रिसर्च इंजन
बिहार: नक्सली कजरा में कैसे तैयार हुआ देश का सबसे बड़ा बैटरी सोलर प्लांट?
- लखीसराय के नक्सली क्षेत्र कजरा में 1500 करोड़ की लागत से विकसित हुआ सोलर प्लांट
- पहले फेज का काम डेडलाइन से पहले पूरा, नवंबर में CM नीतीश कुमार उद्घाटन कर सकते हैं
- यह पावर प्लांट पहले चरण में लखीसराय और मुंगेर के पावर ग्रिड को जोड़कर रात में बिजली देगा
रिपोर्ट – गोपाल प्रसाद आर्य (लखीसराय), संपादन – शिवांगी
लखीसराय जिले से 25 किमी दूर नक्सल प्रभावित कजरा के टाली कोड़ासी गांव में देश का सबसे बड़ा बैटरी-इंटीग्रेटेड सोलर पावर प्लांट (battery-integrated solar power plant) बनकर तैयार हो गया है। 1231 एकड़ भूमि पर फैली इस परियोजना में 1500 करोड़ रुपये की लागत लगी और चार साल में पहले चरण का निर्माण पूरा हो गया है। यह प्लांट हर घंटे 254 मेगा हार्ट्ज बैटरी एनर्जी स्टोर करने के सिस्टम पर आधारित है जो दिन में सौर ऊर्जा को स्टोर करके रात में बिजली देगा, इस तरह क्षेत्र को 24 घंटे बिजली आपूर्ति सुनिश्चित होने की योजना है।
पहले चरण में इसका लाभ लखीसराय के साथ मुंगेर जिले को मिलने जा रहा है। उम्मीद की जा रही है कि विधानसभा चुनाव की घोषणा से पहले सीएम नीतीश कुमार इसके पहले चरण का उद्घाटन कर देंगे जो NDA सरकार की प्रमुख उपलब्धि बन सकती है। इस बेहद अहम परियोजना को लखीसराय जिले के नक्सली क्षेत्र कजरा में बनाया गया है, आइए जानते हैं कि आखिर किस तरह देश का सबसे बड़ा बैटरी चलित सोलर पावर प्लांट यहां बनकर तैयार हुआ?
प्लांट में 4 लाख से ज्यादा सोलर पैनल लगे
इस प्लांट में 4 लाख 32 हजार सोलर पैनल लगाए गए हैं, और 254 MW-hour बैटरी एनर्जी स्टोरेज सिस्टम (BESS) है। इसे बिहार स्टेट पावर जेनरेशन कंपनी लिमिटेड (BSPGCL) और लार्सन एंड टुब्रो (L&T) ने मिलकर विकसित किया है। इस परियोजना की घोषणा 2021 में हुई थी। L&T के साथ सरकार का करार पिछले साल जून में हुआ और पहला फेज इस महीने पूरा हो गया है। इसमें राज्य सरकार ने 70% फंड का योगदान किया (₹1050 करोड़) जबकि शेष फंड केंद्र की ‘PM सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना’ के तहत किया गया।
चुनावी साल में डेडलाइन से पहले काम पूरा
इस प्लांट के पहले फेज की 185 MW क्षमता का काम इस साल दिसंबर तक पूरा होने की डेडलाइन थी पर काम को सितंबर में ही पूरा कर लिया गया है। जानकार इसे राज्य सरकार की चुनावी वर्ष में तेजी के रूप में देख रहे हैं। पहले चरण में लखीसराय और मुंगेर अंतर्गत हवेली खड़गपुर पावर ग्रिड को लाभ मिलना है। उम्मीद है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नवंबर में इसका उद्घाटन करेंगे। चुनाव आयोग द्वारा सितंबर-अक्टूबर में शेड्यूल जारी होने की उम्मीद है, और वोटिंग अक्टूबर-नवंबर में होगी। ऐसे में नीतीश जल्द उद्घाटन कर ऊर्जा आत्मनिर्भरता और ग्रामीण विकास का संदेश दे सकते हैं।
