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भारत में उच्च शिक्षा का बजट 17% घटा, अर्जेंटीना में ऐसी कटौती पर दिखा था आक्रोश

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नई दिल्ली |

भारत में इस सत्र के लिए जारी किए गए उच्च शिक्षा के बजट में 17 प्रतिशत की कटौती कर दी गई है लेकिन इसपर विरोध के स्वर कम ही उभरे हैं। आपको बहुत कम मीडिया रिपोर्टों में इस कटौती पर आलोचनात्मक लेख मिलेंगे। पर आपको जानकर हैरानी हो सकती है कि दक्षिण अमेरिकी देश अर्जेंटीना में जब ऐसा हुआ तो वहां पांच लाख से ज्यादा विद्यार्थी व शिक्षक सड़कों पर उतर आए। अर्जेंटीना की सरकार ने अप्रैल में बजट जारी किया और उच्च शिक्षा के बजट में वृद्धि करने की जगह यह प्रावधान ला दिया कि जारी बजट से कॉलेज अपनी इमारत निर्माण आदि काम भी करवा सकते हैं यानी सीधे से शिक्षा व अनुसंधान का बजट घट गया। इसके विरोध में वहां देश स्तरीय प्रदर्शन देखा गया। विरोध का असर ये हुआ है कि बीते 15 अगस्त को अर्जेंटीना संसद में इसको लेकर प्रस्ताव पास हो गया है।

आर्थिक इमरजेंसी झेल रहे अर्जेंटीना में भी शिक्षक-विद्यार्थी सड़कों पर

23 अप्रैल, 2024 को राष्ट्रपति भवन के पास प्रदर्शन कर रहे शिक्षक-विद्यार्थियों की भीड़ (साभार - इंटरनेट)

23 अप्रैल, 2024 को राष्ट्रपति भवन के पास प्रदर्शन कर रहे शिक्षक-विद्यार्थियों की भीड़ (साभार – इंटरनेट)

इस मामले पर आगे बढ़ने से पहले अर्जेंटीना के बारे में जान लेते हैं। इस दक्षिण अमेरिकी देश के उत्तर में ब्राजील, पश्चिम में चिली व उत्तर पश्चिम में पराग्वे देश हैं। अर्जेंटीना की अर्थव्यवस्था अभी खस्ताहाल चल रही है और यहां वार्षिक महंगाई दर 288% हो चुकी है। अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की बात कहकर दक्षिणपंथी राष्ट्रपति जेवियर मिलेई ने उच्च शिक्षा के बजट में कटौती कर दी है, जिसको लेकर 23 अप्रैल को एक बड़ा राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन हुआ। प्रदर्शनकारियों के मुताबिक, राष्ट्रपति भवन के पास शिक्षकों व विद्यार्थियों की पांच लाख की भीड़ जुटी, हालांकि पुलिस ने इस संख्या को एक लाख बताया। प्रदर्शनकारियों ने पब्लिक यूनिवर्सिटी के बजट की कटौती के आदेश को वापस लेने की मांग उठाई। हालांकि राष्ट्रपति ने इस प्रदर्शन को विपक्ष की चाल बताकर प्रदर्शनकारियों की मांग खारिज कर दी है। दरअसल राष्ट्रपति का कहना है कि सरकारी खर्च में कटौती करके वे देश को आर्थिक आपातकाल की स्थिति से बाहर ला सकते हैं। दूसरी ओर, शिक्षकों का कहना है कि ये कदम देश को दो सौ साल पीछे ले जाएगा।

बिना बिजली के चल रही कक्षाएं –  देश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय ब्यूनस आयर्स के हाल से यहां के उच्च शिक्षा संस्थानों की हालत का अंदाजा लगाया जा सकता है। इस विश्वविद्यालय प्रशासन का कहना है कि उसे सालभर के खर्चे का 8.9% हिस्सा ही प्राप्त हुआ जिससे वह बिजली खर्च नहीं चुका पा रहा है। कई लिफ्ट बंद पड़ी हैं और कई क्लास रूम में एसी व माइक बंद कर दिए गए हैं। इस विश्वविद्यालय ने यह भी कहा था कि अगर ऐसा ही चला तो कुछ महीनों में इसे अपना कैंपस बंद करना पड़ सकता है। गौरतलब है कि इस विश्वविद्यालय से देश के 17 राष्ट्रपति व पांच नोबेल पुरस्कार विजेता पढ़कर निकल चुके हैं।

