रिसर्च इंजन
लद्दाख : लंबे अनशन, पैदल मार्च से हिंसा तक कैसे पहुंचा पूर्ण राज्य की मांग का प्रदर्शन
VERY SAD EVENTS IN LEH
— Sonam Wangchuk (@Wangchuk66) September 24, 2025
My message of peaceful path failed today. I appeal to youth to please stop this nonsense. This only damages our cause.#LadakhAnshan pic.twitter.com/CzTNHoUkoC
- पूर्ण राज्य के दर्जे के लिए लद्दाख के आंदोलनकारियों की केंद्र सरकार से तीन साल में पांच दौर की वार्ता हुई।
- बीते 20 सितंबर को हुई पांचवीं दौर की वार्ता में फिर अगली तारीख मिलने से नाराज लोग चौथी बार अनशन पर बैठ गए।
- 35 दिन की भूख हड़ताल के 13वें दिन दो आंदोलनकारियों की तबीयत खराब होने के बाद युवा हिंसक हो गए।
- आंदोलन का नेतृत्व कर रहे सोनम वांगचुक ने हिंसा का खंडन किया, आंदोलन समाप्त करके शांति की अपील की।
भाजपा का दफ्तर और CRPF की गाड़ी जलाई
स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स से हवाले से बताया गया है कि 10 सितंबर से चल रही भूख हड़ताल (hunger strike) में मंगलवार को दो अनशनकर्ताओं की तबीयत खराब होने के बाद गुस्साए युवाओं ने लेह में BJP कार्यालय पर हमला और पुलिस वाहनों में आगजनी कर दी गई। यह भी बताया गया है कि प्रदर्शन के दौरान छात्रों ने पुलिस पर पत्थरबाजी की और CRPF की गाड़ी में आग लगा दी। उधर, प्रशासन ने लेह में बिना अनुमति रैली व प्रदर्शन पर बैन लगा दिया है। हालांकि कल प्रदर्शनकारियों ने कारगिल बंद का ऐलान किया है।
वांगचुक ने अनशन तोड़ा, युवाओं से शांति की अपील की
हिंसा के बाद सोनम वांगचुक ने इसे लद्दाख के लिए दुख का दिन बताया। उन्होंने युवाओं से हिंसा न करने व प्रशासन से गोलाबारी रोकने की अपील की और अपना अनशन तोड़ने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि हम चाहते हैं कि प्रशासन अपना दबाव छोड़ दें। युवा भी हिंसा रोक दें, हमारी यही अपील है। हम लद्दाख और देश में अस्थिरता नहीं आने देना चाहते।
“हम पांच साल से शांति के रास्ते पर चल रहे थे। अनशन किया, लेह से दिल्ली तक पैदल चलकर गए। आज हम शांति के पैगाम को असफल होते हुए देख रहे हैं। हिंसा, गोलीबारी और आगजनी हो रही है। मैं लद्दाख की युवा पीढ़ी से अपील करता हूं कि इसे रोक दें, ये लद्दाख के मुद्दे का समर्थन नहीं है। इससे स्थिति और गंभीर होती जाएगी।” – सोनम वांगचुक, सामाजिक कार्यकर्ता
विरोध प्रदर्शन साजिशन, जांच की जाएगी : राज्यपाल
लद्दाख के उपराज्यपाल कविंदर गुप्ता ने कहा कि लेह में चल रहे विरोध प्रदर्शनों में साजिश की गंध आ रही है। उनका कहना है कि कुछ लोग जानबूझकर लोगों को भड़का रहे हैं और इसकी तुलना बांग्लादेश और नेपाल में हुए विरोध प्रदर्शनों से की जा रही है। उन्होंने कहा कि अगर प्रशासन ने समय रहते विरोध को काबू में नहीं किया होता तो हालात और बिगड़ सकते थे। उन्होंने यह भी कहा कि विरोध में लद्दाख के बाहर के लोग शामिल हैं या नहीं, इसकी जांच की जाएगी। गुप्ता ने कहा- ‘आज जो लोग मारे गए उसकी ज़िम्मेदारी उन्हीं की है जिन्होंने भीड़ को भड़काया। ऐसी चीजें बर्दाश्त नहीं की जाएंगी। मेरी कोशिश है कि लद्दाख में शांति बनी रहे।’
केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख में पांच साल से राज्य का दर्जा पाने, छठी अनुसूची में शामिल होने व जमीन-नौकरी की चिंताओं के चलते आंदोलन चल रहे थे। बता दें कि लद्दाख को साल 2019 में केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अलग UT बनाया था, तब लोगों ने खुशी जतायी थी। लेकिन स्थानीय लोग केंद्र के सीधे नियंत्रण से असंतुष्ट हैं। लोगों की मुख्य मांगें –
- राज्य का दर्जा: UT से पूर्ण राज्य बनाने की मांग, ताकि स्थानीय विधानसभा और स्वायत्तता हो।
- छठी अनुसूची: ट्राइबल क्षेत्रों के लिए संरक्षण, जो जमीन, संस्कृति, और पर्यावरण की रक्षा करेगी। LAB का कहना है कि केंद्र ने 2020 में वादा किया था, लेकिन पूरा नहीं किया।
- जमीन और नौकरी: “औद्योगिक लॉबी” (जैसे माइनिंग कंपनियां) से जमीन हड़पने का डर, और स्थानीय युवाओं के लिए 100% नौकरियां।इसको लेकर कार्यकर्ता सोनम वांगचुक (Sonam Wangchuk) ने कहा था कि “निचले स्तर के नौकरशाही को इंडस्ट्रील पावर से प्रभावित होने का डर है।”
सरकार से पांच दौर की बात हुई पर बेनतीजा रही
लगातार हो रहे आंदोलन के चलते केंद्र सरकार ने आंदोलनकारियों की मांगों को लेकर एक उच्च शक्तियों वाली कमेटी ( High-Powered Committee) गठित की हालांकि आंदोलनकारी दल LAB-KDA ने इसे “फॉर्मेलिटी” बताया। कुल 5 दौर की बातचीत हुई, लेकिन हर बार प्रदर्शन दोबारा शुरू हुए। लद्दाख का आंदोलन राज्य दर्जा और ट्राइबल संरक्षण की मांग पर केंद्रित है, इन मांगों को लेकर अगली बैठक 6 अक्तूबर को होनी है, हालांकि हिंसा के बाद सोनम वांगचुक ने इसे पहले करने की मांग की है।
