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Manipur Civil Services Exam Postponed Again: दो साल की हिंसा के बीच बड़ी चूक, 100 पदों की परीक्षा स्थगित – उम्मीदवारों को बड़ा झटका

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  • मणिपुर पब्लिक सर्विस कमीशन ने परीक्षा के दौरान उम्मीदवारों को गलत प्रश्नपत्र दे दिए गए।

नई दिल्ली |

मणिपुर पब्लिक सर्विस कमीशन द्वारा आयोजित मणिपुर सिविल सर्विसेज कंबाइंड कॉम्पिटिटिव (मेंस) परीक्षा 2022 (Manipur Civil Services Combined Competitive (Mains) Examination 2022) में रविवार को बड़ी लापरवाही सामने आई। परीक्षा के दौरान उम्मीदवारों को गलत प्रश्नपत्र दे दिए गए, जिसके बाद आयोग ने तुरंत दोनों पेपर रद्द कर दिए। अब इन दोनों पेपरों की परीक्षा 22 नवंबर (November 22) को दोबारा कराई जाएगी।

यह परीक्षा 7 नवंबर (November 7) से शुरू हुई थी और रविवार को खत्म होनी थी। लेकिन सुबह की शिफ्ट में जब उम्मीदवार जनरल स्टडीज़ पेपर-III (General Studies Paper-III) देने पहुंचे, तो उन्हें गलती से पेपर-IV (Paper-IV) का प्रश्नपत्र मिल गया। सवालों का विषय पूरी तरह अलग था। जैसे ही यह बात सामने आई, परीक्षा हॉल में अफरातफरी मच गई और आयोग (Manipur Public Service Commission – MPSC) को दोनों पेपर रद्द करने का फैसला लेना पड़ा।

 

कैसे हुई यह गलती

MPSC के परीक्षा नियंत्रक ख. लालमणी (Kh. Lalmani) ने बताया कि यह गलती उस सिक्योर प्रिंटिंग प्रेस (Secured Printing Press) की थी, जिसे प्रश्नपत्र छापने की जिम्मेदारी दी गई थी। उन्होंने कहा कि आयोग की गोपनीयता नीति (Confidentiality Policy) के कारण कोई अधिकारी परीक्षा से पहले प्रश्नपत्र नहीं देख सकता। इसी वजह से गलती पहले नहीं पकड़ी जा सकी।

उन्होंने कहा, “हम परीक्षा की गोपनीयता बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं, लेकिन इस बार प्रिंटिंग प्रेस की लापरवाही से यह त्रुटि हुई। प्रेस को सख्त चेतावनी दी गई है ताकि ऐसा दोबारा न हो।” इंफाल और गुवाहाटी (Imphal & Guwahati) के दो केंद्रों पर करीब 1,200 उम्मीदवारों ने परीक्षा दी थी, जिनमें लगभग 200 उम्मीदवार गुवाहाटी से थे। जैसे ही गड़बड़ी का पता चला, परीक्षा रोक दी गई और उम्मीदवारों को परीक्षा हॉल से बाहर भेज दिया गया।

 

उम्मीदवार बोले- दो साल से मेंस का इंतजार कर रहे थे

एक उम्मीदवार ने बताया कि प्रीलिम्स परीक्षा (Preliminary Examination) दो साल पहले अप्रैल-2023 में हुई थी, और तब से मेंस (Mains) कई बार टल चुकी है। उन्होंने कहा, “हम महीनों से तैयारी कर रहे हैं। अब दो पेपरों का रद्द होना बेहद निराशाजनक है। कई लोग लंबी दूरी तय करके पहुंचे, रहने-खाने में खर्च हुआ, लेकिन अब सब बेकार चला गया।”

 

छात्र संगठन ने जताया कड़ा विरोध

थाडो स्टूडेंट्स एसोसिएशन (Thadou Students’ Association – TSA) ने इस लापरवाही को “गंभीर प्रशासनिक विफलता” बताते हुए आयोग की आलोचना की।
संगठन ने कहा कि यह घटना आयोग की कार्यप्रणाली और पारदर्शिता पर सवाल खड़े करती है। TSA ने सार्वजनिक माफी (Public Apology), उच्चस्तरीय जांच (High-Level Inquiry) और जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई (Action Against Responsible Officials) की मांग की है।

 

