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चुनावी डायरी

बिहार आकर सीधे पार्टी वर्करों से मिल रहे अमित शाह, फीडबैक पर टिकट मिलेगा

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अररिया में पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते अमित शाह
  • टिकट के लिए दावेदारी पेश कर रहे संभावित प्रत्याशियों के लिए चुनौती बन सकता है सामान्य कार्यकर्ताओं का फीडबैक
  • दो दिवसीय बिहार दौरे पर शाह बेतिया, अररिया, समस्तीपुर में दस जिलों के कार्यकर्ताओं से मिले, कोर वर्करों से बंद बैठक

अररिया|

बिहार विधानसभा की घोषणा में चंद दिन बचे हैं और भाजपा के प्रमुख रणनीतिकार दस दिनों के भीतर दो बार राज्य आकर करीब छह हजार पार्टी कार्यकर्ताओं से मिल चुके हैं। इसे देखते हुए विश्लेषक कह रहे हैं कि भाजपा कार्यालय में बायोडाटा जमा कराने वाले या बड़े नेताओं के आगे-पीछे करने वालों को इस बार टिकट मिलने में कठिनाई हो सकती है, अगर कार्यकर्ताओं ने उनका फीडबैक अच्छा नहीं दिया तो।

16 सितंबर के बाद 26 सितंबर को बिहार दोबारा आए अमित शाह ने बेतिया (प. चंपारण) में 294 कोर कार्यकर्ताओं से मीटिंग की थी जो चंपारण व सारण से पार्टी के दस संगठनात्मक जिलों से आए थे। फिर पटना में 40 प्रमुख भाजपा नेताओं के साथ बैठक की। अपने दो दिवसीय दौरे के दूसरे दिन शनिवार को वे समस्तीपुर के चिन्हित कार्यकर्ताओं से मिले। इसके बाद उनका हेलीकॉप्टर सीधे अररिया जिले के फारबिसगंज हवाई अड्डा मैदान में पहुंचा। बता दें कि पहले दौरे में 16 सितंबर को वह रोहतास जिले में बड़ी संख्या में पार्टी कार्यकर्ताओं से मिले थे और कई मुद्दों पर फीडबैक मांगा था।

अररिया में अमित शाह के संबोधन में चार हजार से अधिक कार्यकर्ता पहुंचे।

अररिया में अमित शाह के संबोधन में चार हजार से अधिक कार्यकर्ता पहुंचे।

10 जिलों के 4225 कार्यकर्ताओं को संबोधित किया

अमित शाह ने फारबिसगंज के हवाई अड्डा मैदान में शनिवार शाम 10 संगठनात्मक जिलों के कार्यकर्ताओं के साथ खुली समीक्षा बैठक की। इस दौरान उन्होंने कार्यकर्ताओं को 50 दिन का टास्क सौंपा।  भागलपुर ,कोसी, पूर्णिया, सीमांचल व भागलपुर प्रमंडल के जिलों के कुल 4225 कार्यकर्ताओं से कहा कि विधानसभा चुनाव के बाद बिहार में एनडीए 160 सीटें जीतकर सरकार बनाएगी और एक-एक घुसपैठिया को बिहार से बाहर निकलेंगे।

37 विधानसभा क्षेत्रों सीनियर वर्करों से फीडबैक लिया

10 संगठनात्मक जिलों के तकरीबन 37 विधानसभा से आए प्रमुख व वरिष्ठ कार्यकर्ताओं के साथ अमित शाह ने अलग से संवाद किया। इस दौरान उन्होंने हर जिले में पार्टी की संगठनात्मक स्थिति व प्रदर्शन पर विस्तार से फीडबैक लिया। गृह मंत्री ने कार्यकर्ताओं से NDA को 160 सीट जिताने का आह्वान किया। कार्यकर्ताओं के साथ बंद कमरे वाली मीटिंग में जो बातें हुईं, उसकी तस्वीर तो साफ नहीं हो पाई है, लेकिन राजनीतिक जानकारों का कहना है कि उन्होंने स्पष्ट रूप से संकेत दिया है कि कार्यकर्ताओं के द्वारा मिले फीडबैक के आधार पर ही उम्मीदवारों का चयन होगा।

