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दुनिया गोल

बांग्लादेश में ‘जनमत संग्रह’ की मांग का आम चुनाव पर क्या असर होगा?

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बांग्लादेश में डेढ़ साल से अस्थिरता जारी, आम चुनाव के लिए प्रचार शुरू पर एक नया राजनीतिक संकट आया जो मो. युनूस की अंतरिम सरकार (इनसेट) के लिए चुनौती है।
बांग्लादेश में डेढ़ साल से अस्थिरता जारी, आम चुनाव के लिए प्रचार शुरू पर एक नया राजनीतिक संकट आया जो मो. युनूस की अंतरिम सरकार (इनसेट) के लिए चुनौती है।
  • अगले साल फरवरी में प्रस्तावित हैं आम चुनाव,  2024 में हसीना सरकार का तख्तापलट हुआ था।

नई दिल्ली |

बांग्लादेश इन दिनों फिर से एक बड़े राजनीतिक मोड़ पर खड़ा है। फरवरी 2026 में होने वाले आम चुनाव से पहले देश में जनमत संग्रह (Referendum) की मांग को लेकर माहौल गरम हो गया है।

देश की सबसे बड़ी इस्लामिक पार्टी जमात-ए-इस्लामी (Jamaat-e-Islami) ने मंगलवार को चेतावनी दी है कि जब तक प्रस्तावित राष्ट्रीय चार्टर को जनता की मंजूरी और कानूनी दर्जा नहीं दिया जाता, तब तक चुनाव नहीं होने चाहिए। ये राष्ट्रीय चार्टर (National Charter) देश में राजनीतिक सुधारों का दस्तावेज़ है।

दूसरी तरफ, पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया (Khaleda Zia) की पार्टी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) ने इस मांग को पूरी तरह खारिज कर दिया है। अब यह टकराव बांग्लादेश की सियासत को एक नए संकट की ओर धकेल रहा है।

बीते साल 5 अगस्त को पीएम शेख हसीना सरकार का तख्ता-पलट हो जाने के बाद मो. युनूस की अंतरिम सरकार अभी सत्ता में है। लंबी मांग के बाद यहां आम चुनाव की घोषणा हुई और प्रचार शुरू हो चुका है। पर अब एक नए राजनीतिक मुद्दे से प्रस्तावित आम चुनाव के ऊपर संकट मंडरा रहा है।

 

क्या है ये “राष्ट्रीय चार्टर”?

“जुलाई नेशनल चार्टर (July National Charter)” दरअसल बांग्लादेश के राजनीतिक सुधारों का खाका है। यह चार्टर उस रोडमैप (Roadmap) का हिस्सा है जिसे पिछले साल शेख हसीना सरकार के पतन के बाद बनी अंतरिम सरकार (Interim Government) ने तैयार किया था। यह अंतरिम सरकार नोबेल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर मुहम्मद यूनुस (Muhammad Yunus) की अगुवाई में बनी थी।

इस चार्टर में कई अहम बदलावों का सुझाव दिया गया —

1. प्रधानमंत्री के अधिकारों पर नियंत्रण,
2. सांसदों के कार्यकाल की सीमा तय करना,
3. भ्रष्टाचार और धन के दुरुपयोग पर रोक,
4. और सत्ता में संतुलन लाने के उपाय।

लेकिन अभी तक इस चार्टर को संविधानिक मान्यता (Legal Status) नहीं मिली है।
जमात का कहना है कि जब तक इस चार्टर को जनमत संग्रह (Referendum) के ज़रिए जनता की मंजूरी नहीं मिलती, तब तक इसे लागू करना कानूनी रूप से अधूरा होगा।

 

जमात-ए-इस्लामी का कहना क्या है?

