दुनिया गोल
Ukraine War: गज़ा के बाद अब यूक्रेन में शांति की ट्रंप योजना, शर्ते जानिए
- Gaza के बाद अब Ukraine पर Trump का नया प्लान, शांति के लिए रूस को देनी होगी जमीन
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NATO में शामिल नहीं होगा Ukraine, सेना की संख्या पर भी लगेगी 6 लाख की लिमिट
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रूस से हटेंगे सारे प्रतिबंध, लेकिन जंग नहीं रुकी तो भुगतने होंगे गंभीर अंजाम
नई दिल्ली |
अमेरिका (America) के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) ने गाजा के बाद अब यूक्रेन युद्ध को खत्म करने के लिए एक नया और चौंकाने वाला प्लान तैयार किया है। इस मसौदे (Draft) की रिपोर्ट अमेरिकी मीडिया में लीक होने से इस मामले का खुलासा हुआ है। इस ‘पीस प्लान’ का सीधा मतलब है- “जमीन के बदले यूक्रेन को शांति”।
इस लीक डॉफ्ट के हवाले से रिपोर्ट किया जा रहा है किॉ ट्रंप प्रशासन ने यूक्रेन (Ukraine) के सामने शर्त रखी है कि अगर उसे युद्ध रोकना है, तो उसे अपने देश का कुछ हिस्सा हमेशा के लिए रूस (Russia) को देना होगा। यूक्रेन सरकार ने इस योजना पर सधी हुई प्रतिक्रिया देते हुए कहा है-
“अमेरिकी पक्ष का आकलन है कि इस योजना से कूटनीति को पुनर्जीवित करने में मदद मिलेगी।”
यूक्रेन को छोड़नी होगी अपनी जमीन
इस ड्राफ्ट प्लान के मुताबिक, अमेरिका अब क्रीमिया (Crimea) और अन्य उन इलाकों को रूस का हिस्सा मानने को तैयार है, जिन पर अभी रूसी सेना का कब्जा है। यानी यूक्रेन को इन इलाकों से अपना दावा छोड़ना होगा। जहां अभी दोनों देशों की सेनाएं खड़ी हैं, वहीं पर युद्ध रोक दिया जाएगा और उसे नई सीमा मान लिया जाएगा।
NATO में शामिल होने पर ‘बैन’
ट्रंप के इस प्लान में यूक्रेन के लिए कई सख्त शर्तें हैं।
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NATO नो-एंट्री: यूक्रेन कभी भी नाटो (NATO) का सदस्य नहीं बनेगा।
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सेना पर रोक: यूक्रेन अपनी सेना को बहुत ज्यादा नहीं बढ़ा सकता। उसकी सेना में अधिकतम 6 लाख सैनिक ही हो सकेंगे।
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विदेशी सेना नहीं: यूक्रेन की धरती पर नाटो या किसी और देश की सेना तैनात नहीं होगी।
रूस को क्या फायदा मिलेगा?
अगर यह समझौता होता है, तो इससे रूस को बड़ी जीत मिलेगी क्योंकि इसकी कई बातें, पुतिन की शर्तों से मेल खाती हैं।
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रूस पर लगे सभी अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध (Sanctions) हटा दिए जाएंगे।
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रूस को फिर से दुनिया के व्यापार में शामिल किया जाएगा और वह अपना तेल-गैस आसानी से बेच सकेगा।
शर्त तोड़ी तो भुगतना होगा अंजाम
ट्रंप ने दोनों पक्षों को चेतावनी भी दी है।
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रूस के लिए: अगर समझौता होने के बाद रूस ने फिर हमला किया, तो अमेरिका उस पर दोबारा कड़े प्रतिबंध लगा देगा और यूक्रेन को और ज्यादा हथियार देगा।
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यूक्रेन के लिए: अगर यूक्रेन ने बिना वजह रूस के शहरों पर मिसाइल दागी, तो अमेरिका उसकी सुरक्षा की गारंटी खत्म कर देगा।
ज़ेलेंस्की तैयार, यूरोप हैरान
अमेरिकी अधिकारियों ने यह प्लान यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की (Volodymyr Zelensky) को सौंप दिया है। ज़ेलेंस्की ने कहा है कि वह शांति के लिए काम करने को तैयार हैं। लेकिन यूरोप (Europe) के कई देश इस प्लान से हैरान हैं। उनका मानना है कि अपनी जमीन रूस को दे देना यूक्रेन के लिए हार मानने जैसा होगा।
दुनिया गोल
COP30: दुनिया को बचाने के मकसद वाले जलवायु सम्मेलन में कोयला-पेट्रोल पर दो फाड़, क्या हो पाएगा समझौता?
