रिसर्च इंजन
मोदी के दावे की पड़ताल: क्या वाकई बिहार, बंगाल, असम की पहचान को खतरा है ?

“सीमा क्षेत्रों में डेमोग्राफी बदली जा रही है… अवैध घुसपैठ के माध्यम से बंगाल की पहचान और स्थानीय लोगों के अधिकारों को खतरा है। टीएमसी वेलफेयर फंड्स को कैडर पर खर्च कर डेमोग्राफी चेंज कर रही है।” – पीएम मोदी
- 2011 की जनगणना के अनुसार, पश्चिम बंगाल में मुस्लिम आबादी 27% है, जो 2001 के 25% से मामूली वृद्धि दर्शाती है।
- बांग्लादेश से घुसपैठ के दावे पुराने हैं, 1950 से 1970 के दशक में घुसपैठ चरम पर थी, बंग्लादेश बनने के बाद स्थिति नियंत्रित हुई।
- हालिया डेटा (UDISE और NCRB) में कोई बड़े पैमाने पर घुसपैठ का प्रमाण नहीं मिलता।
- फैक्ट-चेक रिपोर्ट्स (जैसे द फेडरल, 2025) के मुताबिक, 1971 से 2011 के बीच आबादी वृद्धि 2.06 गुना रही है, जो राष्ट्रीय औसत 2.2 गुना से कम है। साथ ही, अधिकांश वृद्धि प्राकृतिक है, न कि घुसपैठ से।
“कांग्रेस ने वोट बैंक की लालच में घुसपैठियों को जमीन देकर असम की डेमोग्राफी बदल दी… यह स्थानीय लोगों और आदिवासियों की पहचान के लिए खतरा है। केंद्र ‘डेमोग्राफी मिशन’ लॉन्च करने जा रहा है ताकि घुसपैठ रोकी जा सके।” – पीएम मोदी
- असम में 1911-1921 के दौरान अंग्रेजी सरकार की ‘ग्रो मोर फूड’ पॉलिसी के चलते जनसंख्या 20.5% की दर से बढ़ी। इस नीति का उद्देश्य खाद्य उत्पादन बढ़ाना था, जिसके लिए बंगाल (वर्तमान बांग्लादेश क्षेत्र) से किसानों को असम के ब्रह्मपुत्र घाटी में बसाया गया। ये मुख्य रूप से मुस्लिम किसान थे।
- 1947 के विभाजन और 1950 के बंगाल-पूर्वी पाकिस्तान दंगों के बाद शरणार्थी असम में आए। इनमें हिंदू और मुस्लिम दोनों शामिल थे, लेकिन मुस्लिम शरणार्थियों की संख्या अधिक थी। 1951-1961 में जनसंख्या में 34.9% वृद्धि हुई, जो राजनीतिक अस्थिरता और शरणार्थी संकट से प्रभावित थी, न कि अवैध घुसपैठ से।
- 1991-2011 में वृद्धि दर 23% से घटकर 17% हो गई, जो घुसपैठ के बड़े पैमाने का संकेत नहीं देती। 2011 जनगणना में मुस्लिम आबादी 34% है, लेकिन NRC (2019) में केवल 1.9 मिलियन संदिग्ध पाए गए, जिनमें अधिकांश बंगाली हिंदू/मुस्लिम थे।
- फैक्ट-चेक (आउटलुक इंडिया, 2024; द फेडरल, 2025) बताते हैं कि आबादी वृद्धि प्राकृतिक और प्रवासन से है, इसमें ‘कांस्पिरेसी’ का कोई ठोस प्रमाण नहीं।
- असम सरकार की ‘मिशन बसुंधरा’ (भूमि वितरण योजना) ने सभी पात्र नागरिकों को पट्टे दिए, लेकिन जमीन को घुसपैठियों को बांट देने का दावा अतिरंजित लगता है।
“कांग्रेस-आरजेडी ने बिहार की पहचान और सम्मान को खतरे में डाल दिया… सीमांचल और पूर्वी भारत में घुसपैठियों से डेमोग्राफी संकट पैदा हो गया है, जो बहनों-बेटियों की सुरक्षा के लिए खतरा है। हम घुसपैठियों को हटाने के लिए डेमोग्राफी मिशन चलाएंगे।” – पीएम मोदी