ढाका में मंगलवार को आयोजित विशाल रैली में जमात प्रमुख शफीकुर रहमान (Shafiqur Rahman) ने कहा, “इस देश के स्वतंत्रता-प्रेमी लोगों का एक ही संदेश है — आम चुनाव से पहले राष्ट्रीय जनमत संग्रह कराया जाए। चार्टर को कानूनी आधार दिए बिना चुनाव कराना देश के साथ धोखा होगा।”

जमात ने यह रैली अपनी ताकत दिखाने के लिए आयोजित की थी। रहमान ने कहा कि “राष्ट्रीय सहमति आयोग (National Consensus Commission)” जो मुख्य सलाहकार यूनुस के नेतृत्व में बना था, उसकी मेहनत को जनता की राय से ही वैधता मिल सकती है।

 

बीएनपी का जवाब: संविधान में जनमत संग्रह का प्रावधान नहीं

जमात के इस रुख से सबसे ज्यादा असहमति खालिदा जिया की पार्टी बीएनपी (BNP) ने जताई है बीएनपी महासचिव मिर्जा फखरुल इस्लाम आलमगीर (Mirza Fakhrul Islam Alamgir) ने कहा, “जमात चुनाव से डर रही है क्योंकि उसे पता है कि जनता उसे नकार देगी। संविधान में जनमत संग्रह का कोई उल्लेख नहीं है। इसलिए यह मांग गैरकानूनी और अलोकतांत्रिक है।”

बीएनपी का कहना है कि संसद (Parliament) ही वह मंच है जहां इस चार्टर पर चर्चा और निर्णय होना चाहिए। उनके मुताबिक, अंतरिम सरकार को संविधान की सीमाओं में रहकर ही काम करना होगा।

 

विवाद कहां से शुरू हुआ?

बीएनपी और जमात दोनों ने पिछले महीने एक बड़े समारोह में 84 प्रस्तावों वाला राजनीतिक चार्टर साइन किया था। उस समय दोनों दल एकमत थे, लेकिन अब चार्टर को लागू करने के तरीकों को लेकर विवाद गहराता जा रहा है।जमात चाहती है कि चार्टर पर पहले जनता की मुहर लगे (जनमत संग्रह के ज़रिए), फिर चुनाव कराए जाएं।
बीएनपी का रुख है कि ऐसा करना संविधान के खिलाफ है और इससे चुनाव टल जाएंगे।

BNP ने शुरू में जनमत संग्रह के विचार का समर्थन किया था, लेकिन बाद में कहा कि यदि जनमत संग्रह कराना ही है, तो उसे चुनाव के दिन ही साथ में कराया जाए, अलग से नहीं।

 

यूनुस सरकार पर बढ़ता दबाव

शेख हसीना के सत्ता से हटने के बाद बनी अंतरिम सरकार (Interim Government) का नेतृत्व प्रोफेसर मुहम्मद यूनुस कर रहे हैं। उनका उद्देश्य एक ऐसा राजनीतिक ढांचा बनाना है जो भविष्य में “तानाशाही शासन” के दोहराव को रोक सके।

अब जमात और बीएनपी के बीच बढ़ती खींच-तान यूनुस सरकार की विश्वसनीयता पर सवाल उठा रही है।

स्थानीय मीडिया में ऐसी भी खबरें हैं कि सरकार अब इस पर विचार कर रही है कि चार्टर को जनमत संग्रह के बिना ही आंशिक रूप से लागू किया जाए। हालांकि इससे विवाद और गहरा सकता है।

 

क्या टल सकते हैं आम चुनाव?

राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, अगर जनमत संग्रह पर सहमति नहीं बनी तो फरवरी-2026 के आम चुनाव टल सकते हैं क्योंकि विपक्ष और इस्लामिक दल “पहले जनमत संग्रह, बाद में चुनाव” की ज़िद पर अड़े हैं।

देश में पहले से ही राजनीतिक अस्थिरता, मानवाधिकार उल्लंघन और विपक्ष पर दमन के आरोप लग चुके हैं। अगर यह टकराव बढ़ा,तो बांग्लादेश को एक और बड़े संकट का सामना करना पड़ सकता है।

 

भारत पर क्या असर पड़ सकता है?

