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मेरी सुनो

नौकरी के लिए बिहार नहीं छोड़ा, यूट्यूब से सीखकर बतख पालन शुरू किया.. अब अच्छी कमाई कर रहे!

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अपने गांव में बतख पालन कर रहे मो. बिलाल।
अपने गांव में बतख पालन कर रहे मो. बिलाल।
  • सहरसा जिले के सितनाबाद गांव के मो. बिलाल ने यूट्यूब से सीखा बतख पालन
  • बाहर इंजीनियरिंग की नौकरी करने की जगह अपने गांव में नया रोजगार शुरू किया।
  • 1200 बतखों का है फार्म, हर दिन 400 अंडे को स्थानीय बाजार में बेच रहे। 
सहरसा | सरफराज आलम
सोशल मीडिया के जमाने में प्रेरणा के स्त्रोत बदल रहे हैं। बिहार के एक युवा ने यूट्यूब से प्रेरणा लेकर बतखों की फार्मिंग शुरू की और आज वे अपने इलाके में इस नए तरह के काम के लिए मशहूर हो रहे हैं।
बिहार के सहरसा जिले के एक युवा मो. बिलालउद्दीन ने सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया पर वे चाहते थे कि उन्हें नौकरी के लिए बिहार से बाहर न जाना पड़े।
नौकरी ढूंढ़ रहे थे, एक वीडियो ने जिंदगी बदल दी
बिलाल, सिमरी बख्तियारपुर अनुमंडल के सितनाबाद गांव के रहने वाले हैं। वे  हरियाणा से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद जब वे नौकरी की तलाश में थे, तब यूट्यूब पर डक फार्मिंग का एक वीडियो उनके जीवन का टर्निंग पॉइंट बन गया।
उनके परिवार व गांव में मछली पालन का काम पहले से होता था, वीडियो देखने के बाद उसे ही एक नए रूप में बदलने का आइडिया बिलाल को सूझा। 
200 चूजों से शुरु किया, अब 1200 बतखों का फार्म 
बिलाल ने बताया कि शुरुआत में मुजफ्फरपुर जिले से उन्होंने 200 चूजों को खरीदकर फार्मिंग शुरू की। तब उन्होंने बिना किसी सरकारी मदद या बड़ी पूंजी के शेड और तालाब बनवाए। 
अब उनके पास 15 कट्ठा जमीन पर देशी नस्ल की 1200 बतखों का फार्म है। आज उनका फार्म रोजाना 400 से अधिक अंडे देता है, जो स्थानीय बाजार में 11-12 रुपये प्रति अंडा की दर से बिकते हैं।
उनका कहना है कि ठंड के मौसम में यह उत्पादन 700-800 अंडे प्रतिदिन तक पहुंच जाता है।
मेहनत और इनोवेशन का मेल  
बिलाल के काम में इनोवेशन दिखता है, वे बतख के साथ मछली पालन भी साथ करते हैं। वे कहते हैं कि जो अंडे खराब हो जाते हैं, उन्हें वे तालाब में डालकर मछलियों को पोषण देते हैं।
इसी तरह जरूरत पड़ने पर कुछ मछलियां भी बतखों को खिलाते हैं। जिससे कोई भी चीज बर्बाद नहीं होती।
मखाना की खेती वाले गांव को नई पहचान मिली
बिलाल कहते हैं, “शुरुआत में यूट्यूब से सीखा, लेकिन मेहनत के नतीजे ने मेरा रास्ता तय कर दिया।” 
बिलाल के चलते उनका गांव सितनाबाद एक नई पहचान पा रहा है। पहले यह इलाका धान और मखाना खेती के लिए जाना जाता था। अब इसकी पहचान डक फार्मिंग बन गई है। 
उन्होंने बताया कि अब आसपास के लोग उनसे बतख पालन के बारे में सीखने के लिए आते हैं, यह उनके लिए गर्व की बात है।
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edited by Mahak Arora (content creator)

बोलते पन्ने.. एक कोशिश है क्लिष्ट सूचनाओं से जनहित की जानकारियां निकालकर हिन्दी के दर्शकों की आवाज बनने का। सरकारी कागजों के गुलाबी मौसम से लेकर जमीन की काली हकीकत की बात भी होगी ग्राउंड रिपोर्टिंग के जरिए। साथ ही, बोलते पन्ने जरिए बनेगा .. आपकी उन भावनाओं को आवाज देने का, जो अक्सर डायरी के पन्नों में दबी रह जाती हैं।

मेरी सुनो

गंगा में कटान से चौथी बार विस्थापन का संकट झेल रहे मुंगेर के किसान परिवार

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मुंगेर में गंगा नदी में कटाव के चलते बड़ी संख्या में मकान डूबने की कगार पर हैं।
मुंगेर में गंगा नदी में कटाव के चलते बड़ी संख्या में मकान डूबने की कगार पर हैं।
  • मुंगेर के सदर ब्लॉक के कुतलूपुर व जाफरनगर गांव में कटान तेज।
  • 100 एकड़ से ज्यादा फसलें व सैकड़ों बीघा जमीन नदी में समाई।
  • 15 से अधिक घरों पर मंडरा रहा खतरा, लोग फिर से पलायन कर रहे।

