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लद्दाख : लंबे अनशन, पैदल मार्च से हिंसा तक कैसे पहुंचा पूर्ण राज्य की मांग का प्रदर्शन

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  • पूर्ण राज्य के दर्जे के लिए लद्दाख के आंदोलनकारियों की केंद्र सरकार से तीन साल में पांच दौर की वार्ता हुई।
  • बीते 20 सितंबर को हुई पांचवीं दौर की वार्ता में फिर अगली तारीख मिलने से नाराज लोग चौथी बार अनशन पर बैठ गए।
  • 35 दिन की भूख हड़ताल के 13वें दिन दो आंदोलनकारियों की तबीयत खराब होने के बाद युवा हिंसक हो गए।
  • आंदोलन का नेतृत्व कर रहे सोनम वांगचुक ने हिंसा का खंडन किया, आंदोलन समाप्त करके शांति की अपील की।
नई दिल्ली |
लद्दाख में राज्य का दर्जा (statehood) और संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर चला आ रहा आंदोलन बुधवार (24 सितंबर) को हिंसक हो गई। यह आंदोलन Leh Apex Body (LAB) और Kargil Democratic Alliance (KDA) के नेतृत्व में पांच साल से शांतिपूर्वक जारी था, जो एक दिन पहले हिंसक हो गया। गुस्साए छात्रों की पुलिस और सुरक्षाबलों से झड़प हो गई, जिसमें 70 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। आंदोलनकारी सोशल एक्टिविस्ट सोनम वांगचुक के मुताबिक, आंदोलन में मौतें हुई हैं पर प्रशासन ने इसकी पुष्ट नहीं की है। इलाके में कर्फ्यू लगा दिया गया है, केंद्रशासित प्रदेश की सरकार ने इसे ‘साजिश’ कहा है।

भाजपा का दफ्तर और CRPF की गाड़ी जलाई  

स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स से हवाले से बताया गया है कि 10 सितंबर से चल रही भूख हड़ताल (hunger strike) में मंगलवार को दो अनशनकर्ताओं की तबीयत खराब होने के बाद गुस्साए युवाओं ने लेह में BJP कार्यालय पर हमला और पुलिस वाहनों में आगजनी कर दी गई। यह भी बताया गया है कि प्रदर्शन के दौरान छात्रों ने पुलिस पर पत्थरबाजी की और CRPF की गाड़ी में आग लगा दी। उधर, प्रशासन ने लेह में बिना अनुमति रैली व प्रदर्शन पर बैन लगा दिया है। हालांकि कल प्रदर्शनकारियों ने कारगिल बंद का ऐलान किया है।

वांगचुक ने अनशन तोड़ा, युवाओं से शांति की अपील की

हिंसा के बाद सोनम वांगचुक ने इसे लद्दाख के लिए दुख का दिन बताया। उन्होंने युवाओं से हिंसा न करने व प्रशासन से गोलाबारी रोकने की अपील की और अपना अनशन तोड़ने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि हम चाहते हैं कि प्रशासन अपना दबाव छोड़ दें। युवा भी हिंसा रोक दें, हमारी यही अपील है। हम लद्दाख और देश में अस्थिरता नहीं आने देना चाहते।

“हम पांच साल से शांति के रास्ते पर चल रहे थे। अनशन किया, लेह से दिल्ली तक पैदल चलकर गए। आज हम शांति के पैगाम को असफल होते हुए देख रहे हैं। हिंसा, गोलीबारी और आगजनी हो रही है। मैं लद्दाख की युवा पीढ़ी से अपील करता हूं कि इसे रोक दें, ये लद्दाख के मुद्दे का समर्थन नहीं है। इससे स्थिति और गंभीर होती जाएगी।” – सोनम वांगचुक, सामाजिक कार्यकर्ता

विरोध प्रदर्शन साजिशन, जांच की जाएगी : राज्यपाल 

लद्दाख के उपराज्यपाल कविंदर गुप्ता ने कहा कि लेह में चल रहे विरोध प्रदर्शनों में साजिश की गंध आ रही है। उनका कहना है कि कुछ लोग जानबूझकर लोगों को भड़का रहे हैं और इसकी तुलना बांग्लादेश और नेपाल में हुए विरोध प्रदर्शनों से की जा रही है। उन्होंने कहा कि अगर प्रशासन ने समय रहते विरोध को काबू में नहीं किया होता तो हालात और बिगड़ सकते थे। उन्होंने यह भी कहा कि विरोध में लद्दाख के बाहर के लोग शामिल हैं या नहीं, इसकी जांच की जाएगी। गुप्ता ने कहा- ‘आज जो लोग मारे गए उसकी ज़िम्मेदारी उन्हीं की है जिन्होंने भीड़ को भड़काया। ऐसी चीजें बर्दाश्त नहीं की जाएंगी। मेरी कोशिश है कि लद्दाख में शांति बनी रहे।’

