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27वां संविधान संशोधन : पाकिस्तान में अब ‘फील्ड मार्शल’ की सरकार, सुप्रीम कोर्ट सबसे कमजोर हुआ

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आसिर मुनीर को सबसे ज्यादा शक्तियां देकर पाकिस्तान की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की शक्तियां छीन ली हैं।
आसिर मुनीर को सबसे ज्यादा शक्तियां देकर पाकिस्तान की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की शक्तियां छीन ली हैं।
  • पाकिस्तान का 27वां संविधान संशोधन संसद से पास हो चुका है।
  • इसके विरोध में अब तक सुप्रीम कोर्ट के कुछ जजों ने इस्तीफा दिया।
  • आजीवन फील्ड मार्शल रहेंगे आसिर मुनीर, सेना सर्वोच्च शक्ति बनी।

 

नई दिल्ली |

पाकिस्तान में सरकार के ऊपर सेना का दखल और संविधान में बार-बार बदलाव होना कोई नहीं बात नहीं है, पर इस बार हुए 27वें संवैधानिक संशोधन को लोकतंत्र का ‘जनाज़ा’ निकालने जैसा बताया जा रहा है।

पाकिस्तान में 27वां संविधान संशोधन (27th Constitutional Amendment) पास होकर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद लागू हो चुका है।

इससे सबसे बड़ा बदलाव सुप्रीम कोर्ट से संवैधानिक मामलों की सुनवाई की शक्ति छीनने के रूप में हुआ है। यानी अब वह सिर्फ सिविल और क्रिमिनल मामलों की सुनवाई कर सकेगी।

दूसरी ओर, सैन्य प्रमुख आसिर मुनीर को जीवनभर के लिए फील्ड मार्शल बना दिया गया है। साथ ही, तीनों सेनाओं का प्रमुख CDF (chief of defence force) भी बनाया गया है।

इतना ही नहीं,  उन्हें राष्ट्रपति की तरह जीवन भर आपराधिक कार्रवाई से सुरक्षा दी गई है। इस तरह वे पाकिस्तान में सबसे ताकतवर व्यक्ति बन गए हैं।

बता दें कि पाकिस्तान में आखिरी बार साल 1999 में सेना ने तख्ता-पलट करके चुनी हुई सरकार हटा दी थी। पर इस बार हुए बदलाव ने संवैधानिक तरीके से फील्ड मार्शल को पाकिस्तान की सत्ता का केंद्र बना दिया है।

 

तीन लाइन में समझें बदलाव  

  1. Supreme Court को constitutional मामलों से हटाकर नई Federal Constitutional Court को सर्वोच्च बनाया गया है।
  2. नए बदलाव के हिसाब से सुप्रीम कोर्ट और सभी हाईकोर्ट के पास स्वतंत्र संविधानिक बेंच होगी, जिसके जज सरकार नियुक्त करेगी।
  3. Field Marshal Asim Munir को सेना के साथ-साथ “National Strategic Command” की कमान और लाइफटाइम इम्युनिटी मिल गई है।

 

विरोध में जजों का इस्तीफा 

कई जजों ने इस कदम को “judicial capture” बताया। नए संशोधन के विरोध में सुप्रीम कोर्ट के दो जज व लाहौर हाईकोर्ट के एक जज ने इस्तीफा दे दिया है। साथ ही, इस्लामाबाद हाईकोर्ट के दो जजों ने इस्तीफा देने के संकेत दिए हैं।

 

क्या है 27वां संविधान संशोधन?

1. Supreme Court का रोल घटा — नई Federal Constitutional Court सबसे ऊपर

अल जज़ीरा की रिपोर्ट के अनुसार, FCC को पाकिस्तान का नया सर्वोच्च संवैधानिक मंच बनाया गया है।

FCC के जज प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति सीधे चुनेंगे

FCC को 68 वर्ष तक काम करने की अनुमति

पुरानी Supreme Court की सभी Constitutional power समाप्त

The Guardian ने इसे “Supreme Court की स्वतंत्रता को ख़त्म करने वाला कदम” बताया है।

  • अब—
    * Supreme Court सिर्फ सिविल और क्रिमिनल अपीलों में अंतिम अदालत होगी
    * सभी संवैधानिक मामले FCC में जाएंगे

 

2. जजों की ट्रांसफर–पोस्टिंग अब सरकार के हाथ

पाकिस्तान के अखबार डॉन (Dawn) के अनुसार – अब पाकिस्तान के राष्ट्रपति, Judicial Commission की सिफारिश पर जजों को बिना उनकी अनुमति के ट्रांसफर कर सकते हैं।

