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मोदी के दावे की पड़ताल: क्या वाकई बिहार, बंगाल, असम की पहचान को खतरा है ?

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पश्चिम बंगाल में उपले बनाने ले जाती महिला (साभार इंटरनेट)
नई दिल्ली | शिवांगी
हाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के पूर्वी और पूर्वोत्तर राज्यों में दौरे किए, जिसमें 13-15 सितंबर 2025 के बीच मणिपुर, मिजोरम, असम, पश्चिम बंगाल और बिहार शामिल हैं। इन अलग-अलग दौरों में उनके भाषणों में एकसमान पैटर्न नजर आता है, जहां उन्होंने अवैध घुसपैठ, डेमोग्राफी बदलाव और स्थानीय पहचान को खतरे की बात उठाई। विशेषकर बिहार में इन दावों को भाजपा की चुनावी रणनीति, खासकर 2025 के विधानसभा चुनावों के मद्देनजर, देखा जा रहा है। प्रधानमंत्री के हालिया भाषणों के आधार पर जनसांख्यिकी और स्थानीय पहचान बदलने के दावों की आइए पड़ताल करते हैं…
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (साभार - इंटरनेट)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (साभार – इंटरनेट)

‘डेमोग्राफी मिशन’ के इर्द-गिर्द हो रहे भाषण
पीएम मोदी के हालिया बयानों का संदर्भ देखें तो इसी साल स्वतंत्रता दिवस के भाषण में उन्होंने ‘डेमोग्राफी मिशन’ की घोषणा की थी। 15 अगस्त 2025 को लाल किले से देश को संबोधित करते हुए पीएम ने कहा था- “घुसपैठिए मेरे देश की बहनों-बेटियों को निशाना बना रहे हैं, ये घुसपैठिए भोले-भाले आदिवासियों को गुमराह करके उनकी जमीन हड़प लेते हैं, देश इसे बर्दाश्त नहीं करेगा। जब सीमावर्ती इलाकों में जनसांख्यिकी परिवर्तन होता है तो यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करता है। इन सबको देखते हुए हमने एक ‘हाईपावर डेमोग्राफी मिशन’ शुरू करने का फैसला किया है।”

1. पश्चिम बंगाल दौरा : ‘वेलफेयर फंड का इस्तेमाल घुसपैठ में हो रहा’
15 अगस्त 2025 के बाद 22 अगस्त 2025 को पीएम मोदी ने कोलकाता में एक रैली की। यहां उन्होंने सत्ताधारी पार्टी तृणमूल कांग्रेस पर आरोप लगाया कि वह राज्य में अवैध घुसपैठ करवा रही है और इसके लिए सरकार के कल्याणकारी योजनाओं पर लगने वाले फंड का गलत इस्तेमाल कर रही है। इसके चलते राज्य की डेमोग्राफी चेंज हो रही है।
“सीमा क्षेत्रों में डेमोग्राफी बदली जा रही है… अवैध घुसपैठ के माध्यम से बंगाल की पहचान और स्थानीय लोगों के अधिकारों को खतरा है। टीएमसी वेलफेयर फंड्स को कैडर पर खर्च कर डेमोग्राफी चेंज कर रही है।” – पीएम मोदी
क्या बोला विपक्ष: टीएमसी ने प्रेसनोट जारी करके कहा- ”पीएम का बयान चुनावी डर फैलाने का हथकंडा है, जो स्वतंत्रता दिवस भाषण से प्रेरित है, जहां उन्होंने घुसपैठियों को नया दुश्मन बताया। यह सिर्फ एक और जुमला है, जो बंगाल की एकता को तोड़ने की कोशिश है।”
पश्चिम बंगाल में उपले बनाने ले जाती महिला (साभार इंटरनेट)

पश्चिम बंगाल में उपले बनाने ले जाती महिला (साभार इंटरनेट)

फैक्ट जानें-
  • 2011 की जनगणना के अनुसार, पश्चिम बंगाल में मुस्लिम आबादी 27% है, जो 2001 के 25% से मामूली वृद्धि दर्शाती है।
  • बांग्लादेश से घुसपैठ के दावे पुराने हैं, 1950 से 1970 के दशक में घुसपैठ चरम पर थी, बंग्लादेश बनने के बाद स्थिति नियंत्रित हुई।
  • हालिया डेटा (UDISE और NCRB) में कोई बड़े पैमाने पर घुसपैठ का प्रमाण नहीं मिलता।
  • फैक्ट-चेक रिपोर्ट्स (जैसे द फेडरल, 2025) के मुताबिक, 1971 से 2011 के बीच आबादी वृद्धि 2.06 गुना रही है, जो राष्ट्रीय औसत 2.2 गुना से कम है। साथ ही, अधिकांश वृद्धि प्राकृतिक है, न कि घुसपैठ से।

