Connect with us

मेरी सुनो

इनसे सीखो : बच्चे बिहार से बाहर हैं इसलिए कम मेहनत वाली खेती अपनाई, अब लाखों कमा रहे

Published

on

प्रगतिशील किसान चंद्रशेखर
प्रगतिशील किसान चंद्रशेखर
  • गैर पारंपरिक खेती अपनाकर मिसाल बने शेखपुरा के किसान चंद्रशेखर।
  • दो बीघा जमीन में नीबू की खेती कर रहे, पहले धान बोते थे किसान।
अरियरी (शेखपुरा) |  प्रदीप कुमार 
शेखपुरा के एक किसान ने अपने बच्चों के बिहार से बाहर रहने के चलते अपनी पारंपरिक खेती के तरीके को बदल दिया। बढ़ती उम्र में बहुत ज्यादा मेहनत न कर पाने के चलते खेती का तरीका बदला पर उसका लाभ उन्हें बेहतर कमाई के रूप में मिलने लगा है। आज वे अपने जैसे दूसरे किसानों के लिए मिसाल बन गए हैं।
अरियरी प्रखंड के सनैया गांव के किसान चंद्रशेखर कुमार ने वैज्ञानिक तरीके से नींबू की खेती अपनाई, अब वे अच्छी कमाई कर रहे हैं।
शेरपुरा में नीबू की खेती।

शेरपुरा में नीबू की खेती।

चंद्रशेखर ने बताया कि उनका बेटा दूसरे राज्य में नौकरी करता है, ऐसे में वह खेती में हाथ नहीं बटा सकता था। एक दिन उसने कहा कि ‘पापा आप जितना काम कर पाओ, उसके हिसाब से खेती करो।’ चंद्रशेखर कहते हैं कि बेटे की इस बात पर उन्हें तो कुछ नहीं सूझा क्योंकि हमेशा से वे धान-गेहूं ही बोते आ रहे थे।
उन्होंने आगे बताया कि बेटा पढ़ा-लिखा है, उसने अरियरी के कृषि विज्ञान केंद्र पर जाकर नई खेती के बारे में सीखा और फिर मुझे सिखाया। सबसे पहले अरियरी कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक प्रमोद कुमार चौधरी ने आकर उनके खेत का निरीक्षण किया और तकनीकी सलाह दीं।
 किसान चंद्रशेखर ने बताया कि शुरुआत में मेहनत ज्यादा लगी पर कुछ साल में पौधे फल देने लगे।
हर साल में एक बार पेड़ों पर नीबू आते हैं, उन्हें पेड़ों के रखरखाव के लिए कुछ कीटनाशकों का छिड़काव करना होता है, ये दवाएं उन्हें स्थानीय बाजार में आसानी से मिल जाती हैं। उन्होंने बताया कि अब व्यापारी खुद शेखपुरा बाजार से आकर उनसे नींबू खरीद ले जाते हैं। उन्हें बाजार जाने की जरूरत नहीं पड़ती।
 किसान  चंद्रशेखर की सफलता उनके गांव के दूसरे किसानों के लिए प्रेरणा बन गई है। वे कहते हैं कि बाहर नौकरी कर रहे बच्चों वाले किसान भी कम मेहनत वाली फसल अपनाकर अच्छी कमाई कर सकते हैं।”

बोलते पन्ने.. एक कोशिश है क्लिष्ट सूचनाओं से जनहित की जानकारियां निकालकर हिन्दी के दर्शकों की आवाज बनने का। सरकारी कागजों के गुलाबी मौसम से लेकर जमीन की काली हकीकत की बात भी होगी ग्राउंड रिपोर्टिंग के जरिए। साथ ही, बोलते पन्ने जरिए बनेगा .. आपकी उन भावनाओं को आवाज देने का, जो अक्सर डायरी के पन्नों में दबी रह जाती हैं।

