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लेह में फिर से पाबंदियां: हिंसा के तीन सप्ताह बाद तनाव क्यों बरकरार?

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नई दिल्ली |

 लद्दाख के लेह में 24 सितंबर की हिंसक झड़पों के ठीक तीन सप्ताह बाद एक बार फिर शांति भंग होने की आशंका से पाबंदियां लगा दी गईं। 15 अक्तूबर को प्रशासन ने प्रतिबंध हटाए और 2 दिन बाद 17 अक्तूबर को दोबारा लागू करने की नौबत आ गई।

दरअसल लेह एपेक्स बॉडी (LAB) और करगिल डेमोक्रेटिक एलायंस (KDA) ने पूर्ण राज्य के दर्जे की मांग और संविधान की छठी अनुसूची की मांगों को लेकर 17 अक्तूबर को शांतिपूर्ण प्रदर्शन बुलाया था। सुबह 10 बजे से दो घंटे का शांति मार्च होना था और शाम को ‘ब्लैकआउट’ के आह्नान को देखते हुए प्रशासन ने इंटरनेट बंदी लागू कर दी। हालांकि स्थानीय मीडिया के मुताबिक, कारगिल में मार्च शांतिपूर्वक निकाला गया।

इस घटना ने पूरे क्षेत्र में तनाव को फिर से हवा दी है, बीते महीने हुई हिंसा में चार मौतें और 90 से अधिक लोग घायल हुए थे और प्रदर्शनकारियों की मांगें अब भी बरकरार हैं।

 

 24 सितंबर की हिंसा के बाद के घटनाक्रम 

  • पूर्ण राज्य की मांग को लेकर चल रहा शांतिपूर्ण अनशन 24 सितंबर को हिंसा में बदल गया था, इसके बाद कर्फ्यू लगा दिया गया।
  • उसके बाद कोई हिंसा नहीं हुई और हालात काबू में आने पर 15 अक्टूबर को प्रतिबंध हटाए गए।
  • 17 अक्तूबर को मौन मार्च की कॉल के बाद प्रशासन ने दोबारा इंटरनेट बंदी लागू कर दी और शांति-भंग की धारा लागू कर दी।
  • प्रदर्शनकारियों की मांग को मानते हुए केंद्र ने शुक्रवार को रिटायर्ड सुप्रीम कोर्ट जज के नेतृत्व में न्यायिक जांच की घोषणा।
  • केंद्र सरकार ने 22 अक्तूबर को लेह और कारगिल के दोनों प्रमुख दलों को फिर से वार्ता शुरू करने के लिए आमंत्रित किया है।

पाक-चीन के बीच बसे लद्दाख में अशांत के मायने

लद्दाख एक कम आबादी वाला ऊंचाई पर बसा रेगिस्तान है, जो पाकिस्तान और चीन के बीच बसा है इसलिए यह भारत के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है। इसकी आबादी मात्र 2.75 लाख है। 
इस क्षेत्र में दो जिले हैं- बौद्ध बहुल आबादी वाला – लेह और मुस्लिम-बहुल आबादी वाला करगिल। 
पूर्ण राज्य की मांग पर दोनों जिले सहमत
लेह और कारगिल दोनों जिलों के बीच पारंपरिक तौर पर विभाजन देखा जाता रहा है, जैसे 2019 में लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा मिलने पर लेह ने स्वागत किया था जबकि कारगिल में विरोध। पर हाल के दिनों में पूर्ण राज्य के दर्जे की मांग को लेकर दोनों इलाकों में सहमती है।
मांगों को समझें : जनप्रतिनिधित्व न होने से नाराजगी