इन कारणों से नक्सली कजरा को प्लांट के लिए चुना
नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के लाल गलियारे (Red Corridor) में कजरा भी शामिल है , यहां पर सोलर प्लांट बनना नक्सलवाद को कम करने और आर्थिक उन्नति लाने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। नक्सल प्रभावित कजरा में पहले NTPC थर्मल प्लांट के लिए 1231 एकड़ भूमि अधिग्रहीत (2014-15 MoU) की गई थी, फिर इसे सोलर प्लांट में बदलने की घोषणा 2024 में हुई।
कजरा की भूमि पर सूर्य प्रकाश की प्रचुरता थी और केंद्र सरकार ऐसे नक्सल प्रभावी क्षेत्रों में विकास नीति पर काम कर रही थी इसलिए इस इलाके में देश का सबसे बड़ा सोलर प्लांट बनाने की रणनीति बनी। सरकार की योजना थी कि इस तरह के विकास से नक्सली क्षेत्र को आर्थिक हब बनाने का अवसर मिलेगा और लोग हिंसा के रास्ते को छोड़कर मुख्य धारा में शामिल होंगे।
सुरक्षा, भूमि अधिग्रहण व कनेक्टिविटी बना बड़ी चुनौती
नक्सल प्रभावित क्षेत्र में परियोजना निर्माण में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिसमें सबसे ज्यादा चुनौती भूमि अधिग्रहण को लेकर आई, लोग विस्थापन की शर्तों पर मंजूर नहीं थे। साथ ही, स्थानीय लोग मुआवजे की राशि को लेकर सहमत नहीं थे। सुरक्षा जोखिम भी अहम चुनौती थी, नक्सली हमलों की आशंका से मजदूरों की कमी और निर्माण सामग्री की डिलीवरी में देरी का सामना करना पड़ा। कनेक्टिविटी की कमी के चलते नक्सल प्रभावित क्षेत्र में सड़कों और लॉजिस्टिक्स की कमी से उपकरण लाने में दिक्कत हुई। सुरक्षा के लिए CRPF की तैनाती की गई, जिससे प्लांट निर्माण की लागत बढ़ गई। इसके अलावा, मौसमी बाधाएं भी आईं। पिछले साल जुलाई-सितंबर 2024 में भारी बारिश से निर्माण कार्य 3-4 महीने बाधित रहा जिससे सोलर पैनल इंस्टॉलेशन में देरी हुई।
स्थानीय लोगों को रोजगार मिला
अभी प्लांट पर करीब एक हजार इंजीनियर, टेक्नीशियन और मजदूर कार्यरत हैं, जो स्थानीय रोजगार को बढ़ावा दे रहा है। हालांकि ग्रामीणों का कहना है कि लंबी अवधि में उन्हें इससे क्या रोजगार मिलेगा… यह साफ नहीं है। हालांकि यहां कई स्थानीय लोगोें ने सरकार पर आरोप लगाए कि विस्थापन के बाद उनकी आजीविका छिन गई।
पहला फेज : दो जिलों को मिलेगी सोलर लाइट
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जिला
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लाभ
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विवरण
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लखीसराय
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185 MW बिजली
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हिसोना पावर ग्रिड को प्राथमिक आपूर्ति, ग्रामीण-शहरी क्षेत्रों में 24 घंटे बिजली।
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मुंगेर
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185 MW बिजली