- COP30 में 80 से ज्यादा देशों ने खोला मोर्चा, जीवाश्म ईंधन को खत्म करने के लिए मांगा ‘ठोस प्लान’
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मेजबान Brazil की कोशिशें हुईं नाकाम, Saudi Arabia समेत कई तेल उत्पादक देशों ने अड़ाया अड़ंगा
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गतिरोध तोड़ने के लिए EU ने दिया नया प्रस्ताव, Turkey करेगा अगले साल COP31 की मेजबानी
नई दिल्ली |
ब्राजील (Brazil) के बेलेम (Belem) शहर में चल रहे संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन यानी COP30 में भारी हंगामा देखने को मिला। धरती को बचाने के लिए बुलाई गई इस बैठक में दुनिया दो हिस्सों में बंटी नजर आई। 10 नवंबर से शुरू हुए इस वैश्विक सम्मेलन का आज (21 nov) को अंतिम दिन है और अभी तक कोई साझा घोषणापत्र पर सहमति नहीं बन सकी है।
एक तरफ 80 से ज्यादा देशों ने एकजुट होकर मांग की है कि दुनिया से पेट्रोल, डीजल और कोयले यानी जीवाश्म ईंधन को खत्म करने का पक्का ‘रोडमैप’ (Total Phase out) तैयार किया जाए, ऐसा न होने पर वे प्रस्ताव ब्लॉक कर देंगे।
वहीं, दूसरी तरफ सऊदी अरब (Saudi Arabia) समेत कई तेल उत्पादक देश इसके सख्त खिलाफ खड़े हो गए हैं। चीन और अमेरिका इस पर चुप्पी साधे हैं। इस खींचतान के कारण मेजबान ब्राजील शुरुआती समझौता कराने में विफल रहा है। अब देखना होगा कि अंतिम दिन मेजबान ब्राजील किस तरह सहमति बना पाता है या यह सम्मेलन बिना दुनिया के तापमान को बढ़ने से रोकने के आवश्यक कदम पर सहमति न बनाए बिना समाप्त हो जाएगा।
जलवायु संकट से जूझ रहे छोटे देशों की धमकी
द गार्जियन ने रिपोर्ट किया है कि कम से कम 28 देशों ने मेजबान ब्राजील को 20 नवंबर को पत्र लिखकर चेतावनी दी है कि अगर अंतिम समझौते में फॉसिल फ्यूल (जीवाश्म ईंधन) को पूरी तरह चरणबद्ध तरीके से खत्म करने (phase-out) का स्पष्ट और बाध्यकारी रोडमैप नहीं जोड़ा गया, तो वे पूरे प्रस्ताव को ब्लॉक कर देंगे।
ये देश कर रहे मांग
पूरी तरह प्राकृतिक ईंधन से इस्तेमाल को हटाने का समर्थन करने वाले देशों में यूरोपीय संघ, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, चिली, कोलंबिया, वनुआतु, तुवालु, मार्शल आइलैंड्स और अफ्रीकी देशों का बड़ा समूह शामिल है।
80 देशों ने बनाई ‘ग्लोबल कोलिशन’
सम्मेलन में अफ्रीका, एशिया, लैटिन अमेरिका और प्रशांत क्षेत्र के देशों ने यूरोपीय संघ (EU) और ब्रिटेन (UK) के साथ मिलकर एक वैश्विक गठबंधन बना लिया है। Marshall Islands की जलवायु दूत टीना स्टेज (Tina Stege) ने 20 मंत्रियों के साथ एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “हम सबको मिलकर एक रोडमैप के पीछे खड़ा होना होगा और इसे एक योजना में बदलना होगा।” यूके के ऊर्जा सचिव एड मिलिबैंड (Ed Miliband) ने भी जोर देकर कहा, “यह मुद्दा अब कालीन के नीचे नहीं छिपाया जा सकता। हम सब एक आवाज में कह रहे हैं कि जीवाश्म ईंधन से दूरी बनाना ही इस सम्मेलन का दिल होना चाहिए।”
सऊदी अरब बना ‘रोड़ा’