अगर जज इसे मानने से इंकार करे तो— उसे रिटायर माना जाएगा।

यह प्रावधान पाकिस्तान में पहली बार आया है।

 

3. आर्मी चीफ Asim Munir को अभूतपूर्व शक्तियां

फील्ड मार्शल आसिर मुनीर को तीनों सेनाओं के प्रमुख के तौर पर नया संवैधानिक पद CDF “Chief of Defence Forces” दिया गया है।

उन्हें लाइफटाइम इम्युनिटी—यानी किसी भी प्रकार की आपराधिक कार्रवाई आजीवन नहीं

सेना, नौसेना और वायुसेना पर एकीकृत अधिकार

Strategic Forces Command की सीधी कमान

 

विेशेषज्ञ की राय – 

Georgetown University के प्रोफ़ेसर Aqil Shah लिखते हैं:
“यह पाकिस्तान में स्थायी सैन्य शासन की ओर सबसे बड़ा कदम है।”

 

इसे क्यों कहा जा रहा — ‘न्यायिक कब्जा’(Judicial Capture)?

सीएनएन (CNN) के अनुसार: “यह संशोधन न्यायपालिका को पूर्ण रूप से कार्यपालिका के अधीन कर देता है।”

इस्लामाबाद हाई कोर्ट के जजों ने पहले भी अपने पत्रों में लिखा था कि उन्हें राजनीतिक और सुरक्षा एजेंसियों से दबाव झेलना पड़ता है।

अब कई जजों ने—

FCC की शपथ में हिस्सा नहीं लिया

इस्तीफे की प्रक्रिया शुरू कर दी है

कोर्टरूम खाली कराए जा रहे हैं ताकि FCC वहीं बैठ सके

 

संसद पर भी सवाल—

डॉन अख़बार ने साफ लिखा, “यह amendment एक ऐसी संसद ने पास किया है जिसे जनता प्रतिनिधि ही नहीं मानती।”

विपक्ष (PTI और TTAP) ने वोटिंग का बहिष्कार किया।
सिर्फ चार सांसदों ने इसका विरोध किया—बाकी कुछ घंटों में वोटिंग खत्म कर दी गई।

 

आलोचकों की मुख्य आपत्तियां

1. पूरे संविधान की मूल संरचना (Basic Structure) को तोड़ा गया

2. Judiciary अब स्वतंत्र नहीं रहेगी

3. Army chief को ऐसी शक्तियां पहले कभी नहीं दी गईं

4. Bill को जनता, जजों या सिविल सोसाइटी से चर्चा के बिना पास किया गया

5. यह पाकिस्तान को संवैधानिक लोकतंत्र से सैन्य नियंत्रित ढांचे में बदल देता है

Human Rights Commission of Pakistan ने कहा:

“यह संशोधन लोकतंत्र की जड़ों को हिलाता है।”

 

आगे क्या होगा? (Impact Analysis)

1. सेना की शक्तियां ऐतिहासिक रूप से सबसे बड़ी हो जाएंगी—कानूनी संरक्षण और पांच-सितारा पद (फील्ड मार्शल)

2. Supreme Court अब symbolic होगी—FCC असली authority बनेगी

3. सरकार को जजों पर सीधा नियंत्रण मिलेगा—ट्रांसफर का डर न्यायिक स्वतंत्रता खत्म कर देगा

4. पाकिस्तान में लोकतंत्र और नागरिक अधिकार गहरे संकट में पहुंचेंगे—इसे अंतरराष्ट्रीय मीडिया ‘सत्तावादी मोड़’ (Authoritarian Turn) कह रहा है


Edited by Mahak Arora (Content writter)

बोलते पन्ने.. एक कोशिश है क्लिष्ट सूचनाओं से जनहित की जानकारियां निकालकर हिन्दी के दर्शकों की आवाज बनने का। सरकारी कागजों के गुलाबी मौसम से लेकर जमीन की काली हकीकत की बात भी होगी ग्राउंड रिपोर्टिंग के जरिए। साथ ही, बोलते पन्ने जरिए बनेगा .. आपकी उन भावनाओं को आवाज देने का, जो अक्सर डायरी के पन्नों में दबी रह जाती हैं।

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Ukraine War: गज़ा के बाद अब यूक्रेन में शांति की ट्रंप योजना, शर्ते जानिए