हिंसा के बीच परीक्षा, अब फिर झटका

मणिपुर में पिछले दो वर्षों से जारी हिंसा (Ethnic Violence) और अस्थिरता के कारण यह परीक्षा कई बार स्थगित होती रही थी। दो साल बाद जब आखिरकार परीक्षा शुरू हुई, तो इसे राज्य में स्थिरता और प्रशासनिक सुधार (Administrative Reform) की दिशा में एक कदम माना जा रहा था। लेकिन अब दो पेपरों का रद्द होना न सिर्फ उम्मीदवारों की मेहनत पर पानी फेर गया, बल्कि यह प्रशासनिक प्रणाली की जवाबदेही (Accountability) पर भी सवाल छोड़ गया है।


 

परीक्षा और भर्ती से जुड़ी अहम बातें

1. यह परीक्षा मणिपुर सिविल सर्विसेज कंबाइंड कॉम्पिटिटिव (मेंस) 2022 (Manipur Civil Services Combined Competitive (Mains) 2022) के तहत ली जा रही है।

 

2. परीक्षा के जरिए राज्य सरकार के करीब 100 ग्रुप A और ग्रुप B पदों (Group A and B Posts) पर भर्ती की जानी है।

 

3. इसमें डीएसपी (DSP), मणिपुर सिविल सर्विस अधिकारी (Manipur Civil Service Officer) और वित्त सेवा (Finance Service) जैसे पद शामिल हैं।

 

4. कुल 1,200 उम्मीदवार (Candidates) ने परीक्षा दी, जिनमें से 200 गुवाहाटी केंद्र (Guwahati Centre) पर थे।

 

5. गलती: GS Paper-III की जगह GS Paper-IV का प्रश्नपत्र बांटा गया।

 

5.1 रद्द किए गए पेपर (Cancelled Papers): जनरल स्टडीज़ Paper-III और Paper-IV।

 

5.2.1 GS Paper-III – सुबह 9 बजे से 12 बजे तक (9 AM–12 Noon)।

 

5.2.2 GS Paper-IV – दोपहर 1:30 बजे से 4:30 बजे तक (1:30 PM–4:30 PM)।

 

6. एडमिट कार्ड और केंद्र (Admit Cards & Centres): पहले जैसे ही मान्य रहेंगे।

 

7. प्रीलिम्स परीक्षा (Prelims Exam): अप्रैल 2023 (April 2023) में हुई थी।

 

8. विशेष परिस्थिति (Special Context): मणिपुर में दो साल से जारी हिंसा के बीच परीक्षा आयोजित हुई।

 

9. आयोग की अपील (Commission’s Appeal): जो उम्मीदवार भारतीय वन सेवा (Indian Forest Service – IFS) मेंस परीक्षा (Mains Exam) (16–23 नवंबर) में शामिल हो रहे हैं, वे तुरंत MPSC को सूचित करें ताकि तारीखों का टकराव न हो।


 

MPSC ने खेद जताया

MPSC ने अभ्यर्थियों से असुविधा के लिए खेद जताया है और कहा है कि आयोग पुनर्निर्धारित परीक्षा (Rescheduled Examination) को “पूर्ण पारदर्शिता और सावधानी” से आयोजित करेगा। आयोग ने कहा,

“हम उम्मीदवारों की मेहनत और उम्मीदों को समझते हैं। यह घटना दुर्भाग्यपूर्ण है, पर हम सुनिश्चित करेंगे कि आगे ऐसा न हो।”

मणिपुर सिविल सर्विसेज परीक्षा (Manipur Civil Services Exam), जो हिंसा और अस्थिरता के बीच दो साल बाद आयोजित हुई थी, अब फिर विवाद (Controversy) में है। गलत प्रश्नपत्र (Wrong Question Paper) बांटने की लापरवाही ने न सिर्फ उम्मीदवारों को परेशानी में डाला, बल्कि आयोग की साख (Credibility) पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं अब सबकी नजरें 22 नवंबर (November 22) को होने वाली नई परीक्षा (Re-exam) पर हैं — जहां उम्मीदवार पारदर्शिता (Transparency) की उम्मीद कर रहे हैं और आयोग अपनी प्रतिष्ठा (Reputation) बहाल करने की कोशिश में है।

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Written by Mahak Arora

बोलते पन्ने.. एक कोशिश है क्लिष्ट सूचनाओं से जनहित की जानकारियां निकालकर हिन्दी के दर्शकों की आवाज बनने का। सरकारी कागजों के गुलाबी मौसम से लेकर जमीन की काली हकीकत की बात भी होगी ग्राउंड रिपोर्टिंग के जरिए। साथ ही, बोलते पन्ने जरिए बनेगा .. आपकी उन भावनाओं को आवाज देने का, जो अक्सर डायरी के पन्नों में दबी रह जाती हैं।

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चुनावी डायरी

बिहार में किसके वोट कहां शिफ्ट हुए? महिला, मुस्लिम, SC–EBC के वोटिंग पैटर्न ने कैसे बदल दिया नतीजा?