वानुअतु (Vanuatu) के जलवायु मंत्री राल्फ रेगेनवानु (Ralph Regenvanu) ने सीधे तौर पर दुनिया के सबसे बड़े तेल निर्यातक सऊदी अरब (Saudi Arabia) पर निशाना साधा। उन्होंने कहा, “मुझे लगता है कि समझौता बहुत मुश्किल होगा क्योंकि हमारे पास कुछ ‘ब्लॉकर्स’ हैं जो तेल और गैस छोड़ने की किसी भी योजना का विरोध कर रहे हैं।” छोटे द्वीपीय देशों का कहना है कि वे इस मुद्दे पर आखिरी दम तक लड़ेंगे क्योंकि अगर समुद्र का जलस्तर बढ़ा, तो उनका अस्तित्व ही मिट जाएगा।
आखिर क्या है COP30?
सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि यह बैठक क्या है। COP का मतलब है ‘कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज’ (Conference of Parties)। यह संयुक्त राष्ट्र (UN) की एक सालाना बैठक है जिसमें दुनिया भर के लगभग 200 देश शामिल होते हैं।
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मकसद: इसका मुख्य उद्देश्य धरती के बढ़ते तापमान को रोकना और जलवायु परिवर्तन से निपटना है।
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लक्ष्य: पेरिस समझौते के तहत दुनिया के तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा बढ़ने से रोकने पर आगे की योजना बनाना।
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जगह: इस बार यह 30वीं बैठक है, इसलिए इसे COP30 कहा जा रहा है और यह अमेजन के जंगल वाले शहर बेलेम में हो रही है।
मेजबान Brazil का प्लान फेल?
ब्राजील के राष्ट्रपति लूला (Lula da Silva) चाहते थे कि बुधवार तक ही जलवायु वित्त और ईंधन को लेकर एक बड़ा समझौता हो जाए, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। शुरुआत में ब्राजील ने ‘जीवाश्म ईंधन’ को आधिकारिक एजेंडे से बाहर रखा था, लेकिन भारी दबाव के बाद उसे एक ड्राफ्ट पेश करना पड़ा। हालांकि, कई देशों ने इस ड्राफ्ट को बहुत कमजोर बताया। अब राष्ट्रपति लूला आखिरी दो दिनों में किसी नतीजे पर पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं।
EU ने दिया ‘बीच का रास्ता’
इस गतिरोध को तोड़ने के लिए यूरोपीय संघ (EU) ने बुधवार देर रात एक नया प्रस्ताव रखा है। इसमें सुझाव दिया गया है कि देश जीवाश्म ईंधन को छोड़ने के लिए एक रोडमैप तो पेश करें, लेकिन यह ‘गैर-बाध्यकारी’ (Non-prescriptive) होना चाहिए। इसका मतलब है कि किसी भी देश पर कोई विशिष्ट नियम जबरदस्ती नहीं थोपा जाएगा, बल्कि वे विज्ञान के आधार पर खुद तय करेंगे।
तुर्किये करेगा COP31 की मेजबानी
इस तनातनी के बीच एक कूटनीतिक सफलता भी मिली है। ऑस्ट्रेलिया (Australia) के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज (Anthony Albanese) ने पुष्टि की है कि अगले साल के जलवायु सम्मेलन यानी COP31 की मेजबानी को लेकर सहमति बन गई है। इसके तहत तुर्किये (Turkey) अगले साल के सम्मेलन की मेजबानी करेगा, जबकि ऑस्ट्रेलिया सरकारों के बीच बातचीत का नेतृत्व करेगा।
दुनिया गोल
Ops सिंदूर के बाद राफेल विमानों को AI के जरिए बदनाम कर रहा था चीन : अमेरिकी रिपोर्ट में खुलासा