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  • Gaza के बाद अब Ukraine पर Trump का नया प्लान, शांति के लिए रूस को देनी होगी जमीन
  • NATO में शामिल नहीं होगा Ukraine, सेना की संख्या पर भी लगेगी 6 लाख की लिमिट

  • रूस से हटेंगे सारे प्रतिबंध, लेकिन जंग नहीं रुकी तो भुगतने होंगे गंभीर अंजाम

 

नई दिल्ली |

अमेरिका (America) के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) ने गाजा के बाद अब यूक्रेन युद्ध को खत्म करने के लिए एक नया और चौंकाने वाला प्लान तैयार किया है। इस मसौदे (Draft) की रिपोर्ट अमेरिकी मीडिया में लीक होने से इस मामले का खुलासा हुआ है। इस ‘पीस प्लान’ का सीधा मतलब है- “जमीन के बदले यूक्रेन को शांति”।

इस लीक डॉफ्ट के हवाले से रिपोर्ट किया जा रहा है किॉ ट्रंप प्रशासन ने यूक्रेन (Ukraine) के सामने शर्त रखी है कि अगर उसे युद्ध रोकना है, तो उसे अपने देश का कुछ हिस्सा हमेशा के लिए रूस (Russia) को देना होगा। यूक्रेन सरकार ने इस योजना पर सधी हुई प्रतिक्रिया देते हुए कहा है-

“अमेरिकी पक्ष का आकलन है कि इस योजना से कूटनीति को पुनर्जीवित करने में मदद मिलेगी।”

यूक्रेन को छोड़नी होगी अपनी जमीन

इस ड्राफ्ट प्लान के मुताबिक, अमेरिका अब क्रीमिया (Crimea) और अन्य उन इलाकों को रूस का हिस्सा मानने को तैयार है, जिन पर अभी रूसी सेना का कब्जा है। यानी यूक्रेन को इन इलाकों से अपना दावा छोड़ना होगा। जहां अभी दोनों देशों की सेनाएं खड़ी हैं, वहीं पर युद्ध रोक दिया जाएगा और उसे नई सीमा मान लिया जाएगा।

NATO में शामिल होने पर ‘बैन’

ट्रंप के इस प्लान में यूक्रेन के लिए कई सख्त शर्तें हैं।

  • NATO नो-एंट्री: यूक्रेन कभी भी नाटो (NATO) का सदस्य नहीं बनेगा।

  • सेना पर रोक: यूक्रेन अपनी सेना को बहुत ज्यादा नहीं बढ़ा सकता। उसकी सेना में अधिकतम 6 लाख सैनिक ही हो सकेंगे।

  • विदेशी सेना नहीं: यूक्रेन की धरती पर नाटो या किसी और देश की सेना तैनात नहीं होगी।

रूस को क्या फायदा मिलेगा?

अगर यह समझौता होता है, तो इससे रूस को बड़ी जीत मिलेगी क्योंकि इसकी कई बातें, पुतिन की शर्तों से मेल खाती हैं।

  • रूस पर लगे सभी अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध (Sanctions) हटा दिए जाएंगे।

  • रूस को फिर से दुनिया के व्यापार में शामिल किया जाएगा और वह अपना तेल-गैस आसानी से बेच सकेगा।

शर्त तोड़ी तो भुगतना होगा अंजाम

ट्रंप ने दोनों पक्षों को चेतावनी भी दी है।

  • रूस के लिए: अगर समझौता होने के बाद रूस ने फिर हमला किया, तो अमेरिका उस पर दोबारा कड़े प्रतिबंध लगा देगा और यूक्रेन को और ज्यादा हथियार देगा।

  • यूक्रेन के लिए: अगर यूक्रेन ने बिना वजह रूस के शहरों पर मिसाइल दागी, तो अमेरिका उसकी सुरक्षा की गारंटी खत्म कर देगा।

ज़ेलेंस्की तैयार, यूरोप हैरान

अमेरिकी अधिकारियों ने यह प्लान यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की (Volodymyr Zelensky) को सौंप दिया है। ज़ेलेंस्की ने कहा है कि वह शांति के लिए काम करने को तैयार हैं। लेकिन यूरोप (Europe) के कई देश इस प्लान से हैरान हैं। उनका मानना है कि अपनी जमीन रूस को दे देना यूक्रेन के लिए हार मानने जैसा होगा।

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COP30: दुनिया को बचाने के मकसद वाले जलवायु सम्मेलन में कोयला-पेट्रोल पर दो फाड़, क्या हो पाएगा समझौता?

