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दुनिया गोल

ईरान पर 10 साल बाद फिर से UN के प्रतिबंध, क्या असर होगा?

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ईरान (सांकेतिक तस्वीर, इंटरनेट)
ईरान में सर्वोच्च नेता की तस्वीर के साथ स्थानीय लोग। (क्रेडिट - picryl)
  • ईरान के न्यूक्लियर प्रतिबंधों का पालन न करने को लेकर UN ने 28 सितंबर से दोबारा प्रतिबंध लागू कर दिए।
  • रूस-चीन के प्रतिबंध टालने के प्रयास काम नहीं आए, प्रतिबंधों से ईरानी अर्थव्यवस्था पर असर संभव।

नई दिल्ली |

संयुक्त राष्ट्र ने ईरान पर घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लगे कई प्रतिबंधों को 2015 के बाद दोबारा लागू कर दिया है। इसे “snapback” (तीव्र लौटाव) कहा जा रहा है। 30 दिनों की विंडो के बाद प्रतिबंध 28 मई की रात 12 बजे (GMT) से प्रभावी हो गए क्योंकि ईरान ने न्यूक्लियर प्रतिबंधों का पालन नहीं किया।
इसके जवाब में, ईरान ने ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी में नियुक्त अपने राजदूतों को परामर्श के लिए तेहरान वापस बुलाया है। ईरान की कमजोर अर्थव्यवस्था के लिए ये एक बड़ा झटका माना जा रहा है। ईरान ने रविवार को बयान जारी करके कहा कि ऐसे प्रस्तावों को मानने के लिए ईरान या अन्य संयुक्त राष्ट्र सदस्य देश बाध्य नहीं हैं।
 “इस्लामी गणतंत्र ईरान राष्ट्रीय अधिकारों और हितों की पुरज़ोर रक्षा करेगा और ईरानी लोगों के अधिकारों या हितों को नुकसान पहुंचाने वाले किसी भी कदम का उचित और निर्णायक जवाब दिया जाएगा। ऐसे प्रस्तावों को मानने के लिए ईरान या अन्य संयुक्त राष्ट्र सदस्य देश बाध्य नहीं हैं।” – ईरान विदेश मंत्रालय
जानकारों ने प्रतिक्रिया का विश्लेषण करते हुए कहा कि ईरान ने बयान के जरिए परोक्ष रूप से उससे तेल खरीदने वाले देशों को भी कह दिया है कि वे इन प्रतिबंधों को न मानें।

UN प्रतिबंधों का दायरा

  • प्रतिबंध ईरान के न्यूक्लियर, सैन्य, बैंकिंग और शिपिंग क्षेत्रों पर लगेंगे।
  • नये प्रतिबंधों में हथियारों की बंदी, यूरेनियम संवर्धन पर रोक, परमाणु–संबंधित लेनदेन और अन्य आर्थिक उपाय शामिल हैं।

  • ये प्रतिबंध snapback प्रक्रिया के तहत लागू हुए हैं, जो 2015 के परमाणु समझौते (JCPOA) और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की प्रस्ताव संख्या 2231 के हिस्से के रूप में स्थापित थी।
  • पहले कई प्रतिबंध 2006–2010 के बीच लगाए गए थे, जिन्हें बाद में इस समझौते के अंतर्गत हटाया गया था।
UN जनरल असेंबली में भाषण देते ईरानी राष्ट्रपति। (क्रेडिट - flickr)

UN जनरल असेंबली में भाषण देते ईरानी राष्ट्रपति। (क्रेडिट – flickr)

ईरानी पीएम का आश्वासन काम नहीं आया 
ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियन ने यूएन संबोधन में पिछले सप्ताह कहा था कि ईरान का परमाणु हथियार बनाने का कोई इरादा नहीं है। ईरान पर दोबारा अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगाए जाने को उन्होंने “अनुचित, अन्यायपूर्ण और गैरकानूनी” बताया है। 
“अगर न्यूक्लियर कार्यक्रम की चिंता का समाधान होता, तो हम आसानी से कर लेते। हम कभी न्यूक्लियर हथियार नहीं बनाएंगे।” – यूएन में ईरानी राष्ट्रपति
तीन देशों से राजनयिक बुलाए 
प्रतिबंधों को लेकर ईरानी सरकार ने तीन यूरोपीय देशों ब्रिटेन, फ़्रांस और जर्मनी की उस कार्रवाई को “गैर-जिम्मेदाराना” कहा और कहा कि राजदूतों को “परामर्श” के लिए बुलाया गया है।
ईरानी प्रेस एजेंसियों के अनुसार, यह कदम उन देशों के खिलाफ राजनयिक प्रतिक्रिया का एक हिस्सा है जिन्होंने snapback को सक्रिय किया।
2015 में प्रतिबंध हटाए थे जो दोबारा लागू
ईरान पर JCPOA (Joint Comprehensive Plan of Action) के तहत 2015 में UN प्रतिबंध निलंबित हुए थे। लेकिन ईरान के यूरेनियम संवर्धन के 60% तक पहुंच जाने और मिसाइल कार्यक्रम पर काम जारी रखने के चलते तीन यूरोपीय देशों (E3) ने स्नैपबैक सक्रिय किया।
ईरान (प्रतीकात्मक फोटो)

