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रिसर्च इंजन

पारिवारिक कलह: 10 साल में 5 पार्टियों की हार, लालू की RJD पर भी क्या खतरा?

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उद्धव ठाकरे (फोटो क्रेडिट - इंटरनेट)
  • लालू यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप के नई पार्टी बना लेने के बाद अब बेटी रोहिणी आचार्य के बगावती तेवर
  • रोहिणी ने भाई तेजस्वी के करीबी के खिलाफ ट्वीट किया, फिर पिता और भाई को एक्स पर अनफॉलो किया
नई दिल्ली |
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से ठीक पहले राष्ट्रीय जनता दल (RJD) प्रमुख लालू प्रसाद यादव के परिवार में फूट की खबरें सुर्खियों में हैं। लालू के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव को मई 2025 में पार्टी और परिवार से निष्कासित करने के बाद अब बेटी रोहिणी आचार्य ने भी ‘बगावती’ तेवर दिखाए हैं। हाल में रोहिणी ने फेसबुक पर तेजस्वी यादव के करीबी संजय यादव की आलोचना की, फिर परिवार के सदस्यों को एक्स पर अनफॉलो कर दिया, जिससे परिवार में दरार की अटकलें तेज हो गईं।  आइए जानते हैं कि ये तकरार कितनी गंभीर है और इससे राजद को आगामी विधानसभा चुनाव में क्या चुनौती आ सकती है। गौरतलब है कि बीते दस वर्षों में पांच बड़ी क्षेत्रीय पार्टियों को इसका चुनावी नुकसान उठाना पड़ा है।
बड़ी बेटी मीसा भारती चुप, पर रोहिणी-तेजप्रताप खुलकर बोल रहे
लालू यादव व राबड़ी देवी की सात बेटियों व दो बेटे के परिवार तनाव के संकेत हैं। हालिया विवाद पर बड़े बेटे तेजप्रताप व दूसरे नंबर की बेटी रोहिणी आचार्य ही खुलकर बोल रही हैं। राजनीति में लंबे समय से सक्रिय, लालू की बड़ी बेटी व  पाटलिपुत्र सीट से सांसद मीसा भारती अभी तक चुप हैं। छोटी बहन रोहिणी ने बुधवार तो एक और पोस्ट करके बिना नाम लिए उन लोगों की आलोचना की है, जो उनके मुताबिक यह दोषारोपण कर रहे हैं कि उन्होंने अपने या किसी और के लिए कभी कोई ‘मांग’ रखी थी। साथ ही कहा है कि ऐसे लोगों को शह देने वाले लोगों की सोच गंदी है। जानकार कहते हैं कि ऐसा लिखकर रोहिणी पार्टी या परिवार के किसी व्यक्ति की ओर ही इशारा कर रही हैं।
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Timeline- लालू परिवार में बगावत की कहानी  
तेज प्रताप से रोहिणी तक लालू परिवार की राजनीतिक महत्वाकांक्षा हमेशा से चर्चा में रही है, लेकिन 2025 में यह कलह चुनावी संकट बन गई। इसकी टाइमलाइन देखिए..
25 मई : लालू ने बेटे तेजप्रताप को पार्टी से निकाला 

मई में लालू यादव ने अपने बड़े बेटे तेज प्रताप को “गैर-जिम्मेदार व्यवहार” के चलते 6 साल के लिए RJD और परिवार से निकाल दिया, जिसकी घोषणा उन्होंने एक्स पर ट्वीट करके दी थी। दरअसल 2018 में तेजप्रताप की शादी ऐश्वर्या ( बिहार के पूर्व मंत्री चंद्रिका राय की पोती)  से हुई थी पर रिश्ता नहीं चला और तलाक का केस अब भी कोर्ट में चल रहा है।

लालू के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव।

लालू के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव।

इस बीच तेजप्रताप ने अनुष्का यादव के साथ अपनी एक फोटो ट्वीट करके दावा किया कि वे उनके साथ 12 साल से Live-In रिश्ते में हैं, बाद में इसे डिलीट कर दिया। इसी फोटो के चलते हुई किरकिरी के बाद लालू ने ऐक्शन लिया।