राज्य का दर्जा पाने के लिए चल रहा था आंदोलन

केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख में पांच साल से राज्य का दर्जा पाने, छठी अनुसूची में शामिल होने व जमीन-नौकरी की चिंताओं के चलते आंदोलन चल रहे थे। बता दें कि लद्दाख को साल 2019 में केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अलग UT बनाया था, तब लोगों ने खुशी जतायी थी। लेकिन स्थानीय लोग केंद्र के सीधे नियंत्रण से असंतुष्ट हैं। लोगों की मुख्य मांगें –  

  • राज्य का दर्जा: UT से पूर्ण राज्य बनाने की मांग, ताकि स्थानीय विधानसभा और स्वायत्तता हो।
  • छठी अनुसूची: ट्राइबल क्षेत्रों के लिए संरक्षण, जो जमीन, संस्कृति, और पर्यावरण की रक्षा करेगी। LAB का कहना है कि केंद्र ने 2020 में वादा किया था, लेकिन पूरा नहीं किया।
  • जमीन और नौकरी: “औद्योगिक लॉबी” (जैसे माइनिंग कंपनियां) से जमीन हड़पने का डर, और स्थानीय युवाओं के लिए 100% नौकरियां।इसको लेकर कार्यकर्ता सोनम वांगचुक (Sonam Wangchuk) ने कहा था कि “निचले स्तर के नौकरशाही को इंडस्ट्रील पावर से प्रभावित होने का डर है।”

सरकार से पांच दौर की बात हुई पर बेनतीजा रही 

लगातार हो रहे आंदोलन के चलते केंद्र सरकार ने आंदोलनकारियों की मांगों को लेकर एक उच्च शक्तियों वाली कमेटी ( High-Powered Committee) गठित की हालांकि आंदोलनकारी दल LAB-KDA ने इसे “फॉर्मेलिटी” बताया। कुल 5 दौर की बातचीत हुई, लेकिन हर बार प्रदर्शन दोबारा शुरू हुए। लद्दाख का आंदोलन राज्य दर्जा और ट्राइबल संरक्षण की मांग पर केंद्रित है, इन मांगों को लेकर अगली बैठक 6 अक्तूबर को होनी है, हालांकि हिंसा के बाद सोनम वांगचुक ने इसे पहले करने की मांग की है।

ढाई साल से बैठकें जारी, टेबिल से समझिए-

तारीख
बातचीत का विवरण
परिणाम और प्रदर्शन का दोबारा शुरू होना
जनवरी 2023
पहली HPC बैठक, LAB-KDA के साथ। Sixth Schedule पर चर्चा।
कोई ठोस फैसला नहीं; मार्च 2023 में LAB ने “परिणामहीन” बताकर भूख हड़ताल शुरू की।
नवंबर 2023
HPC का पुनर्गठन, नित्यानंद राय के नेतृत्व में। राज्य दर्जा और जमीन सुरक्षा पर वादा।
मार्च 2024 में बातचीत विफल; वांगचुक ने लेह से दिल्ली मार्च शुरू किया।
मई 2024
तीसरी बैठक, domicile policy का वादा।
जून 2024 में LAB ने असंतोष जताया; भूख हड़ताल की धमकी।
अगस्त 2024
चौथी बैठक, Sixth Schedule पर “जल्द फैसला” का आश्वासन।
सितंबर 2024 में LAB ने “बेवकूफी” बताया; Wangchuk ने 35-दिवसीय हड़ताल की घोषणा।
20 सितंबर 2025
पांचवीं बैठक का निमंत्रण (6 अक्तूबर के लिए)।
LAB ने बैठक की नई तारीख को “डिक्टेशन” (थोपा हुआ) बताया; 10 सितंबर से 15 लोगों की भूख हड़ताल शुरू, 23 सितंबर को 2 अस्पताल में।
भूख हड़ताल से हिंसा तक की टाइमलाइन – 
तारीख
घटना
विवरण
मार्च 2024
बातचीत विफल
HPC की चौथी बैठक फेल; Wangchuk ने Leh-Delhi मार्च शुरू किया।
जून 2024
भूख हड़ताल की धमकी
LAB ने असंतोष जताया; केंद्र ने domicile policy का वादा किया।
10 सितंबर 2025
35-दिवसीय भूख हड़ताल
LAB-KDA ने 15 लोगों के साथ हड़ताल शुरू; Wangchuk ने नेतृत्व किया। मांग: 6 अक्टूबर की बैठक को आगे बढ़ाना।
20 सितंबर 2025
केंद्र का निमंत्रण
MHA ने 6 अक्टूबर की बैठक का न्योता दिया, लेकिन LAB ने अस्वीकार किया।
23 सितंबर 2025
हड़ताल में गिरावट
2 प्रदर्शनकारी अस्पताल में; LAB युवा विंग ने 24 सितंबर को शटडाउन का आह्वान।
24 सितंबर 2025
हिंसा भड़की
Leh में BJP कार्यालय पर हमला, पुलिस वाहनों में आगजनी; 4 मौतें, 60 घायल। Wangchuk ने हड़ताल समाप्त की। कर्फ्यू लगाया गया।

