दुनिया गोल
अमेरिका फिर से बनाएगा परमाणु हथियार, दुनिया के लिए कितना बड़ा खतरा?
- डोनाल्ड ट्रंप ने घोषणा की कि उन्होंने युद्ध विभाग को परमाणु हथियारों का परीक्षण तुरंत शुरू करने का आदेश दिया है।
“परमाणु हथियारों की ‘भारी विनाशकारी ताकत’ के कारण वे इसे दोबारा शुरू नहीं करना चाहते थे, लेकिन “उनके पास कोई अन्य विकल्प नहीं था।”

नागासाकी के ए-बॉम्ब म्यूजियम में रखा यह प्रदर्शन दिखाता है कि आज दुनिया में कितने परमाणु हथियार बचे हैं। (तस्वीर 2012, Credit: Tim Wright/ICAN via flickr)
डोनाल्ड ट्रंप ने ट्रूथ सोशल पर लिखा कि “अमेरिका के पास किसी भी अन्य देश के मुक़ाबले अभी ज़्यादा परमाणु हथियार हैं, रूस इस सूची में दूसरे स्थान पर है और चीन तीसरे स्थान पर है, लेकिन चीन अगले पांच साल में बराबरी पर पहुंच सकता है।”
वे बोले कि “सबसे ज्यादा परमाणु हथियार की उपलब्धि मेरे पहले कार्यकाल के दौरान हासिल हुई, तब हमने मौजूदा हथियारों को पूरी तरह आधुनिक और नया किया था।”

ड्रैगन कहे जाने वाले चीन ने परमाणु हथियारों के पहले उपयोग न करने की नीति के प्रति प्रतिबद्धता जतायी है।
Credit: Stefano Borghi
दुनिया गोल
रूसी तेल पर अमेरिकी दबाव के बीच भारत के लिए ईरानी बंदरगाह खुला
- अमेरिकी सरकार ने भारत को ईरान के चाबहार बंदरगाह पर प्रतिबंधों से छह महीने के लिए रियायत दे दी।
नई दिल्ली |
अमेरिका लगातार भारत पर रूस से कच्चा तेल न खरीदने का दवाब बना रहा है, साथ ही उसने भारत के मध्य पूर्व में व्यापार के मुख्य मार्ग पर भी प्रतिबंध लगा रखा था, अब इसमें भारत को बड़ी कूटनीतिक राहत मिली है।
भारतीय विदेश मंत्रालय ने बताया कि भारत को ईरान के चाबहार बंदरगाह पर प्रतिबंधों से छह महीने के लिए रियायत दी है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने यह जानकारी साप्ताहिक प्रेस कॉन्फ्रेंस में दी।
इसके जरिए भारत अपना माल अफगानिस्तान और मध्य एशिया भेज सकता है, उसे मध्य एशिया पहुंचने के लिए पाकिस्तान के रास्ते की जरूरत नहीं पड़ेगी। यह बंदरगाह भारत को रूस और यूरोप से भी सीधे व्यापार करने में मदद करता है।
सितंबर में अमेरिका ने लगाया था प्रतिबंध
दरअसल भारत ने 2024 में चाबहार को 10 साल के लिए लीज पर लिया था, भारत की योजना यहां 120 मिलियन डॉलर निवेश करने व 250 मिलियन डॉलर का सस्ता कर्ज देने की है। पर बीते महीने अमेरिका राष्ट्रपति ने ईरान के साथ हुए संघर्ष के बाद घोषणा कर दी थी कि वह 29 सितंबर से इस बंदरगाह को चलाने, पैसे देने या उससे जुड़े किसी काम में शामिल कंपनियों पर जुर्माना लगाएगा।
फिर इस छूट को बढ़ाकर 27 अक्टूबर कर दिया गया था, जिसकी मियाद 3 दिन पहले खत्म हुई थी। ट्रंप प्रशासन ने अब इस छूट को अगले 6 महीने के लिए बढ़ा दिया गया है।
अमेरिका की ‘अधितकम दवाब’ के साथ ‘संतुलन’ की नीति
दुनिया गोल
जिस रूसी फर्म पर US ने बैन लगाया, भारत उसके साथ विमान क्यों बनाएगा?