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ब्राजील में जारी जलवायु सम्मेलन का आज अंतिम दिन है। credit - Facebook/COP30 Brasil
  • COP30 में 80 से ज्यादा देशों ने खोला मोर्चा, जीवाश्म ईंधन को खत्म करने के लिए मांगा ‘ठोस प्लान’
  • मेजबान Brazil की कोशिशें हुईं नाकाम, Saudi Arabia समेत कई तेल उत्पादक देशों ने अड़ाया अड़ंगा

  • गतिरोध तोड़ने के लिए EU ने दिया नया प्रस्ताव, Turkey करेगा अगले साल COP31 की मेजबानी

नई दिल्ली |

ब्राजील (Brazil) के बेलेम (Belem) शहर में चल रहे संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन यानी COP30 में भारी हंगामा देखने को मिला। धरती को बचाने के लिए बुलाई गई इस बैठक में दुनिया दो हिस्सों में बंटी नजर आई। 10 नवंबर से शुरू हुए इस वैश्विक सम्मेलन का आज (21 nov) को अंतिम दिन है और अभी तक कोई साझा घोषणापत्र पर सहमति नहीं बन सकी है।

एक तरफ 80 से ज्यादा देशों ने एकजुट होकर मांग की है कि दुनिया से पेट्रोल, डीजल और कोयले यानी जीवाश्म ईंधन को खत्म करने का पक्का ‘रोडमैप’ (Total Phase out)  तैयार किया जाए, ऐसा न होने पर वे प्रस्ताव ब्लॉक कर देंगे।

वहीं, दूसरी तरफ सऊदी अरब (Saudi Arabia) समेत कई तेल उत्पादक देश इसके सख्त खिलाफ खड़े हो गए हैं। चीन और अमेरिका इस पर चुप्पी साधे हैं। इस खींचतान के कारण मेजबान ब्राजील शुरुआती समझौता कराने में विफल रहा है। अब देखना होगा कि अंतिम दिन मेजबान ब्राजील किस तरह सहमति बना पाता है या यह सम्मेलन बिना दुनिया के तापमान को बढ़ने से रोकने के आवश्यक कदम पर सहमति न बनाए बिना समाप्त हो जाएगा।

COP30 का आधिकारिक लोगो

COP30 का आधिकारिक लोगो

जलवायु संकट से जूझ रहे छोटे देशों की धमकी

द गार्जियन ने रिपोर्ट किया है कि कम से कम 28 देशों ने मेजबान ब्राजील को 20 नवंबर को पत्र लिखकर चेतावनी दी है कि अगर अंतिम समझौते में फॉसिल फ्यूल (जीवाश्म ईंधन) को पूरी तरह चरणबद्ध तरीके से खत्म करने (phase-out) का स्पष्ट और बाध्यकारी रोडमैप नहीं जोड़ा गया, तो वे पूरे प्रस्ताव को ब्लॉक कर देंगे।

ये देश कर रहे मांग

पूरी तरह प्राकृतिक ईंधन से इस्तेमाल को हटाने का समर्थन करने वाले देशों में यूरोपीय संघ, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, चिली, कोलंबिया, वनुआतु, तुवालु, मार्शल आइलैंड्स और अफ्रीकी देशों का बड़ा समूह शामिल है।

80 देशों ने बनाई ‘ग्लोबल कोलिशन’

सम्मेलन में अफ्रीका, एशिया, लैटिन अमेरिका और प्रशांत क्षेत्र के देशों ने यूरोपीय संघ (EU) और ब्रिटेन (UK) के साथ मिलकर एक वैश्विक गठबंधन बना लिया है। Marshall Islands की जलवायु दूत टीना स्टेज (Tina Stege) ने 20 मंत्रियों के साथ एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “हम सबको मिलकर एक रोडमैप के पीछे खड़ा होना होगा और इसे एक योजना में बदलना होगा।” यूके के ऊर्जा सचिव एड मिलिबैंड (Ed Miliband) ने भी जोर देकर कहा, “यह मुद्दा अब कालीन के नीचे नहीं छिपाया जा सकता। हम सब एक आवाज में कह रहे हैं कि जीवाश्म ईंधन से दूरी बनाना ही इस सम्मेलन का दिल होना चाहिए।”

सऊदी अरब बना ‘रोड़ा’

