Connect with us

दुनिया गोल

ट्रंप का गज़ा में ‘शासन’ करने का प्लान क्या शांति लाएगा?

Published

on

गज़ा में जारी नरसंहार के बीच एक स्थानीय बच्चा (फाइल फोटो, साभार इंटरनेट)
  • अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने ‘गज़ा शांति योजना’ बनाई है, जिसके तहत वे और पूर्व ब्रिटिश राष्ट्रपति टोनी ब्लेयर अस्थायी शासन चलाएंगे।

नई दिल्ली |

ट्रंप ने गज़ा शांति योजना बनाई है, जिसके तहत इस क्षेत्र के लिए उनकी अध्यक्षता में एक अस्थायी अंतरराष्ट्रीय शासी निकाय बनाया जाएगा। साधारण शब्दों में कहें तो ट्रंप की अध्यक्षता वाला अंतरराष्ट्रीय शासन गज़ा में युद्ध समाप्त करके शांति स्थापना पर काम करेगा।

बीते 724 दिनों से इजरायल की क्रूरता झेल रहे इस क्षेत्र में शांति की ‘ट्रंप योजना’ पर इजरायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू तैयार हो गए हैं। बीते सोमवार को वॉशिंगटन दौरे के दौरान उनकी ट्रंप से मुलाकात हुई और दोनों नेताओं ने इस योजना पर सहमति की घोषणा की।

पर सवाल उठता है कि क्या वाकई गज़ा में शांति आ सकेगी? बीते सोमवार को जब इस योजना को अमलाजामा पहनाया जा रहा था, तब तक गज़ा में आधिकारिक तौर पर 66 हजार लोगों की मौत हो चुकी थी।

वॉशिंगटन में ट्रंप और नेतन्याहू (फाइन फोटो, इंटरनेट)

वॉशिंगटन में ट्रंप और नेतन्याहू (फाइन फोटो, इंटरनेट)

गौरतलब है कि ट्रंप पहले एक एआई वीडियो के जरिए गज़ा के पुर्ननिर्माण की महत्वाकांक्षा दुनिया के सामने रख चुके हैं, जिसमें बड़ी इमारते बनाने के लिए गज़ा के लोगों को उनकी जमीन से हटा दिए जाने की संभावित योजना बताई गई थी।

हमास राजी नहीं हुआ तो ‘काम खत्म’ कर देंगे – नेतन्याहू

ट्रंप और नेतन्याहू ने सोमवार को वॉशिंगटन में संयुक्त रूप से प्रेसवार्ता की। इस दौरान नेतन्याहू ने हमास को चेताते हुए कहा कि “अगर उसने ट्रंप की शांति योजना को स्वीकार नहीं किया तो हम ‘काम खत्म’ (Job Finish) कर देंगे।”

मोदी ने ट्वीट करके गज़ा शांति योजना पर समर्थन जताया (screen grab - @narendramodi)

मोदी ने ट्वीट करके गज़ा शांति योजना पर समर्थन जताया (screen grab – @narendramodi)

भारत ने समर्थन किया, अरब देशों का साथ मिला

शांति समझौते को लेकर भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट करके योजना का समर्थन किया है। दूसरी ओर, इस योजना पर अरब देशों (कतर, सऊदी, इंडोनेशिया, मिस्र, UAE, जॉर्डन) और फिलिस्तीनी अथॉरिटी (PA) का समर्थन ट्रंप को हासिल हो चुका है।

ट्रंप की ‘गज़ा शांति योजना’ की मुख्य बातें जानिए 

  1. अंतरिम शासन: गज़ा इंटरनेशनल ट्रांजिशनल अथॉरिटी (GITA) का गठन, ट्रंप की अध्यक्षता में, जिसमें टोनी ब्लेयर प्रमुख होंगे।
  2. हथियारबंदी और बंधक रिहाई: तत्काल युद्धविराम, हमास द्वारा सभी इजरायली बंधकों की रिहाई।
  3. इजरायली वापसी: चरणबद्ध तरीके से इजरायली वापसी गज़ा से, लेकिन पूर्ण नियंत्रण बरकरार।
  4. हमास का विघटन: हमास का पूर्ण विघटन, हथियार डालना, और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का वादा करने वालों को क्षमादान।
  5. पुनर्निर्माण: युद्ध के बाद गज़ा का पुनर्निर्माण, जिसमें अंतरराष्ट्रीय फंडिंग (UN, Arab states) से बुनियादी ढांचा (पानी, बिजली, अस्पताल) सुधार।
  6. सुरक्षा बल: बहुपक्षीय शांति सेना तैनाती, हमास को हटाने के बाद।