2. असम दौरा : घुसपैठियों को कांग्रेस ने जमीन दे दी
14 सितंबर 2025 को असम के गोलाघाट और दर्रांग में आयोजित रैली के दौरान मोदी ने कांग्रेस पर वोट बैंक के लिए घुसपैठियों को जमीन देने का आरोप लगाया। साथ ही कहा कि इसकी वजह से स्थानीय और आदिवासी पहचान को नुकसान पहुंच रहा है। उन्होंने यहां डेमोग्राफी मिशन का जिक्र दोहराया।
“कांग्रेस ने वोट बैंक की लालच में घुसपैठियों को जमीन देकर असम की डेमोग्राफी बदल दी… यह स्थानीय लोगों और आदिवासियों की पहचान के लिए खतरा है। केंद्र ‘डेमोग्राफी मिशन’ लॉन्च करने जा रहा है ताकि घुसपैठ रोकी जा सके।” – पीएम मोदी
क्या बोला विपक्ष: इसकी प्रतिक्रिया में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा था कि “मोदी जी का घुसपैठ का दावा केवल चुनावी डर फैलाने का हथकंडा है। असम में डेमोग्राफी चेंज का कोई ठोस प्रमाण नहीं है।”
असम में चाय के बागान में काम करती महिला (साभार इंटरनेट)

असम में चाय के बागान में काम करती महिला (साभार इंटरनेट)

फैक्ट जानें-
  • असम में 1911-1921 के दौरान अंग्रेजी सरकार की ‘ग्रो मोर फूड’ पॉलिसी के चलते जनसंख्या 20.5% की दर से बढ़ी। इस नीति का उद्देश्य खाद्य उत्पादन बढ़ाना था, जिसके लिए बंगाल (वर्तमान बांग्लादेश क्षेत्र) से किसानों को असम के ब्रह्मपुत्र घाटी में बसाया गया। ये मुख्य रूप से मुस्लिम किसान थे।
  • 1947 के विभाजन और 1950 के बंगाल-पूर्वी पाकिस्तान दंगों के बाद शरणार्थी असम में आए। इनमें हिंदू और मुस्लिम दोनों शामिल थे, लेकिन मुस्लिम शरणार्थियों की संख्या अधिक थी। 1951-1961 में जनसंख्या में 34.9% वृद्धि हुई, जो राजनीतिक अस्थिरता और शरणार्थी संकट से प्रभावित थी, न कि अवैध घुसपैठ से।
  • 1991-2011 में वृद्धि दर 23% से घटकर 17% हो गई, जो घुसपैठ के बड़े पैमाने का संकेत नहीं देती। 2011 जनगणना में मुस्लिम आबादी 34% है, लेकिन NRC (2019) में केवल 1.9 मिलियन संदिग्ध पाए गए, जिनमें अधिकांश बंगाली हिंदू/मुस्लिम थे।
  • फैक्ट-चेक (आउटलुक इंडिया, 2024; द फेडरल, 2025) बताते हैं कि आबादी वृद्धि प्राकृतिक और प्रवासन से है, इसमें ‘कांस्पिरेसी’ का कोई ठोस प्रमाण नहीं।
  • असम सरकार की ‘मिशन बसुंधरा’ (भूमि वितरण योजना) ने सभी पात्र नागरिकों को पट्टे दिए, लेकिन जमीन को घुसपैठियों को बांट देने का दावा अतिरंजित लगता है।

3. बिहार दौरा : घुसपैठियों के समर्थन में विपक्ष ने रैलियां कीं
बिहार के पूर्णिया में 15 सितंबर 2025 को मोदी ने कांग्रेस-आरजेडी पर घुसपैठियों को बचाने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि विपक्ष उन्हें बचाने के लिए रैलियां कर रहा है जो सीमांचल और पूर्वी भारत में डेमोग्राफी संकट पैदा कर रहे हैं। उन्होंने इसे स्थानीय पहचान और महिलाओं की सुरक्षा से भी जोड़ा।
“कांग्रेस-आरजेडी ने बिहार की पहचान और सम्मान को खतरे में डाल दिया… सीमांचल और पूर्वी भारत में घुसपैठियों से डेमोग्राफी संकट पैदा हो गया है, जो बहनों-बेटियों की सुरक्षा के लिए खतरा है। हम घुसपैठियों को हटाने के लिए डेमोग्राफी मिशन चलाएंगे।” – पीएम मोदी
क्या बोला विपक्ष: राजद नेता तेजस्वी यादव ने कहा, “मोदी जी का घुसपैठ का नाटक बिहार की सच्ची समस्याओं से ध्यान भटकाने का है। डेमोग्राफी चेंज का कोई सबूत नहीं; यह मुस्लिम-यादव वोट बैंक को डराने की साजिश है। आरजेडी बिहार की पहचान की रक्षा करेगी।”
बिहार के खगड़िया जिले का एक दृश्य (साभार इंटरनेट)

