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आज के अखबार

अवैध ‘घुसपैठियों’ को बिना सहमति के वापस नहीं भेज सकते : केंद्र

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प्रतीकात्मक तस्वीर

बोलते पन्ने | 14 फरवरी, 2025

मोदी सरकार की पूरी कैबिनेट व नेताओं का अपने राजनीतिक भाषणों में फोकस अवैध घुसपैठियों को देश से बाहर निकालने पर रहता है। पर इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में केंद्र ने जो जवाब दिया है, वह दर्शाता है कि भाषणों की राजनीति से देश की राजनीति नहीं चलती। केंद्र ने कहा कि अवैध प्रवासियों को तब ही वापस भेजा जा सकता है जब वहां की सरकार की इस पर सहमति हो।

अवैध प्रवासियों को सहमति के बिना वापस नहीं भेज सकते : केंद्र

 

टाइम्स ऑफ इंडिया, 14 फरवरी संस्करण

टाइम्स ऑफ इंडिया, 14 फरवरी संस्करण

 

अमेरिका में ट्रंप सरकार आने के बाद अवैध प्रवासियों को उनके देश भेजने (डिपोर्ट) की कार्रवाइयां चल रही हैं पर भारत में रह रहे अवैध प्रवासियों के मामले में केंद्र सरकार ने कहा है कि तब भी अवैध प्रवासियों को डिपोर्ट किया जा सकता है जबकि संबंधित देश की सरकार इस पर स्वीकृति दे। दरअसल पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ ने सरकार से कहा था कि अगर कोई अवैध कागजों से देश में दाखिल हुआ पाया गया हो तो यह बात साबित होने पर उसे तुरंत डिपोर्ट कर दिया जाना चाहिए। किसी अवैध प्रवासी को इस आधार पर डीटेन किया जाना ठीक नहीं है कि उसका सही पता सरकार को मालूम नहीं है। पीठ ने कहा था कि अगर आप यह जानते हैं कि संबंधित अवैध प्रवासी किस देश का है तो आप उसे वहां भेज दें और फिर उसे कहां जाना है, इस बात का फैसला वही देश लेगा जहां का वह रहने वाला है।

बांग्लादेशी अवैध प्रवासियों को वापस भेजने का मामला –  दरअसल यह पूरा मामला बांग्लादेशी अवैध प्रवासियों को उनके देश भेजने से जुड़ा है, जिसपर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई रहा है। जिस पर सरकार ने कहा कि बांग्लादेश की सहमति के बिना इन्हेें डिपोर्ट नहीं किया जा सकता।

इंडियन एक्सप्रेस, 14 फरवरी

इंडियन एक्सप्रेस, 14 फरवरी

म्यांमार से 7000 अवैध प्रवासी भारत में घुसे :

टाइम्स ऑफ इंडिया, 14 फरवरी संस्करण

टाइम्स ऑफ इंडिया, 14 फरवरी संस्करण

भारत में बढ़ते अवैध प्रवास को लेकर टाइम्स ने एक और खबर की है कि दिसंबर से अबतक देश में 7000 अवैध प्रवासी प्रवेश कर चुके हैं। दरअसल दोनों देशों की सीमा पर 16 किलोमीटर तक वीजा रहित गतिविधियों की स्वीकृति को बीते साल दिसंबर में घटाकर 10 किलोमीटर कर दिया गया था क्योंकि म्यांमार हिंसा से ग्रस्त है।

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सरकार ही किसी जज को हटा सकती है : धनखड़ 

