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बिहार : सिंधिया-सरौरा नदी की मछलियों पर ‘हक’ की लड़ाई में मछुआरों का प्रदर्शन

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मछुआरा समाज के लोग अपनी मांगों को लेकर पहुंचे
  • बड़हिया प्रखंड के पाली गांव के मछुआरा समुदाय ने डीएम के सामने अपनी मांगें रखीं।

लखीसराय | गोपाल प्रसाद आर्य

मछली पकड़कर अपने परिवार को पाल रहे पाली गांव के सैकड़ों महिला-पुरुष सोमवार को अपनी मांगों पर धरना करने सदर मुख्यालय पहुंचे।

इन ग्रामीणों की डीएम से नाराजगी का कारण इनकी जीविका पर असर डाल रहा “शिकार माही कार्ड” है, जो इनमें से अधिकांश लोगों को जारी नहीं हुआ है जबकि पड़ोसी गांव के कुछ लोगों को यह कार्ड दस साल पहले मिल गया।

जिसके चलते सिंधिया-सरौरा नदी में पड़ोसी गांव ऐजनीघाट के लोग आकर मछली पकड़ ले जाते हैं, जिससे पाली गांव के 300 परिवार की आमदनी पर असर पड़ रहा है। दोनों गांवों के लोगों के बीच लगातार झगड़े बने हुए हैं।

जिले के बड़हिया प्रखंड के पाली गांव के मछुआरा समुदाय का आरोप है कि सिंधिया-सरौरा नदी पर मछली मारने वाले कार्ड ऐसे लोगों को अवैध रूप से दे दिए गए जो पारंपरिक रूप से इस काम से जुड़े नहीं हैं।

मछुआरों का कहना है कि ऐसे 68 कार्डों को तुरंत निरस्त किया जाए व उन्हें कार्ड जारी हों। गौरतलब है कि इस मामले में ऐजनीघाट के लोगों का पक्ष सामने नहीं आया है।

सोमवार को धरने पर आए सैकड़ों ग्रामीणों ने जिलाधिकारी से शीघ्र कार्रवाई की मांग की।

धरना देने आए प्रतिनिधि रामौतार साहनी का कहना है कि –

“कई दशकों से पाली गांव के लोगों को सिंधिया सरौरा नदी में मछली मारने का पारंपरिक अधिकार मिला हुआ है। 2014 में तब के डीएम ने “शिकार माही कार्ड” को लेकर जो बंटवारा किया था, उसे बदला जाए। पाली गांव के लोगों को उनका हक मिले”

 

बोलते पन्ने.. एक कोशिश है क्लिष्ट सूचनाओं से जनहित की जानकारियां निकालकर हिन्दी के दर्शकों की आवाज बनने का। सरकारी कागजों के गुलाबी मौसम से लेकर जमीन की काली हकीकत की बात भी होगी ग्राउंड रिपोर्टिंग के जरिए। साथ ही, बोलते पन्ने जरिए बनेगा .. आपकी उन भावनाओं को आवाज देने का, जो अक्सर डायरी के पन्नों में दबी रह जाती हैं।

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जहानाबाद : गांव में हिंसक हो गए बंदर, बच्ची के हाथ से मांस नोंचा

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बच्ची के कोहनी पर गहरा घाव। (तस्वीर - टीम बोलते पन्ने)
बच्ची के कोहनी पर गहरा घाव। (तस्वीर - टीम बोलते पन्ने)
  • टेहटा में हिंसक बंदरों का झुंड तीन महीने में बड़ी संख्या में लोगों को काट चुका है।
  • बच्ची पर जानलेवा हमले के बाद ग्रामीणों ने बंदरों को जंगल में छुड़वाने की मांग की।

मखदुमपुर|

प्रखंड से पांच किलोमीटर दूर बसे टेहटा गांव में खेल रही एक पांच साल की बच्ची पर बंदरों ने हमला कर दिया और हाथ का मांस नोच लिया। बच्ची को गंभीर हाल में अस्पताल ले जाया गया।