बिहार के खगड़िया जिले का एक दृश्य (साभार इंटरनेट)

 

फैक्ट जानें-

  • बिहार का बांग्लादेश से सीधा भौगोलिक संपर्क नहीं है, और पश्चिम बंगाल के रास्ते होने वाली किसी भी संभावित घुसपैठ का कोई ठोस प्रमाण नहीं मिला है।
  • SIR (स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन) 2025, बिहार के वोटर लिस्ट अपडेशन का हिस्सा, में विवाद हुआ, लेकिन डेटा में डेमोग्राफी चेंज का कोई बड़ा पैटर्न नहीं दिखा। 2011 की जनगणना में मुस्लिम आबादी 17% थी, जो 2001 के 16.5% से मामूली वृद्धि दर्शाती है, जो प्राकृतिक वृद्धि और आंतरिक प्रवास से मेल खाती है।
  • बिहार में जनसंख्या वृद्धि का एक प्रमुख कारण उच्च जन्म दर रही है। 1971 से 2011 के बीच, बिहार की आबादी 3.57 गुना बढ़ी, जो राष्ट्रीय औसत (2.2 गुना) से अधिक है। यह ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी परिवारों की परंपरा, शिक्षा और जागरूकता की कमी, और स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार से जुड़ी है, जिसने मृत्यु दर को कम किया लेकिन जन्म दर को ऊंचा रखा।
  • 2011 की जनगणना के अनुसार, बिहार की प्रजनन दर (TFR – Total Fertility Rate) 3.7 थी, जो राष्ट्रीय औसत (2.4) से कहीं अधिक थी। यह प्राकृतिक वृद्धि का स्पष्ट संकेत है।

मणिपुर-मिजोरम दौरा : जहां सीमाई आवाजाही है, वहां इसे मुद्दा नहीं बनाया
अशांति के बीच मणिपुर की महिलाएं ( सांकेतिक तस्वीर)

अशांति के बीच मणिपुर की महिलाएं ( सांकेतिक तस्वीर)

मणिपुर और मिजोरम में हाल के वर्षों में पड़ोसी मुल्क म्यांमार की अस्थिरता के चलते शरणार्थी संकट और सीमाई आवाजाही बढ़ी है। इन दोनों राज्यों की म्यांमार से खुली सीमा और सांस्कृतिक समानताएं हैं। मणिपुर सीमा से 16 किमी तक बिना वीजा म्यांमार में आवाजाही की अनुमति भी है (FMR)। इसके अलावा मणिपुर ढाई साल से जातीय हिंसा में फंसा हुआ है, जिससे यहां आंतरिक विस्थापन बहुत अधिक है। 13 सितंबर 2025 को पीएम ने दोनों राज्यों का दौरा किया, लेकिन यहां डेमोग्राफी चेंज व घुसपैठ का मुद्दा नहीं उठाया। विशेषज्ञ मोदी के इस कदम के निम्न कारण बताते हैं –