बोलते पन्ने.. एक कोशिश है क्लिष्ट सूचनाओं से जनहित की जानकारियां निकालकर हिन्दी के दर्शकों की आवाज बनने का। सरकारी कागजों के गुलाबी मौसम से लेकर जमीन की काली हकीकत की बात भी होगी ग्राउंड रिपोर्टिंग के जरिए। साथ ही, बोलते पन्ने जरिए बनेगा .. आपकी उन भावनाओं को आवाज देने का, जो अक्सर डायरी के पन्नों में दबी रह जाती हैं।

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तमिलनाडु : करूर भगदड़ में 41 मौतों के बाद विजय पर FIR क्यों नहीं?

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30 सितंबर को TVK प्रमुख विजय ने एक वीडियो संदेश जारी किया। (साभार - @TVKVijayHQ)
30 सितंबर को TVK प्रमुख विजय ने एक वीडियो संदेश जारी किया। (साभार - @TVKVijayHQ)
  • मद्रास हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को SIT की जांच IG से कराने का आदेश दिया।
  • TVK के नेताओं को भगदड़ के बाद मदद की जगह भाग जाने के लिए लताड़ा।
  • 27 सितंबर तमिल सिनेमा के सुपरस्टार विजय ने अपनी पार्टी TVK की रैली बुलाई थी।
नई दिल्ली |
तमिल सिनेमा के सुपरस्टार ऐक्टर विजय राजनीति में आने के बाद 27 सितंबर को पहली बड़ी रैली कर रहे थे, अनुमति सिर्फ दस हजार लोगों की ली और भीड़ पांच गुना बढ़ गई।
ओवर क्राउड हो जाने के बाद भी विजय ने अपने प्रशंसकों को कथित तौर पर सात घंटे इंतजार करवाया, फिर भीड़ विजय की झलक पाने के लिए प्रशंसक उनकी गाड़ी की ओर दौड़े। ..और फिर 41 लोगों की मौत और 100 से अधिक लोग घायल हो गए।
मद्रास हाईकोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि हादसे के बाद TVK के नेता मदद करने के बजाय भाग गए जो नैतिक रूप से गलत है। साथ ही, हाईकोर्ट ने IG के नेतृत्व में एक SIT बनाने का आदेश दिया है। 
इस भगदड़ पर अब तक सधा हुए कदम उठा रही तमिलनाडु की DMK सरकार को अब क्या अभिनेता से नेता बने विजय के खिलाफ FIR दर्ज करनी पड़ेगी?
घटना के छह दिन बीत जाने के बाद भी एक्टर विजय की जिम्मेदारी क्यों तय नहीं की गई, इस मामले का अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से क्या कनेक्शन है, आइए जानते हैं-    
एक्टर विजय की रैली के दौरान लोगों का जमावड़ा (फोटो क्रेडिट- @deepanpolitics)

एक्टर विजय की रैली के दौरान लोगों का जमावड़ा (फोटो क्रेडिट- @deepanpolitics)

