चुनावी डायरी
दिवाली बाद ही आएगा BJP का मेनिफेस्टो, 1 करोड़ लोगों से राय-शुमारी का अभियान 20 अक्तूबर तक

- बीजेपी कार्यालय से घोषणा- चुनाव घोषणापत्र बनाने के लिए 5 से 20 अक्टूबर तक पार्टी लेगी राय।
- पूरे बिहार में LED चुनाव रथ रवाना किए जाएंगे, जो गांव-गांव जाकर लोगों को इस अभियान से जोड़ेगा।
पटना |
बिहार विधानसभा चुनावों की घोषणा दो से तीन दिन में होने वाली है पर BJP अपना घोषणापत्र (Manifesto) जिसे वह ‘संकल्पपत्र’ कहती आई है, को 20 अक्तूबर के बाद ही जारी करेगी।
कारण यह है कि 5 से 20 अक्तूबर तक भाजपा पूरे बिहार में एक चुनावी अभियान चलाने जा रही है, जिसके तहत उसकी योजना बिहार के एक करोड़ आम लोगों तक पहुंचकर मेनिफेस्टो के लिए सुझाव लेने की है।
ध्यान रहे कि दिवाली (Diwali) 20 अक्तूबर की है, ऐसे में बीजेपी के इस अभियान के हिसाब से समझा जा सकता है कि पार्टी का ‘संकल्प पत्र’ दिवाली बाद ही आएगा।
इस दौरान चुनावों की तारीखों की घोषणा हो चुकी होगी और सभी दलों का चुनाव प्रचार चरम पर होगा। बीते चुनावों में देखा जा चुका है कि भाजपा वोटिंग के एकदम करीब अपना संकल्पपत्र घोषित करती रही है।
पार्टी पर अन्य दलों के मेनिफेस्टो के वादों को ‘कॉपी‘ करने का आरोप भी लगता रहा है।
बहराल बीजेपी कार्यालय ने शनिवार को दावा है कि आम जनता के सुझावों के आधार पर ही पार्टी इस बार बिहार चुनाव का अपना संकल्पपत्र (मेनिफेस्टो) जारी करेगी।
BJP मैनिफेस्टो कमेटी की घोषणा
बीजेपी कार्यालय में बीजेपी मैनिफेस्टो कमेटी ने शनिवार (3 अक्तूबर) को प्रेसवार्ता बुलाई। राज्यसभा सांसद मनन मिश्रा ने कहा कि बिहार में ऐसी रायशुमारी पहली बार होने जा रही है। नेताओं ने बताया कि “पार्टी इस बार जनता की आकांक्षाओं और सुझावों के आधार पर घोषणा पत्र तैयार करेगी। पार्टी सभी वर्गों किसानों, महिलाओं, युवाओं और श्रमिकों को ध्यान में रखते हुए आने वाले 5 साल का रोड-मैप जनता के सहयोग से बनाएगी।” इस दौरान मंत्री प्रेम कुमार और प्रदेश उपाध्यक्ष संतोष पाठक मौजूद रहे।

पहले ही बीजेपी कई जिलों में बड़े-बड़े कार्यकर्ता व वोटर सम्मेलन आयोजित कर रही है। (फोटो- अररिया में बीजेपी कार्यकर्ता सम्मेलन)
हर जिले में पेटी और LED रथ :
- राज्य के सभी 38 जिला मुख्यालयों पर 3 हजार सुझाव पेटियां रखी जाएंगी, जहां लोग अपने विचार डाल सकेंगे।
- पूरे बिहार में LED चुनाव रथ रवाना किए जाएंगे, जो गांव-गांव जाकर लोगों को इस अभियान से जोड़ेगा।
- इसके अलावा, पार्टी ने चिट्ठी, फोन कॉल और मिस कॉल जैसे विकल्पों के जरिए भी सुझाव मांगे हैं।
- हर चौक-चौराहे पर QR कोड स्कैन कर सुझाव देने की सुविधा।
- बीजेपी इस अभियान के लिए रविवार को एक वेबसाइट भी लॉन्च करेगी, जिसपर ऑनलाइन सुझाव लिए जाएंगे।
हर जिले में युवा, महिला, उद्यमिता सम्मेलन
बीजेपी आगामी 8 अक्तूबर को बिहार के हर जिले में प्रेस कॉन्फ्रेंस करेगी।
उसकी योजना है कि हर जिले में नौ अक्तूबर को युवा सम्मेलन, 10 अक्तूबर को महिला सम्मेलन, 14 अक्तूबर को उद्यमिता सम्मेलन किया जाएगा।
इसके बाद 11 व 12 अक्तूबर को पार्टी कार्यकर्ताओं को हर घर तक पहुंचने का लक्ष्य दिया गया है।
चुनावी डायरी
बिहार : चिराग की 30 सीटों की मांग, बोले- अभी बातचीत शुरूआती दौर में

