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पारिवारिक कलह: 10 साल में 5 पार्टियों की हार, लालू की RJD पर भी क्या खतरा?

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उद्धव ठाकरे (फोटो क्रेडिट - इंटरनेट)
  • लालू यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप के नई पार्टी बना लेने के बाद अब बेटी रोहिणी आचार्य के बगावती तेवर
  • रोहिणी ने भाई तेजस्वी के करीबी के खिलाफ ट्वीट किया, फिर पिता और भाई को एक्स पर अनफॉलो किया
नई दिल्ली |
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से ठीक पहले राष्ट्रीय जनता दल (RJD) प्रमुख लालू प्रसाद यादव के परिवार में फूट की खबरें सुर्खियों में हैं। लालू के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव को मई 2025 में पार्टी और परिवार से निष्कासित करने के बाद अब बेटी रोहिणी आचार्य ने भी ‘बगावती’ तेवर दिखाए हैं। हाल में रोहिणी ने फेसबुक पर तेजस्वी यादव के करीबी संजय यादव की आलोचना की, फिर परिवार के सदस्यों को एक्स पर अनफॉलो कर दिया, जिससे परिवार में दरार की अटकलें तेज हो गईं।  आइए जानते हैं कि ये तकरार कितनी गंभीर है और इससे राजद को आगामी विधानसभा चुनाव में क्या चुनौती आ सकती है। गौरतलब है कि बीते दस वर्षों में पांच बड़ी क्षेत्रीय पार्टियों को इसका चुनावी नुकसान उठाना पड़ा है।
बड़ी बेटी मीसा भारती चुप, पर रोहिणी-तेजप्रताप खुलकर बोल रहे
लालू यादव व राबड़ी देवी की सात बेटियों व दो बेटे के परिवार तनाव के संकेत हैं। हालिया विवाद पर बड़े बेटे तेजप्रताप व दूसरे नंबर की बेटी रोहिणी आचार्य ही खुलकर बोल रही हैं। राजनीति में लंबे समय से सक्रिय, लालू की बड़ी बेटी व  पाटलिपुत्र सीट से सांसद मीसा भारती अभी तक चुप हैं। छोटी बहन रोहिणी ने बुधवार तो एक और पोस्ट करके बिना नाम लिए उन लोगों की आलोचना की है, जो उनके मुताबिक यह दोषारोपण कर रहे हैं कि उन्होंने अपने या किसी और के लिए कभी कोई ‘मांग’ रखी थी। साथ ही कहा है कि ऐसे लोगों को शह देने वाले लोगों की सोच गंदी है। जानकार कहते हैं कि ऐसा लिखकर रोहिणी पार्टी या परिवार के किसी व्यक्ति की ओर ही इशारा कर रही हैं।
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Timeline- लालू परिवार में बगावत की कहानी  
तेज प्रताप से रोहिणी तक लालू परिवार की राजनीतिक महत्वाकांक्षा हमेशा से चर्चा में रही है, लेकिन 2025 में यह कलह चुनावी संकट बन गई। इसकी टाइमलाइन देखिए..
25 मई : लालू ने बेटे तेजप्रताप को पार्टी से निकाला 

मई में लालू यादव ने अपने बड़े बेटे तेज प्रताप को “गैर-जिम्मेदार व्यवहार” के चलते 6 साल के लिए RJD और परिवार से निकाल दिया, जिसकी घोषणा उन्होंने एक्स पर ट्वीट करके दी थी। दरअसल 2018 में तेजप्रताप की शादी ऐश्वर्या ( बिहार के पूर्व मंत्री चंद्रिका राय की पोती)  से हुई थी पर रिश्ता नहीं चला और तलाक का केस अब भी कोर्ट में चल रहा है।

लालू के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव।

लालू के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव।

इस बीच तेजप्रताप ने अनुष्का यादव के साथ अपनी एक फोटो ट्वीट करके दावा किया कि वे उनके साथ 12 साल से Live-In रिश्ते में हैं, बाद में इसे डिलीट कर दिया। इसी फोटो के चलते हुई किरकिरी के बाद लालू ने ऐक्शन लिया।

14 सितंबर : बेटे ने नई पार्टी बनाकर गठबंधन किया

इसके बाद तेज प्रताप ने जनशक्ति जनता दल (JJD) नामक नई पार्टी बनाई और 5 छोटे दलों से गठबंधन किया। बता दें कि JJD को मूल रूप से 2020 में रजिस्टर किया गया था, इस दल को चुनाव आयोग ने ‘ब्लैकबोर्ड’ का सिंबल दिया है। बता दें कि तेजप्रताप हसनपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं। इससे पहले वह बिहार के महा-गठबंधन में नीतीश सरकार के स्वास्थ्य मंत्री भी रह चुके हैं।