अब तक शहरी क्षेत्रों में बंदरों के उत्पात की घटनाएं आती थीं पर बीते तीन साल में जहानाबाद के गांवों में भी बंदरों के हमले की घटनाएं बढ़ गई हैं।

स्थानीय समाजिक कार्यकर्ता के मुताबिक, बीते तीन महीने में सिर्फ टेहटा गांव में एक दर्जन से ज्यादा लोगों को बंदर के हमले ने गंभीर रूप से घायल किया है।

3 अक्तूबर को भी बंदरों के झुंड ने एक बच्ची पर हमला कर दिया, जिसकी जान पर बन आई। मौके पर मौजूद लोगों का कहना था कि अगर बच्ची को भगाने के लिए सब लोग इकट्ठे न हो गए होते तो शायद उसे बंदर मार ही डालते।

टेहटा के निवासी विश्राम साव ने बताया कि उनकी छोटी बेटी अब स्वस्थ लेकिन सहमी हुई है।

अधिवक्ता सह सामाजिक कार्यकर्ता मुकेश कुमार गौतम उर्फ मुकेश चंद्रवंशी का कहना है कि अभी तक अधिकांश हमले महिलाओं एवं छोटे बच्चों पर हुए हैं। बंदरों के हमले से कई महिलाएं जख्मी भी हुईं, कुछ के हाथ-पैर भी टूट गए क्योंकि वे बचने के लिए भागते हुए गिर गईं।

इलाके के बुजुर्ग भी बंदरों के चलते बाहर निकलते हुए डंडा हाथ में लेकर चलने लगे हैं।

स्थानीय लोगों ने जिला प्रशासन से मांग की है कि इन बंदरों को पकड़कर जंगली इलाके में छोड़ा जाए।

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SSC online पेपर की बदइंतजामी से परेशान Aspirant ने फांसी लगाई, पुलिस ने बचाया

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नवादा के अभिनंदन के वायरल वीडियो से परेशान मां।
  • अभ्यार्थी ने वायरल वीडियो में कहा- मैं मरने जा रहा हूं, मेरी लाश को SSC चेयरमैन के दफ्तर पहुंचा देना।
  • वीडियो वायरल होने के बाद लोकल पुलिस ने युवक को ढूंढ़कर बचाया, मां का रो-रोकर बुरा हाल
  • परीक्षा केंद्र में छोटी सी टेबल पर बेहद छोटे कंप्यूटर पर दिया पेपर, एकदम करीब बैठे थे सभी अभ्यार्थी

नवादा | सुनील कुमार
बिहार के नवादा जिले में SSC (कर्मचारी चयन आयोग) की परीक्षा देकर लौटे एक युवक ने सोशल मीडिया पर वीडियो अपलोड करके ऑनलाइन परीक्षा हॉल की बदहाल स्थिति बताते हुए आयोग पर आरोप लगाए, साथ ही वीडियो में कहा कि अब वह आत्महत्या करने जा रहा है। यह वीडियो स्थानीय मीडिया में वायरल होने के बाद लोकल पुलिस ने युवक को ढूंढ़ निकाला जो आत्महत्या करने जा रहा था। यह घटना सरकारी नौकरी के लिए लंबी तैयारी करने वाले अभ्यार्थियों (Aspirant) की आयोग को लेकर बढ़ती निराशा का एक और उदाहरण बन गई है।

नवादा के अभिनंदन के वायरल वीडियो से परेशान मां।

नवादा के अभिनंदन के वायरल वीडियो से परेशान मां।

कोलकाता में था SSC की परीक्षा देकर लौटा था

यह पूरा मामला नवादा के अकबरपुर ब्लॉक के गोसाईं बिगहा गांव का है। यहां के रहने वाले अभिनंदन साव ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो अपलोड किया, जिसका पता लगने पर स्थानीय पुलिस ने रविवार को उसे बचाकर हिरासत में ले लिया है। अपने बेटे के इस कदम से घबराई उसकी मां व अन्य परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल है और वे बेटे के ऐसा करने का जिम्मेदार सरकार को ठहरा रहे हैं। दरअसल 18 सितंबर को ही अभिनंदन कोलकाता के बेलगरिया स्थित IIITM से SSC की ऑनलाइन परीक्षा देकर लौटा था। पूरी तैयारी के बावजूद परीक्षा केंद्र पर बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी के चलते पेपर ठीक न होने से अभिनंदन काफी निराश हो गया और उसने फांसी लगाने से पहले वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर अपलोड किया। हालांकि उसे बचा लिया गया है।

