व वाली NDA सरकार को समर्थन दिया है। ऐसे में राज्य सरकार का रूख SIR के समर्थन में है। 
क्या कहते हैं विशेषज्ञ  
द हिंदू के अनुसार, SIR को लेकर दक्षिण में एक ‘टेस्ट केस’ माना जा रहा है, जहां वोटर मोबिलाइजेशन प्रभावित हो सकता है। DMK का तर्क है कि SIR 2002 के बाद पहली बार हो रही है, फिर भी इसे जल्दबाजी में कराया जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि SIR के खिलाफ एकता दक्षिणी राज्यों को सियासी ताकत दे सकती है।
Continue Reading
Advertisement

Categories

Trending