21 सितंबर : पिता-भाई से नाराज रोहिणी ने किया अन-फॉलो  
बीते 18 सितंबर को रोहिणी आचार्य ने अपने भाई नेता तेजस्वी यादव के करीबी संजय यादव पर निशाना साधते हुए एक सोशल मीडिया पोस्ट किया। यह पोस्ट बिहार में हुई तेजस्वी यादव की ‘बिहार अधिकार यात्रा’ के दौरान की एक तस्वीर को लेकर था जो बाद में वायरल हो गई। इस तस्वीर में देखा जा सकता है कि रैली की रथनुमां बस में तेजस्वी यादव वाली सीट पर संजय सिंह बैठे हैं। तस्वीर को लेकर रोहिणी ने लिखा, “फ्रंट सीट लालू-तेजस्वी के लिए रिजर्व है, संजय यादव का कब्जा गलत है।” इसके बाद उन्होंने अपने सभी पोस्ट प्राइवेट कर लिए और 21 सितंबर को रोहिणी ने तेजस्वी और लालू को X (ट्विटर) पर अनफॉलो भी कर दिया, जो परिवारिक तनाव का संकेत माना जा रहा है। इनके छोटे भाई तेजप्रताप ने बहन के कदम का समर्थन किया है।
तेज प्रताप ने समर्थन किया, कहा “जो बहनों का अपमान करेगा, उसे सुंदरन चक्र का सामना करना पड़ेगा।” – तेज प्रताप यादव की प्रतिक्रिया।
किडनी दान करने के बाद अपने पिता के साथ रोहिणी आचार्य (फोटो क्रेडिट - रोहिणी का फेसबुक पेज)

किडनी दान करने के बाद अपने पिता के साथ रोहिणी आचार्य (फोटो क्रेडिट – रोहिणी का फेसबुक पेज)

 

 24 सितंबर : पिता को किडनी दान देने पर पोस्ट किया 
रोहिणी आचार्य अपने परिवार के साथ सिंगापुर में रहती हैं और इनकी चर्चा मीडिया में अपने पिता लालू यादव को किडनी दान देने के चलते आई थी। इसके बाद उन्होंने सारण से लोकसभा चुनाव भी लड़ा पर हार गईं। रोहिणी ने बुधवार को एक और फेसबुक पोस्ट करके इसी पर लिखा है कि ”अगर कोई साबित कर दे कि उन्होंने पिता को किडनी दान नहीं की तो वे राजनीति से संन्यास ले लेंगी। साथ ही लिखा कि आरोप लगाने वाले यह भी साबित करें कि कभी भी उन्होंने अपने या किसी और के लिए कोई मांग की थी।”
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तेजस्वी यादव बोले- ‘चुनाव से पहले प्रोपेगैंडा कर रही NDA’
“सब NDA का प्रोपेगैंडा है। हम एक परिवार हैं, और यह सब चुनाव से पहले फैलाया जा रहा है ताकि RJD को कमजोर दिखाया जाए। हमारी एकता अटल है, और यह प्रोपेगैंडा हमें मजबूत ही बनाएगा।” – तेजस्वी यादव, प्रेस कॉन्फ्रेस (21 सितंबर 2025)
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RJD विवाद पर क्या कहते हैं राजनीतिक जानकार –
:: महिला वोटरों में जा सकता है गलत संदेश 
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि राजद में लालू की बेटी बगावती तेवरों से पार्टी के महिला वोटरों के बीच छवि को नुकसान हो सकता है। बिहार में महिला वोटर 50% हैं, ऐसे में ये पार्टी के लिए चुनौती बन सकता है। BJP-JDU गठबंधन इस मुद्दे को भुनाकर नैरेटिव बना सकती है कि पार्टी महिलाओं का सम्मान नहीं करती। पहले ही, सत्ताधारी दल ने विपक्ष पर महिलाओं का सम्मान न करने को लेकर प्रचार जारी रखा है, इसको लेकर बिहार बंद भी बुलाया गया था। बता दें कि मोदी ने गया में दिए वर्चुअल भाषण में कहा था कि ‘इंडिया गठबंधन के मंच से उनकी मां को गाली दी गई।’
 
:: संजय यादव के राजद में बढ़ते कद से नाराजगी  
RJD में रोहिणी आचार्य और तेज प्रताप यादव के बगावत के केंद्र में तेजस्वी यादव के सलाहकार संजय यादव रहे हैं। संजय ने 2020 विधानसभा चुनाव में RSS चीफ मोहन भागवत के आरक्षण वाले बयान पर तेजस्वी की रणनीति बनाई, जिससे RJD को फायदा हुआ।
तेजस्वी यादव के साथ उनके करीबी सहयोगी संजय यादव (फोटो क्रेडिट - @sanjuydv)

तेजस्वी यादव के साथ उनके करीबी सहयोगी संजय यादव (फोटो क्रेडिट – @sanjuydv)

 