मुंगेर | प्रशांत कुमार

बिहार में चुनाव संपन्न हो गए और एक नई सरकार बनने जा रही है, इन सबके बीच आम लोगों के जीवन को देखें तो वे हर दिन उन्हीं समस्याओं से जूझ रहे हैं जो वर्षों से बनी हुई हैं।

बिहार के मुंगेर में गंगा नदी कटान पर है जिससे सदर ब्लॉक के जाफरनगर में कई किसान परिवार चौथी बार विस्थापित होने की कगार पर हैं। यहां अब तक 100 बीघा से ज्यादा जमीन नदी में समा चुकी है।

दूसरी ओर, इसी ब्लॉक के कुतलूपुर पंचायत के वार्ड संख्या 6 में भी हालात बिगड़ गए हैं। यहां 15 नवंबर की सुबह अचानक गंगा का बहाव तेज होने से भीषण कटाव शुरू हो गया है।

 

पूरा टोला संकट में, लोग घर छोड़ने को मजबूर

कटाव की रफ्तार इतनी तेज है कि लोग मान रहे हैं कि रात होते-होते करीब 15 मकान इसमें समा जाएंगे, अभी इस इलाके में 6 से ज्यादा घर गंगा में समा चुके हैं। लोग अपना जरूरी सामान इकट्ठा करके इलाका छोड़ने को मजबूर हो गए हैं।

ग्रामीणों ने बताया कि गंगा का पानी घटने के बाद दियारा इलाके में लगभग 100 एकड़ खेत में चना, गेहूं और रबी फसलें बोई थीं लेकिन नदी के अचानक तेज बहने से फसलें बह गई हैं।

स्थानीय लोगों का कहना है कि उन्होंने पहले भी कई बार प्रशासन से कटाव को थामने से जुड़े काम करवाने की मांग की थी। उनका कहना है कि कटाव की तुरंत रोकथाम नहीं हुई तो कुतलूपुर पंचायत का यह पूरा टोला गंगा में समा सकता है।

 

मुखिया बोले- हमारी जमीनें नदी में समा गईं

जाफरनगर पंचायत के मुखिया अरुण यादव का कहना है, “हम कई महीनों से कटाव रोकने के लिए प्रशासन से लगातार गुहार लगा रहे हैं।
लेकिन जाफरनगर में अभी तक कोई ठोस कटावरोधी काम शुरू नहीं हुआ। दर्जनों किसानों की जमीन नदी में समा गई है।”

यहां के ग्रामीण विकास कुमार, महेश यादव, आनंद कुमार आदि ने प्रशासन से तुरंत कार्रवाई की मांग की है।

 

क्या बोले जिलाधिकारी 

जिलाधिकारी निखिल धनराज निप्पीणीकर ने कहा कि कुतलूपुर में तुरंत निरीक्षण के आदेश दिए गए हैं और  जाफरनगर के लिए कटाव रोकने की योजना तैयार कर ली गई है और बहुत जल्द काम किया जाएगा।

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चुनावी डायरी

बिहार : डुमरा में टूटी रोड नहीं बनी, पानी भरने से परेशान लोगों ने वोट बहिष्कार किया

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सीतामढ़ी में वोट बहिष्कार करते स्थानीय वोटर।
सीतामढ़ी में वोट बहिष्कार करते स्थानीय वोटर।
  • डुमरा के वार्ड संख्या 12 और 13 के लोगों ने सड़क पर जमकर प्रदर्शन किया।
  • सीतामढ़ी विधानसभा सीट पर आगामी 11 नवंबर को दूसरे चरण में चुनाव होगा।

डुमरा | रंजीत कुमार

बिहार में जैसे-जैसे चुनाव करीब आ रहा है, लोगों का अपने इलाके की समस्याओं को लेकर गुस्सा वोट बहिष्कार के रूप में बदलता जा रहा है। सीतामढ़ी जिले में बड़ी तादाद में स्थानीय लोगों ने प्रशासन के सामने ऐलान कर दिया कि जब तक रोड नहीं बनेगा, वे वोट नहीं करेंगे।

बैनर पर बड़े शब्दों में लिखा कि इस रोड पर नेताओं का आना मना है, यह नेता वर्जित क्षेत्र है।

साथ ही नारा लगाया- ‘नगर निगम चोर है, वार्ड पार्षद चोर है।’

 

(नोट – इस खबर को वीडियो पर देखने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें।)

 

पूरे रोड पर पानी भर जाने से लोग बेहद परेशान हैं।

पूरे रोड पर पानी भर जाने से लोग बेहद परेशान हैं।

इस इलाके में 11 नवंबर को मतदान होना है और जिला प्रशासन की जिम्मेदारी 100% मतदान कराने की है।

सीतामढ़ी विधानसभा क्षेत्र के वार्ड संख्या 12 और 13 के लोगों ने 3 नवंबर को सड़क पर जमकर प्रदर्शन किया।