करूर भगदड़ : 7 घंटे से हाईवे पर हो रहा था इंतजार  
करुर-इरोड हाईवे पर ‘तमिलागा वेट्री कझगम’ (TVK) नामक राजनीतिक पार्टी के प्रमुख विजय ने रैली बुलाई थी। मद्रास हाईकोर्ट में याचिका डालने वाले का आरोप है कि रैली में दोपहर 12 बजे तक विजय के आने का संदेश फैलाया गया था, पर वे शाम सात बजे गए और कार में ही बैठे रहे। जिससे लोग बेचैन हो गए और उनकी ओर दौड़े, जिससे भगदड़ मच गई।
विजय ने वीडियो संदेश में स्टालिन पर निशाना साधा
बीते 30 सितंबर को एक वीडियो संदेश जारी करके विजय ने कहा कि “भगदड़ के लिए स्टालिन सरकार जिम्मेदार है, साथ ही बोले कि अगर आपको बदला लेना है तो मुझे गिरफ्तार कर सकते हो।” हालांकि अपने खिलाफ लगे आरोपों पर वे वीडियो में कुछ नहीं बोले।
बदा दें कि भगदड़ के बाद विजय ने जान गंवाने वालों को 20-20 लाख रुपये व घायलों को 2-2 लाख रुपये का मुआवजा देने की घोषणा की थी। 
300 से ज्यादा बुद्धिजीवियों ने ऐक्शन की मांग की
दो अक्तूबर को राज्य के 300 बुद्धिजीवियों ने ऐक्शन की मांग की है। राज्य के लेखक, कवि, बुद्धिजीवी, कार्यकर्ता और पत्रकारों ने एक संयुक्त बयान में कहा कि विजय की लापरवाही और सत्ता की चाह ने इस हादसे को जन्म दिया, उनके ऊपर कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए।
TVK के छोटे नेताओं पर FIR, मुखिया को छोड़ा  
पुलिस ने TVK नेताओं पर नियमों की अवहेलना का आरोप लगाकर पार्टी के सेक्रेटरी व डिप्टी सेक्रेटरी के खिलाफ FIR दर्ज की, लेकिन इसमें विजय का नाम शामिल नहीं किया गया। 
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री MK स्टालिन (फाइल फोटो, साभार इंटरनेट)

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री MK स्टालिन (फाइल फोटो, साभार इंटरनेट)

मद्रास हाईकोर्ट में याचिका : ‘विजय को स्टालिन बचा रहे’

द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, मद्रास हाई कोर्ट में एक याचिकाकर्ता ने शिकायत की कि विजय का नाम FIR में न होना राजनीतिक कारणों से है। याचिकाकर्ता का कहना है कि “तमिलनाडु सरकार (DMK) विजय को शील्ड कर रही है, क्योंकि उनकी बढ़ती लोकप्रियता राजनीतिक संतुलन को प्रभावित कर सकती है।” याचिकाकर्ता का कहना है कि DMK विजय पर कार्रवाई से बच रही है, ताकि उनकी पार्टी को 2026 में गठबंधन का विकल्प खुला रखा जा सके।

सरकार का पक्ष : पहले जांच रिपोर्ट आने दो

मुख्यमंत्री एमके स्टालिन की डीएमके सरकार ने भगदड़ के लिए TVK पर लापरवाही का आरोप लगाया और वीडियो सबूत पेश किए। पर करुर पुलिस का कहना है कि सबूतों के अभाव में विजय की व्यक्तिगत जिम्मेदारी साबित नहीं हुई। हालांकि TVK नेताओं के खिलाफ उन्होंने कार्रवाई की है।

साथ ही, सरकार का कहना है कि उन्होंने भगदड़ के कारणों को समझने के लिए जांच दल बना दिया है, इसकी रिपोर्ट आने के बाद ही कार्रवाई होगी।