संजय का प्रभाव तेजस्वी की राजनीतिक शैली को आकार देता आया है। पिछले साल पार्टी ने उन्हें राज्यसभा में सांसद बनाकर भेज दिया। जानकारों के मुताबिक, लालू परिवार के सदस्यों को लगता है कि संजय का बढ़ता प्रभाव पार्टी के अन्य सदस्यों में असुरक्षा की भावना भर सकता है और परिवारिक सदस्यों को यह भी लगता है कि यह “बाहरी” हस्तक्षेप है।
:: पहले भी चुनौतियां आईं पर लालू ने RJD को मजबूत रखा
ऐतिहासिक संदर्भ से यह भी पता लगता है कि RJD अतीत में भी कलह से उबरी है, नेतृत्व एकजुटता रहने पर इस चुनौती से भी पार पा सकती है। 1990 के दशक में लालू प्रसाद यादव पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे और उनके भाई-भतीजावाद की आलोचना हुई, फिर भी उन्होंने पार्टी को बिहार की राजनीति में एक प्रमुख शक्ति के रूप में स्थापित किया।
लालू यादव, credit - staticflickr

लालू यादव, credit – staticflickr

 

विशेषज्ञों का मानना है कि उनकी रणनीति, जिसमें सामाजिक न्याय और यादव-मुस्लिम वोट बैंक को एकजुट करना शामिल था, ने उन्हें संकट से उबारा। 2020 में भी तनाव के बावजूद RJD ने 75 सीटें जीतीं, जो एकता की मिसाल थी। वर्तमान में लालू की नेतृत्व क्षमता और तेजस्वी यादव की युवा अपील पार्टी को फिर से खड़ा करने की संभावना रखती है।

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पारिवारिक कलह : दो दलों में भाई-बहन झगड़े, बहन को पार्टी से निकाल दिया
1- तेलंगाना में के. कविता को निकाला, BRS की हार हुई – भरत राष्ट्र समिति (BRS) पार्टी में बेटे और बेटी के बीच के झगड़े ने 2023 में इसे सत्ता से बाहर कर दिया और कांग्रेस ने सरकार बना ली। तेलंगाना के इस प्रमुख दल को के. चंद्रशेखर राव (KCR) ने बनाया था। उनके बेटे के.टी. रामाराव (KTR) और बेटी के. कविता के बीच पार्टी में वर्चस्व का झगड़ा शुरु हो गया, हाल में के. कविता को पार्टी से बाहर कर दिया गया है। 
KCR की बेटी के. कविता (फोटो क्रेडिट - इंटरनेट)

KCR की बेटी के. कविता (फोटो क्रेडिट – इंटरनेट)

 

2023 में झगड़े के चलते चुनाव में पार्टी 88 से घटकर 39 सीटों पर सिमट गई, कांग्रेस ने 64 जीतीं। कलह ने पार्टी की एकता तोड़ी और वोट बैंक (OBC) बंट गया।
2- आंध्र प्रदेश में शर्मिला को निकाला, YSRCP दोनों चुनाव हारी :  वाईएस जगन मोहन रेड्डी की पार्टी वाइएसआर कांग्रेस पार्टी (YSRCP) के बहन वाईएस शर्मिला से झगड़े ने चुनावी नुकसान पहुंचा। AP के इस प्रमुख दल ने 2024 के लोकसभा व विधानसभा चुनाव में बुरी तरह हार झेली। 
वाईएस शर्मिला (फोटो क्रे़डिट - @realyssharmila)

वाईएस शर्मिला (फोटो क्रे़डिट – @realyssharmila)

 

जगन ने शर्मिला को पार्टी से निकाल दिया, जिसके बाद शर्मिला कांग्रेस में शामिल हो गईं। YSRCP की सीटें 151 से घटकर 11 रह गईं।
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तीन दलों में चाचा-भतीजे की नहीं बनी, चुनाव में वोट कटे  

1- यूपी में सपा से शिवपाल अलग हुए, पार्टी चुनाव हारी- उत्तर प्रदेश (2016-2017) के विधानसभा चुनाव के दौरान सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव और उनके बेटे अखिलेश यादव के बीच कलह ने पार्टी को दो धड़ों में बांट दिया। मुलायम के भाई शिवपाल सिंह यादव ने विद्रोह किया, जिससे 2017 विधानसभा चुनाव में SP की सीटें 224 से घटकर 47 रह गईं। BJP ने 312 सीटें जीतीं। कलह ने यादव वोट बैंक को बांटा, और SP को 25 वर्षों बाद विपक्ष में धकेल दिया।

2- महाराष्ट्र में अजीत पवार अलग हुए, NCP टूटी – राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) प्रमुख शरद पवार और उनके भतीजे अजित पवार के बीच कलह ने NCP को दो भागों (NCP-SP और NCP-Ajit) में बांट दिया। 2023 विधानसभा में NCP-SP को 10 सीटें मिलीं, जबकि अजित गुट ने BJP के साथ गठबंधन कर 41 जीतीं। कुल मिलाकर, कलह ने NCP को 54 से घटाकर 10-41 सीटों पर सीमित कर दिया। 
3- महाराष्ट्र में उद्धव झगड़े, फिर शिवसेना टूटी, सत्ता गईबाल ठाकरे के पोते राज ठाकरे और भतीजे उद्धव ठाकरे के बीच 2005 से कलह चल रही थी, जिसका नुकसान मूल पार्टी को अगले नौ साल तक झेलना पड़ा। राज ठाकरे ने 2006 में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) नाम से पार्टी बना ली, उद्धव ठाकरे के पास मूल पार्टी शिवसेना रही।2019 के लोकसभा चुनाव में MNS ने शिवसेना को नुकसान पहुंचाया।
उद्धव ठाकरे (फोटो क्रेडिट - इंटरनेट)