फैक्ट जानें-
- बिहार का बांग्लादेश से सीधा भौगोलिक संपर्क नहीं है, और पश्चिम बंगाल के रास्ते होने वाली किसी भी संभावित घुसपैठ का कोई ठोस प्रमाण नहीं मिला है।
- SIR (स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन) 2025, बिहार के वोटर लिस्ट अपडेशन का हिस्सा, में विवाद हुआ, लेकिन डेटा में डेमोग्राफी चेंज का कोई बड़ा पैटर्न नहीं दिखा। 2011 की जनगणना में मुस्लिम आबादी 17% थी, जो 2001 के 16.5% से मामूली वृद्धि दर्शाती है, जो प्राकृतिक वृद्धि और आंतरिक प्रवास से मेल खाती है।
- बिहार में जनसंख्या वृद्धि का एक प्रमुख कारण उच्च जन्म दर रही है। 1971 से 2011 के बीच, बिहार की आबादी 3.57 गुना बढ़ी, जो राष्ट्रीय औसत (2.2 गुना) से अधिक है। यह ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी परिवारों की परंपरा, शिक्षा और जागरूकता की कमी, और स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार से जुड़ी है, जिसने मृत्यु दर को कम किया लेकिन जन्म दर को ऊंचा रखा।
- 2011 की जनगणना के अनुसार, बिहार की प्रजनन दर (TFR – Total Fertility Rate) 3.7 थी, जो राष्ट्रीय औसत (2.4) से कहीं अधिक थी। यह प्राकृतिक वृद्धि का स्पष्ट संकेत है।
मणिपुर और मिजोरम में हाल के वर्षों में पड़ोसी मुल्क म्यांमार की अस्थिरता के चलते शरणार्थी संकट और सीमाई आवाजाही बढ़ी है। इन दोनों राज्यों की म्यांमार से खुली सीमा और सांस्कृतिक समानताएं हैं। मणिपुर सीमा से 16 किमी तक बिना वीजा म्यांमार में आवाजाही की अनुमति भी है (FMR)। इसके अलावा मणिपुर ढाई साल से जातीय हिंसा में फंसा हुआ है, जिससे यहां आंतरिक विस्थापन बहुत अधिक है। 13 सितंबर 2025 को पीएम ने दोनों राज्यों का दौरा किया, लेकिन यहां डेमोग्राफी चेंज व घुसपैठ का मुद्दा नहीं उठाया। विशेषज्ञ मोदी के इस कदम के निम्न कारण बताते हैं –
- मणिपुर और मिजोरम में जातीय विविधता (मेइती, कुकी, नागा, मिजो आदि) और म्यांमार सीमा से सटे होने के कारण घुसपैठ एक संवेदनशील मुद्दा है। इन राज्यों में डेमोग्राफी चेंज का जिक्र सांप्रदायिक तनाव या गलतफहमी को बढ़ा सकता था, खासकर मणिपुर में मई 2023 से जारी जातीय हिंसा के बाद।
- मणिपुर में केंद्रीय बल तैनात हैं, लेकिन राष्ट्रपति शासन नहीं है; इससे पहले भाजपा की सरकार स्थानीय पार्टियों (एनपीपी, एनपीएफ) की निर्भरता पर चल रही थी। मिजोरम में जेडीपी (MNF का सहयोगी) सत्ता में है, जो ईसाई बहुल राज्य में भाजपा के लिए सहयोगी है। डेमोग्राफी चेंज का मुद्दा सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ा सकता था, जो इन गठबंधनों को नुकसान पहुंचाता।