- दिल्ली में आज बीजेपी से सीट बंटवारे पर बात हुई, जिसमें सहमति न बनने पर रात को पटना आए।
- चिराग पासवान के प्रशांत किशोर से गठबंधन की खबरें चलीं, NDA का एकजुटता का संदेश दोहराया।
- एनडीए कह रहा है कि सीट बंटवारे पर बातचीत फाइनल दौर में है, चिराग बोले- बातचीत अभी शुरू हुई है।
पटना |
बीजेपी ने दिल्ली में चिराग पासवान के साथ 45 मिनट लंबी बैठक की, जिसमें सीट बंटवारे पर सहमति बनने की जगह उल्टा यह निकलकर आया कि मांझी के बाद अब चिराग ने ज्यादा सीटों की डिमांड कर दी है। मीडिया में चिराग के नाराज होकर प्रशांत किशोर के साथ संभावित गठबंधन की भी खबरें चलीं, माना जा रहा है कि इस तरह चिराग पासवान NDA के अंदर अपनी मांग को और पुख्ता बनाने की कोशिश में हैं।
दिल्ली में बात न बनने के बाद अचानक मंगलवार रात को चिराग पासवान पटना लौटे हैं। यहां उन्होंने मीडिया के सामने कहा कि “सभी तरह का डिस्कशन अभी प्राइमरी स्टेज पर है, फाइनल होने पर जानकारी दी जाएगी।”
चिराग- 30, मांझी- 15 सीटों पर अड़े
दिल्ली में चिराग पासवान के आवास पर सीट शेयरिंग को लेकर बैठक हुई। बिहार चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान, बिहार प्रभारी विनोद तावड़े और बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय चिराग को मनाने पहुंचे थे।
45 मिनट तक ये मीटिंग चली। सूत्रों की मानें तो चिराग पासवान 30 सीट और जीतन राम मांझी 15 सीटों पर अड़े हैं।
जदयू में भी सीटों पर बैठक
इससे पहले पटना में नीतीश कुमार ने जदयू नेताओं के साथ बैठक की। खबर है कि टिकट और उम्मीदवार को लेकर पार्टी के बड़े नेताओं के साथ सीएम ने 45 मिनट चर्चा की है। जदयू अपने कोटे की सीटों और उम्मीदवारों पर मंथन जारी है।
मुख्यमंत्री आवास पहुंचे जदयू के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष और सांसद संजय झा ने कहा, ‘एनडीए पूरी मजबूती से खड़ा है और जल्द सीट शेयरिंग हो जाएगी।’
चुनावी डायरी
बिहार : RJD के दो विधायकों के खिलाफ राबड़ी आवास पर नारे लगे, टिकट न देने की मांग उठी

- मसौढ़ी विधायक रेखा पासवान का टिकट रद्द करने की मांग पर नारे लगे
- मखदुमपुर विधायक सतीश कुमार के खिलाफ तीन दिन पहले हुआ था विरोध
चुनावी डायरी
जीतन राम मांझी : NDA की दलित ताकत, पर सीट शेयर में बड़ी अड़चन

- बिहार चुनाव में NDA से 15 से 20 सीटें चाहते हैं HAM चीफ माझी
नई दिल्ली|
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से ठीक पहले NDA (नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस) में सीट बंटवारे को लेकर चल रही खींचतान में जीतन राम मांझी का नाम सबसे ऊपर है। हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (सेक्युलर) (HAM) के संस्थापक और केंद्रीय मंत्री मांझी ने 15 से 20 सीटों की मांग रखी है, लेकिन BJP-JDU गठबंधन उन्हें 3-7 सीटें देने पर अड़ा है। क्या मांझी NDA के लिए महादलित-दलित वोटों की ‘मजबूत कड़ी’ हैं या उनकी बढ़ती महत्वाकांक्षा के बीच गठबंधन बचाना ‘मजबूरी’ और चुनौती बन गया है? आइए जानते हैं इस विश्लेषण में..