5 अगस्त 2019 को लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया। तब लेह के लोग खुश थे कि वे जम्मू-कश्मीर के प्रशासनिक प्रभुत्व से मुक्त हो गए। हालांकि नए केंद्र शासित प्रदेश के ढांचे में उन्हें जम्मू-कश्मीर की तरह विधानसभा नहीं मिली, जिससे कुछ दिन बाद ही लोग असंतुष्ट हो गए क्योंकि अभी पूरा प्रशासन उपराज्यपाल (LG) और नौकरशाहों के हाथ में है। ऐसे में स्थानीय लोगों को नीति बनाने में बजट आवंटन से जुड़े सीमित अधिकार मिले हैं।  लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषदें लेह और करगिल के हैं, जिन्हें क्षेत्र के केवल 10% बजट का प्रबंधन मिलता है, जिनके पास सीमित शक्तियां हैं, जिसने असंतोष को और बढ़ावा दिया है।

 

सरकारी नौकरी का संकट
जब लद्दाख जम्मू-कश्मीर का हिस्सा था, तब जम्मू-कश्मीर लोक सेवा आयोग के तहत लद्दाख के लोगों को नौकरियों के अवसर थे। स्थानीय लोगों का कहना है कि यूटी बनने के बाद कोई अलग पीएससी स्थापित नहीं हुई, जिससे कोई राजपत्रित नियुक्तियां नहीं हुईं।
केंद्र शासित प्रदेश के गठन के बाद वादा किया गया था कि 6 से 7 हजार नौकरियां मिलेंगी पर केवल 1,000-1,200 वैकेंसी ही भरी गई हैं। इसके अलावा लद्दाख विश्वविद्यालय में भी कॉन्ट्रैक्ट पर भर्तियां हुई हैं जबकि वहां रोजगार का संभावित है। ऐसी स्थितियों ने लोगों को एकजुट किया है। 
5 राउंड वार्ता में कोई हल न निकलने से असंतोष फैला
चार मुख्य मांगों में पूर्ण राज्य का दर्जा, छठी अनुसूची में शामिल होना (जो आदिवासी क्षेत्रों को स्वायत्तता देती है), अलग लोकसभा सीटें और स्थानीय नौकरियों में आरक्षण हैं। इनको लेकर केंद्र सरकार के साथ अब तक पांच राउंड की वार्ता हो चुकी है। सोनम वांगचुक का कहना था कि “सरकार हर बार एक नई तारीख दे देती है पर वार्ता से हल नहीं निकलता।”

बोलते पन्ने.. एक कोशिश है क्लिष्ट सूचनाओं से जनहित की जानकारियां निकालकर हिन्दी के दर्शकों की आवाज बनने का। सरकारी कागजों के गुलाबी मौसम से लेकर जमीन की काली हकीकत की बात भी होगी ग्राउंड रिपोर्टिंग के जरिए। साथ ही, बोलते पन्ने जरिए बनेगा .. आपकी उन भावनाओं को आवाज देने का, जो अक्सर डायरी के पन्नों में दबी रह जाती हैं।

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AC Sleeper बसें: कई देशों में बैन, भारत कब उठाएगा कदम?

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  • जर्मनी, चीन व इंग्लैंड ने डबल डेकर स्लीपर बसें पूरी तरह बैन कर दीं।
  • खतरनाक डिजायन, ऊंचाई के चलते पलटने का खतरा अहम वजह।
  • भारत में बीती 14, 17 व 25 अक्तूबर को तीन बड़े हादसों में 50 लोग मरे।

 

नई दिल्ली  |

देश में बीते दो सप्ताह के भीतर तीन बड़े बस एक्सीडेंट हुए जिसमें 50 यात्रियों की जलकर जान चली गई, इसमें अधिकांश यात्री तो नींद में ही मर गए। जिन AC स्लीपर बसों को कुछ बड़े देश कई साल पहले ‘चलती-फिरती कब्र’ बताकर बैन कर चुके हैं, वे बसें भारत में ‘लग्जरी सफर’ की पहचान बन गई हैं। ट्रेनों की लेटलतीफी और टिकट की मारामारी ने लॉन्ग रूट पर स्लीपर बसों को लोकप्रिय बनाया पर इनके खतरे लगातार सामने आ रहे हैं। आइए जानते हैं किस देश ने कब इसे बैन कर दिया।