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हवेली खड़गपुर पावर ग्रिड को सप्लाई, रात्रिकालीन खपत पूरी करने में मदद।
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दूसरा फेज : झारखंड, प. बंगाल और ओडिशा में भी सप्लाई संभव
इस परियोजना के दूसरे फेज में प्लांट की क्षमता 251 मेगावॉट जोड़कर कुल 436 MW की हो जाएगी। इसका काम इस साल दिसंबर से शुरू हो सकता है। यह बिजली मुख्य रूप से बिहार के ग्रिड को मिलेगी, लेकिन राष्ट्रीय ग्रिड के माध्यम से झारखंड, पश्चिम बंगाल, और ओडिशा जैसे पड़ोसी राज्यों को भी आपूर्ति संभव है। बिहार सरकार का लक्ष्य 2030 तक 5000 MW सौर ऊर्जा उत्पादन है, जिसमें कजरा के अलावा पिरपैंती (भागलपुर, 250 MW), जमुई (100 MW), और बांका (150 MW) में प्रोजेक्ट्स शामिल हैं। यह बिहार की 6500 MW की मौजूदा मांग का 20% पूरा करेगा।
सौर ऊर्जा से बिजली बनेगी, कार्बन उत्सर्जन घटेगा
कोयला आधारित थर्मल प्लांट की जगह सोलर पावर प्लांट बनने से सालाना 2.5 से 3 लाख टन कार्बन डाई ऑक्साइड (CO2) का कम उत्सर्जन होगा जिससे पर्यावरण को सीधा लाभ मिलेगा। प्लांट की टोटल क्षमता 436 मेगावॉट बिजली बनाने की है, इसके हिसाब से 3.5 से 4 लाख टन CO2 बचत संभव है। यह भारत के 2030 नेट-जीरो लक्ष्य में योगदान देगा।
लोड शेडिंग की समस्या हल होगी
सोलर प्लांट से रात के समय बिजली मिलने से ग्रामीण क्षेत्रों में होने वाली लोड शेडिंग की समस्या हल हो जाएगी और लोगों को ज्यादा समय तक बिजली मिल सकेगी। पहले चरण में पावर सप्लाई पाने वाले जिले लखीसराय में बिजली की दैनिक मांग 25 मेगा वॉट है और रात में बिजली की मांग 8-10 MW है। इसी तरह मुंगेर में 90 MW (रात में 25-35 MW) बिजली की दैनिक मांग है। बिहार की कुल रात्रिकालीन मांग 2000-2500 MW है, जिसमें यह प्लांट 10-15% योगदान देगा।
लोगों की जुबानी
“सोलर प्लांट से प्रदूषण टला, लेकिन मुआवजे में देरी और कम राशि से परेशानी है। बिजली मिलने से खुशी है, पर रोजगार का भरोसा चाहिए।” – डॉ. आर. लाल गुप्ता, कजरा ग्रामीण
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“नवंबर तक 185 MW बिजली उत्पादन शुरू हो जाएगा। इस प्लांट का उद्घाटन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के द्वारा होना है, जिसका इंतजार है। सबसे पहले मुंगेर के हवेली खड़कपुर बिजली पावर और लखीसराय के महिसोना पावर ग्रिड को बिजली दी जाएगी। – गौरव कुमार, कनिष्ठ अभियंता, BSPGCL
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“हमने डेडलाइन से पहले 50% क्षमता का सोलर पावर प्लांट तैयार कर लिया है। आने वाले समय में बिहार के साथ भारत के दूसरे हिस्सों को भी सप्लाई दी जा सकती है।” – अनिर वर्ण, प्रोजेक्ट मैनेजर, L&T
चुनावी डायरी
बिहार में किसके वोट कहां शिफ्ट हुए? महिला, मुस्लिम, SC–EBC के वोटिंग पैटर्न ने कैसे बदल दिया नतीजा?