ढाई साल से बैठकें जारी, टेबिल से समझिए-
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तारीख
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बातचीत का विवरण
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परिणाम और प्रदर्शन का दोबारा शुरू होना
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जनवरी 2023
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पहली HPC बैठक, LAB-KDA के साथ। Sixth Schedule पर चर्चा।
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कोई ठोस फैसला नहीं; मार्च 2023 में LAB ने “परिणामहीन” बताकर भूख हड़ताल शुरू की।
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नवंबर 2023
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HPC का पुनर्गठन, नित्यानंद राय के नेतृत्व में। राज्य दर्जा और जमीन सुरक्षा पर वादा।
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मार्च 2024 में बातचीत विफल; वांगचुक ने लेह से दिल्ली मार्च शुरू किया।
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मई 2024
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तीसरी बैठक, domicile policy का वादा।
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जून 2024 में LAB ने असंतोष जताया; भूख हड़ताल की धमकी।
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अगस्त 2024
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चौथी बैठक, Sixth Schedule पर “जल्द फैसला” का आश्वासन।
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सितंबर 2024 में LAB ने “बेवकूफी” बताया; Wangchuk ने 35-दिवसीय हड़ताल की घोषणा।
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20 सितंबर 2025
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पांचवीं बैठक का निमंत्रण (6 अक्तूबर के लिए)।
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LAB ने बैठक की नई तारीख को “डिक्टेशन” (थोपा हुआ) बताया; 10 सितंबर से 15 लोगों की भूख हड़ताल शुरू, 23 सितंबर को 2 अस्पताल में।
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तारीख
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घटना
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विवरण
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मार्च 2024
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बातचीत विफल
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HPC की चौथी बैठक फेल; Wangchuk ने Leh-Delhi मार्च शुरू किया।
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जून 2024
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भूख हड़ताल की धमकी
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LAB ने असंतोष जताया; केंद्र ने domicile policy का वादा किया।
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10 सितंबर 2025
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35-दिवसीय भूख हड़ताल
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LAB-KDA ने 15 लोगों के साथ हड़ताल शुरू; Wangchuk ने नेतृत्व किया। मांग: 6 अक्टूबर की बैठक को आगे बढ़ाना।
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20 सितंबर 2025
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केंद्र का निमंत्रण
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MHA ने 6 अक्टूबर की बैठक का न्योता दिया, लेकिन LAB ने अस्वीकार किया।
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23 सितंबर 2025
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हड़ताल में गिरावट
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2 प्रदर्शनकारी अस्पताल में; LAB युवा विंग ने 24 सितंबर को शटडाउन का आह्वान।
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24 सितंबर 2025
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हिंसा भड़की
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Leh में BJP कार्यालय पर हमला, पुलिस वाहनों में आगजनी; 4 मौतें, 60 घायल। Wangchuk ने हड़ताल समाप्त की। कर्फ्यू लगाया गया।
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चुनावी डायरी
बिहार में किसके वोट कहां शिफ्ट हुए? महिला, मुस्लिम, SC–EBC के वोटिंग पैटर्न ने कैसे बदल दिया नतीजा?