टाइम्स ऑफ इंडिया, 14 फरवरी संस्करण

टाइम्स ऑफ इंडिया, 14 फरवरी संस्करण

राज्यसभा की कार्रवाई के दौरान अध्यक्ष जगदीप धनखड़ ने स्पष्ट किया कि किसी भी हाईकोर्ट जज को उसके पद से हटाने का अधिकार सिर्फ संसद के पास है। दरअसल इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश शेखर यादव के एक धर्म विशेष के खिलाफ दिए एक बयान के बाद से उन्हें हटाने की मांग की जा रही है। इसको लेकर विपक्षी दलों ने सांसदों ने 13 दिसंबर को राज्यसभा को एक नोटिस भी दिया था। इसी मामले पर सुप्रीम कोर्ट के सीजेआई ने भी एक रिपोर्ट तलब की है। अब ऐसे में धनखड़ का बयान अहम हो जाता है, माना जा रहा है कि इस मामले पर सरकार एक तरह से संदेश दे रही है कि जज को हटाना उनका अधिकारक्षेत्र है।

अमर उजाला, 14 फरवरी संस्करण

अमर उजाला, 14 फरवरी संस्करण

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मणिपुर में बीजेपी को नया सीएम नहीं मिला तो राष्ट्रपति शासन लगा – करीब दो साल से जातीय हिंसा से ग्रस्त पूर्वोत्तर के इस राज्य में 11वीं बार राष्ट्रपति शासन लगा है। बीरेन सिंह से बीते सप्ताह इस्तीफा ले लिया गया था, इसके बाद भाजपा विधायकों के बीच नए मुख्यमंत्री के नाम पर सहमति नहीं बन पाई तो आखिर में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया।

 

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बड़े अपराधियों के मामले में बेल अधिकार नहीं :

टाइम्स ऑफ इंडिया, 14 फरवरी संस्करण

टाइम्स ऑफ इंडिया, 14 फरवरी संस्करण

सुप्रीम कोर्ट ने बेल देने को लेकर कहा है कि बड़े अपराधियों के मामले में बेल अधिकार नहीं है। पूर्व सीजेआई अपनी टिप्पणियों में लगातार कहते थे कि ‘बेल अधिकार है, जेल अपवाद।’ ऐसे में बेल को लेकर इस बार आई टिप्पणी को अखबारों ने प्राथमिकता से छापा है। टाइम्स ऑफ इंडिया अखबार ने इसे लीड खबर बनाया है।

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आज के अखबार

दो अरब लोग गंदा पानी पीने को मजबूर

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साभार इंटरनेट
बोलते पन्ने | नई दिल्ली
द हिन्दू ने 25 जून के संस्करण में लेख के ज़रिए बताया कि दुनिया में दो अरब लोग सुरक्षित पेयजल से वंचित हैं। यानी जो पानी वे पी रहे हैं, उसमें तमाम तरह के रोग होने की संभावना है। साथ ही, दुनिया के 3.6 अरब लोगों को सुरक्षित स्वच्छता सुविधाएं नहीं मिल रही हैं। अख़बार ने संयुक्त राष्ट्र की हालिया रिपोर्ट के हवाले से यह जानकारी दी है। जिसमें भारत सहित कई देशों में जल संकट की गंभीरता को उजागर किया है।
शहरीकरण से जलसंकट गहराया 
लेख के मुताबिक़, सुरक्षित जल का संकट दुनिया में जनसंख्या वृद्धि, शहरीकरण, और जलवायु परिवर्तन के कारण और गहरा रहा है। भारत में, गंगा और यमुना जैसी नदियों में प्रदूषण और अपर्याप्त सीवेज उपचार इस समस्या को बढ़ा रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के 2022 के आंकड़े बताते हैं कि विश्व भर में 10 लाख लोग दूषित पानी और अपर्याप्त स्वच्छता के कारण होने वाली बीमारियों से मर रहे हैं।
द हिन्दू, 25 जून