  • मणिपुर और मिजोरम में जातीय विविधता (मेइती, कुकी, नागा, मिजो आदि) और म्यांमार सीमा से सटे होने के कारण घुसपैठ एक संवेदनशील मुद्दा है। इन राज्यों में डेमोग्राफी चेंज का जिक्र सांप्रदायिक तनाव या गलतफहमी को बढ़ा सकता था, खासकर मणिपुर में मई 2023 से जारी जातीय हिंसा के बाद।
  • मणिपुर में केंद्रीय बल तैनात हैं, लेकिन राष्ट्रपति शासन नहीं है; इससे पहले भाजपा की सरकार स्थानीय पार्टियों (एनपीपी, एनपीएफ) की निर्भरता पर चल रही थी। मिजोरम में जेडीपी (MNF का सहयोगी) सत्ता में है, जो ईसाई बहुल राज्य में भाजपा के लिए सहयोगी है। डेमोग्राफी चेंज का मुद्दा सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ा सकता था, जो इन गठबंधनों को नुकसान पहुंचाता।
  • असम और बंगाल में विपक्षी दलों (कांग्रेस, टीएमसी) को निशाना बनाया गया, लेकिन मणिपुर-मिजोरम में सहयोगी दलों के साथ सामंजस्य बनाए रखना जरूरी था।
  • मणिपुर और मिजोरम में घुसपैठ का मुद्दा असम या बंगाल जितना ऐतिहासिक रूप से प्रचारित नहीं है। म्यांमार से शरणार्थी (ज्यादातर चिन ईसाई) आते हैं, लेकिन यह बांग्लादेशी घुसपैठ से अलग है, जो पीएम के डेमोग्राफी नरेटिव में केंद्र में है।
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आखिर मोदी किसको घुसपैठिया मानते हैं?
पीएम मोदी और भाजपा के बयानों में “घुसपैठिया” (infiltrators) शब्द का उपयोग मुख्य रूप से अवैध प्रवासियों के लिए किया जाता है। कुछ बयानों में उन्होंने ‘कपड़ों से पहचान’, ‘ज्यादा बच्चे पैदा करने वाले’ जैसे वाक्यों के जरिए जो संकेत दिए हैं, उसके चलते आम राय है कि ये मुस्लिम समुदाय (विशेषकर बांग्लादेशी मूल के बंगाली मुसलमानों) को निशाना बनाता रहा है। ईसाई समुदाय पर प्रत्यक्ष हमले कम हैं, लेकिन कुछ बयानों में ईसाई मिशनरियों को “कन्वर्जन” के लिए घुसपैठिया जैसा चित्रित किया गया है। मोदी के ऐसे बयान अक्सर चुनावी संदर्भ में दिए गए, जो सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा देते हैं। 
एक मजार के पास खेलते मुस्लिम बच्चे (सांकेतिक तस्वीर)

एक मजार के पास खेलते मुस्लिम बच्चे (सांकेतिक तस्वीर)

 

1- 21 अप्रैल 2024 : जिनके ज्यादा बच्चे हैं…

“आज इनका [कांग्रेस का] घोषणा पत्र आया है। इनका वचन पत्र आया है। इनका मेनिफेस्टो आया है। मैंने देखा है। क्या लिखा है? इनकी बहन-बेटियों को, इनके मां-बहनों को, इनके परिवार को इनकी संपत्ति से वंचित करने का प्लान कर रहे हैं। इनकी नजर आपकी संपत्ति पर है। आपकी संपत्ति का जो हिस्सा है, जो आपकी मां-बहनों को मिलना चाहिए, वो हिस्सा, इनकी नजर उस हिस्से पर है। इनकी नजर उन लोगों पर है जो बाहर से आए हैं, जिनके पास ज्यादा बच्चे हैं, उनको आपकी संपत्ति बांटने का प्लान है।” – पीएम मोदी, राजस्थान के बांसवाड़ा रैली।
2- 11 मई 2024 : घुसपैठियों की जिहादी माइंडसेट है..
“झारखंड में आज हमारा धर्म निभाना मुश्किल हो गया है। हमारे देवताओं के मूर्ति तोड़ी जा रही हैं। घुसपैठियों का जिहादी माइंडसेट है, वे गैंग बनाकर हमला कर रहे हैं, लेकिन झारखंड सरकार दूर से उनका समर्थन कर रही है। इन घुसपैठियों ने हमारी बहनों और बेटियों की सुरक्षा को खतरे में डाल दिया है।” – मोदी, झारखंड के चतरा में रैली। 
3- 19 मई 2024 : टीएमसी घुसपैठियों को गले लगाती..
“टीएमसी की तुष्टिकरण नीति ने बंगाल की जनसांख्यिकी को बिगाड़ दिया है। घुसपैठ ने राज्य की जनसांख्यिकी को प्रभावित किया है। टीएमसी अन्य राज्यों के लोगों को ‘बाहरी’ कहती है। लेकिन वह घुसपैठियों को गले लगाती है।” – मोदी, पश्चिम बंगाल की मेदिनीपुर रैली।

4-  25 मई 2024 : घुसपैठिए अदृश्य दुश्मन …

“अवैध घुसपैठियों ने हमारी बहनों और बेटियों की सुरक्षा को खतरे में डाल दिया है। ये घुसपैठिए अदृश्य दुश्मन की तरह समाज को बांट रहे हैं। कांग्रेस और विपक्ष इनका समर्थन कर रहे हैं, जिससे हमारी एकता खतरे में है।” – मोदी, उत्तर प्रदेश की गाजीपुर रैली।

5- 15 दिसंबर 2019 : कपड़ों से ही पहचाना जा सकता है…

“सीएए से किसी की नागरिकता नहीं  जाएगी, यह सिर्फ उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों (हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी, ईसाई) को नागरिकता देने के लिए है। जो हिंसा फैला रहे हैं,उन्हें उनके कपड़ों से ही पहचान लिया जा सकता है। हमारी सरकार देश की एकता और अखंडता की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।” – मोदी, सीएए के संदर्भ में झारखंड कीदुमका रैली का भाषण। 