वानुअतु (Vanuatu) के जलवायु मंत्री राल्फ रेगेनवानु (Ralph Regenvanu) ने सीधे तौर पर दुनिया के सबसे बड़े तेल निर्यातक सऊदी अरब (Saudi Arabia) पर निशाना साधा। उन्होंने कहा, “मुझे लगता है कि समझौता बहुत मुश्किल होगा क्योंकि हमारे पास कुछ ‘ब्लॉकर्स’ हैं जो तेल और गैस छोड़ने की किसी भी योजना का विरोध कर रहे हैं।” छोटे द्वीपीय देशों का कहना है कि वे इस मुद्दे पर आखिरी दम तक लड़ेंगे क्योंकि अगर समुद्र का जलस्तर बढ़ा, तो उनका अस्तित्व ही मिट जाएगा।

आखिर क्या है COP30? 

सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि यह बैठक क्या है। COP का मतलब है ‘कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज’ (Conference of Parties)। यह संयुक्त राष्ट्र (UN) की एक सालाना बैठक है जिसमें दुनिया भर के लगभग 200 देश शामिल होते हैं।

  • मकसद: इसका मुख्य उद्देश्य धरती के बढ़ते तापमान को रोकना और जलवायु परिवर्तन से निपटना है।

  • लक्ष्य: पेरिस समझौते के तहत दुनिया के तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा बढ़ने से रोकने पर आगे की योजना बनाना।

  • जगह: इस बार यह 30वीं बैठक है, इसलिए इसे COP30 कहा जा रहा है और यह अमेजन के जंगल वाले शहर बेलेम में हो रही है।

मेजबान Brazil का प्लान फेल?

ब्राजील के राष्ट्रपति लूला (Lula da Silva) चाहते थे कि बुधवार तक ही जलवायु वित्त और ईंधन को लेकर एक बड़ा समझौता हो जाए, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। शुरुआत में ब्राजील ने ‘जीवाश्म ईंधन’ को आधिकारिक एजेंडे से बाहर रखा था, लेकिन भारी दबाव के बाद उसे एक ड्राफ्ट पेश करना पड़ा। हालांकि, कई देशों ने इस ड्राफ्ट को बहुत कमजोर बताया। अब राष्ट्रपति लूला आखिरी दो दिनों में किसी नतीजे पर पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं।

EU ने दिया ‘बीच का रास्ता’

इस गतिरोध को तोड़ने के लिए यूरोपीय संघ (EU) ने बुधवार देर रात एक नया प्रस्ताव रखा है। इसमें सुझाव दिया गया है कि देश जीवाश्म ईंधन को छोड़ने के लिए एक रोडमैप तो पेश करें, लेकिन यह ‘गैर-बाध्यकारी’ (Non-prescriptive) होना चाहिए। इसका मतलब है कि किसी भी देश पर कोई विशिष्ट नियम जबरदस्ती नहीं थोपा जाएगा, बल्कि वे विज्ञान के आधार पर खुद तय करेंगे।

तुर्किये करेगा COP31 की मेजबानी

इस तनातनी के बीच एक कूटनीतिक सफलता भी मिली है। ऑस्ट्रेलिया (Australia) के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज (Anthony Albanese) ने पुष्टि की है कि अगले साल के जलवायु सम्मेलन यानी COP31 की मेजबानी को लेकर सहमति बन गई है। इसके तहत तुर्किये (Turkey) अगले साल के सम्मेलन की मेजबानी करेगा, जबकि ऑस्ट्रेलिया सरकारों के बीच बातचीत का नेतृत्व करेगा।

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Ops सिंदूर के बाद राफेल विमानों को AI के जरिए बदनाम कर रहा था चीन : अमेरिकी रिपोर्ट में खुलासा

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Ops सिंदूर के दौरान राफेल विमानों के प्रदर्शन पर सोशल मीडिया में दुष्प्रचार फैलाया गया था।
Ops सिंदूर के दौरान राफेल विमानों के प्रदर्शन पर सोशल मीडिया में दुष्प्रचार फैलाया गया था।
  • US रिपोर्ट में खुलासा: चीन ने AI का इस्तेमाल कर राफेल के खिलाफ फैलाया झूठ

  • J-35 को बेचने के लिए भारत के राफेल विमानों को बताया था ‘नष्ट’

  • पाकिस्तान को बनाया हथियारों की ‘प्रयोगशाला’, भारतीय जनरल के दावे पर लगी मुहर

नई दिल्ली |

पाक के खिलाफ हुए ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारतीय विमानों को लेकर सोशल मीडिया पर चलाए गए दुष्प्रचार के पीछे चीन का हाथ था। ऐसा दावा अमेरिकी संसद की एक रिपोर्ट में किया गया है।