  • जर्मनी में डबल डेकर स्लीपर बसें 2006 में पूरी तरह बैन हो गईं। इससे पहले इन बसोें को 1931 में रेलवे के संरक्षण के लिए बंद किया गया था पर 2000 के दशक में ये लोकप्रिय हो गईं। पर इन बसों से कई हादसे होने के बाद बैन लगा। इन बसों की ऊंची बनावट के चलते पलटने का खतरा ज्यादा था, सोते समय यात्रियों के बेल्ट न बांधने से एक्सीडेंट होने पर वे उछलकर गिरने से मर जाते थे।

 

  • चीन ने 2012 से नए रजिस्ट्रेशन बंद कर दिए और 2018 में सभी पुरानी स्लीपर बसें हटा दीं। 1990 के दशक में स्लीपर बसों की यहां शुरूआत हुई क्योंकि रेल नेटवर्क की कमी थी। पर 2009 से 2012 के बीच 13 हादसों में 252 मौतें हुईं, जिसपर गाइडलाइन सख्त की गईं पर लाभ नहीं मिला। डिजायन की कमी, ओवरलोडिंग, लंबे सफर में ड्राइवर को आराम न मिलने और सीटों के बीच कम स्पेस के चलते इसे बैन किया गया।

 

  • इंग्लैंड (यूके) ने 2017 में स्लीपर बसें पूरी तरह बंद कर दी गईं। इन बसों को कर्मिशियल बस सर्विस में असफल पाया गया क्योंकि इनमें ज्यादा लागत और ज्यादा खतरा था। इंग्लैंड में 1920 से 50 के दशक में स्लीपर कोच प्रचलन में थे। शॉर्ट सर्किट की आशंका, सुरक्षा की कमी के चलते इसे बंद कर दिया गया। लंबी दूरी के लिए स्लीपर ट्रेन ज्यादा सेफ मानी गईं।

 

 


 

भारत में हुए स्लीपर बस हादस इन कारणों से हुए 

  • बिजली शॉर्ट सर्किट: एसी यूनिट की खराब वायरिंग, ओवरलोडिंग या पुरानी मॉडिफिकेशन से स्पार्क। जैसलमेर और वेल्लोर मामलों में यही हुआ।
  • ईंधन रिसाव और टक्कर: डीजल टैंक फटने से आग, जैसा कुर्नूल में। नींद की कमी वाले ड्राइवर (जो 40% रोड एक्सिडेंट्स के लिए जिम्मेदार, जैसा केरल ट्रांसपोर्ट ऑफिशियल्स का कहना है) हाई स्पीड पर कंट्रोल खो देते हैं।
  • डिजाइन की कमियां: स्लीपर बर्थ की संकरी गलियां, ब्लॉक इमरजेंसी एग्जिट, ज्वलनशील इंटीरियर और सील्ड एसी सिस्टम धुएं को फैलने नहीं देते।
  • रखरखाव की कमी: प्राइवेट ऑपरेटर्स सेफ्टी चेक स्किप करते हैं; कई बसें पुरानी या अवैध मॉडिफाइड।

 

