मेरी सुनो
इनसे सीखो : बच्चे बिहार से बाहर हैं इसलिए कम मेहनत वाली खेती अपनाई, अब लाखों कमा रहे
 
																								
												
												
											- गैर पारंपरिक खेती अपनाकर मिसाल बने शेखपुरा के किसान चंद्रशेखर।
- दो बीघा जमीन में नीबू की खेती कर रहे, पहले धान बोते थे किसान।
चुनावी डायरी
रोहतास: दशकों से पुल की मांग कर रहे ग्रामीणों का ऐलान- पुल नहीं तो वोट नहीं
 
														- काव नदी पर कई दशकों से पुल नहीं होने के चलते ग्रामीण निराश।
- पुल नहीं तो वोट नहीं का नारा देकर चुनाव बहिष्कार की घोषणा की।
- मौके पर प्रशासन की टीम ने पहुंचकर समझाया पर मांग पर अड़े।
सासाराम। अविनाश श्रीवास्तव
बिहार के रोहतास जिले के ग्रामीणों कई साल से पुल की मांग पूरी न होने को लेकर इस बार के विधानसभा चुनाव में वोट न देने का ऐलान किया है। काराकाट विधानसभा क्षेत्र में आने वाले सिकरियांं गांव ने 22 अक्तूबर को जब ऐलान किया तो सूचना मिलने पर प्रशासन की टीम ग्रामीणों को समझाने पहुंची, पर वे अपनी मांग पर अड़े हुए हैं।
दरअसल बिक्रमगंज नगर परिषद के वार्ड 26 से होकर गुजरने वाली काव नदी पर कई दशकों से पुल नहीं बनने से लोग हर साल बाढ़ की स्थिति का सामना करने को मजबूर हैं। ग्रामीणों में ‘पुल नहीं तो वोट नहीं’ के पोस्टर के साथ प्रदर्शन किया जिसमें स्कूली बच्चे भी शामिल थे।
पुल न होने से सिकरियां गांव के लोगों को बांस के बने पुल के जरिए कच्ची सड़क से होकर गांव तक जाना पड़ता है। ग्रामीणों ने कहा कि आजादी के बाद से अब तक काव नदी पर पुल व गांव तक जाने के लिए पक्की सड़क नहीं बनी। वे दर्जनों चुनावों में नेताओं से पुल की मांग कर-करके अब थक चुके हैं।
प्रदर्शन कर रहे ग्रामीणों ने प्रशासनिक अधिकारी से कहा कि वे कई बार अपने जनप्रतिनिधि को शिकायत भेज चुके हैं पर कोई सुनवाई नहीं हुई इसलिए इस बार के चुनाव में वे वोट नहीं देंगे। अब देखना होगा कि इस क्षेत्र के लोगों को प्रशासन वोटिंग के लिए कैसे मनाता है।
मेरी सुनो
बिहार : सिंधिया-सरौरा नदी की मछलियों पर ‘हक’ की लड़ाई में मछुआरों का प्रदर्शन
 