चुनावी डायरी

रोहतास: दशकों से पुल की मांग कर रहे ग्रामीणों का ऐलान- पुल नहीं तो वोट नहीं

Published

on

  • काव नदी पर कई दशकों से पुल नहीं होने के चलते ग्रामीण निराश।
  • पुल नहीं तो वोट नहीं का नारा देकर चुनाव बहिष्कार की घोषणा की।
  • मौके पर प्रशासन की टीम ने पहुंचकर समझाया पर मांग पर अड़े।

 

सासाराम। अविनाश श्रीवास्तव

बिहार के रोहतास जिले के ग्रामीणों कई साल से पुल की मांग पूरी न होने को लेकर इस बार के विधानसभा चुनाव में वोट न देने का ऐलान किया है।  काराकाट विधानसभा क्षेत्र में आने वाले सिकरियांं गांव ने 22 अक्तूबर को जब ऐलान किया तो सूचना मिलने पर प्रशासन की टीम ग्रामीणों को समझाने पहुंची, पर वे अपनी मांग पर अड़े हुए हैं।

दरअसल बिक्रमगंज नगर परिषद के वार्ड 26 से होकर गुजरने वाली काव नदी पर कई दशकों से पुल नहीं बनने से लोग हर साल बाढ़ की स्थिति का सामना करने को मजबूर हैं। ग्रामीणों में ‘पुल नहीं तो वोट नहीं’ के पोस्टर के साथ प्रदर्शन किया जिसमें स्कूली बच्चे भी शामिल थे।

पुल न होने से सिकरियां गांव के लोगों को बांस के बने पुल के जरिए कच्ची सड़क से होकर गांव तक जाना पड़ता है। ग्रामीणों ने कहा कि आजादी के बाद से अब तक काव नदी पर पुल व गांव तक जाने के लिए पक्की सड़क नहीं बनी। वे दर्जनों चुनावों में नेताओं से पुल की मांग कर-करके अब थक चुके हैं।

चचरी पुल के पास खड़ा ग्रामीण अपनी समस्या बताता हुआ।

चचरी पुल के पास खड़ा ग्रामीण अपनी समस्या बताता हुआ।

प्रदर्शन कर रहे ग्रामीणों ने प्रशासनिक अधिकारी से कहा कि वे कई बार अपने जनप्रतिनिधि को शिकायत भेज चुके हैं पर कोई सुनवाई नहीं हुई इसलिए इस बार के चुनाव में वे वोट नहीं देंगे। अब देखना होगा कि इस क्षेत्र के लोगों को प्रशासन वोटिंग के लिए कैसे मनाता है।

Continue Reading

मेरी सुनो

बिहार : सिंधिया-सरौरा नदी की मछलियों पर ‘हक’ की लड़ाई में मछुआरों का प्रदर्शन

Published

on

मछुआरा समाज के लोग अपनी मांगों को लेकर पहुंचे
  • बड़हिया प्रखंड के पाली गांव के मछुआरा समुदाय ने डीएम के सामने अपनी मांगें रखीं।

लखीसराय | गोपाल प्रसाद आर्य

मछली पकड़कर अपने परिवार को पाल रहे पाली गांव के सैकड़ों महिला-पुरुष सोमवार को अपनी मांगों पर धरना करने सदर मुख्यालय पहुंचे।

इन ग्रामीणों की डीएम से नाराजगी का कारण इनकी जीविका पर असर डाल रहा “शिकार माही कार्ड” है, जो इनमें से अधिकांश लोगों को जारी नहीं हुआ है जबकि पड़ोसी गांव के कुछ लोगों को यह कार्ड दस साल पहले मिल गया।

जिसके चलते सिंधिया-सरौरा नदी में पड़ोसी गांव ऐजनीघाट के लोग आकर मछली पकड़ ले जाते हैं, जिससे पाली गांव के 300 परिवार की आमदनी पर असर पड़ रहा है। दोनों गांवों के लोगों के बीच लगातार झगड़े बने हुए हैं।