अररिया में अमित शाह ने कहा कि पार्टी के लिए कार्यकर्ता सर्वोपरि हैं।

अररिया में अमित शाह ने कहा कि पार्टी के लिए कार्यकर्ता सर्वोपरि हैं।

किशनगंज पर फोकस करने को कहा 
उन्होंने कार्यकर्ताओं से कहा कि 2020 के विधानसभा चुनाव में अररिया ,कटिहार, पूर्णिया, सुपौल ,मधेपुरा में एनडीए ऊपर रहा लेकिन किशनगंज में पिछड़ा।इसलिए इस बार किशनगंज जिले में भी एनडीए गठबंधन को जीत दिलानी है। बोले कि भाजपा के लिए यह चुनाव घुसपैठियों को भगाने के लिए होगा। बोले- जो भारत का नागरिक नहीं होगा वह भारत का मतदाता भी नहीं होगा।

मां, मोदी, मंदिर पर फोकस से जीत की दीवाली – अमित शाह ने कार्यकर्ताओं को दिए भाषण के जरिए संकेत दिए कि स्थानीय प्रचार मेें महिलाओं को दिए गए 10-10 हजार रुपये की राशि, मोदी की ओर से 15% घटाई गई GST दर और यूपी में राम व बिहार में मां सीता के मंदिर पर फोकस करना है। उन्होंने कहा कि इस तरह इस बार तीन दिवालियां होंगी और चौथी दिवाली हमारी जीत की होगी। उन्होंने कार्यकर्ताओं को ये भी निर्देश दिए-

  • मतदान होने तक हर कार्यकर्ता तीन परिवारों के साथ संपर्क में रहे, संवाद करे।
  • हर बूथ पर 11 मोटर साइकिल व साइकिलों के वर्कर तैयार रहें ताकि वोटर को मदद हो सके।
  • हर बूथ को डिजिटल योद्धा से लेस करने के इंतजाम किए जाएं।

सभी बड़े नेता मौजूद रहे 
कार्यक्रम के दौरान स्थानीय सांसद प्रदीप कुमार सिंह और फारबिसगंज के विधायक विद्यासागर केसरी ने केंद्रीय गृह मंत्री का सम्मान किया। मौके पर केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय, बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी, विजय कुमार सिन्हा, पूर्व उपमुख्यमंत्री तारकेश्वर प्रसाद, बिहार सरकार के मंत्री नीरज कुमार बबलू, विजय कुमार मंडल, नरपतगंज के विधायक जयप्रकाश यादव, झारखंड के सांसद प्रदीप वर्मा समेत अन्य नेता मौजूदरहे।

बोलते पन्ने.. एक कोशिश है क्लिष्ट सूचनाओं से जनहित की जानकारियां निकालकर हिन्दी के दर्शकों की आवाज बनने का। सरकारी कागजों के गुलाबी मौसम से लेकर जमीन की काली हकीकत की बात भी होगी ग्राउंड रिपोर्टिंग के जरिए। साथ ही, बोलते पन्ने जरिए बनेगा .. आपकी उन भावनाओं को आवाज देने का, जो अक्सर डायरी के पन्नों में दबी रह जाती हैं।

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बिहार : चिराग की 30 सीटों की मांग, बोले- अभी बातचीत शुरूआती दौर में

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चिराग पासवान से 7 अक्तूबर को मिले बिहार चुनाव प्रभारी।
  • दिल्ली में आज बीजेपी से सीट बंटवारे पर बात हुई, जिसमें सहमति न बनने पर रात को पटना आए।
  • चिराग पासवान के प्रशांत किशोर से गठबंधन की खबरें चलीं, NDA का एकजुटता का संदेश दोहराया।
  • एनडीए कह रहा है कि सीट बंटवारे पर बातचीत फाइनल दौर में है, चिराग बोले- बातचीत अभी शुरू हुई है।

पटना |

बीजेपी ने दिल्ली में चिराग पासवान के साथ 45 मिनट लंबी बैठक की, जिसमें सीट बंटवारे पर सहमति बनने की जगह उल्टा यह निकलकर आया कि मांझी के बाद अब चिराग ने ज्यादा सीटों की डिमांड कर दी है। मीडिया में चिराग के नाराज होकर प्रशांत किशोर के साथ संभावित गठबंधन की भी खबरें चलीं, माना जा रहा है कि इस तरह चिराग पासवान NDA के अंदर अपनी मांग को और पुख्ता बनाने की कोशिश में हैं।

दिल्ली में बात न बनने के बाद अचानक मंगलवार रात को चिराग पासवान पटना लौटे हैं। यहां उन्होंने मीडिया के सामने कहा कि “सभी तरह का डिस्कशन अभी प्राइमरी स्टेज पर है, फाइनल होने पर जानकारी दी जाएगी।”

 

चिराग- 30, मांझी- 15 सीटों पर अड़े

दिल्ली में चिराग पासवान के आवास पर सीट शेयरिंग को लेकर बैठक हुई। बिहार चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान, बिहार प्रभारी विनोद तावड़े और बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय चिराग को मनाने पहुंचे थे।