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नीतीश कुमार 9 बार सीएम बन चुके हैं और इस बार भी उनके ही चेहरे पर चुनाव लड़ा गया और अप्रत्याशित जीत मिली।
नीतीश कुमार 9 बार सीएम बन चुके हैं और इस बार भी उनके ही चेहरे पर चुनाव लड़ा गया और अप्रत्याशित जीत मिली।
  • महागठबंधन का वोट शेयर प्रभावित नहीं हुआ पर अति पिछड़ा, महिला व युवा वोटर उन पर विश्वास नहीं दिखा सके।

नई दिल्ली| महक अरोड़ा

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों ने साफ कर दिया है कि इस बार की लड़ाई सिर्फ सीटों की नहीं थी—बल्कि वोटिंग पैटर्न, नए सामाजिक समीकरण, और वोट के सूक्ष्म बदलावों की थी।

कई इलाकों में वोट शेयर में बड़ा बदलाव नहीं दिखा, लेकिन सीटें बहुत ज्यादा पलट गईं। यही वजह रही कि महागठबंधन (MGB) का वोट शेयर सिर्फ 1.5% गिरा, लेकिन उसकी सीटें 110 से घटकर 35 पर आ गईं।

दूसरी ओर, NDA की रणनीति ने महिलाओं, SC-EBC और Seemanchal के वोट पैटर्न में बड़ा सेंध लगाई, जो इस प्रचंड बहुमत (massive mandate) की असली वजह माना जा रहा है।

 

महिला वोटर बनीं Kingmaker, NDA का वोट शेयर बढ़ाया

बिहार में इस बार महिलाओं ने 8.8% ज्यादा रिकॉर्ड मतदान किया:

  • महिला वोटिंग: 71.78%
  • पुरुष वोटिंग: 62.98%

(स्रोत- चुनाव आयोग)

महिला वोटर वर्ग के बढ़े हुए मतदान का सीधा फायदा NDA विशेषकर जदयू को हुआ, जिसने पिछली बार 43 सीटें जीती और इस बार 85 सीटों से दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी।


 

वोट शेयर का गणित — MGB का वोट कम नहीं हुआ, पर सीटें ढह गईं

  • NDA Vote share: 46.5%
    MGB Vote share: 37.6%

2020 की तुलना में: 9.26% ज्यादा वोट NDA को पड़ा

  •  NDA के वोट share में बड़ी बढ़त – 37.26%
  •  MGB का वोट share सिर्फ 1.5% गिरा – 38.75%
  •  पर महागठबंधन की सीटें 110 → 35 हो गईं

(स्रोत- चुनाव आयोग)

यानी इस चुनाव में महागठबंधन का वोट प्रतिशत लगभग बराबर रहा पर वे वोट शेयर को सीटों में नहीं बदल सके।

यह चुनाव vote consolidation + social engineering + seat-level micro strategy का चुनाव था।


 

SC वोटर ने NDA का रुख किया — 40 SC/ST सीटों में 34 NDA के खाते में

बिहार की 40 आरक्षित सीटों (38 SC + 2 ST) में NDA ने लगभग क्लीन स्वीप किया:

  •  NDA: 34 सीट
  •  MGB: 4 सीट (2020 में NDA = 21 सीट)

(स्रोत- द इंडियन एक्सप्रेस)

सबसे मजबूत प्रदर्शन JDU ने किया—16 में से 13 SC सीटें जीतीं। BJP ने 12 में से सभी 12 सीटें जीत लीं।

वहीं महागठबंधन के लिए यह सबसे खराब प्रदर्शन रहा — RJD 20 SC सीटों पर लड़कर भी सिर्फ 4 ला सकी।

RJD का वोट शेयर SC सीटों में सबसे ज्यादा (21.75%) रहा, लेकिन सीटें नहीं मिल सकीं।

वोट share और seat conversion में यह सबसे बड़ा असंतुलन रहा।


 

मुस्लिम वोट MGB और AIMIM के चलते बंटा, NDA को फायदा हुआ

सीमांचल – NDA ने 24 में से 14 सीटें जीत लीं

सीमांचल (Purnia, Araria, Katihar, Kishanganj) की 24 सीटों पर इस बार सबसे दिलचस्प तस्वीर दिखी।