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US रिपोर्ट में खुलासा: चीन ने AI का इस्तेमाल कर राफेल के खिलाफ फैलाया झूठ
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J-35 को बेचने के लिए भारत के राफेल विमानों को बताया था ‘नष्ट’
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पाकिस्तान को बनाया हथियारों की ‘प्रयोगशाला’, भारतीय जनरल के दावे पर लगी मुहर
नई दिल्ली |
पाक के खिलाफ हुए ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारतीय विमानों को लेकर सोशल मीडिया पर चलाए गए दुष्प्रचार के पीछे चीन का हाथ था। ऐसा दावा अमेरिकी संसद की एक रिपोर्ट में किया गया है।
अमेरिका (USA) की एक शीर्ष सरकारी रिपोर्ट में चीन (China) को लेकर कहा गया है कि भारत के राफेल (Rafale) लड़ाकू विमानों के खिलाफ एक सुनियोजित दुष्प्रचार अभियान चलाया था।
‘यूएस-चाइना इकोनॉमिक एंड सिक्योरिटी रिव्यू कमीशन’ (US-China Economic and Security Review Commission) ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में यह खुलासा किया है।
अमेरिकी आयोग ने बताया कि चीन ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का इस्तेमाल करके राफेल विमानों के ‘नकली मलबे’ की तस्वीरें बनाईं और फर्जी सोशल मीडिया अकाउंट्स के जरिए उन्हें पूरी दुनिया में फैलाया, ताकि वह अपने खुद के जे-35 (J-35) विमानों की बिक्री को बढ़ावा दे सके।
राफेल को बदनाम कर अपना ‘J-35’ बेचना चाहता था चीन
रिपोर्ट के मुताबिक, चीन का मकसद दोतरफा था- पहला, फ्रांसीसी राफेल विमानों की छवि खराब करके उनके निर्यात को रोकना और दूसरा, अपने जे-35 विमानों को बेहतर साबित करना। चीन ने यह दिखाने की कोशिश की कि मई में हुए भारत-पाकिस्तान संघर्ष के दौरान चीनी हथियारों ने राफेल को मार गिराया है, जबकि यह पूरी तरह झूठ था।
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि चीनी दूतावास के अधिकारियों ने इसी फर्जी नेरेटिव का इस्तेमाल करके इंडोनेशिया (Indonesia) को राफेल खरीदने से रोकने की भी कोशिश की थी।
पाकिस्तान बना चीन की ‘प्रयोगशाला’
जुलाई महीने में ही भारतीय उपसेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल राहुल आर सिंह ने चीन और पाकिस्तान के इस गठजोड़ को बेनकाब कर दिया था। उन्होंने उस समय साफ कहा था कि चीन अपने हथियारों को टेस्ट करने और उनका प्रचार करने के लिए पाकिस्तान का इस्तेमाल कर रहा है।
अब अमेरिकी आयोग की इस ताजा रिपोर्ट ने भारतीय जनरल के उस दावे पर मुहर लगा दी है। रिपोर्ट में पुष्टि की गई है कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान चीन अपने सदाबहार दोस्त पाकिस्तान (Pakistan) की हर मुमकिन मदद कर रहा था। रिपोर्ट साफ कहती है कि उस संघर्ष के दौरान पाकिस्तान चीनी हथियारों के लिए एक ‘प्रयोगशाला’ बना हुआ था, जहां चीन ने मौकापरस्त तरीके से अपनी तकनीक का परीक्षण किया।
AI एंकर और फर्जी अकाउंट्स का जाल
