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चुनाव धांधली : राहुल गांधी के दावों पर इंडियन एक्सप्रेस की जाँच

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राहुल गांधी, साभार - इंटरनेट

बोलते पन्ने | नई दिल्ली 

द इंडियन एक्सप्रेस अख़बार के सात जून के संस्करण में राहुल गांधी के लिखे एक लेख के बाद भारतीय राजनीति में चुनावी पारदर्शिता की बहस छिड़ गई है। राहुल गांधी ने पिछले साल हुए महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों को मैच फिक्सिंग बताया और चेताया कि ऐसा बिहार में भी हो सकता है।  अख़बार ने ठीक अगले दिन राहुल के दावों को अपनी जाँच के आधार पर ख़ारिज किया है। साथ ही, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस का भी एक विस्तृत लेख छापा है जो इस मामले में भाजपा का पक्ष रखता है। यह पूरा मामला इंडियन एक्सप्रेस की पत्रकारिता के लिए भी उदाहरण पेश करता है, जिसमें न सिर्फ राहुल गांधी को अपने दावे रखने का पूरा स्थान दिया गया, बल्कि अगले दिन अख़बार ने स्वतंत्र रूप से इसे जांचा और आरोपी पक्षों (भाजपा/चुनाव आयोग) को भी यथावत स्थान दिया। 

राहुल गांधी का लेख, इंडियन एक्सप्रेस, 7 जून संस्करण

राहुल गांधी का लेख, इंडियन एक्सप्रेस, 7 जून संस्करण

महाराष्ट्र चुनाव में धांधली को लेकर राहुल का लेख – ‘Match-fixing Maharashtra’  

राहुल गांधी ने इस लेख के जरिए एलओपी ने साल 2024 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में कथित धांधली को लेकर एक गंभीर आरोप है। लेख में पांच-चरणीय रणनीति के जरिए BJP पर मतदाता सूची में हेरफेर, मतदान प्रतिशत बढ़ाने और लक्षित बूथों पर फर्जी मतदान का आरोप लगाया गया है। 

  1. चुनाव आयोग की नियुक्ति प्रक्रिया में हेरफेर (Rig the panel for appointing the Election Commission):
    • गांधी ने 2023 के Election Commissioners Appointment Act पर सवाल उठाया, जिसमें चुनाव आयुक्तों की समिति से भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) को हटा दिया गया। 
  2. मतदाता सूची में फर्जी मतदाताओं को जोड़ना(Add fake voters to the roll):
    • गांधी ने दावा किया कि 2019 के विधानसभा चुनावों में महाराष्ट्र में पंजीकृत मतदाताओं की संख्या 8.98 करोड़ थी, जो मई 2024 के लोकसभा चुनावों तक 9.29 करोड़ हो गई। लेकिन नवंबर 2024 के विधानसभा चुनावों तक यह संख्या 9.70 करोड़ तक पहुंच गई, जो सरकार के अपने अनुमानों (9.54 करोड़ वयस्क आबादी) से भी अधिक थी। 
  3. मतदान प्रतिशत में हेरफेर(Inflate voter turnout):
    • गांधी ने ECI के डेटा का हवाला देते हुए कहा कि मतदान के दिन 5:30 बजे तक की अनंतिम मतदान संख्या और अंतिम मतदान संख्या में 7.83 प्रतिशत अंकों (लगभग 76 लाख मतदाताओं) का अंतर था। यह अंतर 2009 के बाद से किसी भी चुनाव की तुलना में असामान्य रूप से अधिक था।
  4. लक्षित बूथों पर फर्जी मतदान (Target the bogus voting exactly where BJP needs to win):
    • गांधी ने आरोप लगाया कि महाराष्ट्र के लगभग 1 लाख मतदान केंद्रों में से 12,000 बूथों पर, जो 85 निर्वाचन क्षेत्रों में थे जहां BJP ने लोकसभा चुनावों में खराब प्रदर्शन किया था, असामान्य रूप से अधिक मतदाता जोड़े गए। इन बूथों पर औसतन 600 अतिरिक्त मतदाता थे, जो 5 बजे के बाद मतदान में शामिल हुए। गांधी ने सवाल उठाया कि एक मतदाता को वोट डालने में एक मिनट लगने पर भी इतने वोटों के लिए 10 घंटे का समय चाहिए, जो संभव नहीं था।
  5. सबूतों को छिपाना (Hide the evidence):
  • गांधी ने ECI पर मतदाता सूची और मतदान डेटा में पारदर्शिता की कमी का आरोप लगाया। उन्होंने मांग की कि ECI 2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों की केंद्रीकृत व अंतिम मतदाता सूची सार्वजनिक करे। उन्होंने यह भी कहा कि विपक्षी दल इस मुद्दे को लेकर अदालत का रुख करेंगे।