टेक्निकल सपोर्ट और निरीक्षक पर सवाल उठाए

वायरल वीडियो में Aspirant अभिनंदन साव ने कहा कि जिस SSC के तहत सीबीआई, आईबी, नारकोटिक्स, विदेश मंत्रालय जैसे बड़े-बड़े विभागों की परीक्षाएं करवाई जा रही हैं, वहां की ऑनलाइन परीक्षा की हालत ऐसी है कि इससे बेहतर परीक्षाएं नगर पालिका की वेकेंसी के लिए करवायी जाती होंगी। उन्होंने अपने वीडियो में ऑनलाइन एग्जाम कराने के लिए मौजूद टेक्नीकल स्टाफ की स्किल पर सवाल उठाए और कहा कि वे ऐसे लोग थे कि जैसे पड़ोस के साइबर कैफे से बुला लिए गए हों। उन्होंने पर्यवेक्षकों (Invigilator) को लेकर कहा कि उनकी योग्यता प्राइमरी के पेपर करवाने भर की है।

10 इंच की बेंच और बहुत छोटे कंप्यूटर पर एग्जाम

वीडियो में अभिनंदन ने कहा कि Exam hall में पीने के पानी की कमी व गंदगी होना तो हम Aspirant बर्दाश्त कर लेते हैं पर ऑनलाइन परीक्षा देते हुए इतना छोटा कंप्यूटर हो कि कुछ पढ़ने में ही न आए तो हम कैसे ठीक से परीक्षा पास कर पाएंगे? उन्होंने कहा कि दस इंच की बेंच पर दो-दो अभ्यार्थियों को बैठाया गया था, जिनके बीच बहुत पतली प्लास्टिक की शीट से सैपरेशन था। बोले कि सब इतने करीब थे कि सांसों तक टकराकर वापस लौट रही थीं।

साथ ही दस इंच की बेंच पर ही कंप्यूटर रखा था जिसकी स्क्रीन भी दस इंच की ही थी, इतने छोटे लैपटॉप पर पढ़ने में समस्या आ रही थी। इस बेंच पर सिस्टम रखने के बाद जगह इतनी कम बची थी कि उस पर माउस, कंप्यूटर से जुड़े अन्य डिवाइस व रफ शीट को मैनेज करना कठिन हो रहा था। जबकि बार-बार परीक्षा केंद्र में यह चेतावनी दी जा रही थी कि कंप्यूटर से कनेक्टेड डिवाइस ठीक से रखने हैं ताकि वे हिल न जाएं। पूरे वीडियो में वे बार-बार कह रहे हैैं कि आप मेरी बातों को उन लोगों से वेरिफाई कर सकते हैं जो जिन्होंने वहां जाकर एग्जाम दिया।

 

मैंने इस साल बहुत मेहनत करके तैयारी की थी पर ऑनलाइन एग्जाम सेंटर की बदहाली ने पेपर खराब कर दिया। मैंने SSC के सभी ईमेल एड्रेस पर मेल करके शिकायत की पर किसी से जवाब नहीं आया जबकि सामान्यत: जवाब आ जाता है। मैं आत्महत्या इसलिए कर रहा हूं ताकि मेरी मौत इन बहरे लोगों को नींद से जगा पाए।’ – अभिनंदन, वायरल वीडियो में कहा।