विजय की पार्टी TVK का झंडा

विजय की पार्टी TVK का झंडा

तमिलनाडु की राजनीति में विजय की भूमिका

विजय लंबे समय से तमिल सिनेमा के सुपरस्टार रहे हैं, उन्होंने फरवरी- 2024 में अपनी राजनीतिक पार्टी TVK लॉन्च की थी। उनका उद्देश्य 2026 के विधानसभा चुनावों में मजबूत चुनौती पेश करना है। करुर हादसा उनकी पहली बड़ी रैली थी, जिसमें इतने अधिक लोगों का आ जाना उनकी लोकप्रियता को दर्शाता है। हालांकि, इस घटना ने उनकी छवि को धक्का पहुँचाया है। लेकिन उनकी फैन फॉलोइंग और युवा वोटरों का समर्थन उन्हें राजनीति में प्रभावशाली बनाता है। कई संगठन इसे देखने हुए आगामी चुनाव में उनके साथ गठबंधन करने का विकल्प खुला रखना चाहते हैं। 
बीजेपी व AIDMK की सधी हुई प्रतिक्रिया
बीजेपी की प्रतिक्रिया भी इस घटना पर सधी हुई रही है, दरअसल यह पार्टी भी तमिलनाडु में गठबंधन की तलाश में है। बीजेपी ने इसे राज्य की कानून-व्यवस्था पर सवाल उठाने का मौका बनाया है। जानकार मानते हैं कि विजय की बढ़ती लोकप्रियता आगामी चुनाव में AIADMK और DMK दोनों को चुनौती दे सकती है। ऐसे में बीजेपी भी गठबंधन का विकल्प खुला रखना चाहती है। दूसरी ओर, मुख्य विपक्षी दल AIADMK भी इस हादसे के लिए DMK पर ही ज्यादा हमलावर रही है। 
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2 Oct: गांधी जयंती और RSS के 100 साल, हत्या की 5 कोशिशों की पड़ताल

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30 जनवरी, 1948 को गोली मारकर बापू की हत्या कर दी गई। मौके का दृश्य (तस्वीर - prcyl)
30 जनवरी, 1948 को गोली मारकर बापू की हत्या कर दी गई। मौके का दृ्श्य (तस्वीर - prcyl)
  • गांधी जयंती के दिन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का शताब्दी वर्ष पूरा करने के संयोग पर ऐतिहासिक घटनाओं का विश्लेषण

नई दिल्ली |

यह रोचक संयोग है कि आज गांधी जयंती का दिन है, जब हम महात्मा गांधी के योगदान को याद करते हैं, और उसी दिन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) अपनी स्थापना के 100 वर्ष (1925-2025) मना रहा है। गांधी जी ने एक बार कहा था कि कोई उन्हें कितना भी मारने की कोशिश कर ले, वे 125 साल जीने की आशा रखते हैं। हालांकि, उनकी हत्या 30 जनवरी 1948 को 78 साल की उम्र में हो गई।

महात्मा गांधी की हत्या में शामिलता और संलिप्तता के आरोपियों का ट्रायल 27 मई 1948 को दिल्ली के लाल किले में विशेष अदालत में शुरू हुआ। आरोपियों का करीबी दृश्य। सामने की पंक्ति बाएँ से दाएँ: नाथूराम विनायक गोडसे, नारायण दत्तात्रेय आप्टे और विष्णु रामकृष्ण करकरे। पीछे बैठे (बाएँ से दाएँ): दिगंबर रामचंद्र बॅज, शंकर स/ो किस्टैया, विनायक दामोदर सावरकर, गोपाल विनायक गोडसे और दत्तात्रेय सदाशिव परचुरे।

महात्मा गांधी की हत्या में संलिप्तता के आरोपियों के ट्रायल के दौरान अदालत का दृश्य । सामने की पंक्ति (बाए से दाएं): नाथूराम विनायक गोडसे, नारायण दत्तात्रेय आप्टे और विष्णु रामकृष्ण करकरे। पीछे बैठे (बाएं से दाएं): दिगंबर रामचंद्र बॅज, शंकर , विनायक दामोदर सावरकर, गोपाल विनायक गोडसे और दत्तात्रेय सदाशिव परचुरे। (तस्वीर क्रेडिट – Flickr)

 

गांधी की हत्या के बाद RSS पर गंभीर आरोप लगे, जिसके चलते भारत सरकार ने 4 फरवरी 1948 को इसे प्रतिबंधित कर दिया, क्योंकि हत्यारे नाथूराम गोडसे का RSS से संदेहास्पद जुड़ाव था—हालांकि यह बाद में साबित नहीं हुआ। 11 जुलाई 1949 को RSS ने हिंसा से परहेज और संविधान के प्रति वफादारी का वचन देकर प्रतिबंध हटवाया।

 