द हिन्दू, 25 जून

67.8 करोड़ भारतीय गंदगी में जी रहे 
लेख में बताया गया कि भारत में 3.5 करोड़ लोग सुरक्षित पेयजल और 67.8 करोड़ लोग स्वच्छता सुविधाओं से वंचित हैं। जल शक्ति मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 230 जिलों में भूजल में आर्सेनिक और 469 जिलों में फ्लोराइड की मौजूदगी पाई गई है। WHO के मुताबिक़, भारत में 80% स्वास्थ्य समस्याएं जलजनित रोगों से जुड़ी हैं।
भारत में 40% शहरी पानी रिसकर बर्बाद 
भारत सरकार की जल जीवन मिशन जैसी पहल ने ग्रामीण क्षेत्रों में 49% घरों तक नल कनेक्शन पहुंचाया है, लेकिन शहरी क्षेत्रों में 40% पानी रिसाव के कारण बर्बाद हो रहा है। विश्व बैंक और यूनिसेफ जैसी संस्थाएं जल प्रबंधन में सहयोग कर रही हैं। लेख में सुझाव दिया गया कि पानी के उपयोग की दक्षता बढ़ाने, रिसाव कम करने, और स्थानीय जल स्रोतों को पुनर्जनन करने की आवश्यकता है।

आंकड़ों की नज़र से :

  • 2 अरब: विश्व भर में सुरक्षित पेयजल से वंचित लोग।
  • 3.6 अरब: सुरक्षित स्वच्छता सुविधाओं से वंचित लोग।
  • 3.5 करोड़: भारत में सुरक्षित पेयजल से वंचित लोग।
  • 67.8 करोड़: भारत में स्वच्छता सुविधाओं से वंचित लोग।
  • 230 जिले: भारत में भूजल में आर्सेनिक की मौजूदगी।
  • 469 जिले: भारत में भूजल में फ्लोराइड की मौजूदगी।
  • 80 प्रतिशत: भारत में जलजनित रोगों से स्वास्थ्य समस्याएं।
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केरल : ‘भारत माता’ की तस्वीर पर विवाद क्यों

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भारत माता का चित्र, साभार इंटरनेट
बोलते पन्ने | नई दिल्ली
केरल के राजभवन में ‘भारत माता’ की तस्वीर के प्रदर्शन को लेकर राज्यपाल व मुख्यमंत्री के बीच विवाद गहरा गया है। द हिन्दू ने इस विवाद के बहाने भारत माता की अवधारणा पर एक लेख प्रकाशित किया है, जिसमें कहा गया है कि अखंड भारत के मानचित्र के सामने भगवा साड़ी में खड़ी एक स्त्री की इस तस्वीर की कोई संवैधानिक मान्यता नहीं है। लेख में केरल के राज्यपाल व राज्य सरकार के बीच के विवाद को अनावश्यक बताया है।
बता दें कि राजभवन में भारत माता की तस्वीर के सामने फूल अर्पित करके दीप जलाने के साथ सरकारी कार्यक्रमों की शुरूआत किए जाने के विरोध से मामला शुरू हुआ। सत्तारूढ़ लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (LDF) ने इस चित्र को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) से संबंधित मानते हुए ऐसे कार्यक्रमों में न शामिल होने की घोषणा की है।   
द हिन्दू, 26 जून

द हिन्दू, 26 जून

भारत माता के चित्र का कोई संवैधानिक आधार नहीं
द हिन्दू में 26 जून 2025 को प्रकाशित लेख “A Lofty Concept, a Governor and Unwanted Controversy” में इस विवाद को अनावश्यक और भारत माता के चित्र को उच्च अवधारणा बताया गया है। इस लेख को लिखने वाले पी.डी.टी. अचारी लोकसभा के पूर्व महासचिव रहे हैं और वे संवैधानिक व संसदीय मामलों के विशेषज्ञ हैं। अचारी ने लिखा है कि केरल के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेकर ने राजभवन में सरकारी आयोजनों में एक विशेष चित्र—जो भगवा साड़ी में एक महिला, हाथ में भाला, पीछे शेर और अखंड भारत के नक्शे को दर्शाता है—को प्रदर्शित करने और सम्मान करने की प्रथा शुरू की। लेख के अनुसार, भारत माता का यह चित्र संविधान या कानून द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं है, न ही यह राष्ट्रीय ध्वज, राष्ट्र गान या प्रतीक की तरह आधिकारिक है। इसलिए, इसे सरकारी आयोजनों में शामिल करना अनुचित है।
केरल राज्य प्रतीक