आयोग ने कांग्रेस को सौंपी रिपोर्ट में बताया कि चीन अपनी ‘ग्रे-जोन’ गतिविधियों के तहत एआई का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग कर रहा है। राफेल के मलबे की तस्वीरें ही नहीं, बल्कि चीन ने वीडियो गेम के विजुअल का भी इस्तेमाल किया।
इसके अलावा, रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ है कि 2024 में चीन समर्थक ऑनलाइन ग्रुप्स ने अमेरिका में भी नशीली दवाओं, आप्रवासन और गर्भपात जैसे मुद्दों पर विभाजन पैदा करने के लिए एआई-जनरेटेड न्यूज एंकर्स और फर्जी प्रोफाइल फोटो का इस्तेमाल किया था।
सीमा विवाद पर भी दोहरी चाल
भारत-चीन संबंधों पर आयोग ने कहा कि सीमा मुद्दे को लेकर दोनों देशों के बीच एक ‘असमानता’ है। चीन चाहता है कि वह अपने मूल हितों का त्याग किए बिना, सीमा विवाद को अलग रखकर भारत के साथ व्यापार और अन्य क्षेत्रों में सहयोग के द्वार खोले। वहीं, भारत सीमा मुद्दों का एक स्थायी समाधान चाहता है। रिपोर्ट में जोर दिया गया है कि भारत सरकार ने हाल के वर्षों में सीमा पर चीन से उत्पन्न खतरे की गंभीरता को अब बेहतर तरीके से पहचाना है।
दुनिया गोल
7 साल बाद US पहुंचे सऊदी क्राउन प्रिंस को मीडिया से सवालों से ट्रंप ने क्यों बचाया?
- अमेरिकी अखबार के पत्रकार जमाल खशोगी की 2018 में हुई के बाद सऊदी राजकुमार की पहली अमेरिकी यात्रा।
नई दिल्ली |
सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान (Mohammed Bin Salman – MBS) 7 साल बाद अपनी पहली आधिकारिक यात्रा (Official Visit) पर मंगलवार (18 nov) को अमेरिका पहुंचे, जहां व्हाइट हाउस (White House) में उनका भव्य स्वागत किया गया।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) ने इस मौके पर एक बड़ा ऐलान करते हुए सऊदी अरब को ‘प्रमुख गैर-नाटो सहयोगी’ (Major Non-NATO Ally – MNNA) का दर्जा देने की घोषणा की।
सऊदी अरब के राजकुमार की अमेरिकी यात्रा की अहमियत को इससे समझा जा सकता है कि ओवल ऑफिस में जब उनसे अमेरिकी मीडिया ने कड़े सवाल पूछने शुरू किए तो राष्ट्रपति ट्रंप नाराज हो गए और उन्होंने कहा एक चैनल को ‘फेक न्यूज’ (Fake News) फैलाने वाला कह डाला।
US का 19वां ‘गैर-नाटो सहयोगी’ बना सऊदी
ट्रंप ने व्हाइट हाउस में आयोजित ब्लैक-टाई डिनर (Black-Tie Dinner) के दौरान कहा कि सऊदी अरब अब अमेरिका के उन 19 विशेष सहयोगी देशों (Strategic Allies) की सूची में शामिल हो गया है, जिनमें इजरायल, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देश हैं। इस दर्जे का मतलब है कि अब सऊदी अरब को अमेरिकी सैन्य हार्डवेयर (US Military Hardware) और उन्नत हथियारों (Advanced Weapons) तक त्वरित पहुंच मिलेगी।
हालांकि, इस समझौते में नाटो सहयोगियों की तरह सुरक्षा की गारंटी(Security Guarantee) शामिल नहीं है, लेकिन यह सऊदी अरब को अमेरिकी हथियारों के भंडारण और रखरखाव (Arms Storage & Maintenance Hub) के लिए एक प्रमुख केंद्र बना देगा।
इजरायल-सऊदी के रिश्ते सुधरवाना है प्राथमिकता