17 अक्तूबर (तमिलनाडु) :  ब्रेक फेल होने से टक्कर, एसी वायरिंग के आग तेजी से फैली

चेन्नई-बेंगलुरु नेशनल हाईवे पर कलाथुर जंक्शन के पास एक तमिलनाडु स्टेट ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन (टीएनएसटीसी) की एसी बस एक कार से टकराई। टक्कर के बाद दोनों वाहनों में आग लग गई, जिसमें बस का ड्राइवर और कार के दो यात्री जिंदा जल गए।
पुलिस के अनुसार, बस की ब्रेक फेलियर और हाई स्पीड मुख्य कारण थे। आग तेजी से फैली क्योंकि एसी सिस्टम के वायरिंग में शॉर्ट सर्किट हो गया, जो ईंधन टैंक तक पहुंच गया। इस हादसे में कुल पांच लोगों की मौत हुई, जबकि 12 यात्री घायल हो गए।
राज्य के परिवहन मंत्री एसएस सूर्या ने जांच के आदेश दिए हैं, लेकिन विपक्ष ने पुरानी बसों के रखरखाव की कमी को जिम्मेदार ठहराया।
14 अक्टूबर (राजस्थान) : एसी यूनिट में शॉर्ट सर्किट, खिड़कियां तोड़ने पर आग भड़की
राजस्थान के जैसलमेर के पास 14 अक्टूबर को एक प्राइवेट एसी स्लीपर बस जोधपुर जा रही थी, जब अचानक आग लग गई। थियात गांव के पास यह बस, जिसमें 57 यात्री सवार थे (जिनमें परिवार और बच्चे शामिल थे), सिर्फ पांच दिन पहले एसी फिटिंग करायी गई थी।
फॉरेंसिक रिपोर्ट के मुताबिक, एसी यूनिट की खराब वायरिंग में शॉर्ट सर्किट से आग भड़की, जो इंजन से जुड़ी होने के कारण तेजी से फैली। कार्बन मोनोऑक्साइड गैस से कई यात्री बेहोश हो गए, और जब उन्होंने खिड़कियां तोड़ने की कोशिश की तो बाहर की हवा ने आग को और भड़का दिया।
बस का मुख्य दरवाजा जाम हो गया, इमरजेंसी एग्जिट ब्लॉक था, और कोई फायर एक्सटिंग्विशर या ब्रेकेबल विंडो हैमर नहीं था। नतीजतन 26 मौतें हुईं जिनमें तीन बच्चे शामिल थे, और 16 घायल।
राजस्थान के मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा ने घटनास्थल का दौरा किया और पीड़ित परिवारों को 10 लाख रुपये की सहायता की घोषणा की। बस मालिक, ड्राइवर और वर्कशॉप ओनर को गिरफ्तार किया गया है।
25 अक्तूबर (आंध्र प्रदेश)  : बाइक के फ्यूल टैंक से बस में आग, बस के गेट जाम हो गए
कुर्नूल की घटना सबसे भयानक रही, जहां 24 अक्टूबर को हैदराबाद से बेंगलुरु जा रही एक लग्जरी एसी वोल्वो स्लीपर बस (कावेरी ट्रेवल्स) मोटरसाइकिल से टकराई।
चिन्नाटेकुर गांव के पास रात 3:30 बजे हुई इस टक्कर में मोटरसाइकिल का फ्यूल टैंक फट गया, और स्पार्क से बस का डीजल टैंक आग पकड़ लिया। एसी सिस्टम के सील्ड डिजाइन ने धुएं को अंदर कैद कर दिया, जबकि इंटीरियर की सिंथेटिक सामग्री (फोम, प्लास्टिक, रेक्सिन) और एसी गैस (आर-32 या आर-410A जैसी ज्वलनशील) ने आग को बेकाबू बना दिया।
बस के दरवाजे पिघलकर जाम हो गए, और इमरजेंसी विंडोज नहीं खुलीं। 40 यात्रियों में से 20 जिंदा जल मरे, जिनमें दो तमिलनाडु के निवासी भी थे। ड्राइवरों ने भागने की कोशिश की।  स्थानीय लोग और फायर ब्रिगेड ने एक घंटे तक आग बुझाई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मृतकों के परिवारों को 2 लाख रुपये की अनुग्रह राशि घोषित की, जबकि आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू ने हाई-लेवल जांच के आदेश दिए।
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बिहार चुनाव 2025: NDA में सीट शेयरिंग का जिम्मा क्यों संभाल रही BJP?