बांग्लादेश की यह स्थिति सिर्फ उसके अंदरूनी हालात तक सीमित नहीं है, इसका सीधा असर भारत पर भी हो सकता है।

1. सीमा पर दबाव: अगर बांग्लादेश में हिंसा या अस्थिरता बढ़ती है, तो भारत की पूर्वी सीमाओं (असम, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा) पर शरणार्थियों का दबाव बढ़ सकता है।

2. कट्टरपंथी संगठनों का खतरा: जमात-ए-इस्लामी जैसे दलों की बढ़ती ताकत, भारत के पूर्वोत्तर इलाकों में कट्टरपंथी विचारधारा और चरमपंथी गतिविधियों को बढ़ावा दे सकती है।

3. व्यापार और ट्रांजिट पर असर: भारत का पूर्वोत्तर हिस्सा चटगांव और मोंगला बंदरगाहों के ज़रिए व्यापार करता है। राजनीतिक अस्थिरता से ये मार्ग प्रभावित हो सकते हैं।

4. सुरक्षा सहयोग पर असर: बीते एक दशक में भारत-बांग्लादेश के बीच आतंकवाद और सीमा सुरक्षा पर मजबूत सहयोग रहा है, जो अब अंतरिम सरकार के विवादों के बीच धीमा पड़ सकता है।

 

लोकतंत्र की नई परीक्षा
बांग्लादेश की राजनीति पर नजर रखने वाले विशेषज्ञों का कहना है कि बांग्लादेश अब एक अहम मोड़ पर खड़ा है, वह या तो संविधान की सीमाओं में रहकर सुधार लागू करेगा, या जनमत संग्रह की ‘जिद’ में फंसकर फिर से अस्थिरता में घिर जाएगा।

आने वाला चुनाव सिर्फ सत्ता परिवर्तन का नहीं, बल्कि बांग्लादेश के लोकतंत्र की अग्निपरीक्षा साबित हो सकता है।भारत के लिए भी यह पड़ोसी देश की स्थिति सुरक्षा, सीमाई शांति और कूटनीतिक संबंधों पर सीधा असर डाल सकती है।


written by Mahak Arora (content writer)

बोलते पन्ने.. एक कोशिश है क्लिष्ट सूचनाओं से जनहित की जानकारियां निकालकर हिन्दी के दर्शकों की आवाज बनने का। सरकारी कागजों के गुलाबी मौसम से लेकर जमीन की काली हकीकत की बात भी होगी ग्राउंड रिपोर्टिंग के जरिए। साथ ही, बोलते पन्ने जरिए बनेगा .. आपकी उन भावनाओं को आवाज देने का, जो अक्सर डायरी के पन्नों में दबी रह जाती हैं।

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Ukraine War: गज़ा के बाद अब यूक्रेन में शांति की ट्रंप योजना, शर्ते जानिए

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  • Gaza के बाद अब Ukraine पर Trump का नया प्लान, शांति के लिए रूस को देनी होगी जमीन
  • NATO में शामिल नहीं होगा Ukraine, सेना की संख्या पर भी लगेगी 6 लाख की लिमिट

  • रूस से हटेंगे सारे प्रतिबंध, लेकिन जंग नहीं रुकी तो भुगतने होंगे गंभीर अंजाम

 

नई दिल्ली |

अमेरिका (America) के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) ने गाजा के बाद अब यूक्रेन युद्ध को खत्म करने के लिए एक नया और चौंकाने वाला प्लान तैयार किया है। इस मसौदे (Draft) की रिपोर्ट अमेरिकी मीडिया में लीक होने से इस मामले का खुलासा हुआ है। इस ‘पीस प्लान’ का सीधा मतलब है- “जमीन के बदले यूक्रेन को शांति”।

इस लीक डॉफ्ट के हवाले से रिपोर्ट किया जा रहा है किॉ ट्रंप प्रशासन ने यूक्रेन (Ukraine) के सामने शर्त रखी है कि अगर उसे युद्ध रोकना है, तो उसे अपने देश का कुछ हिस्सा हमेशा के लिए रूस (Russia) को देना होगा। यूक्रेन सरकार ने इस योजना पर सधी हुई प्रतिक्रिया देते हुए कहा है-

“अमेरिकी पक्ष का आकलन है कि इस योजना से कूटनीति को पुनर्जीवित करने में मदद मिलेगी।”