उद्धव ठाकरे (फोटो क्रेडिट – इंटरनेट)

 

पारिवारिक बेस कमजोर होने के बाद 2022 में पार्टी के सदस्य एकनाथ शिंदे ने शिवसेना में विद्रोह करके इसे दो भागों में बांट दिया और पार्टी का मूल नाम व चुनाव चिन्ह भी ले लिया। इसके बाद उद्धव ठाकरे ने अपने दल का नाम ‘शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे)’ Shiv Sena (UBT) कर दिया। इस दल को ने पिछले साल हुए विधानसभा चुनावों में महाविकास अघाड़ी (MVA) गठबंधन में चुनाव लड़ा और उसकी सीटें 145 से घटकर 20 रह गईं। 
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बिहार विधानसभा चुनाव में कितना बड़ा फैक्टर होंगे प्रशांत किशोर?

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प्रशांत किशोर, जनसुराज के संस्थापक।
प्रशांत किशोर, जनसुराज के संस्थापक।
  • नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव दोनों की आलोचना करने वाले प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी पर विश्लेषण

पटना | हमारे संवाददाता

प्रशांत किशोर बिहार में नया सियासी प्रयोग हैं। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में प्रशांत किशोर (पीके) की जन सुराज पार्टी (JSP) चर्चा का केंद्र बनी है।

कभी नीतीश कुमार और लालू प्रसाद के रणनीतिकार रहे पीके अब खुद नेता बनकर मैदान में हैं। वे नीतीश और तेजस्वी को चुनौती दे रहे हैं, दावा है कि JSP 48% वोट हासिल करेगी।

हालांकि हालिया पोल उन्हें कम सीटें दिखाते हैं, लेकिन वोट बंटवारे से NDA-RJD को नुकसान संभव। अगर पीके युवा गुस्से को संगठित कर पाए, तो उलटफेर मुमकिन।

क्या वे गेम-चेंजर होंगे या वोट कटवा का तमग़ा मिलेगा ? आइए इस विश्लेषण के जरिए बिहार की सियासत में PK इफेक्ट (प्रभाव) को समझते हैं।

 


प्रशांत किशोर की ताकत: JSP की रणनीति और प्रभाव

प्रशांत किशोर ने एक्स पर इस फोटो को शेयर किया है।

प्रशांत किशोर ने एक्स पर इस फोटो को शेयर किया है।

  • पृष्ठभूमि: पीके ने 2014 में मोदी और 2015 में नीतीश-लालू की जीत में रणनीति बनाई। 2022 में जनसुराज पार्टी (JSP) बनाकर सीधे सियासत में कूदे।
  • मुख्य मुद्दे: शिक्षा, रोजगार, पलायन और भ्रष्टाचार पर फोकस। BPSC आंदोलन में शामिल होकर युवा गुस्से को भुनाया।
  • वोट का दावा: 48% वोट जीतने का दावा करते हैं, जिसमें NDA व महागठबंधन से 10-10% वोट काटने और 28% ऐसा वोट पाने का गणित है, जो 2020 में इन दोनों गठबंधन की पार्टियों की जगह छोटे दलों को चला गया था।
  • उम्मीदवारी: खुद चुनाव लड़ने की घोषणा की है, नौ अक्टूबर को उम्मीदवार सूची जारी करेंगे।
  • 60-40 फॉर्मूला: 40% हिंदू (नॉन-यादव OBC, EBC, अगड़ी जातियां) + 20% मुस्लिम वोट।

नीतीश-तेजस्वी दोनों पर हमलावर

  • नीतीश पर निशाना: पीके का दावा है कि ‘JDU को 25 से ज्यादा सीटें नहीं मिलेंगी, वरना राजनीति छोड़ देंगे।’ नीतीश को ‘शारीरिक रूप से थका’ बताया।
  • तेजस्वी पर तंज: पीके का कहना है कि तेजस्वी का ’10 लाख नौकरी’ का वादा खोखला। युवा वोटरों को साधने की कोशिश जो बिहार की 60% आबादी।
  • मुस्लिम रणनीति: RJD को ऑफर— मुस्लिम उम्मीदवारों पर टकराव न हो, जहां वे मुस्लिम उतारें, वहां जनसुराज नहीं उतारेगी। पर ऐसा शर्त के साथ। यह लालू के MY समीकरण को चुनौती।

जनसुराज : चुनौतियां और जोखिम

  • कमजोर संगठन: JSP का ग्राउंड नेटवर्क कमजोर। BJP-JDU-RJD की तुलना में कैडर सीमित।
  • वोट कटवा टैग: कई प्री सर्वे JSP को 2-5 सीटें देते हैं, इससे JDU-RJD को ज्यादा नुकसान संभव।
  • हिन्दू वोट प्रभावित : केंद्र सरकार के वक्फ संशोधन विधेयक के विरोध में रैलियां करने पर उन्हें मुस्लिम समर्थन मिला पर कहा जाता है कि हिन्दू अपरकास्ट वोट छिटका।