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बीजेपी NDA गठबंधन में सबको साधने की जिम्मेदारी उठा रही, उसके इसमें अपने हित हैं।
बीजेपी NDA गठबंधन में सबको साधने की जिम्मेदारी उठा रही, उसके इसमें अपने हित हैं।
  • नीतीश कुमार की जदयू खुद को NDA में ‘बड़ा भाई’ कहती आई है पर बीजेपी प्रमुख भूमिका निभा रही।

पटना। हमारे संवाददाता

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में सत्ता चला रहा NDA गठबंधन में पांच पार्टियों वाला है। जिसमें नीतीश कुमार की जदयू (JDU) खुद को बड़ा भाई कहती आई है। फिर आखिर ऐसा क्यों है कि NDA गठबंधन में सीट बंटवारे की जिम्मेदारी BJP के जिम्मे है?

जानकारी कहते हैं कि BJP की केंद्रीय ताकत, नीतीश की JDU पर कमजोर हुई पकड़ और केंद्रीय सत्ता चलाने के लिए BJP की ‘राजग’ (NDA) गठबंधन को चलाने की मजबूरी ने बिहार में NDA सीट शेयरिंग की कमान BJP को सौंपी है। आइए इसे विस्तार में समझते हैं।

 

NDA गठबंधन को जानिए 

NDA जिसे हिन्दी में राजग कहा जाता है, इस गठबंधन का पूरा नाम ‘राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन’ (National democratic alliance ) है। इस संगठन को  15 May 1998 में बनाया गया। बिहार में राजग के बैनर तले BJP, JD(U), LJP(RV), HAM(S), RLM का गठबंधन है।

 

BJP की NDA में मजबूत पकड़

अमित शाह, जेपी नड्डा और PM मोदी की राजग में मजबूत पकड़ BJP को सीट बंटवारे का नेतृत्व करने की ताकत देती है। BJP, NDA की सबसे बड़ी पार्टी है, जिसने 2020 में 74 सीटें जीतीं, जबकि जेडी(यू) (JDU) की 43 सीटें थीं।

 

सेंटर में गठबंधन की मजबूरी 

2024 लोकसभा चुनाव में BJP को बहुमत नहीं मिला। नीतीश कुमार का समर्थन केंद्र के लिए जरूरी है। इसलिए BJP को चिराग पासवान (LJP-RV, 20-25 सीटें), जीतन राम मांझी (HAM, 7 सीटें) और उपेंद्र कुशवाहा (RLM, 6 सीटें) के साथ संतुलन बनाना पड़ रहा है। चिराग ने 40-50 सीटें मांगीं, लेकिन BJP ने सर्वे के आधार पर सीट बंटवारे का फॉर्मूल बनाया है, ताकि मजबूत उम्मीदवार उतारे जाएं।

दूसरी ओर,  बीजेपी NDA सहयोगियों को इसलिए भी साध रही है ताकि 2029 पीएम मोदी को प्रधानमंत्री बनाए रखा जा सके, अगर NDA गठबंधन बिखरा तो उनकी पीएम की कुर्सी पर खतरा न आएं।

 

बिहार चुनाव में NDA की रणनीति: 

BJP ने पटना में बैठक कर ‘NDA सरकार फिर से’ का नारा दिया ताकि विपक्षी महागठबंधन (RJD-कांग्रेस) के खिलाफ एकजुटता बनाई रखी जा सके। 20 साल के नीतीश राज से पैदा हुई ऊब या एंटी-इनकंबेंसी से निपटने के लिए भी राजद गठबंधन की रणनीति बनाई गई है।

 

JD(U) में अंदरूनी संकट  

JD(U) में नीतीश कुमार का नियंत्रण कमजोर हुआ। संजय कुमार झा, विजय कुमार चौधरी और ललन सिंह बड़े फैसले ले रहे हैं। बीते 10 अक्तूबर को RJD में चले गए नीतीश के विश्वासपात्र संतोष कुशवाहा ने आरोप लगाया कि नीतीश को अंधेरे में रखा जा रहा। “ये तीनों सवर्ण समुदाय से हैं, जिससे लव-कुश (कुर्मी-कुशवाहा), अति-पिछड़ा और दलित कार्यकर्ताओं में नाराजगी है।” सूत्रों के मुताबिक, नीतीश को 90% फैसलों की जानकारी नहीं दी जाती।