ईरान (प्रतीकात्मक फोटो)

50% कम तेल बेच पाएगा ईरान
ये प्रतिबंध ईरान की अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचा सकते हैं। तेल निर्यात 50% घट सकता है क्योंकि प्रतिबंधों के बाद भारत-चीन पर ईरान से तेल न खरीदने का दवाब बढ़ने की आशंका है जो इसके मुख्य ग्राहक हैं। 
ईरान की मुद्रा में 20% और गिरावट आने व महंगाई के  50% बढ़ जाने की संभावना जतायी जा रही है। ईरान के इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड (IRGC) ने “सक्रिय प्रतिरोध” का संकल्प लिया है।

रूस-चीन ने प्रतिबंधों को अवैध बताया 

रूस और चीन ने इस प्रतिबंध पुनर्स्थापना को अवैध या असंगत बताया है और कहा कि इससे अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति कमजोर होगी। रूस-चीन ने प्रतिबंधों को लागू करने में 6 महीने की देरी का प्रस्ताव लाया लेकिन 9 देशों ने विरोध किया और इसे दोबारा कर दिया गया। 

ब्रिटेन, फ़्रांस और जर्मनी ने ईरान को चेतावनी दी 

तीनों पश्चिमी देशों ने ईरान से कहा है कि वो संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंध फिर से लागू किए जाने के बाद किसी भी आक्रामक कार्रवाई करने से बचे। तीनों देशों ने आरोप लगाया कि ईरान के “परमाणु कार्यक्रम विस्तार” और सहयोग की कमी इसका कारण बनी।

उनके पास “कोई विकल्प नहीं बचा” था और “आखिरी उपाय” के तौर पर इन कड़े कदमों को दोबारा लागू करना पड़ा।

तीनों देशों के संयुक्त बयान में ईरान से बातचीत जारी रखने को कहा गया है।

अमेरिका बोला – ईरान को दवाब में लाएं
US सेक्रेटरी ऑफ स्टेट मार्को रुबियो ने कहा, “ईरान को सीधे वार्ता स्वीकार करनी चाहिए। स्नैपबैक ईरान के नेताओं पर दबाव है।” US ने ईरान के तेल खरीदने वाले चीनी संस्थाओं पर प्रतिबंध भी लगाए। 
इजरायल बोला- BRICS ईरान को जगह न दे
इजरायल ने स्नैपबैक का समर्थन किया। PM बेंजामिन नेतन्याहू ने UNGA में कहा, “ईरान को BRICS जैसे मंच में जगह देकर हम आतंकवाद को वैधता दे रहे हैं।” 
ईरान पर ऐक्शन को भारत कैसे देखे
  • भारत ईरान में $500 मिलियन निवेश से चाबहार पोर्ट बनाया, जो नए प्रतिबंधों के असर में आ सकता है।
  • US ने 19 सितंबर 2025 को चाबहार पोर्ट से व्यापार करने की छूट को रद्द कर दिया, जो भारत-अफगानिस्तान व्यापार को बाधित करेगा।
  • BRICS 2026 की अध्यक्षता भारत करेगा, इजरायल ने इस मंच पर ईरान को जगह न देने की बात कही है।

बोलते पन्ने.. एक कोशिश है क्लिष्ट सूचनाओं से जनहित की जानकारियां निकालकर हिन्दी के दर्शकों की आवाज बनने का। सरकारी कागजों के गुलाबी मौसम से लेकर जमीन की काली हकीकत की बात भी होगी ग्राउंड रिपोर्टिंग के जरिए। साथ ही, बोलते पन्ने जरिए बनेगा .. आपकी उन भावनाओं को आवाज देने का, जो अक्सर डायरी के पन्नों में दबी रह जाती हैं।