मुस्लिम वोट महागठबंधन और AIMIM में बंट गए, और इसका सीधा फायदा NDA को मिला।

  • NDA: 14 सीट
  • JDU: 5
  • AIMIM: 5
  • INC: 4
  • RJD: सिर्फ 1
  • LJP(RV): 1

 

सबसे कम मुस्लिम विधायक विधानसभा पहुंचेंगे – सूबे में 17.7% मुस्लिम आबादी के बावजूद इस बार सिर्फ 10 मुस्लिम विधायक विधानसभा पहुंचे — 1990 के बाद सबसे कम।

  • यह NDA की सामाजिक इंजीनियरिंग, EBC–Hindu consolidation और मुस्लिम वोटों के बंटवारे का संयुक्त परिणाम है।
  • EBC–अति पिछड़ा वोट NDA के साथ गया — MGB की सबसे बड़ी हार की वजह
  • अतिपिछड़ा वर्ग (EBC) बिहार में सबसे बड़ा वोट बैंक है। इस बार ये पूरा वोट NDA के पक्ष में चला गया।
  • JDU की परंपरागत पकड़ + BJP का Welfare Model मिलकर EBC वर्ग में मजबूत प्रभाव डाल गए।
  • यही वोट EBC बेल्ट (मिथिला, मगध, कोसी) में NDA को करारी बढ़त देने का कारण बना।

 


 

रिकॉर्ड संख्या में निर्दलीय लड़े पर नहीं जीत सके

Independent उम्मीदवारों की रिकॉर्ड संख्या — 925 में से 915 की जमानत जब्त

इस चुनाव में:

  •  कुल उम्मीदवार: 2616
  •  Independent: 925
  •  जमानत ज़ब्त: 915 (98.9%)

ECI ने ज़ब्त हुई जमानतों से 2.12 करोड़ रुपये कमाए

 

क्यों इतने Independent मैदान में उतरे?
1. पार्टियों ने पुराने नेताओं के टिकट काटे
2. कई स्थानीय नेताओं ने बगावत कर दी
3. कई सीटों पर बिखराव की वजह बने

VIP, CPI, AIMIM, RJD, INC – हर पार्टी के बड़ी संख्या में उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई।

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दुनिया गोल

युद्ध के चलते बर्बाद हो चुके गज़ा में हमास किस तरह शवों को सुरक्षित रख रहा?

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हमास के सशस्त्र समूह के सदस्य दक्षिणी गजा पट्टी के खान यूनिस में बंधकों के शवों की तलाश करते हुए।
हमास के सशस्त्र समूह के सदस्य दक्षिणी गजा पट्टी के खान यूनिस में बंधकों के शवों की तलाश करते हुए।
  • 11 साल बाद हमास ने इज़रायल को लौटाया एक लेफ्टिनेंट का शव।
  • हाल के शांति समझौते के तहत हमास शव व अवशेष लौटा रहा है।

नई दिल्ली | महक अरोड़ा

गज़ा युद्ध (2014) में मारे गए इज़रायली सैनिक लेफ्टिनेंट हदार गोल्डिन का शव 11 साल बाद आखिरकार इज़रायल को सौंप दिया गया। हमास ने यह शरीर दक्षिणी गज़ा में रेड क्रॉस को दिया, जिसके बाद इसे इज़रायल डिफेंस फोर्स (IDF) के हवाले कर दिया गया।

गोल्डिन की मौत 1 अगस्त 2014 को हुई थी—उसी दिन जब हमास ने उनके यूनिट पर हमला कर उन्हें अगवा कर लिया था। बाद में उनकी हत्या कर दी गई। वे 23 वर्ष के थे और ‘ऑपरेशन प्रोटेक्टिव एज’ के दौरान मारे गए 68 इज़रायली सैनिकों में से एक थे।

IDF अबू कबीर फॉरेंसिक इंस्टीट्यूट में DNA परीक्षण के बाद पहचान की औपचारिक पुष्टि करेगा, जिसके बाद उन्हें राष्ट्रीय सम्मान दिया जाएगा।

 

अब सबसे बड़ा सवाल—हमास ने 11 साल तक शव कैसे सुरक्षित रखा?

क्या गज़ा में आधुनिक शव संरक्षण की सुविधा है?

