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चुनावी डायरी

बिहार : पवन सिंह की वापसी, क्या सम्राट चौधरी के लिए चुनौती लाएगी?

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उपेंद्र कुशवाहा ने पवन सिंह को गले लगाया, पुरानी कड़वाहट भुलाई। (फोटो क्रेडिट- पवन सिंह फेसबुक)
उपेंद्र कुशवाहा ने पवन सिंह को गले लगाया, पुरानी कड़वाहट भुलाई। (फोटो क्रेडिट- पवन सिंह फेसबुक)
  • भोजपुरी सुपर स्टार पवन सिंह ने उपेंद्र कुशवाहा और अमित शाह से मुलाकात करके BJP में वापसी कर ली।
  • पिछले साल पवन सिंह की वजह से काराकाट लोकसभा सीट से हार गए थे NDA के टिकट पर लड़े उपेंद्र कुशवाहा।
  • प्रशांत किशोर ने डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी को दो हत्याकांडों का प्रमुख अभियुक्त बताया था, BJP अब तक चुप।

पटना | स्थानीय संवाददाता

चुनाव के करीब खड़ी बिहार की सियासत में एक नया मोड़ सामने आया है जब भोजपुरी स्टार पवन सिंह की भाजपा में वापसी हो गई जिन्हें पिछले साल पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था।
पवन सिंह ने उपेंद्र कुशवाहा और अमित शाह से मंगलवार (30 सितंबर) को दिल्ली में मुलाकात की और इसकी जानकारी फेसबुक पर डालकर खलबली मचा दी। 
राजनीतिक विशेषज्ञ मान रहे हैं कि इसे न सिर्फ India गठबंधन के लिए चुनौती बढ़ सकती है, बल्कि खुद BJP के अंदर विशेषकर सम्राट चौधरी व उनके गुट के लिए यह ‘घर वापसी’ असहज करने वाली होगी।
बता दें कि 2024 में पवन सिंह व उपेंद्र कुशवाहा के झगड़े के चलते काराकाट लोकसभा सीट राजद के प्रत्याशी ने जीत ली थी। दूसरी ओर, अब तक डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी के समर्थन में पार्टी ने खड़े दिखने के लिए कोई बयान जारी नहीं किया है।
अमित शाह से पवन सिंह ने मुलाकात करके बीजेपी में वापसी कर ली। (फोटो क्रेडिट - पवन सिंह फेसबुक पोस्ट)

अमित शाह से पवन सिंह ने मुलाकात करके बीजेपी में वापसी कर ली। (फोटो क्रेडिट – पवन सिंह फेसबुक पोस्ट)

 

रणनीतिक जानकारी मान रहे हैं कि 2025 चुनाव से पहले राजपूत और युवा वोटरों को साधने के लिए BJP पवन सिंह पर दांव लगा रही है।
सूत्रों की मानें तो यह मुलाकात संयोग नहीं, बल्कि एक सुनियोजित रणनीति का हिस्सा है, जिसके तहत सम्राट चौधरी को बिहार बीजेपी के शीर्ष पद से हटाने की पटकथा लिखी जा रही है।
भाजपा इस समय प्रशांत किशोर के आरोपों से घिरी हुई है, जिसमें कहा गया है कि सम्राट चौधरी दो बड़े हत्याकांडों के प्रमुख अभियुक्त हैं और उन्हें गिरफ्तार किया जाना चाहिए।
जिसके बाद बीजेपी केंद्रीय नेतृत्व पूरे प्रकरण से खासा नाराज चल रहा है। 
इस मामले में बीजेपी ने अभी तक कोई आधिकारिक आदेश जारी नहीं किया है और विकल्पों को तलाश रही है। 
पवन सिंह ने वापसी की घोषणा फेसबुक पोस्ट डालकर की (screen grab - Pawan Singh's FB post)

पवन सिंह ने वापसी की घोषणा फेसबुक पोस्ट डालकर की (screen grab – Pawan Singh’s FB post)