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Ukraine War: गज़ा के बाद अब यूक्रेन में शांति की ट्रंप योजना, शर्ते जानिए

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  • Gaza के बाद अब Ukraine पर Trump का नया प्लान, शांति के लिए रूस को देनी होगी जमीन
  • NATO में शामिल नहीं होगा Ukraine, सेना की संख्या पर भी लगेगी 6 लाख की लिमिट

  • रूस से हटेंगे सारे प्रतिबंध, लेकिन जंग नहीं रुकी तो भुगतने होंगे गंभीर अंजाम

 

नई दिल्ली |

अमेरिका (America) के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) ने गाजा के बाद अब यूक्रेन युद्ध को खत्म करने के लिए एक नया और चौंकाने वाला प्लान तैयार किया है। इस मसौदे (Draft) की रिपोर्ट अमेरिकी मीडिया में लीक होने से इस मामले का खुलासा हुआ है। इस ‘पीस प्लान’ का सीधा मतलब है- “जमीन के बदले यूक्रेन को शांति”।

इस लीक डॉफ्ट के हवाले से रिपोर्ट किया जा रहा है किॉ ट्रंप प्रशासन ने यूक्रेन (Ukraine) के सामने शर्त रखी है कि अगर उसे युद्ध रोकना है, तो उसे अपने देश का कुछ हिस्सा हमेशा के लिए रूस (Russia) को देना होगा। यूक्रेन सरकार ने इस योजना पर सधी हुई प्रतिक्रिया देते हुए कहा है-

“अमेरिकी पक्ष का आकलन है कि इस योजना से कूटनीति को पुनर्जीवित करने में मदद मिलेगी।”

यूक्रेन को छोड़नी होगी अपनी जमीन

इस ड्राफ्ट प्लान के मुताबिक, अमेरिका अब क्रीमिया (Crimea) और अन्य उन इलाकों को रूस का हिस्सा मानने को तैयार है, जिन पर अभी रूसी सेना का कब्जा है। यानी यूक्रेन को इन इलाकों से अपना दावा छोड़ना होगा। जहां अभी दोनों देशों की सेनाएं खड़ी हैं, वहीं पर युद्ध रोक दिया जाएगा और उसे नई सीमा मान लिया जाएगा।

NATO में शामिल होने पर ‘बैन’

ट्रंप के इस प्लान में यूक्रेन के लिए कई सख्त शर्तें हैं।

  • NATO नो-एंट्री: यूक्रेन कभी भी नाटो (NATO) का सदस्य नहीं बनेगा।

  • सेना पर रोक: यूक्रेन अपनी सेना को बहुत ज्यादा नहीं बढ़ा सकता। उसकी सेना में अधिकतम 6 लाख सैनिक ही हो सकेंगे।

  • विदेशी सेना नहीं: यूक्रेन की धरती पर नाटो या किसी और देश की सेना तैनात नहीं होगी।

रूस को क्या फायदा मिलेगा?

अगर यह समझौता होता है, तो इससे रूस को बड़ी जीत मिलेगी क्योंकि इसकी कई बातें, पुतिन की शर्तों से मेल खाती हैं।

  • रूस पर लगे सभी अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध (Sanctions) हटा दिए जाएंगे।

  • रूस को फिर से दुनिया के व्यापार में शामिल किया जाएगा और वह अपना तेल-गैस आसानी से बेच सकेगा।

शर्त तोड़ी तो भुगतना होगा अंजाम

ट्रंप ने दोनों पक्षों को चेतावनी भी दी है।

  • रूस के लिए: अगर समझौता होने के बाद रूस ने फिर हमला किया, तो अमेरिका उस पर दोबारा कड़े प्रतिबंध लगा देगा और यूक्रेन को और ज्यादा हथियार देगा।

  • यूक्रेन के लिए: अगर यूक्रेन ने बिना वजह रूस के शहरों पर मिसाइल दागी, तो अमेरिका उसकी सुरक्षा की गारंटी खत्म कर देगा।

ज़ेलेंस्की तैयार, यूरोप हैरान

अमेरिकी अधिकारियों ने यह प्लान यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की (Volodymyr Zelensky) को सौंप दिया है। ज़ेलेंस्की ने कहा है कि वह शांति के लिए काम करने को तैयार हैं। लेकिन यूरोप (Europe) के कई देश इस प्लान से हैरान हैं। उनका मानना है कि अपनी जमीन रूस को दे देना यूक्रेन के लिए हार मानने जैसा होगा।

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COP30: दुनिया को बचाने के मकसद वाले जलवायु सम्मेलन में कोयला-पेट्रोल पर दो फाड़, क्या हो पाएगा समझौता?