 

चुनाव आयोग ने राहुल के आरोपों को बताया – क़ानून के प्रति अपराध 

ECI ने गांधी के आरोपों को निराधार और कानून के प्रति अपमान करार दिया। आयोग ने कहा कि 24 दिसंबर 2024 को कांग्रेस की शिकायतों का जवाब सार्वजनिक रूप से उसकी वेबसाइट पर उपलब्ध है। ECI ने यह भी बताया कि महाराष्ट्र में 6.40 करोड़ मतदाताओं ने सुबह 7 बजे से शाम 6 बजे तक मतदान किया, और कांग्रेस ने 27,099 बूथ-स्तरीय एजेंट नियुक्त किए थे, जिन्होंने उस समय कोई शिकायत नहीं की। ECI ने यह भी तर्क दिया कि नवीनतम जनगणना नहीं हुई है, इसलिए मतदाता संख्या को जनसंख्या अनुमानों से तुलना करना उचित नहीं है।

BJP की प्रतिक्रिया: केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री और BJP अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा कि वे नकली कथानक गढ़ने और संस्थानों को बदनाम करते हैं। नड्डा ने कहा कि गांधी की यह प्रतिक्रिया उनकी “हार की निराशा” और बिहार में संभावित हार के डर का परिणाम है।

 महाराष्ट्र चुनाव परिणाम के बाद राहुल ने लगाया था आरोप

 नवंबर 2024 में हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में BJP-नीत महायुति गठबंधन (BJP, एकनाथ शिंदे की शिवसेना, और अजित पवार की NCP) ने 288 में से 235 सीटें जीतीं, जिसमें BJP ने अकेले 132 सीटें हासिल कीं। इसके विपरीत, महा विकास अघाड़ी (MVA), जिसमें कांग्रेस, उद्धव ठाकरे की शिवसेना (UBT), और शरद पवार की NCP (SP) शामिल थीं, केवल 50 सीटों पर सिमट गई। गांधी ने इस मामले में 3 फरवरी 2025 को संसद में और बाद में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में महाराष्ट्र चुनावों की निष्पक्षता पर सवाल उठाए थे। उन्होंने 8 फरवरी 2025 को NCP (SP) की सुप्रिया सुले और शिवसेना (UBT) के संजय राउत के साथ एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी मतदाता सूची में अनियमितताओं का आरोप लगाया था।

राहुल गांधी के दावों की जाँच, इंडियन एक्सप्रेस 8 जून

राहुल गांधी के दावों की जाँच, इंडियन एक्सप्रेस 8 जून

 इंडियन एक्सप्रेस ने जाँच के आधार पर राहुल के दावों पर सवाल उठाए 

इंडियन एक्सप्रेस ने 8 जून 2025 को अपने लेख “Rahul Gandhi’s attack on EC doesn’t match poll data, officials say bid to ‘defame’” में राहुल गांधी के 7 जून के लेख में उठाए गए पांच-चरणीय धांधली के दावों की जांच की और इन्हें चुनौती दी। इस लेख में अखबार ने ECI के डेटा और तथ्यों का हवाला देकर गांधी के आरोपों को चुनिंदा डेटा पर आधारित और प्रमाणों से परे बताया गया। अखबार ने ECI के अधिकारियों के हवाले से कहा कि गांधी का यह हमला “निर्वाचन आयोग को बदनाम करने की कोशिश” है। ECI ने यह भी तर्क दिया कि मतदाता सूची में वृद्धि सामान्य थी, और 2004-2019 के बीच हर पांच साल में औसतन 63-100 लाख नए मतदाता जोड़े गए थे, इसलिए 2024 में 41 लाख की वृद्धि असामान्य नहीं थी।
राहुल गांधी के दावों की जाँच, इंडियन एक्सप्रेस 8 जून