बोलते पन्ने.. एक कोशिश है क्लिष्ट सूचनाओं से जनहित की जानकारियां निकालकर हिन्दी के दर्शकों की आवाज बनने का। सरकारी कागजों के गुलाबी मौसम से लेकर जमीन की काली हकीकत की बात भी होगी ग्राउंड रिपोर्टिंग के जरिए। साथ ही, बोलते पन्ने जरिए बनेगा .. आपकी उन भावनाओं को आवाज देने का, जो अक्सर डायरी के पन्नों में दबी रह जाती हैं।

चुनावी डायरी

बिहार में किसके वोट कहां शिफ्ट हुए? महिला, मुस्लिम, SC–EBC के वोटिंग पैटर्न ने कैसे बदल दिया नतीजा?

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नीतीश कुमार 9 बार सीएम बन चुके हैं और इस बार भी उनके ही चेहरे पर चुनाव लड़ा गया और अप्रत्याशित जीत मिली।
नीतीश कुमार 9 बार सीएम बन चुके हैं और इस बार भी उनके ही चेहरे पर चुनाव लड़ा गया और अप्रत्याशित जीत मिली।
  • महागठबंधन का वोट शेयर प्रभावित नहीं हुआ पर अति पिछड़ा, महिला व युवा वोटर उन पर विश्वास नहीं दिखा सके।

नई दिल्ली| महक अरोड़ा

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों ने साफ कर दिया है कि इस बार की लड़ाई सिर्फ सीटों की नहीं थी—बल्कि वोटिंग पैटर्न, नए सामाजिक समीकरण, और वोट के सूक्ष्म बदलावों की थी।

कई इलाकों में वोट शेयर में बड़ा बदलाव नहीं दिखा, लेकिन सीटें बहुत ज्यादा पलट गईं। यही वजह रही कि महागठबंधन (MGB) का वोट शेयर सिर्फ 1.5% गिरा, लेकिन उसकी सीटें 110 से घटकर 35 पर आ गईं।

दूसरी ओर, NDA की रणनीति ने महिलाओं, SC-EBC और Seemanchal के वोट पैटर्न में बड़ा सेंध लगाई, जो इस प्रचंड बहुमत (massive mandate) की असली वजह माना जा रहा है।

 

महिला वोटर बनीं Kingmaker, NDA का वोट शेयर बढ़ाया

बिहार में इस बार महिलाओं ने 8.8% ज्यादा रिकॉर्ड मतदान किया:

  • महिला वोटिंग: 71.78%
  • पुरुष वोटिंग: 62.98%

(स्रोत- चुनाव आयोग)

महिला वोटर वर्ग के बढ़े हुए मतदान का सीधा फायदा NDA विशेषकर जदयू को हुआ, जिसने पिछली बार 43 सीटें जीती और इस बार 85 सीटों से दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी।


 

वोट शेयर का गणित — MGB का वोट कम नहीं हुआ, पर सीटें ढह गईं

  • NDA Vote share: 46.5%
    MGB Vote share: 37.6%

2020 की तुलना में: 9.26% ज्यादा वोट NDA को पड़ा

  •  NDA के वोट share में बड़ी बढ़त – 37.26%
  •  MGB का वोट share सिर्फ 1.5% गिरा – 38.75%
  •  पर महागठबंधन की सीटें 110 → 35 हो गईं

(स्रोत- चुनाव आयोग)

यानी इस चुनाव में महागठबंधन का वोट प्रतिशत लगभग बराबर रहा पर वे वोट शेयर को सीटों में नहीं बदल सके।

यह चुनाव vote consolidation + social engineering + seat-level micro strategy का चुनाव था।


 

SC वोटर ने NDA का रुख किया — 40 SC/ST सीटों में 34 NDA के खाते में

बिहार की 40 आरक्षित सीटों (38 SC + 2 ST) में NDA ने लगभग क्लीन स्वीप किया:

  •  NDA: 34 सीट
  •  MGB: 4 सीट (2020 में NDA = 21 सीट)

(स्रोत- द इंडियन एक्सप्रेस)

सबसे मजबूत प्रदर्शन JDU ने किया—16 में से 13 SC सीटें जीतीं। BJP ने 12 में से सभी 12 सीटें जीत लीं।

वहीं महागठबंधन के लिए यह सबसे खराब प्रदर्शन रहा — RJD 20 SC सीटों पर लड़कर भी सिर्फ 4 ला सकी।