शताब्दी वर्ष पर पीएम मोदी ने किया प्रतिबंध का जिक्र, कांग्रेस का पलटवार

RSS की 100वीं वर्षगांठ पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समारोह में कहा कि “संघ की सौ वर्ष की यात्रा के दौरान झूठे मामले और प्रतिबंध लगने के बावजूद कभी कटुता नहीं दिखाई”।

1939 में महाराष्ट्र में राष्ट्रीय स्वयं संघ की बैठक के दौरान की तस्वीर (क्रेडिट - इंटरनेट)

1939 में महाराष्ट्र में राष्ट्रीय स्वयं संघ की बैठक के दौरान की तस्वीर (क्रेडिट – इंटरनेट)

इस पर कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश ने प्रतिक्रिया देते हुए दावा किया कि गांधी ने RSS को “सांप्रदायिक निकाय” कहा था, और कुछ इतिहासकारों ने इसे “अधिनायकवादी दृष्टिकोण” से जोड़ा।

इन राजनीतिक बयानों के बीच, गांधी की हत्या से पहले की घटनाओं पर नजर डालना जरूरी है, ताकि उस दौर में RSS और अन्य हिंदूवादी समूहों की भूमिका को संदेह के साथ समझा जा सके।

 

महात्मा गांधी की हत्या की पांच नाकाम कोशिशें

महात्मा गांधी की हत्या से पहले उनकी हत्या की पांच नाकाम साजिशें रची गईं। इनकी जानकारी गांधी शांति प्रतिष्ठान की पत्रिका ‘गांधी मार्ग’ (मई-जून 2019) के विशेषांक से ली गई है, जो गांधी जयंती के 150वें वर्ष पर प्रकाशित हुआ था।

सावरमती आश्रम में बच्चे को दुलारते बापू (तस्वीर - Flickr)

सावरमती आश्रम में बच्चे को दुलारते बापू (तस्वीर – Flickr)

  1. 1934: पुणे में बम हमला
    साल 1934 में पुणे, जो तब हिंदुत्व का गढ़ माना जाता था, में गांधी के सम्मान समारोह के दौरान उनकी गाड़ी पर बम फेंका गया। गांधी उस गाड़ी में नहीं थे, बल्कि पीछे वाली गाड़ी में थे, जिससे वे बच गए। कई लोग जिसमें नगर पालिका अधिकारी और पुलिस जवान भी घायल हुए। यह मामला दबा दिया गया, और दोषियों की पहचान स्पष्ट नहीं हुई।
  2. 1944: पंचगनी में छुरे से हमला  
    1944 में गांधी की लंबी कैद और कस्तूरबा/महादेव देसाई की मृत्यु के बाद, वे पंचगनी में आराम कर रहे थे। गांधी मार्ग के अनुसार, 22 जुलाई को नाथूराम गोडसे ने छुरे से हमला किया, लेकिन स्वतंत्रता सेनानी भिलारे गुरुजी ने उन्हें रोक लिया। गांधी ने युवक को माफ कर दिया।
महात्मा गांधी की हत्या में संलिप्तता के आरोपियों का ट्रायल, जो दिल्ली के लाल किले में विशेष अदालत में आयोजित हुआ। ट्रायल 27 मई 1948 से शुरू हुआ।1 web page

महात्मा गांधी की हत्या में संलिप्तता के आरोपियों का ट्रायल दिल्ली के लाल किले में विशेष अदालत में आयोजित हुआ । ट्रायल 27 मई 1948 से शुरू हुआ। (तस्वीर – flickr)

 

  1. 1944: वर्धा में छुरा बरामद
    उसी साल, वर्धा आश्रम में गांधी जिन्ना से मिलने की योजना बना रहे थे, जिसका सावरकर समर्थकों ने विरोध किया। पुलिस ने एक उपद्रवी टोली को गिरफ्तार किया, और एक सदस्य के पास छुरा मिला। गांधी मार्ग का दावा है कि यह RSS के नेता गोलवलकर से जुड़ा था, लेकिन इसकी पुष्टि अन्य स्रोतों से आवश्यक है।
  2. 1946: मुंबई-पुणे रेल पलटने की कोशिश
    30 जून 1946 को कर्जत के पास गांधी की ट्रेन की पटरियों पर पत्थर रखे गए, लेकिन ड्राइवर ने इमरजेंसी ब्रेक लगाकर गाड़ी रोकी। गांधी ने प्रार्थना सभा में मजाकिया लहजे में कहा, “मैं सात बार ऐसे प्रयासों से बच गया हूँ और 125 साल जीने की आशा रखता हूँ।”  तब ‘हिंदू राष्ट्र’ के संपादक नाथूराम गोडसे ने जवाब में लिखा, “आपको इतने साल कौन जीने देगा?”
  3. 1948: बिरला भवन में बम हमला
    20 जनवरी 1948 को दिल्ली के बिरला भवन में गांधी की प्रार्थना सभा के दौरान मदनलाल पाहवा ने बम फेंका, लेकिन दूरी का गलत अंदाजा होने से गांधी बच गए। पाहवा, एक शरणार्थी, पकड़ा गया, लेकिन षड्यंत्र के बड़े नाम बचे रहे।
गांधी जी के पार्थिव शरीर के पास शोक में बैठे लोग। (तस्वीर wikimedia.org)

