दुनिया गोल
पेरिस समझौते के 10 साल! 1.5 डिग्री का लक्ष्य ‘टूटा’, अब Trump के बिना COP30 से क्या उम्मीद?
नई दिल्ली |
आज (सोमवार, 10 नवंबर) से ब्राजील (Brazil) के बेलेम (Belém) शहर में दुनिया भर के नेताओं का सबसे बड़ा जलवायु सम्मेलन COP30 शुरू हो रहा है। 200 देशों के 50,000 से अधिक प्रतिनिधि (delegates) 21 नवंबर तक जलवायु परिवर्तन (climate change) से निपटने के लिए चर्चा करेंगे।
यह सम्मेलन ऐसे समय में हो रहा है जब 2015 में अपनाए गए ऐतिहासिक पेरिस समझौते (Paris Agreement) के 10 साल पूरे हो रहे हैं। तब दुनिया ने वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रोकने का लक्ष्य रखा था और दुनिया के अधिकांश देशों ने इसे स्वीकार किया था। दस साल बाद दुनिया कहां खड़ी है, आइए समझते हैं?
पेरिस समझौता : दुनिया के ताप को 1.5 डिग्री सेल्सियस रखने का लक्ष्य
पेरिस समझौता 12 दिसंबर 2015 को पेरिस में अपनाया गया जो एक कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतरराष्ट्रीय संधि है और इस पर 194 देशों व यूरोपीय संघ ने हस्ताक्षर किए हैं। यह समझौता मूल रूप से वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने से जुड़ा है। साथ ही, पेरिस समझौता सभी देशों को वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रखने की कोशिश करने के लिए भी कहता है। यह 4 नवंबर 2016 को लागू हुआ।
क्यों जरूरी है वैश्विक तापमान को काबू में रखना
तब वैज्ञानिकों ने कहा था कि पूरी दुनिया में औद्योगिकीकरण (industrialization) शुरू होने के बाद से धरती का तापमान एक डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है। इस तापमान को हमें 2 डिग्री से नीचे रखना होगा क्योंकि अगर तापमान इससे ऊपर गया तो धरती की जलवायु में बड़ा बदलाव हो सकता है। जिसके असर से समुद्र तल की ऊंचाई बढ़ेगी। इससे बाढ़, जमीन धंसाव, सूखा व जंगलों में आग जैसी आपदाएं बढ़ सकती हैं।
पेरिस समझौता क्या फेल हुआ?
UN ने खुद माना है कि 2030 तक दुनिया का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से बढ़ना अब निश्चित है। हालांकि फिर भी पेरिस समझौते को फेल नहीं माना जा सकता। इस मामले में विशेषज्ञ कहते हैं कि पेरिस समझौते की सबसे बड़ी सफलता यह है कि जब इस पर हस्ताक्षर हुए थे, तब दुनिया का तापमान इस सदी के अंत तक यानी 2100 वर्ष तक 4 डिग्री सेल्सियस होने के रास्ते पर था। लेकिन इस समझौते के बाद बनी नीतियों के कारण इस सदी के अंत तक दुनिया का तापमान 2.3 डिग्री तक रह सकता है, ऐसा अनुमान UN की ताजा रिपोर्ट Emissions Gap Report 2025 में बताया गया है।
पेरिस समझौते का असर : स्वच्छ ऊर्जा की क्रांति आई
पेरिस समझौते ने स्वच्छ ऊर्जा (Clean Energy) में क्रांति ला दी है। 2025 की पहली छमाही में पहली बार रिन्यूएबल (Renewables) ने वैश्विक स्तर पर बिजली स्रोत के रूप में कोयले (coal) को पछाड़ दिया।
दस साल पहले सौर (Solar) और पवन (Wind) ऊर्जा को महंगा माना जाता था, इस साल ये बिजली की मांग को पूरा कर रही हैं। साथ ही, इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) की बिक्री भी तेजी से बढ़ी है।
COP30: ब्राजील में पुराने वादों पर मंथन
10 नवंबर से ब्राजील (Brazil) के अमेजन (Amazon) वर्षावन शहर बेलेम (Belém) में COP30 शुरू हो रहा है। यानी 30वां जलवायु शिखर सम्मेलन। इस सम्मेलन का मेजबान ब्राजील चाहता है कि इस बार नए वादों की बजाय, पुराने वादों (जैसे जीवाश्म ईंधन को खत्म करना) को लागू करने पर ध्यान दिया जाए। इस पहल के चलते पेरिस समझौते की शर्तों को लागू करने को लेकर मंथन होगा जो एक सकारात्मक कदम है।