SSC फेज 13 के रीएग्जाम को लेकर भी निराशा 
अभिनंदन ने अपने वीडियो में बारी-बारी से सभी समस्याएं सामने रखीं और कहा कि उन्हें आयोग पर इसलिए भी भरोसा नहीं है क्योंकि बीते अगस्त में करीब 60 हजार अभ्यार्थियों का phase 13 में जो रीएग्जाम कराया गया, उसमें भी टेक्निकल गड़बड़ियों पर कोई फीडबैक नहीं लिए गए। आयोग पर सवाल उठे तो उन्होंने कुछ के रीएग्जाम करवा दिए, जिसमें वे लोग भी शामिल थे..जिनके सेंटर पर इश्यूज नहीं आए थे। जबकि जिनके सेंटर पर गड़बड़ियां बहुत ज्यादा थीं, उन्हें रीएग्जाम का मौका नहीं दिया गया…जिसमें वे भी शामिल थे।

पुलिस की तत्परता से जान बची, काउंसलिंग की गई 

वीडियो के वायरल होने के बाद नेमदारगंज थाना पुलिस ने तुरंत एक्शन लिया और अभिनंदन को ढूंढ निकाला। पुलिस ने उसे हिरासत में लेकर काउंसलिंग शुरू की है, ताकि वह कोई गलत कदम न उठाए। अभिनंदन को जब पुलिस घर लेकर लौटी तो उसकी मां का रो-रोकर बुरा हाल था। इस घटना के बाद एक बार फिर सरकारी भर्ती प्रक्रियाओं की पारदर्शिता पर सवाल खड़े हो रहे हैं।

SSC ऑनलाइन परीक्षाओं पर कई बार उठ चुके हैं सवाल 

वर्ष/फेज
प्रमुख समस्याएं
प्रभावित अभ्यर्थी/घटनाएं
2020 (CHSL Exam)
सर्वर क्रैश, लॉगिन फेलियर, बायोमेट्रिक गड़बड़ी।
10 लाख+ अभ्यर्थी प्रभावित; कई सेंटर्स पर परीक्षा रद्द। दिल्ली में प्रोटेस्ट।
2022 (CGL Exam)
गलत सेंटर अलॉटमेंट (500+ किमी दूर), पावर कट, माउस मालफंक्शन।
5 लाख अभ्यर्थी; री-एग्जाम 20,000 को। कोचिंग सेंटर्स ने विरोध।
2024 (Phase 12)
सॉफ्टवेयर बग्स (डुप्लिकेट क्वेश्चन), छोटे कंप्यूटर्स, गंदगी।
4.5 करोड़ अभ्यर्थी; TCS वेंडर पर आरोप, री-टेस्ट 30,000 को।
2025 (Phase 13)
सर्वर क्रैश, बायोमेट्रिक फेल, वेंडर चेंज (TCS से Eduquity), रद्दीकरण।
59,500 को री-एग्जाम (29 अगस्त); #SSCMisManagement ट्रेंड।
सामान्य मुद्दे (2020-25)
अप्रशिक्षित पर्यवेक्षक, पानी/शौचालय की कमी, मिसट्रीटमेंट।
सालाना 4-5 करोड़ अभ्यर्थी; SSC ने 2025 में “टीथिंग प्रॉब्लम्स” स्वीकार किया।
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लड़कियों की अधूरी पढ़ाई: रामगढ़ चौक में सपनों का हाई-स्कूल अभी भी कोसों दूर