RJD का वोट शेयर SC सीटों में सबसे ज्यादा (21.75%) रहा, लेकिन सीटें नहीं मिल सकीं।

वोट share और seat conversion में यह सबसे बड़ा असंतुलन रहा।


 

मुस्लिम वोट MGB और AIMIM के चलते बंटा, NDA को फायदा हुआ

सीमांचल – NDA ने 24 में से 14 सीटें जीत लीं

सीमांचल (Purnia, Araria, Katihar, Kishanganj) की 24 सीटों पर इस बार सबसे दिलचस्प तस्वीर दिखी।

मुस्लिम वोट महागठबंधन और AIMIM में बंट गए, और इसका सीधा फायदा NDA को मिला।

  • NDA: 14 सीट
  • JDU: 5
  • AIMIM: 5
  • INC: 4
  • RJD: सिर्फ 1
  • LJP(RV): 1

 

सबसे कम मुस्लिम विधायक विधानसभा पहुंचेंगे – सूबे में 17.7% मुस्लिम आबादी के बावजूद इस बार सिर्फ 10 मुस्लिम विधायक विधानसभा पहुंचे — 1990 के बाद सबसे कम।

  • यह NDA की सामाजिक इंजीनियरिंग, EBC–Hindu consolidation और मुस्लिम वोटों के बंटवारे का संयुक्त परिणाम है।
  • EBC–अति पिछड़ा वोट NDA के साथ गया — MGB की सबसे बड़ी हार की वजह
  • अतिपिछड़ा वर्ग (EBC) बिहार में सबसे बड़ा वोट बैंक है। इस बार ये पूरा वोट NDA के पक्ष में चला गया।
  • JDU की परंपरागत पकड़ + BJP का Welfare Model मिलकर EBC वर्ग में मजबूत प्रभाव डाल गए।
  • यही वोट EBC बेल्ट (मिथिला, मगध, कोसी) में NDA को करारी बढ़त देने का कारण बना।

 


 

रिकॉर्ड संख्या में निर्दलीय लड़े पर नहीं जीत सके

Independent उम्मीदवारों की रिकॉर्ड संख्या — 925 में से 915 की जमानत जब्त

इस चुनाव में:

  •  कुल उम्मीदवार: 2616
  •  Independent: 925
  •  जमानत ज़ब्त: 915 (98.9%)

ECI ने ज़ब्त हुई जमानतों से 2.12 करोड़ रुपये कमाए

 

क्यों इतने Independent मैदान में उतरे?
1. पार्टियों ने पुराने नेताओं के टिकट काटे
2. कई स्थानीय नेताओं ने बगावत कर दी
3. कई सीटों पर बिखराव की वजह बने

VIP, CPI, AIMIM, RJD, INC – हर पार्टी के बड़ी संख्या में उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई।

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दुनिया गोल

युद्ध के चलते बर्बाद हो चुके गज़ा में हमास किस तरह शवों को सुरक्षित रख रहा?

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हमास के सशस्त्र समूह के सदस्य दक्षिणी गजा पट्टी के खान यूनिस में बंधकों के शवों की तलाश करते हुए।
हमास के सशस्त्र समूह के सदस्य दक्षिणी गजा पट्टी के खान यूनिस में बंधकों के शवों की तलाश करते हुए।
  • 11 साल बाद हमास ने इज़रायल को लौटाया एक लेफ्टिनेंट का शव।
  • हाल के शांति समझौते के तहत हमास शव व अवशेष लौटा रहा है।

नई दिल्ली | महक अरोड़ा

गज़ा युद्ध (2014) में मारे गए इज़रायली सैनिक लेफ्टिनेंट हदार गोल्डिन का शव 11 साल बाद आखिरकार इज़रायल को सौंप दिया गया। हमास ने यह शरीर दक्षिणी गज़ा में रेड क्रॉस को दिया, जिसके बाद इसे इज़रायल डिफेंस फोर्स (IDF) के हवाले कर दिया गया।

गोल्डिन की मौत 1 अगस्त 2014 को हुई थी—उसी दिन जब हमास ने उनके यूनिट पर हमला कर उन्हें अगवा कर लिया था। बाद में उनकी हत्या कर दी गई। वे 23 वर्ष के थे और ‘ऑपरेशन प्रोटेक्टिव एज’ के दौरान मारे गए 68 इज़रायली सैनिकों में से एक थे।

IDF अबू कबीर फॉरेंसिक इंस्टीट्यूट में DNA परीक्षण के बाद पहचान की औपचारिक पुष्टि करेगा, जिसके बाद उन्हें राष्ट्रीय सम्मान दिया जाएगा।

 

अब सबसे बड़ा सवाल—हमास ने 11 साल तक शव कैसे सुरक्षित रखा?