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ब्राजील में जारी जलवायु सम्मेलन का आज अंतिम दिन है। credit - Facebook/COP30 Brasil
  • COP30 में 80 से ज्यादा देशों ने खोला मोर्चा, जीवाश्म ईंधन को खत्म करने के लिए मांगा ‘ठोस प्लान’
  • मेजबान Brazil की कोशिशें हुईं नाकाम, Saudi Arabia समेत कई तेल उत्पादक देशों ने अड़ाया अड़ंगा

  • गतिरोध तोड़ने के लिए EU ने दिया नया प्रस्ताव, Turkey करेगा अगले साल COP31 की मेजबानी

नई दिल्ली |

ब्राजील (Brazil) के बेलेम (Belem) शहर में चल रहे संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन यानी COP30 में भारी हंगामा देखने को मिला। धरती को बचाने के लिए बुलाई गई इस बैठक में दुनिया दो हिस्सों में बंटी नजर आई। 10 नवंबर से शुरू हुए इस वैश्विक सम्मेलन का आज (21 nov) को अंतिम दिन है और अभी तक कोई साझा घोषणापत्र पर सहमति नहीं बन सकी है।

एक तरफ 80 से ज्यादा देशों ने एकजुट होकर मांग की है कि दुनिया से पेट्रोल, डीजल और कोयले यानी जीवाश्म ईंधन को खत्म करने का पक्का ‘रोडमैप’ (Total Phase out)  तैयार किया जाए, ऐसा न होने पर वे प्रस्ताव ब्लॉक कर देंगे।

वहीं, दूसरी तरफ सऊदी अरब (Saudi Arabia) समेत कई तेल उत्पादक देश इसके सख्त खिलाफ खड़े हो गए हैं। चीन और अमेरिका इस पर चुप्पी साधे हैं। इस खींचतान के कारण मेजबान ब्राजील शुरुआती समझौता कराने में विफल रहा है। अब देखना होगा कि अंतिम दिन मेजबान ब्राजील किस तरह सहमति बना पाता है या यह सम्मेलन बिना दुनिया के तापमान को बढ़ने से रोकने के आवश्यक कदम पर सहमति न बनाए बिना समाप्त हो जाएगा।

COP30 का आधिकारिक लोगो

COP30 का आधिकारिक लोगो

जलवायु संकट से जूझ रहे छोटे देशों की धमकी

द गार्जियन ने रिपोर्ट किया है कि कम से कम 28 देशों ने मेजबान ब्राजील को 20 नवंबर को पत्र लिखकर चेतावनी दी है कि अगर अंतिम समझौते में फॉसिल फ्यूल (जीवाश्म ईंधन) को पूरी तरह चरणबद्ध तरीके से खत्म करने (phase-out) का स्पष्ट और बाध्यकारी रोडमैप नहीं जोड़ा गया, तो वे पूरे प्रस्ताव को ब्लॉक कर देंगे।

ये देश कर रहे मांग

पूरी तरह प्राकृतिक ईंधन से इस्तेमाल को हटाने का समर्थन करने वाले देशों में यूरोपीय संघ, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, चिली, कोलंबिया, वनुआतु, तुवालु, मार्शल आइलैंड्स और अफ्रीकी देशों का बड़ा समूह शामिल है।

80 देशों ने बनाई ‘ग्लोबल कोलिशन’

सम्मेलन में अफ्रीका, एशिया, लैटिन अमेरिका और प्रशांत क्षेत्र के देशों ने यूरोपीय संघ (EU) और ब्रिटेन (UK) के साथ मिलकर एक वैश्विक गठबंधन बना लिया है। Marshall Islands की जलवायु दूत टीना स्टेज (Tina Stege) ने 20 मंत्रियों के साथ एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “हम सबको मिलकर एक रोडमैप के पीछे खड़ा होना होगा और इसे एक योजना में बदलना होगा।” यूके के ऊर्जा सचिव एड मिलिबैंड (Ed Miliband) ने भी जोर देकर कहा, “यह मुद्दा अब कालीन के नीचे नहीं छिपाया जा सकता। हम सब एक आवाज में कह रहे हैं कि जीवाश्म ईंधन से दूरी बनाना ही इस सम्मेलन का दिल होना चाहिए।”

सऊदी अरब बना ‘रोड़ा’

