आज के अखबार
अमेरिका ने माना, ट्रंप की जीत से क्लामेटचेंज की लड़ाई के लिए झटका

आज के अखबार (12 नवंबर, 2024), नई दिल्ली |
अमेरिका ने कहा है कि अगले साल से शुरू होने जा रही ट्रंप सरकार के दौरान जलवायु परिवर्तन से निपटने के कार्यों में धीमापन आ सकता है पर इससे उस लड़ाई का अंत नहीं होगा जो पूरा देश जलवायु परिवर्तन के खिलाफ वर्षों से लड़ रहा है। अंतरराष्ट्रीय जलवायु नीतियों पर अमेरिकी राष्ट्रपति के वरिष्ठ सलाहकार जॉन पोडेस्ता ने यह बयान अजरबाइजान में सोमवार को शुरू हुए जलवायु सम्मेलन के दौरान दिया।
अमेरिका में ट्रंप की जीत के बाद पैदा हुईं आशंकाओं के बीच शुरू हुए 29वें क्लाइमेट चेंज कॉन्फ्रेंस (कॉप -29) पर इंडियन एक्सप्रेस लगातार दो दिनों से विस्तृत कवरेज कर रहा है। जिसमें बताया गया कि इस बार के चुनावी प्रचार के दौरान ट्रंप ने क्लाइमेट चेंज पर बहुत तीखे बयान तो नहीं दिए हैं पर उनके पूर्व कार्यकाल के बाद से कयास लगाए जा रहे हैं कि वे इस बार भी अमेरिका को पेरिस समझौते से बाहर निकाल सकते हैं। बता दें कि पेरिस समझौता एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है जिसका लक्ष्य वैश्विक औसत तापमान में वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखना व तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के प्रयास करना है। पेरिस समझौता जलवायु परिवर्तन पर कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतरराष्ट्रीय संधि है। इसे 12 दिसंबर 2015 को पेरिस, फ्रांस में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP21) में 196 दलों द्वारा अपनाया गया था। यह 4 नवंबर 2016 को लागू हुआ।
इस बार शुरू हुए 29वें जलवायु सम्मेलन का मुख्य लक्ष्य अमेरिका समेत विकसित देशों की ओर से मिलने वाली अनुदान राशि को दस गुना बढ़ाना है। इस मामले में पहले से ही विकसित देश आनाकानी करते रहे हैं और चाहते हैं कि अनुदान देने वाली सूची में सऊदी, कतर, सिंगापुर और चीन जैसे अमीर देशों को भी जोड़ा जाना चाहिए। ट्रंप इस समझौते को एकतरफा और चीन को फायदा पहुंचाने वाला बताते रहे हैं। बता दें कि चीन के बाद अमेरिका दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा प्रदूषण फैलाने वाला देश है।
समाचार एजेंसी भाषा के मुताबिक, संयुक्त राष्ट्र शिखर सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए सीओपी29 के अध्यक्ष मुख्तार बाबायेव ने कहा कि वर्तमान नीतियां विश्व को तीन डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि की ओर ले जा रही हैं, जो अरबों लोगों के लिए विनाशकारी होगा। एक्सप्रेस ने एक रिपोर्ट के हवाले से लिखा है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते दो साल के भीतर 17.5 करोड़ टन की कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जित हुई। युद्ध के दौरान हुए विनाश के बाद पुन: निर्माण से निकले वाली कॉर्बन का अनुमान भी इसमें शामिल है।
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दो अरब लोग गंदा पानी पीने को मजबूर

आंकड़ों की नज़र से :
- 2 अरब: विश्व भर में सुरक्षित पेयजल से वंचित लोग।
- 3.6 अरब: सुरक्षित स्वच्छता सुविधाओं से वंचित लोग।
- 3.5 करोड़: भारत में सुरक्षित पेयजल से वंचित लोग।
- 67.8 करोड़: भारत में स्वच्छता सुविधाओं से वंचित लोग।
- 230 जिले: भारत में भूजल में आर्सेनिक की मौजूदगी।
- 469 जिले: भारत में भूजल में फ्लोराइड की मौजूदगी।
- 80 प्रतिशत: भारत में जलजनित रोगों से स्वास्थ्य समस्याएं।
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