नहीं।

गज़ा पट्टी में:

  •  कोई उन्नत कोल्ड-स्टोरेज सुविधा नहीं
  •  कोई दीर्घकालीन पॉस्टमॉर्टम प्रिज़र्वेशन सिस्टम नहीं
  •  लगातार बमबारी से मेडिकल सिस्टम ध्वस्त

यहां तक कि हालिया युद्ध में शव रखने के लिए आइस-क्रिम ट्रक इस्तेमाल किए गए—क्योंकि अस्पतालों की मोर्चरी सिर्फ 8–10 शव ही रख सकती है।

 

तो 11 साल पुरानी बॉडी कैसे बची?

विशेषज्ञों के अनुसार इसके चार संभावित कारण हो सकते हैं:

हमास विशेष “सीलबंद भूमिगत चैंबर” का उपयोग करता है

हमास की सुरंगों में कई बार सीक्रेट स्टोरेज रूम मिले हैं, जिनमें:

  • बेहद कम तापमान
  • गहराई के कारण प्राकृतिक ठंडक
  • हवा बंद वातावरण
  • धातु के एयरटाइट कंटेनर

ऐसी जगहें शव को लंबे समय तक सड़ने नहीं देतीं।

 

1. ‘वैक्यूम पैकिंग’- गज़ा में हथियारों की तरह शव भी पैक किए जाते हैं

कई रिपोर्ट्स में कहा गया है कि हमास:

  • शवों को प्लास्टिक व रबर-सील पैकिंग में बंद करता है
  • अंदर ऑक्सीजन बिल्कुल नहीं पहुंचती
  • ऑक्सीजन न मिलने पर शरीर तेजी से नहीं सड़ता

ये तकनीक हथियारों को स्टोर करने में भी उपयोग होती है।

 

2.शरीर पूरी तरह डिकम्पोज नहीं हुआ—सिर्फ “अस्थियाँ” संरक्षित की गईं

इज़रायल कई मामलों में “रेट्रीवल” के समय सिर्फ:

  • हड्डियाँ
  • कपड़ों के अवशेष
  • डीएनए के अंश पाता है।

संभव है कि गोल्डिन का शव भी वर्षों पहले डिकम्पोज हो चुका था और हमास ने केवल अस्थियाँ संरक्षित रखी हों।

 

3.गहरे भूमिगत “पॉकेट्स” में प्राकृतिक ममीकरण

गज़ा की कुछ सुरंगों में:

  • हवा स्थिर
  • तापमान नियंत्रित
  • नमी बेहद कम

ऐसी जगहों में शव “नेचुरल ममी” जैसा रूप ले लेते हैं और दशक भर टिके रहते हैं।

 

4. गज़ा की सच्चाई—शव रखने के लिए आइस-क्रिम ट्रक!

Reuters की रिपोर्ट में बताया गया:

अस्पताल मोर्चरी सिर्फ 10 शव रख सकती है

  • ट्रकों के अंदर बच्चों की आइस-क्रिम के पोस्टर लगे होते हैं
  • अंदर सफ़ेद कपड़ों में लाशें भरी होती हैं
  • कई जगह 100 शवों की मास ग्रेव तैयार हुई

5. 20–30 शव टेंट में रखे जा रहे हैं

गज़ा के डॉक्टर यासिर अली ने कहा, “अगर युद्ध चलता रहा, तो दफनाने के लिए भी जगह नहीं बचेगी।”

इज़रायल में क्या हुआ? शव मिलने पर भावनात्मक लहर

  • गोल्डिन की तस्वीर 11 साल से नेतन्याहू के दफ़्तर में लगी थी
  • सैन्य कब्रिस्तान में इतना भारी जनसैलाब उमड़ा कि कई इलाकों में जाम लग गया
  • सेना ने इसे “राष्ट्रीय सम्मान का क्षण” बताया
  • अंतिम संस्कार देखने हजारों लोग पहुंचे

 

नेतन्याहू ने सैनिक से शव वापसी को बनाया था राजनीतिक मुद्दा 

इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा, “राज्य की स्थापना से हमारी परंपरा है—युद्ध में शहीद हुए सैनिकों को हर हाल में घर लाया जाता है। हदार गोल्डिन की स्मृति सदैव हमारे बीच रहेगी।”

उन्होंने बताया कि 255 बंधकों में से अब तक 250 वापस लाए जा चुके हैं। गोल्डिन उन आखिरी पाँच शवों में से एक थे, जो गज़ा में फंसे थे।

 

परिवार का 11 साल लंबा इंतजार

गोल्डिन के परिवार ने वर्षों तक अभियान चलाया था। उनका कहना था कि, “हमारे बेटे को वापस लाना, इज़रायल की सैनिक परंपरा का मूल हिस्सा है।” इज़रायली सेना प्रमुख ने भी परिवार को “तीव्र प्रयास” का भरोसा दिया था।

 

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SIR के खिलाफ एकजुट हो रहे दक्षिण के राज्य, क्या असर होगा?