14 सितंबर : बेटे ने नई पार्टी बनाकर गठबंधन किया

इसके बाद तेज प्रताप ने जनशक्ति जनता दल (JJD) नामक नई पार्टी बनाई और 5 छोटे दलों से गठबंधन किया। बता दें कि JJD को मूल रूप से 2020 में रजिस्टर किया गया था, इस दल को चुनाव आयोग ने ‘ब्लैकबोर्ड’ का सिंबल दिया है। बता दें कि तेजप्रताप हसनपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं। इससे पहले वह बिहार के महा-गठबंधन में नीतीश सरकार के स्वास्थ्य मंत्री भी रह चुके हैं।

21 सितंबर : पिता-भाई से नाराज रोहिणी ने किया अन-फॉलो  
बीते 18 सितंबर को रोहिणी आचार्य ने अपने भाई नेता तेजस्वी यादव के करीबी संजय यादव पर निशाना साधते हुए एक सोशल मीडिया पोस्ट किया। यह पोस्ट बिहार में हुई तेजस्वी यादव की ‘बिहार अधिकार यात्रा’ के दौरान की एक तस्वीर को लेकर था जो बाद में वायरल हो गई। इस तस्वीर में देखा जा सकता है कि रैली की रथनुमां बस में तेजस्वी यादव वाली सीट पर संजय सिंह बैठे हैं। तस्वीर को लेकर रोहिणी ने लिखा, “फ्रंट सीट लालू-तेजस्वी के लिए रिजर्व है, संजय यादव का कब्जा गलत है।” इसके बाद उन्होंने अपने सभी पोस्ट प्राइवेट कर लिए और 21 सितंबर को रोहिणी ने तेजस्वी और लालू को X (ट्विटर) पर अनफॉलो भी कर दिया, जो परिवारिक तनाव का संकेत माना जा रहा है। इनके छोटे भाई तेजप्रताप ने बहन के कदम का समर्थन किया है।
तेज प्रताप ने समर्थन किया, कहा “जो बहनों का अपमान करेगा, उसे सुंदरन चक्र का सामना करना पड़ेगा।” – तेज प्रताप यादव की प्रतिक्रिया।
किडनी दान करने के बाद अपने पिता के साथ रोहिणी आचार्य (फोटो क्रेडिट - रोहिणी का फेसबुक पेज)

किडनी दान करने के बाद अपने पिता के साथ रोहिणी आचार्य (फोटो क्रेडिट – रोहिणी का फेसबुक पेज)

 

 24 सितंबर : पिता को किडनी दान देने पर पोस्ट किया 
रोहिणी आचार्य अपने परिवार के साथ सिंगापुर में रहती हैं और इनकी चर्चा मीडिया में अपने पिता लालू यादव को किडनी दान देने के चलते आई थी। इसके बाद उन्होंने सारण से लोकसभा चुनाव भी लड़ा पर हार गईं। रोहिणी ने बुधवार को एक और फेसबुक पोस्ट करके इसी पर लिखा है कि ”अगर कोई साबित कर दे कि उन्होंने पिता को किडनी दान नहीं की तो वे राजनीति से संन्यास ले लेंगी। साथ ही लिखा कि आरोप लगाने वाले यह भी साबित करें कि कभी भी उन्होंने अपने या किसी और के लिए कोई मांग की थी।”
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तेजस्वी यादव बोले- ‘चुनाव से पहले प्रोपेगैंडा कर रही NDA’
“सब NDA का प्रोपेगैंडा है। हम एक परिवार हैं, और यह सब चुनाव से पहले फैलाया जा रहा है ताकि RJD को कमजोर दिखाया जाए। हमारी एकता अटल है, और यह प्रोपेगैंडा हमें मजबूत ही बनाएगा।” – तेजस्वी यादव, प्रेस कॉन्फ्रेस (21 सितंबर 2025)
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RJD विवाद पर क्या कहते हैं राजनीतिक जानकार –
:: महिला वोटरों में जा सकता है गलत संदेश 
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि राजद में लालू की बेटी बगावती तेवरों से पार्टी के महिला वोटरों के बीच छवि को नुकसान हो सकता है। बिहार में महिला वोटर 50% हैं, ऐसे में ये पार्टी के लिए चुनौती बन सकता है। BJP-JDU गठबंधन इस मुद्दे को भुनाकर नैरेटिव बना सकती है कि पार्टी महिलाओं का सम्मान नहीं करती। पहले ही, सत्ताधारी दल ने विपक्ष पर महिलाओं का सम्मान न करने को लेकर प्रचार जारी रखा है, इसको लेकर बिहार बंद भी बुलाया गया था। बता दें कि मोदी ने गया में दिए वर्चुअल भाषण में कहा था कि ‘इंडिया गठबंधन के मंच से उनकी मां को गाली दी गई।’
 