चिराग पासवान से 7 अक्तूबर को मिले बिहार चुनाव प्रभारी।

चिराग पासवान से 7 अक्तूबर को मिले बिहार चुनाव प्रभारी।

45 मिनट तक ये मीटिंग चली। सूत्रों की मानें तो चिराग पासवान 30 सीट और जीतन राम मांझी 15 सीटों पर अड़े हैं।

जदयू में भी सीटों पर बैठक

इससे पहले पटना में नीतीश कुमार ने जदयू नेताओं के साथ बैठक की। खबर है कि टिकट और उम्मीदवार को लेकर पार्टी के बड़े नेताओं के साथ सीएम ने 45 मिनट चर्चा की है। जदयू अपने कोटे की सीटों और उम्मीदवारों पर मंथन जारी है।

मुख्यमंत्री आवास पहुंचे जदयू के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष और सांसद संजय झा ने कहा, ‘एनडीए पूरी मजबूती से खड़ा है और जल्द सीट शेयरिंग हो जाएगी।’

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बिहार : RJD के दो विधायकों के खिलाफ राबड़ी आवास पर नारे लगे, टिकट न देने की मांग उठी

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रावड़ी देवी के आवास पर राजद कार्यकर्ताओं ने विधायक के खिलाफ नारेबाजी की।
  • मसौढ़ी विधायक रेखा पासवान का टिकट रद्द करने की मांग पर नारे लगे
  • मखदुमपुर विधायक सतीश कुमार के खिलाफ तीन दिन पहले हुआ था विरोध
नई दिल्ली |
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से ठीक पहले RJD में आंतरिक कलह ने जोर पकड़ लिया है। मंगलवार को राबड़ी देवी के आवास पर सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने हंगामा मचाया और मसौढ़ी विधायक रेखा पासवान का टिकट रद्द करने की मांग की। इससे पहले एक अन्य विधायक को लेकर नारेबाजी हो चुकी है। माना जा रहा है कि RJD के अंदर टिकट वितरण पर कलह महागठबंधन की रणनीति को कमजोर कर सकती है।
पहली बार जीतीं पर विकास की अनदेखी के आरोप
सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने ने नारे लगाए- “रेखा हटाओ, मसौढ़ी बचाओ!”  प्रदर्शनकारियों ने लालू प्रसाद को भी पोस्टर दिखाए, लेकिन लालू ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। रेखा पासवान एक दलित नेता हैं, जिन्होंने 2020 में मसौढ़ी विधानसभा सीट से 32,227 वोटों से जीत हासिल की थी, लेकिन भ्रष्टाचार और विकास की अनदेखी के आरोपों से घिरी हैं। पार्टी कार्यकर्ताओं का कहना है कि रेखा को दोबारा टिकट मिला तो पार्टी सीट हार जाएगी।
मखदूमपुर विधायक के खिलाफ भी हुई थी नारेबाजी
पार्टी कार्यकर्ताओं की अपने नेताओं से नाराजगी की यह पहली घटना नहीं। बीते चार अक्तूबर को मखदुमपुर विधायक सतीश कुमार के खिलाफ भी राबड़ी आवास पर ही जोरदार विरोध हुआ, जहां कार्यकर्ताओं ने विकास कार्यों की उपेक्षा का आरोप लगाते हुए टिकट न देने की चेतावनी दी।
नाराज रोहिणी को मनाने को मसौढ़ी विधायक को लाया गया था आगे
रेखा पासवान के बारे में एक गौर करने वाली बात यह है कि जब हाल में तेजस्वी यादव के करीबी संजय यादव के अगली सीट पर बैठने से बहन रोहिणी आचार्य नाराज हो गई थीं और परिवार के खिलाफ लगातार फेसबुक पोस्ट कर रही थीं, तब  विवाद शांत करने के लिए दो दलित नेताओं रेखा पासवान और शिवचंद्र राम (पूर्व मंत्री, रविदास समुदाय) और आगे बिठाया गया, जिसे रोहिणी ने सराहा था।
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जीतन राम मांझी : NDA की दलित ताकत, पर सीट शेयर में बड़ी अड़चन

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भाजपा, जदयू के साथ गठबंधन वाले NDA में 'हम' पार्टी की अहमियत पर विश्लेषण। (तस्वीर - @jitanrmanjhi)
जीतनराम मांझी (तस्वीर - @NandiGuptaBJP)
  • बिहार चुनाव में NDA से 15 से 20 सीटें चाहते हैं HAM चीफ माझी