- महागठबंधन का वोट शेयर प्रभावित नहीं हुआ पर अति पिछड़ा, महिला व युवा वोटर उन पर विश्वास नहीं दिखा सके।
नई दिल्ली| महक अरोड़ा
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों ने साफ कर दिया है कि इस बार की लड़ाई सिर्फ सीटों की नहीं थी—बल्कि वोटिंग पैटर्न, नए सामाजिक समीकरण, और वोट के सूक्ष्म बदलावों की थी।
कई इलाकों में वोट शेयर में बड़ा बदलाव नहीं दिखा, लेकिन सीटें बहुत ज्यादा पलट गईं। यही वजह रही कि महागठबंधन (MGB) का वोट शेयर सिर्फ 1.5% गिरा, लेकिन उसकी सीटें 110 से घटकर 35 पर आ गईं।
दूसरी ओर, NDA की रणनीति ने महिलाओं, SC-EBC और Seemanchal के वोट पैटर्न में बड़ा सेंध लगाई, जो इस प्रचंड बहुमत (massive mandate) की असली वजह माना जा रहा है।
महिला वोटर बनीं Kingmaker, NDA का वोट शेयर बढ़ाया
बिहार में इस बार महिलाओं ने 8.8% ज्यादा रिकॉर्ड मतदान किया:
- महिला वोटिंग: 71.78%
- पुरुष वोटिंग: 62.98%
(स्रोत- चुनाव आयोग)
महिला वोटर वर्ग के बढ़े हुए मतदान का सीधा फायदा NDA विशेषकर जदयू को हुआ, जिसने पिछली बार 43 सीटें जीती और इस बार 85 सीटों से दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी।
वोट शेयर का गणित — MGB का वोट कम नहीं हुआ, पर सीटें ढह गईं
- NDA Vote share: 46.5%
MGB Vote share: 37.6%
2020 की तुलना में: 9.26% ज्यादा वोट NDA को पड़ा
- NDA के वोट share में बड़ी बढ़त – 37.26%
- MGB का वोट share सिर्फ 1.5% गिरा – 38.75%
- पर महागठबंधन की सीटें 110 → 35 हो गईं
(स्रोत- चुनाव आयोग)
यानी इस चुनाव में महागठबंधन का वोट प्रतिशत लगभग बराबर रहा पर वे वोट शेयर को सीटों में नहीं बदल सके।
यह चुनाव vote consolidation + social engineering + seat-level micro strategy का चुनाव था।
SC वोटर ने NDA का रुख किया — 40 SC/ST सीटों में 34 NDA के खाते में
बिहार की 40 आरक्षित सीटों (38 SC + 2 ST) में NDA ने लगभग क्लीन स्वीप किया:
- NDA: 34 सीट
- MGB: 4 सीट (2020 में NDA = 21 सीट)
(स्रोत- द इंडियन एक्सप्रेस)
सबसे मजबूत प्रदर्शन JDU ने किया—16 में से 13 SC सीटें जीतीं। BJP ने 12 में से सभी 12 सीटें जीत लीं।
वहीं महागठबंधन के लिए यह सबसे खराब प्रदर्शन रहा — RJD 20 SC सीटों पर लड़कर भी सिर्फ 4 ला सकी।
RJD का वोट शेयर SC सीटों में सबसे ज्यादा (21.75%) रहा, लेकिन सीटें नहीं मिल सकीं।
वोट share और seat conversion में यह सबसे बड़ा असंतुलन रहा।
मुस्लिम वोट MGB और AIMIM के चलते बंटा, NDA को फायदा हुआ
सीमांचल – NDA ने 24 में से 14 सीटें जीत लीं
सीमांचल (Purnia, Araria, Katihar, Kishanganj) की 24 सीटों पर इस बार सबसे दिलचस्प तस्वीर दिखी।
मुस्लिम वोट महागठबंधन और AIMIM में बंट गए, और इसका सीधा फायदा NDA को मिला।
- NDA: 14 सीट
- JDU: 5
- AIMIM: 5
- INC: 4
- RJD: सिर्फ 1
- LJP(RV): 1
सबसे कम मुस्लिम विधायक विधानसभा पहुंचेंगे – सूबे में 17.7% मुस्लिम आबादी के बावजूद इस बार सिर्फ 10 मुस्लिम विधायक विधानसभा पहुंचे — 1990 के बाद सबसे कम।
- यह NDA की सामाजिक इंजीनियरिंग, EBC–Hindu consolidation और मुस्लिम वोटों के बंटवारे का संयुक्त परिणाम है।
- EBC–अति पिछड़ा वोट NDA के साथ गया — MGB की सबसे बड़ी हार की वजह
- अतिपिछड़ा वर्ग (EBC) बिहार में सबसे बड़ा वोट बैंक है। इस बार ये पूरा वोट NDA के पक्ष में चला गया।
- JDU की परंपरागत पकड़ + BJP का Welfare Model मिलकर EBC वर्ग में मजबूत प्रभाव डाल गए।
- यही वोट EBC बेल्ट (मिथिला, मगध, कोसी) में NDA को करारी बढ़त देने का कारण बना।
रिकॉर्ड संख्या में निर्दलीय लड़े पर नहीं जीत सके
Independent उम्मीदवारों की रिकॉर्ड संख्या — 925 में से 915 की जमानत जब्त
इस चुनाव में:
- कुल उम्मीदवार: 2616
- Independent: 925
- जमानत ज़ब्त: 915 (98.9%)
ECI ने ज़ब्त हुई जमानतों से 2.12 करोड़ रुपये कमाए
क्यों इतने Independent मैदान में उतरे?