:: संजय यादव के राजद में बढ़ते कद से नाराजगी  
RJD में रोहिणी आचार्य और तेज प्रताप यादव के बगावत के केंद्र में तेजस्वी यादव के सलाहकार संजय यादव रहे हैं। संजय ने 2020 विधानसभा चुनाव में RSS चीफ मोहन भागवत के आरक्षण वाले बयान पर तेजस्वी की रणनीति बनाई, जिससे RJD को फायदा हुआ।
तेजस्वी यादव के साथ उनके करीबी सहयोगी संजय यादव (फोटो क्रेडिट - @sanjuydv)

तेजस्वी यादव के साथ उनके करीबी सहयोगी संजय यादव (फोटो क्रेडिट – @sanjuydv)

 

संजय का प्रभाव तेजस्वी की राजनीतिक शैली को आकार देता आया है। पिछले साल पार्टी ने उन्हें राज्यसभा में सांसद बनाकर भेज दिया। जानकारों के मुताबिक, लालू परिवार के सदस्यों को लगता है कि संजय का बढ़ता प्रभाव पार्टी के अन्य सदस्यों में असुरक्षा की भावना भर सकता है और परिवारिक सदस्यों को यह भी लगता है कि यह “बाहरी” हस्तक्षेप है।
:: पहले भी चुनौतियां आईं पर लालू ने RJD को मजबूत रखा
ऐतिहासिक संदर्भ से यह भी पता लगता है कि RJD अतीत में भी कलह से उबरी है, नेतृत्व एकजुटता रहने पर इस चुनौती से भी पार पा सकती है। 1990 के दशक में लालू प्रसाद यादव पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे और उनके भाई-भतीजावाद की आलोचना हुई, फिर भी उन्होंने पार्टी को बिहार की राजनीति में एक प्रमुख शक्ति के रूप में स्थापित किया।
लालू यादव, credit - staticflickr

लालू यादव, credit – staticflickr

 

विशेषज्ञों का मानना है कि उनकी रणनीति, जिसमें सामाजिक न्याय और यादव-मुस्लिम वोट बैंक को एकजुट करना शामिल था, ने उन्हें संकट से उबारा। 2020 में भी तनाव के बावजूद RJD ने 75 सीटें जीतीं, जो एकता की मिसाल थी। वर्तमान में लालू की नेतृत्व क्षमता और तेजस्वी यादव की युवा अपील पार्टी को फिर से खड़ा करने की संभावना रखती है।

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पारिवारिक कलह : दो दलों में भाई-बहन झगड़े, बहन को पार्टी से निकाल दिया
1- तेलंगाना में के. कविता को निकाला, BRS की हार हुई – भरत राष्ट्र समिति (BRS) पार्टी में बेटे और बेटी के बीच के झगड़े ने 2023 में इसे सत्ता से बाहर कर दिया और कांग्रेस ने सरकार बना ली। तेलंगाना के इस प्रमुख दल को के. चंद्रशेखर राव (KCR) ने बनाया था। उनके बेटे के.टी. रामाराव (KTR) और बेटी के. कविता के बीच पार्टी में वर्चस्व का झगड़ा शुरु हो गया, हाल में के. कविता को पार्टी से बाहर कर दिया गया है। 
KCR की बेटी के. कविता (फोटो क्रेडिट - इंटरनेट)

KCR की बेटी के. कविता (फोटो क्रेडिट – इंटरनेट)

 

2023 में झगड़े के चलते चुनाव में पार्टी 88 से घटकर 39 सीटों पर सिमट गई, कांग्रेस ने 64 जीतीं। कलह ने पार्टी की एकता तोड़ी और वोट बैंक (OBC) बंट गया।
2- आंध्र प्रदेश में शर्मिला को निकाला, YSRCP दोनों चुनाव हारी :  वाईएस जगन मोहन रेड्डी की पार्टी वाइएसआर कांग्रेस पार्टी (YSRCP) के बहन वाईएस शर्मिला से झगड़े ने चुनावी नुकसान पहुंचा। AP के इस प्रमुख दल ने 2024 के लोकसभा व विधानसभा चुनाव में बुरी तरह हार झेली। 
वाईएस शर्मिला (फोटो क्रे़डिट - @realyssharmila)