बैठक के दौरान ट्रंप ने सऊदी अरब और इजरायल के बीच संबंधों को सामान्य करने (Normalization Talks) पर जोर दिया। ट्रंप चाहते हैं कि सऊदी अरब भी अब्राहम समझौते (Abraham Accords) में शामिल हो। क्राउन प्रिंस ने कहा कि वे सभी मध्य पूर्वी देशों के साथ अच्छे संबंध चाहते हैं, लेकिन उन्होंने साफ कर दिया कि इजरायल के साथ सामान्यीकरण के लिए फलस्तीनी राज्य का निर्माण (Palestinian State) एक जरूरी शर्त होगी। दोनों नेताओं ने इस मुद्दे पर आगे काम करने और दो-राज्य समाधान (Two-State Solution) का रास्ता तैयार करने पर सहमति जताई।
प्रिंस सलमान से कड़े सवालों से भड़के ट्रंप
प्रेस कॉन्फ्रेंस (Press Conference) के दौरान माहौल तब तनावपूर्ण हो गया जब पत्रकारों ने कड़े सवाल पूछने शुरू किए। एबीसी न्यूज (ABC News Reporter) की रिपोर्टर ने जब अमेरिकी अखबार के पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या और 9/11 हमलों में सऊदी अरब की भूमिका पर सवाल उठाया, तो ट्रंप ने इसे खारिज कर दिया। उन्होंने रिपोर्टर को डांटते हुए कहा कि वे मेहमान को शर्मिंदा कर रही हैं और एबीसी को ‘फेक न्यूज’ करार दिया।
खशोगी और 9/11 पर प्रिंस की सफाई
क्राउन प्रिंस ने 9/11 के सवाल पर बीच में हस्तक्षेप करते हुए कहा कि ओसामा बिन लादेन ने सऊदी लोगों का इस्तेमाल सिर्फ अमेरिका और सऊदी अरब के रिश्तों (US-Saudi Relations) को खराब करने के लिए किया था। खशोगी मामले पर उन्होंने कहा कि यह एक दर्दनाक और गैर-कानूनी घटना (Unlawful Incident) थी, जिसके बाद उन्होंने अपने सिस्टम में सुधार (System Reforms) किया है ताकि ऐसी गलती दोबारा न हो। गौरतलब है कि अमेरिकी खुफिया एजेंसी ने माना था कि पत्रकार खशोगी की हत्या का आदेश खुद प्रिंस सलमान ने दिया था।
अमेरिका के लिए सऊदी क्यों जरूरी है?
अमेरिका के लिए सऊदी अरब सिर्फ तेल का कुआं नहीं, बल्कि एक बड़ा आर्थिक साझेदार (Economic Partner)भी है।
1.ऊर्जा बाजार में पकड़: भले ही अमेरिका को अब सऊदी तेल की उतनी जरूरत न हो, लेकिन सऊदी की सरकारी कंपनी अरामको (Saudi Aramco) अमेरिका में कई बड़ी रिफाइनरियों की मालिक है। टेक्सास के पोर्ट आर्थर में स्थित अमेरिका की सबसे बड़ी रिफाइनरी (Largest US Refinery) अरामको की ही है। इसके अलावा, अमेरिका के कई राज्यों में शेल ब्रांड (Shell Gas Stations) के पेट्रोल पंपों पर अरामको का ही नियंत्रण है।
2.हथियारों का सबसे बड़ा खरीदार: सऊदी अरब अमेरिकी हथियारों का सबसे बड़ा ग्राहक है। ट्रंप प्रशासन ने मई 2017 में ही रियाद के साथ 110 अरब डॉलर के हथियार सौदे (Arms Deal – $110 Billion) पर हस्ताक्षर किए थे। अमेरिकी एयरोस्पेस और डिफेंस सेक्टर (Aerospace & Defense Industry) लाखों लोगों को रोजगार देता है, और सऊदी अरब के ऑर्डर इस उद्योग की रीढ़ हैं।
3.आर्थिक निवेश: सऊदी अरब ने अमेरिकी कंपनियों और शेयर बाजार (US Stock Market) में भारी निवेश किया है। उनका सॉवरेन वेल्थ फंड ‘पीआईएफ’ (Public Investment Fund – PIF) उबर और मैजिक लीप जैसी अमेरिकी टेक कंपनियों (US Tech Companies) में बड़े हिस्सेदार के तौर पर मौजूद है।
written by Mahak Arora (content writer)
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