1. पार्टियों ने पुराने नेताओं के टिकट काटे
2. कई स्थानीय नेताओं ने बगावत कर दी
3. कई सीटों पर बिखराव की वजह बने
VIP, CPI, AIMIM, RJD, INC – हर पार्टी के बड़ी संख्या में उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई।
दुनिया गोल
युद्ध के चलते बर्बाद हो चुके गज़ा में हमास किस तरह शवों को सुरक्षित रख रहा?
- 11 साल बाद हमास ने इज़रायल को लौटाया एक लेफ्टिनेंट का शव।
- हाल के शांति समझौते के तहत हमास शव व अवशेष लौटा रहा है।
नई दिल्ली | महक अरोड़ा
गज़ा युद्ध (2014) में मारे गए इज़रायली सैनिक लेफ्टिनेंट हदार गोल्डिन का शव 11 साल बाद आखिरकार इज़रायल को सौंप दिया गया। हमास ने यह शरीर दक्षिणी गज़ा में रेड क्रॉस को दिया, जिसके बाद इसे इज़रायल डिफेंस फोर्स (IDF) के हवाले कर दिया गया।
गोल्डिन की मौत 1 अगस्त 2014 को हुई थी—उसी दिन जब हमास ने उनके यूनिट पर हमला कर उन्हें अगवा कर लिया था। बाद में उनकी हत्या कर दी गई। वे 23 वर्ष के थे और ‘ऑपरेशन प्रोटेक्टिव एज’ के दौरान मारे गए 68 इज़रायली सैनिकों में से एक थे।
IDF अबू कबीर फॉरेंसिक इंस्टीट्यूट में DNA परीक्षण के बाद पहचान की औपचारिक पुष्टि करेगा, जिसके बाद उन्हें राष्ट्रीय सम्मान दिया जाएगा।
अब सबसे बड़ा सवाल—हमास ने 11 साल तक शव कैसे सुरक्षित रखा?
क्या गज़ा में आधुनिक शव संरक्षण की सुविधा है?
नहीं।
गज़ा पट्टी में:
- कोई उन्नत कोल्ड-स्टोरेज सुविधा नहीं
- कोई दीर्घकालीन पॉस्टमॉर्टम प्रिज़र्वेशन सिस्टम नहीं
- लगातार बमबारी से मेडिकल सिस्टम ध्वस्त
यहां तक कि हालिया युद्ध में शव रखने के लिए आइस-क्रिम ट्रक इस्तेमाल किए गए—क्योंकि अस्पतालों की मोर्चरी सिर्फ 8–10 शव ही रख सकती है।
तो 11 साल पुरानी बॉडी कैसे बची?