बजट बढ़ाने का प्रस्ताव निचले सदन में पास – बीते 15 अगस्त को अर्जेंटीना की संसद के निचले सदन में पब्लिक यूनिवर्सिटी के फंड को बढ़ाने का प्रस्ताव वोटिंग के बाद पास हो गया है। जिसके बाद शैक्षिक जगत में उम्मीद जगी है। गौरतलब है कि अर्जेंटीना में हर नागरिक को गुणवत्ता पूर्ण उच्च शिक्षा लेने का मौलिक अधिकार प्राप्त है।

एजुकेशन इंडेक्स में 27वें स्थान पर अर्जेंटीना

अर्जेंटीना के लोगों का शिक्षा के बजट में कटौती को लेकर चिंतित होना ही दर्शाता है कि यहां का समाज शिक्षा के महत्व को लेकर कितना जागरुक है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की ओर से हर साल जारी होने वाले एजुकेशन इंडेक्स के मुताबिक, 2023 में अर्जेंटीना का एजुकेशन इंडेक्स 0.87 रहा और इसके साथ यह देश इस तालिका में 27वें स्थान पर है। इस सूची में 1.01 इंडेक्स के साथ शीर्ष पर ऑस्ट्रेलिया है।

एजुकेशन इंडेक्स में अर्जेंटीना की स्थिति, (साभार - यूएनडीपी)

एजुकेशन इंडेक्स में अर्जेंटीना की स्थिति, (साभार – यूएनडीपी)

भारत 138वें स्थान पर 

189 देशों के एजुकेशन इंडेक्स में भारत 138वें स्थान पर है। भारत के मुकाबले अर्जेंटीना कहीं आगे है और भारतीय उपमहाद्वीप के देशों की ही बात करें तो बांग्लादेश, मालद्वीप, फिलीपींन्स, मलेशिया इस सूचकांक में भारत से कहीं ऊपर हैं।

एजुकेशन इंडेक्स, यूएनडीपी

एजुकेशन इंडेक्स, यूएनडीपी

 

भारत में इस साल उच्च शिक्षा बजट में 17% की कटौती

भारत में पिछले साल के मुकाबले इस साल उच्च शिक्षा बजट में कुल 17% की कटौती की गई है। पिछले साल (2023-24) के संशोधित बजट से तुलना करने पर पता लगता है कि केंद्र सरकार ने इस साल के उच्च शिक्षा बजट को 17% घटा दिया है। पिछले सत्र में उच्च शिक्षा के लिए 57,244 करोड़ का संशोधित बजट था। जबकि इस साल बजट 47,620 करोड़ कर दिया गया है। इतना ही नहीं, उच्च शिक्षा नियामक यूजीसी के अनुदान (ग्रांट) में 60% की कटौती कर दी। पिछले साल के संशोधित बजट 6,409 करोड़ के मुकाबले इस साल यूजीसी को कुल 2,500 करोड़ का बजट मिला है। इसके अलावा, आईआईटी व आईआईएम के वार्षिक बजट में भी कटौती कर दी गई है।

एजुकेशन बजट चार्ट, साभार - शिक्षाडॉटकॉम

एजुकेशन बजट चार्ट, साभार – शिक्षाडॉटकॉम

गौरतलब है कि बजट की इस कटौती को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे समेत अन्य विपक्षी दलों ने संसद के भीतर व बाहर विरोध जताया था हालांकि भारत में इस मामले पर सही सूचनाओं के अभाव में जनता से स्तर पर विरोध देखने को नहीं मिला।

आज के अखबार

दो अरब लोग गंदा पानी पीने को मजबूर

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बोलते पन्ने | नई दिल्ली
द हिन्दू ने 25 जून के संस्करण में लेख के ज़रिए बताया कि दुनिया में दो अरब लोग सुरक्षित पेयजल से वंचित हैं। यानी जो पानी वे पी रहे हैं, उसमें तमाम तरह के रोग होने की संभावना है। साथ ही, दुनिया के 3.6 अरब लोगों को सुरक्षित स्वच्छता सुविधाएं नहीं मिल रही हैं। अख़बार ने संयुक्त राष्ट्र की हालिया रिपोर्ट के हवाले से यह जानकारी दी है। जिसमें भारत सहित कई देशों में जल संकट की गंभीरता को उजागर किया है।
शहरीकरण से जलसंकट गहराया 
लेख के मुताबिक़, सुरक्षित जल का संकट दुनिया में जनसंख्या वृद्धि, शहरीकरण, और जलवायु परिवर्तन के कारण और गहरा रहा है। भारत में, गंगा और यमुना जैसी नदियों में प्रदूषण और अपर्याप्त सीवेज उपचार इस समस्या को बढ़ा रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के 2022 के आंकड़े बताते हैं कि विश्व भर में 10 लाख लोग दूषित पानी और अपर्याप्त स्वच्छता के कारण होने वाली बीमारियों से मर रहे हैं।
द हिन्दू, 25 जून