 

NDA बैठकों में नीतीश की अनुपस्थिति:

सीट बंटवारे और टिकट वितरण में नीतीश कम नजर आए। विजय कुमार चौधरी पर ज्यादा जिम्मेदारी है। JD(U) कार्यकर्ताओं को लगता है कि नीतीश के बजाय ये नेता फैसले ले रहे, जिससे टिकट न मिलने की शिकायतें बढ़ीं। हालांकि, नीतीश ने हाल में JD(U) दफ्तर में बैठकें कीं और उम्मीदवारों से मिले।

‘हम बड़े भाई, पर सहयोगियों से आप निपट लें’

नीतीश ने हाल में BJP से कहा, “चिराग, मांझी और कुशवाहा से आप निपटें, हम अपनी सीटों पर समझौता नहीं करेंगे।” इस बयान ने बीजेपी को मजबूती दी। हालांकि चिराग पासवान व जीतनराम मांझी को अपने फॉर्मूला पर मनाना उसके लिए चुनौती बन गया है।

NDA गठबंधन में BJP ने 100+ सीटों पर दावा किया है जबकि JD(U) का कहना है कि “उसे भाजपा के बराबर नहीं बल्कि उससे ज्यादा सीटें चाहिए, भले वह एक सीट ही ज्यादा पर लड़े, आखिर वह NDA में ‘बड़े भाई’ की भूमिका में है।”

 

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बिहार चुनाव: क्या कांग्रेस अब भी फैक्टर, राहुल गांधी की मेहनत लाएगी रंग?

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पटना में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक के दौरान संबोधन देते राहुल गांधी (क्रेडिट - @SupriyaShrinate)
पटना में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक के दौरान संबोधन देते राहुल गांधी (क्रेडिट - @SupriyaShrinate)
  • तेजस्वी यादव को CM चेहरा न बनाकर कांग्रेस गठबंधन में चाहती है बराबरी।
  • राहुल के ‘वोट चोरी’ नैरेटिव ने हवा बनाई पर क्या चुनाव तक वोटर पर असर रहेगा?

पटना| हमारे संवाददाता 

6 और 11 नवंबर को होने जा रहे बिहार विधानसभा चुनाव की सियासी गर्मी चरम पर है। RJD के नेतृत्व वाला महागठबंधन और नीतीश कुमार की NDA के बीच कांटे की टक्कर है। लेकिन इस बार कांग्रेस ने ‘वोट चोरी’ का मुद्दा उठाकर नया रंग जोड़ा है। राहुल गांधी की ‘मतदाता अधिकार यात्रा’ ने लाखों लोगों को जगाया, पर सवाल यह है कि क्या कांग्रेस बिहार में अब भी फैक्टर है या यह सिर्फ एक शोर बनकर सिमट जाएगी ? आइए जानते हैं इस विश्लेषण में..

‘वोट चोरी’ ने हवा बनाई, चुनाव तक मुद्दा रहेगा?

  • कांग्रेस का दावा: जुलाई 2025 में विशेष गहन संशोधन (SIR) के दौरान चुनाव आयोग (ECI) ने 65 लाख वोटरों के नाम काटे। इनमें ज्यादातर गरीब, दलित और अल्पसंख्यक। राहुल गांधी ने इसे ‘वोट चोर- गद्दी छोड़’ का नारा दिया।
  • ECI का जवाब: ECI ने दावा खारिज किया, कहा—केवल 1.97 लाख संदिग्ध नाम हटाए। सुप्रीम कोर्ट ने SIR पर रोक नहीं लगाई, पर समयबद्धता पर सवाल उठाए।
  • आरोपों का असर: कांग्रेस का अभियान सोशल मीडिया पर छाया। #VoteChorGaddiChhod ट्रेंड किया। X पर यूजर्स ने ECI की पारदर्शिता पर सवाल उठाए। लेकिन BJP ने पलटवार किया—’कांग्रेस का बूथ लूट का इतिहास है।’
  • हस्तक्षेप की गुंजाइश कम : SIR बंद होने की उम्मीद कम है, क्योंकि चुनाव प्रक्रिया शुरू हो चुकी और अनुच्छेद 329 के तहत सुप्रीम कोर्ट इसमें हस्तक्षेप से बचेगा। जिससे कांग्रेस का वोट-चोरी का नैरेटिव कमजोर पड़ सकता है।