राहुल गांधी के दावों की जाँच, इंडियन एक्सप्रेस 8 जून

  •  अखबार ने तर्क दिया कि ECI की नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी कोई नई बात नहीं है। 2007 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली UPA सरकार के तहत प्रशासकीय सुधार आयोग (ARC), जिसके अध्यक्ष एम. वीरप्पा मोइली थे, ने ECI नियुक्तियों के लिए एक कॉलेजियम प्रणाली की सिफारिश की थी, लेकिन इसे लागू नहीं किया गया। इंडियन एक्सप्रेस ने कहा कि सभी सरकारों, जिसमें UPA भी शामिल है, ने इस प्रक्रिया को औपचारिक बनाने का अवसर गंवाया। 2023 का कानून पहली बार ECI नियुक्तियों को औपचारिक बनाता है, जिसमें विपक्ष के नेता को समिति में शामिल किया गया है। 
  • अखबार ने ECI के डेटा के हवाले से मतदाता संख्या बढ़ने के आरोप पर लिखा कि नवंबर 2024 के लिए मतदाता सूची में 9.78 करोड़ मतदाता थे। मतदाता सूची तैयार करने के दौरान 3,901 दावों और आपत्तियों में से केवल 89 अपीलें दर्ज की गईं, और केवल एक मामला मुख्य निर्वाचन अधिकारी तक पहुंचा। यह न्यूनतम विवाद दर्शाता है। इसके अलावा, सभी राजनीतिक दलों जिसमें कांग्रेस भी शामिल थी, को मतदाता सूची तक पहुंच थी और कांग्रेस ने 27,099 बूथ-स्तरीय एजेंट नियुक्त किए थे, जिन्होंने उस समय कोई आपत्ति नहीं उठाई।
  • अखबार ने लिखा कि मतदान के दिन देर रात तक मतदाता कतार में थे, जिसके कारण अंतिम आंकड़े बाद में अपडेट किए गए। ECI ने इसे सामान्य प्रक्रिया बताया। 2009 से 2024 तक के आंकड़ों में मतदान प्रतिशत में अंतर सामान्य रहा है, जैसे 2004 में 5%, 2009 में 4%, 2014 में 3%, और 2019 में 1%। 2024 में 4% का अंतर कोई असामान्य बात नहीं थी।
  • कुछ विशेष बूथों पर बीजेपी को फायदा पहुंचने के आरोपों पर अख़बार ने देवेंद्र फडणवीस के लेख का हवाला देकर लिखा, जिसमें उन्होंने माढा (18% वृद्धि, शरद पवार समूह जीता), वानी (13% वृद्धि, उद्धव ठाकरे समूह जीता), और श्रीरामपुर (12% वृद्धि, कांग्रेस जीता) जैसे उदाहरण दिए। इनसे पता चलता है कि मतदान वृद्धि का लाभ केवल BJP को नहीं, बल्कि MVA को भी मिला।
  • अंतिम आरोप पर अखबार ने ECI के हवाले से कहा कि मतदाता सूची सभी दलों के लिए उपलब्ध थी, और कांग्रेस के बूथ-स्तरीय एजेंट्स ने प्रक्रिया की निगरानी की थी। ECI ने 24 दिसंबर 2024 को कांग्रेस की शिकायतों का जवाब अपनी वेबसाइट पर सार्वजनिक किया था।