द हिन्दू, 25 जून

67.8 करोड़ भारतीय गंदगी में जी रहे 
लेख में बताया गया कि भारत में 3.5 करोड़ लोग सुरक्षित पेयजल और 67.8 करोड़ लोग स्वच्छता सुविधाओं से वंचित हैं। जल शक्ति मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 230 जिलों में भूजल में आर्सेनिक और 469 जिलों में फ्लोराइड की मौजूदगी पाई गई है। WHO के मुताबिक़, भारत में 80% स्वास्थ्य समस्याएं जलजनित रोगों से जुड़ी हैं।
भारत में 40% शहरी पानी रिसकर बर्बाद 
भारत सरकार की जल जीवन मिशन जैसी पहल ने ग्रामीण क्षेत्रों में 49% घरों तक नल कनेक्शन पहुंचाया है, लेकिन शहरी क्षेत्रों में 40% पानी रिसाव के कारण बर्बाद हो रहा है। विश्व बैंक और यूनिसेफ जैसी संस्थाएं जल प्रबंधन में सहयोग कर रही हैं। लेख में सुझाव दिया गया कि पानी के उपयोग की दक्षता बढ़ाने, रिसाव कम करने, और स्थानीय जल स्रोतों को पुनर्जनन करने की आवश्यकता है।

आंकड़ों की नज़र से :

  • 2 अरब: विश्व भर में सुरक्षित पेयजल से वंचित लोग।
  • 3.6 अरब: सुरक्षित स्वच्छता सुविधाओं से वंचित लोग।
  • 3.5 करोड़: भारत में सुरक्षित पेयजल से वंचित लोग।
  • 67.8 करोड़: भारत में स्वच्छता सुविधाओं से वंचित लोग।
  • 230 जिले: भारत में भूजल में आर्सेनिक की मौजूदगी।
  • 469 जिले: भारत में भूजल में फ्लोराइड की मौजूदगी।
  • 80 प्रतिशत: भारत में जलजनित रोगों से स्वास्थ्य समस्याएं।
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जनहित में जारी

सरकारी कागजों में तो ‘VIP’ और ‘VVIP’ की कोई औक़ात नहीं !

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ये कुर्सियां कुछ कहती हैं...

बोलते पन्ने | नई दिल्ली  

भारत में “वीआईपी” और “वीवीआईपी” शब्द रोज़मर्रा की ज़ुबान का हिस्सा बन चुके हैं। ट्रैफिक रास्तों का बदलना, मंदिरों में विशेष दर्शन, या हवाई अड्डों पर प्राथमिकता, इन शब्दों से जुड़ी सुविधाएं आम हैं। लेकिन हैरानी की बात है कि इनका कोई औपचारिक कानूनी आधार नहीं है। हाल में दाखिल एक आरटीआई और गृह मंत्रालय के जवाब ने इस अनौपचारिक व्यवस्था को फिर से चर्चा में ला दिया है।
जब सरकार इन श्रेणियों को आधिकारिक तौर पर मानती ही नहीं, और न ही कोई लिखित नियम है कि वीआईपी या वीवीआईपी के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए, तो यह विशेष दर्जा आता कहां से है? क्या यह सिर्फ़ एक अनौपचारिक रिवाज है, या इसके पीछे कोई गहरी व्यवस्था काम करती है? आइए, इस लेख में वीआईपी और वीवीआईपी की हकीकत, उनके पीछे की सुरक्षा व्यवस्था, और इस “संस्कृति” की ऐतिहासिक और सामाजिक जड़ों को खंगालते हैं, ताकि समझ सकें कि यह विशेषाधिकार वास्तव में कितना विशेष है।
वीआईपी दर्जे से जुड़ी डॉ. प्रदीप की आरटीआई पर गृह मंत्रालय का जवाब

वीआईपी दर्जे से जुड़ी डॉ. प्रदीप की आरटीआई पर गृह मंत्रालय का जवाब

डॉ. प्रदीप की आरटीआई: गृह मंत्रालय का जवाब
9 जून 2025 को बरेली कॉलेज के पूर्व लॉ विभागाध्यक्ष और आरटीआई कार्यकर्ता डॉ. प्रदीप कुमार ने गृह मंत्रालय से पूछा कि वीआईपी और वीवीआईपी दर्जे के लिए कौन पात्र है, और इससे संबंधित नियम, अधिसूचनाएं, या सरकारी आदेश उपलब्ध कराए जाएं। 16 जून 2025 को गृह मंत्रालय की वीआईपी सिक्योरिटी यूनिट ने जवाब दिया कि “ऐसा कोई आधिकारिक नामकरण (nomenclature) नहीं है जो किसी व्यक्ति को वीआईपी या वीवीआईपी का दर्जा देता हो।” सुरक्षा का निर्धारण खुफिया एजेंसियों द्वारा खतरे के आकलन (threat perception) के आधार पर होता है। डॉ. प्रदीप ने इस जवाब को असंतोषजनक बताया, उनका कहना है कि यूनिट का नाम ही ‘वीआईपी सिक्योरिटी यूनिट’ है, जो स्वयं विरोधाभासी है।
डॉ. प्रदीप की आरटीआई में VIP/VVIP वैधानिकता पर मांगी गई जानकारी