- असम और बंगाल में विपक्षी दलों (कांग्रेस, टीएमसी) को निशाना बनाया गया, लेकिन मणिपुर-मिजोरम में सहयोगी दलों के साथ सामंजस्य बनाए रखना जरूरी था।
- मणिपुर और मिजोरम में घुसपैठ का मुद्दा असम या बंगाल जितना ऐतिहासिक रूप से प्रचारित नहीं है। म्यांमार से शरणार्थी (ज्यादातर चिन ईसाई) आते हैं, लेकिन यह बांग्लादेशी घुसपैठ से अलग है, जो पीएम के डेमोग्राफी नरेटिव में केंद्र में है।
1- 21 अप्रैल 2024 : जिनके ज्यादा बच्चे हैं…
“आज इनका [कांग्रेस का] घोषणा पत्र आया है। इनका वचन पत्र आया है। इनका मेनिफेस्टो आया है। मैंने देखा है। क्या लिखा है? इनकी बहन-बेटियों को, इनके मां-बहनों को, इनके परिवार को इनकी संपत्ति से वंचित करने का प्लान कर रहे हैं। इनकी नजर आपकी संपत्ति पर है। आपकी संपत्ति का जो हिस्सा है, जो आपकी मां-बहनों को मिलना चाहिए, वो हिस्सा, इनकी नजर उस हिस्से पर है। इनकी नजर उन लोगों पर है जो बाहर से आए हैं, जिनके पास ज्यादा बच्चे हैं, उनको आपकी संपत्ति बांटने का प्लान है।” – पीएम मोदी, राजस्थान के बांसवाड़ा रैली।
“झारखंड में आज हमारा धर्म निभाना मुश्किल हो गया है। हमारे देवताओं के मूर्ति तोड़ी जा रही हैं। घुसपैठियों का जिहादी माइंडसेट है, वे गैंग बनाकर हमला कर रहे हैं, लेकिन झारखंड सरकार दूर से उनका समर्थन कर रही है। इन घुसपैठियों ने हमारी बहनों और बेटियों की सुरक्षा को खतरे में डाल दिया है।” – मोदी, झारखंड के चतरा में रैली।
“टीएमसी की तुष्टिकरण नीति ने बंगाल की जनसांख्यिकी को बिगाड़ दिया है। घुसपैठ ने राज्य की जनसांख्यिकी को प्रभावित किया है। टीएमसी अन्य राज्यों के लोगों को ‘बाहरी’ कहती है। लेकिन वह घुसपैठियों को गले लगाती है।” – मोदी, पश्चिम बंगाल की मेदिनीपुर रैली।
4- 25 मई 2024 : घुसपैठिए अदृश्य दुश्मन …
“अवैध घुसपैठियों ने हमारी बहनों और बेटियों की सुरक्षा को खतरे में डाल दिया है। ये घुसपैठिए अदृश्य दुश्मन की तरह समाज को बांट रहे हैं। कांग्रेस और विपक्ष इनका समर्थन कर रहे हैं, जिससे हमारी एकता खतरे में है।” – मोदी, उत्तर प्रदेश की गाजीपुर रैली।
5- 15 दिसंबर 2019 : कपड़ों से ही पहचाना जा सकता है…
“सीएए से किसी की नागरिकता नहीं जाएगी, यह सिर्फ उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों (हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी, ईसाई) को नागरिकता देने के लिए है। जो हिंसा फैला रहे हैं,उन्हें उनके कपड़ों से ही पहचान लिया जा सकता है। हमारी सरकार देश की एकता और अखंडता की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।” – मोदी, सीएए के संदर्भ में झारखंड कीदुमका रैली का भाषण।
रिसर्च इंजन
बिहार विधानसभा चुनाव में कितना बड़ा फैक्टर होंगे प्रशांत किशोर?

- नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव दोनों की आलोचना करने वाले प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी पर विश्लेषण
पटना | हमारे संवाददाता
प्रशांत किशोर बिहार में नया सियासी प्रयोग हैं। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में प्रशांत किशोर (पीके) की जन सुराज पार्टी (JSP) चर्चा का केंद्र बनी है।
हालांकि हालिया पोल उन्हें कम सीटें दिखाते हैं, लेकिन वोट बंटवारे से NDA-RJD को नुकसान संभव। अगर पीके युवा गुस्से को संगठित कर पाए, तो उलटफेर मुमकिन।
क्या वे गेम-चेंजर होंगे या वोट कटवा का तमग़ा मिलेगा ? आइए इस विश्लेषण के जरिए बिहार की सियासत में PK इफेक्ट (प्रभाव) को समझते हैं।
प्रशांत किशोर की ताकत: JSP की रणनीति और प्रभाव
- पृष्ठभूमि: पीके ने 2014 में मोदी और 2015 में नीतीश-लालू की जीत में रणनीति बनाई। 2022 में जनसुराज पार्टी (JSP) बनाकर सीधे सियासत में कूदे।
- मुख्य मुद्दे: शिक्षा, रोजगार, पलायन और भ्रष्टाचार पर फोकस। BPSC आंदोलन में शामिल होकर युवा गुस्से को भुनाया।
- वोट का दावा: 48% वोट जीतने का दावा करते हैं, जिसमें NDA व महागठबंधन से 10-10% वोट काटने और 28% ऐसा वोट पाने का गणित है, जो 2020 में इन दोनों गठबंधन की पार्टियों की जगह छोटे दलों को चला गया था।
- उम्मीदवारी: खुद चुनाव लड़ने की घोषणा की है, नौ अक्टूबर को उम्मीदवार सूची जारी करेंगे।
- 60-40 फॉर्मूला: 40% हिंदू (नॉन-यादव OBC, EBC, अगड़ी जातियां) + 20% मुस्लिम वोट।
नीतीश-तेजस्वी दोनों पर हमलावर
- नीतीश पर निशाना: पीके का दावा है कि ‘JDU को 25 से ज्यादा सीटें नहीं मिलेंगी, वरना राजनीति छोड़ देंगे।’ नीतीश को ‘शारीरिक रूप से थका’ बताया।
- तेजस्वी पर तंज: पीके का कहना है कि तेजस्वी का ’10 लाख नौकरी’ का वादा खोखला। युवा वोटरों को साधने की कोशिश जो बिहार की 60% आबादी।
- मुस्लिम रणनीति: RJD को ऑफर— मुस्लिम उम्मीदवारों पर टकराव न हो, जहां वे मुस्लिम उतारें, वहां जनसुराज नहीं उतारेगी। पर ऐसा शर्त के साथ। यह लालू के MY समीकरण को चुनौती।
जनसुराज : चुनौतियां और जोखिम
- कमजोर संगठन: JSP का ग्राउंड नेटवर्क कमजोर। BJP-JDU-RJD की तुलना में कैडर सीमित।
- वोट कटवा टैग: कई प्री सर्वे JSP को 2-5 सीटें देते हैं, इससे JDU-RJD को ज्यादा नुकसान संभव।
- हिन्दू वोट प्रभावित : केंद्र सरकार के वक्फ संशोधन विधेयक के विरोध में रैलियां करने पर उन्हें मुस्लिम समर्थन मिला पर कहा जाता है कि हिन्दू अपरकास्ट वोट छिटका।
सर्वे और संभावनाएं
सर्वे/स्रोत |
NDA सीटें |
महागठबंधन |
JSP |
अन्य |
मैट्रिक्स–आईएएनएस |
150-160 |
70-85 |
2-5 |
5-10 |
इंडिया टुडे |
145-155 |
75-90 |
1-3 |
5-8 |
- वोट प्रभाव: JSP शहरी और युवा वोटरों में लोकप्रिय। ग्रामीण क्षेत्रों में प्रभाव सीमित।
- गठबंधन की अटकलें: चिराग पासवान (LJP) के साथ गठजोड़ की अफवाह। दोनों 243 सीटों पर लड़ सकते हैं।
- AAP का प्रवेश: आप की 243 सीटों पर दावेदारी JSP के कैडर को प्रभावित कर सकती है।
बिहार के जातीय समीकरण पर PK की रणनीति
- ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: 1990 में लालू का MY (मुस्लिम-यादव) समीकरण। 2005 में नीतीश का लव-कुश (EBC, महिलाएं) फॉर्मूला।
- PK की रणनीति: जाति से ऊपर विकास पर जोर। EBC, मुस्लिम और युवा वोटरों को साधने की कोशिश। MY और लव-कुश समीकरणों को तोड़ने की चुनौती। मुस्लिम वोट बंटवारा RJD के लिए खतरा।
क्या कहते हैं आलोचक?