जिले के बड़हिया प्रखंड के पाली गांव के मछुआरा समुदाय का आरोप है कि सिंधिया-सरौरा नदी पर मछली मारने वाले कार्ड ऐसे लोगों को अवैध रूप से दे दिए गए जो पारंपरिक रूप से इस काम से जुड़े नहीं हैं।

मछुआरों का कहना है कि ऐसे 68 कार्डों को तुरंत निरस्त किया जाए व उन्हें कार्ड जारी हों। गौरतलब है कि इस मामले में ऐजनीघाट के लोगों का पक्ष सामने नहीं आया है।

सोमवार को धरने पर आए सैकड़ों ग्रामीणों ने जिलाधिकारी से शीघ्र कार्रवाई की मांग की।

धरना देने आए प्रतिनिधि रामौतार साहनी का कहना है कि –

“कई दशकों से पाली गांव के लोगों को सिंधिया सरौरा नदी में मछली मारने का पारंपरिक अधिकार मिला हुआ है। 2014 में तब के डीएम ने “शिकार माही कार्ड” को लेकर जो बंटवारा किया था, उसे बदला जाए। पाली गांव के लोगों को उनका हक मिले”

 

Continue Reading

मेरी सुनो

जहानाबाद : गांव में हिंसक हो गए बंदर, बच्ची के हाथ से मांस नोंचा

Published

on

बच्ची के कोहनी पर गहरा घाव। (तस्वीर - टीम बोलते पन्ने)
बच्ची के कोहनी पर गहरा घाव। (तस्वीर - टीम बोलते पन्ने)
  • टेहटा में हिंसक बंदरों का झुंड तीन महीने में बड़ी संख्या में लोगों को काट चुका है।
  • बच्ची पर जानलेवा हमले के बाद ग्रामीणों ने बंदरों को जंगल में छुड़वाने की मांग की।

मखदुमपुर|

प्रखंड से पांच किलोमीटर दूर बसे टेहटा गांव में खेल रही एक पांच साल की बच्ची पर बंदरों ने हमला कर दिया और हाथ का मांस नोच लिया। बच्ची को गंभीर हाल में अस्पताल ले जाया गया।

अब तक शहरी क्षेत्रों में बंदरों के उत्पात की घटनाएं आती थीं पर बीते तीन साल में जहानाबाद के गांवों में भी बंदरों के हमले की घटनाएं बढ़ गई हैं।

स्थानीय समाजिक कार्यकर्ता के मुताबिक, बीते तीन महीने में सिर्फ टेहटा गांव में एक दर्जन से ज्यादा लोगों को बंदर के हमले ने गंभीर रूप से घायल किया है।

3 अक्तूबर को भी बंदरों के झुंड ने एक बच्ची पर हमला कर दिया, जिसकी जान पर बन आई। मौके पर मौजूद लोगों का कहना था कि अगर बच्ची को भगाने के लिए सब लोग इकट्ठे न हो गए होते तो शायद उसे बंदर मार ही डालते।

टेहटा के निवासी विश्राम साव ने बताया कि उनकी छोटी बेटी अब स्वस्थ लेकिन सहमी हुई है।

अधिवक्ता सह सामाजिक कार्यकर्ता मुकेश कुमार गौतम उर्फ मुकेश चंद्रवंशी का कहना है कि अभी तक अधिकांश हमले महिलाओं एवं छोटे बच्चों पर हुए हैं। बंदरों के हमले से कई महिलाएं जख्मी भी हुईं, कुछ के हाथ-पैर भी टूट गए क्योंकि वे बचने के लिए भागते हुए गिर गईं।

इलाके के बुजुर्ग भी बंदरों के चलते बाहर निकलते हुए डंडा हाथ में लेकर चलने लगे हैं।

स्थानीय लोगों ने जिला प्रशासन से मांग की है कि इन बंदरों को पकड़कर जंगली इलाके में छोड़ा जाए।

Continue Reading
Advertisement

Categories

Trending