हमास के लिए ‘ट्रंप की योजना’ चुनौती

 ट्रंप ने हमास को इस योजना को ‘स्वीकारने’ के लिए तीन से चार दिन का समय दिया है। उन्होंने कहा कि हमास अगर सहमत नहीं होता है तो दुखद अंत होगा। विश्लेषक इसे सीधी चेतावनी मान रहे हैं।
साथ ही, इस योजना को इस्लामी व अरब देशों की ओर से स्वीकार कर लिए जाने के बाद हमास के पास काफी कम विकल्प बचे हैं।
हमास पहले कह चुका है कि बिना फलस्तीनी राज्य के उसे कोई समझौता स्वीकार्य नहीं होगा।
ट्रंप के दामाद ने पूर्व ब्रिटिश PM की मदद से बनाया प्लान 
ब्रिटेन के प्रसिद्ध पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर (1997-2007) इस गज़ा शांति योजना के प्रमुख योगदानकर्ता हैं। दरअसल, ट्रंप के दामाद जेरेड कुश्नर ने ब्लेयर इंस्टीट्यूट से गज़ा पुनर्निर्माण का प्रस्ताव मांगा था।
टोनी ब्लेयर, पूर्व ब्रिटिश पीएम (साभार-इंटरनेट)

टोनी ब्लेयर, पूर्व ब्रिटिश पीएम (साभार-इंटरनेट)

ब्लेयर ने कहा, “यह गज़ा के लिए सबसे अच्छा मौका है। हमास को हटाकर अंतरिम प्रशासन स्थापित करना जरूरी है।”
पूर्व ब्रिटिश PM ब्लेटर भी अस्थायी शासन में हेड होंगे
ब्लेयर ने न सिर्फ गज़ा शांति योजना अपने संस्थान के तहत बनाई है, बल्कि इस योजना में ब्लेयर खुद ‘गज़ा इंटरनेशनल ट्रांजिशनल अथॉरिटी’ (GITA) के हेड होंगे, जो PA और हमास को साइडलाइन करेगा। जानकारों के मुताबिक, ऐसे में ब्लेयर की भूमिका में हितों का टकराव (conflict of interest) झलकटा है। 

ट्रंप ने गज़ा को कहा था ‘Trump City

गौरतलब है कि इस साल मार्च में ट्रंप ने सोशल मीडिया पर AI-जेेनरेेटेड तस्वीरें शेयर कीं, जिनमें गज़ा को “ट्रंप सिटी” के रूप में दिखाया गया। जिसमें लग्जरी होटल, गोल्फ कोर्स और ऊंची इमारतें दर्शायी गईं। इस तस्वीर ने विवाद खड़ा किया क्योंकि तस्वीरों में फिलिस्तीनी विस्थापन का संकेत था।

ट्रंप की ओर से साझा किए गए वीडियो में गज़ा में आनंद लेते नेतन्याहू ओर डोनाल्ड ट्रंप (AI video Screen shot via Truth social)

ट्रंप की ओर से साझा किए गए वीडियो में गज़ा में आनंद लेते नेतन्याहू ओर डोनाल्ड ट्रंप (AI video Screen shot via Truth social)

ट्रंप ने कहा था, “गज़ा को फिर से बनाना होगा, लेकिन पहले हमास को खत्म करना जरूरी।”

हमास ने इसे “जेनोसाइड प्लान” बताया।

 

Continue Reading
1 Comment

1 Comment

  1. Pingback: हमास ने सभी इजरायली बंधकों की रिहाई पर सहमति जताई, ट्रंप ने गज़ा बमबारी रोकने को कहा - बोलते पन्ने

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

दुनिया गोल

Ukraine War: गज़ा के बाद अब यूक्रेन में शांति की ट्रंप योजना, शर्ते जानिए

Published

on

  • Gaza के बाद अब Ukraine पर Trump का नया प्लान, शांति के लिए रूस को देनी होगी जमीन
  • NATO में शामिल नहीं होगा Ukraine, सेना की संख्या पर भी लगेगी 6 लाख की लिमिट

  • रूस से हटेंगे सारे प्रतिबंध, लेकिन जंग नहीं रुकी तो भुगतने होंगे गंभीर अंजाम

 