क्या गज़ा में आधुनिक शव संरक्षण की सुविधा है?

नहीं।

गज़ा पट्टी में:

  •  कोई उन्नत कोल्ड-स्टोरेज सुविधा नहीं
  •  कोई दीर्घकालीन पॉस्टमॉर्टम प्रिज़र्वेशन सिस्टम नहीं
  •  लगातार बमबारी से मेडिकल सिस्टम ध्वस्त

यहां तक कि हालिया युद्ध में शव रखने के लिए आइस-क्रिम ट्रक इस्तेमाल किए गए—क्योंकि अस्पतालों की मोर्चरी सिर्फ 8–10 शव ही रख सकती है।

 

तो 11 साल पुरानी बॉडी कैसे बची?

विशेषज्ञों के अनुसार इसके चार संभावित कारण हो सकते हैं:

हमास विशेष “सीलबंद भूमिगत चैंबर” का उपयोग करता है

हमास की सुरंगों में कई बार सीक्रेट स्टोरेज रूम मिले हैं, जिनमें:

  • बेहद कम तापमान
  • गहराई के कारण प्राकृतिक ठंडक
  • हवा बंद वातावरण
  • धातु के एयरटाइट कंटेनर

ऐसी जगहें शव को लंबे समय तक सड़ने नहीं देतीं।

 

1. ‘वैक्यूम पैकिंग’- गज़ा में हथियारों की तरह शव भी पैक किए जाते हैं

कई रिपोर्ट्स में कहा गया है कि हमास:

  • शवों को प्लास्टिक व रबर-सील पैकिंग में बंद करता है
  • अंदर ऑक्सीजन बिल्कुल नहीं पहुंचती
  • ऑक्सीजन न मिलने पर शरीर तेजी से नहीं सड़ता

ये तकनीक हथियारों को स्टोर करने में भी उपयोग होती है।

 

2.शरीर पूरी तरह डिकम्पोज नहीं हुआ—सिर्फ “अस्थियाँ” संरक्षित की गईं

इज़रायल कई मामलों में “रेट्रीवल” के समय सिर्फ:

  • हड्डियाँ
  • कपड़ों के अवशेष
  • डीएनए के अंश पाता है।

संभव है कि गोल्डिन का शव भी वर्षों पहले डिकम्पोज हो चुका था और हमास ने केवल अस्थियाँ संरक्षित रखी हों।

 

3.गहरे भूमिगत “पॉकेट्स” में प्राकृतिक ममीकरण

गज़ा की कुछ सुरंगों में:

  • हवा स्थिर
  • तापमान नियंत्रित
  • नमी बेहद कम

ऐसी जगहों में शव “नेचुरल ममी” जैसा रूप ले लेते हैं और दशक भर टिके रहते हैं।

 

4. गज़ा की सच्चाई—शव रखने के लिए आइस-क्रिम ट्रक!

Reuters की रिपोर्ट में बताया गया:

अस्पताल मोर्चरी सिर्फ 10 शव रख सकती है

  • ट्रकों के अंदर बच्चों की आइस-क्रिम के पोस्टर लगे होते हैं
  • अंदर सफ़ेद कपड़ों में लाशें भरी होती हैं
  • कई जगह 100 शवों की मास ग्रेव तैयार हुई

5. 20–30 शव टेंट में रखे जा रहे हैं

गज़ा के डॉक्टर यासिर अली ने कहा, “अगर युद्ध चलता रहा, तो दफनाने के लिए भी जगह नहीं बचेगी।”

इज़रायल में क्या हुआ? शव मिलने पर भावनात्मक लहर

  • गोल्डिन की तस्वीर 11 साल से नेतन्याहू के दफ़्तर में लगी थी
  • सैन्य कब्रिस्तान में इतना भारी जनसैलाब उमड़ा कि कई इलाकों में जाम लग गया
  • सेना ने इसे “राष्ट्रीय सम्मान का क्षण” बताया
  • अंतिम संस्कार देखने हजारों लोग पहुंचे

 

नेतन्याहू ने सैनिक से शव वापसी को बनाया था राजनीतिक मुद्दा 

इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा, “राज्य की स्थापना से हमारी परंपरा है—युद्ध में शहीद हुए सैनिकों को हर हाल में घर लाया जाता है। हदार गोल्डिन की स्मृति सदैव हमारे बीच रहेगी।”

उन्होंने बताया कि 255 बंधकों में से अब तक 250 वापस लाए जा चुके हैं। गोल्डिन उन आखिरी पाँच शवों में से एक थे, जो गज़ा में फंसे थे।

 

परिवार का 11 साल लंबा इंतजार

गोल्डिन के परिवार ने वर्षों तक अभियान चलाया था। उनका कहना था कि, “हमारे बेटे को वापस लाना, इज़रायल की सैनिक परंपरा का मूल हिस्सा है।” इज़रायली सेना प्रमुख ने भी परिवार को “तीव्र प्रयास” का भरोसा दिया था।

 

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रिसर्च इंजन

SIR के खिलाफ एकजुट हो रहे दक्षिण के राज्य, क्या असर होगा?