क्लामेट समिट में नहीं शामिल होंगे ट्रंप
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) ने अपने पिछले कार्यकाल में अमेरिका को पेरिस समझौते से बाहर कर लिया था। साथ ही वे जलवायु परिवर्तन को “धोखा” बता चुके हैं और उन्होंने इस सम्मेलन में शामिल नहीं होने का फैसला किया है।
हालांकि, ट्रंप प्रशासन (Trump administration) के इस कदम के बावजूद, दर्जनों अमेरिकी नेता इसमें शामिल हो रहे हैं। इस तरह वे सम्मेलन में संदेश देना चाहते हैं कि जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में अमेरिका अब भी मौजूद है।
सबसे बड़ा एजेंडा: ‘पैसा’
इस बार का सबसे बड़ा मुद्दा ‘जलवायु वित्त’ (Climate Finance) है। अमीर देशों ने 2022 में 100 अरब डॉलर सालाना का लक्ष्य (target) पूरा किया था, लेकिन UN का कहना है कि यह नाकाफी है। COP30 में 2035 तक 300 अरब डॉलर सालाना के नए वित्तीय लक्ष्य को अंतिम रूप दिया जाना है। ट्रंप के पीछे हटने से इस लक्ष्य पर असर पड़ सकता है।
written by Mahak Arora
दुनिया गोल
Ukraine War: गज़ा के बाद अब यूक्रेन में शांति की ट्रंप योजना, शर्ते जानिए
- Gaza के बाद अब Ukraine पर Trump का नया प्लान, शांति के लिए रूस को देनी होगी जमीन
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NATO में शामिल नहीं होगा Ukraine, सेना की संख्या पर भी लगेगी 6 लाख की लिमिट
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रूस से हटेंगे सारे प्रतिबंध, लेकिन जंग नहीं रुकी तो भुगतने होंगे गंभीर अंजाम
नई दिल्ली |
अमेरिका (America) के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) ने गाजा के बाद अब यूक्रेन युद्ध को खत्म करने के लिए एक नया और चौंकाने वाला प्लान तैयार किया है। इस मसौदे (Draft) की रिपोर्ट अमेरिकी मीडिया में लीक होने से इस मामले का खुलासा हुआ है। इस ‘पीस प्लान’ का सीधा मतलब है- “जमीन के बदले यूक्रेन को शांति”।
इस लीक डॉफ्ट के हवाले से रिपोर्ट किया जा रहा है किॉ ट्रंप प्रशासन ने यूक्रेन (Ukraine) के सामने शर्त रखी है कि अगर उसे युद्ध रोकना है, तो उसे अपने देश का कुछ हिस्सा हमेशा के लिए रूस (Russia) को देना होगा। यूक्रेन सरकार ने इस योजना पर सधी हुई प्रतिक्रिया देते हुए कहा है-
“अमेरिकी पक्ष का आकलन है कि इस योजना से कूटनीति को पुनर्जीवित करने में मदद मिलेगी।”
यूक्रेन को छोड़नी होगी अपनी जमीन
इस ड्राफ्ट प्लान के मुताबिक, अमेरिका अब क्रीमिया (Crimea) और अन्य उन इलाकों को रूस का हिस्सा मानने को तैयार है, जिन पर अभी रूसी सेना का कब्जा है। यानी यूक्रेन को इन इलाकों से अपना दावा छोड़ना होगा। जहां अभी दोनों देशों की सेनाएं खड़ी हैं, वहीं पर युद्ध रोक दिया जाएगा और उसे नई सीमा मान लिया जाएगा।
NATO में शामिल होने पर ‘बैन’
ट्रंप के इस प्लान में यूक्रेन के लिए कई सख्त शर्तें हैं।
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NATO नो-एंट्री: यूक्रेन कभी भी नाटो (NATO) का सदस्य नहीं बनेगा।
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सेना पर रोक: यूक्रेन अपनी सेना को बहुत ज्यादा नहीं बढ़ा सकता। उसकी सेना में अधिकतम 6 लाख सैनिक ही हो सकेंगे।
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विदेशी सेना नहीं: यूक्रेन की धरती पर नाटो या किसी और देश की सेना तैनात नहीं होगी।
रूस को क्या फायदा मिलेगा?