डॉ. प्रदीप की आरटीआई में VIP/VVIP वैधानिकता पर मांगी गई जानकारी

 

डॉ. प्रदीप कुमार, आरटीआई एक्टिविस्ट व कानूनविद

डॉ. प्रदीप कुमार, आरटीआई एक्टिविस्ट व कानूनविद (साभार – फ़ेसबुक)

वीआईपी और वीवीआईपी की परिभाषा
  • वीआईपी (Very Important Person): सामाजिक, राजनीतिक, या आर्थिक रूप से प्रभावशाली व्यक्ति, जैसे राजनेता, सेलिब्रिटी, उद्योगपति, वरिष्ठ अधिकारी, या धार्मिक नेता।
  • वीवीआईपी (Very Very Important Person): उच्चतर श्रेणी, जैसे प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, या शीर्ष न्यायाधीश। 
साभार इंटरनेट

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वीआईपी संस्कृति लोकतांत्रिक नैतिकता के ख़िलाफ़ : सुप्रीम कोर्ट  

2013 में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से इन शब्दों की उत्पत्ति और लोकतांत्रिक भारत में इनके उपयोग की प्रासंगिकता पर सवाल उठाया। कोर्ट ने इसे “लोकतांत्रिक नैतिकता” के खिलाफ माना और सुरक्षा संसाधनों के दुरुपयोग पर चिंता जताई। 2012 और 2013 में सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई और गृह मंत्रालय के जवाबों के अनुसार, इन शब्दों की कोई कानूनी परिभाषा नहीं है। “वॉरंट ऑफ प्रेसिडेंस” केवल औपचारिक समारोहों के लिए प्राथमिकता तय करता है, लेकिन दैनिक सुविधाएं अनौपचारिक और खतरे के आकलन पर आधारित हैं।

सुरक्षा श्रेणियों को जानिए:

भारत में सुरक्षा छह स्तरों में बांटी गई है: SPG, Z+, Z, Y+, Y, और X।

  • SPG (Special Protection Group): यह केवल प्रधानमंत्री और उनके परिवार (तथा पूर्व प्रधानमंत्रियों और उनके परिवारों को 10 साल तक) के लिए है। SPG एक कुलीन बल है, जिसके विवरण गोपनीय हैं। 1988 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद SPG अधिनियम लागू हुआ।
  • Z+: उच्चतम गैर-SPG सुरक्षा, जिसमें 55 कर्मी (10+ NSG कमांडो, दिल्ली पुलिस/CRPF/ITBP) शामिल हैं। उदाहरण: राजनाथ सिंह, योगी आदित्यनाथ, मायावती, राहुल गांधी, अमित शाह। मार्च 2021 में लगभग 40 व्यक्तियों को Z+ सुरक्षा थी।
  • Z: 22 कर्मी (4-6 NSG कमांडो, एक एस्कॉर्ट कार)। इसमें मंत्रियों, जजों, और अन्य प्रमुख व्यक्तियों को शामिल किया जाता है।
  • Y+: 11 कर्मी (2-4 कमांडो, पुलिस)।
  • Y: 2 व्यक्तिगत सुरक्षा अधिकारी (PSO)।
  • X: 1 PSO, सामान्यतः सशस्त्र राज्य पुलिस द्वारा।
ये कुर्सियां कुछ कहती हैं...

ये कुर्सियां कुछ कहती हैं…

फायदे : विशेष छूट, सुरक्षा से लेकर सुविधाओं में प्राथमिकता

  • प्राथमिकता पहुंच: हवाई अड्डों पर विशेष सुरक्षा जांच, होटल चेक-इन, और रेस्तरां में आरक्षण।
  • विशेष स्थान: समारोहों में वीआईपी/वीवीआईपी के लिए अलग सीटें, लाउंज, और निजी स्थान।
  • सुरक्षा व्यवस्था: सशस्त्र गार्ड, लाल बत्ती (हालांकि 2017 में हटाई गई), और काफिले।
  • अन्य सुविधाएं: मंदिरों में विशेष दर्शन (जैसे तिरुपति, लालबागचा राजा), टोल छूट, और प्राथमिक चिकित्सा सेवाएं।