यूक्रेन को छोड़नी होगी अपनी जमीन

इस ड्राफ्ट प्लान के मुताबिक, अमेरिका अब क्रीमिया (Crimea) और अन्य उन इलाकों को रूस का हिस्सा मानने को तैयार है, जिन पर अभी रूसी सेना का कब्जा है। यानी यूक्रेन को इन इलाकों से अपना दावा छोड़ना होगा। जहां अभी दोनों देशों की सेनाएं खड़ी हैं, वहीं पर युद्ध रोक दिया जाएगा और उसे नई सीमा मान लिया जाएगा।

NATO में शामिल होने पर ‘बैन’

ट्रंप के इस प्लान में यूक्रेन के लिए कई सख्त शर्तें हैं।

  • NATO नो-एंट्री: यूक्रेन कभी भी नाटो (NATO) का सदस्य नहीं बनेगा।

  • सेना पर रोक: यूक्रेन अपनी सेना को बहुत ज्यादा नहीं बढ़ा सकता। उसकी सेना में अधिकतम 6 लाख सैनिक ही हो सकेंगे।

  • विदेशी सेना नहीं: यूक्रेन की धरती पर नाटो या किसी और देश की सेना तैनात नहीं होगी।

रूस को क्या फायदा मिलेगा?

अगर यह समझौता होता है, तो इससे रूस को बड़ी जीत मिलेगी क्योंकि इसकी कई बातें, पुतिन की शर्तों से मेल खाती हैं।

  • रूस पर लगे सभी अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध (Sanctions) हटा दिए जाएंगे।

  • रूस को फिर से दुनिया के व्यापार में शामिल किया जाएगा और वह अपना तेल-गैस आसानी से बेच सकेगा।

शर्त तोड़ी तो भुगतना होगा अंजाम

ट्रंप ने दोनों पक्षों को चेतावनी भी दी है।

  • रूस के लिए: अगर समझौता होने के बाद रूस ने फिर हमला किया, तो अमेरिका उस पर दोबारा कड़े प्रतिबंध लगा देगा और यूक्रेन को और ज्यादा हथियार देगा।

  • यूक्रेन के लिए: अगर यूक्रेन ने बिना वजह रूस के शहरों पर मिसाइल दागी, तो अमेरिका उसकी सुरक्षा की गारंटी खत्म कर देगा।

ज़ेलेंस्की तैयार, यूरोप हैरान

अमेरिकी अधिकारियों ने यह प्लान यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की (Volodymyr Zelensky) को सौंप दिया है। ज़ेलेंस्की ने कहा है कि वह शांति के लिए काम करने को तैयार हैं। लेकिन यूरोप (Europe) के कई देश इस प्लान से हैरान हैं। उनका मानना है कि अपनी जमीन रूस को दे देना यूक्रेन के लिए हार मानने जैसा होगा।

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COP30: दुनिया को बचाने के मकसद वाले जलवायु सम्मेलन में कोयला-पेट्रोल पर दो फाड़, क्या हो पाएगा समझौता?

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ब्राजील में जारी जलवायु सम्मेलन का आज अंतिम दिन है। credit - Facebook/COP30 Brasil
  • COP30 में 80 से ज्यादा देशों ने खोला मोर्चा, जीवाश्म ईंधन को खत्म करने के लिए मांगा ‘ठोस प्लान’
  • मेजबान Brazil की कोशिशें हुईं नाकाम, Saudi Arabia समेत कई तेल उत्पादक देशों ने अड़ाया अड़ंगा

  • गतिरोध तोड़ने के लिए EU ने दिया नया प्रस्ताव, Turkey करेगा अगले साल COP31 की मेजबानी

नई दिल्ली |

ब्राजील (Brazil) के बेलेम (Belem) शहर में चल रहे संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन यानी COP30 में भारी हंगामा देखने को मिला। धरती को बचाने के लिए बुलाई गई इस बैठक में दुनिया दो हिस्सों में बंटी नजर आई। 10 नवंबर से शुरू हुए इस वैश्विक सम्मेलन का आज (21 nov) को अंतिम दिन है और अभी तक कोई साझा घोषणापत्र पर सहमति नहीं बन सकी है।