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सांकेतिक तस्वीर (साभार - इंटरनेट)
  • बिहार से लखीसराय के एक गांव में लोग एक हाईस्कूल बनवाने के लिए कई वर्षों से संघर्ष कर रहे
  • हाईस्कूल न होने के चलते लड़कियां आठवीं के बाद पढ़ाई छोड़ने को विवश, चुनावी साल में आस जगी
रामगढ़ चौक (लखीसराय) | गोपाल प्रसाद आर्य
लखीसराय जिले से मात्र दस किलोमीटर दूर बसे रामगढ़ चौक में एक सन्नाटा पसरा है—सन्नाटा उन सपनों का, जो आठवीं के बाद लड़कियों के लिए अचानक थम जाते हैं। इस छोटे से गांव में माझी और भूमिहार समाज की बेटियां पढ़ाई छोड़ने को मजबूर हैं, क्योंकि आगे की राह में न तो स्कूल है और न ही सुरक्षा का भरोसा। पिछले 15 सालों से ग्रामीण एक हाईस्कूल की आस लगाए बैठे हैं, जमीन दान करने को तैयार हैं, लेकिन बदलाव की किरण अभी भी दूर है। हाल ही में डीएम मिथिलेश कुमार मिश्रा का दौरा और विधानसभा चुनाव 2025 की नजदीकी ने ग्रामीणों में नई उम्मीद जगा दी है, पर क्या यह उम्मीद पूरी होगी?
रामगढ़ गांव (तस्वीर - गोपाल प्रसाद आर्य)

रामगढ़ गांव (तस्वीर – गोपाल प्रसाद आर्य)

माझी और भूमिहार की बेटियों का टूटता सपना
लखीसराय जिले में 12,000 बच्चे स्कूल ड्रॉपआउट हैं—ये वे नन्हीं आंखें हैं, जिन्होंने कक्षा एक से आठवीं तक की पढ़ाई के बाद या बीच में ही किताबें बंद कर दीं। रामगढ़ चौक की दस हजार की आबादी में आठवीं के बाद पढ़ाई छोड़ने वाली लड़कियों की तादाद सबसे ज्यादा है। यहां 2,000 माझी परिवार और 1,000 भूमिहार परिवार रहते हैं, जहां लड़कियां सामाजिक और आर्थिक कमजोरी के चलते स्कूल से दूर हो रही हैं। UDISE+ 2023-24 के मुताबिक, बिहार में सेकेंडरी स्तर पर लड़कियों का ड्रॉपआउट रेट 20.86% है, जो राष्ट्रीय औसत 12.5% से दोगुना है। लखीसराय में यह आंकड़ा 25% से अधिक है, खासकर SC/ST (माझी) और पिछड़े वर्गों (भूमिहार) में।
सांकेतिक तस्वीर (साभार - इंटरनेट)

सांकेतिक तस्वीर (साभार – इंटरनेट)

छह किलोमीटर दूर हाईस्कूल, घर बैठ रही लड़कियां
रामगढ़ चौक से सबसे नजदीकी हाईस्कूल पांच से सात किलोमीटर दूर हलसी प्रखंड के कैंदी में है, लेकिन यह सुविधा सिर्फ उन परिवारों के लिए है जिनके पास आने-जाने के पैसे हों। स्थानीय निवासी विपिन कुमार की आवाज में दर्द है, “यहां से तीन-तीन मंत्री निकले—ललन सिंह, विजय कुमार सिन्हा और दोबारा ललन सिंह सरकार में मंत्री बने—पर उनकी एक हाईस्कूल की आस तक पूरी नहीं हो रही। हम 15 साल से हाईस्कूल की मांग कर रहे हैं। माझी और पिछड़े समाज के पास खाने के पैसे नहीं, लड़कियों को बाहर कैसे भेजें? ऊपर से सुरक्षा का क्या भरोसा?”
UNICEF 2025 की रिपोर्ट कहती है कि बिहार में लड़कियों के ड्रॉपआउट का 33% घरेलू काम और 25% जल्दी विवाह से जुड़ा है। अपनी लड़कियों को डिग्री कॉलेज की पढ़ाई कराना तो उनके लिए कोसों दूर की बात है। अगर गांव में स्कूल बने, तो कम से कम दसवीं तक की राह आसान हो सकती है।
जिले में शिक्षा सुविधाओं की कमी
लखीसराय जिले में कुल 77 हाईस्कूल (UHS सहित) हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में इनकी कमी बनी हुई है। इंटरमीडिएट कॉलेजों (कक्षा 11-12) की संख्या लगभग 20-25 है (BSEB OFSS 2025 लिस्ट के अनुसार), जबकि डिग्री कॉलेज मात्र 9 हैं। रामगढ़ चौक जैसे दूरदराज इलाकों में यह कमी और गंभीर है, जहां प्राइमरी स्कूल 477 और मिडिल स्कूल 292 हैं, लेकिन हाईस्कूल की अनुपस्थिति लड़कियों को सबसे ज्यादा प्रभावित कर रही है। 
डीएम मिथिलेश मिश्रा से मिली उम्मीद की किरण
पिछले सप्ताह (11 सितंबर 2025) जिला अधिकारी मिथिलेश कुमार मिश्रा ने रामगढ़ चौक का दौरा किया, जो ग्रामीणों और पत्रकारों की लगातार शिकायतों के बाद संभव हुआ। इस दौरान उन्होंने स्थानीय लोगों की हाईस्कूल न होने से जुड़ी गहरी परेशानियों को गौर से सुना, जो पिछले 15 सालों से इस मांग को उठा रहे हैं। डीएम ने उत्क्रमित मध्य विद्यालय का भी दौरा किया, जहां आठवीं कक्षा तक की पढ़ाई होती है। ग्रामीणों को संबोधित करते हुए उन्होंने आश्वासन दिया कि उनकी मांग को गंभीरता से लिया जाएगा और जल्द ही इस पर सकारात्मक कदम उठाए जाएंगे।
रामगढ़ गांव में दौरा करने पहुंचे डीएम मिथिलेश मिश्र