गांधी जी के पार्थिव शरीर के पास शोक में बैठे लोग। (तस्वीर wikimedia.org)

 

30 जनवरी 1948: सफल हत्या

दस दिन बाद, 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे ने बिरला भवन में गांधी पर तीन गोलियाँ चलाईं, और ‘हे राम’ कहते हुए गांधी का निधन हो गया।

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स्रोत 

गांधी जी के इन क्षणों की जानकारी गांधी शांति प्रतिष्ठान कीगांधी मार्ग‘ (मईजून 2019) से ली गई है।

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नेपाल : बच्चियों को ‘जीवित देवी’ बनाने की प्रथा का जेंडर एंगल समझिए

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नेपाल की कुमारी प्रथा का जेंडर एंगल समझिए (प्रतीकात्मक फोटो)
नेपाल की कुमारी प्रथा का जेंडर एंगल समझिए (प्रतीकात्मक फोटो)
  • काठमांडू में 2 वर्ष की आर्यतारा शाक्या को ‘नई कुमारी’ चुना गया, ‘कौमार्य’ हासिल करने तक ये जीवित देवी मानी जाएंगी।

नई दिल्ली |

नेपाल में नवमी में मौके पर दो साल की बच्ची को जीवित देवी चुना गया है। बच्ची का परिवार भावुक होकर उसे कुमारी सिंहासन पर बैठाने के लिए ले जाने का फोटो मीडिया में वायरल है।

यह बच्ची मासिक धर्म शुरू होने तक यानी कौमार्य हासिल कर लेने तक नेपाल की जीवित देवी मानी जाएगी।

‘कुमारी प्रथा’ नेपाल की सांस्कृतिक धरोहर है, लेकिन जेंडर समानता के युग में यह सवाल उठाती है: क्यादेवीबनना लड़कियों के लिए वरदान है या अभिशाप?

आइए इसे जेंडर दृष्टिकोण से समझें।

 

तुलसी भवानी का अवतार मानने की प्रथा

नेपाल की प्राचीन परंपरा ‘कुमारी’ में एक छोटी लड़की को देवी तुलसी भवानी का अवतार मानकर पूजा जाता है। यह रिवाज न्यूारी बौद्ध और हिंदू समुदायों में सदियों पुराना है।

लेकिन इसका जेंडर आयाम जटिल है। एक ओर यह स्त्री शक्ति को सम्मान देता है, वहीं दूसरी ओर बालिकाओं की शिक्षा, सामाजिक विकास और स्वतंत्रता पर गंभीर प्रतिबंध लगाता है।

हाल ही में काठमांडू में 2 वर्ष 8 माह की आर्यतारा शाक्या को नई कुमारी चुना गया, जो त्रिश्ना शाक्या की जगह लेंगी।

इससे पहले 2017 में 3 वर्षीय त्रिश्ना शाक्या को यह पद मिला था, जो अब किशोरावस्था में पहुँचने पर पद छोड़ रही हैं।

 

चयन प्रक्रिया: शुद्धता और सौंदर्य के जेंडर मानदंड

कुमारी का चयन शाक्या कबीले की 2-4 वर्षीय लड़कियों में से होता है, जिसमें 32 शारीरिक और मानसिक ‘पूर्णताएँ’ (perfections) जाँची जाती हैं। इसमें बेदाग त्वचा, दाँत, आँखें, बाल, और मासूमियत शामिल हैं।

लड़की को अंधेरे कमरे में भैंस के सिर और डरावने मुखौटों के सामने डर न लगने की परीक्षा भी देनी पड़ती है।