उपेंद्र से होकर क्यों गुजरा BJP में वापसी का रास्ता?
पवन सिंह की भाजपा में वापसी का रास्ता RML प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा से मुलाकात से होकर गुजरा।  इन दोनों नेताओं के बीच पिछले साल काराकाट लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ने के बाद रार पैदा हो गई थी। 
दरअसल बीते साल कुशवाहा को NDA ने काराकाट से लोकसभा चुनाव का टिकट दिया था, जबकि पवन सिंह BJP से इसी सीट से टिकट मांग रहे थे, पार्टी ने उन्हें प. बंगाल की एक सीट से टिकट दिया था।
इस पर वे बागी होकर काराकाट से निदर्लीय लड़ गए थे और बड़ी तादाद में उन्होंने कुशवाहा के वोट काटे थे।
इस चुनाव में महागठबंधन के प्रत्याशी राजाराम सिंह जीत गए और पवन सिंह दूसरे नंबर पर रहे व कुशवाहा की करारी हार हुई थी
भाजपा ने वापसी की पुष्टि की
भाजपा के बिहार प्रभारी विनोद तावड़े ने भी बयान देकर इसे पुष्ट कर दिया, उन्होंने कहा- “पवन सिंह बीजेपी में हैं, बीजेपी में रहेंगे।”
सूत्रों के हवाले से कहा जा रहा है कि कुशवाहा और पवन सिंह की मुलाकात अमित शाह के कहने पर हुई थी।
डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी (क्रेडिट- @samrat4bjp)

डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी (क्रेडिट- @samrat4bjp)

सम्राट पर अब तक BJP चुप, क्या पवन बनेंगे विकल्प ?
गौरतलब है कि प्रशांत किशोर ने सोमवार को सम्राट चौधरी पर गंभीर आरोप लगाते हुए उन्हें तारापुर हत्याकांड व शिल्पी-ललित हत्याकांड का मुख्य अभियुक्त बताया था, जिसका भाजपा ने कोई आधिकारिक जवाब नहीं दिया है।
हालांकि पार्टी के दो वरिष्ठ नेता आरके सिंह व अश्वनी चौबे ने आरोपों को लेकर सम्राट के खिलाफ बयान दिए हैं जो पार्टी के अंदर सम्राट के खिलाफ बनते माहौल को दर्शाते हैं।
यह भी ध्यान देने योग्य है कि 30 सितंबर को भाजपा के NDA में सहयोगी दल के नेता चिराग पासवान ने कहा, “पीके सबूत दें, यह जांच का विषय है।” माना जा रहा है कि यह सम्राट के बचाव में नहीं, बल्कि सावधानी भरा रुख है। 
सिर्फ छह साल में पार्टी के प्रमुख नेता बन जाने के चलते और गैर RSS पृष्ठभूमि वाले सम्राट को लेकर पार्टी कार्यकर्ताओं का एक गुट विरोध में रहा है। साथ ही, सम्राट के स्वभाव और कार्यशैली के कारण भी पार्टी में भीतर असंतोष बढ़ता गया।
यह असंतोष अब दिल्ली तक पहुंच चुका है, और कहा जा रहा है कि सम्राट के साथ अब बिहार बीजेपी का कोई बड़ा नेता खड़ा नहीं है।

 पवन सिंह – बड़े जनाधार वाले भोजपुरी गायक : भोजपुरी सुपरस्टार पवन सिंह का प्रभाव बिहार-पूर्वी UP के भोजपुरी वोटरों (2-3 करोड़) और युवाओं (18-35 आयु वर्ग, 40% वोटर) पर है।

2024 में काराकाट से स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में 26.7% वोट पाकर हारे, लेकिन उनकी रैलियों में 1 लाख से ज्यादा भीड़ ने जनाधार दिखाया।

 