बोलते पन्ने.. एक कोशिश है क्लिष्ट सूचनाओं से जनहित की जानकारियां निकालकर हिन्दी के दर्शकों की आवाज बनने का। सरकारी कागजों के गुलाबी मौसम से लेकर जमीन की काली हकीकत की बात भी होगी ग्राउंड रिपोर्टिंग के जरिए। साथ ही, बोलते पन्ने जरिए बनेगा .. आपकी उन भावनाओं को आवाज देने का, जो अक्सर डायरी के पन्नों में दबी रह जाती हैं।

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SIR का असर : गोवा में जिला परिषद चुनाव टले, ‘दोहरे बोझ’ से परेशान केरल सुप्रीम कोर्ट पहुंचा

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SIR की प्रक्रिया देशभर में शुरू होते ही इससे जुड़ी हर राज्य की अलग चुनौतियां भी सामने आने लगी हैं।
SIR की प्रक्रिया देशभर में शुरू होते ही इससे जुड़ी हर राज्य की अलग चुनौतियां भी सामने आने लगी हैं।
  • देशभर के 12 राज्यों व तीन केंद्र शासित प्रदेशों में SIR की प्रक्रिया 4 तक जारी है।
  • SIR के चलते गोवा में प्रस्तावित निकाय चुनाव को एक सप्ताह आगे बढ़ाया गया है।

नई दिल्ली |

देश में चल रही मतदाता सूची की विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया यानी एसआईआर (SIR) का असर अब स्थानीय चुनावों पर पड़ने लगा है। गोवा (Goa) में एसआईआर के चलते जिला परिषद चुनावों को एक हफ्ते के लिए टाल दिया गया है।

SIR के चलते चुनाव टाले जाने का यह पहला ज्ञात मामला है। गौरतलब है कि चुनाव आयोग ने गोवा समेत देशभर के 12 राज्यों व तीन केंद्र शासित प्रदेशों में SIR की प्रक्रिया (4 nov-4 dec) शुरू की है। घोषणा के वक्त आयोग ने कहा था कि वे राज्य ही इस प्रक्रिया के लिए चुने गए हैं जहां तुरंत चुनाव नहीं होने हैं ताकि चुनावी प्रक्रिया में कोई दखल न आए।

पर अब गोवा में निकाय चुनाव टाले जाने का मामला सामने आने के बाद चुनाव आयोग की योजना पर सवाल खड़े हो रहे हैं।

दूसरी ओर, केरल (Kerala) सरकार ने स्थानीय निकाय चुनावों के बीच एसआईआर प्रक्रिया को रोकने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का दरवाजा खटखटाया है। दोनों राज्यों का तर्क है कि चुनाव और एसआईआर एक साथ कराने से प्रशासनिक मशीनरी पर भारी दबाव पड़ रहा है।

 

गोवा: 13 की जगह अब 20 दिसंबर को होगा मतदान

गोवा में पहले जिला परिषद के चुनाव 13 दिसंबर 2025 को होने थे, लेकिन अब इन्हें एक हफ्ते आगे बढ़ाकर 20 दिसंबर 2025 कर दिया गया है। इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, पंचायती राज विभाग ने आधिकारिक राजपत्र में इसकी अधिसूचना जारी कर दी है। अखबार ने एक वरिष्ठ अधिकारी के हवाले से लिखा है कि यह फैसला “प्रशासनिक कारणों” से लिया गया है।

अधिकारी के मुताबिक, चुनाव ड्यूटी में लगाए गए कई वरिष्ठ कर्मचारी पहले से ही एसआईआर प्रक्रिया में व्यस्त हैं। नए कर्मचारियों को अभी चुनाव कराने के लिए कड़ा प्रशिक्षण देने की जरूरत है, इसलिए पंचायत निदेशालय ने सरकार से चुनाव टालने का प्रस्ताव दिया था। गोवा के मुख्य निर्वाचन अधिकारी संजय गोयल (Sanjay Goel) ने भी पहले सरकार से अनुरोध किया था कि एसआईआर पूरा होने तक चुनाव टाल दिए जाएं, क्योंकि एक ही अधिकारी दो जिम्मेदारियां नहीं संभाल सकता।