प्रेसवार्ता में डिप्टी सीएम के ऊपर गंभीर आरोप लगाते प्रशांत किशोर (फोटो - स्थानीय संवाददाता)

प्रेसवार्ता में डिप्टी सीएम के ऊपर गंभीर आरोप लगाते प्रशांत किशोर (फाइल फोटो)

सर्वे और संभावनाएं

सर्वे/स्रोत

NDA सीटें

महागठबंधन

JSP

अन्य

मैट्रिक्सआईएएनएस

150-160

70-85

2-5

5-10

इंडिया टुडे

145-155

75-90

1-3

5-8

  • वोट प्रभाव: JSP शहरी और युवा वोटरों में लोकप्रिय। ग्रामीण क्षेत्रों में प्रभाव सीमित।
  • गठबंधन की अटकलें: चिराग पासवान (LJP) के साथ गठजोड़ की अफवाह। दोनों 243 सीटों पर लड़ सकते हैं।
  • AAP का प्रवेश: आप की 243 सीटों पर दावेदारी JSP के कैडर को प्रभावित कर सकती है।

बिहार के जातीय समीकरण पर PK की रणनीति 

  • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: 1990 में लालू का MY (मुस्लिम-यादव) समीकरण। 2005 में नीतीश का लव-कुश (EBC, महिलाएं) फॉर्मूला।
  • PK की रणनीति: जाति से ऊपर विकास पर जोर। EBC, मुस्लिम और युवा वोटरों को साधने की कोशिश। MY और लव-कुश समीकरणों को तोड़ने की चुनौती। मुस्लिम वोट बंटवारा RJD के लिए खतरा।

क्या कहते हैं आलोचक?

  • विपक्षी: पीके को ‘राजनीतिक पर्यटक’ कहकर खारिज करते हैं। संगठन की कमी पर सवाल।
  • समर्थक: बिहार के बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के खिलाफ ‘बिहार का बेटा’ की आवाज।
  • BJP की चिंता: दिल्ली की बैठकों में JSP के ‘खौफ’ की चर्चा। त्रिकोणीय मुकाबला संभव।

राजनीतिक विश्लेषकों की राय

अगर पीके 20-30 सीटें जीतते हैं, तो नया समीकरण बनेगा। वरना, वोट बंटवारा NDA या महागठबंधन को फायदा पहुंचाएगा।
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चुनावी डायरी

जीतन राम मांझी : NDA की दलित ताकत, पर सीट शेयर में बड़ी अड़चन

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भाजपा, जदयू के साथ गठबंधन वाले NDA में 'हम' पार्टी की अहमियत पर विश्लेषण। (तस्वीर - @jitanrmanjhi)
जीतनराम मांझी (तस्वीर - @NandiGuptaBJP)
  • बिहार चुनाव में NDA से 15 से 20 सीटें चाहते हैं HAM चीफ माझी

नई दिल्ली|

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से ठीक पहले NDA (नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस) में सीट बंटवारे को लेकर चल रही खींचतान में जीतन राम मांझी का नाम सबसे ऊपर है। हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (सेक्युलर) (HAM) के संस्थापक और केंद्रीय मंत्री मांझी ने 15 से 20 सीटों की मांग रखी है, लेकिन BJP-JDU गठबंधन उन्हें 3-7 सीटें देने पर अड़ा है। क्या मांझी NDA के लिए महादलित-दलित वोटों की ‘मजबूत कड़ी’ हैं या उनकी बढ़ती महत्वाकांक्षा के बीच गठबंधन बचाना ‘मजबूरी’ और चुनौती बन गया है? आइए जानते हैं इस विश्लेषण में..


जीतनराम मांझी (तस्वीर - @NandiGuptaBJP)

जीतनराम मांझी (तस्वीर – @NandiGuptaBJP)

NDA में मांझी की ‘मजबूती’: दलित वोटों का मजबूत आधार

 हालिया बैठकों और बयानों से साफ है कि मांझी की मौजूदगी से NDA को जातीय समीकरण में मजबूती मिलती है। पर BJP के बार-बार मनाने पर भी वे अपनी मांग पर अड़े हैं, बीजेपी प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान ने इसे उनकी ‘साफगोई’ कहा है। जातीय गणित की नजर से देखें तो मांझी NDA को कई सीटों पर मजबूती देते दिखते हैं-

  • महादलित-दलित वोट बैंक: बिहार में दलित (16%) और महादलित (मुसहर, डोम आदि) वोटरों पर मांझी की पकड़ मजबूत है। 2020 में HAM ने 7 सीटों पर 60% से ज्यादा स्ट्राइक रेट दिखाया, जो NDA की कुल 125 सीटों में योगदान देता है। चिराग पासवान (LJP) के साथ मिलकर वे पश्चिम चंपारण से गया तक दलित वोटों को एकजुट करते हैं।
  • नीतीश के पूरक: NDA का महादलित फोकस मांझी से मजबूत होता है। लोकसभा 2024 में NDA की 30/40 सीटों में मांझी का रोल सराहा गया।
  • केंद्रीय मंत्री के रूप में: MSME मंत्री के तौर पर वे केंद्र की रोजगार सृजन योजनाओं (जैसे PMEGP) को बिहार में लागू कर NDA की छवि चमकाते हैं।