अगर यह समझौता होता है, तो इससे रूस को बड़ी जीत मिलेगी क्योंकि इसकी कई बातें, पुतिन की शर्तों से मेल खाती हैं।
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रूस पर लगे सभी अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध (Sanctions) हटा दिए जाएंगे।
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रूस को फिर से दुनिया के व्यापार में शामिल किया जाएगा और वह अपना तेल-गैस आसानी से बेच सकेगा।
शर्त तोड़ी तो भुगतना होगा अंजाम
ट्रंप ने दोनों पक्षों को चेतावनी भी दी है।
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रूस के लिए: अगर समझौता होने के बाद रूस ने फिर हमला किया, तो अमेरिका उस पर दोबारा कड़े प्रतिबंध लगा देगा और यूक्रेन को और ज्यादा हथियार देगा।
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यूक्रेन के लिए: अगर यूक्रेन ने बिना वजह रूस के शहरों पर मिसाइल दागी, तो अमेरिका उसकी सुरक्षा की गारंटी खत्म कर देगा।
ज़ेलेंस्की तैयार, यूरोप हैरान
अमेरिकी अधिकारियों ने यह प्लान यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की (Volodymyr Zelensky) को सौंप दिया है। ज़ेलेंस्की ने कहा है कि वह शांति के लिए काम करने को तैयार हैं। लेकिन यूरोप (Europe) के कई देश इस प्लान से हैरान हैं। उनका मानना है कि अपनी जमीन रूस को दे देना यूक्रेन के लिए हार मानने जैसा होगा।
दुनिया गोल
COP30: दुनिया को बचाने के मकसद वाले जलवायु सम्मेलन में कोयला-पेट्रोल पर दो फाड़, क्या हो पाएगा समझौता?