केरल राज्य प्रतीक

‘राज्यपाल की ज़िद ने तनाव बढ़ाया’
लेखक ने कहा है कि राज्यपाल को राज्य सरकार की सलाह पर ही काम करना चाहिए। संविधान सभा में डॉ. बी.आर. अंबेडकर के बयान का हवाला देते हुए लेखक बताता है कि राज्यपाल को मंत्रिपरिषद की सलाह माननी चाहिए, लेकिन उनकी जिद ने सरकार के साथ तनाव बढ़ाया। इस विवाद ने CPI(M) और BJP कार्यकर्ताओं के बीच सड़कों पर टकराव को जन्म दिया। लेख सुझाव देता है कि संवैधानिक प्रोटोकॉल का पालन कर ऐसे टकरावों से बचा जा सकता है।
भारत माता का चित्र, साभार इंटरनेट

भारत माता का चित्र, साभार इंटरनेट

भारत माता की जयकार और तस्वीर में फर्क
लेख में भारत माता के ऐतिहासिक संदर्भ का उल्लेख है, जो बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय की “आनंदमठ” में बंगा माता के रूप में शुरू हुआ और बाद में राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में “भारत माता की जय” के नारे के रूप में लोकप्रिय हुआ। यह चित्र 19वीं सदी के राष्ट्रवाद को जोड़ता था।  हालांकि, लेख में यह भी कहा गया है कि भारत माता का यह चित्र आधुनिक भारत की विविधता का प्रतिनिधित्व करने में असमर्थ है। 
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आज के अखबार

अमेरिकी अखबारों ने ट्रंप के दावे पर सवाल उठाए

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सांकेतिक तस्वीर
बोलते पन्ने | नई दिल्ली
22 जून 2025 को ईरान के परमाणु ठिकानों पर अमेरिकी हमलों ने वैश्विक सुर्खियां बटोरीं। न्यूयॉर्क टाइम्स, वॉल स्ट्रीट जर्नल, और वॉशिंगटन पोस्ट जैसे प्रमुख अमेरिकी अखबारों के मुताबिक, इन हमलों से सीमित नुकसान हुआ, जबकि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इन्हें “बेहद सफल” करार दिया। इन अखबारों ने तथ्यों और सरकारी दावों के बीच अंतर को स्पष्ट रूप से उजागर किया, खासकर वॉल स्ट्रीट जर्नल ने प्रारंभिक विश्लेषण के आधार पर ट्रंप के दावों पर सवाल उठाए।
भारतीय हिंदी अखबारों की सरकारी रुख वाली कवरेज के उलट, अमेरिकी पत्रकारिता ने तथ्य-आधारित विश्लेषण को प्राथमिकता दी, भले ही उनका नेतृत्व अप्रत्याशित और दृढ़ स्वभाव का हो। यह कवरेज मध्य पूर्व में बढ़ते तनाव और वैश्विक कूटनीति पर गंभीर प्रभाव को रेखांकित करती है। बता दें कि अमेरिका ने ईरान के तीन प्रमुख परमाणु ठिकानों—फोर्डो, नटांज, और इस्फहान पर हमले किए जिनका उद्देश्य ईरान के परमाणु कार्यक्रम को रोकना था। इसे ‘ऑपरेशन मिडनाइट हैमर” नाम दिया गया था।
B-2 बॉम्बर्स का इस्तेमाल किया : न्यूयॉर्क टाइम्स 
 न्यूयॉर्क टाइम्स ने 23 जून को इस शीर्षक से पहले पन्ने पर ख़बर लगाई – U.S. Claims Severe Damage, Warns Iran Not to Strike Back । खबर में हमले के तरीके के बारे में विस्तार से बताया गया है। लिखा है कि इन हमलों में सात बी-2 स्टेल्थ बॉम्बर्स और एक पनडुब्बी से 75 सटीक हथियारों का उपयोग किया गया, जिनमें 30,000 पाउंड के बंकर-बस्टर बम शामिल थे। साथ ही बताया है कि ईरान ने भी जवाब में इजरायल पर मिसाइलें दागीं, जिसमें 10 लोग घायल हुए।
अखबार ने लिखा कि ट्रंप दावा कर रहे हैं कि ये हमले बेहद सफल रहे और ईरान के परमाणु संवर्धन कार्यक्रम को “गंभीर नुकसान” पहुंचा है। साथ ही ट्रंप ने ईरान को जवाबी हमले न करने की चेतावनी देते हुए कहा कि अगर ईरान ने प्रतिशोध लिया तो और बड़े हमले होंगे। हालांकि ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराघची ने हमलों को “अवैध” बताया और कहा कि ईरान इसके जवाब दे। खबर में यह भी लिखा है कि इससे क्षेत्रीय तनाव बढ़ गया है और अमेरिकी ठिकानों पर जवाबी हमले की आशंका है, जिसके लिए पेंटागन हाई अलर्ट पर है। यह स्थिति मध्य पूर्व में व्यापक संघर्ष की संभावना पैदा करती है।
द न्यूयॉर्क टाइम्स, 23 जून