खुफिया एजेंसियों के इनपुट पर तय होता है सुरक्षा का स्तर 

  • गृह मंत्रालय, इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB), और अन्य खुफिया एजेंसियों की समिति खतरे के आधार पर सुरक्षा स्तर तय करती है। “ब्लू बुक” में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, और प्रधानमंत्री के लिए दिशानिर्देश हैं, जबकि “येलो बुक” में अन्य वीआईपी/वीवीआईपी के लिए नियम हैं।
  • राज्य सरकारें भी अपने स्तर पर सुरक्षा प्रदान करती हैं, लेकिन यह अक्सर राजनीतिक प्रभाव से प्रभावित होती है।
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इतिहास : दूसरे विश्व युद्ध के बाद प्रचलन में आई ये टर्म  

    • VIP: यह शब्द 1930 के दशक में सामने आया और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद लोकप्रिय हुआ। इसका पहला दर्ज उपयोग 1933 में कॉम्पटन मैकेंज़ी की पुस्तक “Water on the Brain” में मिलता है, जहां इसे “Very Important Personage” कहा गया। कुछ स्रोत इसे रॉयल एयर फोर्स (RAF) से जोड़ते हैं, जो इसे उच्च अधिकारियों के लिए इस्तेमाल करते थे।
    • VVIP: यह शब्द बाद में संभवतः 1940-50 के दशक में उच्चतर महत्व वाले व्यक्तियों को अलग करने के लिए शुरू हुआ। यह विशेष रूप से उन लोगों के लिए है, जिनके पास अत्यधिक सामाजिक-आर्थिक प्रभाव या खर्च करने की क्षमता है।
    • भारत में वीआईपी/वीवीआईपी संस्कृति ब्रिटिश राज से शुरू हुई, जहां औपनिवेशिक शासकों ने विशेष सुविधाएं बनाए रखीं। स्वतंत्रता के बाद, यह “लाल बत्ती संस्कृति” के रूप में विकसित हुई, जिसमें राजनेता, नौकरशाह, और प्रभावशाली लोग शामिल हुए। 

विवादों में घिरा रहा है वीआईपी कल्चर   

  • लाल बत्ती विवाद: 2017 में केंद्र सरकार ने लाल बत्ती के उपयोग पर रोक लगाई, लेकिन वीआईपी संस्कृति बनी रही। सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में लाल बत्ती के दुरुपयोग और सायरन के उपयोग पर आपत्ति जताई थी।
  • राजनीतिक दबाव: वीआईपी/वीवीआईपी सुरक्षा अक्सर राजनीतिक प्रभाव से तय होती है, जिसके कारण गैर-जरूरी व्यक्तियों को भी सुरक्षा दी जाती है। पूर्व गृह मंत्री पी चिदंबरम ने NSG को केवल गंभीर मामलों में उपयोग करने की नीति शुरू की थी। 2017 में बाबा रामदेव को 30 पुलिसकर्मियों की सुरक्षा इसका उदाहरण है।
  • संसाधनों का दुरुपयोग: गृह मंत्रालय ने 2022 में कहा कि 2019 में 19,467 व्यक्तियों को सुरक्षा दी गई थी, जिसमें मंत्री, सांसद, विधायक, जज व नौकरशाह शामिल थे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़, उस वर्ष लखनऊ के एक ग्रामीण थाने में 35 में से केवल 1 से 5 पुलिसकर्मी ही सामान्य जनता के लिए उपलब्ध थे क्योंकि बाकी को वीआईपी सुरक्षा के लिए तैनात किया गया था।
    साभार - इंटरनेट

    साभार – इंटरनेट

RTI का प्रभाव: ट्रेन में वीआईपी कोटे का दुरुपयोग उजागर  
2012 में दिल्ली के RTI कार्यकर्ता वीरेश मलिक ने रेलवे मंत्रालय से आपातकालीन कोटा (EQ) के दुरुपयोग पर जानकारी मांगी थी। उनकी RTI से खुलासा हुआ कि “उच्च अधिकारियों” के पत्र से कोई भी व्यक्ति VIP बनकर ट्रेनों में प्राथमिकता प्राप्त कर सकता था। इससे पता लगा कि आपात स्थिति के लिए रखे गए इस कोटे का दुरुपयोग राजनेताओं, नौकरशाहों और प्रभावशाली लोग कर रहे थे। इस खुलासे ने रेलवे में पारदर्शिता की मांग बढ़ाई और VIP संस्कृति पर सवाल उठाए। 

सुधार की ओर :