अमेरिका (USA) की एक शीर्ष सरकारी रिपोर्ट में चीन (China) को लेकर कहा गया है कि भारत के राफेल (Rafale) लड़ाकू विमानों के खिलाफ एक सुनियोजित दुष्प्रचार अभियान चलाया था।

‘यूएस-चाइना इकोनॉमिक एंड सिक्योरिटी रिव्यू कमीशन’ (US-China Economic and Security Review Commission) ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में यह खुलासा किया है।

अमेरिकी आयोग ने बताया कि चीन ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का इस्तेमाल करके राफेल विमानों के ‘नकली मलबे’ की तस्वीरें बनाईं और फर्जी सोशल मीडिया अकाउंट्स के जरिए उन्हें पूरी दुनिया में फैलाया, ताकि वह अपने खुद के जे-35 (J-35) विमानों की बिक्री को बढ़ावा दे सके।

 

राफेल को बदनाम कर अपना ‘J-35’ बेचना चाहता था चीन

रिपोर्ट के मुताबिक, चीन का मकसद दोतरफा था- पहला, फ्रांसीसी राफेल विमानों की छवि खराब करके उनके निर्यात को रोकना और दूसरा, अपने जे-35 विमानों को बेहतर साबित करना। चीन ने यह दिखाने की कोशिश की कि मई में हुए भारत-पाकिस्तान संघर्ष के दौरान चीनी हथियारों ने राफेल को मार गिराया है, जबकि यह पूरी तरह झूठ था।

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि चीनी दूतावास के अधिकारियों ने इसी फर्जी नेरेटिव का इस्तेमाल करके इंडोनेशिया (Indonesia) को राफेल खरीदने से रोकने की भी कोशिश की थी।

 

पाकिस्तान बना चीन की ‘प्रयोगशाला’

जुलाई महीने में ही भारतीय उपसेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल राहुल आर सिंह ने चीन और पाकिस्तान के इस गठजोड़ को बेनकाब कर दिया था। उन्होंने उस समय साफ कहा था कि चीन अपने हथियारों को टेस्ट करने और उनका प्रचार करने के लिए पाकिस्तान का इस्तेमाल कर रहा है।

अब अमेरिकी आयोग की इस ताजा रिपोर्ट ने भारतीय जनरल के उस दावे पर मुहर लगा दी है। रिपोर्ट में पुष्टि की गई है कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान चीन अपने सदाबहार दोस्त पाकिस्तान (Pakistan) की हर मुमकिन मदद कर रहा था। रिपोर्ट साफ कहती है कि उस संघर्ष के दौरान पाकिस्तान चीनी हथियारों के लिए एक ‘प्रयोगशाला’ बना हुआ था, जहां चीन ने मौकापरस्त तरीके से अपनी तकनीक का परीक्षण किया।

AI एंकर और फर्जी अकाउंट्स का जाल

आयोग ने कांग्रेस को सौंपी रिपोर्ट में बताया कि चीन अपनी ‘ग्रे-जोन’ गतिविधियों के तहत एआई का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग कर रहा है। राफेल के मलबे की तस्वीरें ही नहीं, बल्कि चीन ने वीडियो गेम के विजुअल का भी इस्तेमाल किया।

इसके अलावा, रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ है कि 2024 में चीन समर्थक ऑनलाइन ग्रुप्स ने अमेरिका में भी नशीली दवाओं, आप्रवासन और गर्भपात जैसे मुद्दों पर विभाजन पैदा करने के लिए एआई-जनरेटेड न्यूज एंकर्स और फर्जी प्रोफाइल फोटो का इस्तेमाल किया था।

सीमा विवाद पर भी दोहरी चाल

भारत-चीन संबंधों पर आयोग ने कहा कि सीमा मुद्दे को लेकर दोनों देशों के बीच एक ‘असमानता’ है। चीन चाहता है कि वह अपने मूल हितों का त्याग किए बिना, सीमा विवाद को अलग रखकर भारत के साथ व्यापार और अन्य क्षेत्रों में सहयोग के द्वार खोले। वहीं, भारत सीमा मुद्दों का एक स्थायी समाधान चाहता है। रिपोर्ट में जोर दिया गया है कि भारत सरकार ने हाल के वर्षों में सीमा पर चीन से उत्पन्न खतरे की गंभीरता को अब बेहतर तरीके से पहचाना है।

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