यह प्रक्रिया स्त्री शरीर को ‘शुद्ध’ और ‘दिव्य’ बनाने पर जोर देती है, जो नेपाली समाज के जेंडर मानदंडों को प्रतिबिंबित करती है।

आलोचक कहते हैं कि यह लड़कियों पर सौंदर्य और पवित्रता के दबाव को बढ़ावा देता है, जो व्यापक स्तर पर महिलाओं पर लगाए जाने वाले सौंदर्य आदर्शों (beauty standards) का विस्तार है।

पुरुषों के लिए कोई समान रिवाज नहीं है, जो जेंडर असमानता को उजागर करता है—लड़कियाँ ‘देवी’ बनने के लिए ‘पूर्ण’ होनी चाहिए, लेकिन लड़कों का बचपन सामान्य रहता है।

कुमारी का जीवन: सम्मान के साथ प्रतिबंध

चयन के बाद कुमारी कुमारी घर (मंदिर-महल) में रहती है, जहाँ उसे लाल वस्त्र पहनाए जाते हैं और माथे पर ‘तीसरी आँख’ चिह्नित की जाती है।

वह 13 बार ही बाहर निकलती है—धार्मिक उत्सवों (जैसे इंद्र जात्रा) में रथ पर सवार होकर।

किशोरावस्था (मासिक धर्म) आने पर पद समाप्त हो जाता है, और वह ‘सामान्य’ जीवन में लौटती है।

लेकिन यह ‘दिव्य’ अवधि (3-12 वर्ष) में लड़की को सामाजिक अलगाव, शिक्षा की कमी, और सामान्य खेल-कूद से वंचित रखा जाता है।

जेंडर एंगल से देखें तो यह रिवाज स्त्री शक्ति (शक्ति) को पूजता है, लेकिन व्यावहारिक रूप से लड़कियों को ‘शुद्धता’ और ‘चुप्पी’ का प्रतीक बना देता है।

 

पूर्व कुमारी की किताब से परंपरा पर सवाल उठे

पूर्व कुमारी रश्मिला शाक्या की किताब From Goddess to Mortal में वर्णित है कि पद समाप्ति के बाद सामान्य जीवन में लौटना कितना कठिन होता है—घरेलू काम सीखना, स्कूल जाना, और सामाजिक अलगाव से उबरना।

2005 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर हुई, जिसमें कहा गया कि यह परंपरा बाल अधिकारों का उल्लंघन करती है, क्योंकि लड़की को ‘कैद’ जैसा जीवन जीना पड़ता है।

मानवाधिकार कार्यकर्ता इसे ‘बाल शोषण’ मानते हैं, क्योंकि यह लड़कियों की शिक्षा, सामाजिक विकास, और स्वतंत्रता को सीमित करता है।

 

पूर्व कुमारियों को ‘शापित’ मानना

पूर्व कुमारियों को ‘शापित’ माना जाता है—विश्वास है कि उनकी शादी करने वाला पति जल्दी मर जाएगा, जिससे कई अविवाहित रह जाती हैं।

यह जेंडर असमानता को बढ़ावा देता है, क्योंकि लड़कियों को बचपन से ही ‘देवी’ के रूप में अलगाव सिखाया जाता है, जबकि लड़कों का विकास सामान्य रहता है।

 

हाल के सुधारों से कुछ राहत

 2008 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कुमारियों को महल में ही निजी ट्यूटर्स से शिक्षा दी जाती है, टीवी देखने की अनुमति है, और पद समाप्ति पर सरकारी पेंशन मिलती है।

फिर भी आलोचक (जैसे UNICEF, Human Rights Watch) कहते हैं कि यह प्रथा बाल अधिकार संधि (CRC) का उल्लंघन करती है, क्योंकि यह लड़कियों की स्वतंत्रता और विकास को बाधित करती है।

नेपाली समाज में लिंग असमानता (जैसे बाल विवाह, संपत्ति अधिकारों की कमी) के व्यापक संदर्भ में, कुमारी प्रथा एक उदाहरण है कि कैसे सांस्कृतिक सम्मान महिलाओं को ‘दिव्य’ लेकिन ‘दबाया गया’ बनाता है।

यह परंपरा सांस्कृतिक संरक्षण और मानवाधिकारों के बीच संतुलन की मांग करती है।

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