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  • 11 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट में SIR के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई होगी।
नई दिल्ली|
पूरे देश में वोटर लिस्ट की गहन जांच कराने की प्रक्रिया (SIR) शुरू हो चुकी है। तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश ने इसका खुला विरोध किया है। आंध्र प्रदेश की सरकार SIR के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच गई है। SIR से जुड़ी राज्य समेत अन्य याचिकाओं पर आगामी 11 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करने जा रहा है। ऐसे में यह समझना महत्वपूर्ण हो जाता है कि दक्षिण के राज्यों के SIR के खिलाफ एकजुट होने का असर भारतीय राजनीति पर कैसा पड़ सकता है। 
तमिलनाडु : 11 नवंबर को पूरे राज्य में विरोध प्रदर्शन निकालेगी सरकार
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने शनिवार को एक वर्चुअल मीटिंग में अपनी पार्टी DMK (द्रविड़ मुनेत्र कड़गम) के मंडल सचिवों से कहा कि 11 नवंबर को सभी जिलों में SIR के विरोध में प्रदर्शन निकाले। उन्होंने 9 नवंबर को ट्वीट किया-
“SIR तमिलनाडु के 7 करोड़ वोटरों के अधिकारों को खतरे में डाल रहा है। यह भाजपा की साजिश है, जो वोट बैंक को प्रभावित करने के लिए डिजाइन की गई है।” 
बता दें कि तमिलनाडु में SIR का पहला चरण 9 दिसंबर को ड्राफ्ट रोल प्रकाशित कर शुरू होगा। इसके खिलाफ DMK ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। तमिलनाडु में DMK का वोट शेयर 40% है, और SIR विरोध इसे और बढ़ा सकता है। लेकिन, BJP ने तमिल सरकार के स्टैंड को ‘प्रचार स्टंट’ बताया है। 
केरल : निकाय चुनाव पर असर डालेगी, विरोध में तमिल का साथ दिया
मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने बीते 5 नवंबर को ऑल-पार्टी मीटिंग में SIR को ‘अवैज्ञानिक’ और ‘दुर्भावनापूर्ण’ बताते हुए कानूनी चुनौती की घोषणा की। साथ ही, इस मुद्दे पर तमिलनाडु के साथ एकजुटता जताई। केरल सरकार का कहना है कि इसकी टाइमिंग, अगले साल होने वाले स्थानीय निकाय चुनाव में बाधा डालेगी क्योंकि BLO का निकाय चुनाव से जुड़ा काम शुरू हो गया है। केरल सरकार भी इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी में है।
कर्नाटक : SIR के खिलाफ संगठित हुए संगठन
यहां एक महीने पहले ही करीब सिविल सोसायटी, राजनीतिक दल, महिला समूह, युवा समूहों को मिलाकर करीब सौ ग्रुपों ने SIR के खिलाफ अभियान शुरू कर दिया था। इनका कहना है कि यह NRC यहां की कांग्रेस सरकार पहले ही SIR पर अपना विरोधी रुख स्पष्ट कर चुकी है।
आंध्र प्रदेश : विपक्षी पार्टी ने इसे आदिवासी वोटरों के खिलाफ साजिश बताया
यहां YSR congress party ने इसे ‘आदिवासी वोटरों को हटाने की साजिश’ बताया है। हालांकि तेलुगु देशम पार्टी यहां सत्ता में है जिसने केंद्र में मोदी के नेतृत्व वाली NDA सरकार को समर्थन दिया है। ऐसे में राज्य सरकार का रूख SIR के समर्थन में है। 
क्या कहते हैं विशेषज्ञ  
द हिंदू के अनुसार, SIR को लेकर दक्षिण में एक ‘टेस्ट केस’ माना जा रहा है, जहां वोटर मोबिलाइजेशन प्रभावित हो सकता है। DMK का तर्क है कि SIR 2002 के बाद पहली बार हो रही है, फिर भी इसे जल्दबाजी में कराया जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि SIR के खिलाफ एकता दक्षिणी राज्यों को सियासी ताकत दे सकती है।
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