वाईएस शर्मिला (फोटो क्रे़डिट – @realyssharmila)

 

जगन ने शर्मिला को पार्टी से निकाल दिया, जिसके बाद शर्मिला कांग्रेस में शामिल हो गईं। YSRCP की सीटें 151 से घटकर 11 रह गईं।
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तीन दलों में चाचा-भतीजे की नहीं बनी, चुनाव में वोट कटे  

1- यूपी में सपा से शिवपाल अलग हुए, पार्टी चुनाव हारी- उत्तर प्रदेश (2016-2017) के विधानसभा चुनाव के दौरान सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव और उनके बेटे अखिलेश यादव के बीच कलह ने पार्टी को दो धड़ों में बांट दिया। मुलायम के भाई शिवपाल सिंह यादव ने विद्रोह किया, जिससे 2017 विधानसभा चुनाव में SP की सीटें 224 से घटकर 47 रह गईं। BJP ने 312 सीटें जीतीं। कलह ने यादव वोट बैंक को बांटा, और SP को 25 वर्षों बाद विपक्ष में धकेल दिया।

2- महाराष्ट्र में अजीत पवार अलग हुए, NCP टूटी – राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) प्रमुख शरद पवार और उनके भतीजे अजित पवार के बीच कलह ने NCP को दो भागों (NCP-SP और NCP-Ajit) में बांट दिया। 2023 विधानसभा में NCP-SP को 10 सीटें मिलीं, जबकि अजित गुट ने BJP के साथ गठबंधन कर 41 जीतीं। कुल मिलाकर, कलह ने NCP को 54 से घटाकर 10-41 सीटों पर सीमित कर दिया। 
3- महाराष्ट्र में उद्धव झगड़े, फिर शिवसेना टूटी, सत्ता गईबाल ठाकरे के पोते राज ठाकरे और भतीजे उद्धव ठाकरे के बीच 2005 से कलह चल रही थी, जिसका नुकसान मूल पार्टी को अगले नौ साल तक झेलना पड़ा। राज ठाकरे ने 2006 में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) नाम से पार्टी बना ली, उद्धव ठाकरे के पास मूल पार्टी शिवसेना रही।2019 के लोकसभा चुनाव में MNS ने शिवसेना को नुकसान पहुंचाया।
उद्धव ठाकरे (फोटो क्रेडिट - इंटरनेट)

उद्धव ठाकरे (फोटो क्रेडिट – इंटरनेट)

 

पारिवारिक बेस कमजोर होने के बाद 2022 में पार्टी के सदस्य एकनाथ शिंदे ने शिवसेना में विद्रोह करके इसे दो भागों में बांट दिया और पार्टी का मूल नाम व चुनाव चिन्ह भी ले लिया। इसके बाद उद्धव ठाकरे ने अपने दल का नाम ‘शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे)’ Shiv Sena (UBT) कर दिया। इस दल को ने पिछले साल हुए विधानसभा चुनावों में महाविकास अघाड़ी (MVA) गठबंधन में चुनाव लड़ा और उसकी सीटें 145 से घटकर 20 रह गईं। 
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चुनावी डायरी

बिहार में किसके वोट कहां शिफ्ट हुए? महिला, मुस्लिम, SC–EBC के वोटिंग पैटर्न ने कैसे बदल दिया नतीजा?