जीतनराम मांझी (तस्वीर – @NandiGuptaBJP)
NDA में मांझी की ‘मजबूती’: दलित वोटों का मजबूत आधार
हालिया बैठकों और बयानों से साफ है कि मांझी की मौजूदगी से NDA को जातीय समीकरण में मजबूती मिलती है। पर BJP के बार-बार मनाने पर भी वे अपनी मांग पर अड़े हैं, बीजेपी प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान ने इसे उनकी ‘साफगोई’ कहा है। जातीय गणित की नजर से देखें तो मांझी NDA को कई सीटों पर मजबूती देते दिखते हैं-
- महादलित-दलित वोट बैंक: बिहार में दलित (16%) और महादलित (मुसहर, डोम आदि) वोटरों पर मांझी की पकड़ मजबूत है। 2020 में HAM ने 7 सीटों पर 60% से ज्यादा स्ट्राइक रेट दिखाया, जो NDA की कुल 125 सीटों में योगदान देता है। चिराग पासवान (LJP) के साथ मिलकर वे पश्चिम चंपारण से गया तक दलित वोटों को एकजुट करते हैं।
- नीतीश के पूरक: NDA का महादलित फोकस मांझी से मजबूत होता है। लोकसभा 2024 में NDA की 30/40 सीटों में मांझी का रोल सराहा गया।
- केंद्रीय मंत्री के रूप में: MSME मंत्री के तौर पर वे केंद्र की रोजगार सृजन योजनाओं (जैसे PMEGP) को बिहार में लागू कर NDA की छवि चमकाते हैं।
NDA में मांझी की मजबूती – |
उदाहरण |
जातीय समीकरण |
महादलित (12%) वोटों पर पकड़; 2020 में 4/7 सीटें जीतीं। |
रणनीतिक भूमिका |
JDU-BJP के बीच दलित ब्रिज; चिराग के साथ मिलकर विपक्ष (RJD) को चुनौती। |
परिवारिक प्रभाव |
बेटा–बहू के मंत्री/विधायक होने से स्थानीय स्तर पर मजबूती। |
विवादास्पद अपील |
गरीबी से सत्ता की कहानी दलित युवाओं को प्रेरित करती है। |

जीतनराम मांझी के साथ बैठक करने पहुंचे बीजेपी के चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान, तावड़े, सम्राट चौधरी।
NDA के लिए ‘मजबूरी’: बढ़ती मांगें और बगावती तेवर
दूसरी तरफ, मांझी की महत्वाकांक्षा NDA के लिए सिरदर्द बनी हुई है:
- सीटों की मांग: बिहार विधानसभा चुनाव में 15-20 (कभी 25-40) सीटें मांग रहे हैं, ताकि HAM को ECI मान्यता (6% वोट/6 सीटें) मिले। लेकिन BJP-JDU उन्हें 3-7 सीटें देने को तैयार हैं। धर्मेंद्र प्रधान की 5 अक्टूबर 2025 की मीटिंग में मांझी को ‘3 से ज्यादा पर नहीं’ कहा गया। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, मांझी ने धमकी दी- “अगर 15-20 न मिलीं तो 100 सीटों पर अकेले लड़ेंगे।”
- नाराजगी का इतिहास: 2015 में BJP ने नीतीश के सामने मांझी को ‘अपमानित’ होने दिया। अब अप्रत्यक्ष अपमान (वोटर लिस्ट न देना) से नाराज हैं। News18 में मांझी ने कहा, “हम रजिस्टर्ड हैं, लेकिन मान्यता नहीं—यह अपमान है।”
- गठबंधन तनाव: NDA का फॉर्मूला लगभग तय है, मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक- JDU को 102-108, BJP को 101से 107, LJP को 20से 22, HAM को 3से 7, RLM को 3से 5 सीटें देने का फॉर्मूला है। मांझी की मांग से JDU-BJP के बीच ‘100 सीटों की लड़ाई’ तेज हुई है। उपेंद्र कुशवाहा (RLM) ने भी 15 सीटों की मांग कर दी है जिससे NDA पर 35 सीटों को लेकर दवाब बढ़ गया है।
- बगावत का जोखिम: अगर मांझी बगावत करें, तो दलित वोट बंट सकते हैं, जो महागठबंधन (RJD) को फायदा देगा। लेकिन NDA उन्हें ‘जरूरी बुराई’ मानता है—इग्नोर करने से वोट लॉस, मानने से सीट शेयरिंग बिगड़ेगी।
NDA के लिए मांझी की मजबूरी के पहलू |
उदाहरण |
सीट मांग का दबाव |
20 मांगीं, 3-7 ऑफर; बगावत की धमकी। |
पुराना अपमान |
2015 में BJP-JDU ने ‘छोड़ दिया‘; अब मान्यता की लड़ाई। |
गठबंधन असंतुलन |
JDU-BJP 200+ सीटें चाहते; छोटे दलों को ‘कुर्बानी‘ देनी पड़ रही। |
विवादास्पद छवि |
बयान गठबंधन को नुकसान पहुंचाते, लेकिन वोटरों को जोड़ते। |

केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी
मजबूती ज्यादा, लेकिन मजबूरी नजरअंदाज नहीं
मांझी NDA के लिए ‘मजबूती‘ ज्यादा हैं—उनके बिना दलित वोटों का 20-25% हिस्सा खिसक सकता है। लेकिन सीट बंटवारे की उनकी जिद गठबंधन को ‘मजबूरी‘ में डाल रही है, जहां BJP-JDU को छोटे दलों को मनाना पड़ रहा। 5 अक्टूबर की प्रधान–मांझी बैठक में सहमति बनी, लेकिन अंतिम फॉर्मूला जून–जुलाई में तय होगा। अगर NDA 225+ सीटें जीतना चाहता है (जैसा मांझी दावा करते हैं), तो मांझी को ‘सम्मानजनक‘ रखना जरूरी। वरना, बिहार का जातीय समीकरण फिर उलट सकता है। राजनीतिक पंडितों का मानना है: मांझी ‘करो या मरो‘ के दौर में हैं, और NDA के लिए वे ‘जरूरी सहयोगी‘ से ‘संभावित खतरा‘ बन सकते हैं।
मांझी की राजनीतिक यात्रा: बंधुआ मजदूरी से सत्ता तक
जीतन राम मांझी बीते छह अक्तूबर को 81 बरस के हो गए। वे मुसहर समुदाय (महादलित) से आते हैं, जो बिहार के सबसे वंचित वर्गों में शुमार है। बचपन में बंधुआ मजदूरी करने वाले मांझी ने शिक्षा के बल पर 1966 में हिस्ट्री में ग्रेजुएशन किया और पोस्टल विभाग में नौकरी पाई।

जीतन राम माझी
1980 में कांग्रेस से राजनीति में कदम रखा, फिर RJD (लालू प्रसाद) और 2005 में JDU (नीतीश कुमार) से जुड़े। 2014 में लोकसभा चुनाव में JDU की करारी हार के बाद नीतीश ने इस्तीफा दिया और मांझी को मुख्यमंत्री बनाया—मकसद महादलित वोटों को साधना। लेकिन 9 महीने बाद (फरवरी 2015) विवादास्पद बयानों (जैसे डॉक्टरों के हाथ काटने की धमकी, चूहे खाने को जायज ठहराना) और नीतीश पर हमलों से JDU ने उन्हें बर्खास्त कर दिया। इसके बाद 18 विधायकों के साथ HAM बनाई।
2020 में NDA में वापसी हुई, जहां HAM को 7 सीटें मिलीं और 4 जीतीं। लोकसभा 2024 में गयासुर लोकसभा सीट जीतकर मांझी केंद्रीय मंत्री बने। उनके बेटे संतोष कुमार मांझी बिहार सरकार में मंत्री हैं, जबकि बहू दीपा मांझी इमामगंज से विधायक। यह पारिवारिक राजनीति NDA के लिए फायदेमंद रही, लेकिन मांझी के बयान (जैसे ताड़ी को ‘नेचुरल जूस’ कहना) अक्सर विवादों का सबब बने।
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