1- वीआईपी सुरक्षा से NSG को हटाया गया

2024 में NSG को वीआईपी/वीवीआईपी सुरक्षा से हटाने की योजना लागू हुई। इसके बाद नौ प्रमुख व्यक्तियों (जैसे- योगी आदित्यनाथ, मायावती, राजनाथ सिंह) की सुरक्षा CRPF को सौंप दी गई। यह NSG को आतंकवाद-रोधी कार्यों के लिए मुक्त करने का कदम है।  

2- मंदिरों में वीआईपी दर्शन के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट (SC) ने 31 जनवरी 2025 को मंदिरों में वीआईपी दर्शन शुल्क के मामले को मनमाना और असमानता को बढ़ावा देने वाला बताया। हालांकि इस पर बैन लगाने की अपील वाली याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया और कहा कि यह नीतिगत मामला है और राज्य सरकारें इस पर कार्रवाई कर सकती हैं।

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जनहित में जारी

क्या मुंबई के धरावी जैसी क़िस्मत पाएंगी दिल्ली की झुग्गियां

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दिल्ली की स्लम में बच्चे, साभार - इंटरनेट
बोलते पन्ने | नई दिल्ली
दिल्ली सरकार ने झुग्गी-झोपड़ी और अवैध कॉलोनियों के स्थायी पुनर्वास और पुनर्विकास के लिए मुंबई के धरावी पुनर्विकास मॉडल (Dharavi Redevelopment Project) का अध्ययन करने की योजना बनाई है। यह खबर 21 जून को द हिन्दू ने प्रमुखता से छपी। इसमें कहा गया कि दिल्ली सरकार इस मॉडल को अपनी 675 झुग्गी-झोपड़ी कॉलोनियों और 1,731 अनधिकृत कॉलोनियों के लिए लागू करने की संभावनाएं तलाश रही है। यह खबर ऐसे समय में आई है जब दिल्ली में अनधिकृत झुग्गियों को हटाया जा रहा है, और महाराष्ट्र सरकार ने मई 2025 में धरावी मास्टर प्लान को मंजूरी दी है। ऐसे में दिल्ली के स्लम के भविष्य के लिए धरावी मॉडल और इसके साकार रूप लेने के पीछे 40 साल चली उठापटक को समझना महत्वपूर्ण है।
“दिल्ली एक अनियोजित शहर है, जहां 60% लोग अनधिकृत बस्तियों में रहते हैं। हमें इसे नियोजित और व्यवस्थित करना है, जो एक बड़ी चुनौती है। धरावी मॉडल का अध्ययन कर हम झुग्गीवासियों के लिए सुरक्षित आवास और बेहतर सुविधाएं सुनिश्चित करना चाहते हैं।” – रेखा गुप्ता, सीएम, दिल्ली (द हिन्दू को दिए इंटरव्यू के दौरान)
धरावी स्लम