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  • 11 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट में SIR के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई होगी।
नई दिल्ली|
पूरे देश में वोटर लिस्ट की गहन जांच कराने की प्रक्रिया (SIR) शुरू हो चुकी है। तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश ने इसका खुला विरोध किया है। आंध्र प्रदेश की सरकार SIR के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच गई है। SIR से जुड़ी राज्य समेत अन्य याचिकाओं पर आगामी 11 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करने जा रहा है। ऐसे में यह समझना महत्वपूर्ण हो जाता है कि दक्षिण के राज्यों के SIR के खिलाफ एकजुट होने का असर भारतीय राजनीति पर कैसा पड़ सकता है। 
तमिलनाडु : 11 नवंबर को पूरे राज्य में विरोध प्रदर्शन निकालेगी सरकार
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने शनिवार को एक वर्चुअल मीटिंग में अपनी पार्टी DMK (द्रविड़ मुनेत्र कड़गम) के मंडल सचिवों से कहा कि 11 नवंबर को सभी जिलों में SIR के विरोध में प्रदर्शन निकाले। उन्होंने 9 नवंबर को ट्वीट किया-
“SIR तमिलनाडु के 7 करोड़ वोटरों के अधिकारों को खतरे में डाल रहा है। यह भाजपा की साजिश है, जो वोट बैंक को प्रभावित करने के लिए डिजाइन की गई है।” 
बता दें कि तमिलनाडु में SIR का पहला चरण 9 दिसंबर को ड्राफ्ट रोल प्रकाशित कर शुरू होगा। इसके खिलाफ DMK ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। तमिलनाडु में DMK का वोट शेयर 40% है, और SIR विरोध इसे और बढ़ा सकता है। लेकिन, BJP ने तमिल सरकार के स्टैंड को ‘प्रचार स्टंट’ बताया है। 
केरल : निकाय चुनाव पर असर डालेगी, विरोध में तमिल का साथ दिया
मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने बीते 5 नवंबर को ऑल-पार्टी मीटिंग में SIR को ‘अवैज्ञानिक’ और ‘दुर्भावनापूर्ण’ बताते हुए कानूनी चुनौती की घोषणा की। साथ ही, इस मुद्दे पर तमिलनाडु के साथ एकजुटता जताई। केरल सरकार का कहना है कि इसकी टाइमिंग, अगले साल होने वाले स्थानीय निकाय चुनाव में बाधा डालेगी क्योंकि BLO का निकाय चुनाव से जुड़ा काम शुरू हो गया है। केरल सरकार भी इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी में है।
कर्नाटक : SIR के खिलाफ संगठित हुए संगठन
यहां एक महीने पहले ही करीब सिविल सोसायटी, राजनीतिक दल, महिला समूह, युवा समूहों को मिलाकर करीब सौ ग्रुपों ने SIR के खिलाफ अभियान शुरू कर दिया था। इनका कहना है कि यह NRC यहां की कांग्रेस सरकार पहले ही SIR पर अपना विरोधी रुख स्पष्ट कर चुकी है।
आंध्र प्रदेश : विपक्षी पार्टी ने इसे आदिवासी वोटरों के खिलाफ साजिश बताया
यहां YSR congress party ने इसे ‘आदिवासी वोटरों को हटाने की साजिश’ बताया है। हालांकि तेलुगु देशम पार्टी यहां सत्ता में है जिसने केंद्र में मोदी के नेतृत्व वाली NDA सरकार को समर्थन दिया है। ऐसे में राज्य सरकार का रूख SIR के समर्थन में है। 
क्या कहते हैं विशेषज्ञ  
द हिंदू के अनुसार, SIR को लेकर दक्षिण में एक ‘टेस्ट केस’ माना जा रहा है, जहां वोटर मोबिलाइजेशन प्रभावित हो सकता है। DMK का तर्क है कि SIR 2002 के बाद पहली बार हो रही है, फिर भी इसे जल्दबाजी में कराया जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि SIR के खिलाफ एकता दक्षिणी राज्यों को सियासी ताकत दे सकती है।
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