एक तरफ 80 से ज्यादा देशों ने एकजुट होकर मांग की है कि दुनिया से पेट्रोल, डीजल और कोयले यानी जीवाश्म ईंधन को खत्म करने का पक्का ‘रोडमैप’ (Total Phase out)  तैयार किया जाए, ऐसा न होने पर वे प्रस्ताव ब्लॉक कर देंगे।

वहीं, दूसरी तरफ सऊदी अरब (Saudi Arabia) समेत कई तेल उत्पादक देश इसके सख्त खिलाफ खड़े हो गए हैं। चीन और अमेरिका इस पर चुप्पी साधे हैं। इस खींचतान के कारण मेजबान ब्राजील शुरुआती समझौता कराने में विफल रहा है। अब देखना होगा कि अंतिम दिन मेजबान ब्राजील किस तरह सहमति बना पाता है या यह सम्मेलन बिना दुनिया के तापमान को बढ़ने से रोकने के आवश्यक कदम पर सहमति न बनाए बिना समाप्त हो जाएगा।

COP30 का आधिकारिक लोगो

COP30 का आधिकारिक लोगो

जलवायु संकट से जूझ रहे छोटे देशों की धमकी

द गार्जियन ने रिपोर्ट किया है कि कम से कम 28 देशों ने मेजबान ब्राजील को 20 नवंबर को पत्र लिखकर चेतावनी दी है कि अगर अंतिम समझौते में फॉसिल फ्यूल (जीवाश्म ईंधन) को पूरी तरह चरणबद्ध तरीके से खत्म करने (phase-out) का स्पष्ट और बाध्यकारी रोडमैप नहीं जोड़ा गया, तो वे पूरे प्रस्ताव को ब्लॉक कर देंगे।

ये देश कर रहे मांग

पूरी तरह प्राकृतिक ईंधन से इस्तेमाल को हटाने का समर्थन करने वाले देशों में यूरोपीय संघ, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, चिली, कोलंबिया, वनुआतु, तुवालु, मार्शल आइलैंड्स और अफ्रीकी देशों का बड़ा समूह शामिल है।

80 देशों ने बनाई ‘ग्लोबल कोलिशन’

सम्मेलन में अफ्रीका, एशिया, लैटिन अमेरिका और प्रशांत क्षेत्र के देशों ने यूरोपीय संघ (EU) और ब्रिटेन (UK) के साथ मिलकर एक वैश्विक गठबंधन बना लिया है। Marshall Islands की जलवायु दूत टीना स्टेज (Tina Stege) ने 20 मंत्रियों के साथ एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “हम सबको मिलकर एक रोडमैप के पीछे खड़ा होना होगा और इसे एक योजना में बदलना होगा।” यूके के ऊर्जा सचिव एड मिलिबैंड (Ed Miliband) ने भी जोर देकर कहा, “यह मुद्दा अब कालीन के नीचे नहीं छिपाया जा सकता। हम सब एक आवाज में कह रहे हैं कि जीवाश्म ईंधन से दूरी बनाना ही इस सम्मेलन का दिल होना चाहिए।”

सऊदी अरब बना ‘रोड़ा’

वानुअतु (Vanuatu) के जलवायु मंत्री राल्फ रेगेनवानु (Ralph Regenvanu) ने सीधे तौर पर दुनिया के सबसे बड़े तेल निर्यातक सऊदी अरब (Saudi Arabia) पर निशाना साधा। उन्होंने कहा, “मुझे लगता है कि समझौता बहुत मुश्किल होगा क्योंकि हमारे पास कुछ ‘ब्लॉकर्स’ हैं जो तेल और गैस छोड़ने की किसी भी योजना का विरोध कर रहे हैं।” छोटे द्वीपीय देशों का कहना है कि वे इस मुद्दे पर आखिरी दम तक लड़ेंगे क्योंकि अगर समुद्र का जलस्तर बढ़ा, तो उनका अस्तित्व ही मिट जाएगा।

आखिर क्या है COP30? 

सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि यह बैठक क्या है। COP का मतलब है ‘कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज’ (Conference of Parties)। यह संयुक्त राष्ट्र (UN) की एक सालाना बैठक है जिसमें दुनिया भर के लगभग 200 देश शामिल होते हैं।

  • मकसद: इसका मुख्य उद्देश्य धरती के बढ़ते तापमान को रोकना और जलवायु परिवर्तन से निपटना है।

  • लक्ष्य: पेरिस समझौते के तहत दुनिया के तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा बढ़ने से रोकने पर आगे की योजना बनाना।

  • जगह: इस बार यह 30वीं बैठक है, इसलिए इसे COP30 कहा जा रहा है और यह अमेजन के जंगल वाले शहर बेलेम में हो रही है।

मेजबान Brazil का प्लान फेल?

ब्राजील के राष्ट्रपति लूला (Lula da Silva) चाहते थे कि बुधवार तक ही जलवायु वित्त और ईंधन को लेकर एक बड़ा समझौता हो जाए, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। शुरुआत में ब्राजील ने ‘जीवाश्म ईंधन’ को आधिकारिक एजेंडे से बाहर रखा था, लेकिन भारी दबाव के बाद उसे एक ड्राफ्ट पेश करना पड़ा। हालांकि, कई देशों ने इस ड्राफ्ट को बहुत कमजोर बताया। अब राष्ट्रपति लूला आखिरी दो दिनों में किसी नतीजे पर पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं।

EU ने दिया ‘बीच का रास्ता’

इस गतिरोध को तोड़ने के लिए यूरोपीय संघ (EU) ने बुधवार देर रात एक नया प्रस्ताव रखा है। इसमें सुझाव दिया गया है कि देश जीवाश्म ईंधन को छोड़ने के लिए एक रोडमैप तो पेश करें, लेकिन यह ‘गैर-बाध्यकारी’ (Non-prescriptive) होना चाहिए। इसका मतलब है कि किसी भी देश पर कोई विशिष्ट नियम जबरदस्ती नहीं थोपा जाएगा, बल्कि वे विज्ञान के आधार पर खुद तय करेंगे।

तुर्किये करेगा COP31 की मेजबानी

इस तनातनी के बीच एक कूटनीतिक सफलता भी मिली है। ऑस्ट्रेलिया (Australia) के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज (Anthony Albanese) ने पुष्टि की है कि अगले साल के जलवायु सम्मेलन यानी COP31 की मेजबानी को लेकर सहमति बन गई है। इसके तहत तुर्किये (Turkey) अगले साल के सम्मेलन की मेजबानी करेगा, जबकि ऑस्ट्रेलिया सरकारों के बीच बातचीत का नेतृत्व करेगा।

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Ops सिंदूर के बाद राफेल विमानों को AI के जरिए बदनाम कर रहा था चीन : अमेरिकी रिपोर्ट में खुलासा

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Ops सिंदूर के दौरान राफेल विमानों के प्रदर्शन पर सोशल मीडिया में दुष्प्रचार फैलाया गया था।
Ops सिंदूर के दौरान राफेल विमानों के प्रदर्शन पर सोशल मीडिया में दुष्प्रचार फैलाया गया था।
  • US रिपोर्ट में खुलासा: चीन ने AI का इस्तेमाल कर राफेल के खिलाफ फैलाया झूठ

  • J-35 को बेचने के लिए भारत के राफेल विमानों को बताया था ‘नष्ट’

  • पाकिस्तान को बनाया हथियारों की ‘प्रयोगशाला’, भारतीय जनरल के दावे पर लगी मुहर

नई दिल्ली |

पाक के खिलाफ हुए ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारतीय विमानों को लेकर सोशल मीडिया पर चलाए गए दुष्प्रचार के पीछे चीन का हाथ था। ऐसा दावा अमेरिकी संसद की एक रिपोर्ट में किया गया है।

अमेरिका (USA) की एक शीर्ष सरकारी रिपोर्ट में चीन (China) को लेकर कहा गया है कि भारत के राफेल (Rafale) लड़ाकू विमानों के खिलाफ एक सुनियोजित दुष्प्रचार अभियान चलाया था।