उपेंद्र कुशवाहा को भी जानें : OBC नेता, राजद-जदयू में आते-जाते रहने का रिकॉर्ड 

BJP में पवन की एंट्री उपेंद्र को मनाकर करवाई गई, इससे यह स्पष्ट होता है कि वे NDA के लिए कितने अहम हैं।

1990 से बिहार राजनीति में सक्रिय उपेंद्र कुशवाहा एक ओबीसी नेता हैं। इनकी पार्टी RLSP (राष्ट्रीय लोक समता पार्टी ) का 2021 में जदयू में विलय हो चुका है। हालांकि इससे पहले ये राजद से गठबंधन में थे।

2014 में RLSP के साथ NDA में शामिल हुए, 6 सीटें जीतीं। 2019 में RJD से गठबंधन किया और सीटें नहीं जीत पाए।

फिर 2021 में JDU में विलय से NDA में लौटे और 2024 में काराकाट से लड़े लेकिन हार गए।

 

BJP को लाभ और सम्राट के लिए चुनौती

  • वोट बैंक मजबूती: पवन के जरिए राजपूत-भोजपुरी वोटरों को साधा जा सकता है।

 

  • चुनौती का कारण: अगर प्रशांत किशोर, सम्राट किशोर पर अपने आरोपों के साथ आगे बढ़ते हैं तो आगामी चुनावों में नुकसान हो सकता है। ऐसे में पवन की स्टार पावर के जरिए कुछ सीटों पर जीतकर किसी भी संभावित नुकसान को कम किया जा सकेगा।

 

  • आंतरिक रणनीति: सम्राट ने पवन को लाया था, लेकिन उनकी हार और PK के हमले से उनकी स्थिति डगमगाई। BJP अब पवन को आगे कर सम्राट को साइडलाइन कर सकती है।

बोलते पन्ने.. एक कोशिश है क्लिष्ट सूचनाओं से जनहित की जानकारियां निकालकर हिन्दी के दर्शकों की आवाज बनने का। सरकारी कागजों के गुलाबी मौसम से लेकर जमीन की काली हकीकत की बात भी होगी ग्राउंड रिपोर्टिंग के जरिए। साथ ही, बोलते पन्ने जरिए बनेगा .. आपकी उन भावनाओं को आवाज देने का, जो अक्सर डायरी के पन्नों में दबी रह जाती हैं।

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दो सीटें जीतने के बाद भी NDA सरकार में सीमांचल को सीमित प्रतिनिधित्व, अररिया की जनता नाराज

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  • अररिया जिले को NDA सरकार के मंत्रीमंडल में कोई मंत्री नहीं मिला जबकि पहले हर सरकार यहां से मंत्री बनाती आई है।

फारबिसगंज(अररिया) |  मुबारक हुसैन
नई सरकार के गठन के साथ एनडीए समर्थकों में जहां उत्साह का माहौल है, वहीं अररिया जिले में निराशा गहराती दिख रही है। इसका कारण है कि जिले से किसी भी विधायक को मंत्रिमंडल में स्थान नहीं मिला, जबकि हर सरकार में अररिया से कैबिनेट मंत्री बनते आए हैं। इस बार पूर्णिया से विधायक लेशी सिंह को जरूर मंत्री बनाया गया है पर NDA मंत्रीमंडल में घटे सीमांचल के प्रतिनिधित्व से आम लोग नाराज हैं।

बीजेपी ने दो सीट जीतीं फिर भी उपेक्षित
अररिया जिले की कुल छह विधानसभा सीटों में से नरपतगंज और सिकटी में भाजपा ने जीत दर्ज की। खासकर सिकटी से लगातार हैट्रिक के साथ छठी बार विधानसभा पहुंचे वरिष्ठ भाजपा नेता विजय मंडल के मंत्री बनने की अटकलें तेज थीं। पिछली सरकार में उन्होंने बिहार के आपदा प्रबंधन मंत्री के रूप में कार्य किया था और सीमांचल सहित कोसी अंचल के मुद्दों को मजबूती से उठाया था। ऐसे में माना जा रहा था कि अनुभव और लगातार जीत के आधार पर उन्हें फिर से मंत्रिमंडल में जगह मिलेगी। लेकिन इस बार उन्हें भी बाहर रखा गया, जिससे जिले में मायूसी और राजनीतिक बहस तेज हो गई है।