बिहार कांग्रेस के चुनावी वादों का एक पोस्टर (साभार X @INCBihar)

बिहार कांग्रेस के चुनावी वादों का एक पोस्टर (साभार X @INCBihar)

कांग्रेस का आधार और रणनीति

  • सीट शेयरिंग: 2020 में 19 सीटें जीतने वाली कांग्रेस अब 56-60 सीटों पर दावेदारी कर रही है। RJD ने 56 सीटों का ऑफर दिया, पर बातचीत जारी। 30 उम्मीदवारों की सूची तैयार कर ली गई है।

 

  • मजबूत क्षेत्र: गोपालगंज (15.1% वोटर डिलीशन), पूर्णिया (12.1%वोटर डिलीशन), किशनगंज (11.8% वोटर डिलीशन), मधुबनी (10.4% वोटर डिलीशन) में कांग्रेस की पकड़। इन जिलों में प्रवासी मजदूरों और अल्पसंख्यकों का वोट बैंक है, जो वोट चोरी के आरोपों से गुस्से में हैं। दक्षिणी बिहार के भोजपुर जैसे जिलों में भी पार्टी की पैठ बढ़ रही, जहां आरा-बढ़हरा सीटों पर दावेदारी मजबूत।

 

  • कमजोर क्षेत्र: मगध और शाहाबाद डिवीजन मेें कांग्रेस का आधार कमजोर है, यहां NDA का दबदबा बना हुआ है।

 

  • CWC की रणनीति: बीते 24 सितंबर को पटना में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में ‘वोट चोरी’ को राष्ट्रीय मुद्दा बनाने का निर्णय हुआ। इसमें कहा गया कि वोट चोरी का मतलब, “राशन, पेंशन, रोजगार और न्याय की चोरी है।” यानी आगे के प्रचार का फोकस ये मुद्दे होंगे।

 


क्या कांग्रेस फैक्टर है?

  • कांग्रेस के कैंपेन से महागठबंधन में एका : राहुल की यात्रा ने युवाओं और अल्पसंख्यकों में जागरूकता फैलाई। X पर ‘वोटर लिस्ट स्कैम’ चर्चा में। इस मुद्दे से महागठबंधन के दलों के बीच एकता मजबूत हुई। ये एकता अगर महागठबंधन को 120 से ज्यादा सीटें जिता दे तो कांग्रेस को 20-25 सीटें मिलना संभव।
राहुल और तेजस्वी की जोड़ी ने बिहार में युवाओं को अपील किया।

राहुल और तेजस्वी की जोड़ी ने बिहार में युवाओं को अपील किया।

  • मुद्दा फीका पड़ा तो हाशिए पर जाने का डर :  वोट चोरी पर ECI की रिपोर्ट ने कांग्रेस के वोट चोरी के दावों को कमजोर किया। कांग्रेस ने वोट चोरी पर लिखित आपत्ति भी नहीं दर्ज करायी। ऐसे में अगर वोट चोरी का मुद्दा फीका पड़ गया तो पार्टी फिर हाशिए पर जा सकती है।

 

  • ‘घुसपैठ नैरेटिव’ और ₹10000 की योजना चुनौती: वोट चोरी नारे को काउंटर करने के लिए NDA ने अवैध धुसपैठ का नैरेटिव दिया। फिर  महिला स्वरोजगार के लिए NDA 10,000 रुपये की मदद योजना लायी। ये कदम कांग्रेस के लिए चुनौती बन सकते हैं।
  • बड़े नेताओं का साथ छोड़ना चुनौती : बिहार कांग्रेस के बड़े नेता रहे डॉ. अशोक राम ने हाल में जदयू (JDU) का दामन थाम लिया, ये छह बार के विधायक व पूर्व प्रदेश कांग्रेस कार्यकारी थे।
    जदयू में गए डॉ.