विशेषज्ञों के अनुसार इसके चार संभावित कारण हो सकते हैं:
हमास विशेष “सीलबंद भूमिगत चैंबर” का उपयोग करता है
हमास की सुरंगों में कई बार सीक्रेट स्टोरेज रूम मिले हैं, जिनमें:
- बेहद कम तापमान
- गहराई के कारण प्राकृतिक ठंडक
- हवा बंद वातावरण
- धातु के एयरटाइट कंटेनर
ऐसी जगहें शव को लंबे समय तक सड़ने नहीं देतीं।
1. ‘वैक्यूम पैकिंग’- गज़ा में हथियारों की तरह शव भी पैक किए जाते हैं
कई रिपोर्ट्स में कहा गया है कि हमास:
- शवों को प्लास्टिक व रबर-सील पैकिंग में बंद करता है
- अंदर ऑक्सीजन बिल्कुल नहीं पहुंचती
- ऑक्सीजन न मिलने पर शरीर तेजी से नहीं सड़ता
ये तकनीक हथियारों को स्टोर करने में भी उपयोग होती है।
2.शरीर पूरी तरह डिकम्पोज नहीं हुआ—सिर्फ “अस्थियाँ” संरक्षित की गईं
इज़रायल कई मामलों में “रेट्रीवल” के समय सिर्फ:
- हड्डियाँ
- कपड़ों के अवशेष
- डीएनए के अंश पाता है।
संभव है कि गोल्डिन का शव भी वर्षों पहले डिकम्पोज हो चुका था और हमास ने केवल अस्थियाँ संरक्षित रखी हों।
3.गहरे भूमिगत “पॉकेट्स” में प्राकृतिक ममीकरण
गज़ा की कुछ सुरंगों में:
- हवा स्थिर
- तापमान नियंत्रित
- नमी बेहद कम
ऐसी जगहों में शव “नेचुरल ममी” जैसा रूप ले लेते हैं और दशक भर टिके रहते हैं।
4. गज़ा की सच्चाई—शव रखने के लिए आइस-क्रिम ट्रक!
Reuters की रिपोर्ट में बताया गया:
अस्पताल मोर्चरी सिर्फ 10 शव रख सकती है
- ट्रकों के अंदर बच्चों की आइस-क्रिम के पोस्टर लगे होते हैं
- अंदर सफ़ेद कपड़ों में लाशें भरी होती हैं
- कई जगह 100 शवों की मास ग्रेव तैयार हुई
5. 20–30 शव टेंट में रखे जा रहे हैं
गज़ा के डॉक्टर यासिर अली ने कहा, “अगर युद्ध चलता रहा, तो दफनाने के लिए भी जगह नहीं बचेगी।”
इज़रायल में क्या हुआ? शव मिलने पर भावनात्मक लहर
- गोल्डिन की तस्वीर 11 साल से नेतन्याहू के दफ़्तर में लगी थी
- सैन्य कब्रिस्तान में इतना भारी जनसैलाब उमड़ा कि कई इलाकों में जाम लग गया
- सेना ने इसे “राष्ट्रीय सम्मान का क्षण” बताया
- अंतिम संस्कार देखने हजारों लोग पहुंचे
नेतन्याहू ने सैनिक से शव वापसी को बनाया था राजनीतिक मुद्दा
इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा, “राज्य की स्थापना से हमारी परंपरा है—युद्ध में शहीद हुए सैनिकों को हर हाल में घर लाया जाता है। हदार गोल्डिन की स्मृति सदैव हमारे बीच रहेगी।”
उन्होंने बताया कि 255 बंधकों में से अब तक 250 वापस लाए जा चुके हैं। गोल्डिन उन आखिरी पाँच शवों में से एक थे, जो गज़ा में फंसे थे।
परिवार का 11 साल लंबा इंतजार
गोल्डिन के परिवार ने वर्षों तक अभियान चलाया था। उनका कहना था कि, “हमारे बेटे को वापस लाना, इज़रायल की सैनिक परंपरा का मूल हिस्सा है।” इज़रायली सेना प्रमुख ने भी परिवार को “तीव्र प्रयास” का भरोसा दिया था।
रिसर्च इंजन
SIR के खिलाफ एकजुट हो रहे दक्षिण के राज्य, क्या असर होगा?
- 11 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट में SIR के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई होगी।
“SIR तमिलनाडु के 7 करोड़ वोटरों के अधिकारों को खतरे में डाल रहा है। यह भाजपा की साजिश है, जो वोट बैंक को प्रभावित करने के लिए डिजाइन की गई है।”
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