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नीतीश कुमार 9 बार सीएम बन चुके हैं और इस बार भी उनके ही चेहरे पर चुनाव लड़ा गया और अप्रत्याशित जीत मिली।
नीतीश कुमार 9 बार सीएम बन चुके हैं और इस बार भी उनके ही चेहरे पर चुनाव लड़ा गया और अप्रत्याशित जीत मिली।
  • महागठबंधन का वोट शेयर प्रभावित नहीं हुआ पर अति पिछड़ा, महिला व युवा वोटर उन पर विश्वास नहीं दिखा सके।

नई दिल्ली| महक अरोड़ा

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों ने साफ कर दिया है कि इस बार की लड़ाई सिर्फ सीटों की नहीं थी—बल्कि वोटिंग पैटर्न, नए सामाजिक समीकरण, और वोट के सूक्ष्म बदलावों की थी।

कई इलाकों में वोट शेयर में बड़ा बदलाव नहीं दिखा, लेकिन सीटें बहुत ज्यादा पलट गईं। यही वजह रही कि महागठबंधन (MGB) का वोट शेयर सिर्फ 1.5% गिरा, लेकिन उसकी सीटें 110 से घटकर 35 पर आ गईं।

दूसरी ओर, NDA की रणनीति ने महिलाओं, SC-EBC और Seemanchal के वोट पैटर्न में बड़ा सेंध लगाई, जो इस प्रचंड बहुमत (massive mandate) की असली वजह माना जा रहा है।

 

महिला वोटर बनीं Kingmaker, NDA का वोट शेयर बढ़ाया

बिहार में इस बार महिलाओं ने 8.8% ज्यादा रिकॉर्ड मतदान किया:

  • महिला वोटिंग: 71.78%
  • पुरुष वोटिंग: 62.98%

(स्रोत- चुनाव आयोग)

महिला वोटर वर्ग के बढ़े हुए मतदान का सीधा फायदा NDA विशेषकर जदयू को हुआ, जिसने पिछली बार 43 सीटें जीती और इस बार 85 सीटों से दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी।


 

वोट शेयर का गणित — MGB का वोट कम नहीं हुआ, पर सीटें ढह गईं

  • NDA Vote share: 46.5%
    MGB Vote share: 37.6%

2020 की तुलना में: 9.26% ज्यादा वोट NDA को पड़ा

  •  NDA के वोट share में बड़ी बढ़त – 37.26%
  •  MGB का वोट share सिर्फ 1.5% गिरा – 38.75%
  •  पर महागठबंधन की सीटें 110 → 35 हो गईं

(स्रोत- चुनाव आयोग)

यानी इस चुनाव में महागठबंधन का वोट प्रतिशत लगभग बराबर रहा पर वे वोट शेयर को सीटों में नहीं बदल सके।

यह चुनाव vote consolidation + social engineering + seat-level micro strategy का चुनाव था।


 

SC वोटर ने NDA का रुख किया — 40 SC/ST सीटों में 34 NDA के खाते में

बिहार की 40 आरक्षित सीटों (38 SC + 2 ST) में NDA ने लगभग क्लीन स्वीप किया:

  •  NDA: 34 सीट
  •  MGB: 4 सीट (2020 में NDA = 21 सीट)

(स्रोत- द इंडियन एक्सप्रेस)

सबसे मजबूत प्रदर्शन JDU ने किया—16 में से 13 SC सीटें जीतीं। BJP ने 12 में से सभी 12 सीटें जीत लीं।

वहीं महागठबंधन के लिए यह सबसे खराब प्रदर्शन रहा — RJD 20 SC सीटों पर लड़कर भी सिर्फ 4 ला सकी।

RJD का वोट शेयर SC सीटों में सबसे ज्यादा (21.75%) रहा, लेकिन सीटें नहीं मिल सकीं।

वोट share और seat conversion में यह सबसे बड़ा असंतुलन रहा।


 

मुस्लिम वोट MGB और AIMIM के चलते बंटा, NDA को फायदा हुआ

सीमांचल – NDA ने 24 में से 14 सीटें जीत लीं

सीमांचल (Purnia, Araria, Katihar, Kishanganj) की 24 सीटों पर इस बार सबसे दिलचस्प तस्वीर दिखी।

मुस्लिम वोट महागठबंधन और AIMIM में बंट गए, और इसका सीधा फायदा NDA को मिला।

  • NDA: 14 सीट
  • JDU: 5
  • AIMIM: 5
  • INC: 4
  • RJD: सिर्फ 1
  • LJP(RV): 1

 

सबसे कम मुस्लिम विधायक विधानसभा पहुंचेंगे – सूबे में 17.7% मुस्लिम आबादी के बावजूद इस बार सिर्फ 10 मुस्लिम विधायक विधानसभा पहुंचे — 1990 के बाद सबसे कम।