    JDU में शामिल होने के बाद नीतीश कुमार के साथ पूर्व वरिष्ठ कांग्रेसी डॉ. अशोक राम। (फोटो – फेसबुक) 

     

    एक और वरिष्ठ नेता व पूर्व मंत्री मुरारी प्रसाद गौतम ने भाजपा का रुख किया है। बिक्रम सीट से दो बार विधायक रहे सिद्धार्थ सौरव ने भी BJP ज्वाइन कर ली। हालांकि बिहार प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम, राहुल गांधी के करीबी कन्हैया कुमार, निर्दलीय और कांग्रेस समर्थित सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव बिहार में कांग्रेस की मजबूती हैं।

 

 


सासाराम में संबोधित करते तेजस्वी यादव (साभार - तेजस्वी एक्स हैंडल)

सासाराम में संबोधित करते तेजस्वी यादव (साभार – तेजस्वी एक्स हैंडल)

तेजस्वी को CM चेहरा न बनाना: सियासी चाल

  • RJD की मांग: तेजस्वी यादव को CM चेहरा बनाने की मांग लगातार राजद कर रही है पर कांग्रेस इसे टालती आई है।
  • कांग्रेस की रणनीति: ऐसा करके कांग्रेस इस गठबंधन में बराबरी चाहती है। CWC ने तेजस्वी को ‘अनौपचारिक’ नेता माना, पर औपचारिक ऐलान को टाल दिया था।
  • देरी से जोखिम: तेजस्वी को सीएम न बनाने का कांग्रेस का दांव RJD का वर्चस्व भी बढ़ा सकता है क्योंकि चुनाव की घोषणा हो चुकी है।
  • तेजस्वी की नौकरी घोषणा चुनौती: तेजस्वी ने अपनी ओर से जीतने के बाद ‘नई सरकार’ में कानून बनाकर ‘हर घर को एक सरकार नौकरी’ देने की घोषणा कर दी है। कांग्रेस के लिए 2020 की तरह 19 सीटों के नुकसान को दोहराने का संकट।

 

NDA पर कांग्रेस ने चार्जशीट निकाली, क्या बदलेगा प्रचार

नौ अक्तूबर को तेजस्वी यादव ने ‘हर घर को एक सरकार नौकरी’ का वादा किया था, इसी दिन कांग्रेस ने पटना में NDA को ‘डबल इंजन’ (double engine)  नहीं ‘ट्रबल इंजन’ (trouble engine) सरकार बताया और 42 पन्नों की चार्जशीट जारी की। साथ ही, नीतीश के बीस साल को ‘विनाश काल’ कहा।

पटना में कांग्रेस की प्रेसवार्ता।

पटना में कांग्रेस की प्रेसवार्ता।

इससे संकेत मिले कि अब कांग्रेस एनडीए सरकार की भ्रष्टाचारी सरकार के रूप में प्रचारित करना चाहती है, ऐसे में सवाल है कि क्या इससे वोटर प्रभावित होगा और क्या प्रचार का फोकस ‘वोट चोरी’ से आगे बढ़ेगा?

कांग्रेस के जयराम रमेश ने कहा-

“जुलाई-2025 में CAG की रिपोर्ट के अनुसार, बिहार के 10 विभागों में 71 हजार करोड़ रुपए का घोटाला हुआ है। यह बिहार का भविष्य नहीं हो सकता।” – बिहार कांग्रेस

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