नई दिल्ली|

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से ठीक पहले NDA (नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस) में सीट बंटवारे को लेकर चल रही खींचतान में जीतन राम मांझी का नाम सबसे ऊपर है। हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (सेक्युलर) (HAM) के संस्थापक और केंद्रीय मंत्री मांझी ने 15 से 20 सीटों की मांग रखी है, लेकिन BJP-JDU गठबंधन उन्हें 3-7 सीटें देने पर अड़ा है। क्या मांझी NDA के लिए महादलित-दलित वोटों की ‘मजबूत कड़ी’ हैं या उनकी बढ़ती महत्वाकांक्षा के बीच गठबंधन बचाना ‘मजबूरी’ और चुनौती बन गया है? आइए जानते हैं इस विश्लेषण में..


जीतनराम मांझी (तस्वीर - @NandiGuptaBJP)

जीतनराम मांझी (तस्वीर – @NandiGuptaBJP)

NDA में मांझी की ‘मजबूती’: दलित वोटों का मजबूत आधार

 हालिया बैठकों और बयानों से साफ है कि मांझी की मौजूदगी से NDA को जातीय समीकरण में मजबूती मिलती है। पर BJP के बार-बार मनाने पर भी वे अपनी मांग पर अड़े हैं, बीजेपी प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान ने इसे उनकी ‘साफगोई’ कहा है। जातीय गणित की नजर से देखें तो मांझी NDA को कई सीटों पर मजबूती देते दिखते हैं-

  • महादलित-दलित वोट बैंक: बिहार में दलित (16%) और महादलित (मुसहर, डोम आदि) वोटरों पर मांझी की पकड़ मजबूत है। 2020 में HAM ने 7 सीटों पर 60% से ज्यादा स्ट्राइक रेट दिखाया, जो NDA की कुल 125 सीटों में योगदान देता है। चिराग पासवान (LJP) के साथ मिलकर वे पश्चिम चंपारण से गया तक दलित वोटों को एकजुट करते हैं।
  • नीतीश के पूरक: NDA का महादलित फोकस मांझी से मजबूत होता है। लोकसभा 2024 में NDA की 30/40 सीटों में मांझी का रोल सराहा गया।
  • केंद्रीय मंत्री के रूप में: MSME मंत्री के तौर पर वे केंद्र की रोजगार सृजन योजनाओं (जैसे PMEGP) को बिहार में लागू कर NDA की छवि चमकाते हैं।

NDA में मांझी की मजबूती –

 उदाहरण

जातीय समीकरण

महादलित (12%) वोटों पर पकड़; 2020 में 4/7 सीटें जीतीं।

रणनीतिक भूमिका

JDU-BJP के बीच दलित ब्रिज; चिराग के साथ मिलकर विपक्ष (RJD) को चुनौती।

परिवारिक प्रभाव

बेटाबहू के मंत्री/विधायक होने से स्थानीय स्तर पर मजबूती।

विवादास्पद अपील

गरीबी से सत्ता की कहानी दलित युवाओं को प्रेरित करती है।

 


जीतनराम मांझी के साथ बैठक करने पहुंचे बीजेपी के चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान, तावड़े, सम्राट चौधरी।

जीतनराम मांझी के साथ बैठक करने पहुंचे बीजेपी के चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान, तावड़े, सम्राट चौधरी।

NDA के लिए ‘मजबूरी’: बढ़ती मांगें और बगावती तेवर

दूसरी तरफ, मांझी की महत्वाकांक्षा NDA के लिए सिरदर्द बनी हुई है:

  • सीटों की मांग: बिहार विधानसभा चुनाव में 15-20 (कभी 25-40) सीटें मांग रहे हैं, ताकि HAM को ECI मान्यता (6% वोट/6 सीटें) मिले। लेकिन BJP-JDU उन्हें 3-7 सीटें देने को तैयार हैं। धर्मेंद्र प्रधान की 5 अक्टूबर 2025 की मीटिंग में मांझी को ‘3 से ज्यादा पर नहीं’ कहा गया। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, मांझी ने धमकी दी- “अगर 15-20 न मिलीं तो 100 सीटों पर अकेले लड़ेंगे।”
  • नाराजगी का इतिहास: 2015 में BJP ने नीतीश के सामने मांझी को ‘अपमानित’ होने दिया। अब अप्रत्यक्ष अपमान (वोटर लिस्ट न देना) से नाराज हैं। News18 में मांझी ने कहा, “हम रजिस्टर्ड हैं, लेकिन मान्यता नहीं—यह अपमान है।”
  • गठबंधन तनाव: NDA का फॉर्मूला लगभग तय है, मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक- JDU को 102-108, BJP को 101से 107, LJP को 20से 22, HAM को 3से 7, RLM को 3से 5 सीटें देने का फॉर्मूला है। मांझी की मांग से JDU-BJP के बीच ‘100 सीटों की लड़ाई’ तेज हुई है। उपेंद्र कुशवाहा (RLM) ने भी 15 सीटों की मांग कर दी है जिससे NDA पर 35 सीटों को लेकर दवाब बढ़ गया है।
  • बगावत का जोखिम: अगर मांझी बगावत करें, तो दलित वोट बंट सकते हैं, जो महागठबंधन (RJD) को फायदा देगा। लेकिन NDA उन्हें ‘जरूरी बुराई’ मानता है—इग्नोर करने से वोट लॉस, मानने से सीट शेयरिंग बिगड़ेगी।