- महागठबंधन का वोट शेयर प्रभावित नहीं हुआ पर अति पिछड़ा, महिला व युवा वोटर उन पर विश्वास नहीं दिखा सके।
नई दिल्ली| महक अरोड़ा
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों ने साफ कर दिया है कि इस बार की लड़ाई सिर्फ सीटों की नहीं थी—बल्कि वोटिंग पैटर्न, नए सामाजिक समीकरण, और वोट के सूक्ष्म बदलावों की थी।
कई इलाकों में वोट शेयर में बड़ा बदलाव नहीं दिखा, लेकिन सीटें बहुत ज्यादा पलट गईं। यही वजह रही कि महागठबंधन (MGB) का वोट शेयर सिर्फ 1.5% गिरा, लेकिन उसकी सीटें 110 से घटकर 35 पर आ गईं।
दूसरी ओर, NDA की रणनीति ने महिलाओं, SC-EBC और Seemanchal के वोट पैटर्न में बड़ा सेंध लगाई, जो इस प्रचंड बहुमत (massive mandate) की असली वजह माना जा रहा है।
महिला वोटर बनीं Kingmaker, NDA का वोट शेयर बढ़ाया
बिहार में इस बार महिलाओं ने 8.8% ज्यादा रिकॉर्ड मतदान किया:
- महिला वोटिंग: 71.78%
- पुरुष वोटिंग: 62.98%
(स्रोत- चुनाव आयोग)
महिला वोटर वर्ग के बढ़े हुए मतदान का सीधा फायदा NDA विशेषकर जदयू को हुआ, जिसने पिछली बार 43 सीटें जीती और इस बार 85 सीटों से दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी।
वोट शेयर का गणित — MGB का वोट कम नहीं हुआ, पर सीटें ढह गईं
- NDA Vote share: 46.5%
MGB Vote share: 37.6%
2020 की तुलना में: 9.26% ज्यादा वोट NDA को पड़ा
- NDA के वोट share में बड़ी बढ़त – 37.26%
- MGB का वोट share सिर्फ 1.5% गिरा – 38.75%
- पर महागठबंधन की सीटें 110 → 35 हो गईं
(स्रोत- चुनाव आयोग)
यानी इस चुनाव में महागठबंधन का वोट प्रतिशत लगभग बराबर रहा पर वे वोट शेयर को सीटों में नहीं बदल सके।
यह चुनाव vote consolidation + social engineering + seat-level micro strategy का चुनाव था।
SC वोटर ने NDA का रुख किया — 40 SC/ST सीटों में 34 NDA के खाते में
बिहार की 40 आरक्षित सीटों (38 SC + 2 ST) में NDA ने लगभग क्लीन स्वीप किया:
- NDA: 34 सीट
- MGB: 4 सीट (2020 में NDA = 21 सीट)
(स्रोत- द इंडियन एक्सप्रेस)
सबसे मजबूत प्रदर्शन JDU ने किया—16 में से 13 SC सीटें जीतीं। BJP ने 12 में से सभी 12 सीटें जीत लीं।
वहीं महागठबंधन के लिए यह सबसे खराब प्रदर्शन रहा — RJD 20 SC सीटों पर लड़कर भी सिर्फ 4 ला सकी।
RJD का वोट शेयर SC सीटों में सबसे ज्यादा (21.75%) रहा, लेकिन सीटें नहीं मिल सकीं।
वोट share और seat conversion में यह सबसे बड़ा असंतुलन रहा।
मुस्लिम वोट MGB और AIMIM के चलते बंटा, NDA को फायदा हुआ
सीमांचल – NDA ने 24 में से 14 सीटें जीत लीं
सीमांचल (Purnia, Araria, Katihar, Kishanganj) की 24 सीटों पर इस बार सबसे दिलचस्प तस्वीर दिखी।
मुस्लिम वोट महागठबंधन और AIMIM में बंट गए, और इसका सीधा फायदा NDA को मिला।
- NDA: 14 सीट
- JDU: 5
- AIMIM: 5
- INC: 4