एनडीए का कमजोर प्रदर्शन भी बनी वजह?
पिछले दो चुनावों की तुलना में इस बार जिले में एनडीए का प्रदर्शन कमजोर रहा है। फारबिसगंज और रानीगंज जैसी परंपरागत सीटों पर एनडीए को हार का सामना करना पड़ा। दो दशक से अधिक समय तक इन दोनों सीटों पर एनडीए का कब्जा रहा था। रानीगंज में जहां जदयू विजयी होती रही, वहीं फारबिसगंज भाजपा की सुरक्षित मानी जाने वाली सीट रही है। विश्लेषकों का कहना है कि छह में से सिर्फ दो सीटें जीत पाने की स्थिति एनडीए के लिए अनुकूल नहीं रही, जिसका असर मंत्री पद के चयन में दिखा है।

अररिया को मिलता रहा है प्रतिनिधित्व
स्थानीय राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि चाहे राज्य में महागठबंधन सरकार रही हो या एनडीए की, अररिया को हमेशा मंत्री पद के स्तर पर प्रतिनिधित्व मिलता रहा है। जिले के दिग्गज नेताओं जैसे सरयू मिश्रा, मोइदुर रहमान, अजीमुद्दीन, तस्लीमुद्दीन, सरफराज आलम, शाहनवाज आलम, शांति देवी और रामजी दास ऋषिदेव आदि ने पूर्व में मंत्री पद संभालकर जिले का प्रतिनिधित्व किया है। इसी क्रम को पिछले कार्यकाल में विजय कुमार मंडल ने आगे बढ़ाया पर इस बार उन्हें मंत्री नहीं बनाया गया।

सीमांचल की आवाज़ कमजोर होने की आशंका
स्थानीय लोगों का कहना है कि सीमांचल क्षेत्र पहले से ही विकास के मामले में पिछड़ा माना जाता है। ऐसे में मंत्री पद जैसा प्रतिनिधित्व जिले की समस्याओं को सरकार तक अधिक प्रभावी ढंग से पहुंचाने का साधन रहा है। इस बार किसी भी नेता को मंत्रिमंडल में शामिल न किए जाने से आम लोगों में चिंता है कि जिले की आवाज राजधानी में कमजोर पड़ सकती है।

क्या कहते हैं पार्टी कार्यकर्ता
अररिया को कैबिनेट में प्रतिनिधित्व न मिलने को लेकर NDA के घटक दलों के कार्यकर्ताओं का मानना है कि इससे राजनीतिक रूप से गलत संदेश जा सकता है। हालांकि कार्यकर्ता यह भी कह रहे हैं कि अगर 5 साल के कार्यकाल में NDA अपना कैबिनेट विस्तार करती है तो जरूर अररिया को मंत्री मिलेगा।


 