NDA के लिए मांझी की मजबूरी के पहलू

उदाहरण

सीट मांग का दबाव

20 मांगीं, 3-7 ऑफर; बगावत की धमकी।

पुराना अपमान

2015 में BJP-JDU नेछोड़ दिया‘; अब मान्यता की लड़ाई।

गठबंधन असंतुलन

JDU-BJP 200+ सीटें चाहते; छोटे दलों कोकुर्बानीदेनी पड़ रही।

विवादास्पद छवि

बयान गठबंधन को नुकसान पहुंचाते, लेकिन वोटरों को जोड़ते।

 


केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी

केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी

मजबूती ज्यादा, लेकिन मजबूरी नजरअंदाज नहीं

मांझी NDA के लिएमजबूतीज्यादा हैंउनके बिना दलित वोटों का 20-25% हिस्सा खिसक सकता है। लेकिन सीट बंटवारे की उनकी जिद गठबंधन कोमजबूरीमें डाल रही है, जहां BJP-JDU को छोटे दलों को मनाना पड़ रहा। 5 अक्टूबर की प्रधानमांझी बैठक में सहमति बनी, लेकिन अंतिम फॉर्मूला जूनजुलाई में तय होगा। अगर NDA 225+ सीटें जीतना चाहता है (जैसा मांझी दावा करते हैं), तो मांझी कोसम्मानजनकरखना जरूरी। वरना, बिहार का जातीय समीकरण फिर उलट सकता है। राजनीतिक पंडितों का मानना है: मांझीकरो या मरोके दौर में हैं, और NDA के लिए वेजरूरी सहयोगीसेसंभावित खतराबन सकते हैं।


 

मांझी की राजनीतिक यात्रा: बंधुआ मजदूरी से सत्ता तक 

जीतन राम मांझी बीते छह अक्तूबर को 81 बरस के हो गए। वे मुसहर समुदाय (महादलित) से आते हैं, जो बिहार के सबसे वंचित वर्गों में शुमार है। बचपन में बंधुआ मजदूरी करने वाले मांझी ने शिक्षा के बल पर 1966 में हिस्ट्री में ग्रेजुएशन किया और पोस्टल विभाग में नौकरी पाई।

जीतन राम माझी

जीतन राम माझी

1980 में कांग्रेस से राजनीति में कदम रखा, फिर RJD (लालू प्रसाद) और 2005 में JDU (नीतीश कुमार) से जुड़े। 2014 में लोकसभा चुनाव में JDU की करारी हार के बाद नीतीश ने इस्तीफा दिया और मांझी को मुख्यमंत्री बनाया—मकसद महादलित वोटों को साधना। लेकिन 9 महीने बाद (फरवरी 2015) विवादास्पद बयानों (जैसे डॉक्टरों के हाथ काटने की धमकी, चूहे खाने को जायज ठहराना) और नीतीश पर हमलों से JDU ने उन्हें बर्खास्त कर दिया। इसके बाद 18 विधायकों के साथ HAM बनाई।

2020 में NDA में वापसी हुई, जहां HAM को 7 सीटें मिलीं और 4 जीतीं। लोकसभा 2024 में गयासुर लोकसभा सीट जीतकर मांझी केंद्रीय मंत्री बने। उनके बेटे संतोष कुमार मांझी बिहार सरकार में मंत्री हैं, जबकि बहू दीपा मांझी इमामगंज से विधायक। यह पारिवारिक राजनीति NDA के लिए फायदेमंद रही, लेकिन मांझी के बयान (जैसे ताड़ी को ‘नेचुरल जूस’ कहना) अक्सर विवादों का सबब बने।

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