- COP30 में 80 से ज्यादा देशों ने खोला मोर्चा, जीवाश्म ईंधन को खत्म करने के लिए मांगा ‘ठोस प्लान’
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मेजबान Brazil की कोशिशें हुईं नाकाम, Saudi Arabia समेत कई तेल उत्पादक देशों ने अड़ाया अड़ंगा
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गतिरोध तोड़ने के लिए EU ने दिया नया प्रस्ताव, Turkey करेगा अगले साल COP31 की मेजबानी
नई दिल्ली |
ब्राजील (Brazil) के बेलेम (Belem) शहर में चल रहे संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन यानी COP30 में भारी हंगामा देखने को मिला। धरती को बचाने के लिए बुलाई गई इस बैठक में दुनिया दो हिस्सों में बंटी नजर आई। 10 नवंबर से शुरू हुए इस वैश्विक सम्मेलन का आज (21 nov) को अंतिम दिन है और अभी तक कोई साझा घोषणापत्र पर सहमति नहीं बन सकी है।
एक तरफ 80 से ज्यादा देशों ने एकजुट होकर मांग की है कि दुनिया से पेट्रोल, डीजल और कोयले यानी जीवाश्म ईंधन को खत्म करने का पक्का ‘रोडमैप’ (Total Phase out) तैयार किया जाए, ऐसा न होने पर वे प्रस्ताव ब्लॉक कर देंगे।
वहीं, दूसरी तरफ सऊदी अरब (Saudi Arabia) समेत कई तेल उत्पादक देश इसके सख्त खिलाफ खड़े हो गए हैं। चीन और अमेरिका इस पर चुप्पी साधे हैं। इस खींचतान के कारण मेजबान ब्राजील शुरुआती समझौता कराने में विफल रहा है। अब देखना होगा कि अंतिम दिन मेजबान ब्राजील किस तरह सहमति बना पाता है या यह सम्मेलन बिना दुनिया के तापमान को बढ़ने से रोकने के आवश्यक कदम पर सहमति न बनाए बिना समाप्त हो जाएगा।
जलवायु संकट से जूझ रहे छोटे देशों की धमकी
द गार्जियन ने रिपोर्ट किया है कि कम से कम 28 देशों ने मेजबान ब्राजील को 20 नवंबर को पत्र लिखकर चेतावनी दी है कि अगर अंतिम समझौते में फॉसिल फ्यूल (जीवाश्म ईंधन) को पूरी तरह चरणबद्ध तरीके से खत्म करने (phase-out) का स्पष्ट और बाध्यकारी रोडमैप नहीं जोड़ा गया, तो वे पूरे प्रस्ताव को ब्लॉक कर देंगे।
ये देश कर रहे मांग
पूरी तरह प्राकृतिक ईंधन से इस्तेमाल को हटाने का समर्थन करने वाले देशों में यूरोपीय संघ, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, चिली, कोलंबिया, वनुआतु, तुवालु, मार्शल आइलैंड्स और अफ्रीकी देशों का बड़ा समूह शामिल है।
80 देशों ने बनाई ‘ग्लोबल कोलिशन’
सम्मेलन में अफ्रीका, एशिया, लैटिन अमेरिका और प्रशांत क्षेत्र के देशों ने यूरोपीय संघ (EU) और ब्रिटेन (UK) के साथ मिलकर एक वैश्विक गठबंधन बना लिया है। Marshall Islands की जलवायु दूत टीना स्टेज (Tina Stege) ने 20 मंत्रियों के साथ एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “हम सबको मिलकर एक रोडमैप के पीछे खड़ा होना होगा और इसे एक योजना में बदलना होगा।” यूके के ऊर्जा सचिव एड मिलिबैंड (Ed Miliband) ने भी जोर देकर कहा, “यह मुद्दा अब कालीन के नीचे नहीं छिपाया जा सकता। हम सब एक आवाज में कह रहे हैं कि जीवाश्म ईंधन से दूरी बनाना ही इस सम्मेलन का दिल होना चाहिए।”
सऊदी अरब बना ‘रोड़ा’
वानुअतु (Vanuatu) के जलवायु मंत्री राल्फ रेगेनवानु (Ralph Regenvanu) ने सीधे तौर पर दुनिया के सबसे बड़े तेल निर्यातक सऊदी अरब (Saudi Arabia) पर निशाना साधा। उन्होंने कहा, “मुझे लगता है कि समझौता बहुत मुश्किल होगा क्योंकि हमारे पास कुछ ‘ब्लॉकर्स’ हैं जो तेल और गैस छोड़ने की किसी भी योजना का विरोध कर रहे हैं।” छोटे द्वीपीय देशों का कहना है कि वे इस मुद्दे पर आखिरी दम तक लड़ेंगे क्योंकि अगर समुद्र का जलस्तर बढ़ा, तो उनका अस्तित्व ही मिट जाएगा।
आखिर क्या है COP30?
सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि यह बैठक क्या है। COP का मतलब है ‘कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज’ (Conference of Parties)। यह संयुक्त राष्ट्र (UN) की एक सालाना बैठक है जिसमें दुनिया भर के लगभग 200 देश शामिल होते हैं।
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मकसद: इसका मुख्य उद्देश्य धरती के बढ़ते तापमान को रोकना और जलवायु परिवर्तन से निपटना है।
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लक्ष्य: पेरिस समझौते के तहत दुनिया के तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा बढ़ने से रोकने पर आगे की योजना बनाना।
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जगह: इस बार यह 30वीं बैठक है, इसलिए इसे COP30 कहा जा रहा है और यह अमेजन के जंगल वाले शहर बेलेम में हो रही है।
मेजबान Brazil का प्लान फेल?
ब्राजील के राष्ट्रपति लूला (Lula da Silva) चाहते थे कि बुधवार तक ही जलवायु वित्त और ईंधन को लेकर एक बड़ा समझौता हो जाए, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। शुरुआत में ब्राजील ने ‘जीवाश्म ईंधन’ को आधिकारिक एजेंडे से बाहर रखा था, लेकिन भारी दबाव के बाद उसे एक ड्राफ्ट पेश करना पड़ा। हालांकि, कई देशों ने इस ड्राफ्ट को बहुत कमजोर बताया। अब राष्ट्रपति लूला आखिरी दो दिनों में किसी नतीजे पर पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं।
EU ने दिया ‘बीच का रास्ता’
इस गतिरोध को तोड़ने के लिए यूरोपीय संघ (EU) ने बुधवार देर रात एक नया प्रस्ताव रखा है। इसमें सुझाव दिया गया है कि देश जीवाश्म ईंधन को छोड़ने के लिए एक रोडमैप तो पेश करें, लेकिन यह ‘गैर-बाध्यकारी’ (Non-prescriptive) होना चाहिए। इसका मतलब है कि किसी भी देश पर कोई विशिष्ट नियम जबरदस्ती नहीं थोपा जाएगा, बल्कि वे विज्ञान के आधार पर खुद तय करेंगे।
तुर्किये करेगा COP31 की मेजबानी
इस तनातनी के बीच एक कूटनीतिक सफलता भी मिली है। ऑस्ट्रेलिया (Australia) के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज (Anthony Albanese) ने पुष्टि की है कि अगले साल के जलवायु सम्मेलन यानी COP31 की मेजबानी को लेकर सहमति बन गई है। इसके तहत तुर्किये (Turkey) अगले साल के सम्मेलन की मेजबानी करेगा, जबकि ऑस्ट्रेलिया सरकारों के बीच बातचीत का नेतृत्व करेगा।
दुनिया गोल
Ops सिंदूर के बाद राफेल विमानों को AI के जरिए बदनाम कर रहा था चीन : अमेरिकी रिपोर्ट में खुलासा
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US रिपोर्ट में खुलासा: चीन ने AI का इस्तेमाल कर राफेल के खिलाफ फैलाया झूठ
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J-35 को बेचने के लिए भारत के राफेल विमानों को बताया था ‘नष्ट’
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पाकिस्तान को बनाया हथियारों की ‘प्रयोगशाला’, भारतीय जनरल के दावे पर लगी मुहर
नई दिल्ली |
पाक के खिलाफ हुए ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारतीय विमानों को लेकर सोशल मीडिया पर चलाए गए दुष्प्रचार के पीछे चीन का हाथ था। ऐसा दावा अमेरिकी संसद की एक रिपोर्ट में किया गया है।
अमेरिका (USA) की एक शीर्ष सरकारी रिपोर्ट में चीन (China) को लेकर कहा गया है कि भारत के राफेल (Rafale) लड़ाकू विमानों के खिलाफ एक सुनियोजित दुष्प्रचार अभियान चलाया था।