- RJD: सिर्फ 1
- LJP(RV): 1
सबसे कम मुस्लिम विधायक विधानसभा पहुंचेंगे – सूबे में 17.7% मुस्लिम आबादी के बावजूद इस बार सिर्फ 10 मुस्लिम विधायक विधानसभा पहुंचे — 1990 के बाद सबसे कम।
- यह NDA की सामाजिक इंजीनियरिंग, EBC–Hindu consolidation और मुस्लिम वोटों के बंटवारे का संयुक्त परिणाम है।
- EBC–अति पिछड़ा वोट NDA के साथ गया — MGB की सबसे बड़ी हार की वजह
- अतिपिछड़ा वर्ग (EBC) बिहार में सबसे बड़ा वोट बैंक है। इस बार ये पूरा वोट NDA के पक्ष में चला गया।
- JDU की परंपरागत पकड़ + BJP का Welfare Model मिलकर EBC वर्ग में मजबूत प्रभाव डाल गए।
- यही वोट EBC बेल्ट (मिथिला, मगध, कोसी) में NDA को करारी बढ़त देने का कारण बना।
रिकॉर्ड संख्या में निर्दलीय लड़े पर नहीं जीत सके
Independent उम्मीदवारों की रिकॉर्ड संख्या — 925 में से 915 की जमानत जब्त
इस चुनाव में:
- कुल उम्मीदवार: 2616
- Independent: 925
- जमानत ज़ब्त: 915 (98.9%)
ECI ने ज़ब्त हुई जमानतों से 2.12 करोड़ रुपये कमाए
क्यों इतने Independent मैदान में उतरे?
1. पार्टियों ने पुराने नेताओं के टिकट काटे
2. कई स्थानीय नेताओं ने बगावत कर दी
3. कई सीटों पर बिखराव की वजह बने
VIP, CPI, AIMIM, RJD, INC – हर पार्टी के बड़ी संख्या में उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई।
दुनिया गोल
युद्ध के चलते बर्बाद हो चुके गज़ा में हमास किस तरह शवों को सुरक्षित रख रहा?
- 11 साल बाद हमास ने इज़रायल को लौटाया एक लेफ्टिनेंट का शव।
- हाल के शांति समझौते के तहत हमास शव व अवशेष लौटा रहा है।
नई दिल्ली | महक अरोड़ा
गज़ा युद्ध (2014) में मारे गए इज़रायली सैनिक लेफ्टिनेंट हदार गोल्डिन का शव 11 साल बाद आखिरकार इज़रायल को सौंप दिया गया। हमास ने यह शरीर दक्षिणी गज़ा में रेड क्रॉस को दिया, जिसके बाद इसे इज़रायल डिफेंस फोर्स (IDF) के हवाले कर दिया गया।
गोल्डिन की मौत 1 अगस्त 2014 को हुई थी—उसी दिन जब हमास ने उनके यूनिट पर हमला कर उन्हें अगवा कर लिया था। बाद में उनकी हत्या कर दी गई। वे 23 वर्ष के थे और ‘ऑपरेशन प्रोटेक्टिव एज’ के दौरान मारे गए 68 इज़रायली सैनिकों में से एक थे।
IDF अबू कबीर फॉरेंसिक इंस्टीट्यूट में DNA परीक्षण के बाद पहचान की औपचारिक पुष्टि करेगा, जिसके बाद उन्हें राष्ट्रीय सम्मान दिया जाएगा।
अब सबसे बड़ा सवाल—हमास ने 11 साल तक शव कैसे सुरक्षित रखा?
क्या गज़ा में आधुनिक शव संरक्षण की सुविधा है?
नहीं।
गज़ा पट्टी में:
- कोई उन्नत कोल्ड-स्टोरेज सुविधा नहीं
- कोई दीर्घकालीन पॉस्टमॉर्टम प्रिज़र्वेशन सिस्टम नहीं
- लगातार बमबारी से मेडिकल सिस्टम ध्वस्त
यहां तक कि हालिया युद्ध में शव रखने के लिए आइस-क्रिम ट्रक इस्तेमाल किए गए—क्योंकि अस्पतालों की मोर्चरी सिर्फ 8–10 शव ही रख सकती है।
तो 11 साल पुरानी बॉडी कैसे बची?