NDA में मांझी की मजबूती –

 उदाहरण

जातीय समीकरण

महादलित (12%) वोटों पर पकड़; 2020 में 4/7 सीटें जीतीं।

रणनीतिक भूमिका

JDU-BJP के बीच दलित ब्रिज; चिराग के साथ मिलकर विपक्ष (RJD) को चुनौती।

परिवारिक प्रभाव

बेटाबहू के मंत्री/विधायक होने से स्थानीय स्तर पर मजबूती।

विवादास्पद अपील

गरीबी से सत्ता की कहानी दलित युवाओं को प्रेरित करती है।

 


जीतनराम मांझी के साथ बैठक करने पहुंचे बीजेपी के चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान, तावड़े, सम्राट चौधरी।

जीतनराम मांझी के साथ बैठक करने पहुंचे बीजेपी के चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान, तावड़े, सम्राट चौधरी।

NDA के लिए ‘मजबूरी’: बढ़ती मांगें और बगावती तेवर

दूसरी तरफ, मांझी की महत्वाकांक्षा NDA के लिए सिरदर्द बनी हुई है:

  • सीटों की मांग: बिहार विधानसभा चुनाव में 15-20 (कभी 25-40) सीटें मांग रहे हैं, ताकि HAM को ECI मान्यता (6% वोट/6 सीटें) मिले। लेकिन BJP-JDU उन्हें 3-7 सीटें देने को तैयार हैं। धर्मेंद्र प्रधान की 5 अक्टूबर 2025 की मीटिंग में मांझी को ‘3 से ज्यादा पर नहीं’ कहा गया। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, मांझी ने धमकी दी- “अगर 15-20 न मिलीं तो 100 सीटों पर अकेले लड़ेंगे।”
  • नाराजगी का इतिहास: 2015 में BJP ने नीतीश के सामने मांझी को ‘अपमानित’ होने दिया। अब अप्रत्यक्ष अपमान (वोटर लिस्ट न देना) से नाराज हैं। News18 में मांझी ने कहा, “हम रजिस्टर्ड हैं, लेकिन मान्यता नहीं—यह अपमान है।”
  • गठबंधन तनाव: NDA का फॉर्मूला लगभग तय है, मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक- JDU को 102-108, BJP को 101से 107, LJP को 20से 22, HAM को 3से 7, RLM को 3से 5 सीटें देने का फॉर्मूला है। मांझी की मांग से JDU-BJP के बीच ‘100 सीटों की लड़ाई’ तेज हुई है। उपेंद्र कुशवाहा (RLM) ने भी 15 सीटों की मांग कर दी है जिससे NDA पर 35 सीटों को लेकर दवाब बढ़ गया है।
  • बगावत का जोखिम: अगर मांझी बगावत करें, तो दलित वोट बंट सकते हैं, जो महागठबंधन (RJD) को फायदा देगा। लेकिन NDA उन्हें ‘जरूरी बुराई’ मानता है—इग्नोर करने से वोट लॉस, मानने से सीट शेयरिंग बिगड़ेगी।

NDA के लिए मांझी की मजबूरी के पहलू

उदाहरण

सीट मांग का दबाव

20 मांगीं, 3-7 ऑफर; बगावत की धमकी।

पुराना अपमान

2015 में BJP-JDU नेछोड़ दिया‘; अब मान्यता की लड़ाई।

गठबंधन असंतुलन

JDU-BJP 200+ सीटें चाहते; छोटे दलों कोकुर्बानीदेनी पड़ रही।

विवादास्पद छवि

बयान गठबंधन को नुकसान पहुंचाते, लेकिन वोटरों को जोड़ते।

 


केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी

केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी

मजबूती ज्यादा, लेकिन मजबूरी नजरअंदाज नहीं

मांझी NDA के लिएमजबूतीज्यादा हैंउनके बिना दलित वोटों का 20-25% हिस्सा खिसक सकता है। लेकिन सीट बंटवारे की उनकी जिद गठबंधन कोमजबूरीमें डाल रही है, जहां BJP-JDU को छोटे दलों को मनाना पड़ रहा। 5 अक्टूबर की प्रधानमांझी बैठक में सहमति बनी, लेकिन अंतिम फॉर्मूला जूनजुलाई में तय होगा। अगर NDA 225+ सीटें जीतना चाहता है (जैसा मांझी दावा करते हैं), तो मांझी कोसम्मानजनकरखना जरूरी। वरना, बिहार का जातीय समीकरण फिर उलट सकता है। राजनीतिक पंडितों का मानना है: मांझीकरो या मरोके दौर में हैं, और NDA के लिए वेजरूरी सहयोगीसेसंभावित खतराबन सकते हैं।