‘यूएस-चाइना इकोनॉमिक एंड सिक्योरिटी रिव्यू कमीशन’ (US-China Economic and Security Review Commission) ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में यह खुलासा किया है।
अमेरिकी आयोग ने बताया कि चीन ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का इस्तेमाल करके राफेल विमानों के ‘नकली मलबे’ की तस्वीरें बनाईं और फर्जी सोशल मीडिया अकाउंट्स के जरिए उन्हें पूरी दुनिया में फैलाया, ताकि वह अपने खुद के जे-35 (J-35) विमानों की बिक्री को बढ़ावा दे सके।
राफेल को बदनाम कर अपना ‘J-35’ बेचना चाहता था चीन
रिपोर्ट के मुताबिक, चीन का मकसद दोतरफा था- पहला, फ्रांसीसी राफेल विमानों की छवि खराब करके उनके निर्यात को रोकना और दूसरा, अपने जे-35 विमानों को बेहतर साबित करना। चीन ने यह दिखाने की कोशिश की कि मई में हुए भारत-पाकिस्तान संघर्ष के दौरान चीनी हथियारों ने राफेल को मार गिराया है, जबकि यह पूरी तरह झूठ था।
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि चीनी दूतावास के अधिकारियों ने इसी फर्जी नेरेटिव का इस्तेमाल करके इंडोनेशिया (Indonesia) को राफेल खरीदने से रोकने की भी कोशिश की थी।
पाकिस्तान बना चीन की ‘प्रयोगशाला’
जुलाई महीने में ही भारतीय उपसेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल राहुल आर सिंह ने चीन और पाकिस्तान के इस गठजोड़ को बेनकाब कर दिया था। उन्होंने उस समय साफ कहा था कि चीन अपने हथियारों को टेस्ट करने और उनका प्रचार करने के लिए पाकिस्तान का इस्तेमाल कर रहा है।
अब अमेरिकी आयोग की इस ताजा रिपोर्ट ने भारतीय जनरल के उस दावे पर मुहर लगा दी है। रिपोर्ट में पुष्टि की गई है कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान चीन अपने सदाबहार दोस्त पाकिस्तान (Pakistan) की हर मुमकिन मदद कर रहा था। रिपोर्ट साफ कहती है कि उस संघर्ष के दौरान पाकिस्तान चीनी हथियारों के लिए एक ‘प्रयोगशाला’ बना हुआ था, जहां चीन ने मौकापरस्त तरीके से अपनी तकनीक का परीक्षण किया।
AI एंकर और फर्जी अकाउंट्स का जाल
आयोग ने कांग्रेस को सौंपी रिपोर्ट में बताया कि चीन अपनी ‘ग्रे-जोन’ गतिविधियों के तहत एआई का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग कर रहा है। राफेल के मलबे की तस्वीरें ही नहीं, बल्कि चीन ने वीडियो गेम के विजुअल का भी इस्तेमाल किया।
इसके अलावा, रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ है कि 2024 में चीन समर्थक ऑनलाइन ग्रुप्स ने अमेरिका में भी नशीली दवाओं, आप्रवासन और गर्भपात जैसे मुद्दों पर विभाजन पैदा करने के लिए एआई-जनरेटेड न्यूज एंकर्स और फर्जी प्रोफाइल फोटो का इस्तेमाल किया था।
सीमा विवाद पर भी दोहरी चाल
भारत-चीन संबंधों पर आयोग ने कहा कि सीमा मुद्दे को लेकर दोनों देशों के बीच एक ‘असमानता’ है। चीन चाहता है कि वह अपने मूल हितों का त्याग किए बिना, सीमा विवाद को अलग रखकर भारत के साथ व्यापार और अन्य क्षेत्रों में सहयोग के द्वार खोले। वहीं, भारत सीमा मुद्दों का एक स्थायी समाधान चाहता है। रिपोर्ट में जोर दिया गया है कि भारत सरकार ने हाल के वर्षों में सीमा पर चीन से उत्पन्न खतरे की गंभीरता को अब बेहतर तरीके से पहचाना है।
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