सीतामढ़ी के शहरी क्षेत्र के इस दैयनीय हाल से परेशान लोगों ने वोट बहिष्कार किया है।

सीतामढ़ी के शहरी क्षेत्र के इस दैयनीय हाल से परेशान लोगों ने वोट बहिष्कार किया है।

स्थानीय लोगों का कहना है कि सीतामढ़ी से मेला रोड़ जाने वाली सड़क कई वर्षों से खराब है, नाला न होने से सड़क पर गंदा पानी जमा हो जाता है। हाल में हुई बारिश के बाद यहां पानी भर गया और ऐसा अक्सर थोड़ी सी बारिश में भी हो जाता है।

यह रोड एक पौराणिक काल के प्रसिद्ध हलेश्वर नाथ मंदिर को जाता है इसलिए स्थानीय लोग चाहते हैं कि रोड बन जाए ताकि श्रद्धालुओं को मंदिर तक पहुंचने में समस्या न आए।

प्रदर्शनकारियों ने बैनर पर लिखा – ‘जब सड़क नहीं बनी तो हम वोट क्यों दें?’

स्थानीय लोगों ने बताया कि इस रोड से गुजरते हुए अक्सर बाइक और ई-रिक्शा पलट जाते हैं, जिससे कई बार लोग घायल हो चुके हैं। इसके बावजूद अब तक जनप्रतिनिधियों ने उनकी मांग नहीं सुनी।

गुस्साए लोगों ने नगर निगम और वार्ड पार्षद के खिलाफ जमकर नारेबाजी की।

 

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मेरी सुनो

इनसे सीखो : बच्चे बिहार से बाहर हैं इसलिए कम मेहनत वाली खेती अपनाई, अब लाखों कमा रहे

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प्रगतिशील किसान चंद्रशेखर
प्रगतिशील किसान चंद्रशेखर
  • गैर पारंपरिक खेती अपनाकर मिसाल बने शेखपुरा के किसान चंद्रशेखर।
  • दो बीघा जमीन में नीबू की खेती कर रहे, पहले धान बोते थे किसान।
अरियरी (शेखपुरा) |  प्रदीप कुमार 
शेखपुरा के एक किसान ने अपने बच्चों के बिहार से बाहर रहने के चलते अपनी पारंपरिक खेती के तरीके को बदल दिया। बढ़ती उम्र में बहुत ज्यादा मेहनत न कर पाने के चलते खेती का तरीका बदला पर उसका लाभ उन्हें बेहतर कमाई के रूप में मिलने लगा है। आज वे अपने जैसे दूसरे किसानों के लिए मिसाल बन गए हैं।
(नोट – इस खबर को वीडियो में देखने के लिए इस लिंक पर जाएं।)
अरियरी प्रखंड के सनैया गांव के किसान चंद्रशेखर कुमार ने वैज्ञानिक तरीके से नींबू की खेती अपनाई, अब वे अच्छी कमाई कर रहे हैं।
शेरपुरा में नीबू की खेती।

शेरपुरा में किसान चंद्रशेखर की नीबू की खेती।

 

चंद्रशेखर ने बताया कि उनका बेटा दूसरे राज्य में नौकरी करता है, ऐसे में वह खेती में हाथ नहीं बटा सकता था। एक दिन उसने कहा कि ‘पापा आप जितना काम कर पाओ, उसके हिसाब से खेती करो।’  चंद्रशेखर कहते हैं कि बेटे की इस बात पर उन्हें तो कुछ नहीं सूझा क्योंकि हमेशा से वे धान-गेहूं ही बोते आ रहे थे।
उन्होंने आगे बताया कि बेटा पढ़ा-लिखा है, उसने अरियरी के कृषि विज्ञान केंद्र पर जाकर नई खेती के बारे में सीखा और फिर मुझे सिखाया। सबसे पहले अरियरी कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक प्रमोद कुमार चौधरी ने आकर उनके खेत का निरीक्षण किया और तकनीकी सलाह दीं।
 किसान चंद्रशेखर ने बताया कि शुरुआत में मेहनत ज्यादा लगी पर कुछ साल में पौधे फल देने लगे।
हर साल में एक बार पेड़ों पर नीबू आते हैं, उन्हें पेड़ों के रखरखाव के लिए कुछ कीटनाशकों का छिड़काव करना होता है, ये दवाएं उन्हें स्थानीय बाजार में आसानी से मिल जाती हैं। उन्होंने बताया कि अब व्यापारी खुद शेखपुरा बाजार से आकर उनसे नींबू खरीद ले जाते हैं। उन्हें बाजार जाने की जरूरत नहीं पड़ती।
 किसान  चंद्रशेखर की सफलता उनके गांव के दूसरे किसानों के लिए प्रेरणा बन गई है। वे कहते हैं कि बाहर नौकरी कर रहे बच्चों वाले किसान भी कम मेहनत वाली फसल अपनाकर अच्छी कमाई कर सकते हैं।”
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