धरावी स्लम

धरावी मॉडल: दस लाख लोगों का पुनर्वास
मुंबई में धरावी 2.4 वर्ग किलोमीटर में फैली एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी बस्ती है, जहां लगभग 10 लाख लोग रहते हैं। यह एक सघन आर्थिक केंद्र भी है, जिसमें चमड़ा, कपड़ा, और 13,000 से अधिक छोटे उद्योग फलते-फूलते हैं, जिनका सालाना कारोबार लगभग 1 बिलियन डॉलर है। धरावी पुनर्विकास परियोजना (DRP) का उद्देश्य इस क्षेत्र को आधुनिक आवास, बुनियादी ढांचे, और व्यावसायिक सुविधाओं के साथ एक एकीकृत शहरी क्षेत्र में बदलना है। परियोजना में पांच औद्योगिक क्लस्टर (कपड़ा, चमड़ा, मिट्टी के बर्तन, खाद्य, और रीसाइक्लिंग) प्रस्तावित हैं, जो स्थानीय अर्थव्यवस्था को बनाए रखेंगे।
₹95,790 करोड़ की परियोजना, मिलेगा अपना घर व शौचालय
  • आवास: 2004 से पहले की झुग्गियों में रहने वाले प्रत्येक पात्र परिवार को 350 वर्ग फुट का मुफ्त घर, जिसमें रसोई और शौचालय शामिल हैं। अपात्र निवासियों को MMR में सब्सिडी दरों पर 300 वर्ग फुट के घर किराया-खरीद योजना के तहत, जिनका भुगतान 12 वर्षों में किया जा सकता है।
  • बुनियादी ढांचा: स्कूल, अस्पताल, सड़कें, जल निकासी, और बिजली जैसी सुविधाएं।
  • आर्थिक पुनर्जनन: धरावी के छोटे उद्योगों के लिए विशेष व्यावसायिक क्षेत्र।
  • निजी-सार्वजनिक भागीदारी (PPP): परियोजना महाराष्ट्र सरकार और अडानी समूह (NMDPL) के बीच साझेदारी पर आधारित है, जिसमें 47.20 हेक्टेयर पुनर्वास और 47.95 हेक्टेयर बिक्री के लिए निर्धारित हैं।
  • लागत: अनुमानित लागत ₹95,790 करोड़, जिसमें ₹25,000 करोड़ पुनर्वास के लिए और ₹14 करोड़ वर्ग फीट बिक्री योग्य इकाइयों के लिए, जो इसे भारत का सबसे बड़ा शहरी पुनर्विकास प्रोजेक्ट बनाती है।
40 साल बाद अब धरावी प्रोजेक्ट शुरू हुआ
  • 1985: तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने “Urban Renewal Scheme” के तहत धरावी के सुधार के लिए ₹100 करोड़ की घोषणा की।
  • 1995: महाराष्ट्र सरकार ने “Slum Redevelopment Scheme” शुरू की, लेकिन घनी आबादी, जटिलता, और संसाधनों की कमी के कारण धरावी शामिल नहीं हुआ।
  • 1997: MHADA ने धरावी को “विशेष पुनर्विकास क्षेत्र” घोषित करने की सिफारिश की।
  • 2003: मुख्यमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने योजना का खाका तैयार कराया। धरावी को 5 सेक्टरों में बांटकर हर सेक्टर के लिए निजी डेवलपर नियुक्त किए जाएं।
  • 2004: राज्य सरकार ने Dharavi Redevelopment Project (DRP) को औपचारिक रूप से लॉन्च किया।
  • 2007: वैश्विक आर्किटेक्ट्स से मास्टर प्लान आमंत्रित किए गए। L&T, Hiranandani, और Dubai-based Emaar ने रुचि दिखाई, लेकिन निविदा शर्तों में बदलाव, स्थानीय विरोध, और राजनीतिक अस्थिरता के चलते योजना रुकी।
  • 2016: सरकार ने पुनः निविदा प्रक्रिया शुरू की, लेकिन कोई डेवलपर नहीं मिला।
  • 2018: फडणवीस सरकार ने एकीकृत पुनर्विकास मॉडल प्रस्तावित किया।
  • 2019: वैश्विक टेंडर में Seclink Technology Corporation ने ₹7,200 करोड़ की बोली लगाई, लेकिन रेलवे की भूमि शामिल न होने से टेंडर रद्द।
  • 2022: अडानी समूह ने ₹5,069 करोड़ की बोली जीती। सरकार ने अडानी को “लीड पार्टनर” बनाया, जिसमें 80% हिस्सेदारी उनकी और 20% महाराष्ट्र सरकार की है।
  • 2025: जनवरी में महिम में 10,000 फ्लैट्स का निर्माण शुरू। मई में ₹95,790 करोड़ के मास्टर प्लान को मंजूरी दी गई। हफीज कॉन्ट्रैक्टर को आर्किटेक्ट नियुक्त किया गया।
सांकेतिक तस्वीर

सांकेतिक तस्वीर

अडानी को प्रोजेक्ट देने पर उठे सवाल
कांग्रेस, शिवसेना-UBT, और अन्य दलों ने आरोप लगाया कि टेंडर की शर्तें अडानी के पक्ष में बनाई गईं, खासकर न्यूनतम 500 एकड़ के अनुभव की शर्त। 2022 में उद्धव ठाकरे की MVA सरकार के पतन और शिंदे-BJP सरकार के सत्ता में आने के बाद टेंडर प्रक्रिया तेज हुई। सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2025 में Seclink की याचिका खारिज कर अडानी को मंजूरी दी। राहुल गांधी ने धरावी को “इनोवेशन का सेंटर” बताते हुए पुनर्विकास को स्थानीय हितों के खिलाफ बताया। धरावी रिडेवलपमेंट समिति के अध्यक्ष राजेंद्र कोर्डे ने मास्टर प्लान में केवल 72,000 निवासियों के पुनर्वास की योजना पर सवाल उठाए, जबकि 1.5-2 लाख ऊपरी मंजिलों के निवासियों की स्थिति अनिश्चित है।
विवाद व विरोध के बीच शुरू हो गया प्रोजेक्ट
धरावी रिडेवलपमेंट प्रोजेक्ट प्राइवेट लिमिटेड (DRPPL) ने डिजिटल सर्वे शुरू किया, जिसमें ड्रोन और LiDAR तकनीक का उपयोग कर 94,500 निवासियों को यूनीक आईडी दी गई और 70,000 घरों का सर्वे पूरा हुआ। 256 एकड़ सॉल्ट पैन भूमि का उपयोग अपात्र निवासियों के लिए प्रस्तावित है, जिसे पर्यावरणीय कारणों से मानवाधिकार उल्लंघन बताया गया। रेलवे की 47.5 एकड़ जमीन का ट्रांसफर लंबित है। स्थानीय निवासियों और कार्यकर्ताओं ने पुनर्वास की शर्तों, जैसे सायन-कोलीवाड़ा या मुलुंड में स्थानांतरण, और व्यवसायों के संरक्षण पर सवाल उठाए।
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दिल्ली की स्लम बस्ती, साभार इंटरनेट