 

केरल: सुप्रीम कोर्ट पहुंची सरकार, ‘प्रशासनिक संकट’ का हवाला

उधर, केरल सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर एसआईआर को चुनौती दी है। राज्य सरकार की मांग है कि जब तक स्थानीय स्वशासन संस्थाओं (LSGI) की चुनाव प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती, तब तक एसआईआर को रोका जाए।

केरल सरकार का तर्क है कि राज्य में 9 और 11 दिसंबर को निकाय चुनाव होने हैं, जिसके लिए 1,76,000 कर्मचारियों और 68 हजार सुरक्षाकर्मियों की जरूरत है। वहीं, एसआईआर के लिए अतिरिक्त 25,668 कर्मचारी चाहिए। सरकार का कहना है कि एक साथ दोनों प्रक्रियाएं चलाने से गंभीर प्रशासनिक जटिलताएं पैदा होंगी और रोजमर्रा का कामकाज ठप हो जाएगा।

 

चुनाव आयोग ने नहीं दिया जवाब

केरल के मुख्य सचिव ने 5 नवंबर को चुनाव आयोग को पत्र लिखकर एसआईआर टालने की मांग की थी, लेकिन आयोग की तरफ से कोई जवाब नहीं मिला। इससे पहले केरल हाईकोर्ट ने भी इस मामले में दखल देने से इनकार कर दिया था। हालांकि, केरल के मुख्य निर्वाचन अधिकारी रतन खेलकर ने बताया कि राज्य में एसआईआर प्रक्रिया तेजी से चल रही है और 96 प्रतिशत गणना पत्र बांटे जा चुके हैं।


Edited by Mahak Arora (Content Writer)

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10 साल पहले बीफ के शक में पीट-पीटकर मार दिए गए अखलाक का केस वापस लेगी यूपी सरकार

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नई दिल्ली |

यूपी के गौतमबुद्ध जिले में दस साल पहले एक मुस्लिम व्यक्ति अखलाक की लिंचिंग गोमांस खाने की अफवाह में कर दी गई थी।इस मामले में अब उत्तर प्रदेश सरकार ने अभियुक्तों के ख़िलाफ़ दर्ज मामला वापस लेने की अर्ज़ी दी है।

यह मामला दादरी के बिसाहड़ा गांव में 28 सितंबर 2015 को हुआ था, 50 साल के अख़लाक़ को भीड़ ने पीट-पीट कर मार डाला था।

अखलाक के परिवार ने आरोप लगाया था कि उनकी हत्या गाय के मांस को लेकर एक झूठे दावे के बाद हुई थी, जिसके बाद देश भर में व्यापक निंदा और विरोध प्रदर्शन हुए थे।
इस घटना ने गोरक्षा के नाम पर हिंसा और सांप्रदायिक तनाव को लेकर राष्ट्रीय बहस छेड़ दी थी।
12 दिसंबर को अगली सुनवाई
इस केस को लेकर यूपी सरकार की ओर से बीते 14 अक्टूबर को गौतम बुद्ध नगर की एक अदालत में याचिका दायर की गई है। यह मामला एडीजे सौरभ द्विवेदी की अदालत में चल रहा है।

इंडियन एक्सप्रेस ने गौतम बुद्ध नगर के अतिरिक्त जिला सरकारी वकील (ADGC) भग सिंह भाटी के हवाले से बताया है कि याचिका दायर कर दी गई है लेकिन अभी अदालत ने फैसला नहीं सुनाया है, इस केस की सुनवाई जारी है और अगली तारीख 12 दिसंबर 2025 है। 

CPI(M) ने यूपी सरकार की आलोचना की 

ये जानकारी सामने आने पर CPI(M) के जनरल सेक्रेटरी (general secretary) एमए बेबी ने यूपी सरकार की आलोचना की। उन्होंने लिखा- “सरकार ने भाजपा नेता संजय राणा के बेटे समेत अखलाक की हत्या के सभी आरोपियों के आरोप वापस लेने का जो फैलना लिया है, हम इसकी कड़ी निंदा करते हैं। सरकार का यह कदम नफरत, अपराध और हत्या को लेकर राज्य की मंजूरी देने के जैसा है।”