- विपक्षी: पीके को ‘राजनीतिक पर्यटक’ कहकर खारिज करते हैं। संगठन की कमी पर सवाल।
- समर्थक: बिहार के बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के खिलाफ ‘बिहार का बेटा’ की आवाज।
- BJP की चिंता: दिल्ली की बैठकों में JSP के ‘खौफ’ की चर्चा। त्रिकोणीय मुकाबला संभव।
राजनीतिक विश्लेषकों की राय
चुनावी डायरी
जीतन राम मांझी : NDA की दलित ताकत, पर सीट शेयर में बड़ी अड़चन

- बिहार चुनाव में NDA से 15 से 20 सीटें चाहते हैं HAM चीफ माझी
नई दिल्ली|
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से ठीक पहले NDA (नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस) में सीट बंटवारे को लेकर चल रही खींचतान में जीतन राम मांझी का नाम सबसे ऊपर है। हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (सेक्युलर) (HAM) के संस्थापक और केंद्रीय मंत्री मांझी ने 15 से 20 सीटों की मांग रखी है, लेकिन BJP-JDU गठबंधन उन्हें 3-7 सीटें देने पर अड़ा है। क्या मांझी NDA के लिए महादलित-दलित वोटों की ‘मजबूत कड़ी’ हैं या उनकी बढ़ती महत्वाकांक्षा के बीच गठबंधन बचाना ‘मजबूरी’ और चुनौती बन गया है? आइए जानते हैं इस विश्लेषण में..

जीतनराम मांझी (तस्वीर – @NandiGuptaBJP)
NDA में मांझी की ‘मजबूती’: दलित वोटों का मजबूत आधार
हालिया बैठकों और बयानों से साफ है कि मांझी की मौजूदगी से NDA को जातीय समीकरण में मजबूती मिलती है। पर BJP के बार-बार मनाने पर भी वे अपनी मांग पर अड़े हैं, बीजेपी प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान ने इसे उनकी ‘साफगोई’ कहा है। जातीय गणित की नजर से देखें तो मांझी NDA को कई सीटों पर मजबूती देते दिखते हैं-
- महादलित-दलित वोट बैंक: बिहार में दलित (16%) और महादलित (मुसहर, डोम आदि) वोटरों पर मांझी की पकड़ मजबूत है। 2020 में HAM ने 7 सीटों पर 60% से ज्यादा स्ट्राइक रेट दिखाया, जो NDA की कुल 125 सीटों में योगदान देता है। चिराग पासवान (LJP) के साथ मिलकर वे पश्चिम चंपारण से गया तक दलित वोटों को एकजुट करते हैं।
- नीतीश के पूरक: NDA का महादलित फोकस मांझी से मजबूत होता है। लोकसभा 2024 में NDA की 30/40 सीटों में मांझी का रोल सराहा गया।
- केंद्रीय मंत्री के रूप में: MSME मंत्री के तौर पर वे केंद्र की रोजगार सृजन योजनाओं (जैसे PMEGP) को बिहार में लागू कर NDA की छवि चमकाते हैं।
NDA में मांझी की मजबूती – |
उदाहरण |
जातीय समीकरण |
महादलित (12%) वोटों पर पकड़; 2020 में 4/7 सीटें जीतीं। |
रणनीतिक भूमिका |
JDU-BJP के बीच दलित ब्रिज; चिराग के साथ मिलकर विपक्ष (RJD) को चुनौती। |
परिवारिक प्रभाव |
बेटा–बहू के मंत्री/विधायक होने से स्थानीय स्तर पर मजबूती। |
विवादास्पद अपील |
गरीबी से सत्ता की कहानी दलित युवाओं को प्रेरित करती है। |

जीतनराम मांझी के साथ बैठक करने पहुंचे बीजेपी के चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान, तावड़े, सम्राट चौधरी।
NDA के लिए ‘मजबूरी’: बढ़ती मांगें और बगावती तेवर
दूसरी तरफ, मांझी की महत्वाकांक्षा NDA के लिए सिरदर्द बनी हुई है:
- सीटों की मांग: बिहार विधानसभा चुनाव में 15-20 (कभी 25-40) सीटें मांग रहे हैं, ताकि HAM को ECI मान्यता (6% वोट/6 सीटें) मिले। लेकिन BJP-JDU उन्हें 3-7 सीटें देने को तैयार हैं। धर्मेंद्र प्रधान की 5 अक्टूबर 2025 की मीटिंग में मांझी को ‘3 से ज्यादा पर नहीं’ कहा गया। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, मांझी ने धमकी दी- “अगर 15-20 न मिलीं तो 100 सीटों पर अकेले लड़ेंगे।”
- नाराजगी का इतिहास: 2015 में BJP ने नीतीश के सामने मांझी को ‘अपमानित’ होने दिया। अब अप्रत्यक्ष अपमान (वोटर लिस्ट न देना) से नाराज हैं। News18 में मांझी ने कहा, “हम रजिस्टर्ड हैं, लेकिन मान्यता नहीं—यह अपमान है।”
- गठबंधन तनाव: NDA का फॉर्मूला लगभग तय है, मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक- JDU को 102-108, BJP को 101से 107, LJP को 20से 22, HAM को 3से 7, RLM को 3से 5 सीटें देने का फॉर्मूला है। मांझी की मांग से JDU-BJP के बीच ‘100 सीटों की लड़ाई’ तेज हुई है। उपेंद्र कुशवाहा (RLM) ने भी 15 सीटों की मांग कर दी है जिससे NDA पर 35 सीटों को लेकर दवाब बढ़ गया है।
- बगावत का जोखिम: अगर मांझी बगावत करें, तो दलित वोट बंट सकते हैं, जो महागठबंधन (RJD) को फायदा देगा। लेकिन NDA उन्हें ‘जरूरी बुराई’ मानता है—इग्नोर करने से वोट लॉस, मानने से सीट शेयरिंग बिगड़ेगी।
NDA के लिए मांझी की मजबूरी के पहलू |
उदाहरण |
सीट मांग का दबाव |
20 मांगीं, 3-7 ऑफर; बगावत की धमकी। |
पुराना अपमान |
2015 में BJP-JDU ने ‘छोड़ दिया‘; अब मान्यता की लड़ाई। |
गठबंधन असंतुलन |
JDU-BJP 200+ सीटें चाहते; छोटे दलों को ‘कुर्बानी‘ देनी पड़ रही। |
विवादास्पद छवि |
बयान गठबंधन को नुकसान पहुंचाते, लेकिन वोटरों को जोड़ते। |

केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी
मजबूती ज्यादा, लेकिन मजबूरी नजरअंदाज नहीं
मांझी NDA के लिए ‘मजबूती‘ ज्यादा हैं—उनके बिना दलित वोटों का 20-25% हिस्सा खिसक सकता है। लेकिन सीट बंटवारे की उनकी जिद गठबंधन को ‘मजबूरी‘ में डाल रही है, जहां BJP-JDU को छोटे दलों को मनाना पड़ रहा। 5 अक्टूबर की प्रधान–मांझी बैठक में सहमति बनी, लेकिन अंतिम फॉर्मूला जून–जुलाई में तय होगा। अगर NDA 225+ सीटें जीतना चाहता है (जैसा मांझी दावा करते हैं), तो मांझी को ‘सम्मानजनक‘ रखना जरूरी। वरना, बिहार का जातीय समीकरण फिर उलट सकता है। राजनीतिक पंडितों का मानना है: मांझी ‘करो या मरो‘ के दौर में हैं, और NDA के लिए वे ‘जरूरी सहयोगी‘ से ‘संभावित खतरा‘ बन सकते हैं।
मांझी की राजनीतिक यात्रा: बंधुआ मजदूरी से सत्ता तक
जीतन राम मांझी बीते छह अक्तूबर को 81 बरस के हो गए। वे मुसहर समुदाय (महादलित) से आते हैं, जो बिहार के सबसे वंचित वर्गों में शुमार है। बचपन में बंधुआ मजदूरी करने वाले मांझी ने शिक्षा के बल पर 1966 में हिस्ट्री में ग्रेजुएशन किया और पोस्टल विभाग में नौकरी पाई।

जीतन राम माझी
1980 में कांग्रेस से राजनीति में कदम रखा, फिर RJD (लालू प्रसाद) और 2005 में JDU (नीतीश कुमार) से जुड़े। 2014 में लोकसभा चुनाव में JDU की करारी हार के बाद नीतीश ने इस्तीफा दिया और मांझी को मुख्यमंत्री बनाया—मकसद महादलित वोटों को साधना। लेकिन 9 महीने बाद (फरवरी 2015) विवादास्पद बयानों (जैसे डॉक्टरों के हाथ काटने की धमकी, चूहे खाने को जायज ठहराना) और नीतीश पर हमलों से JDU ने उन्हें बर्खास्त कर दिया। इसके बाद 18 विधायकों के साथ HAM बनाई।