नई दिल्ली |

अमेरिका (America) के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) ने गाजा के बाद अब यूक्रेन युद्ध को खत्म करने के लिए एक नया और चौंकाने वाला प्लान तैयार किया है। इस मसौदे (Draft) की रिपोर्ट अमेरिकी मीडिया में लीक होने से इस मामले का खुलासा हुआ है। इस ‘पीस प्लान’ का सीधा मतलब है- “जमीन के बदले यूक्रेन को शांति”।

इस लीक डॉफ्ट के हवाले से रिपोर्ट किया जा रहा है किॉ ट्रंप प्रशासन ने यूक्रेन (Ukraine) के सामने शर्त रखी है कि अगर उसे युद्ध रोकना है, तो उसे अपने देश का कुछ हिस्सा हमेशा के लिए रूस (Russia) को देना होगा। यूक्रेन सरकार ने इस योजना पर सधी हुई प्रतिक्रिया देते हुए कहा है-

“अमेरिकी पक्ष का आकलन है कि इस योजना से कूटनीति को पुनर्जीवित करने में मदद मिलेगी।”

यूक्रेन को छोड़नी होगी अपनी जमीन

इस ड्राफ्ट प्लान के मुताबिक, अमेरिका अब क्रीमिया (Crimea) और अन्य उन इलाकों को रूस का हिस्सा मानने को तैयार है, जिन पर अभी रूसी सेना का कब्जा है। यानी यूक्रेन को इन इलाकों से अपना दावा छोड़ना होगा। जहां अभी दोनों देशों की सेनाएं खड़ी हैं, वहीं पर युद्ध रोक दिया जाएगा और उसे नई सीमा मान लिया जाएगा।

NATO में शामिल होने पर ‘बैन’

ट्रंप के इस प्लान में यूक्रेन के लिए कई सख्त शर्तें हैं।

  • NATO नो-एंट्री: यूक्रेन कभी भी नाटो (NATO) का सदस्य नहीं बनेगा।

  • सेना पर रोक: यूक्रेन अपनी सेना को बहुत ज्यादा नहीं बढ़ा सकता। उसकी सेना में अधिकतम 6 लाख सैनिक ही हो सकेंगे।

  • विदेशी सेना नहीं: यूक्रेन की धरती पर नाटो या किसी और देश की सेना तैनात नहीं होगी।

रूस को क्या फायदा मिलेगा?

अगर यह समझौता होता है, तो इससे रूस को बड़ी जीत मिलेगी क्योंकि इसकी कई बातें, पुतिन की शर्तों से मेल खाती हैं।

  • रूस पर लगे सभी अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध (Sanctions) हटा दिए जाएंगे।

  • रूस को फिर से दुनिया के व्यापार में शामिल किया जाएगा और वह अपना तेल-गैस आसानी से बेच सकेगा।

शर्त तोड़ी तो भुगतना होगा अंजाम

ट्रंप ने दोनों पक्षों को चेतावनी भी दी है।

  • रूस के लिए: अगर समझौता होने के बाद रूस ने फिर हमला किया, तो अमेरिका उस पर दोबारा कड़े प्रतिबंध लगा देगा और यूक्रेन को और ज्यादा हथियार देगा।

  • यूक्रेन के लिए: अगर यूक्रेन ने बिना वजह रूस के शहरों पर मिसाइल दागी, तो अमेरिका उसकी सुरक्षा की गारंटी खत्म कर देगा।

ज़ेलेंस्की तैयार, यूरोप हैरान

अमेरिकी अधिकारियों ने यह प्लान यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की (Volodymyr Zelensky) को सौंप दिया है। ज़ेलेंस्की ने कहा है कि वह शांति के लिए काम करने को तैयार हैं। लेकिन यूरोप (Europe) के कई देश इस प्लान से हैरान हैं। उनका मानना है कि अपनी जमीन रूस को दे देना यूक्रेन के लिए हार मानने जैसा होगा।

Continue Reading

दुनिया गोल

COP30: दुनिया को बचाने के मकसद वाले जलवायु सम्मेलन में कोयला-पेट्रोल पर दो फाड़, क्या हो पाएगा समझौता?