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यूपी में ‘नरेंद्र मोदी स्टडीज सेंटर’ चला रहा था, CBI ने केस दर्ज किया

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जासिम मोहम्मद ने पीएम मोदी के ऊपर लिखी किताब उन्हीं को भेट देने की यह फोटो अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर डाली है।
जासिम मोहम्मद ने पीएम मोदी के ऊपर लिखी किताब उन्हीं को भेट देने की यह फोटो अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर डाली है।

नई दिल्ली |

उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में एक युवक पीएम मोदी के नाम पर एक अवैध स्टडी सेंटर चलाता पकड़ा गया। प्रधानमंत्री कार्यालय की शिकायत पर सीबीआई ने आरोपी संचालक को गिरफ्तार करके FIR दर्ज करायी है।

केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में ‘सेंटर फॉर नरेंद्र मोदी स्टडीज’ (CNMS) के संस्थापक जासिम मोहम्मद के खिलाफ मामला दर्ज किया है।
आरोप है कि जासिम मोहम्मद ने बिना केंद्र सरकार या पीएमओ की मंजूरी के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम का अनधिकृत इस्तेमाल करके साल 2021 में यह ट्रस्ट रजिस्टर किया।
CBI ने जासिम के ऊपर यह कार्रवाई इम्ब्लेम्स एंड नेम्स (प्रिवेंशन ऑफ इम्प्रॉपर यूज) एक्ट, 1950 के उल्लंघन के चलते की है। इस खबर को द इंडियन एक्सप्रेस ने 28 अक्तूबर को प्रकाशित किया है। 
4 साल पहले मिली थी शिकायत
प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) की शिकायत पर इस मामले की मार्च 2021 में करवाई गई थी। जांच अप्रैल में प्रारंभिक पूछताछ के बाद औपचारिक FIR में तब्दील हो गई।
PMO को एक वकील की शिकायत मिली थी, जिसमें सेंटर को अवैध बताया गया।
CBI ने पाया कि CNMS को 25 जनवरी 2021 को इंडियन ट्रस्ट्स एक्ट, 1882 के तहत रजिस्टर किया गया, लेकिन मोदी के नाम का इस्तेमाल बिना अनुमति के हुआ।
इंडियन एक्सप्रेस

इंडियन एक्सप्रेस

मोदी के प्रशंसक रहे हैं, 2017 में मुलाकात
सेंटर की वेबसाइट पर दावा किया गया है कि यह स्वतंत्र रिसर्च ट्रस्ट है, जो सरकार या किसी राजनीतिक दल से संबद्ध नहीं। जासिम मोहम्मद, एक वकील और मोदी के प्रशंसक भी हैं। साल 2017 में अपनी किताब “नरेंद्र मोदी: अर्श से फर्श तक” पीएम को भेंट की थी। वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़े हैं और 2014 के बाद BJP के समर्थक बने।
मोहम्मद फोरम फॉर मुस्लिम स्टडीज एंड एनालिसिस (FMSA) के प्रमुख हैं। CBI जांच में सेंटर की गतिविधियों, आयोजनों और फंड कलेक्शन की पड़ताल हो रही है, जिसमें मोदी के नाम का दुरुपयोग हुआ या नहीं।
नरेंद्र मोदी स्टडीज का दावा- रजिस्ट्रेशन पारदर्शी
CNMS ने बयान जारी कर कहा कि रजिस्ट्रेशन पारदर्शी था और नाम बदलाव कानूनी प्रक्रिया से हुआ। विशेषज्ञों का कहना है कि यह मामला सरकारी प्रतीकों के संरक्षण पर केंद्रित है, जो राजनीतिक हस्तियों के नाम के दुरुपयोग को रोकने का उदाहरण है। जांच जारी है, और अन्य शामिल लोगों पर भी नजर।
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