2020 में NDA में वापसी हुई, जहां HAM को 7 सीटें मिलीं और 4 जीतीं। लोकसभा 2024 में गयासुर लोकसभा सीट जीतकर मांझी केंद्रीय मंत्री बने। उनके बेटे संतोष कुमार मांझी बिहार सरकार में मंत्री हैं, जबकि बहू दीपा मांझी इमामगंज से विधायक। यह पारिवारिक राजनीति NDA के लिए फायदेमंद रही, लेकिन मांझी के बयान (जैसे ताड़ी को ‘नेचुरल जूस’ कहना) अक्सर विवादों का सबब बने।
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तमिलनाडु : करूर भगदड़ में 41 मौतों के बाद विजय पर FIR क्यों नहीं?

- मद्रास हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को SIT की जांच IG से कराने का आदेश दिया।
- TVK के नेताओं को भगदड़ के बाद मदद की जगह भाग जाने के लिए लताड़ा।
- 27 सितंबर तमिल सिनेमा के सुपरस्टार विजय ने अपनी पार्टी TVK की रैली बुलाई थी।
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, मद्रास हाई कोर्ट में एक याचिकाकर्ता ने शिकायत की कि विजय का नाम FIR में न होना राजनीतिक कारणों से है। याचिकाकर्ता का कहना है कि “तमिलनाडु सरकार (DMK) विजय को शील्ड कर रही है, क्योंकि उनकी बढ़ती लोकप्रियता राजनीतिक संतुलन को प्रभावित कर सकती है।” याचिकाकर्ता का कहना है कि DMK विजय पर कार्रवाई से बच रही है, ताकि उनकी पार्टी को 2026 में गठबंधन का विकल्प खुला रखा जा सके।
सरकार का पक्ष : पहले जांच रिपोर्ट आने दो
मुख्यमंत्री एमके स्टालिन की डीएमके सरकार ने भगदड़ के लिए TVK पर लापरवाही का आरोप लगाया और वीडियो सबूत पेश किए। पर करुर पुलिस का कहना है कि सबूतों के अभाव में विजय की व्यक्तिगत जिम्मेदारी साबित नहीं हुई। हालांकि TVK नेताओं के खिलाफ उन्होंने कार्रवाई की है।
साथ ही, सरकार का कहना है कि उन्होंने भगदड़ के कारणों को समझने के लिए जांच दल बना दिया है, इसकी रिपोर्ट आने के बाद ही कार्रवाई होगी।
तमिलनाडु की राजनीति में विजय की भूमिका
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अलविदा डॉ. झा : एक शिक्षक जिसने जिला बनने से पहले बनाया ‘अररिया कॉलेज’
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छपरा : पास में सो रहा था बच्चा, मां और मौसी का गला काटा, मां की मौत
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Bihar : रास्ते में पोती से छेड़छाड़, विरोध करने पर दादा की पीट-पीटकर हत्या
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SSC online पेपर की बदइंतजामी से परेशान Aspirant ने फांसी लगाई, पुलिस ने बचाया
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माझी समाज के युवक की आंखें फोड़ीं, हत्या की रपट लिखाने को एक महीने भटकी पत्नी
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उत्तरकाशी : स्वतंत्र पत्रकार ने क्या कवरेज की थी.. जिसके बाद बैराज में मिला शव
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नवादा : दुर्गा पूजा में ससुराल आए युवक की मौत, पत्नी पर हत्या कराने का आरोप