Published

on

https://www.facebook.com/photo?fbid=122151466502678776&set=pcb.122151466568678776
ब्राजील में जारी जलवायु सम्मेलन का आज अंतिम दिन है। credit - Facebook/COP30 Brasil
  • COP30 में 80 से ज्यादा देशों ने खोला मोर्चा, जीवाश्म ईंधन को खत्म करने के लिए मांगा ‘ठोस प्लान’
  • मेजबान Brazil की कोशिशें हुईं नाकाम, Saudi Arabia समेत कई तेल उत्पादक देशों ने अड़ाया अड़ंगा

  • गतिरोध तोड़ने के लिए EU ने दिया नया प्रस्ताव, Turkey करेगा अगले साल COP31 की मेजबानी

नई दिल्ली |

ब्राजील (Brazil) के बेलेम (Belem) शहर में चल रहे संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन यानी COP30 में भारी हंगामा देखने को मिला। धरती को बचाने के लिए बुलाई गई इस बैठक में दुनिया दो हिस्सों में बंटी नजर आई। 10 नवंबर से शुरू हुए इस वैश्विक सम्मेलन का आज (21 nov) को अंतिम दिन है और अभी तक कोई साझा घोषणापत्र पर सहमति नहीं बन सकी है।

एक तरफ 80 से ज्यादा देशों ने एकजुट होकर मांग की है कि दुनिया से पेट्रोल, डीजल और कोयले यानी जीवाश्म ईंधन को खत्म करने का पक्का ‘रोडमैप’ (Total Phase out)  तैयार किया जाए, ऐसा न होने पर वे प्रस्ताव ब्लॉक कर देंगे।

वहीं, दूसरी तरफ सऊदी अरब (Saudi Arabia) समेत कई तेल उत्पादक देश इसके सख्त खिलाफ खड़े हो गए हैं। चीन और अमेरिका इस पर चुप्पी साधे हैं। इस खींचतान के कारण मेजबान ब्राजील शुरुआती समझौता कराने में विफल रहा है। अब देखना होगा कि अंतिम दिन मेजबान ब्राजील किस तरह सहमति बना पाता है या यह सम्मेलन बिना दुनिया के तापमान को बढ़ने से रोकने के आवश्यक कदम पर सहमति न बनाए बिना समाप्त हो जाएगा।

COP30 का आधिकारिक लोगो

COP30 का आधिकारिक लोगो

जलवायु संकट से जूझ रहे छोटे देशों की धमकी

द गार्जियन ने रिपोर्ट किया है कि कम से कम 28 देशों ने मेजबान ब्राजील को 20 नवंबर को पत्र लिखकर चेतावनी दी है कि अगर अंतिम समझौते में फॉसिल फ्यूल (जीवाश्म ईंधन) को पूरी तरह चरणबद्ध तरीके से खत्म करने (phase-out) का स्पष्ट और बाध्यकारी रोडमैप नहीं जोड़ा गया, तो वे पूरे प्रस्ताव को ब्लॉक कर देंगे।

ये देश कर रहे मांग

पूरी तरह प्राकृतिक ईंधन से इस्तेमाल को हटाने का समर्थन करने वाले देशों में यूरोपीय संघ, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, चिली, कोलंबिया, वनुआतु, तुवालु, मार्शल आइलैंड्स और अफ्रीकी देशों का बड़ा समूह शामिल है।

80 देशों ने बनाई ‘ग्लोबल कोलिशन’

सम्मेलन में अफ्रीका, एशिया, लैटिन अमेरिका और प्रशांत क्षेत्र के देशों ने यूरोपीय संघ (EU) और ब्रिटेन (UK) के साथ मिलकर एक वैश्विक गठबंधन बना लिया है। Marshall Islands की जलवायु दूत टीना स्टेज (Tina Stege) ने 20 मंत्रियों के साथ एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “हम सबको मिलकर एक रोडमैप के पीछे खड़ा होना होगा और इसे एक योजना में बदलना होगा।” यूके के ऊर्जा सचिव एड मिलिबैंड (Ed Miliband) ने भी जोर देकर कहा, “यह मुद्दा अब कालीन के नीचे नहीं छिपाया जा सकता। हम सब एक आवाज में कह रहे हैं कि जीवाश्म ईंधन से दूरी बनाना ही इस सम्मेलन का दिल होना चाहिए।”

सऊदी अरब बना ‘रोड़ा’

वानुअतु (Vanuatu) के जलवायु मंत्री राल्फ रेगेनवानु (Ralph Regenvanu) ने सीधे तौर पर दुनिया के सबसे बड़े तेल निर्यातक सऊदी अरब (Saudi Arabia) पर निशाना साधा। उन्होंने कहा, “मुझे लगता है कि समझौता बहुत मुश्किल होगा क्योंकि हमारे पास कुछ ‘ब्लॉकर्स’ हैं जो तेल और गैस छोड़ने की किसी भी योजना का विरोध कर रहे हैं।” छोटे द्वीपीय देशों का कहना है कि वे इस मुद्दे पर आखिरी दम तक लड़ेंगे क्योंकि अगर समुद्र का जलस्तर बढ़ा, तो उनका अस्तित्व ही मिट जाएगा।

आखिर क्या है COP30? 

सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि यह बैठक क्या है। COP का मतलब है ‘कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज’ (Conference of Parties)। यह संयुक्त राष्ट्र (UN) की एक सालाना बैठक है जिसमें दुनिया भर के लगभग 200 देश शामिल होते हैं।

  • मकसद: इसका मुख्य उद्देश्य धरती के बढ़ते तापमान को रोकना और जलवायु परिवर्तन से निपटना है।

  • लक्ष्य: पेरिस समझौते के तहत दुनिया के तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा बढ़ने से रोकने पर आगे की योजना बनाना।

  • जगह: इस बार यह 30वीं बैठक है, इसलिए इसे COP30 कहा जा रहा है और यह अमेजन के जंगल वाले शहर बेलेम में हो रही है।

मेजबान Brazil का प्लान फेल?

ब्राजील के राष्ट्रपति लूला (Lula da Silva) चाहते थे कि बुधवार तक ही जलवायु वित्त और ईंधन को लेकर एक बड़ा समझौता हो जाए, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। शुरुआत में ब्राजील ने ‘जीवाश्म ईंधन’ को आधिकारिक एजेंडे से बाहर रखा था, लेकिन भारी दबाव के बाद उसे एक ड्राफ्ट पेश करना पड़ा। हालांकि, कई देशों ने इस ड्राफ्ट को बहुत कमजोर बताया। अब राष्ट्रपति लूला आखिरी दो दिनों में किसी नतीजे पर पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं।

EU ने दिया ‘बीच का रास्ता’

इस गतिरोध को तोड़ने के लिए यूरोपीय संघ (EU) ने बुधवार देर रात एक नया प्रस्ताव रखा है। इसमें सुझाव दिया गया है कि देश जीवाश्म ईंधन को छोड़ने के लिए एक रोडमैप तो पेश करें, लेकिन यह ‘गैर-बाध्यकारी’ (Non-prescriptive) होना चाहिए। इसका मतलब है कि किसी भी देश पर कोई विशिष्ट नियम जबरदस्ती नहीं थोपा जाएगा, बल्कि वे विज्ञान के आधार पर खुद तय करेंगे।

तुर्किये करेगा COP31 की मेजबानी

इस तनातनी के बीच एक कूटनीतिक सफलता भी मिली है। ऑस्ट्रेलिया (Australia) के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज (Anthony Albanese) ने पुष्टि की है कि अगले साल के जलवायु सम्मेलन यानी COP31 की मेजबानी को लेकर सहमति बन गई है। इसके तहत तुर्किये (Turkey) अगले साल के सम्मेलन की मेजबानी करेगा, जबकि ऑस्ट्रेलिया सरकारों के बीच बातचीत का नेतृत्व करेगा।

Continue Reading

दुनिया गोल

Ops सिंदूर के बाद राफेल विमानों को AI के जरिए बदनाम कर रहा था चीन : अमेरिकी रिपोर्ट में खुलासा

Published

on

Ops सिंदूर के दौरान राफेल विमानों के प्रदर्शन पर सोशल मीडिया में दुष्प्रचार फैलाया गया था।
Ops सिंदूर के दौरान राफेल विमानों के प्रदर्शन पर सोशल मीडिया में दुष्प्रचार फैलाया गया था।
  • US रिपोर्ट में खुलासा: चीन ने AI का इस्तेमाल कर राफेल के खिलाफ फैलाया झूठ

  • J-35 को बेचने के लिए भारत के राफेल विमानों को बताया था ‘नष्ट’

  • पाकिस्तान को बनाया हथियारों की ‘प्रयोगशाला’, भारतीय जनरल के दावे पर लगी मुहर

नई दिल्ली |

पाक के खिलाफ हुए ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारतीय विमानों को लेकर सोशल मीडिया पर चलाए गए दुष्प्रचार के पीछे चीन का हाथ था। ऐसा दावा अमेरिकी संसद की एक रिपोर्ट में किया गया है।