दिल्ली की स्लम बस्ती, साभार इंटरनेट

दिल्ली में 675 झुग्गियां, 17% गरीब वोटर
दिल्ली में इस साल BJP सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता के नेतृत्व में धरावी मॉडल का अध्ययन शुरू हुआ। यह 675 झुग्गी कॉलोनियों और 50,000 EWS फ्लैट्स के पुर्ननिर्माण के लिए है, जो पहले AAP सरकार के तहत अप्रयुक्त रहे। 17% गरीब और दलित वोटरों की अनुमानित आबादी को देखते हुए यह मॉडल राजनीतिक रूप से संवेदनशील है। विशेषज्ञों ने दिल्ली के बिखरे हुए झुग्गी क्लस्टर को धरावी मॉडल के लिए अनुपयुक्त बताया।
दिल्ली में झुग्गी-झोपड़ियों का इतिहास  
  • औपनिवेशिक काल (1857 से पहले): दिल्ली में झुग्गियां न्यूनतम थीं। शहरीकरण सीमित था, और अधिकांश आबादी ग्रामीण थी। पुरानी दिल्ली में घनी बस्तियां थीं, लेकिन आधुनिक झुग्गियां नहीं थीं।
  • स्वतंत्रता के बाद (1947-1970): विभाजन के बाद बड़े पैमाने पर प्रवास हुआ। दिल्ली में अनधिकृत बस्तियां, जैसे किंग्सवे कैंप, उभरीं। 1950 के दशक में दिल्ली डेवलपमेंट अथॉरिटी (DDA) ने नियोजित विकास शुरू किया, लेकिन ग्रामीण प्रवासियों के लिए किफायती आवास की कमी रही।
  • 1970-1990: तेज शहरीकरण और औद्योगीकरण से झुग्गियां बढ़ीं। 1976 में तुर्कमान गेट पर बुलडोजर कार्रवाई और पुलिस गोलीबारी ने विवाद खड़ा किया। झुग्गीवासियों को बाहरी इलाकों (जैसे नरेला) में बसाया गया, लेकिन बुनियादी सुविधाएं अपर्याप्त थीं।
  • 1990-2010: 1994 तक दिल्ली में 750 झुग्गी कॉलोनियां थीं, जिनमें 20 लाख लोग रहते थे। कॉमनवेल्थ गेम्स (2010) के लिए कई झुग्गियां हटाई गईं, जिसकी आलोचना हुई।
  • 2010-2025: 675 झुग्गी कॉलोनियां और 1,731 अनधिकृत कॉलोनियां मौजूद। 2019 में 1,797 कॉलोनियों को वैध करने की योजना बनी। G20 शिखर सम्मेलन (2023) के लिए जनता कैंप जैसी झुग्गियों को हटाया गया।

विशेषज्ञों की राय – दोनों स्लम के बीच गहरा अंतर

  • डॉ. रेणु देसाई (शहरी नियोजन विशेषज्ञ, IIM अहमदाबाद): द हिन्दू (22 जून 2025) में उन्होंने कहा कि धारावी मॉडल दिल्ली के लिए अनुपयुक्त है, क्योंकि दिल्ली की झुग्गियां छोटी और बिखरी हैं, और धारावी की तरह आर्थिक केंद्र नहीं हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि दिल्ली को छोटे, स्थान-विशिष्ट पुनर्वास मॉडल अपनाने चाहिए।
  • प्रो. अमिताभ कुंडू (शहरी अर्थशास्त्री, JNU): इंडियन एक्सप्रेस (20 जून 2025) में कुंडू ने बताया कि धारावी की PPP संरचना मुंबई के उच्च भूमि मूल्यों के कारण व्यवहार्य है, लेकिन दिल्ली में भूमि की उपलब्धता और कम आर्थिक रिटर्न इसे लागू करना मुश्किल बनाते हैं।
  • कामाक्षी भट्ट (स्लम रिहैबिलिटेशन विशेषज्ञ): हिंदुस्तान टाइम्स (21 जून 2025) में उन्होंने चेतावनी दी कि धारावी मॉडल की नकल से दिल्ली में सामाजिक तनाव बढ़ सकता है, क्योंकि निवासी बाहरी क्षेत्रों में स्थानांतरण के खिलाफ हैं।
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