  • यह NDA की सामाजिक इंजीनियरिंग, EBC–Hindu consolidation और मुस्लिम वोटों के बंटवारे का संयुक्त परिणाम है।
  • EBC–अति पिछड़ा वोट NDA के साथ गया — MGB की सबसे बड़ी हार की वजह
  • अतिपिछड़ा वर्ग (EBC) बिहार में सबसे बड़ा वोट बैंक है। इस बार ये पूरा वोट NDA के पक्ष में चला गया।
  • JDU की परंपरागत पकड़ + BJP का Welfare Model मिलकर EBC वर्ग में मजबूत प्रभाव डाल गए।
  • यही वोट EBC बेल्ट (मिथिला, मगध, कोसी) में NDA को करारी बढ़त देने का कारण बना।

 


 

रिकॉर्ड संख्या में निर्दलीय लड़े पर नहीं जीत सके

Independent उम्मीदवारों की रिकॉर्ड संख्या — 925 में से 915 की जमानत जब्त

इस चुनाव में:

  •  कुल उम्मीदवार: 2616
  •  Independent: 925
  •  जमानत ज़ब्त: 915 (98.9%)

ECI ने ज़ब्त हुई जमानतों से 2.12 करोड़ रुपये कमाए

 

क्यों इतने Independent मैदान में उतरे?
1. पार्टियों ने पुराने नेताओं के टिकट काटे
2. कई स्थानीय नेताओं ने बगावत कर दी
3. कई सीटों पर बिखराव की वजह बने

VIP, CPI, AIMIM, RJD, INC – हर पार्टी के बड़ी संख्या में उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई।

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दुनिया गोल

युद्ध के चलते बर्बाद हो चुके गज़ा में हमास किस तरह शवों को सुरक्षित रख रहा?

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हमास के सशस्त्र समूह के सदस्य दक्षिणी गजा पट्टी के खान यूनिस में बंधकों के शवों की तलाश करते हुए।
हमास के सशस्त्र समूह के सदस्य दक्षिणी गजा पट्टी के खान यूनिस में बंधकों के शवों की तलाश करते हुए।
  • 11 साल बाद हमास ने इज़रायल को लौटाया एक लेफ्टिनेंट का शव।
  • हाल के शांति समझौते के तहत हमास शव व अवशेष लौटा रहा है।

नई दिल्ली | महक अरोड़ा

गज़ा युद्ध (2014) में मारे गए इज़रायली सैनिक लेफ्टिनेंट हदार गोल्डिन का शव 11 साल बाद आखिरकार इज़रायल को सौंप दिया गया। हमास ने यह शरीर दक्षिणी गज़ा में रेड क्रॉस को दिया, जिसके बाद इसे इज़रायल डिफेंस फोर्स (IDF) के हवाले कर दिया गया।

गोल्डिन की मौत 1 अगस्त 2014 को हुई थी—उसी दिन जब हमास ने उनके यूनिट पर हमला कर उन्हें अगवा कर लिया था। बाद में उनकी हत्या कर दी गई। वे 23 वर्ष के थे और ‘ऑपरेशन प्रोटेक्टिव एज’ के दौरान मारे गए 68 इज़रायली सैनिकों में से एक थे।

IDF अबू कबीर फॉरेंसिक इंस्टीट्यूट में DNA परीक्षण के बाद पहचान की औपचारिक पुष्टि करेगा, जिसके बाद उन्हें राष्ट्रीय सम्मान दिया जाएगा।

 

अब सबसे बड़ा सवाल—हमास ने 11 साल तक शव कैसे सुरक्षित रखा?

क्या गज़ा में आधुनिक शव संरक्षण की सुविधा है?

नहीं।

गज़ा पट्टी में:

  •  कोई उन्नत कोल्ड-स्टोरेज सुविधा नहीं
  •  कोई दीर्घकालीन पॉस्टमॉर्टम प्रिज़र्वेशन सिस्टम नहीं
  •  लगातार बमबारी से मेडिकल सिस्टम ध्वस्त

यहां तक कि हालिया युद्ध में शव रखने के लिए आइस-क्रिम ट्रक इस्तेमाल किए गए—क्योंकि अस्पतालों की मोर्चरी सिर्फ 8–10 शव ही रख सकती है।

 

तो 11 साल पुरानी बॉडी कैसे बची?