- भारत में बनेंगे SJ-100 विमान, घरेलू उड़ानों के लिए उपयोगी।
- रूस की यूनाइटेड एयरक्राफ्ट कॉर्पोरेशन के साथ MOS साइन किया।
- रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते रूसी फर्म पर लागू हैं कई देशों के प्रतिबंध।
अमेरिका ने रूस की ऊर्जा कंपनियों पर हाल में बैन लगाया है पर अभी तक रूसी तेल कंपनियों पर कोई बैन नहीं लगाया गया है। दरअसल पश्चिमी देश जानते हैं कि अगर रूसी कच्चे तेल के आयात पर बैन लगा दिया गया तो पूरी दुनिया में तेल की कीमतों में उछाल आ जाएगा और स्थिरता खत्म हो जाएगी।
पर अब अब ट्रंप सरकार, रूसी सरकार के खजाने पर और दबाव बनाना चाहती है और उसका कहना है कि भारत जैसे देशों को रूस के तेल नहीं खरीदना चाहिए क्योंकि रूस इसके जरिए धन जुटाकर युद्ध में लगा रहा है।
रूस-यूक्रेन युद्ध से भारत में बढ़ा रूसी तेल का आयात
रूस-यूक्रेन युद्ध से पहले भारत आने वाले कच्चे तेल में रूसी तेल की हिस्सेदारी बेहद कम थी, भारत में मुख्य रूप से मध्य पूर्व से तेल आता था। पर 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद भारत ने भारी छूट पर रूसी कच्चा तेल खरीदना शुरू किया।
इससे वह अब भारत में कच्चे तेल के आयात का सबसे बड़ा स्रोत बन गया है।
ट्रंप भारत पर लगा चुके हैं 25% की पैनाल्टी
राष्ट्रपति ट्रंप चाहते हैं कि भारत रूस से तेल खरीदना बंद कर दें, इसको लेकर वे कई बार बयान दे चुके हैं। भारत के ऊपर 25% की अमेरिकी पैनाल्टी भी उन्होंने लागू की है।
हाल में ट्रंप ने यहां तक दावा किया कि “भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनसे कहा था कि भारत रूसी तेल खरीदना बंद कर देगा।” भारतीय विदेश मंत्रालय ने ऐसी कोई बातचीत होने से इनकार किया है।
ऐसे में अब रूस के साथ भारत के हालिया विमान समझौते को लेकर आशंकाएं घिर गई हैं, हालांकि विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत, रूस के साथ व्यापार के फैसले स्वतंत्र रूप से ले रहा है।
दुनिया गोल
पूरे यूरोप में फैल रहा No Kings आंदोलन क्या है?
नई दिल्ली |
अमेरिका में बीते जून में शुरू हुए No Kings प्रदर्शन ने शनिवार (18 oct) को बड़ा रूप ले लिया और लाखों प्रदर्शनकारी ट्रंप की नीतियों के विरोध में सड़कों पर उतरे। कई रिपोर्ट्स में इनकी संख्या करोड़ों में भी बतायी जा रही है।
यह आंदोलन यूरोप तक फैल गया, जहां बर्लिन और पेरिस में अमेरिकी दूतावासों के बाहर लोगों ने आंदोलन को लेकर एकजुटता दिखाते हुए प्रदर्शन किया।
प्रदर्शनकारियों का कहना है कि वे राष्ट्रपति ट्रंप की तानाशाह नीतियों को और नहीं सह सकते हैं। इससे पहले जून में 50 लाख प्रदर्शनकारियों ने ट्रंप के विरोध में No Kings आंदोलन शुरू किया था।
2500 से ज्यादा बड़ी रैलियां – अमेरिका में 2500 से ज्यादा जगहों पर बड़ी रैलियां आयोजित हुईं जिसमें लाखों की तादाद में लोग जुटे। संगठकों का अनुमान है कि इस बार के प्रदर्शनों में कुल भागीदारी करोड़ों में हो सकती है।
ट्रंप प्रशासन ने ‘आतंकवादी’ कहा – इन प्रदर्शनकारियों को ट्रंप प्रशासन ‘आतंकवादी’ और ‘हमास समर्थक’ कहा है। अमेरिकी मीडिया में आयोजनकर्ताओं के हवाले से कहा जा रहा है कि प्रदर्शनकारियों के खिलाफ आगे चलकर ट्रंप प्रशासन कड़ी निगरानी करा सकता है, फिर भी बड़ी संख्या में लोगों ने जुटने का साहस दिखाया है।
न्यूयॉर्क में एक लाख लोग जुटे – न्यूयॉर्क में 1 लाख, सैन फ्रांसिस्को बे एरिया में हजारों, इंडियनापोलिस में हजारों, फोर्ट वेने में 8,000 और फ्लोरिडा के द विलेजेस में 4,500 से अधिक लोग शामिल हुए।
ओरेगॉन के हर्मिस्टन में 100 से ज्यादा स्थानीय निवासियों ने हाईवे पर प्रदर्शन किया, जहां जाम लग जाने पर वाहन चालकों ने प्रदर्शन के समर्थन में हॉर्न बजाए।
आंदोलन के मुख्य मुद्दे –
- ट्रंप की अप्रवासी छापामारी से नाराजगी।
- राज्यों में नेशनल गार्ड तैनात करके संघीय व्यवस्था पर ‘हमला’।
- प्रेस स्वतंत्रता पर ‘हमलों’ के खिलाफ गुस्सा।
- न्याय विभाग को हथियार के रूप में ‘इस्तेमाल’ करना।
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