‘यूएस-चाइना इकोनॉमिक एंड सिक्योरिटी रिव्यू कमीशन’ (US-China Economic and Security Review Commission) ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में यह खुलासा किया है।

अमेरिकी आयोग ने बताया कि चीन ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का इस्तेमाल करके राफेल विमानों के ‘नकली मलबे’ की तस्वीरें बनाईं और फर्जी सोशल मीडिया अकाउंट्स के जरिए उन्हें पूरी दुनिया में फैलाया, ताकि वह अपने खुद के जे-35 (J-35) विमानों की बिक्री को बढ़ावा दे सके।

 

राफेल को बदनाम कर अपना ‘J-35’ बेचना चाहता था चीन

रिपोर्ट के मुताबिक, चीन का मकसद दोतरफा था- पहला, फ्रांसीसी राफेल विमानों की छवि खराब करके उनके निर्यात को रोकना और दूसरा, अपने जे-35 विमानों को बेहतर साबित करना। चीन ने यह दिखाने की कोशिश की कि मई में हुए भारत-पाकिस्तान संघर्ष के दौरान चीनी हथियारों ने राफेल को मार गिराया है, जबकि यह पूरी तरह झूठ था।

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि चीनी दूतावास के अधिकारियों ने इसी फर्जी नेरेटिव का इस्तेमाल करके इंडोनेशिया (Indonesia) को राफेल खरीदने से रोकने की भी कोशिश की थी।

 

पाकिस्तान बना चीन की ‘प्रयोगशाला’

जुलाई महीने में ही भारतीय उपसेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल राहुल आर सिंह ने चीन और पाकिस्तान के इस गठजोड़ को बेनकाब कर दिया था। उन्होंने उस समय साफ कहा था कि चीन अपने हथियारों को टेस्ट करने और उनका प्रचार करने के लिए पाकिस्तान का इस्तेमाल कर रहा है।

अब अमेरिकी आयोग की इस ताजा रिपोर्ट ने भारतीय जनरल के उस दावे पर मुहर लगा दी है। रिपोर्ट में पुष्टि की गई है कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान चीन अपने सदाबहार दोस्त पाकिस्तान (Pakistan) की हर मुमकिन मदद कर रहा था। रिपोर्ट साफ कहती है कि उस संघर्ष के दौरान पाकिस्तान चीनी हथियारों के लिए एक ‘प्रयोगशाला’ बना हुआ था, जहां चीन ने मौकापरस्त तरीके से अपनी तकनीक का परीक्षण किया।

AI एंकर और फर्जी अकाउंट्स का जाल

आयोग ने कांग्रेस को सौंपी रिपोर्ट में बताया कि चीन अपनी ‘ग्रे-जोन’ गतिविधियों के तहत एआई का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग कर रहा है। राफेल के मलबे की तस्वीरें ही नहीं, बल्कि चीन ने वीडियो गेम के विजुअल का भी इस्तेमाल किया।

इसके अलावा, रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ है कि 2024 में चीन समर्थक ऑनलाइन ग्रुप्स ने अमेरिका में भी नशीली दवाओं, आप्रवासन और गर्भपात जैसे मुद्दों पर विभाजन पैदा करने के लिए एआई-जनरेटेड न्यूज एंकर्स और फर्जी प्रोफाइल फोटो का इस्तेमाल किया था।

सीमा विवाद पर भी दोहरी चाल

भारत-चीन संबंधों पर आयोग ने कहा कि सीमा मुद्दे को लेकर दोनों देशों के बीच एक ‘असमानता’ है। चीन चाहता है कि वह अपने मूल हितों का त्याग किए बिना, सीमा विवाद को अलग रखकर भारत के साथ व्यापार और अन्य क्षेत्रों में सहयोग के द्वार खोले। वहीं, भारत सीमा मुद्दों का एक स्थायी समाधान चाहता है। रिपोर्ट में जोर दिया गया है कि भारत सरकार ने हाल के वर्षों में सीमा पर चीन से उत्पन्न खतरे की गंभीरता को अब बेहतर तरीके से पहचाना है।

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