विशेषज्ञों के अनुसार इसके चार संभावित कारण हो सकते हैं:

हमास विशेष “सीलबंद भूमिगत चैंबर” का उपयोग करता है

हमास की सुरंगों में कई बार सीक्रेट स्टोरेज रूम मिले हैं, जिनमें:

  • बेहद कम तापमान
  • गहराई के कारण प्राकृतिक ठंडक
  • हवा बंद वातावरण
  • धातु के एयरटाइट कंटेनर

ऐसी जगहें शव को लंबे समय तक सड़ने नहीं देतीं।

 

1. ‘वैक्यूम पैकिंग’- गज़ा में हथियारों की तरह शव भी पैक किए जाते हैं

कई रिपोर्ट्स में कहा गया है कि हमास:

  • शवों को प्लास्टिक व रबर-सील पैकिंग में बंद करता है
  • अंदर ऑक्सीजन बिल्कुल नहीं पहुंचती
  • ऑक्सीजन न मिलने पर शरीर तेजी से नहीं सड़ता

ये तकनीक हथियारों को स्टोर करने में भी उपयोग होती है।

 

2.शरीर पूरी तरह डिकम्पोज नहीं हुआ—सिर्फ “अस्थियाँ” संरक्षित की गईं

इज़रायल कई मामलों में “रेट्रीवल” के समय सिर्फ:

  • हड्डियाँ
  • कपड़ों के अवशेष
  • डीएनए के अंश पाता है।

संभव है कि गोल्डिन का शव भी वर्षों पहले डिकम्पोज हो चुका था और हमास ने केवल अस्थियाँ संरक्षित रखी हों।

 

3.गहरे भूमिगत “पॉकेट्स” में प्राकृतिक ममीकरण

गज़ा की कुछ सुरंगों में:

  • हवा स्थिर
  • तापमान नियंत्रित
  • नमी बेहद कम

ऐसी जगहों में शव “नेचुरल ममी” जैसा रूप ले लेते हैं और दशक भर टिके रहते हैं।

 

4. गज़ा की सच्चाई—शव रखने के लिए आइस-क्रिम ट्रक!

Reuters की रिपोर्ट में बताया गया:

अस्पताल मोर्चरी सिर्फ 10 शव रख सकती है

  • ट्रकों के अंदर बच्चों की आइस-क्रिम के पोस्टर लगे होते हैं
  • अंदर सफ़ेद कपड़ों में लाशें भरी होती हैं
  • कई जगह 100 शवों की मास ग्रेव तैयार हुई

5. 20–30 शव टेंट में रखे जा रहे हैं

गज़ा के डॉक्टर यासिर अली ने कहा, “अगर युद्ध चलता रहा, तो दफनाने के लिए भी जगह नहीं बचेगी।”

इज़रायल में क्या हुआ? शव मिलने पर भावनात्मक लहर

  • गोल्डिन की तस्वीर 11 साल से नेतन्याहू के दफ़्तर में लगी थी
  • सैन्य कब्रिस्तान में इतना भारी जनसैलाब उमड़ा कि कई इलाकों में जाम लग गया
  • सेना ने इसे “राष्ट्रीय सम्मान का क्षण” बताया
  • अंतिम संस्कार देखने हजारों लोग पहुंचे

 

नेतन्याहू ने सैनिक से शव वापसी को बनाया था राजनीतिक मुद्दा 

इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा, “राज्य की स्थापना से हमारी परंपरा है—युद्ध में शहीद हुए सैनिकों को हर हाल में घर लाया जाता है। हदार गोल्डिन की स्मृति सदैव हमारे बीच रहेगी।”

उन्होंने बताया कि 255 बंधकों में से अब तक 250 वापस लाए जा चुके हैं। गोल्डिन उन आखिरी पाँच शवों में से एक थे, जो गज़ा में फंसे थे।

 

परिवार का 11 साल लंबा इंतजार

गोल्डिन के परिवार ने वर्षों तक अभियान चलाया था। उनका कहना था कि, “हमारे बेटे को वापस लाना, इज़रायल की सैनिक परंपरा का मूल हिस्सा है।” इज़रायली सेना प्रमुख ने भी परिवार को “तीव्र प्रयास” का भरोसा दिया था।

 

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रिसर्च इंजन

SIR के खिलाफ एकजुट हो रहे दक्षिण के राज्य, क्या असर होगा?