द न्यूयॉर्क टाइम्स, 23 जून

ईरान को व्यापक नुक़सान नहीं हुआ : वॉल स्ट्रीट जर्नल
वॉल स्ट्रीट जर्नल ने पहले पन्ने पर लिखा कि ईरान के तीन परमाणु ठिकानों हमले करने के बाद हमलों के नुक़सान का आकलन अमेरिका कर रहा है। इस ख़बर का शीर्षक भी यही है – U.S. Weighs Strikes’ Damage in Iran. । अख़बार ने लिखा है कि अमेरिकी हमले जिसका नाम “ऑपरेशन मिडनाइट हैमर” है, का उद्देश्य ईरान के परमाणु कार्यक्रम को रोकना था। ट्रंप प्रशासन ने दावा किया कि हमले “अत्यंत सफल” रहे और सुविधाओं को “पूरी तरह नष्ट” कर दिया गया, लेकिन प्रारंभिक विश्लेषण से संकेत मिलता है कि नुकसान उतना व्यापक नहीं हो सकता। IAEA के प्रमुख ने कहा कि फोर्डो में “बहुत महत्वपूर्ण नुकसान” हुआ, लेकिन सुविधा पूरी तरह नष्ट नहीं हुई।
वॉल स्ट्रीट जर्नल, 23 जून

वॉल स्ट्रीट जर्नल, 23 जून

हमले के नुक़सान का आकलन कर रही सरकार : द वॉशिंगटन पोस्ट
वॉल स्ट्रीट जर्नल की तरह ही वॉशिंगटन पोस्ट ने भी लिखा है कि इस हमले के नुक़सान का आकलन करने में सरकारी अधिकारी लगे हुए हैं। सरकार के मुताबिक़, इस हमले का लक्ष्य ईरान के परमाणु कार्यक्रम को रोकना था। ऐसे में रक्षा अधिकारियों को अभी यह स्पष्ट नहीं है कि क्या इन हमलों ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को पूरी तरह समाप्त किया या केवल उसे कुछ समय के लिए पीछे धकेला। खबर में वैश्विक नेताओं के मिश्रित प्रतिक्रियाओं का भी जिक्र है, जहां कुछ ने संयम बरतने की अपील की, तो कुछ ने हमलों का समर्थन किया।
वॉशिंटन पोस्ट, 23 जून

वॉशिंटन पोस्ट, 23 जून

 

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