NDA सरकार के जिलावार कैबिनेट मंत्रियों की सूची

1. सहयोगी कोटा – संतोष सुमन – HAM – (गया)
2. सहयोगी कोटा – संजय पासवान – LJPR- (बेगूसराय)
3. सहयोगी कोटा – संजय सिंह – LJPR – ( वैशाली)
4. सहयोगी कोटा – दीपक प्रकाश – RLM – ( वैशाली )
5. भाजपा कोटा – रामकपाल यादव – BJP ( पटना)
6. भाजपा कोटा – संजय सिंह टाइगर – BJP ( आरा )
7. भाजपा कोटा – अरुण शंकर प्रसाद – BJP ( मधुबनी)
8. भाजपा कोटा – सुरेन्द्र मेहता – BJP, ( बेगूसराय)
9. भाजपा कोटा – नारायण प्रसाद – BJP ( पश्चिम चंपारण)
10. भाजपा कोटा – सम्राट चौधरी – डिप्टी सीएम ( मुंगेर )
11. भाजपा कोटा – विजय सिन्हा – डिप्टी सीएम – ( लखीसराय)
12. भाजपा कोटा – दिलीप जायसवाल – BJP ( किशनगंज )
13. भाजपा कोटा – मंगल पांडेय – BJP ( सीवान)
14. भाजपा कोटा – नितिन नवीन – BJP ( पटना)
15. भाजपा कोटा – रमा निपद – BJP ( मुजफ्फरपुर)
16. भाजपा कोटा – लखेंद्र पासवान – BJP ( वैशाली)
17. भाजपा कोटा – श्रेयसी सिंह – BJP ( जमुई )
18. भाजपा कोटा – प्रमोद कुमार चंद्रवंशी – BJP ( जहानाबाद)
19. JDU कोटा – नीतीश कुमार – मुख्यमंत्री ( नालंदा)
20. JDU कोटा – विजय कुमार चौधरी – JDU ( समस्तीपुर)
21. JDU कोटा – अशोक चौधरी – JDU (शेखपुरा)
22. JDU कोटा – विजेन्द्र यादव – JDU ( सुपौल)
23. JDU कोटा – श्रवण कुमार – JDU ( नालंदा)
24. JDU कोटा – जमा खान – JDU ( कैमूर)
25. JDU कोटा – लेशी सिंह – JDU ( पूर्णिया)
26. JDU कोटा – मदन सहनी – JDU ( दरभंगा)

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बिहार : नई सरकार की शपथ के दिन मौन व्रत पर बैठे प्रशांत किशोर

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गांधी प्रतिमा के सहयोगियों संग बैठे प्रशांत किशोर।
गांधी प्रतिमा के सहयोगियों संग बैठे प्रशांत किशोर।
  • 20 नवंबर सुबह 11:14 मिनट से मौन व्रत शुरू हुआ तो 21 नवंबर को सुबह 11:15 बजे तक चलेगा।

बेतिया (पश्चिमी चंपारण) |

बिहार में गुरुवार को नीतीश कुमार ने 10वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, इसी दिन को प्रशांत किशोर ने जनसुराज की चुनावी रणनीति की गड़बड़ियों से जुड़े प्रायश्चित के लिए चुना।

दो दिन पहले जनसुराज के संस्थापक प्रशांत किशोेर ने मीडिया के सामने कहा था कि वे जनता तक अपने संदेश को ठीक ढंग से पहुंचा नहीं पाए, जिसके लिए वे प्रायश्चित स्वरूप एक दिन का मौत व्रत रखेंगे।

इसके तहत प्रशांत किशोर ने आज (20 नवंबर) सुबह सबा 11 बजे पश्चिमी चंपारण के भितिहरवा स्थित गांधी आश्रम में मौन उपवास शुरू किया जो अगले दिन इसी समय तक चलेगा। अपने सहयोगियों के साथ वे गांधी प्रतिमा के पास बैठे मौत उपवास अकेले कर रहे हैं।

जनसुराज पार्टी ने एक्स पर प्रशांत किशोर की तस्वीरें साझा करते हुए लिखा ‘गांधी आश्रम , भितिहरवा में एक दिन के मौन उपवास के साथ बिहार में बदलाव की नई शुरुआत।’

बता दें कि बिहार विधानसभा चुनाव में प्रशांत किशोर की पार्टी एक भी सीट नहीं जीत सकी और उन्हें 3.34 प्रतिशत वोट मिला।

 