														- बड़हिया प्रखंड के पाली गांव के मछुआरा समुदाय ने डीएम के सामने अपनी मांगें रखीं।
लखीसराय | गोपाल प्रसाद आर्य
मछली पकड़कर अपने परिवार को पाल रहे पाली गांव के सैकड़ों महिला-पुरुष सोमवार को अपनी मांगों पर धरना करने सदर मुख्यालय पहुंचे।
इन ग्रामीणों की डीएम से नाराजगी का कारण इनकी जीविका पर असर डाल रहा “शिकार माही कार्ड” है, जो इनमें से अधिकांश लोगों को जारी नहीं हुआ है जबकि पड़ोसी गांव के कुछ लोगों को यह कार्ड दस साल पहले मिल गया।
जिसके चलते सिंधिया-सरौरा नदी में पड़ोसी गांव ऐजनीघाट के लोग आकर मछली पकड़ ले जाते हैं, जिससे पाली गांव के 300 परिवार की आमदनी पर असर पड़ रहा है। दोनों गांवों के लोगों के बीच लगातार झगड़े बने हुए हैं।
जिले के बड़हिया प्रखंड के पाली गांव के मछुआरा समुदाय का आरोप है कि सिंधिया-सरौरा नदी पर मछली मारने वाले कार्ड ऐसे लोगों को अवैध रूप से दे दिए गए जो पारंपरिक रूप से इस काम से जुड़े नहीं हैं।
मछुआरों का कहना है कि ऐसे 68 कार्डों को तुरंत निरस्त किया जाए व उन्हें कार्ड जारी हों। गौरतलब है कि इस मामले में ऐजनीघाट के लोगों का पक्ष सामने नहीं आया है।
सोमवार को धरने पर आए सैकड़ों ग्रामीणों ने जिलाधिकारी से शीघ्र कार्रवाई की मांग की।
धरना देने आए प्रतिनिधि रामौतार साहनी का कहना है कि –
“कई दशकों से पाली गांव के लोगों को सिंधिया सरौरा नदी में मछली मारने का पारंपरिक अधिकार मिला हुआ है। 2014 में तब के डीएम ने “शिकार माही कार्ड” को लेकर जो बंटवारा किया था, उसे बदला जाए। पाली गांव के लोगों को उनका हक मिले”
मेरी सुनो
जहानाबाद : गांव में हिंसक हो गए बंदर, बच्ची के हाथ से मांस नोंचा
 
														- टेहटा में हिंसक बंदरों का झुंड तीन महीने में बड़ी संख्या में लोगों को काट चुका है।
- बच्ची पर जानलेवा हमले के बाद ग्रामीणों ने बंदरों को जंगल में छुड़वाने की मांग की।
मखदुमपुर|
प्रखंड से पांच किलोमीटर दूर बसे टेहटा गांव में खेल रही एक पांच साल की बच्ची पर बंदरों ने हमला कर दिया और हाथ का मांस नोच लिया। बच्ची को गंभीर हाल में अस्पताल ले जाया गया।
अब तक शहरी क्षेत्रों में बंदरों के उत्पात की घटनाएं आती थीं पर बीते तीन साल में जहानाबाद के गांवों में भी बंदरों के हमले की घटनाएं बढ़ गई हैं।
स्थानीय समाजिक कार्यकर्ता के मुताबिक, बीते तीन महीने में सिर्फ टेहटा गांव में एक दर्जन से ज्यादा लोगों को बंदर के हमले ने गंभीर रूप से घायल किया है।
3 अक्तूबर को भी बंदरों के झुंड ने एक बच्ची पर हमला कर दिया, जिसकी जान पर बन आई। मौके पर मौजूद लोगों का कहना था कि अगर बच्ची को भगाने के लिए सब लोग इकट्ठे न हो गए होते तो शायद उसे बंदर मार ही डालते।
टेहटा के निवासी विश्राम साव ने बताया कि उनकी छोटी बेटी अब स्वस्थ लेकिन सहमी हुई है।
अधिवक्ता सह सामाजिक कार्यकर्ता मुकेश कुमार गौतम उर्फ मुकेश चंद्रवंशी का कहना है कि अभी तक अधिकांश हमले महिलाओं एवं छोटे बच्चों पर हुए हैं। बंदरों के हमले से कई महिलाएं जख्मी भी हुईं, कुछ के हाथ-पैर भी टूट गए क्योंकि वे बचने के लिए भागते हुए गिर गईं।
इलाके के बुजुर्ग भी बंदरों के चलते बाहर निकलते हुए डंडा हाथ में लेकर चलने लगे हैं।
स्थानीय लोगों ने जिला प्रशासन से मांग की है कि इन बंदरों को पकड़कर जंगली इलाके में छोड़ा जाए।
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