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  • 11 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट में SIR के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई होगी।
नई दिल्ली|
पूरे देश में वोटर लिस्ट की गहन जांच कराने की प्रक्रिया (SIR) शुरू हो चुकी है। तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश ने इसका खुला विरोध किया है। आंध्र प्रदेश की सरकार SIR के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच गई है। SIR से जुड़ी राज्य समेत अन्य याचिकाओं पर आगामी 11 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करने जा रहा है। ऐसे में यह समझना महत्वपूर्ण हो जाता है कि दक्षिण के राज्यों के SIR के खिलाफ एकजुट होने का असर भारतीय राजनीति पर कैसा पड़ सकता है। 
तमिलनाडु : 11 नवंबर को पूरे राज्य में विरोध प्रदर्शन निकालेगी सरकार
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने शनिवार को एक वर्चुअल मीटिंग में अपनी पार्टी DMK (द्रविड़ मुनेत्र कड़गम) के मंडल सचिवों से कहा कि 11 नवंबर को सभी जिलों में SIR के विरोध में प्रदर्शन निकाले। उन्होंने 9 नवंबर को ट्वीट किया-
“SIR तमिलनाडु के 7 करोड़ वोटरों के अधिकारों को खतरे में डाल रहा है। यह भाजपा की साजिश है, जो वोट बैंक को प्रभावित करने के लिए डिजाइन की गई है।” 
बता दें कि तमिलनाडु में SIR का पहला चरण 9 दिसंबर को ड्राफ्ट रोल प्रकाशित कर शुरू होगा। इसके खिलाफ DMK ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। तमिलनाडु में DMK का वोट शेयर 40% है, और SIR विरोध इसे और बढ़ा सकता है। लेकिन, BJP ने तमिल सरकार के स्टैंड को ‘प्रचार स्टंट’ बताया है। 
केरल : निकाय चुनाव पर असर डालेगी, विरोध में तमिल का साथ दिया
मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने बीते 5 नवंबर को ऑल-पार्टी मीटिंग में SIR को ‘अवैज्ञानिक’ और ‘दुर्भावनापूर्ण’ बताते हुए कानूनी चुनौती की घोषणा की। साथ ही, इस मुद्दे पर तमिलनाडु के साथ एकजुटता जताई। केरल सरकार का कहना है कि इसकी टाइमिंग, अगले साल होने वाले स्थानीय निकाय चुनाव में बाधा डालेगी क्योंकि BLO का निकाय चुनाव से जुड़ा काम शुरू हो गया है। केरल सरकार भी इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी में है।
कर्नाटक : SIR के खिलाफ संगठित हुए संगठन
यहां एक महीने पहले ही करीब सिविल सोसायटी, राजनीतिक दल, महिला समूह, युवा समूहों को मिलाकर करीब सौ ग्रुपों ने SIR के खिलाफ अभियान शुरू कर दिया था। इनका कहना है कि यह NRC यहां की कांग्रेस सरकार पहले ही SIR पर अपना विरोधी रुख स्पष्ट कर चुकी है।
आंध्र प्रदेश : विपक्षी पार्टी ने इसे आदिवासी वोटरों के खिलाफ साजिश बताया
यहां YSR congress party ने इसे ‘आदिवासी वोटरों को हटाने की साजिश’ बताया है। हालांकि तेलुगु देशम पार्टी यहां सत्ता में है जिसने केंद्र में मोदी के नेतृत्व वाली NDA सरकार को समर्थन दिया है। ऐसे में राज्य सरकार का रूख SIR के समर्थन में है। 
क्या कहते हैं विशेषज्ञ  
द हिंदू के अनुसार, SIR को लेकर दक्षिण में एक ‘टेस्ट केस’ माना जा रहा है, जहां वोटर मोबिलाइजेशन प्रभावित हो सकता है। DMK का तर्क है कि SIR 2002 के बाद पहली बार हो रही है, फिर भी इसे जल्दबाजी में कराया जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि SIR के खिलाफ एकता दक्षिणी राज्यों को सियासी ताकत दे सकती है।
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