वानुअतु (Vanuatu) के जलवायु मंत्री राल्फ रेगेनवानु (Ralph Regenvanu) ने सीधे तौर पर दुनिया के सबसे बड़े तेल निर्यातक सऊदी अरब (Saudi Arabia) पर निशाना साधा। उन्होंने कहा, “मुझे लगता है कि समझौता बहुत मुश्किल होगा क्योंकि हमारे पास कुछ ‘ब्लॉकर्स’ हैं जो तेल और गैस छोड़ने की किसी भी योजना का विरोध कर रहे हैं।” छोटे द्वीपीय देशों का कहना है कि वे इस मुद्दे पर आखिरी दम तक लड़ेंगे क्योंकि अगर समुद्र का जलस्तर बढ़ा, तो उनका अस्तित्व ही मिट जाएगा।

आखिर क्या है COP30? 

सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि यह बैठक क्या है। COP का मतलब है ‘कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज’ (Conference of Parties)। यह संयुक्त राष्ट्र (UN) की एक सालाना बैठक है जिसमें दुनिया भर के लगभग 200 देश शामिल होते हैं।

  • मकसद: इसका मुख्य उद्देश्य धरती के बढ़ते तापमान को रोकना और जलवायु परिवर्तन से निपटना है।

  • लक्ष्य: पेरिस समझौते के तहत दुनिया के तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा बढ़ने से रोकने पर आगे की योजना बनाना।

  • जगह: इस बार यह 30वीं बैठक है, इसलिए इसे COP30 कहा जा रहा है और यह अमेजन के जंगल वाले शहर बेलेम में हो रही है।

मेजबान Brazil का प्लान फेल?

ब्राजील के राष्ट्रपति लूला (Lula da Silva) चाहते थे कि बुधवार तक ही जलवायु वित्त और ईंधन को लेकर एक बड़ा समझौता हो जाए, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। शुरुआत में ब्राजील ने ‘जीवाश्म ईंधन’ को आधिकारिक एजेंडे से बाहर रखा था, लेकिन भारी दबाव के बाद उसे एक ड्राफ्ट पेश करना पड़ा। हालांकि, कई देशों ने इस ड्राफ्ट को बहुत कमजोर बताया। अब राष्ट्रपति लूला आखिरी दो दिनों में किसी नतीजे पर पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं।

EU ने दिया ‘बीच का रास्ता’

इस गतिरोध को तोड़ने के लिए यूरोपीय संघ (EU) ने बुधवार देर रात एक नया प्रस्ताव रखा है। इसमें सुझाव दिया गया है कि देश जीवाश्म ईंधन को छोड़ने के लिए एक रोडमैप तो पेश करें, लेकिन यह ‘गैर-बाध्यकारी’ (Non-prescriptive) होना चाहिए। इसका मतलब है कि किसी भी देश पर कोई विशिष्ट नियम जबरदस्ती नहीं थोपा जाएगा, बल्कि वे विज्ञान के आधार पर खुद तय करेंगे।

तुर्किये करेगा COP31 की मेजबानी

इस तनातनी के बीच एक कूटनीतिक सफलता भी मिली है। ऑस्ट्रेलिया (Australia) के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज (Anthony Albanese) ने पुष्टि की है कि अगले साल के जलवायु सम्मेलन यानी COP31 की मेजबानी को लेकर सहमति बन गई है। इसके तहत तुर्किये (Turkey) अगले साल के सम्मेलन की मेजबानी करेगा, जबकि ऑस्ट्रेलिया सरकारों के बीच बातचीत का नेतृत्व करेगा।

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Ops सिंदूर के बाद राफेल विमानों को AI के जरिए बदनाम कर रहा था चीन : अमेरिकी रिपोर्ट में खुलासा

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Ops सिंदूर के दौरान राफेल विमानों के प्रदर्शन पर सोशल मीडिया में दुष्प्रचार फैलाया गया था।
Ops सिंदूर के दौरान राफेल विमानों के प्रदर्शन पर सोशल मीडिया में दुष्प्रचार फैलाया गया था।
  • US रिपोर्ट में खुलासा: चीन ने AI का इस्तेमाल कर राफेल के खिलाफ फैलाया झूठ

  • J-35 को बेचने के लिए भारत के राफेल विमानों को बताया था ‘नष्ट’

  • पाकिस्तान को बनाया हथियारों की ‘प्रयोगशाला’, भारतीय जनरल के दावे पर लगी मुहर

नई दिल्ली |

पाक के खिलाफ हुए ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारतीय विमानों को लेकर सोशल मीडिया पर चलाए गए दुष्प्रचार के पीछे चीन का हाथ था। ऐसा दावा अमेरिकी संसद की एक रिपोर्ट में किया गया है।