विशेषज्ञों के अनुसार इसके चार संभावित कारण हो सकते हैं:
हमास विशेष “सीलबंद भूमिगत चैंबर” का उपयोग करता है
हमास की सुरंगों में कई बार सीक्रेट स्टोरेज रूम मिले हैं, जिनमें:
- बेहद कम तापमान
- गहराई के कारण प्राकृतिक ठंडक
- हवा बंद वातावरण
- धातु के एयरटाइट कंटेनर
ऐसी जगहें शव को लंबे समय तक सड़ने नहीं देतीं।
1. ‘वैक्यूम पैकिंग’- गज़ा में हथियारों की तरह शव भी पैक किए जाते हैं
कई रिपोर्ट्स में कहा गया है कि हमास:
- शवों को प्लास्टिक व रबर-सील पैकिंग में बंद करता है
- अंदर ऑक्सीजन बिल्कुल नहीं पहुंचती
- ऑक्सीजन न मिलने पर शरीर तेजी से नहीं सड़ता
ये तकनीक हथियारों को स्टोर करने में भी उपयोग होती है।
2.शरीर पूरी तरह डिकम्पोज नहीं हुआ—सिर्फ “अस्थियाँ” संरक्षित की गईं
इज़रायल कई मामलों में “रेट्रीवल” के समय सिर्फ:
- हड्डियाँ
- कपड़ों के अवशेष
- डीएनए के अंश पाता है।
संभव है कि गोल्डिन का शव भी वर्षों पहले डिकम्पोज हो चुका था और हमास ने केवल अस्थियाँ संरक्षित रखी हों।
3.गहरे भूमिगत “पॉकेट्स” में प्राकृतिक ममीकरण
गज़ा की कुछ सुरंगों में:
- हवा स्थिर
- तापमान नियंत्रित
- नमी बेहद कम
ऐसी जगहों में शव “नेचुरल ममी” जैसा रूप ले लेते हैं और दशक भर टिके रहते हैं।
4. गज़ा की सच्चाई—शव रखने के लिए आइस-क्रिम ट्रक!
Reuters की रिपोर्ट में बताया गया:
अस्पताल मोर्चरी सिर्फ 10 शव रख सकती है
- ट्रकों के अंदर बच्चों की आइस-क्रिम के पोस्टर लगे होते हैं
- अंदर सफ़ेद कपड़ों में लाशें भरी होती हैं
- कई जगह 100 शवों की मास ग्रेव तैयार हुई
5. 20–30 शव टेंट में रखे जा रहे हैं
गज़ा के डॉक्टर यासिर अली ने कहा, “अगर युद्ध चलता रहा, तो दफनाने के लिए भी जगह नहीं बचेगी।”
इज़रायल में क्या हुआ? शव मिलने पर भावनात्मक लहर
- गोल्डिन की तस्वीर 11 साल से नेतन्याहू के दफ़्तर में लगी थी
- सैन्य कब्रिस्तान में इतना भारी जनसैलाब उमड़ा कि कई इलाकों में जाम लग गया
- सेना ने इसे “राष्ट्रीय सम्मान का क्षण” बताया
- अंतिम संस्कार देखने हजारों लोग पहुंचे
नेतन्याहू ने सैनिक से शव वापसी को बनाया था राजनीतिक मुद्दा
इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा, “राज्य की स्थापना से हमारी परंपरा है—युद्ध में शहीद हुए सैनिकों को हर हाल में घर लाया जाता है। हदार गोल्डिन की स्मृति सदैव हमारे बीच रहेगी।”
उन्होंने बताया कि 255 बंधकों में से अब तक 250 वापस लाए जा चुके हैं। गोल्डिन उन आखिरी पाँच शवों में से एक थे, जो गज़ा में फंसे थे।
परिवार का 11 साल लंबा इंतजार
गोल्डिन के परिवार ने वर्षों तक अभियान चलाया था। उनका कहना था कि, “हमारे बेटे को वापस लाना, इज़रायल की सैनिक परंपरा का मूल हिस्सा है।” इज़रायली सेना प्रमुख ने भी परिवार को “तीव्र प्रयास” का भरोसा दिया था।
रिसर्च इंजन
SIR के खिलाफ एकजुट हो रहे दक्षिण के राज्य, क्या असर होगा?
- 11 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट में SIR के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई होगी।
“SIR तमिलनाडु के 7 करोड़ वोटरों के अधिकारों को खतरे में डाल रहा है। यह भाजपा की साजिश है, जो वोट बैंक को प्रभावित करने के लिए डिजाइन की गई है।”
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रिपोर्टर की डायरी2 months agoबिहार : मूर्ति विसर्जन के दौरान पुलिस का लाठी चार्ज, भगदड़ से युवक तालाब में डूबा, नवादा में तनाव
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