रामगढ़ गांव में दौरा करने पहुंचे डीएम मिथिलेश मिश्र

इस दौरे से ग्रामीणों में उम्मीद की एक नई लहर दौड़ गई है, खासकर तब जब हाल ही में डीएम का एक वायरल वीडियो उनकी संवेदनशीलता को दर्शाता है। वीडियो में मिथिलेश मिश्रा अपने बच्चे को स्कूल छोड़ने के बाद लौट रहे थे, तभी रास्ते में एक स्कूल वैन खराब मिली। बिना देर किए उन्होंने अपनी सरकारी गाड़ी बच्चों को स्कूल तक पहुंचाने के लिए सौंप दी और खुद पैदल लौट आए। यह घटना सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बनी, और ग्रामीण इसे उनके प्रति बच्चों और शिक्षा के प्रति गहरी संवेदना का प्रतीक मान रहे हैं। उनका जीवन, जो गरीबी से निकलकर IAS तक की यात्रा का प्रतीक है, और स्कूली बच्चों के प्रति उनकी सजगता, ग्रामीणों को विश्वास दिलाती है कि यह डीएम उनके वर्षों के संघर्ष को साकार करने का माध्यम बन सकता है।
जिले में 12 हजार बच्चों ने बीच में पढ़ाई छोड़ी
‘सामग्र शिक्षा अभियान’ और ‘बेटी बचाओ- बेटी पढ़ाओ’ के तहत 2025-26 में बिहार में 500 नए हाईस्कूल खोलने की योजना है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में सुविधाओं की कमी बनी हुई है। विशेषज्ञों का कहना है कि स्थायी समाधान के लिए बजट और सुरक्षा व्यवस्था बढ़ानी होगी। अगर रामगढ़ चौक में हाईस्कूल बनता है, तो 2,000 से अधिक लड़कियां लाभान्वित हो सकती हैं, जो जिले के 12,000 ड्रॉपआउट आंकड़े को कम कर सकता है।एक उम्मीद का इंतजार रामगढ़ चौक की गलियों में आज भी बच्चों की हंसी गूंजती है, लेकिन लड़कियों के कदम स्कूल की ओर थम गए हैं। चुनावी हवा में उड़ती इस मांग का क्या होगा, यह तो वक्त बताएगा, लेकिन ग्रामीणों की आंखों में सपनों की चमक बरकरार है। क्या यह चमक हाईस्कूल की इमारत में तब्दील होगी, या फिर एक और वादा अधूरा रह जाएगा? 
(स्रोत: Lakhisarai.nic.in, Education Department Data; BSEB Intermediate College List 2025)
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