अमेरिका (USA) की एक शीर्ष सरकारी रिपोर्ट में चीन (China) को लेकर कहा गया है कि भारत के राफेल (Rafale) लड़ाकू विमानों के खिलाफ एक सुनियोजित दुष्प्रचार अभियान चलाया था।

‘यूएस-चाइना इकोनॉमिक एंड सिक्योरिटी रिव्यू कमीशन’ (US-China Economic and Security Review Commission) ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में यह खुलासा किया है।

अमेरिकी आयोग ने बताया कि चीन ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का इस्तेमाल करके राफेल विमानों के ‘नकली मलबे’ की तस्वीरें बनाईं और फर्जी सोशल मीडिया अकाउंट्स के जरिए उन्हें पूरी दुनिया में फैलाया, ताकि वह अपने खुद के जे-35 (J-35) विमानों की बिक्री को बढ़ावा दे सके।

 

राफेल को बदनाम कर अपना ‘J-35’ बेचना चाहता था चीन

रिपोर्ट के मुताबिक, चीन का मकसद दोतरफा था- पहला, फ्रांसीसी राफेल विमानों की छवि खराब करके उनके निर्यात को रोकना और दूसरा, अपने जे-35 विमानों को बेहतर साबित करना। चीन ने यह दिखाने की कोशिश की कि मई में हुए भारत-पाकिस्तान संघर्ष के दौरान चीनी हथियारों ने राफेल को मार गिराया है, जबकि यह पूरी तरह झूठ था।

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि चीनी दूतावास के अधिकारियों ने इसी फर्जी नेरेटिव का इस्तेमाल करके इंडोनेशिया (Indonesia) को राफेल खरीदने से रोकने की भी कोशिश की थी।

 

पाकिस्तान बना चीन की ‘प्रयोगशाला’

जुलाई महीने में ही भारतीय उपसेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल राहुल आर सिंह ने चीन और पाकिस्तान के इस गठजोड़ को बेनकाब कर दिया था। उन्होंने उस समय साफ कहा था कि चीन अपने हथियारों को टेस्ट करने और उनका प्रचार करने के लिए पाकिस्तान का इस्तेमाल कर रहा है।

अब अमेरिकी आयोग की इस ताजा रिपोर्ट ने भारतीय जनरल के उस दावे पर मुहर लगा दी है। रिपोर्ट में पुष्टि की गई है कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान चीन अपने सदाबहार दोस्त पाकिस्तान (Pakistan) की हर मुमकिन मदद कर रहा था। रिपोर्ट साफ कहती है कि उस संघर्ष के दौरान पाकिस्तान चीनी हथियारों के लिए एक ‘प्रयोगशाला’ बना हुआ था, जहां चीन ने मौकापरस्त तरीके से अपनी तकनीक का परीक्षण किया।

AI एंकर और फर्जी अकाउंट्स का जाल

आयोग ने कांग्रेस को सौंपी रिपोर्ट में बताया कि चीन अपनी ‘ग्रे-जोन’ गतिविधियों के तहत एआई का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग कर रहा है। राफेल के मलबे की तस्वीरें ही नहीं, बल्कि चीन ने वीडियो गेम के विजुअल का भी इस्तेमाल किया।

इसके अलावा, रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ है कि 2024 में चीन समर्थक ऑनलाइन ग्रुप्स ने अमेरिका में भी नशीली दवाओं, आप्रवासन और गर्भपात जैसे मुद्दों पर विभाजन पैदा करने के लिए एआई-जनरेटेड न्यूज एंकर्स और फर्जी प्रोफाइल फोटो का इस्तेमाल किया था।

सीमा विवाद पर भी दोहरी चाल

भारत-चीन संबंधों पर आयोग ने कहा कि सीमा मुद्दे को लेकर दोनों देशों के बीच एक ‘असमानता’ है। चीन चाहता है कि वह अपने मूल हितों का त्याग किए बिना, सीमा विवाद को अलग रखकर भारत के साथ व्यापार और अन्य क्षेत्रों में सहयोग के द्वार खोले। वहीं, भारत सीमा मुद्दों का एक स्थायी समाधान चाहता है। रिपोर्ट में जोर दिया गया है कि भारत सरकार ने हाल के वर्षों में सीमा पर चीन से उत्पन्न खतरे की गंभीरता को अब बेहतर तरीके से पहचाना है।

Continue Reading
Advertisement

Categories

Trending