गांधी के आंदोलन के खिलाफ रहे हैं PK

गांधी के रास्ते पर चलते हुए मौन व्रत करके आत्मबल और आत्म चिंतन कर रहे प्रशांत किशोर कुछ मामलों में गांधीवादी विचारधारा से उलट राय रखते हैं। प्रशांत किशोर अक्सर अपने भाषणों में कहते रहे हैं कि वे महात्मा गांधी के आंदोलन करने के तरीकों का समर्थन नहीं करते।

वे कहते हैं कि दीर्घकालिक विकास और व्यवस्था में बदलाव के लिए आंदोलन आधारभूत तरीका नहीं है, बल्कि वे ऐसी चुनावी प्रक्रिया के समर्थक हैं जिसमें सही लोग चुनकर नेतृत्व करें।

उनका कहना है कि फ्रांस रेवोल्यूशन को छोड़कर इतिहास में किसी भी आंदोलन या क्रांति ने किसी भी देश में लंबे समय तक टिकने वाले विकास का रास्ता नहीं बनाया है।

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बिहार : बिना चुनाव लड़े ही कैबिनेट मंत्री बने सांसद और केंद्रीय मंत्री के बेटे.. नई NDA सरकार का ‘परिवारवाद’ जानिए

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NDA के सहयोगी दल RLM और HAM के प्रमुख नेताओं के बेटों को कैबिनेट में जगह दी गई, दोनों ही विधायक नहीं हैं।
NDA के सहयोगी दल RLM और HAM के प्रमुख नेताओं के बेटों को कैबिनेट में जगह दी गई, दोनों ही विधायक नहीं हैं।
  • बिना चुनाव लड़े उपेंद्र कुशवाहा के बेटे दीपक प्रकाश बने मंत्री, इंजीनियरिंग छोड़ राजनीति में रखा कदम।
  • नई नीतीश सरकार में सॉफ्टवेयर इंजीनियर से नेता बने दीपक को रालोमो कोटे से मिली जगह।

  • कुशवाहा परिवार में डबल खुशी—मां स्नेहलता बनीं विधायक और बेटा दीपक बने मंत्री।

पटना |

बिहार (Bihar) में नई सरकार के गठन के साथ ही एक नाम ने सबका ध्यान खींचा है। NDA के सहयोगी दल राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM) के सुप्रीमो और राज्यसभा सांसद उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) के बेटे दीपक प्रकाश (Deepak Prakash) को नीतीश कैबिनेट में मंत्री बनाया गया है।

हैरान करने वाली बात यह है कि 37 वर्षीय दीपक ने यह विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा था, फिर भी उन्हें रालोमो कोटे से मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है। उधर, NDA ने अपने दूसरी सहयोगी HAM चीफ व केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी के भी बेटे को कैबिनेट मंत्री बनाया है, जबकि पार्टी से पांच विधायक जीतकर आए हैं। विधानपार्षद संतोष सुमन पिछली सरकार में भी मंत्री थे। जानिए NDA सरकार में परिवारवाद का हिस्सा कौन-कौन से चेहरे हैं।

उपेंद्र कुशवाहा को बेटे को NDA सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया गया है।

उपेंद्र कुशवाहा को बेटे दीपक प्रकाश को NDA सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया गया है।

सॉफ्टवेयर इंजीनियर से राजनेता तक का सफर

दीपक प्रकाश का जन्म 22 अक्तूबर 1989 को हुआ था। उनकी शुरुआती पढ़ाई पटना में हुई। इसके बाद उन्होंने मणिपाल से कंप्यूटर साइंस में बीटेक (B.Tech) किया। तकनीकी क्षेत्र से ताल्लुक रखने वाले दीपक ने 2011 से 2013 तक बतौर सॉफ्टवेयर इंजीनियर काम किया और बाद में अपना बिजनेस शुरू किया। राजनीति में उनकी सक्रियता 2019-20 के आसपास शुरू हुई, जब उन्होंने अपने पिता के संगठनात्मक कार्यों में हाथ बंटाना शुरू किया।