 

मांझी की राजनीतिक यात्रा: बंधुआ मजदूरी से सत्ता तक 

जीतन राम मांझी बीते छह अक्तूबर को 81 बरस के हो गए। वे मुसहर समुदाय (महादलित) से आते हैं, जो बिहार के सबसे वंचित वर्गों में शुमार है। बचपन में बंधुआ मजदूरी करने वाले मांझी ने शिक्षा के बल पर 1966 में हिस्ट्री में ग्रेजुएशन किया और पोस्टल विभाग में नौकरी पाई।

जीतन राम माझी

जीतन राम माझी

1980 में कांग्रेस से राजनीति में कदम रखा, फिर RJD (लालू प्रसाद) और 2005 में JDU (नीतीश कुमार) से जुड़े। 2014 में लोकसभा चुनाव में JDU की करारी हार के बाद नीतीश ने इस्तीफा दिया और मांझी को मुख्यमंत्री बनाया—मकसद महादलित वोटों को साधना। लेकिन 9 महीने बाद (फरवरी 2015) विवादास्पद बयानों (जैसे डॉक्टरों के हाथ काटने की धमकी, चूहे खाने को जायज ठहराना) और नीतीश पर हमलों से JDU ने उन्हें बर्खास्त कर दिया। इसके बाद 18 विधायकों के साथ HAM बनाई।

2020 में NDA में वापसी हुई, जहां HAM को 7 सीटें मिलीं और 4 जीतीं। लोकसभा 2024 में गयासुर लोकसभा सीट जीतकर मांझी केंद्रीय मंत्री बने। उनके बेटे संतोष कुमार मांझी बिहार सरकार में मंत्री हैं, जबकि बहू दीपा मांझी इमामगंज से विधायक। यह पारिवारिक राजनीति NDA के लिए फायदेमंद रही, लेकिन मांझी के बयान (जैसे ताड़ी को ‘नेचुरल जूस’ कहना) अक्सर विवादों का सबब बने।

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तमिलनाडु : करूर भगदड़ में 41 मौतों के बाद विजय पर FIR क्यों नहीं?

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30 सितंबर को TVK प्रमुख विजय ने एक वीडियो संदेश जारी किया। (साभार - @TVKVijayHQ)
30 सितंबर को TVK प्रमुख विजय ने एक वीडियो संदेश जारी किया। (साभार - @TVKVijayHQ)
  • मद्रास हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को SIT की जांच IG से कराने का आदेश दिया।
  • TVK के नेताओं को भगदड़ के बाद मदद की जगह भाग जाने के लिए लताड़ा।
  • 27 सितंबर तमिल सिनेमा के सुपरस्टार विजय ने अपनी पार्टी TVK की रैली बुलाई थी।
नई दिल्ली |
तमिल सिनेमा के सुपरस्टार ऐक्टर विजय राजनीति में आने के बाद 27 सितंबर को पहली बड़ी रैली कर रहे थे, अनुमति सिर्फ दस हजार लोगों की ली और भीड़ पांच गुना बढ़ गई।
ओवर क्राउड हो जाने के बाद भी विजय ने अपने प्रशंसकों को कथित तौर पर सात घंटे इंतजार करवाया, फिर भीड़ विजय की झलक पाने के लिए प्रशंसक उनकी गाड़ी की ओर दौड़े। ..और फिर 41 लोगों की मौत और 100 से अधिक लोग घायल हो गए।
मद्रास हाईकोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि हादसे के बाद TVK के नेता मदद करने के बजाय भाग गए जो नैतिक रूप से गलत है। साथ ही, हाईकोर्ट ने IG के नेतृत्व में एक SIT बनाने का आदेश दिया है। 
इस भगदड़ पर अब तक सधा हुए कदम उठा रही तमिलनाडु की DMK सरकार को अब क्या अभिनेता से नेता बने विजय के खिलाफ FIR दर्ज करनी पड़ेगी?
घटना के छह दिन बीत जाने के बाद भी एक्टर विजय की जिम्मेदारी क्यों तय नहीं की गई, इस मामले का अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से क्या कनेक्शन है, आइए जानते हैं-    
एक्टर विजय की रैली के दौरान लोगों का जमावड़ा (फोटो क्रेडिट- @deepanpolitics)

एक्टर विजय की रैली के दौरान लोगों का जमावड़ा (फोटो क्रेडिट- @deepanpolitics)