अमेरिका (USA) की एक शीर्ष सरकारी रिपोर्ट में चीन (China) को लेकर कहा गया है कि भारत के राफेल (Rafale) लड़ाकू विमानों के खिलाफ एक सुनियोजित दुष्प्रचार अभियान चलाया था।

‘यूएस-चाइना इकोनॉमिक एंड सिक्योरिटी रिव्यू कमीशन’ (US-China Economic and Security Review Commission) ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में यह खुलासा किया है।

अमेरिकी आयोग ने बताया कि चीन ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का इस्तेमाल करके राफेल विमानों के ‘नकली मलबे’ की तस्वीरें बनाईं और फर्जी सोशल मीडिया अकाउंट्स के जरिए उन्हें पूरी दुनिया में फैलाया, ताकि वह अपने खुद के जे-35 (J-35) विमानों की बिक्री को बढ़ावा दे सके।

 

राफेल को बदनाम कर अपना ‘J-35’ बेचना चाहता था चीन

रिपोर्ट के मुताबिक, चीन का मकसद दोतरफा था- पहला, फ्रांसीसी राफेल विमानों की छवि खराब करके उनके निर्यात को रोकना और दूसरा, अपने जे-35 विमानों को बेहतर साबित करना। चीन ने यह दिखाने की कोशिश की कि मई में हुए भारत-पाकिस्तान संघर्ष के दौरान चीनी हथियारों ने राफेल को मार गिराया है, जबकि यह पूरी तरह झूठ था।

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि चीनी दूतावास के अधिकारियों ने इसी फर्जी नेरेटिव का इस्तेमाल करके इंडोनेशिया (Indonesia) को राफेल खरीदने से रोकने की भी कोशिश की थी।

 

पाकिस्तान बना चीन की ‘प्रयोगशाला’

जुलाई महीने में ही भारतीय उपसेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल राहुल आर सिंह ने चीन और पाकिस्तान के इस गठजोड़ को बेनकाब कर दिया था। उन्होंने उस समय साफ कहा था कि चीन अपने हथियारों को टेस्ट करने और उनका प्रचार करने के लिए पाकिस्तान का इस्तेमाल कर रहा है।

अब अमेरिकी आयोग की इस ताजा रिपोर्ट ने भारतीय जनरल के उस दावे पर मुहर लगा दी है। रिपोर्ट में पुष्टि की गई है कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान चीन अपने सदाबहार दोस्त पाकिस्तान (Pakistan) की हर मुमकिन मदद कर रहा था। रिपोर्ट साफ कहती है कि उस संघर्ष के दौरान पाकिस्तान चीनी हथियारों के लिए एक ‘प्रयोगशाला’ बना हुआ था, जहां चीन ने मौकापरस्त तरीके से अपनी तकनीक का परीक्षण किया।

AI एंकर और फर्जी अकाउंट्स का जाल

आयोग ने कांग्रेस को सौंपी रिपोर्ट में बताया कि चीन अपनी ‘ग्रे-जोन’ गतिविधियों के तहत एआई का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग कर रहा है। राफेल के मलबे की तस्वीरें ही नहीं, बल्कि चीन ने वीडियो गेम के विजुअल का भी इस्तेमाल किया।

इसके अलावा, रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ है कि 2024 में चीन समर्थक ऑनलाइन ग्रुप्स ने अमेरिका में भी नशीली दवाओं, आप्रवासन और गर्भपात जैसे मुद्दों पर विभाजन पैदा करने के लिए एआई-जनरेटेड न्यूज एंकर्स और फर्जी प्रोफाइल फोटो का इस्तेमाल किया था।

सीमा विवाद पर भी दोहरी चाल

भारत-चीन संबंधों पर आयोग ने कहा कि सीमा मुद्दे को लेकर दोनों देशों के बीच एक ‘असमानता’ है। चीन चाहता है कि वह अपने मूल हितों का त्याग किए बिना, सीमा विवाद को अलग रखकर भारत के साथ व्यापार और अन्य क्षेत्रों में सहयोग के द्वार खोले। वहीं, भारत सीमा मुद्दों का एक स्थायी समाधान चाहता है। रिपोर्ट में जोर दिया गया है कि भारत सरकार ने हाल के वर्षों में सीमा पर चीन से उत्पन्न खतरे की गंभीरता को अब बेहतर तरीके से पहचाना है।

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