अपनी पत्नी को चुनावी सिंबल देते उपेंद्र कुशवाहा

अपनी पत्नी को चुनावी सिंबल देते उपेंद्र कुशवाहा (फाइल फोटो)

मां पहली बार बनीं विधायक, बेटा मंत्री बन गया

NDA में उपेंद्र कुशवाहा की अहमियत को इस बात से आंका जा सकता है कि पिछले साल लोकसभा चुनाव हार जाने के बाद उन्हें सीधे राज्यसभा भेज दिया गया। उनकी पार्टी RLM को NDA ने इस विधानसभा चुनाव में 6 सीटें दी थीं, जिनमें से पार्टी ने 4 पर जीत दर्ज कर ली। सासाराम सीट पर उपेंद्र कुशवाहा ने अपनी पत्नी स्नेहलता को चुनाव लड़ाया जो जीतकर पहली बार विधायक बनी हैं। अब उनके बेटे को बिना चुनाव लड़े ही कैबिनेट में जगह मिल गई है। नियम के मुताबिक, उन्हें 6 महीने के भीतर किसी सदन का सदस्य बनना होगा, ऐसे में संभव है कि उन्हें MLC बना दिया जाए।


जीतनराम मांझी (तस्वीर - @NandiGuptaBJP)

जीतनराम मांझी (तस्वीर – @NandiGuptaBJP)

मांझी ने बेटे को मंत्री बनवाया, बहू-समधन विधायक बने

सिर्फ कुशवाहा ही नहीं, एनडीए के दूसरे सहयोगी दल ‘हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा-सेक्युलर’ (HAM) के प्रमुख और केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी (Jitan Ram Manjhi) के परिवार की भी पार्टी में बड़ी हिस्सेदारी है। मांझी की पार्टी को NDA ने 6 सीटें दीं, जिसमें दो सीट पर उन्होंने अपनी बहू और समधन को टिकट दिया। उनकी पार्टी ने कुल 5 सीटें जीत लीं। फिर भी मांझी ने अपने कोटे से NDA सरकार में मंत्री अपने पांचों विधायक को नहीं बनाया बल्कि अपने बेटे MLC संतोष सुमन को बनवाया है।

शपथ के बाद हस्ताक्षर करते कैबिनेट मंत्री संतोष कुमार सुमन जो मांझी के बेटे हैं।

शपथ के बाद हस्ताक्षर करते कैबिनेट मंत्री संतोष कुमार सुमन जो मांझी के बेटे हैं। (Facebook/santosh kumar suman)

1. बहू और समधन जीतीं: गया के इमामगंज सीट से मांझी की बहू और पार्टी अध्यक्ष संतोष सुमन (Santosh Suman) की पत्नी दीपा मांझी (Deepa Manjhi) विधायक बनी हैं। वहीं, बाराचट्टी सीट से उनकी समधन ज्योति देवी (Jyoti Devi) ने जीत दर्ज की है।

2. बाहरी को बनाया नेता: हालांकि, परिवारवाद के आरोपों के बीच एक दिलचस्प फैसला लेते हुए, HAM ने अपने परिवार से बाहर के व्यक्ति, सिकंदरा विधायक प्रफुल्ल कुमार मांझी (Prafull Kumar Manjhi) को विधायक दल का नेता चुना है।


अपने भांजे सिंबल देते चिराग पासवान

अपने भांजे सिंबल देते चिराग पासवान (फाइल फोटो)

चिराग ने भी परिवार पर ही जताया भरोसा

एनडीए के एक और घटक दल लोक जनशक्ति पार्टी-रामविलास (LJP-Ram Vilas) के प्रमुख चिराग पासवान (Chirag Paswan) ने भी इस चुनाव में अपने परिवार पर भरोसा जताया था और अपने भांजे को टिकट दिया था। कुल मिलाकर, बिहार की नई सरकार में सहयोगी दलों के परिवारों का वर्चस्व साफ दिखाई दे रहा है।

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