करूर भगदड़ : 7 घंटे से हाईवे पर हो रहा था इंतजार  
करुर-इरोड हाईवे पर ‘तमिलागा वेट्री कझगम’ (TVK) नामक राजनीतिक पार्टी के प्रमुख विजय ने रैली बुलाई थी। मद्रास हाईकोर्ट में याचिका डालने वाले का आरोप है कि रैली में दोपहर 12 बजे तक विजय के आने का संदेश फैलाया गया था, पर वे शाम सात बजे गए और कार में ही बैठे रहे। जिससे लोग बेचैन हो गए और उनकी ओर दौड़े, जिससे भगदड़ मच गई।
विजय ने वीडियो संदेश में स्टालिन पर निशाना साधा
बीते 30 सितंबर को एक वीडियो संदेश जारी करके विजय ने कहा कि “भगदड़ के लिए स्टालिन सरकार जिम्मेदार है, साथ ही बोले कि अगर आपको बदला लेना है तो मुझे गिरफ्तार कर सकते हो।” हालांकि अपने खिलाफ लगे आरोपों पर वे वीडियो में कुछ नहीं बोले।
बदा दें कि भगदड़ के बाद विजय ने जान गंवाने वालों को 20-20 लाख रुपये व घायलों को 2-2 लाख रुपये का मुआवजा देने की घोषणा की थी। 
300 से ज्यादा बुद्धिजीवियों ने ऐक्शन की मांग की
दो अक्तूबर को राज्य के 300 बुद्धिजीवियों ने ऐक्शन की मांग की है। राज्य के लेखक, कवि, बुद्धिजीवी, कार्यकर्ता और पत्रकारों ने एक संयुक्त बयान में कहा कि विजय की लापरवाही और सत्ता की चाह ने इस हादसे को जन्म दिया, उनके ऊपर कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए।
TVK के छोटे नेताओं पर FIR, मुखिया को छोड़ा  
पुलिस ने TVK नेताओं पर नियमों की अवहेलना का आरोप लगाकर पार्टी के सेक्रेटरी व डिप्टी सेक्रेटरी के खिलाफ FIR दर्ज की, लेकिन इसमें विजय का नाम शामिल नहीं किया गया। 
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री MK स्टालिन (फाइल फोटो, साभार इंटरनेट)

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री MK स्टालिन (फाइल फोटो, साभार इंटरनेट)

मद्रास हाईकोर्ट में याचिका : ‘विजय को स्टालिन बचा रहे’

द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, मद्रास हाई कोर्ट में एक याचिकाकर्ता ने शिकायत की कि विजय का नाम FIR में न होना राजनीतिक कारणों से है। याचिकाकर्ता का कहना है कि “तमिलनाडु सरकार (DMK) विजय को शील्ड कर रही है, क्योंकि उनकी बढ़ती लोकप्रियता राजनीतिक संतुलन को प्रभावित कर सकती है।” याचिकाकर्ता का कहना है कि DMK विजय पर कार्रवाई से बच रही है, ताकि उनकी पार्टी को 2026 में गठबंधन का विकल्प खुला रखा जा सके।

सरकार का पक्ष : पहले जांच रिपोर्ट आने दो

मुख्यमंत्री एमके स्टालिन की डीएमके सरकार ने भगदड़ के लिए TVK पर लापरवाही का आरोप लगाया और वीडियो सबूत पेश किए। पर करुर पुलिस का कहना है कि सबूतों के अभाव में विजय की व्यक्तिगत जिम्मेदारी साबित नहीं हुई। हालांकि TVK नेताओं के खिलाफ उन्होंने कार्रवाई की है।

साथ ही, सरकार का कहना है कि उन्होंने भगदड़ के कारणों को समझने के लिए जांच दल बना दिया है, इसकी रिपोर्ट आने के बाद ही कार्रवाई होगी।

विजय की पार्टी TVK का झंडा

विजय की पार्टी TVK का झंडा

तमिलनाडु की राजनीति में विजय की भूमिका

विजय लंबे समय से तमिल सिनेमा के सुपरस्टार रहे हैं, उन्होंने फरवरी- 2024 में अपनी राजनीतिक पार्टी TVK लॉन्च की थी। उनका उद्देश्य 2026 के विधानसभा चुनावों में मजबूत चुनौती पेश करना है। करुर हादसा उनकी पहली बड़ी रैली थी, जिसमें इतने अधिक लोगों का आ जाना उनकी लोकप्रियता को दर्शाता है। हालांकि, इस घटना ने उनकी छवि को धक्का पहुँचाया है। लेकिन उनकी फैन फॉलोइंग और युवा वोटरों का समर्थन उन्हें राजनीति में प्रभावशाली बनाता है। कई संगठन इसे देखने हुए आगामी चुनाव में उनके साथ गठबंधन करने का विकल्प खुला रखना चाहते हैं। 
बीजेपी व AIDMK की सधी हुई प्रतिक्रिया
बीजेपी की प्रतिक्रिया भी इस घटना पर सधी हुई रही है, दरअसल यह पार्टी भी तमिलनाडु में गठबंधन की तलाश में है। बीजेपी ने इसे राज्य की कानून-व्यवस्था पर सवाल उठाने का मौका बनाया है। जानकार मानते हैं कि विजय की बढ़ती लोकप्रियता आगामी चुनाव में AIADMK और DMK दोनों को चुनौती दे सकती है। ऐसे में बीजेपी भी गठबंधन का विकल्प खुला रखना चाहती है। दूसरी ओर, मुख्य विपक्षी दल AIADMK भी इस हादसे के लिए DMK पर ही ज्यादा हमलावर रही है। 
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